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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 75 ) श्रीगणेशायनमः / येनेदं सकलं जातं वर्तते हरणं भवेत् // आद्यन्तरहितं श्रीमत् सामर्थ्य जयतेतराम् // 1 // सुष्कं चा,तथााष्णं शीतं भवति सर्वतः // यत्प्रसादासदाश्रीमत्सामर्थ्य तत्परंनमः // 2 // जलधिः स्थलतां याति स्थलमम्बु निधिर्भवेत् // ईशाज्ञोऽज्ञश्च सर्वज्ञः सामर्थ्यं शरणं नुम॥ 3 // त्रयाणां जगतामीशः शिवस्तवान् भवेद्यदि // अन्यथा शवइत्येव श्रीसामर्थ्य भजाम्यहम् // 4 // यदुपासनया योगी संगछति परंपदम् // कामी कामं समाप्नोति साम यसंस्मराम्यहम् // 5 // पापंधर्मायते भोगोयोगःस्याद्भजतां नृणाम् // विषं सुधायते श्रीमत्सामर्थ्य मे प्रसीदतु // 6 // यझ्यानाजर्जरीभूतो नरोऽनंगायते निशम् ॥लालित्यं मोहनंश्रीमत् साम) संस्मराम्यहम् // 7 // विधित्वं चैवविष्णत्वं रुद्रत्वं भजते स्वयम् // तत्प्रथक्त्वं च सर्वत्वं सामर्थ्य संभजाम्यहम् // 8 // सामाष्टकमेवेदं नरः पठति भक्ति. मान् // सचालौकिकसामर्थ्य भवते भुविभाग्यवान् // 9 // त्रिकं पंच त्रिकं दिग्वर्णचैकाक्षरंपरम् // द्वाविंशत्यक्षरं माभूत् सामर्थ्य मे पृथक्सदा // 10 // अस्मद्भाग्यं स्वामिनी मातृरूपं भाग्यं शम्भोः श्रीकलत्रस्वरूपम् // भाग्यराज्ञःपर्वतानांहिमस्य वात्सल्यस्यस्थानभूतंनतोऽस्मि // 11 // इति श्री सामर्थ्याष्टकस्तोत्रं समाप्तम् / / श्रीमती सकलान्तर्यामिणी पराम्बा पादारविन्दयोमें सर्वदा For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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