Book Title: Chandravyakaranam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन गन्नमाला प्रधान सम्पादक-फतहसिंह, एम. ए., डी. लिट. [निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ] ग्रन्थाङ्क 36 आचार्यचन्द्रगोमिप्रणीतं चान्द्रव्याकरणम् ( शोधपूर्णभूमिकासहितम् ) प्रकाशक राजस्थान राज्य-संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) AJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक - फतहसिंह, एम. ए., डी. लिट् निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ग्रन्थाङ्क 36 . आचार्यचन्द्रगोमिप्रणीतं चान्द्रव्याकरणम् ( शोधपूर्णभूमिकासहितम् ) प्रकाशक राजस्थानराज्यसंस्थापित / राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान . RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR. जोधपुर (राजस्थान) 1967 ई. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थानराज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यतः अखिलभारतीय तथा विशेषतः राजस्थानदेशीय पुरातनकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी आदि भाषानिबद्ध विविधवाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट-ग्रन्थावली प्रधान सम्पादक फतहसिंह, एम. ए., डी. लिट् निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान / ग्रन्थाङ्क 36 प्राचार्यचन्द्रगोमिप्रणीतं चान्द्रव्याकरणम् प्रकाशक राजस्थान राज्याज्ञानुसार निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) 1967 ई. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचार्यचन्द्रगोमिप्रणीतं चान्द्रव्याकरणम् सम्पादक पं. श्रीबेचरदास जीवराज दोशी प्रकाशनकर्ता राजस्थानराज्यसंस्थापित निदेशक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) विक्रमाब्द 2024 ) प्रथमावृत्ति 750 / . ख्रिस्ताब्द 1967 भारतराष्ट्रियशकाब्द 1886 / मूल्य 4001 भा मुद्रक - नवनीवन कार्यालय, अहमदाबाद तथा साधना प्रेस, जोधपुर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रमः पृष्ठ -1-16 1-15 9 सञ्चालकीय वक्तव्य 2. प्रस्तावना प्रास्ताविक मूलग्रन्थ 5. गणसूत्रसूची 6. वर्णसूत्रम् / 7. उगादिप्रकरणम् 8. धातुपाठः 6. चान्द्रसूत्राणामकाराविक्रमेण सङ्कलनम् 10. उणादिसाधितशबानामकाराविक्रमेण सङ्कलनम् 11. चान्द्रव्याकरणस्थितषातुपाठागतषातूनामकाराविक्रमेण सङ्कलनम् 12. शुद्धिसूची 76-80 81 82-104 105-126 127-188 186-205 206-226 230 / Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संचालकीय वक्तव्य प्रस्तुत चान्द्र-व्याकरण प्राचार्य चन्द्रगोमि की कृति माना जाता है। प्रो. क्षितीशचन्द्र चटर्जी के शब्दों में, चान्द्र-व्याकरण वस्तुतः पाणिनीय व्याकरण का ही एक संशोधित संस्करण है जिसमें कात्यायन और पतञ्जलि के समस्त सुझावों तथा सुधारों का समावेश किया गया है / यों तो इस व्याकरण का उल्लेख अनेक . प्राचीन ग्रंथों में पाया जाता रहा है, परन्तु स्वयं यह ग्रंथ अप्राप्य ही था / तारानाथ से अवश्य इस ग्रंथ के तिब्बती संस्करण का पता चला था, परन्तु सर्वप्रथम इसको प्रकाशित करने का श्रेय प्रोफेसर लिविश को है जिन्होंने इसे रोमन-लिपि में मुद्रित करवा कर दो संस्करणों में निकाला था। ये दोनों संस्करण भी बहुत दिनों से अप्राप्य थे; इसीलिए इस प्रतिष्ठान के भूतपूर्व संचालक, प्राचार्य जिनविजयजी ने, सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० बेचरदासजी द्वारा संपादित करवा कर, इस ग्रंथ को देवनागरी-लिपि में पुनः प्रकाशित करने का संकल्प किया, और तदनुसार 1952 ई० में यह कार्य प्रारम्भ भी कर दिया गया, परन्तु खेद है कि कुछ कारणों से इसका प्रकाशन पिछले पंद्रह वर्षों से अटका पड़ा हुआ है। अत्यधिक विलंब के लिए क्षमा चाहते हुये, अब यह पुस्तक विद्वानों की सेवा में प्रस्तुत की जा रही है। ... यद्यपि इस पुस्तक का मुद्रण-कार्य प्रारम्भ होने के पश्चात् डेकन कालेज, पूना से प्रोफेसर क्षितीशचन्द्र चटर्जी के संपादन में इस ग्रंथ का एक देवनागरीसंस्करण 1653 ई० में प्रकाशित भी हो गया है, परन्तु फिर भी इस ग्रंथ की अपनी निजी विशेषता है। प्रस्तुत संस्करण अपनी लघुता में ही महत्ता छिपाये हुये है ; लगभग सवा सौ पृष्ठों में न केवल चान्द्र-व्याकरण के सभी सूत्र हैं, अपितु उनमें उणादि सूत्रों तथा धातुपाठ का भी समावेश कर दिया गया है और साथ में, तुलनात्मक अध्ययन की सुविधा के लिए, चान्द्रसूत्रों के साथ ही पाणिनि. सूत्रों का भी संदर्भ-निर्देश दे दिया है। परिशिष्ट में, अकारादिक्रम से सूत्रों, शब्दों और धातुओं की सूचियां देकर, ग्रंथ को शोधकर्ताओं के लिए और भी अधिक उपयोगी बनाया गया है / अन्त में उस विचार-सामग्री को भी इस संस्करण की ही विशेषता के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है जो सम्पादक तथा प्रधान सम्पादक की ओर से प्रस्तावना में उपस्थित की गई है। -फतहसिंह Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना चान्द्र-व्याकरण के प्रणेता चन्द्रगोमि ने अपने व्याकरण-सूत्रों पर स्वयं ही वृत्ति भी लिखी है जिसको लीबिश ने चान्द्र-व्याकरण के दूसरे संस्करण में सर्वप्रथम मुद्रित कराया था। वृत्ति को 'नमो वागोश्वरायके साथ प्रारम्भ करते हुये, लेखक ने अपने व्याकरण को 'शब्दलक्षण' की संज्ञा दी है और उसकी विशेषता तीन शब्दों में बतलाई हैं; ये शब्द हैं-लघु, विस्पष्ट तथा सम्पूर्ण' / श्रीयुधिष्ठिर' मीमांसक ने इन तीनों विशेषणों पर विचार करते हुये लिखा है कि "कातन्त्रव्याकरण लघु और विस्पष्ट है, परन्तु सम्पूर्ण नहीं है। इस के मूलग्रंथ में कृत्प्रकरण का समावेश नहीं है, अन्यत्र भी कई आवश्यक बातें छोड़ दी हैं.। पाणिनीय व्याकरण सम्पूर्ण तो है, परन्तु महान् है, लधु नहीं।" अतः उनके अनुसार संभवतः इन्हीं दोनों प्रचलित व्याकरणों के गुणों को ग्रहण करके, यह व्याकरण रचा गया प्रतीत होता है / परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि देश के जिस भाग (बंगाल) में चान्द्र-व्याकरण दो-तीन सौ वर्ष पहले तक लोकप्रिय रहा, उसमें भी इसकी कोई हस्तलिखित प्रति न मिली, अपितु उसको नष्ट होने से बचाने का श्रेय तिब्बत' को प्राप्त हुआ / इस आश्चर्य की वृद्धि तब और भी हो जाती है, जब तिब्बत में कलापसूत्र, कलापसूत्रवृत्ति तथा कलापसूत्रलघुवृत्ति के तिब्बती अनुवादों के रूप में कातंत्रव्याकरण' का ही प्रचार अधिक हुआ बताया जाता है। उक्त दोनों व्याकरणों के तिब्बती सहास्तित्त्व में एक अन्य विस्मयकारी बात यह है कि चान्द्र-व्याकरण के सूत्र पाणिनि के सूत्रों से इतने अधिक मिलते हैं कि प्रथम को द्वितीय का ही संशोधित तथा वधित संस्करण" कहा जाता है, जब कि 1. सिद्धं प्रणम्य सर्वज्ञ सर्वीयं जगतो गुरुम् / लघुविस्पष्टसंपूर्णमुच्यते शब्दलक्षणम् // 2. संस्कृत-व्याकरणशास्त्र का इतिहास, पृ० 506 / 3. प्रो० क्षि. चं. चटर्जी, चान्द्रव्याकरण पाव चन्द्रगोमिन की भूमिका / 4. देखिये शीफनेर का लेख, बुलेटिन पाव हिस्टारिकल साइंसेज प्राव द इंपीरियल अकेडमी प्राव साइंसिज़ एट सेंट-पीटर्सवर्ग 4, 264 संख्या 2604 / 5. देखिये युधिष्ठिर मीमांसक, सं० या० इति०, पृ० 502 / 6. ए. सी. बर्नेल-दि ऐन्द्रस्कूल भाव संस्कृत ग्रामर, पृ० 56 / 7. क्षि० चं० चटर्जी, भूमिका चांद्र-व्याकरण भाव चंद्रगोमिन / Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 2 ] कातंत्र को ऐन्द्र-व्याकरण का ग्रंथ' कहा जाता है जिसको विनाश करने का भागी पाणिनि बताया जाता है / कथासरित्सागर के अनुसार ऐन्द्र-व्याकरण कात्यायन का था और इसको नष्ट करने वाला पाणिनि था। कुछ हेर-फेर के साथ यही बात बृहत्कथामंजरी में भी मिलती है; कथा संक्षेप में यह हैप्राचार्य वर्ष के अनेक शिष्यों में दो शिष्य थे कात्यायन और पाणिनि / पाणिनि जडबुद्धि था और गुरुजनों की सेवा-शुश्रूषा में भी कमी करता था। गुरुपत्नी से निकाले जाने पर वह खिन्न होकर हिमालय चला गया जहां उसके घोर तप से प्रसन्न होकर शिव ने उसे 'नवव्याकरण' दिया जिसको प्राप्त करके उसने कात्यायन को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा / जब कात्यायन ने पाणिनि को शास्त्रार्थ में परास्त कर दिया, तो नभ में स्थित शंभु ने घोर हुंकार किया जिसके फलस्वरूप कात्यायन का सारा ऐन्द्र-व्याकरण भूतल से नष्ट हो गया / लगभग इसी से मिलती-जुलती कथा हुयेन-सांग ने भी सातवीं शताब्दी में प्राकर भारतवर्ष में सुनी' / कात्यायन-सूत्रम् अथवा पूर्वपाणिनीयम् नाम से एक 24 सूत्रों वाली.पुस्तक बड़ौदा में पंजीवाराम कालिदास के संपादन में प्रकाशित हुई; इसमें और कातन्त्र में एक समानता यह है कि यह भी 'प्रोम् नमः सिद्धम्' से प्रारंभ होता है / परन्तु दोनों के आकार में प्राकाश-पाताल का अन्तर है। फिर भी 'प्रोम् नमः सिद्धम्' की समानता दोनों ग्रंथों की एक ही परंपरा सिद्ध करती है। क्या बर्नेल के अनुसार कातंत्र की भांति इसे भी 'ऐन्द्र' परंपरा में माना जा 1. बर्नेल, दि ऐन्द्र स्कूल प्राव संस्कृत ग्रामर, प० 45-53 / / 2. भय कालेन वर्षस्य शिष्यवर्गो महानभूत् / तकः पाणिनिर्नामा - जहबुद्धितरोऽभवत् / / स शुश्रूषापरिक्लिष्टः प्रेषितो वर्षभार्ययोः / अगच्छत् तपसे खिन्नो विद्याकामो हिमालयम् // तत्र तीव्रण तपसा तोषितात् इन्दुशेखरात् / सर्वविद्यामुखं तेन प्राप्त व्याकरणं नवम् / / ततश्चाऽगत्य मामेव वादायाह्वयते स्म सः। प्रवृत्ते चावयोर्वादे प्रयाता: सप्त वासराः॥ पष्टभेऽहनि मया तस्मिन् तत्समनन्तरम् / नभस्थेन महाघोरो हुंकारः शंभुना कृतः। तेन प्रनष्टमैन्द्र तदस्मद्व्याकरणं भुवि / जिताः पाणिनिना सर्वे मूर्खाभूता वयम् पुनः / / (त• 4, 20 - 25) * 3. बर्नेल, पृ० 4. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकता है ? इसके उत्तर के लिए उक्त 24 सूत्रों पर विचार करना आवश्यक है। पूर्वपाणिनोयम् या कात्यायनसूत्रम् के सूत्रों को इस प्रकार दिया गया है: प्रोम् नमः सिद्धम् / (1) अथ शब्दानुशासनम् / (13) सर्वः शब्दः। (2) शब्दो धर्मः। (14) सर्वार्थः / (3) धर्मादर्थकामापवर्गाः। (15) नित्यः / (4) शब्दार्थयोः। (16) तंत्रः। (5) सिद्धः। (17) भाषास्वेकादशी। (6) सम्बन्धः / (18) अनित्यः / (7) ज्ञानं छन्दसि / (19) लौकिकोऽत्र विशेषेण। (8) ततो न्यत्र / (20) व्याकरणात् / (9) सर्वमार्षम् / (21) तज्ज्ञाने धर्मः / (10) छन्दोविरुद्धमन्यत् / (22) अक्षराणि वर्णाः / (11) अदृष्टं वा। (23) पदानि वर्णेभ्यः। (12) ज्ञानाधारः / (24) ते प्राक् / उक्त 24 सूत्रों का विषय निस्संदेह 'शब्दानुशासन' है और इस प्रसंग में शब्द से अभिप्राय पद से नहीं धर्म' से है / धर्म को अर्थ, काम एवं अपवर्ग का स्रोत' बताया गया है। इनमें से अर्थ क्रियाशक्तिमूलक, काम इच्छाशक्तिमूलक, तथा अपवर्ग ज्ञानशक्तिमूलक माना जा सकता है। आगमों में क्रिया, इच्छा तथा ज्ञानशक्तियों को पराशक्ति द्वारा 'मयूराण्डरसवत्' बीजरूप में धारण किया जाना माना जाता है; अत: इसी पराशक्ति को धर्म को संज्ञा दी जा सकती है और फलतः इसी धर्म से उत्पन्न होने के कारण क्रिया, ज्ञान तथा इच्छा-शक्तियों के पूर्वरूप को पुरुषसूक्त' में 'तानि धर्माणि प्रथमानि' कहा गया है। पराशक्तिरूप धर्म का धर्मी प्रात्मा या पुरुष है जिसे कई बार इन्द्र की भी संज्ञा दी जाती है / यह इन्द्र या पुरुषरूप धर्मी अपने धर्म द्वारा ही अपने को व्यक्त करता हैं; इसीलिए इस धर्म को ऊपर 'शब्द' कहा गया है और अन्यत्र इसे वाक्-नाम भी दिया जाता है, क्योंकि शब्द या वाक् द्वारा ही मनुष्य अपने को व्यक्त करता 1. शब्दो धर्मः। 