________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 145 ) प्रभाव ते तापर प्रसन्न कह्यौ वरंवहि वोल्यो वह होहु पुत्र तुम मनभावते // शंभु कह्यो ऐसे होहु भयो सो महिष ताने जीते सब देव महाबली जे कहावते // कीनौ धर्मवाध यात मारलीनो भद्रकाली दीन्हो पद दिव्य जहां जोगीजन जावते // 11 // जब जब भीर परे ब्रह्मादिक देव नमें तबतब कहै मात तेरे हाथ लाज है / सुरथ समाधि आदि भक्तन अनेक तारे मारे महिषादिदुष्ट धरमकी पाजहै। रुद्र ओर विरंच विष्णु पावत न पार रहै जाकी अनुसासना तै तत्पर स्वकाज है / यद्यपि करौरै पाप कीनै धाप धाप तो ये करुना समुद्र मेंरेशर्म हिंगलाज है // 12 // जाको नाम लेत महा पाप उप पाप सब दूरहोत पूर सुख संपत समाज है / नानाविधि कोटिदान विप्र सनमान युक्त दियेतें अधिक जाको नामफल गाज है॥कोटिब्रत कोटीजग्य कोटी तीरथाव गाह समनहि ताके ताप दूत जमभाज है / यद्यपि करोर पाप कीनै धापधाप तोपै करुना समुद्र मेरेसनं हिंगलाज है // 13 // त्रिपुराअभिन्न रूपराजेनिजग्यानघन जाकी कृपाद्रष्ट होत कटे पशुपास है / जो गुरुपदारबिंद धाराम करंदकीतै न्हावेहोत त्रिविधमल को विनास है // जाकै पर साद प्रानी सदा शिवरूप होत पिंड ब्रहमंड होत जाके दासषास है। जाकी अनुकंपा करि आठों जामरही मेरे जाही को सुचितवन खास प्रति खास है // 14 // ईषको धनुषबान पुष्प मयी राजैजाकै करतल स्वर्णपास अंकुशभ जाम्यहं / गंगतै अमल है प्रसिद्ध वेद तंत्रवीच अधम उ For Private and Personal Use Only