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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 105 ) अथ श्रीमत्सप्तशत्यनुसारेणावताराणि कृपापूर्णापांग्याः परदेवतायाः लिख्यते // पुराकदाचित्कल्पान्ते जगत्युदधितांगते // भास्तीर्यशेष पर्यंकं योगनिद्रामजीभजत // 1 // तन्नाभिपह्मतोजातं ब्रह्माणंदैत्यपुङ्गवौ // हरेःकर्णमलोत्पन्नौ जक्षितुंतौसमागतो // 2 // मधुकैटभनामानौ विधिर्भातस्तदाहरेः // शरणंसंस्तु वत्राले स्थितोगछत्पितामहः // 3 // नावबुद्वयत्तदाविष्णुर्यो. गनिद्रावसंगतः // स्तुतोपिबहुधाब्रह्मा नाप्तःकिंचित्फलंतदा // 4 // विष्णुप्रबोधनेहेतुभूतांज्ञात्वश्वरेश्वरीम् // योगनिद्रां महाकाली स्तोतुंतामुपचक्रमे // 5 // आत्मनोरक्षणार्थाय दैत्ययो शनायच // हरेर्जागरणार्थाय संस्तुताह्मणास्वयं // 6 // आविर्बभूवसादेवी ब्रह्मणोहरपथिस्थिता // उत्तस्थौच तदाविष्णु ोगनिद्राविमोचितः // 7 // मधुकैटभाभ्यांहरिः सुचिरंकृतवान्णम्॥नममातेतदादैत्यो ब्रह्मणाविष्णुनास्तुता ॥॥प्रसन्नासामहामाया स्वीययामाययासुरौ // मोहितो तौरुतौसद्य श्छद्मनाविष्णुनाहतौ // 9 // बन्धनमोचनेचैव समर्थैषासनातनी / सर्जनेपालनेशक्ता तथासंहरणेपिच 10 एषःस्थलश्चैतदर्थे मानीभूतोविचार्यताम् // सर्वेषांदेवतानांच वरमस्याउपासनम् // 11 // एवंदैत्यविनाशाय ब्रह्मसंरक्षणा. यच // नानाप्रयोजनार्थाय जगतांस्थानक्लृप्तये // 12 // श्वातीतरदेवैषा मुक्तिदामुक्तिदातथा // ऋग्वेदमूर्तिःश्रीका For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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