2. धर्मात् अर्थकामापवर्गाः। 3. भारतीय सौन्दर्यशास्त्र की भूमिका, पृ. 56.65 / 4. देखिये-वैदिकदर्शन, पृ० 14-15 / Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 4 ] है। यह वाक् उक्त 'परा' रूप में अव्यक्ता है और पराची भी कहलाती है; यही उक्त अद्वैतधर्मस्वरूप शब्द है जो व्याकृत होकर क्रमशः अर्थमूलक क्रिया, काममूलक इच्छा तथा प्रपवर्गमूलक ज्ञान-शक्ति के रूप में एक से अनेक होता है; यही अव्याकृता पराची वाक् का इन्द्र के द्वारा व्याकृता किया जाना कहलाता है / इंद्र की यह व्याकृता वाक् केवल उक्त तीन रूपों में ही नहीं, अपितु अनेक रूपों में व्याकृत होकर विविध इंद्रिय-शक्तियों के रूप में प्रकट होती है / अव्याकृता पराची वाक् (शब्द) जब व्याकृता-रूप ग्रहण करना प्रारम्भ करती है तब अर्थबीजा क्रिया (विविधीकरण को क्रिया) चल पड़ती है। अतः इसके प्रथम रूप में शब्द (परा) और अर्थ (क्रिया) का सम्बन्ध 'सिद्ध होता है, परन्तु दूसरे रूप में अर्थ (क्रिया) के साथ काम (इच्छाशक्ति) का संयोग विशेष होने से दोनों का सम्बन्ध 'साध्य' हो जाता है / शब्दार्थ के सिद्ध सम्बन्ध का ज्ञान हमें बाह्यतः प्रकट नहीं, अपितु आभ्यंतरिक छादन में अप्रकट रूप से होता है ; 'ज्ञानं छन्दसि' कहने का यही अभिप्राय है और 'छन्द' शब्द की विचित्र व्युत्पत्ति' इसी तथ्य का समर्थन करने के लिए बनी है। शब्दार्थ के साध्य सम्बन्ध का ज्ञान हमें बाह्यतः प्रकट रूप में होता है और इस ज्ञान का आधार सारी बाह्य शब्द-समष्टि (सर्वः शब्दः) तथा उसकी सारी अर्थ-समष्टि (सर्वः शब्दार्थः) है। शब्दार्थ का सिद्ध संबन्ध 'नित्य' है और 'तंत्र' रूप है, परन्तु साध्य सम्बन्ध - मनसहित दशेन्द्रियों की भाषाओं में 'एकादशी अनित्य' बन कर नानारूप में प्रकट होता है / प्रथम अवस्था में 'छान्दस' सम्बन्ध है, दूसरी में 'लौकिक' जिसमें विविधीकरण विशेष रूप से होता है / छान्दस सम्बन्ध का ज्ञान 'पार्ष' (सर्व• मार्षम् ) साक्षात् दर्शन से प्राप्त होता है, और इस अवस्था में प्रात्मा को 'पश्य' तथा उसकी वाक् को 'पश्यन्तो' कहा जाता है। छान्दस के विपरीत एक ओर तो 'लौकिक' शब्दार्थ-सम्बन्ध है जो अनेक वर्षों तथा उनसे विरचित अनेक पदों 1. वैदिकदर्शन पृ० 22-30 / 2. वाग्वै पराची अव्याकृतावदत् / ते देवा इन्द्रमब्रवन्, इमां नो वाचं व्याकुविति...... तमिन्द्रो मध्यतोऽवक्रम्य व्याकरोत् / (तै० सं० 6, 4, 7; मै० सं० 4, 58; का० सं० 27, 3; कपि० सं० 42,3) 4. देखिये-'वैदिक एटिमॉलॉजी' में 'छन्दस्'। 5. लौकिकोऽत्र विशेषेण व्याकरणात्, 19-20 / 6. साक्षात्कृतधर्माणः ऋषयो बभूब, या० नि० 1.1 / 7. वै० द० (2006 वि०) पृ० 37 / Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के संबंधों में 'वैखरी' वाक् बन कर प्रकट होता है और दूसरी ओर वह अदृष्ट ज्ञान (अदृष्टं वा) वाला शब्दार्थ है जिसे ऊपर पराची या परा अव्याकृता वाक् कहा गया है / एक में स्वयं शब्द ही धर्मस्वरूप (शब्दो धर्मः) है जब कि दूसरे (लौकिक) के ज्ञान में धर्म (तज्ज्ञाने धर्मः) रहता है, क्योंकि पहले में शब्द नित्य तथा सूक्ष्म होने से वह शक्तिमान् प्रात्मा का 'धर्म' हो सकता है, परन्तु दूसरे में शब्द अनित्य एवं स्थूल (भाषण-ध्वनियों के रूप में) होने से वह स्वयं 'धर्म' नहीं हो सकता ; अतः वहां उसके ज्ञान में वह सूक्ष्मरूपेण निहित माना जा सकता है। ऐन्द्र-व्याकरण का पूर्वपाणिनीयत्व उपयुक्त विवेचन से प्रतीत होता है कि पूर्वपाणिनीयम् में जिस व्याकरण का उल्लेख है वह इंद्र द्वारा अव्याकृता पराची वाक् को व्याकृता किए जाने की आध्यात्मिक कथा है; यह शब्दानुशासन उस शब्द की दार्शनिक व्याख्या प्रस्तुत करता है जो वाक्यपदीय' के अनुसार 'अनादिनिधनं ब्रह्म' के रूप में नित्य होकर भी अनेक अनित्य वर्ण-ध्वनियों में व्यक्त होता है और जिसे अन्यत्र' 'वाक् ब्रह्म' भी कहा जाता है। इसी शब्द या वाक् के कभी कभी सुब्रह्म और ब्रह्म दो रूप स्मृत किये जाते हैं ; इनमें से पहला आत्मा है तथा दूसरा उसकी वह शक्ति जिसके द्वारा वह स्वयं अवर्ण होता हुआ भी अनेक वर्णो के रूप में अभिव्यक्त होता है / पहला धर्मी है, दूसरा' उसका धर्म; पहला शक्तिमान है, दूसरा शक्तिरूप। विष्णुसंहिता के शब्दों में ये दोनों ही पुरुष (मात्मा) ज्योति के दो रूप हैं, एक परदेवता और दूसरा अपरदेवता / एक मायी और दूसरी माया, और पहला दूसरे के सहारे ही लोक में 'बहुधा' भिन्न होता है / अहिर्बुध्न्य-संहिता" में यही माया पारमात्मिका अहंता तद्धर्म 1. 1,1 / 2. गो. ब्रा० 1, 2,10, वाग्धि ब्रह्म, ऐ० ब्रा०२, 15, 4, 21, वाग्वै ब्रह्म ऐ० ब्रा० 6, 3; श० ब्रा० 2, 1,4,10, 14,4,1,23, 14, 6.10, 5, वागिति तद् ब्रह्म-जै० 30,2,662, 13, 2, तै० ब्रा० ३,६,५.५ऐ०वा०.६, 3 इत्यादि / 3. वाग्वै ब्रह्म च सुब्रह्म चेति ऐ० ब्रा०६,३। 4. एकोऽवर्णः बहुधा शक्तियोगात्, श्वे० उ०, 30 / 5. शब्दो धर्मः, पू. पा० 1 / . देवतेऽपरं ज्योतिरेक एव परः पुमान् / स एव बहुधा लोके मायया भिद्यते स्वया // 7. सर्वभावात्मिका लक्ष्मीरहंता पारमात्मिका / तदधर्ममिणी देवो भूत्वा सर्वमिदं जगत् / / Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मिणी देवी होकर 'सर्वजगत्' के नानात्व में प्रकट होती हुई बतलाई गई है। यही वह पराशक्ति है जो इच्छा, ज्ञान, क्रिया-शक्तियों के रूप में प्रकट होती' है और इसी को महार्थमञ्जरीकार ने 'सूक्ष्मा' तथा इसके भेदों को पशयन्ती, मध्यमा तथा वैखरी कहा है / स्फोटवाद के अनुसार प्रणव या शब्दब्रह्म के दो रूप हैं, एक पर और दूसरा अपर / स्फोट या आत्मारूप में यह परब्रह्मशब्द 'वाच्य' है और उसकी 'वाचक' शक्ति को नाद या प्राकृता' ध्वनि कहते हैं जो अनेक 'वैकृत' ध्वनियों में व्यक्त होकर व्याकृता बनती है, परन्तु यह केवल 'वत्तिभेद' है, स्फोटात्मा स्वयं फिर भी 'अभिन्न रहता है / आत्मा पहले नाद या प्राकृता ध्वनि के रूप में व्यक्त होता है (वा० प० 1, 2, 30-31, 1, 76), फिर वही शक्ति बुद्धि तथा प्राण आदि के सहारे नानारूप धारण कर लेती है (वा०प० 1, 77) ये। विकार वस्तुत: नाद या ध्वनि में ही होते हैं, जो 'वाच्य' रूप आत्मा का 'वाचक' है, परन्तु फिर भी 'वाच्य' ओंकार या प्रात्मा (पर शब्द ब्रह्म प्रणव) में इनको प्रतीति समझी (वा० 50 1, 48-46) जाती है / कोई कोई पागमग्रंथ सच्चिदानन्द निर्विकार ओंकार से शक्ति, शक्ति से नाद और नाद से बिन्दु की उत्पत्ति बतलाते हैं (प्रासोच्छक्तिस्ततो नादो नादाद्विन्दुसमुद्भवः); शक्ति से सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाला यह नाद महानाद कहलाता है / अष्टप्रकरणकार के अनुसार उक्त बिन्दु का नाम अनाहत नाद भी है (बिन्दुरेव समाख्यातो व्योमानाहतमित्यपि); इसी अनाहत नाद या परबिन्दु से नाद उत्पन्न होता है (भिद्यमानात् परात् बिन्दोळक्तात्मा रवोऽभवत्); यह अव्याकृत नाद व्याकृत 1. वा०प०,७१-७३ / 2. परः परतरं ब्रह्म ज्ञानानन्दादिलक्षणम् / प्रकर्षेण प्रणवः यस्मात् परं ब्रह्म स्वभावतः / / अपरः प्रणवः साक्षाच्छब्दस्य सुनिर्मलः / प्रकर्षण नवत्वस्य हेतुत्वात् प्रणवः स्मृतः / / (सूतसंहिता-१, 2) 3. स्फोटस्याभिन्नकालस्य ध्वनिकालानुपातिनः ग्रहणोपाधिभेदेन वृत्तिभेदं प्रकाशते / स्वभावभेदो नित्यत्वे ह्रस्वदीर्घप्लुतादिषु प्राकृतस्य ध्वनेः कालः शब्दस्येत्युपचयंतः (वा० 50, 1, 30-31) 4. शब्दस्योर्वमभिव्यक्त वृत्तिभेदे तु वैकृताः। ध्वनयः समुपोहन्ते स्फोटात्मा तैनं भिद्यते / (व० 50, 1, 77) Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 7 ] होकर नानावों को जन्म देता है जो 'कार्य-नाद' कहलाते हैं (वर्णात्मना- . विर्भवति गद्यपद्यादिभेदशः)। कुछ शैवागमों में प्रात्मा से उत्पन्न होने वाली वर्णादि की इस बहुमुखी सृष्टि को एक दूसरे ढंग से भी बतलाया गया है / आत्मा शिव है, उसकी शक्ति का नाम ज्ञान-शक्ति है जो सारी सृष्टि का निमित्त कारण है। शिव और शक्ति मिलकर एक संयुक्त शिव-शक्ति-तत्त्व बनता है जिससे परमेश्वर की परिग्रह-शक्ति या क्रिया-शक्ति का जन्म होता है / परिग्रह-शक्ति बिन्दु कहलाती है और सृष्टि का उपादान कारण है। यह बिन्दु शुद्ध तथा अशुद्ध दो प्रकार का है। शुद्ध बिन्दु के अपर नाम महाबिन्दु तथा महामाया और अशुद्धबिन्दु के बिन्दु एवं माया भी हैं / शक्ति तथा बिन्दु के सम्बन्ध को 'भेदज्ञान' या विकल्प कहते हैं। इसी विकल्प का आश्रय लेकर शिव (आत्मा) शुद्धबिन्दु में क्षोभ उत्पन्न करता है / जिसके फलस्वरूप उससे शब्द और अर्थ की दो धारायें चलती हैं / इन दोनों की पृथक्-पृथक् चार अवस्थायें परा, पश्यन्ती, मध्यमा तथा वैखरी होती हैं / शुद्धबिन्दु से होने वाली यह सृष्टि 'शुद्ध सृष्टि' कहलाती है। अशुद्ध बिन्दु भी, इसी प्रकार शिव (प्रात्मा) द्वारा क्षुब्ध किये जाने पर, अशुद्ध सृष्टि को जन्म देता है और उससे उद्भूत शब्द एवं अर्थ की धारायें भी परा, पश्यन्ती, मध्यमा तथा वैखरी, इन चार अवस्थाओं में व्यक्त होती हैं। ये दोनों प्रकार की सृष्टियां जिसे बिन्दु से उत्पन्न हुई वह 'अचित्' है / अतः इन दोनों को पार करके ही 'चित्' स्वरूप शिव (प्रात्मा) का साक्षात्कार होता है; ओंकार प्रत्यक्ष हो जाता है / वेद का व्याकरण __यह प्रात्मा अथवा प्रणव (ओंकार) की शक्ति वाक् के अव्याकृता से व्याकृता होने की कथा कही गई है / इसी को एक दूसरे रूप में भी कहा जाता है / प्रात्मा या प्रकार देव है जो अपने को वेद द्वारा व्यक्त करता है: इसीलिए 'वेदेन देवोऽसि' का मंत्र प्रचलित हुआ / अतः वेद भी वाक् का पर्यायवाची हुआ और जिस प्रकार वाक् के नानारूप प्रोंकार (अपरप्रणव) से प्रसूत होते हैं (ओंकार एव सर्वा वाक्.........सैषा पूज्यमाना बह्वी भवति), उसी प्रकार 'सभी वाक्' वेद में अनुप्रविष्ट बताई जाती हैं (सर्वाः वाच: वेदमनुप्रविष्टाः) वेद के द्वारा जब प्रात्मा (पुरुष) व्यक्त होता है, तो सबसे पहले वह 'छन्दस्य' पुरुष होता है; फिर ऋङमय, यजुर्मय तथा साममय-नाम से 'त्रिवृत' होता (एष वै छन्दस्यः प्रथमो पुरुषः.........