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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 93 ) र्णपाशेक्षुचापकुलमशरपंचक विलसितभक्तवरप्रदसकल करा भरणकमनीय शुभसर्वरेखांकितकमल कोमलकरायै नमः 29 // नानारत्नांचित कमलकोमलकरान पू०२९॥ कलधौ तमण्डितमणिमय हस्तफुल्लसमुल्लसितसहजस्वछातिसुन्दरकर पृष्टायैनमः३० / कलधौत० सहजस्वछातिसुन्दरकर पृष्टचतुष्टयं पू० 30 रुक्मरत्नांगुष्टीयकनकमण्यंगुलीयातिरम्यचम्पककलि काकारसरलाविरलांगुल्यैनमः३१॥रुक्म०चम्पककलिकाकारः सरलविरलांगुलीःपू० // 31 // आरक्तोन्नतेंदुमंडलखंड वामह स्तदशनखायै नमः // 32 // आरक्तोन्नतेंदुमंडलखंडवामहस्त दशनखान् पू• // 32 // भंडासुरसंगराविष्कृतरमारमणावतार दशकसमुन्नतारक्तशीतकलाधरमंडलखंड दक्षकरदशनखायै नमः॥३३॥ भंडा०शीतकलाधरमंडलखंड दक्षकरदशनखान पू० // 33 // महामुक्तामाणिहीरहारविभ्राजमानसमुन्नतवि. शालवक्षःस्थलायै नमः॥३४॥ महामुक्ता समुन्नतविशालवक्षःस्थलं पू० // 34 // सुवर्णसुत्रशोभितमुक्ताजालमंडित सुरंगवसनकंचुकीविलसितसुधासारस्वादुस्तन्यपरिपूर्णकुरुबि. न्दकलाकारहेरम्बहरिहरहिरण्यगर्भक्षेत्रेशकात्तीकेयपरिवाज कश्रीमच्छंकराचार्यपरिपीतकामेश्वरकंजपरिपूजितकामेश्वर महाप्रेममहारत्नमहामणिमहाप्रतिपणस्तनयुगलायै नमः॥ ३५॥सुवर्णसूत्रशोभित कामश्वरमहाप्रेममहारत्नमहामाणमहाप्रतिपणस्तनयुगलं पु० // 35 // चलदलसमानाकारा. तिसुन्दरकामेश्वरविलोचनसिद्धि विलद्वारनिम्ननाभिविराजमानस्वजनमन शुद्धिसंपादकत्रिवलित्रिवेणीविलासमाननीले For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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