________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 29 ) शद्धभावैः // परवह्मविद्ये तदाराधकं त्वं निजानन्दबोधे नि. मग्नंकरोषि // 1 // हरत्यन्तरायंयतोविघ्नहर्ता / शिवेतेपदं भास्करीभास्करत्वात् / श्रियःसंनिवासाद्धरिः शंकरत्वाछिवः पंचदेव त्मकं संनतो स्मि // 2 // शत्फल्लपंकेरुहश्रीसमान त्वदीयाननस्वछलक्ष्म्याऽनिशंमे // यदानन्दितं मानसं वद्धम. स्ति तदागाढमेवाऽस्तबद्धमहेशि // 3 // त्वया सच्चिदानन्द यामे कयाचित्मनोग्रंथिमन्मुक्तिमतीतिचित्रम् / तवप्रेमसिं. न्धौनिमग्नतत्तत् विमविश्वसिंधुं तदेवातिचित्रम् // 4 // नदाराकुमारःसुहृद्वन्धुरीशे तथा भृत्यवर्गश्चमंत्रीनदासः। भटो भव्य हेतुर्नजानेनृणांते पदंचारुसर्वेष्टदंभीतिहत // 5 ॥न नित्यननैमित्तिक कृत्यमीशे जपध्यानपूजादिरूपमहेशि / कृतं मानसेनैवशुद्धेनमातः कुपुत्रंकुदासंक्षमस्वाऽनुभावात् // 6 // इतनैवदत्रुतंनैवकर्म त्वदर्चाविधंदविपाठंजपंच // अत: श्रेयसेमेनपश्यामिकिंचित् त्वदेकांरूपामन्तरासारभूताम् 7 // गृहंदेववासोजनश्चक्रवर्ती ग्रहस्थोपिमुक्तीभवेत्वरूपातः // परंपातकंपुण्यरूपंपरेशि नतोऽहंसदासारभूतां रूपांताम् // 8 // नपुण्यनशीलंशिवतोषकारि ममप्राणनाथे त वैवाऽनुभावात् / विधेह्यम्बपादारबिन्दद्वयंते हृदिहादशाभिमाशेमृडानि 9 // मातर्मातःधंगुरोनाथशंभो शंभोबालेकालिकेतारिकेच / भी. तंभीतंसंसृतेर्मोहजालात् त्राहित्राहित्वत्पदाब्जप्रपन्नम् 10 // कृपाब्धिर्गुणाब्धिःसुखाब्धिःपराम्बा महाप्रेमपाथोनिधिश्चंद्रवक्त्रा / महाविश्वसिंधोः सदादीर्घनौका मुहुर्मेम्बिके जल्पते For Private and Personal Use Only