स उ एव एष ऋङमयः पजुर्मयः साममयः Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजः पुरुषः) जब प्रसिद्ध पुरुषसूक्त में पुरुष से छन्दस, ऋक्, यजु और साम की सृष्टि हुई बताई जाती है अथवा जब बृहदारण्यक उपनिषद् में आत्मा को "वाक्' द्वारा छन्द, ऋक्, यजु और साम की सृष्टि (स तया वाचा तेनात्मनेदं सर्वमसृजत् यदिदं किं चर्चा यजूंषि सामानि छन्दांसि) हुई कही जाती है, तो यही बात अभिप्रेत समझी जानी चाहिए। यहां यह कहने की आवश्यकता नहीं कि उक्त उद्धरणों में 'छन्द' शब्द 'मथर्ववेद' के लिए ही प्रयुक्त हुमा है, क्योंकि सृष्टि-प्रसंग में ऋक आदि के साथ अथर्ववेद का ही प्रयोग मिलता है, और इसीलिए हरिवंशपुराण में अथर्ववेद को निश्चित रूप से छन्द कहा गया है: ऋची यजंषि सामानि छन्दस्यापर्षणानि च / चत्वारस्त्वखिला वेदाः सरहस्यास्सविस्तराः // - इस प्रकार वेद की यह चतुर्धा व्याकृति होती है। स्फोटवाद की एक दृष्टि से स्फोटात्मा (पर शब्दब्रह्म) अपनी वाक् (शक्ति) का स्फुरण करके अपर शब्दब्रह्म अथवा 'वेदबीज, ओंकार को ब्रह्म परमात्मन् के साक्षात् वाचक के रूप में प्रकट करता है जिसके म, उ, म तीन वर्ण (जो क्रमशः ऋक्, यजु, साम के प्रतीक हैं) सत्व, रजस, तमस नामक गुणों की अर्थवृत्तियों (ज्ञान, क्रिया, इच्छा) तथा अन्तस्थ, ऊष्म, स्वर, स्पर्श, दीर्घ, ह्रस्व आदि लक्षण से युक्त समस्त वर्ण. समूह में परिणत हो जाते हैं: शृणोति य इमं स्फोटं सुप्ते श्रोत्रे च शून्यवृक् / येन बाग व्यज्यते यस्य व्यतिराकाश प्रात्मनः।। स्वधाम्ना ब्रह्मणः साक्षाद्वाचकः परमात्मनः / स सर्वमन्त्रीपमिषवेदबीजं सनातनम् / / सस्य ह्यासन् त्रयो वर्णा प्रकाराचा भूगूवहाः। . 'पार्यन्ते येस्त्रयो गुणानामर्थवृत्तयः / / ततोऽमरसमाम्नायमसृजद् भगवान स्वयम् / मन्तस्थोष्मस्वरस्पर्शवीर्घहस्वादिलक्षणम् वेद की इस व्याकृति की तुलना ऊपर उल्लिखित पूर्वपाणिनीयम् के शब्दासम्बन्ध से वर्ण-पदादिरूप में होने वाले नानारूपात्मक व्याकरण से भलीभांति को जा सकती है। सनत्सुजातीय में 'यज्ञसंतति' के लिये एक वेद की 1. ऋ० 10, 60, 3. तु० क. यस्मादृचो प्रपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन् / सामानि यस्य लोमानि अथर्वाङ्गिरसो मुखम् / / (म० बे० 10, 7, 20) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्विध व्याकृति (व्यदधात् यज्ञसंतत्यै वेदमेकं चतुर्विधम् ) तथा वायुपुराण में एक वेद का चतुर्धा विभाजन (वेद मे कं चतुष्पादं चतुर्धा व्यभजत् प्रभुः) इसी वेद-व्याकरण के अन्य संस्करण हैं जिसका रूपांतर वाक के चतुर्धा व्याकृत होकर परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी अथवा पराशक्ति, क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति और इच्छाशक्ति के रूप में ऊपर प्रस्तुत किया जा चुका है / जिस प्रकार त्रिया, ज्ञान और इच्छा का संयुक्तसूक्ष्मत्रयी रूप परा में है उसी प्रकार ऋक्, यजु और साम की त्रयी का संयुक्त रूप अथर्ववेद में माना जा सकता है। संभवतः इसीलिए अथर्ववेद का प्रतिनिधि ब्रह्मा अन्य तीनों वेदों के ऋत्विजों की अपेक्षा यज्ञ में अधिक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करता है / उक्त त्रयी के संयुक्त सूक्ष्मरूप का प्रतीक होने से, उसमें क्रिया (ऋक्) यजु (ज्ञान) तथा साम (इच्छा)रूप से हमारे अंगों की सारी सारभूत शक्तियां आ जाती हैं ; इसीलिये उसे 'पांगिरस' अर्थात् 'अंगों का रस' कहा जाता है और उसी संयुक्त सूक्ष्मरूप से समस्त निम्नगामिनी (अर्वाक) नानात्वमयी सृष्टि का प्रारंभ (अथ) होता है, इसलिए उसे 'अथर्वा'' (प्रथ+अर्वाक ) की संज्ञा भी दी जा सकती है / अतः त्रयी के संयुक्त रूप को अथर्वांगिरस भी कहा जाता है और चारों वेदों में त्रयी की ही स्थिति स्वीकार की जाती है, परन्तु यह स्थूलत्रयी तो 'अपरा विद्या' है जो ब्रह्म की प्राप्ति कराने वाली सूक्ष्म 'परा विद्या' से निष्कृष्ट मानी' गई है। प्रश्नोपनिषद्' का कथन है कि 'शांत, अजर, अमृत, अभय, पर' लोक की प्राप्ति तो ओंकार से होती है, ऋक्, यजु, तथा साम से नहीं। छान्दोग्य' उपनिषद् में कहा गया है कि जैसे कोई जल में देख ले, वैसे ही मृत्यु ने देवताओं को ऋक्, यजु तथा साम में देख लिया; देवतालोग यह जानकर ऋक्, यजु तथा साम से ऊपर उठकर 'स्वर' (मोंकार) में चले गये, तो वे मृत्यु की पहुंच के परे पहुंच गये। जो ऋक्, यजु साम अथवा. क्रिया, ज्ञान, इच्छा को ही साध्य मान लेता है वह केवल क्षणिक सुख का ही भागी होता है। अतः श्रीमद्भगवद् 1. देखिये-वैदिक एटिमॉलॉजी में 'अथर्वा' 2. तु० क० यस्मादृचः अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन्, सामानि यस्य लोमानि प्रथांगिरसो मुखम् / / 10, 7, 20 // 3. मु० उ० 1, 1,4 / त्रयीं विद्यामवेक्षेत वेदे सूक्तमथाङ्गतः। ऋक्सामवर्णाक्षरता यजुषोऽथर्वणस्तथा। (म० भा० शा० प० 235) 5. प्र. उ. 5,5 / 6. छो. उ० 1,4,2 / Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 10 ] गीता में केवल इन्हीं को सर्वसाध्य समझनेवाले 'वेदवादरत' लोगों को कड़े शब्दों में आलोचना की गई है और ब्रह्म-ज्ञानी के लिए इन वेदों (क्रिया आदि के प्रतीक ऋक् आदि) को निरर्थक कहा गया है: यावानथं उवपाने सर्वतः संप्लुतोदके / तावान्सर्वेषु वेदेषु ब्राह्मणस्य विजानतः / / पूर्वपाणिनीयम् का रहस्य अतः स्पष्ट है कि जिस शब्दानुशासन को पूर्वपाणिनीयम् की संज्ञा दी गई है उसी का रूपांतर इन्द्र द्वारा वाक् की व्याकृति किये जाने की कथा में है और उसी को वेद-विभाजन अथवा व्याकरण भी कहा जा सकता है। इसका सारांश है-पव्यक्त प्रात्मा की प्राकृता वाक् का व्याकृता होना, नित्य और एक शब्द का अनित्य वर्णों और पदों की एकादशी-अनेकता में विभक्त होना / ऐतरेय उपनिषद्' में इसी बात को प्रकारान्तर से इस प्रकार व्यक्त किया गया है:____ कोऽयमात्मेति वयमुपास्महे, कतरः स आत्मा ? येन वा पश्यति, येन वा शृणोति, येन वा गंधानाजिघ्रति, येन वा वाच्यं व्याकरोति, येन वा स्वादु चाऽस्वादु च विजानाति, यदेतद् हृदयं मनश्चैतत् संज्ञानम् , आज्ञान, विज्ञानं, प्रज्ञानं, मेघा, दृष्टिः, धृतिः, मतिः, मनीषा, जूतिः, स्मृतिः, संकल्पः, ऋतुः, असुः, कामः, वशः इति सर्वाणि एतानि प्रज्ञानस्य नामधेयानि भवन्ति / एष ब्रह्म एष इन्द्र एष प्रजापतिः इस उद्धरण से स्पष्ट है कि प्रज्ञानस्वरूप प्रात्मा ही पांचों ज्ञानेन्द्रियों, हृदय, मन तथा वाक् द्वारा अपने 'वाच्य' को 'व्याकृत' करने वाला ब्रह्म, इन्द्र अथवा प्रजापति कहलाता है और संभवत: ऋक्तंत्रोक्त' ब्राह्म, ऐन्द्र तथा प्राजापत्य ध्याकरण इसी वाक् या प्रज्ञान व्याकृति की ओर संकेत करते हैं / ब्राह्मणों और उपनिषदों में बृहस्पति' की व्युत्पत्ति करते हुये भी उसे वाक् का पति तथा 1. ऐ० उ० 2, 2 / 2. ब्राह्मशानमैन्द्र च प्राजापत्यं बृहस्पतिम् / वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् // . .. वाग्वं त्वष्टा वाग्घीदं सर्व त्वाष्टीव (ऐ ब्रा० 2, 4); त० क० इन्द्रो वै त्वष्टा (ऐ० ब्रा० 6, 10, ऋ. 1, 12, 6) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 11 ] ब्रह्म' बताया जाता है और त्वष्टा' को तो स्वयं वाक् या इंद्र ही कहा जाता है। ऐसी स्थिति में ऋक्तंत्रोक्त आठ व्याकरणों में से बार्हस्पत्य एवं त्वाष्ट्र व्याकरण का तात्पर्य भी उक्त 'वाक्-व्याकृति' ही प्रतीत होता है / जैसा कि उक्त उद्धरण से प्रकट है, यह सारी वाक्-व्याकृति अक्षरों या वर्णों की उत्पत्ति से आगे नहीं बढ़ती, क्योंकि यही 'प्रज्ञान' की अभिव्यक्ति है; इसके आगे वर्णों से पदों (पदानि वर्णेभ्यः) की सृष्टि हो जाती है, जो प्रज्ञान की परिधि से बाहर स्थूल ध्वनि के क्षेत्र की घटना है / अपिलि का 'प्रक्षरतंत्र' और ईशान या महेश्वर के प्रसिद्ध माहेश्वरसूत्र भी अक्षरों या वर्णों को व्याकृति की ओर ही संकेत करते प्रतीत होते हैं; अतः ऋक्तन्त्र के अपिशलि एवं ऐशान व्याकरण भी उक्त उसी प्रज्ञान अथवा वाक् की व्याकृति के क्षेत्र में आते हैं, जिसका संबन्ध ब्रह्म, इन्द्र, बृहस्पति तथा प्रजापति से बतलाया गया है। इस प्रकार. . ऋक्तंत्रोक्त पाठ व्याकरणों में से सात केवल उक्त उसी वाक-व्याकृति के आध्यात्मिक तथ्यों को सूचित करते हैं, जिसे 'पूर्वपाणिनीयम्' में शब्दानुशासन कहा गया है / अब केवल पाठवाँ व्याकरण जिसे ऋतंत्र - में 'पाणिनीयं' कहा गया अवशिष्ट रहता है: ब्राह्म शानमैन्द्रं च प्राजापत्यं बृहस्पतिम् / स्वाष्ट्रमापिशलं चेति पाणिनीयमथाष्टमम् / / पाणिनीयम् का पाणिनीयत्व इस अष्टम व्याकरण को पूर्वपाणिनीयम् से बाहर मानने का कारण संभवतः यह है कि पूर्वपाणिनीयम् के अन्तर्गत केवल वर्ण-पर्यन्त वाक्-व्याकृति मानी जाती थी और वर्णों से उद्भ त पदों और वाक्यों की मीमांसा. को पाणिनीय ध्याकरण माना जाता था। इसका संकेत पूर्वपाणिनीयम् के अन्तिम दो सूत्रों में स्पष्ट है, जब कि 'पदानि वर्णेभ्यः' कहते ही तुरंत 'ते प्राक्' कह कर वर्णो को पूर्वपाणिनीय नित्यक्षेत्र का स्वीकार कर 'पदानि' को उस क्षेत्र से बाहर 1. वाग्वै बृहती बृहत्यै पतिस्तस्माद् बृहस्पतिः (श० बा० 14, 4, 1, 23, ज० उ० 2. ब्रह्म वै बृहस्पतिः ऐ० ब्रा० 1, 13, 1, 16; 2, 38; 4, 11; को० ब्रा० 7, 10; 12,8; 18, 2; श० ब्रा० 3, 1, 4, 15, 3, 6, 1, 11 इत्यादि / 3. पू० पा० 23 / 4. वही 24 / Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 12 ] अनित्य' एवं लौकिक व्याकरण का विषय माना गया है। यहां पाणिनि-शब्द की व्युत्पत्ति की ओर एक स्वाभाविक संकेत दिखाई पड़ता है। श्रीयुधिष्ठिर' मीमांसक ने पाणिनि-शब्द पर विचार करते हुये, पाणिनीय-शिक्षा के याजुषं पाठ में उपलब्ध 'पाणिनेय' नाम का उल्लेख किया है। पूर्वपाणिनीयम के क्षेत्र की उपर्युक्त प्राभ्यंतरिकता के विपरीत, पदादि की मीमांसा में स्वतः प्राप्त बाह्यता को देखते हुये पाणिनेय शब्द सार्थक प्रतीत होता है / संस्कृत में पाणि का अर्थ प्रायः हाथ होता है, और दूसरा अर्थ (जो प्रयोग में प्रायः नहीं मिलता) 'बाजार' है। जो हाथ से किया जाता है वह मनुष्यकृत है, कृत्रिम है; अत: पदों आदि की मीमांसा मनुष्यकृत या कृत्रिम होने से पाणिनेय (हस्तकार्य) कहला ही सकती है, जबकि परा, पश्यन्ती तथा मध्यमा के रूप में व्याकृत होती हुई प्राण से संयुक्त होकर स्थानप्रयत्न के संयोग से वर्णोत्पत्ति तक की व्याकृति को स्वभाव-नेय कहा जा सकता है। यदि पाणि को बाजार के अर्थ में ग्रहण करें, तो पाणि को एक 'व्यवहारभूमि' मानना पड़ेगा जहाँ विविध लोगों के बीच सम्पर्क होने से भाषा के व्याकरण की आवश्यकता पड़ती है; अतः व्याकरण को पाणि (बाज़ार) द्वारा जन्य माना जा सकता है। पाणिनेय (पाणिनीय) व्याकरण वह व्याकरण है जो स्वभावजन्य के विपरीत मनुष्यजन्य अथवा जन-सम्पर्कजन्य है। इसका अभिप्राय यह नहीं कि पाणिनि नाम का कोई वैयाकरण नहीं, परन्तु यह सम्भव है कि उसका अपना नाम कुछ और ही हो, परन्तु 'पाणिनेय' व्याकरए का सफल प्राचार्य होने के कारण उसको 'पाणिनेय' उपाधि मिली हो, जो कालान्तर में पाणिनि-रूप में बदल गई हो। पूर्वपाणिनीयता प्रस्तु, इसमें कोई संदेह नहीं कि पाणिनीय-व्याकरण के पाठ अध्यायों में सुबन्त और तिङन्त पदों की जो विस्तृत रचनाविधि दी गई है वह मनुष्य के कृतित्व का महान् चमत्कार है, लेकिन वर्ण-ध्वनियों द्वारा पदों के अस्तित्व में प्राने से पूर्व मन, प्राण तथा उच्चारण के स्थान और प्रयत्न के माध्यम से आत्मा की शक्ति (वाक'), जिन वर्णों के रूप में व्याकृत होती है, वह मनुष्य के आभ्यं 1. पू०पा०-१७-१८। 