________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 143 ) भायो है, तो मुष असमशीलसम रजनीकर कां मेरेजांन भ्रंगीपान कर ठहरायो है // 1 // हंसमन भायो हैं सुगंधसरसायो हैं जु देवता न पित्रनको कबहू न भोग्य हैं अंतरीयबाहरनितांततमनासक औभासक सरब काल सजन मनोग्य हैं / सोहन कलंकही न होय जो सुधा करयो दौसाकर नाम शीलछाडके अरोग्य है, विधिनांवनायो हैं उ. पनिषदगायो हैं तो तेरे मुषसाथ अंबतुलबेकांजोग्य हैं / 2 // सीतकरया को जगनांम जो कहै तौ कहो तीनविधतापहु मिटावनको ग्यांननां यद्यपिसुधाकर वोदोषाकरनामी तब तो मुखसुधाकरगुणाकरसमांननां / फूलैजोकुमोदनीतौता तैकहावृद्धिभईसजनमुखकंज फुलायब की जाननां / यातैजग दंबतेरे श्रीमुखसमान सदाश्रीमुखहीसौ हैं, महातेजपुंजाननां // 3 ॥ॐपरमेश्वर एककनेक भयो जगरूप सुतो करिअंबनयो / विनुइंद्रियअर्थ गहे गहि अर्थर है, त्रिहुकाल अलिप्त. भयौ ॥गुरुनाथप्रभावते योमहिमातोहिजांनतजो सुषतेजुछयौ। पुनताकरितोकरिभेदनजांनत ताहिनै विश्वमैमोक्षलयो॥४॥ परमेश्वर की परशक्ति तुही सहजात्रिपुरेतदभिन्नसदा / बलभाग्यसईशताताकी तुही भयमानतवासवआदिजदा // हर सिद्धि तुही जग सिद्धि तुही परवस्तु प्रकाशिनी तुंसुखदा यह मांगतहांसबठांतोहिरूप लषांजगदंबजदाहितदा // 5 // जानतनांहिहुतोसपने यह लायक पापको फूल्योहजारो / सुक्रतकोकबहुनकियो मनचिंतितही गयोवीत जमारौ // पैंजननीनिज और निहारके कंचनकांकियोदासतिहारौ / पा For Private and Personal Use Only