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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (84) श्रीमद्वाग्वैभवविधायिनी विजयतेतराम् // ॐनमः परमकारुणिके। परब्रह्मरूपिणिपरात्मशक्तिस्वरूपिणि / भगवतिभा समानस्वरूपे।लीलागृहीतवपुषिललितेलालयन्तिभक्तान स्वासयन्त्यरीन् / पोषयन्तिपदवज्रपंजरशरणगतान् / आधिव्याधिजन्ममृत्युभयशोकाद्यनकक्केशापहारिणि / तारिणि भवसिंधो श्चतुर्भुजे / सुमनः पंचवाणपुं क्षुचापस्वर्णशणिपाशधरे / परे घरे वरदे / वाग्विभूतिविधायिनि / अंतरज्ञानध्वान्तध्वन्सिनि द्वादशादित्यप्रकाश इव प्रकाशकारिणि // प्रभाकरादिप्रकाशिनि / स्वयंप्रभे नित्ये नित्योदिते नित्योदितानंददाथिनि निखिलजनमनोगंजिनि निर्गुणे सगुण / सृष्टिस्थित्यन्तकारिणि स्वजनमनोहारिणि / स्वाज्ञासकललोकवविधायिनिप्रणतपालिके वालिके धृतपुस्तकाक्षमालिके / तरुणारुणरूपिणि // पारक्तवसनाभरणमाल्यानलोपिनि / सुप्रसन्न चन्द्रवदने , करुणाकलितकमलपत्रायताक्षि।कामाक्षि मय्यधमे // यद्यपि स्वदेकचरणसरोजशरणे // करुणाभरहगंतपातान् / कुरु 2 // नमस्त्वचरणकमलयोरस्तु 3 / ॐमालामंत्रमिदं देव्या // ध्यानं कृत्वा सदा पठेत् निष्कामस्तत्पदं यायात् सकामोऽभीष्टमाप्नुयात् // इतिश्री आनंदानंदनाथ पूज्यपाद शिष्य श्री प्रतिभानन्दविरिचितं मालामन्त्रं समाप्तम् / / श्रीपरमपावनगुर्जरदेशस्थाया दर्शनाभिलाषापूणर्कारिक पामहात्म्यश्लोकटोकाच // अम्बादर्शनलालसाभरमहोयस्याः प्रसादादहम् / संपूर्णां विदधे ह्यतश्चसदृशः कोनेन भूयान्नृणाम् // For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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