2. वही 16 / 3. वही 20 / 4. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास, पृ० 175-176 / 5. जिसे पूर्व-पाणिनीयम् में 'शब्दो धर्मः' कहा है (पू० पा० 2 ) / Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरिक व्यक्तित्व का महत्तर चमत्कार है। इस आभ्यंतरिक वाक्-व्याकृति से बाह्य व्याकृति तक की मीमांसा हमें सर्वप्रथम ऋग्वेद में प्राप्त होती है, जहाँ व्याकृति विविध अवस्थाओं की दृष्टि से वाक् को कद्रीची, पराची, सध्रीची एवं विषूची संज्ञा' दी गई हैं और एक सुन्दर रूप द्वारा उसे एकपदी से नवपदी तथा एकाक्षरा से सहस्राक्षरा-रूप में व्याकृत होता हुआ दिखाया गया है / उपनिषदों पोर ब्राह्मणों में इसी के संयोग से अवर्ण आत्मा बहुवर्ण' अथवा 'सर्व' रूप में वाङमय होने वाला है। सर्व और सर्वज्ञ आत्मा का उक्त बहुवर्ण अथवा सर्वरूप वाङमय और व्याकृत होते हुए भी 'अनिरुक्त' और अक्षय्य' होता है। इस वाङमय-रूप का वाचक "सर्वम्' नपुंसकलिंगी है, जबकि इसमें व्याप्त आत्मा का प्रवाङमय-रूप 'सर्वः पुंलिंगी है और सर्वज्योति परमयज्ञ कहलाता है। इसी सर्वः सर्वज्योति को अन्यत्र सर्वजित' की संज्ञा दी गई है और इसी को संभवतः चन्द्रगोमि ने सर्वज्ञ सिद्ध तथा उक्त सर्व को सर्वीयं गुरुं कह कर नमस्कार किया है सिद्धं प्रणम्य सर्वज्ञ सर्वीयं जगतो गुरुम् / इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्वोक्त पूर्वपाणिनीयम् में भी 'सिद्ध" और 'सर्व'' नाम से शब्द को पृथक्-पृथक् दो रूपों में देखा है। जब चन्द्रगोमि ने 1. ऋ० वे० 1, 164, 17 इत्यादि तु० क० वै० द०, पृष्ठ 51-68 / 2. ऋ० वे० 1, 164, 36-41 / 3. एकोऽवर्णः बहुधा शक्तियोगात् (श्वे. उ० 4, 1) / 4. तत्सर्व आत्मा वाचमप्येति वाङ्मयो भवति कौ० ब्रा०२, 7 तु० क० श० ब्रा० 8, 7, 5. सर्व वा अनिरुक्तम् (श० ब्रा० 1, 3, 5, 10, 1, 4, 1, 21, 2, 2, 1, 3, 7, 2, 2, 14, 10, 1, 3, 11, 12, 4, 2, 1) / 6. सर्व वाऽअक्षय्यम् (श० ब्रा० 1, 6, 1, 16, 11, 1, 2, 12) / 7. श० ब्रा० (6, 1, 3, 18, 6, 1, 3, 11) / 8. तां० ब्रा० (16, 6, 1) / 6. वही (16, 6, 2) / 10. वही (16, 7, 2, 22, 8, 4) / 11. सर्वो धर्मः......सिद्धः / 12. सर्वः शब्दः नत्यः / Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्ध और सर्वीय को नमस्कार करने से पूर्व नमः वागीश्वराय लिखा, तो संभवतः शब्द-ब्रह्म का कोई तृतीय रूप भी अभिप्रेत था जिसमें उक्त दोनों रूपों का समावेश होता हो। इसकी तुलना श्वे० उ० के उस अग्र्य पुरुष से कर सकते हैं जो सब का वेत्ता है परन्तु उसका वेत्ता कोई नहीं है (स वेत्ति वेद्य न च तस्यास्ति वेत्ता); वही सर्वात्मा तथा सर्वगत होकर भी नित्य है वेदाहमेतमजरं पुराणं सर्वात्मानं सर्वगतं विभुत्वात् / जन्मनिरोधं प्रवदन्ति यस्य ब्रह्मवादिनो हि प्रवदन्ति नित्यम् // कात्यायनसूत्र प्रात्मा अपने चरम सत् रूप में अनिर्वचनीय होने से वेद में कः (लिंग) अथवा कत् (नपुंसकलिंग) कहलाता है ; इस अवस्था में उसकी शक्ति अथवा वाक् उसी में लीन होने से कद्रीची कही जाती है, क्योंकि इस रूप में यह कह सकना कठिन है कि वाक् कहाँ गई (सा कद्रीची कंस्विदधं परागात्, ऋ० वे० 1, 164,17); उक्त कत् के प्रथम (कारण) व्यक्त रूप को कात्य तथा द्वितीय (सूक्ष्म) व्यक्त रूप को कात्यायन कहा जा सकता है। कारणशरीर एवं सूक्ष्मशरीर में व्यक्त होने वाले वाक्-संयुक्त आत्मा की अभिव्यक्ति को ही प्रवर्ण से नानावर्ण में रूपांतरित होने वाला कहा गया है और यही उक्त पूर्वपाणिनीयम् का विषय है। अतः इसी विषय को कात्यायन तथा पूर्वपाणिनीयम् के सूत्रों को कात्यायनसूत्र कहना सर्वथा युक्तियुक्त है / कात्यायन और पाणिनेय इस दृष्टि से पूर्वोक्त कात्यायन एवं पाणिनि का संघर्ष एक प्रतीक आख्यान के रूप में ही लिया जा सकता है। मनुष्य के अभिव्यक्तिशील व्यक्तित्व को वेद में प्रायः वृषभ या वृषन् इन्द्र के रूप में देखा गया है और इस अभिव्यक्ति को माधारभूता वाक् के व्यापार को वर्षा के रूपक' द्वारा चित्रित किया गया है / अत एव इस रूप में मानव को वर्ष ऋषि तथा उसकी सूक्ष्म एवं स्थूल अभिव्यक्तियों को क्रमशः कात्यायन एवं पाणिनेय कहा जा सकता है। स्थूल अभिव्यक्ति में जब सुबन्तों और तिङन्तों की सृष्टि होने लगती है, तो स्वतः सूक्ष्म अभिव्यक्ति का पर्यवसान ही तो स्थूल पदादि की अभिव्यक्ति में होता है / अत एव कात्यायन एवं पूर्वपाणिनेय शब्दों द्वारा एक ही मानवशक्ति की क्रमशः सूक्ष्म एवं स्थूल 1. ऋ. 1. 164 / Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 15 ] अभिव्यक्तियों का विवेचन उसी प्रकार अभिप्रेत है जिस प्रकार दूसरी दृष्टि से क्रमशः पूर्वमीमांसा एवं उत्तरमीमांसा में / प्रस: काशिका 6, 2, 104 में उल्लिखित पूर्वपाणिनीयं शास्त्रम् तथा हरदत्त द्वारा उसे 'पाणिनीयशास्त्र पूर्वचिरन्तनम्' कहा जाना इसी सूक्ष्म अभिव्यक्ति की ओर संकेत करता प्रतीत होता है। पूर्वसूत्र - परम्परा उक्त पूर्वपाणिनेय अथवा कात्यायन को सूक्ष्म व्याकृति की एक निश्चित परम्परा रही प्रतीत होती है, जिसके पारिभाषिक शब्द पाणिनेय-परम्परा से कुछ भिन्न माने जाते थे। पतंजलि के महाभाष्य में भी जहाँ जहाँ पूर्वसूत्र का उल्लेख है वहाँ-वहाँ इसी प्रकार की भिन्नता के दर्शन होते हैं / उदाहरण के लिये उसके अनुसार पूर्बसूत्र-परम्परा में वर्ण की अक्षर', तथा गोत्र की वृद्ध-संज्ञा होती है / पतंजलि द्वारा प्रयुक्त 'पूर्वसूत्र' शब्द के निम्नलिखित प्रयोग भी सम्भवतः इसी दृष्टि से समझे जा सकते हैं-...... पूर्वसूत्रनिर्देशो वापिशलमधीत इति / पूर्वसूत्रनिर्देशो पुनरयं द्रष्टव्यः / सूत्रे प्रधानस्योपसर्जनमिति संज्ञा क्रियते (4, 4, 14) पूर्वसूत्रनिर्देशश्च / चित्वान् चित इति (6, 1, 163) अथवा पूर्वसूत्र निर्देशोऽयं पूर्वसूत्रेषु च येऽनुबन्धा न तैरिहेतस्कार्याणि क्रियन्ते (7, 1, 18) पूर्वसूत्रनिर्देशश्च (8, 4, 7) निदेर्शोऽयं पूर्वसूत्रेण वा स्यात् (7, 1, 18) शिक्षा, प्रातिशास्य तथा निरक्त प्रारंभ में उक्त पूर्वपाणिनीयसूत्र-परंपरा का क्षेत्र सूक्ष्मवाक् को वर्णों या अक्षरों में व्याकृति तथा उनकी ध्वनियों तक ही सीमित रहा प्रतीत होता है। प्रतः शिक्षा एवं प्रातिशाख्यों की छन्दोबद्ध रचनाएँ इसी परंपरा में मानी जा सकती हैं / जैसा कि पूर्वपाणिनीयम् के "वर्णेभ्यः पदानि" तथा 'ते प्राक' सूत्रों से पता चलता है, वर्णों की व्याकृतिमात्र ही इस परंपरा का क्षेत्र होते हुये भी, किसी सीमा तक पदों को भी इसके क्षेत्र में घसीटने का प्रयत्न किया जाता था। 1. म० भाव 1, 1, 2 / 2. म० भा० 1, 2,68 / Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 16 ] संभवतः यह अतिक्रमण प्रारंभ में पदों के संकलन तथा वर्गीकरण तक हो सीमित रहा हो और निघंटु, पुष्पसूत्र, फिटसूत्र आदि की रचना इसी परंपरा में हुई हो / जैसा कि पहले निर्देश हो चुका है, सूक्ष्मवाक की व्याकृति ही इंद्र का व्याकरण है, अतः कोई आश्चर्य नहीं कि परंपरा में ऐन्द्रव्याकरण वर्णसमूह' और अधिक से अधिक पदसमष्टि से संबद्ध माना जाय / परन्तु पदसमूह के संकलन तथा वर्गीकरण के साथ ही उनके निर्वचन के प्रति जिज्ञासा होना स्वाभाविक है; अतः निरुक्त का आविर्भाव हुआ और उसके परिणामस्वरूप हुई शब्द की धातु-जिज्ञासा / काशकृत्स्न - व्याकरण ____ अतः अब प्राचीन सूक्ष्मवाक् की वर्गों में व्याकृतिमात्र को अथवा कुछ आगे बढ़ कर वर्णसमूह से बने पदों के संकलनमात्र को व्याकरण मानना पर्याप्त नहीं था। वर्ण मोर पदों की अभिव्यक्ति तो वाक् की अांशिक अभिव्यक्ति (काश, प्रकाश) है; उसके मागे पदों के मूल में स्थित धातु और प्रत्यय को व्याकृति को व्याकरण के क्षेत्र में लिए बिना वाक् की अभिव्यक्ति (काश) में कृत्स्नता सम्भव नहीं थी / अतः वर्ण, पद एवं धातु-प्रत्यय के समावेश से ही व्याकरण को संभवतः त्रिकं काशकृत्स्नम्' या काशकृत्स्नीयम्' की संज्ञा प्राप्त हुई। पं० युधिष्ठिर मीमांसक* का मत है कि काशकृत्स्न-व्याकरण को पहले काशकृत्स्न-तंत्र कहते थे और उसी. का संक्षिप्त नाम 'कातंत्र' है जो मूलतः तीन अध्यायों वाला ही था। काशकृत्स्नं गुरुलाघवम् ___ अस्तु व्याकरण के काशकृत्स्न होने पर उसके विकास का क्षेत्र खुल गया। अब उसमें व्याकरण की लघुता और गुरुता, सूक्ष्मता और स्थूलता दोनों का - 1. पं० युधिष्ठिर मीमांसक द्वारा उद्धृत चरकव्याख्या____ शास्त्रेष्वपि प्रथ वर्णसमूह इति ऐन्द्रव्याकरणस्य / (सं० व्या० इ० पृ० 86) 2. तु. क०-नक पदजातम् यथा अर्थः पदम् इत्यंन्द्राणाम् / / (दुर्गः-निरुक्तत्ति, पृ० 10; सं० व्या० 30, पृ० 86) 3. काशिका 5, 1,58 / / 4. धाकटायन, ममोपावृत्ति 3, 2, 161 / 5. सं० व्या० इ० (द्वि० सं०) पृ० 504.505 / * 6. वही, पृ० 117 / Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 17 / समावेश हो सकता था। इंद्र द्वारा सूक्ष्मवाक् की व्याकृति का उल्लेख हो चुका है। इसी के एक लघुरूप का उख्लेख वा० सं० 16, 77 में है जहाँ प्रजापति' को सत्य एवं अनृत का व्याकरण करने वाला कहा गया है और इसी के अन्य रूप का निरूपण वाक् के एकपदी से नवपदी अथवा एकाक्षरा से सहस्राक्षरा होने में देखा जा सकता है / शिक्षा, प्रातिशाख्य और निरुक्त में इसी लघुरूप की स्थूलतम अवस्था मानी जा सकती है, परन्तु जब धातु, प्रातिपदिक, नामाख्यात के साथ-साथ लिङ्ग, वचन, विभक्ति, प्रत्यय, उपसर्ग, निपात, विकार आदि पारिभाषिक शब्दों का उल्लेख होने लगा तो निस्संदेह व्याकरण की उक्त लघुता पूर्णतया गुरुता में बदल गई और उसका विषय वर्णों की उत्पत्ति अथवा पदों की साधारण व्युत्पत्ति तक सीमित न रहकर वाक्य में विभिन्न शब्दों के पारस्परिक सम्बन्ध पर आधारित अनेक नियमों की सृष्टि होने लगी। अतः कोई भी ग्रंथकार यदि सम्पूर्ण (कृत्स्न) व्याकरण को लिखने का दावा करे, तो उसे विषय के लघु और गुरु, सूक्ष्म एवं स्थूल दोनों पहलुओं को लेना पड़ेगा। अतः काशकृत्स्न-व्याकरण के गुरुलाघवम् का यही रहस्य प्रतीत होता है। चान्द्र-व्याकरण को लघुता और सम्पूर्णता चान्द्र-व्याकरण के रचयिता ने भी अपने 'शब्दलक्षण' को लघु एवं संपूर्ण . कह कर सम्भवतः इसी अभिप्राय को व्यक्त किया है / यद्यपि पूर्वोल्लिखित मीमांसकजी का अनुमान भी पूर्णतया युक्तियुक्त है, परन्तु शिवसूत्र, वर्णसूत्र, धातुपाठ तथा उणादि के द्वारा यदि चन्द्रगोमि ने व्याकरण के लाघव को साधा है, तो शुद्ध व्याकरण के छः अध्यायों में उसके गौरव का भी निर्वाह हुआ है। इस दष्टि से पाणिनि की अष्टाध्यायी में भी किसी सीमा तक 'गुरुलाघवम्' का समावेश है, परन्तु उसमें जिन नई संज्ञाओं और पारिभाषिक शब्दों का प्रवेश हुआ है और जिस नई वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया गया है उसके व्याख्यास्वरूप निर्मित विशाल व्याकरण-साहित्य ने उक्त 'लघु' पक्ष को गौण ही नहीं, विस्मृत ही कर दिया। अष्टाध्यायी के 'गुरु' पक्ष में प्रविष्ट उक्त वैज्ञानिकता ने जहाँ उसे यथार्थतः पाणिनेय (पाणिसाध्य अथवा कृत्रिम) बना दिया, वहाँ अपने 'लघु' पक्ष को पाणिनेय से विपरीत 'अनुमेय' बनाकर वैयाकरण दर्शन की गोद 1. दृष्ट्वा रूपे सश्यावृते व्याकरोत् प्रजापतिः। 