________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (44) शास्त्रेषु निश्चीयते // 12 // ममत्वहीना निरहंकता ये स्वा नंदपूर्णा निजलाभतुष्ठाः // जगत्स्वरूपं परिपश्यमाना विद्याविद स्तत्वविदो जनाये // 13 // विलोकिता स्ते करुणादृष्ट्यात्वामेव जानन्ति जगत्समग्रम् // अहंममत्वेन विभि तं ये भेदेन हीना परमात्मरूपाम्॥ 14 // जितामरजितेजिते जननि मुक्तमालावृते सुरासुरनमस्कृते वृजिनदुःखदूरीकते // सुधाम्बुधिविहारिणि स्मरणरागिसंतोषणि / परामृतविधायिनि प्रणतपालिनि त्राहि माम् // 15 // दोषाकरं कुटिल भेवकलङ्किन त्वमम्बाश्रितं न च जहासि महानुभावात् - चन्द्रं शिरःकृतपदं क्षमतांवरिष्टे मांतत्समं त्यजसि किं तव पादलग्नम् // 16 कर्तृप्रपालकहरा जगतां त्रिदेवाः ज्ञात्वा प्रभावमतुलं परदेवतायाः / ईशः सदाशिव इमावपि संप्रलक्ष्य मंचत्वमापु रपि यच्चरणाम्बजस्य // 17 // भूमौ गतायां धरणी न वेति भुवं विजानाति विभनि यावै एवं च नत्वेषु गतापरेषु ज्ञाता मयातरूपया शिवास्तु॥१८॥रजस्तमः सत्वमिति स्वनेत्रयो विभर्षिशोणासितशुक्लवर्णतः। शिवेऽवसा ने हि लयंगताः पुनः त्रिदेवताः संरचितुं हरादिकाः // 16 // प्रणयकलहान्नमीभूतः पदाजशिरोधृतो मदनदहन श्रीशम्भू स्ते पदेन तिरस्कृतः // कुसुमधनुषा चेत्थंभूतोविलोकित एषतत् हसित इव ते पादाभूषारवस्य मिषेणहि // 22 // मुखेन चन्द्रस्य सुरदुमाणां करैश्चपद्भ्यां कमलस्यलक्ष्मीः समस्तलक्ष्म्मांतव चेटिकायां सत्याहृताम्बात्रन वेद्मि बीजम // 23 // इतिश्री पराम्बिकानानारूपगुणरत्नमंजुषारूप स्तुतिः समाप्ता // For Private and Personal Use Only