________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (46) खेवसेत् / अहो मधुमहच्चैषा ददाति परमाद्भुतम् इतिश्री देव्याषटपदी स्तोत्रम् समाप्तम् // जितामरजितेजिते जननिमुक्तमालाहते सुरासुरनम स्कृते जगति दुःख दूरीरुते // मुखेन्दुवचानामृते स्वजन काम पूरीकते दिगादिभि रनाते करुणया हि चित्तेभव // 1 // स्मरामिपरदेवता निखिलदेवसंसेवितां / घनछविविलासिनी कुरुततापसंछेदिनीम् // कृपामृतसुवर्षिणी स्वजन मानसाल्हादिनीं वरं वरय नादिनी मवयुनान्तसंदर्शिनी // 2 // करे कृतकपालिनी स्वजन पालिनी शलिनी गजेन्द्रगतिगामिनी गिरिशकामिनी शोभिनीम् // परामृतविधायि. नीं भवभयापसंचारिणी महामहिमशालिनी शरणदायिनी नौमि ताम् // 3 // श्लोकत्रयं पठेद्भक्त्या श्रीमातुर्नित्यदा नरः एकाग्रमनसा ध्यात्वा शरणी सुखमानुयात् // 4 // इतिश्री. शरणदायिनीरत्नत्रयंस्तोत्रम् // उँश्रीअजातपुंस्पर्शरत्यै कुमारिण्ये श्रीदुर्गायनमः // हयारिप्रधाना:शिवे दानवा येजितार्यायुधाद्यामरा एकयैव त्वया लीलया संगरे संहतास्ते रणे क्रीडयन्त्यापवर्गप्रदात्र्या // 1 // गता उत्तमान्ते गतिं यत्र यान्ति परे निर्मलप्रज्ञलोका हि दुष्टाः // तवाम्भोजशोभा हरकोधनेत्रप्रभालोकिताः पूतभावा भवानि // 2 // तवाङ्गप्रसंग्यस्त्रसंस्यर्शिनो वै निरक्ष्यिन्त आस्येन्दुशोभा महेशि // अनेके हता दुष्टार्दै For Private and Personal Use Only