2. ऋ० वं०-१, 164 / 3. गो. ब्रा०-१, 24 / Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 18 ] में जा बिठाया / यह होना विकास की दृष्टि से स्वाभाविक ही नहीं, आवश्यक पाणिनि को ऐतिहासिकता __ उक्त विवेचन से यह कदापि अभिप्रेत नहीं कि पाणिनि-नाम का कोई व्यक्ति ही नहीं हुआ। यद्यपि अष्टाध्यायी के कर्ता को पाणिन, पाणिनि, दाक्षीपुत्र, शालकि, शालातुरीय, पाहिक तथा पणिपुत्र कहा गया है, परन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि उसका लोक-प्रचलित नाम 'पाणिनि' ही था और संभवतः जब पाणिनीय-साहित्य की विशालता और गुरुता में व्याकरण के 'लघु' पक्ष को तिरोहित-सा होता हुआ पाया गया, तो उसे 'पूर्वपाणिनीय' नाम दे कर पृथक् विषय बनाने का प्रयत्न किया गया और पाणिनीय-साहित्य की नवीनता, वैज्ञानिकता एवं कृत्रिमता को ध्यान में रख कर उक्त 'पूर्वपाणिनीय' के विपरीत उसे विनोद के लिये पाणिनीय के स्थान पर पाणिनेय कहा गया हो। चन्द्रगोमि और बौद्धधर्म चन्द्रगोमि को विद्वानों ने प्रायः बौद्धमतावलम्बी माना है। इसका प्रथम माधार चान्द्रव्याकरण के प्रारम्भ में उपलब्ध श्लोक है जिसमें सिद्ध और सर्वीय गुरु को नमस्कार किया गया है / जैसा ऊपर लिखा जा चुका है, सिद्ध और सर्वशब्दों का प्रयोग वैदिक परंपरा में भी प्राप्त है और उनको 'नमः वागीश्वराय' के संदर्भ में वैदिक ही समझना चाहिए / दूसरा प्राधार' यह है कि चान्द्रव्याकरण में स्वर और वैदिक व्याकरण का अभाव है। इस प्रसंग में पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने प्रमाण दे कर बताया है कि चान्द्र व्याकरण में उक्त दोनों विषयों का भी समावेश अवश्य था, क्यों कि चान्द्रवृत्ति 1, 1, 108 में 'स्वरं वक्ष्यामः' तथा सूत्र 3, 4, 68 में 'स्वरं तु वक्ष्यामः' प्रादि कई स्थानों पर वैदिक स्वरविधान करने की प्रतिज्ञा प्राप्त होती है और इसकी आवश्यकता तभी पड़ती जब वैदिक शब्दों की रचना का भी समावेश होता / इससे स्पष्ट है कि चान्द्रव्याकरण में किसी समय वैदिक व्याकरण का भी समावेश अवश्य था। चन्द्रगोमि के बौद्ध होने का एक अन्य प्रमाण चान्द्रव्याकरण के अन्त में उपलब्ध 'शुभमस्तु सर्वजगताम्' प्राशीर्वाद वाक्य भी है, परन्तु इस प्रकार की 1. डॉ. बेल्वेल्कर-सिस्टम आव संस्कृत ग्रॉमर, पृ. 56; ए० के० दे० इंडि० हि० वा. जून 1938, पृ.० 258 / Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 19 ] मंगल कामना पर एकमात्र बौद्ध-धर्म का ही आधिपत्य मानने के लिए कोई ठोस प्रमाण नहीं है। किसी ग्रंथ के अंत में 'शुभमस्तु' लिखने की परिपाटी तो अब तक चली पाती है और प्रायः धर्मनिरपेक्ष ही मानी जा सकती है / उदाहरण के लिए श्वात्रेय-संहिता नादि अनेक ग्रंथों का उल्लेख किया जा सकता है। -फतहसिंह एम०ए०, डी.लिट. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रास्ताविक इस छोटे से प्रास्ताविक में दो-तीन मुद्दों पर लिखने का विचार है। (1) मुख्य व्याकरणों का संक्षिप्त परिचय और चान्द्रपाकरण के सम्पादन का वृत्तान्त / (2) प्रकाशित चान्द्रव्याकरण की सम्पादन-शैली का परिचय / (3) चान्द्रव्याकरण के कर्ता का परिचय / / महाभाष्यकार श्रीपतंजलिमुनि ने जिस भाषा को 'लौकिक-भाषा' का नाम दिया है, ऐसी संस्कृत-भाषा के अनेकानेक छोटे-मोटे व्याकरण हमारे देश में और विदेशों में भी पूर्व में बने हैं और नाज भी बनते जारहे हैं / इन सब में निम्न पाठ व्याकरण प्रधान गिने जाते हैं। "इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः॥ पाणिन्यमरजैनेन्द्रा जयन्त्यष्ट विशास्विकाः // " अर्थात् इन्द्र, चन्द्र, काशकृत्स्न, अपिशलि, शाकटायन, पाणिनि, अमर और जैनेन्द्र ये पाठ प्रादिशाब्दिक माने जाते हैं। ___ इस श्लोक में बताए हुए प्रादिशाब्दिकों के निर्देश में किसी प्रकार का कालक्रम या छोटे बड़े की कल्पना नहीं रखी गई है, परन्तु मात्र गणना करने का ही प्राशय रहा है। पादिशाब्दिक- सर्वप्रथम व्याकरण की रचना करने वाले पाद्ययाकरणों में प्रथम स्थान 'इन्द्र' का पाता है। इन्द्र-नाम के उस महापण्डित द्वारा बनाया गया व्याकरण 'ऐन्द्र' नाम से प्रसिद्ध हुआ / आज यह व्याकरण उपलब्ध नहीं है, पर प्राचीनतम पाणिनीय व्याकरण के महाभाष्य में इसका नाम-निर्देशमात्र पाया जाता है / 'ऐन्द्र' व्याकरण इतना प्राचीन है कि इसके सम्बन्ध में अनेक किंवदन्तियां चल पड़ी हैं / जैन-सम्प्रदाय के अनुयायी प्रचीन पण्डित कहते हैं कि जब भगवान् महावीर लेखशाला (पाठशाला) में प्रथम पढ़ने बैठे तब स्वर्ग में से 'इन्द्र' भगवान् के पास पाया और उनके साथ शब्दशास्त्र के सम्बन्ध में जो चर्चा भगवान् ने की उसका नाम ऐन्द्र व्याकरण हुआ / ऐसी दंतकथा श्वेताम्बर-जैनपरम्परा में बहुत समय से चली आती है। वास्तव में 'इन्द्र' नाम का कोई विद्वान् इस व्याकरण का कर्ता था। स्वर्ग Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 2 ] में बसने वाले वज्रपाणि पुरन्दर शक्र का भी एक नाम 'इन्द्र' है, नामसाम्य पर उपर्युक्त किंवदन्ती प्रचलित होगई हो, यह स्वाभाविक है। 'चन्द्रगोमी' नाम के बौद्ध महापण्डित ने जो व्याकरण लिखा वह 'चान्द्रव्याकरण' कहलाता है / प्रस्तुत प्रकाश्यमान यही व्याकरण है। / / 'काशकृत्स्न' और 'अपिशलि' इन दो नामों का निर्देशमात्र पाणिनीयव्याकरण के मूलसूत्रों में कहीं-कहीं मिलता है तथा अन्य व्याकरणकारों ने भी नामस्मरण करके इनके मत का उल्लेख किया है। इससे मालूम होता है कि ये महानुभाव अवश्य ही कोई विशिष्ट वैयाकरण हो गये हैं, बाकी वर्तमान में इनके ध्याकरणों की उपलब्धि अाज तक तो नहीं हुई है। शाकटायन-नाम का निर्देश भी पाणिनि के सूत्रों में मिलता है। ये कोई वेदानुयायी प्राचीन वैयाकरण हैं / एक जैन शाकटायन भी हुए हैं, परन्तु वे तो अर्वाचीन हैं / नामसाम्य से जैन-धर्म की प्राचीनता सिद्ध करने के लिये 'शाकटायन' का नाम लिया जाता है, पर यह भ्रम है और इतिहास ने इस भ्रम का परिमार्जन भी कर दिया है। पाणिनिकृत अष्टाध्यायी-सूत्रपाठ प्रसिद्ध व्याकरण है। इसके ऊपर पातजलमहाभाष्य, वाक्यपदीय, काशिका, शब्देन्दुशेखर, सिद्धांतकौमुदी, मंजूषा तथा वैयाकरणभूषण इत्यादि अनेकानेक विवेचनात्मक ग्रंथ बने हुए है। अमरसिंह-नामक बौद्धपण्डित का बनाया हुआ कोशों में सबसे प्राचीन 'अमरकोश' तो आज भी प्राप्त है। इस पर भी अनेकानेक संस्कृत-टीकायें बनी हुई हैं तथा देश-भाषा में भी इसकी टीकायें प्राप्त हैं। सारे भारत में इस कोश का अच्छा प्रचार है। कोश भी व्याकरण का एक अंग ही है / बाकी, इनका बनाया हुआ कोई व्याकरण उपलब्ध नहीं है / जैनेन्द्र-प्राचार्य देवनन्दिमुनि अथवा पूज्यपादस्वामी के बनाये हुये व्याकरण का नाम जैनेन्द्र-व्याकरण है। जैन-परम्परा में इससे पूर्व का कोई संस्कृतध्याकरण उपलब्ध नहीं है। जैन-परम्परा की अपेक्षा ये प्रादिशाब्दिक ही हैं। इनकी रचना पाणिनीय व्याकरण की पद्धति पर की गई है और इसकी संज्ञायें बड़ी अटपटी हैं। इन पाठों व्याकरणों का निर्देश कालक्रम से इस प्रकार हो सकता हैऐन्द्र, काशकृत्स्न, अपिशलि, शकिटायन, पाणिनीय, चान्द्र, जैनेन्द्र, अमर / प्रस्तुत चान्द्र व्याकरण भारत देश में ही बना है पर कहाँ बना, इसका पता नहीं। भारतीय होने पर भी चान्द्रव्याकरण का प्रथम प्रकाशन भारत में न Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [3] होकर जर्मनी में हुग्रा, यह हमारी विद्योपासना या विद्याप्रियता कितनी है, इसके मापदण्ड का सूचक है / जर्मनी में महापण्डित ब्राउनो लाइबिश (Bruno Liebich) ने लिपजिग शहर से चान्द्र व्याकरण को सर्वप्रथम प्रकाशित किया। सूत्र और वृत्तिसहित संपूर्णरूप से रोमनलिपि में यह व्याकरण उपलब्ध कराने का श्रेय महापण्डित ब्राउनों को ही मिला है / मेरे इस सम्पादन का मुख्य आधार वही रोमनलिपि में मुद्रित जर्मन-प्रावृत्ति है / अतः इस कार्य के लिये महापण्डित ब्राउनो का मैं बहुत-बहुत आभारी हूँ। - हमारे स्नेहास्पद एवं श्रद्धेय प्राचार्य श्रीजिनविजयजी पुरातत्व के तो प्रकाण्ड पण्डित हैं ही, तदुपरांत उसके अनुसन्धान में पुरातत्वविद्या की अनेकानेक उपयोगी पुस्तकों के प्रकाशन के भी उत्कट प्रेमी हैं और दुर्लभ, अलभ्य प्राचीन ग्रन्थों को प्रकाश में लाने का भी उनका प्रत्युत्कट प्रयत्न रहता है। उनका सम्पूर्ण जीवन ही इसी प्रवृत्ति में व्यतीत हुआ है। उमर लगभग अस्सी के प्रासपास है, आँखें भी वहुत कमजोर हैं, शरीर भी काम देने से इन्कार कर रहा है तो भी दृढसंकल्पी आचार्यश्री अपने प्रियकार्य से रुकते नहीं हैं। मेरा और उनका परिचय 1920 ई. से पहले का है / तबसे में आजतक देख रहा हूं कि लगातार अविरत भाव से उनकी प्रवृत्ति में पूर्णविराम तो नहीं ही है, पर अर्द्धविराम और अल्पविराम तक मैने नहीं देखा। उनकी यह प्रवृत्ति भारत ही नहीं भारत से बाहर भी सुविश्रुत है / उन्होंने आज तक 'सिंघी-जैन-ग्रन्थमाला' में और 'राजस्थान-पुरातन-ग्रन्थमाला' में सैंकड़ों ग्रन्थ प्रकाशित कर दिये हैं / और प्राज भी यह कार्य चल ही रहा है। वे खुद ग्रन्थों का संशोधन-संपादन करते हैं तथा तत्तद्विषय के साक्षरों द्वारा भी यह कार्य कराते हैं। उनके मन में खयाल हुआ कि चान्द्रव्याकरण भारतीय ग्रन्थ है, उसके विधाता भी भारतीय ही हैं। फिर भी यह ग्रन्थ रोमनलिपि में सर्वप्रथम जर्मनी में प्रकाशित हो गया। भारत में इसका नाम केवल “इन्द्रश्चन्द्रः" वाले श्लोक में ही देखा जाता है, पर इस ग्रन्थ का न किसी ने संशोधन-सम्पादन किया और न प्रकाशन ही किया। यह भारी लज्जा की बात है / इस शर्म को दूर करने के लिये उन्होंने निश्चय किया कि 'राजस्थान-पुरातन-ग्रन्थमाला' में इसको स्थान दिया जाय और प्रारंभ में इसके मूल सूत्रपाठ को ही प्रकाशित किया जाय / .. मेरी रुचि व्युत्पत्ति विद्या में होने से वे जानते थे कि व्याकरणशास्त्र के सम्पादन और संशोधन में भी मेरी विशेष प्रीति है, अतः यह कार्य उन्होंने मुझे सौंपा। मैने बड़े रस के साथ इसका संशोधन और सम्पादन कर दिया और अब यह पाठकों के सामने आ रहा है / Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 4 ] हमारे देश में इस प्रवृत्ति का सर्वप्रथम प्रारम्भ करने वाले तो आचार्यश्री ही हैं, परन्तु कई एक कारणों से इसका प्रकाशन विलम्ब से हुआ अतः / इस बीच में डेक्कन कॉलेज, पूना से भी इसका प्रकाशन हो गया। इस प्रकाशन 'चान्द्रमूलसूत्रपाठ' के संशोधन- सम्पादन की शैली का परिचय इस प्रकार है: यह सारा व्याकरण छह अध्यायों में विभक्त है, जब कि पाणिनीय व्याकरण आठ अध्यायों में है। ग्रन्थकार चन्द्रगोमी महामुनि ने अपनी इस कृति के प्रारम्भ में ही सूचित किया है कि 'लघु-विस्पष्ट-सम्पूर्णमुच्यते शब्दलक्षणम्' अर्थात् "पाणिनीय की अपेक्षा लघु, विशेषरूप से स्पष्ट और सम्पूर्ण ऐसा शब्दलक्षए कहता हूँ"। ग्रन्थकार अपनी इस सूचना को बराबर सार्थक करता हुआ "एकमात्रालाघवमपि पुत्रोत्सवम्मन्यन्ते वैयाकरणाः" इस न्याय को अक्षरशः, . सफल कर दिखाया है। प्रस्तुत प्रकाशन में सर्वप्रथम चान्द्र का मूलसूत्रपाठ दिया गया है तथा साथ में पाणिनीय-अष्टाध्यायी के समान सूत्रों के साथ तुलना बताने के लिये उसके अध्याय, पाद और सूत्रांक दिये हैं तथा कई स्थानों पर वार्तिक के अंक तथा महाभाष्य, काशिकावृत्ति, और सिद्धान्तकौमुदी का भी उपयोग किया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत संस्करण में मूलसूत्रपाठ 75 पृष्ठों में पूरा होता है। इसके पश्चात् ८०वें पृष्ठ तक चान्द्र में पाये हुए गणों के केवल नामों की ही प्रकारादिक्रम से सूची दी गई है और साथ में जिस सूत्र में जिस गण का उपयोग हुआ है उस सूत्र के अध्याय, पाद, और अंक का निर्देश कर दिया गया है। 81 वें पृष्ठ में चन्द्रगोमिकृत वर्णसूत्र दिया गया है, जिसमें स्वरों तथा व्यञ्जनों के स्थान-प्रयत्न और भेद दिखाये गये हैं। 104 वें पृष्ठ तक आचार्यचन्द्रगोमिकृत तीन पादों में सम्पूर्ण उणादिसत्र दिया गया है। इसके अन्त में प्राचार्य ने 'शुभमस्तु सर्वजगताम्' का शुभाशीर्वाद देते हुए भगवान् बुद्ध की परमकारुणिकता को प्रतिध्वनि कर दो है। __126 वें पृष्ठ तक चन्द्रगोमिकृत सम्पूर्ण धातुपाठ दिया है, साथ में पणिनीयधातुओं के तत्तद्गण के अंक देकर तुलना भी बताई है / धातुपाठ के अन्त में प्राचार्य ने लिखा है कि यद्यपि प्रत्येक धातु का एक ही अर्थ दिखाया है, परन्तु वास्तव में "अनेकार्था हि धातवः" अर्थात् प्रयोगानुसार एक-एक धातु के अनेक अर्थ हैं। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 188 वें पृष्ठ तक चान्द्र के सब सूत्रों का प्रकारादिक्रम से तथा इसी प्रकार उणादिसूत्रों का भी अनुक्रम निर्देश किया है। 205 पृष्ठ तक उणादि द्वारा साधित शब्दों की अकारादिक क्रम से पूरी सूची दी है। उणादिसाधितशब्दों से उनकी ठोक व्युत्पत्ति का पता नहीं चल सकता, क्योंकि धातुओं से शब्दों की साधना विशेषतः कल्पना पर ही निर्भर है। वैयाकरणों ने 'कूप' शब्द को व्युत्पत्ति करते हुए भिन्न-भिन्न शैली का आश्रय लिया; किसी ने कूपशब्द की साधना 'कु' धातु से बताई है, तब निरुक्तकार यास्कने 'कूप' शब्द का सम्बन्ध 'कूप' धातु से भी लगाया है, अथवा 'कु+आप' से 'कूप' शब्द की साधना को है / अमरकोश के प्राचीन वृत्तिकार क्षीरस्वामी ने भी 'कु+आप से 'कूप' शब्द को साधित किया है। इस प्रकार उणादिशब्दों को व्युत्पत्ति कल्पना पर निर्भर होने से पूरी तरह विश्वस्त नहीं मानी जा सकती। उक्त व्युत्पत्तियों के आधार पर 'कूप' शब्ब के ये अर्थ होते हैं 'कु' धातु से कूप-प्रतिध्वनि द्वारा शब्द करने वाला। 'कु+आप' से कूप-जिसमें पानी अल्प है वा कुत्सित-अच्छा नहीं है / 'कुप' धातु से कूप-जहाँ कोप होता है अर्थात् पानी भरने वालियाँ अनेक होने से जहां स्त्रियाँ परस्पर कुपित होती रहती हैं / 'सिंह' शब्द को साधना उणादि में एक प्रकार की नहीं है चान्द्र 'सिंचे धातु से 'सिंह' की व्युत्पत्ति दिखाता है। दूसरे वैयाकरण हिंस्' धातु का विपर्यय करने से 'सिंह' शब्द की साधना दिखाते हैं। इस प्रकार उणादिसूत्रदर्शित साधना ठीक व्युत्पत्ति के लिये प्रामाणिक माधार नहीं बन सकती। इतना प्रासंगिक सूचन बीच में कर दिया है इससे किसी पाठक को अरुचि हो तो क्षमा करने की कृपा करें। करीब 232 वें पृष्ठ तक धातुपाठ के सब धातुओं की प्रकारादिअनुक्रमणिका का निर्देश किया है और साथ में गण तथा धातु के अंक भी दे दिये हैं। इस प्रकार करीब 232 पृष्ठों में यह संस्करण समाप्त होता है। सर्वत्र जहां उपयुक्तता मालूम हुई वहां प्रावश्यक टिप्पण भी दिये गये हैं। टिप्पणों में चान्द्रसूत्रों की तुलना तथा मतान्तर-सम्बन्धी सूचन किया गया है। ला. द. पार्ट स कॉलेज तथा विद्यासभा, अहमदाबाद के पुस्तकालयों से Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तकें ला-ला कर यह काम कर सका हूँ, अतः इन सब संस्थानों का ऋण मैं अवश्य स्वीकारता हूँ। 'चान्द्र-व्याकरण के कर्ता का समय. इस व्याकरण के कर्ता का नाम आचार्य चन्द्र है, उनका दूसरा नाम चन्द्रगोमी भी है। 'गोमी' शब्द पूज्यता-सूचक है। महान् वैयाकरण भर्तृहरि ने अपने वाक्यपदीय में द्वितीय काण्ड, श्लोक 485 से 460 तक के उल्लेख में व्याकरण-महाभाष्य के विच्छेद का वृत्तान्त और विच्छेद पाए हुए महाभाष्य को चन्द्र प्राचार्य ने सुरक्षित रखा और उसके पठन-पाठन का फिर प्रचार किया, ऐसा भी निर्देश किया है। उससे मालूम होता है कि भर्तृहरिनिर्दिष्ट चन्द्र प्राचार्य यही हैं, जिन्होंने प्रस्तुत चान्द्रव्याकरण का निर्माण किया / अतः जब तक अन्य कोई बाधक प्रमाण न हो तब तक यह मानना अबाधित है कि वाक्यपदीय-. . निर्दिष्ट चन्द्र प्राचार्य यही चन्द्रगोमी हैं और भर्तृहरि के ये पूर्ववर्ती रहे हैं। अन्त में इस कार्य के प्रेरक प्राचार्य श्रीजिनविजयजी का बारम्बार अभिनन्दन करता हुआ इस छोटे से प्रास्ताविक को यहीं पूरा कर रहा हूँ और सुज्ञ पाठकों से नम्र सूचना भी करता हूँ कि इस संस्करण में जहां कहीं अशुद्धि रह गई हो तो शुद्ध कर लेने की कृपा करें और हो सके तो मुझे भी सूचन करने को मेहरबानी करें। १२/व भारती निवास सोसायटी .. अहमदाबाद 6 . ] बेचरवास दोशी . बचरदाता .. . .. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्र - व्याकरणम् Page #33 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रगोमि-नाम-आचार्यविरचितं चा न्द्र व्या क र ण म् नमो वागीश्वराय सिद्धं प्रणम्य सर्वशं सर्वीयं' जगतो गुरुम् / लघुविस्पष्टसंपूर्णमुच्यते शब्दलक्षणम् // [प्रथमः अध्यायः, प्रथमः पादः ] 1 अइउण् // शिवसूत्र 1 // 7 सप्तम्यां पूर्वस्य / पा०१।११६६। 2 ऋलुक् // 2 // 8 पञ्चम्यां परस्य / पा०।१।१।६७। 3 एओङ // 3 // 6 आदेः / पा०१।१॥५४॥ 4 ऐऔच // 4 // 10 षष्ठयाऽन्त्यस्य / पा०१॥१॥५२॥ 5 हयवरलण् // 5 // 11 डित् / पा० 1 // 1 // 53 // 6 बमङणनम् // 6 // 12 शिदनेकाल सर्वस्य / पा०१॥१॥५५॥ 7 झभञ् // 7 // 13 टकितावाद्यन्तौ / पा०१॥१॥४६॥ 8 घढधष् // 8 // 14 मिदचोऽन्त्यात् परः / पा० 111147 / 6 जबगडदश् // 6 // 15 ऋकोऽणो रलौ / पा०११११५१। 10 खफछठथचटतव // 10 // 16 विप्रतिषेधे / पा०१।४।२। 11 कपय् // 11 // 17 तिजः क्षान्तौ सन् / पा०३।१॥५॥ 12 शषसर् // 12 // 18 कितः संशय-चिकित्सयोः।पा०३।१।५। 13 हल् // 13 // 16 गुपो निन्दायाम् / पा०३।१॥५॥ 1 आदिरिता समध्यः / पा० 1 / 171 / 20 बध एः ई च / पा०३।१।६। 2 उता सवर्गः / पा०१।१।६६। 21 शान्-दान्-मानः / पा०३।१।६। 3 ता तत्कालः / पा०१।१७०। 22 तुमो लुक् च इच्छायाम् / पा०३।१७। 4 दोऽपः / पा०१।१।२०। 23 व्याप्यात काम्यच / पा०३।१।६,७। 5 अनंशचिह्नमित् / पा०१॥३॥२-६। 24 ससंख्यादमः क्यच वा। 6 विधिविशेषणान्तस्य / पा०१।१।७२।। पा०३।१।८+ वा०१॥ 1 सर्वेभ्यः प्राणिभ्यो हितः सर्वीय: " सर्वाण्णो वा”। 4-1-13 इति चान्द्रं सूत्रम् / 2 " नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नव-पञ्चवारम् / / उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद् विमर्श शिवसूत्रजालम् " // इति शिवसूत्रविषये किंवदन्ती। 3 'पा०' इत्यनेन पाणिनीयं व्याकरणम् / 4 वा० इति वार्तिकम् / 1 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2] .. चान्द्रव्याकरणम् [अ० 1, पा० 1, सू० 25-66 . 25 उपमानादाचारे / पा०३।१।१०। 45 चुरादिभ्यो णिच् / पा०३।१।२५। 26 आधारात् / पा०३।१।१०+वा०१॥ 46 प्रयोजकव्यापारे / 27 कर्तुर्विप् / पा०३।१।११,भा०। पा०३।१।२६। पा०१।४।५५। 28 गल्भ-क्लीब-होडेभ्यो ङित्। 47 गुपू-धूप-विछ-पण-पनः पा०३।१।११+वा०३। आयो वा / पा०३।१।२८,३१॥ 26 क्यङ / पा०३।१।११॥ 48 ऋत ईयङ / पा०३।१।२६। 30 व्यर्थे भृशादिभ्यः स्तलोपश्च / 46 कमो णिङ / पा०३।१।३०। पा०३।१।१२। 50 शिति आयादयः / पा०३।१॥३१॥ 31 डाच लोहितादिभ्यः क्यष् / 51 अनेकाचो लिटः आम् पा०।३।१।१३। __ कृ-भू-अस्तिलिट् चानु / 32 कष्ट-कक्ष-सत्र-गहनाय पापे क्रमणे। पा०३।१।३५+भा०पा०३।१॥ पा०३।१।१४+वा०१॥ ४०+वा०३,८,६। 33 रोमन्थं वर्तयति हनुचाले। 52 इजादेर्गुरुमतोऽनृछ-ऊर्णोः। . .. पा०३।१।१५+भा०। पा०३।१।३६+वा०६॥ 53 कास्-अय-दय-आसः। 34 बाष्प-उष्म-फेनमुद्वमति / पा०३।१।३५,३७॥ पा०३।१।१६+भा०। 54 जागृ-उषो वा / पा०३।१॥३८॥ 35 सुखादीनि वेदयते / पा०३।१।१८।। 55 भी-ही-हूनां द्वे च / पा०३।१।३६। 36 शब्दादीन् करोति / पा०३।१।१७। 56 बिभराम् / पा०३॥१॥३६॥ 37 नमस्-तपस्-वरिवसः क्यच् / 57 विदाम् / पा०३।१।३८+वा०१॥ पा०३।१।१६,१५+वा०१॥ 58 लोटः कृलोट् / पा०३।१॥४१॥ 38 चित्रङः आश्चर्ये। 56 स्य-तासौ ल-लुटोः / पा०३।१।३३। पा०३।१।१६+वा०३+भा०। 60 लङि सिन् / पा०३।२।४३,४४। 36 कण्ड्वादिभ्यो यक् / पा०३।१।२७॥ 61 स्पश-मश-कृष-तृप-दृपो वा। 40 एकाचो हलादेः क्रियार्थाद् पा०३।११४४।वा०७। भृशाभीक्ष्ण्ये यङ / पा०३।१।२२। 62 दा-धा-गाति-स्था-भू-पोऽतङि लुक् / 41 ऋ-सूत्रि-मूत्रि-सूचि-अट-अश पा०२।४।७७॥ ऊणुभ्यः / पा०३।१।२२, भा०। 63 घ्रा-धे-शा-च्छा-सो वा ।पा०२।४।७८। 42 गत्यर्थात् कौटिल्य एव / पा०३।१।२३। 64 तनादिभ्यः त-थासोः / पा०२।४।७६। 43 लुप-सद-चर-गृ-जप-जभ 65 शलः इगुपान्तात् अदृशोऽनिटः क्सः / दह-दशो गात् / पा०३।१।२४। पा०३।११४५,४७। 44 न शुभ-रुचः / पा०३।१।२२, भा०। 66 श्लिषः / पा०३।१।४६। 1 भा० इति व्याकरणमहाभाष्यं पतञ्जलिप्रणीतम् / Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 1, पा० 1, सू० 67-116] चान्द्रव्याकरणम् 67 सत्त्वाश्लेषे / पा०३।१।४६+वा०४। 61 कुषि-रजः आप्ये / पा०३।१।६।। 68 णि-श्रि-द्रु-जु-कमः कर्तरि चङ। 62 तुदादिभ्यः शः। पा०३।११७७। . पा०३।११४८+वा०१॥ 63 रुधादीनां श्नम् / पा०३।११७८। 66 धे-श्वेर्वा / पा०३।१।४६। 14 तनादिभ्यः उः / पा०३।१७६। 70 ऋ-सृ-शास्-असु-ख्या-वचः अङ। 65 स्वादिभ्यः श्नुः / पा०३।११७३। पा०३।१३५२,५६। 96 श्रु-कव-धिवां श-कृ-धि च / 71 ह्वा-लिप-सिचः। पा०३।१।५३। पा०३।१।७४,८०॥ 72 तङि वा / पा०३।१।५४। 67 अक्षो वा / पा०३।१७५॥ 73 लदिद्-धुतादि-पुष्यत्यादिभ्योऽतङि / 18 तनूकृतौ तक्षः। पा०३।१७६। पा०३।१॥५५॥ तथा काशिका।। '66 स्तम्भु-स्तुम्भु-स्कम्भु-स्कुम्भु-स्कुभ्यः / 74 इरितो वा / पा०३।१।५७। पा०३।११८२॥ 75 ज-श्वि-स्तम्भु-Zचु-म्लुचु-ग्लुचः। 100 श्नाः / पा०३।१।८२। पा०३।११५८॥ 76 चिण ते पदः / पा०३।१।६०। 101 ऋयादिभ्यः / पा०३।१८१॥ 77 दीप-जन-बुध-पूरि-तायि-प्यायो वा / 102 हलो हो शानच् / पा०३।१।८३। पा०३।११६१। 103 बहुलम् / पा०३।३।११३। 78 भाव-आप्ययोः / पा०३।१।६६।। 104 भाव-आप्ययोः। पा०३।४।७०। 76 न अनोस्तपः / पा०३।१।६५ 105 तव्य-अनीयर्-केलिमरः / 80 तिङशिति यक् अलिडाशीलिङि / पा०३।१।६६+वा०१॥ - पा०३।११६७। पा०३।४। 106 वास्तव्यः ।पा०३।१।६६वा०२॥ 113,115,116 / 107 यत् / पा०३।१।१७। 81 तपः तपआप्यात् / पा०३।१८८ 108 पु-शकि-तकि-चति-यति-शसि. . 82 कर्तरि शप् / पा०३।१।६८। सहि-यजः / पा०३।१।६८,६६,६७भा०। 83 अदादिभ्यो लुक् / पा०२।४।७२॥ 106 गद-मद-यमोऽप्रादेः। पा०३।१।१००। पा०२।४।५८॥ 110 चरः / पा०३।१।१००। 84 हूनां द्वे च / पा०२।४।७५॥ 111 अगुरौ आङः। पा०६।१।१०। पा०३।१।१००वा०१॥ 85 चिणः / पा०६।४।१०४। 112 अवद्य-पण्य-वर्याः गद्य-विक्रय८६ यङो बहुलम् / पा०२।४।७४। ____ अनिरोधेषु / पा०३।१।१०१। 87 दिवादिभ्यः श्यन् / पा०३।१।६६। 113 वह्यं करणम् / पा०३।१।१०२। 88 भ्राश-म्लाश-भ्रमु-क्रम-क्लमु-त्रसि- 114 अर्यः स्वामि-वैश्ययोः / त्रुटि-लषो वा। पा०३।११७०। पा०३।१।१०३॥ 86 यसः। पा०३।१७१॥ 115 ऋतुमती उपसर्या / पा०३।१।१०४। . 60 समः ।पा०३।११७२। 116 अजयं संगतम् / पा०३।१।१०५॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [अ० 1, पा० 1, सू० 117-152. 117 वदः सुपः क्यप् च / पा०३।१।१०६। 136 धाय्या-पाय्य-आनाय्य-सांनाय्य११८ भुवः। पा०३।१।१०७। निकाय्या नाम्नि। . 116 भावे हनस्त च / पा०३।१।१२६,१२७। पा०३।१।१०८,१०७॥ 137 ऋतौ कुण्डपाय्य-संचाय्यौ / 120 इण्-स्तु-शासु-वृष-दृ-जुषः / पा०३।१।१३०॥ पा०३।१।१०६+वा०१॥ 138 अग्नौ चित्या-उपचाय्य१२१ ऋदुपान्ताद् अक्लपि-वृतः।। पा०३।११११०। परिचाय्याः / पा०३।१११३१,१३२॥ 122 खेयम् / पा०३।१।१११॥ 136 कर्तरि ण्वुल्-तृच्-अचः / 123 भूनः असंज्ञायाम् / पा०३।१।११२। पा०३।१।१३३,१३४वा०१।। 124 समो वा / पा०३।१।११२वा०४। पा०३।४।६७। 125 कृ-वृषि-मृजि-शंसि-दुहि-गुहः। 140 नन्दि-ग्रहादिभ्यो ल्यु-णिनी / पा०३।१।१२०,११३। पा०३।१।१३४॥ तथा काशिका 3 / 1 / 10 / 141 ज्ञा-कृ-प्री-इगुपान्तात् कः / 126 राजसूय-रुच्य-कृष्टपच्य-अव्यथ्याः .. पा०३।१।१३५॥ पा०३।१।११४॥ 142 आतः प्रादिभ्यः / पा०३।१।१३६। 127 कुप्य-आज्य-भिद्य-उद्धय-सिध्य- 143 पा-घ्रा-ध्मा-धेट-दृशः शः / युग्यानि नाम्नि / पा०३।१।११४,१०६। पा०३।१।१३७। वा०२ / पा०३।१।११५,११६,१२॥ 144 धारि-पारि-वेदि-उदेजि-चेति१२८ जित्या-विपूय-विनीया हलि साति-साहि-विन्दः अप्रादेः / मुज-कल्केषु / पा०३।१।११७। पा०३।१।१३८+वा०२+भा०। 126 पद-अस्वैरि-पक्ष्य-बाह्यासु 145 लिपो नेश्च / पा०३।१११३८+वा०१॥ ग्रहः। पा०३।१।११६॥ 146 ज्वलादिभ्यो णो वा / 130 ऋ-हलो ण्यत् / पा०३।१।१२४। पा०३।१।१४०,१३६॥ 131 पाणि-समवाभ्यां सृजः। 147 श्या-आत्-इण्-व्यध-श्वस-तनः / पा०३।१।१२४वा०१,२। पा०३।१।१४१,१४०वा०१। 132 ओः आवश्यके ।पा०३।१।१२५॥ 148 आ-समः स्रोः ।पा०३।१।१४१॥ 133 आसु-यु-वपि-रपि-लपि-त्रपि-चमि- 146 हृ-सः अवात् / पा०३।१।१४१। दभः। पा०३।१११२६,१२४वा०३। 150 दु-न्यः अप्रादेः / पा०३।१।१४२। 134 अमावसो वा ।पा०३।१।१२२। 151 भुवो वा / 'काशिका३।१।१४३। 135 प्रणाय्योऽसंमते / पा०३।१।१२८। 152 ग्रहः / पा०३।१।१४३। 1 अत्र काशिकायाम् अस्मिन् सूत्रे “भवतेश्च इति वक्तव्यम्" इत्येवं निर्दिश्य भुवः ग्रहणम् / Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [5 अ० १,पा० १,सू०१५३; पा०२,सू०२९] चान्द्रव्याकरणम् 153 गेहे कः / पा०३।१।१४४। 157 नृति-खनि-रजः शिल्पिनि वुन् / 154 गः थकन् / पा०३।१११४६।। पा०३।१।१४५+भा०। 155 ण्युट् / 3 / 1 / 147 // 158 पु-सृ-त्वः वुन् / पा०३।१।१४६। 156 हः वीहि-कालयोः। पा०३।१।१४८। 156 आशिषि / पा०३।१।१५०। [प्रथमस्य अध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः ] [द्वितीयः पादः] 1 व्याप्याद् अण् / पा०३।२।१। 16 वह-अभ्राद् लिहः / पा०३।२।३२। 2 आतः अप्रादेः कः / पा०३।२।३। 17 परिमाणात् पचः / पा०३।२।३३। 3 सुपः / पा०३।२।४+वा०२+भा०। 18 मित-नखात् / पा०३।२।३४। 4 चरेः टः / पा०३।२।१६। 16 विधु-अरुस्-तिलात् तुदः / 5 पुरस्-अग्रतस्-अग्रेभ्यः सर्तेः / / पा०३।२।३५।पा०३।२।२८वा०१॥ . पा०३।२।१८।। का 20 वातमज-शर्धजह-इरंमद-परंतप६ पूर्वात् कर्तुः / पा०३।२।१६। द्विषंतप-भगंदर-पुरंदराः / पा०३।२। :: 7 कृषः हेतु-शील-अनुलोमेषु / २८वा०११पा०३।२।३७,३६, पा०३।२।२०। - 41 / काशिका 3 / 2 / 41 // 8 स्तम्ब-शकृयां व्रीहि-वत्सयोः इन् / पा०३।२।२४+वा०॥ 21 उग्र-असूर्याद् दृशः / पा०३।२।३७,३६॥ 6 हनः दृति-नाथात् पशौ / पा०३।२।२५॥ 22 ललाटात् तपः / पा०३।२।३६। .10 फलेग्रहिः आत्मभरिः कुक्षिभरिः / 23 प्रिय-वशाद् वदः / पा०३।२।३८। पा०३।२।२६+वा०१॥ 24 वाचंयमो व्रते / पा०३।२।४०। 11 एजेः खश् / पा०३।२।२८। 25 सर्वात् सहः / पा३।२॥४१॥ 12 शुनी-स्तनात् धेटः / पा०३।२।२८। 26 कूल-अभ्र-करीषाच्च कषः / वा०१। पा०३।२।२६। पा०३।२।४२॥ नासिका-नाडी-मष्टि-घटी-खरीभ्यः / 27 मेघ ऋति-भयात् कृत्रः खः / / पा०३।२।२६,३०,२६भा०। पा०३१२॥४३॥ 14 ध्मः पाण्यादिभ्यश्च / 28 क्षेम-प्रिय-मद्राद् अण् च / पा०३।२।२६,३०,३७॥ पा०३।२।४४॥ 15 कूलाद् उदो रुजि-वहः / 26 आशिताद् भुवः भाव-करणयोः।। पा०३।२।३१। पा०३।२।४५॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्त्रव्याकरणम् [अ० 1, पा० 2, सू० 30-76 30 भू-वृ-तृ-जि-सहि-तपि-दमो नाम्नि। 53 क्विप्-विच्-मनिन्-क्वनिप्-वनिपः / पा०३।२।४६। पा०३।२।७४,७६॥ 31 धारेर्धर् च / पा०३।२।४६। 54 दुहो दुघः / पा०३।२७०। 32 गमः / पा०३।२।४७॥ 55 आवश्यके णिनिः / पा०३।३।१७०। 33 विहायसो विह च / पा०३।२।३८ 56 अजातेः शील-आभीक्ष्ण्ययोः / वा०२।। पा०३।२।७८,८१॥ 34 खड् / पा०३।२।३८वा०३। 57 साधोः / पा०३।२७८वा०१॥ 35 ड: / पा०३।२।३८वा०४। 58 कर्तुः उपमानात् / पा०३।२।७।। 36 उरगः / पा०३।२।४८वा०२। 56 व्रत / पा०३१२१८०॥ 37 हनः / पा०३।२।४६,५०। 60 मनः / पा०३।२।८२॥ 38 शीर्ष-कुमाराद् णिनिः / पा०३।२।५१। 61 आत्मनि खश्च / पा०३।२।८३। 36 टक् / पा०३।२।५२,५३। 62 भूते / पा०३।२।०४। 40 शक्तौ हस्ति-कपाटात् ।पा०३।२।५४। 63 यजः / पा०३।२।८५। . 41 नगराद् अहस्तिनि / 64 हनः कुत्सायाम् / पा०३।२१६६। पा०३१२१५३ भा०॥ काशिका 3 // 2 // 86 // 42 पाणिघ-ताडघौ शिल्पिनि / / 65 डः / पा०३।२।१७। पा०३।२।५५। 66 क्तवतुः / पा०३।२।१०२। 43 राजघः / पा०३।२।५५वा०१॥ पा०१।१।२६। 44 गः / पा०३।२।। 67 भाव-आप्ययोः क्तः / पा०३।२।१०२। 45 सीधु-सुरात् पिबः / पा०३।४७०। पा०३।२।८वा०१॥ 68 कर्तरि च आरम्भे / पा०३।४।७१।। 46 सुभग-आढ्य-स्थूल-पलित-नग्न-अन्ध- 66 श्लिष-शोड-स्था-आस-वस-जन-रुहप्रियाद् अच्वेर्भुवः खिष्णुच्-खुको। जृभ्यः / पा०३।४।७२। पा०३।२।५७,५६। 70 गत्यर्थाऽनाप्याद् आधारे च / 47 कृत्रः करणे ख्युन् / पा०३।२।५६। पा०३।४।७२,७६। 48 स्पृशः अनुदकात् क्विन् / 71 आहारार्थात् / पा०३।४।७६।। पा०३१२१५८। 72 जूषः अतृन् / पा०३।२।१०४। 46 दधृग-उष्णिक्-क्रुञ्चः / पा०३।२।५६ / 73 श्रु-सद्-वसो लिट् वा / 50 अञ्चु-युजः / पा०३।२।५। पा०३।२।१०८। 51 समान-अन्य-त्यदादेः उपमानाद् 74 लिटः क्वसुः / पा०३।२।१०७। व्याप्ये दृशः क्स-कौ च / पा०३।२। 75 ईयिवान्-अनाश्वान्-अनूचानः / ६०+वा० 1 // काशिका 3 / 2 / 60 // पा०३।२।१०६। 52 भजो ण्विः / पा०३।२।६२। 76 लुङ / पा०३।२।११०॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ USUS अ० 1, पा० 2, सू० 77-118] चान्द्रव्याकरणम् 77 अनद्यतने लङ / पा०३।२।१११। 101 न य-दीक्षः / पा०३।२।१५२,१५३। 78 स्मृत्युक्तौ लुट् / पा०३।२।११२। 102 लष-पत-पद-स्था-भू-श-वृष-हन-कम७६ न यदि / पा०३।२।११३॥ गमः उकञ् / पा०३।२।१५४। 80 वा आकाङक्षायाम् / पा०३।२।११४। 103 जल्प-भिक्ष-कुट्ट-लुण्ट-वृङः षाकन् / 81 परोक्षे लिट् / पा०३।२।११५॥ पा०३।२।१५५॥ 82 वर्तमाने लट् / पा०३।२।१२३।। 104 स्पृहि-गृहि-पति-शीङः आलुच / 83 विदेः श्वसुः / पा०७।१।३६। पा०३।२।१५८+वा०१॥ 84 शतृ / पा०३।२।१२४। 105 धे-सि-शद-सदो रुः / 85 इङः शक्तौ / पा०३।२।१३०। पा०३।२।१५६॥ 86 शानच / पा०३।२।१२४॥ 87 शक्ति-वयः-शीलेषु / पा०३।२।१२६ / 106 सृ-घस्-अदः क्मरन् / पा०३।२।१६०॥ 88 तौ लुटः / पा०३।२।१२७। . पा०३।३।१४। 107 भञ्जि-भास-मिदो घुरच / पा०३।२।१६१॥ 86 शील-साधु-धर्मेषु तृन् / ... * पा०३।२।१३४,१३५॥ 11 1351 108 विदि-भिदि-च्छिदेः कुरच् / पा०३।२।१६२॥ 60 निरा-अलंभ्यां कुः इष्णुच् / 106 इण्-जि-स-नशः क्वरप् / पा०३।२।१३६।। पा०३।२।१६३॥ 61 उदः पच-पत-मदः / पा०३।२।१३६। 62 प्रजन-रुचि-अपत्रप-वृतु-वृधु 110 गत्वरः / पा०३।२।१६४। सह-चर-भ्राजः / पा०३।२।१३६। 111 जागुः ऊकः / पा०३।२।१६५॥ .. तथा काशिका३।२।१३८। 112 यज-जप-दह-दशो यङः / * 63 भुवः / पा०३।२।१३८ / . पा०३।२।१६६। 64 जि-ग्लश्च क्स्नुः / पा०३।२।१३६॥ 113 सहि-चलि-वहः कि-किनौ / 65 स्थास्नुः / पा०३।२।१३६। पा०३।२।१७१भा०। 16 त्रसि-गृधि-धृषि-क्षिपेः क्नुः / 114 पापतिः / पा०३।२।१७१वा०४। पा०३।२।१४०॥ 67 चाल-शब्दार्थाद् अनाप्याद यच / 115 चक्रि-सस्त्रि-जज्ञयः / पा०३।२।१४८॥ पा०३।२।१७१वा०३। 18 तवतो हलादेरङः / पा०३।२।१४। 116 स्मि-अजस-हिंस-दीप-नम-कम६६ जु-चङक्रम्य-दन्द्रम्य-सृ-गृधि-ज्वल कम्पो रः / पा०३।२।१६७। . शुच-लष-पत-पदः / पा०३।२।१५०। 117 सन्-आशंस उः / पा०३।२।१६८। 100 क्रुध-भूषार्थात् / पा०३।२।१५१॥ 118 विन्दुः इच्छुः / पा०३।२।१६६। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [अ० 1, पा० 2, सू० 119; पा० 3, सू०४२. 116 स्वप्नक-तृष्णक / पा०३।२।१७२। 122 स्था-भास-पिस-कसो वरच् / 120 श-वन्देः आरुः / पा०३।२।१७३। पा०३।२।१७५॥ 121 भियः क्रुः / पा०३।२।१७४। 123 यो यङः / पा०३।२।१७६। [प्रथमस्य अध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः] [तृतीयः पादः] 1 उणादयः / पा०३।३।१। 22 नीवाराः / पा०३।३।४८। 2 भविष्यति लुट् / पा०३।३।१३,३। 23 यज्ञे संस्तावः / पा०३॥३॥३१॥ 3 अनद्यतने लुट / पा०३।३।१५। 24 प्रस्त्रोऽन्यत्र / पा०३।३।३२॥ 4 माङि लुङ / पा०३।३।१७५॥ 25 प्रथने वेः अशब्दे / पा० 3 / 3 / 33 / . 5 स्मपरे लङ च / पा०३।३।१७६। 26 छन्दोनाम्नि / पा०३।३।३४। / 6 तुमुन् भावे क्रियायां तदर्थायाम् / 27 अवात् त्रश्च / पा०३।३।१२०॥ पा०३।३।१०+भा०। 28 न्यायो नये / पा०३।३।३७। 7 घञ् कारके च / 26 पर्यायः क्रमे / पा०३।३।३। .. पा०३।३।१६,१८,१६। 30 वि-उपात् शीङः / पा०३।३।३९। 8 संख्यातात् / पा०३।३।२०। 31 हस्तप्राप्ये चेः अस्तेये / 6 इङः षिद् वा / पा० ३।३।२१+वा०१॥ पा०३॥३॥४०॥ 10 शू वायु-वर्ण-निवृतेषु / 32 चिति-राशि-वास-देहेषु चः कः / पा०३।३।२१वा०२। पा०३।३॥४१॥ 11 प्रादिभ्यो रुवः / पा०३।३।२२॥ 33 संघे अनुत्तराधरे / पा०३।३।४२॥ 12 समो यु-द्रु-दुवः / पा०३।३।२३।। 34 उदः श्रि-यु-पू-द्रुवः / पा०३।३।४६। 13 वेः क्षु-श्रुवः / पा०३॥३॥२५॥ 35 आक्रोशे नि-अवाद् ग्रहः / 14 श्रि-भुवः अप्रादेः / पा०३।३।२४। पा०३।३।४५॥ 15 नियः / पा०३।३।२४। 36 समः मुष्टौ / पा०३।३।३६। 16 अव-उदः / पा०३।३।२६। 37 परेः यज्ञे / पा०३।३।४७। 17 परे ते / पा०३।३।३७। 38 प्रात् लिप्सायाम् / पा०३।३।४६। 18 प्रात् खु-द्रु-स्तुवः / पा०३।३।२७।। 36 वा वणिजाम् / पा०३।३।५२,५०। 16 निर्-अभेः पू-ल्वः / पा०३।३।२८। 40 रश्मौ / पा०३।३१५३। 20 नि-उदो ग्रः / पा०३।३।२६। 41 अवाद् वर्षविबन्धे / पा०३।३।५१। 21 कृ धान्ये / पा०३।३।३०। 42 आङो रु-प्लोः / पा३।३।५०। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 1, पा० 3, सू० 43-93] चान्द्रव्याकरणम् 43 वृनः आच्छादे / पा०३॥३॥५४॥ 71 प्रादिभ्यः दा-धः किः / 44 परेर्भुवः अवज्ञाने / पा०३॥३॥५५॥ पा०३।३।६२॥ 45 एः अच् / पा०३।३।५६। 72 व्याप्याद् आधारे / पा०३।३।६३। 46 स्था-स्ना-पा-व्यधि-हनि-युधः कः / 73 अभिविधौ इनुण् / पा०३।३।४४। पा०३।३।५८वा०४। 74 स्त्रियां क्तिन् / पा०३।३।६४। 47 ऋत्-ओः अप / पा०३।३।५७। 75 ऊति-यूति-जूति-साति-हेति-कीर्तयः / 48 ग्रह-व-द-निश्चि-गम-वश-रणः / पा०३।३।६७। पा०३।३।५८+वा०३। 76 व्यतिहारे णच् / पा०३।३।४३। 46 प्रादिभ्यः अदः / पा०३॥३॥५६॥ 77 नाम्नि क्तिच् / पा०३।३।१७४। 50 नेर्ण च / पा०३।३।६०। 78 समज-मन-विद-सु-शी-भृब-इणः भावे 51 व्यध-जपः अप्रादेः / पा०३।३।६१। क्यप् / पा०३।३।६। 52 स्वन-हसो वा / पा०३।३।६२। 76 नेः सत्-पतः / पा०३।३।६६ / 53 यमः सं-वि-उपाच्च / पा०३।३।६३। 80 कृ-व्रज-यजः / पा०३।३।१००,६८। 54 नेः / पा०३।३।६३। / 81 मृगया-अटाट्ये / पा०३।३।१०१भा०। 55 गद-नद-पठ-स्वनः / पा०३।३।६४। 82 परेःस-चरो यः। पा०३।३।१०१भा०। 56 क्वणो वीणायाश्च / पा०३।३।६५। 83 जागुः / पा०३।३।१०१भा०। 57 पणः परिमाणे / पा०३।३।६६। 84 अः सनाद्यन्ताच्च / 58 मदः अप्रादेः / पा०३।३।६७। पा०३।३।१०१भा०।१०२। 56 प्र-संभ्यां हर्षे / पा०३।३।६८। 85 गुरोहलः / पा०३।३।१०३। 60 सम्-उद्भ्याम् अजः पशुषु / 86 भिदादिषितोऽङ / पा०३।३।१०४। पा०३।३।६६। 87 आतः अन्तः-प्रादिभ्यः / पा०३।३। . .61 प्रजने सर्तेः / पा०३।३।७१। 106 तथा काशिका 3 / 3 / 106 / 62 हवः / पा०३।३७५। .88 कुम्बि-चिभ्याम् / पा०३।३।१०५॥ 63 निपानम् आहावः / पा०३।३।७४। 86 णि-श्रन्थ-ग्रन्थ-विद-आस-घट्ट६४ वधः घातः / पा०३।३७६। वन्दो युच् / पा०।३।३।१०७+वा०१॥ 65 मूर्ती घनः / पा०३।३।७७। 60 इषः अनिच्छायाम् / 66 गृहांशे प्रघाणः / पा०३।३७६। पा०३।३।१०७ वा०२। 67 परिघ-उद्घ-निघाः / . 61 ण्वुच् / पा०३।३।१११॥ पा०३।३।८४,८६,८७। 62 प्रश्न-आख्यानयोः इञ् च / 68 ड्वितः त्रिः / पा० 3 / 3 / 88 / . पा०३।३।११०।। 66 ट्वितः अथुच् / पा०३।३।८६। 63 संपदादिभ्यः क्विप् / 70 विछ-रक्षो नङ / पा०३।३।१०। पा०३।३।१०८ वा०६। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 1, पा० 3, सू० 94-134 64 आक्रोशे नमः अनिः / 115 आश्चर्ये / पा०३।३।१५०। ___पा०३।३।११२। 116 शेषे लुट् / पा०३।३।१५१॥ . 65 ग्ला-हा-ज्यः। पा०३।३।९५ वा०४। 117 उत-अप्योः बाढाथै लिङ / 66 इ-कि-श्तिपः स्वरूपे / पा०३।३।१५२। पा०३।३।१०८ वा०२। तथा काशिका३।३।१५२॥ 67 ल्युट् / पा०३।३।११५॥ 118 संभावने अलमर्थे तदर्थाप्रयोगे / 68 ष्ठिवु-सिवो दीर्घश्च / / 66 कृत्रः कर्तरि / पा०३।३।१५४। 100 घः / पा०३।३।११८। 116 धातूक्तौ अयदि वा / / 101 व्रज-व्यजौ / पा०३।३।११। पा०३।३।१५५। 102 खनः डर-इको च / 120 हेतु-फलयोः / पा०३।३।१५६। पा०३।३।१२५+भा०। 121 विधि-संप्रश्न-प्रार्थनेषु / 103 ईषद्-दुः-सुभ्यः खल् / पा०३।३।१.६१॥ पा०३।३।१२६। 122 लोट् / पा०३।३।१६२। 104 कर्तृ-आप्याभ्यां च भू-कृयः / 123 प्रेष-अनुज्ञा-प्राप्तकालेषु / पा०३।३।१२७॥ पा०३।३।१६३। 105 आतः युच् / पा०३।३।१२८॥ 124 लिङ च ऊर्ध्वमौहूतिके / 106 शासि-युधि-दृशि-धृषि-मृषः / पा०३।३।१६४। पा०३।३।१३० वा०१+भा०। 125 स्मे लोट् / पा०३।३।१६५। 107 लिङि अतिपत्तौ लुङ / 126 अधीष्टौ / पा०३।३।१६६। पा०३।३।१३। 127 काल-समय-वेलासु लिङ यदि / 108 आ शेषाद् भूते वा / पा०३।३।१६७,१६८। पा०३।३।१४०,१४१॥ 128 अर्ह-शक्त्योः / 106 गर्दायां कथमि लिङ / पा०३।३।१६६,१७२। पा०३।३।१४३,१४२॥ 126 अलं-खल्वोः प्रतिषेधे क्त्वा वा / 110 किमि लुट् च / पा०३।३।१४४। पा०३।४।१८। 111 क्रोध-अश्रद्धयोः / पा०३।३।१४५॥ 130 मेङः / पा०३।४।१६। 112 किंकिल-अस्त्यर्थयोः लुट् / 131 एककर्तृकयोः पूर्वांत् / . पा०३।३।१४६। पा०३।४।२१॥ 113 यद्-यदि-यदा-जातुषु लिङ / 132 आभीक्ष्ण्ये णमुल च / पा०३।४।२२। पा०३।३।१४७+वा० 1 // 133 पूर्व-अग्रे-प्रथमेषु / पा०३।४।२४। 114 यच्च-यत्रयोर्गीयां च / 134 व्याप्याद् आक्रोशे कृयः खमुञ् / पा०३।३।१४८,१४६। पा०३।४।२५॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 1, पा० 3, 135, पा० 4, सू० 24] चान्द्रव्याकरणम् [11 135 स्वाद्वर्थात् अदीर्घात् / 143 प्रमाणे / पा०३॥४॥५१॥ पा०३।४।२६+वा०१॥ 144 पञ्चम्यां त्वरायाम् / पा०३।४।५२। 136 जीवाद् ग्रहो णमुलू स चानु / 145 द्वितीयायाम् / पा०३।४।५३। पा०३।४।३६,४६। 146 अध्रुवे स्वाङ्गे / पा०३।४।५४। 137 हस्तेन / पा०३।४॥३६॥ 147 पीडायाम् / पा 03 / 4 / 55 // 138 उपमानात् कर्तुश्च / 148 विशि-पति-पदि-स्कन्दा वीप्सापा०३।४।४५,४३। आभीक्ष्ण्ययोः / पा०३।४।५६। 136 उपदंशस्तृतीयायाम् / पा०३।४।४७। 146 असु-तषः कालेषु विच्छेदे / 140 हिंसात् एकाप्यात् / पा०३।४।४८॥ पा०३।४।५७। 141 सप्तम्यां च उपात् पीड-रुध-कर्षः। 150 नाम्नि ग्रह -आदिशः / पा०३।४।४। पा०३।४।५८॥ 142 आसत्तौ / पा० 3 / 4 / 50 / [प्रथमस्य अध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः] / [चतुर्थः पादः] ... 1 लः तिप्-तस्-झि-सिप्-थस्-थ-मिप्- 12 विदो लटो वा / पा०३।४।८३। ... वस्-मस्-ता-तां-झ-थास्-आथां-ध्वम्- 13 ब्रुवः पञ्चानामादित आह च / इट्-वहि-महिङ / पा०॥३।४।७७,७८। पा०३।४।८।। 2 अतः आतः इत् / 14 आतो णल औः / पा०७।१॥३४॥ . पा०७।२।८१,८०। पा०६।१।६६। 15 टित् तङाम् एत् / पा०३।४।७। 3 सः अन्तः / पा०७।१।३। 16 आमः / पा०३।४।७६। 4 द्विरुक्ताद् अत् / पा०७।१।४। 17 थासः से / पा०३।४।८०। 5 जक्षादिभ्यः पञ्चभ्यः। पा०६।१।६,५॥ 18 लुट आद्यानां डा-रौ-रसः / 6 तङि अनतः / पा०७।१॥५॥ पा०२।४।८५॥ . . 7 शीङो रत् / पा०७।१।६। 16 तङाम् / पा०२।४।८५। . 8 वेत्तेर्वा / पा७॥१७॥ 20 लोट एः उः / पा०३।४।८६,८५॥ 6 लिटः इरच / पा०३।४।८१॥ 21 सेः हिङ / पा०३।४।८७। 10 तस्य एश् / पा०३।४।८१॥ 22 आशिषि तु-ह्योः तातङ वा / 11 अतङां णल-अतुस्-उस् पा०७॥१॥३५॥ थल-अथुस-अण-अल-व-माः / .. 23 मेः आनिः / पा०३।४।८६। पा०३।४।८२॥ 24 आम् एतः / पा०३।४।६०। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 1, पा० 4, सू० 25-75 . 25 स्-वो वा-ऽमौ / पा०३।४।११। 52 परि-वि-अवात् क्रियः। पा०१।३।१८। 26 इडादीनाम् ऐप् / पा०३।४।६३। 53 वि-पराभ्यां जेः / पा० 1 // 3 // 16 // 27 व्-मोः टाप् / पा०३।४।१२। 54 आङः दः / पा०१।३।२०। . . 28 त-स्थ-स्थानां तां-तं-ता डिन्तश्च / 55 न स्वप्रसारणे / पा०३।४।१०१॥ पा०१॥३॥२०+वा०१,२। 26 वस्-मसोर्लोपः / 56 गमेः क्षान्तौ / पा० 1 / 3 / 21 वा०२। पा०३।४।६६,६८,६७। 57 नु-प्रच्छः / पा०१।३।२१ वा०६। . 30 इतः अतङि / पा०३।४।१००,६७। 58 क्रीडः अनु-परिभ्यां च / 31 मिपः अम् / पा०३।४।१०१॥ पा०१॥३॥२१॥ 32 लिङः सीयुट् / पा०३।४।१०२॥ 56 समः अकूजने / पा०१।३।२१ वा०१॥ 33 यासुट् अतङः कित् / 60 अपस्किरः / पा०१।३।२१ वा०४। पा०३।४।१०४,१०३। 61 हबः गतिशीले।पा०१।३।२१ वा०५। '' 34 ङित् अनाशिषि / पा०३।४।१०३। 62 आशिषि नाथः।पा०१।३।२१ वा०७। 35 अत इय / पा०७२। 0 6 3 शपः शपथे / पा०१।३।२१ वा०८।. 36 सो लोपः अनन्त्यस्य / पा०७।२।७६। 64 स्थः प्रतिज्ञा-निर्णय-प्रकाशनेषु / .: 37 झस्य रन् / पा०३।४।१०५ / पा०१।३।२२ वा० 1 // पा० 1 // 3 // 23 // 38 इटः अत् / पा०३।४।१०६। 65 सं-वि-प्र-अवात् / पा०१।३।२२॥ 36 सुट त-थोः / पा०३।४।१०७। 66 उदः अनूाहायाम् / 40 झेः जुस् / पा०३।४।१०८। - पा०१।३।२४+वा० 1 // 41 सिचः / पा०३।४।१०। 67 उपात् मन्त्रेण / पा०१॥३॥२५॥ 42 आतः / पा०३।४।११०। 68 पथि-आराधनयोः। 43 लङो द्विषश्च वा। पा०१॥३॥२५ भा०। पा०३।४।१११,११२। 66 वा लिप्सायाम् / पा०।१।३।२५ वा०२। 44 विदः / पा०३।४।१०६। 70 अव्याप्यात् / पा०१।३।२६।। 45 अति / पा०३।४।१०६। 71 समः गम्-ऋछि-प्रछि-स्व-श्रु-वेत्ति४६ तङाना यथापाठम् / पा०१॥३॥१२॥ __ अति-दृशः / पा० १।३।२६+वा० 1,2 // 47 भाव-आप्ययोः / पा०१।३।१३। 72 प्रादिभ्यः असु-ऊहो वा / 48 डितः / पा०१॥३॥१२॥ पा०१।३।२६ वा०३। 46 विनिमये / पा०१।३।१४। 73 आङः यम-हनः स्वाङ्गाप्याच्च / 50 न गति-हिंसा-शब्दार्थहसः / पा०१॥३॥२८+वा०१॥ पा०१।३।१५+वा०१॥ 74 व्युदस्तपः / पा०१॥३॥२७॥ 51 नेविंशः / पा०१।३।१७। 75 तपआप्यात् / पा०३।११८८। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 1, पा० 4, सू० 76-120] चान्द्रव्याकरणम् [13 76 नि-सं-वि-उपेभ्यः ह्वः। पा० 1 / 3 / 30 / 100 किरादि-श्रन्थ-ग्रन्थ-सनाम् आप्ये / 77 स्पर्धायाम् आङः / पा०१॥३॥३१॥ पा०३११८७ वा०१८॥ 78 सूचन-अवक्षेपण-सेवा-साहस पा०३१११८६ भा०। यत्न-कथा-उपयोगेषु कृत्रः / 101 लुङि अचः / पा०३।१।६२। पा 113 // 32 // पा०३।१।४३। 76 अधेः शक्तौ / पा०१।३।३३। 102 स्नु-नमः स्वयम् / पा०३।११८६।पा०३।११८७। 80 वेः शब्दाप्यात् / पा०१॥३॥३४॥ 103 सृजः श्राद्धे / 81 अव्याप्यात् / पा०१३।३५।। पा०३।११८७ वा०१५+भा०। 82 पूजा-उत्सङ्ग-उपनयन-ज्ञान-भृति 104 शे श्यन् / व्यय-विगणनेषु नियः। पा०१॥३॥३६॥ पा०३।११८७ वा०१५+भा०। 83 कर्तृस्थामूर्ताप्यात् / पा० 1 / 3 / 37 / / 105 लुङि ते चिण् / 84 वृत्ति-उत्साह-तायनेषु क्रमः / 106 उदश्चरः साप्यात् / पा०१॥३॥३८॥ . पा०१॥३॥५३॥ 85 परा-उपात् / पा० 1 // 3 // 36 // 107 समस्तृतीयायुक्तात् / पा० 1 // 3 // 54 // 86 आडो ज्योतिरुद्गतौ / / 108 दाणः सा चेत् चतुर्थ्यर्थे / ३।४०+वा०११ पा०१॥३॥५५॥ 106 उपयर 87 वेः पादाभ्याम् / पा०१॥३॥४१॥ पा० 1 // 3 // 56 तथा काशिका 13 // 56 // 88 प्र-उपाद् आरम्भे / पा०१॥३॥४२॥ 110 आमः कृत्रः प्राग्वत् / 86 अप्रादेः वा / पा० 1 / 3 / 43 / पा०१।३।६३। पा०१॥३॥६२। 60 निह्नवे ज्ञः / पा०१॥३॥४४॥ 61 अव्याप्यात् / पा०१।३।४५॥ 111 सनः / पा०१॥३॥६२। 62 सं-प्रतेः अस्मृतौ / पा० 1 // 3 // 46 // 112 स्मृ-दृशः / पा०१॥३॥५७। 113 अननोज्ञः / पा०१॥३॥५८। 63 ज्ञान-यत्न-उपच्छन्दनेषु वदः / 114 श्रुवः अनाङ-प्रतेः / पा०१॥३॥५६ / पा०१॥३॥४७॥ 115 शदेः शिति / पा०१॥३॥६०। 64 अनोः अव्याप्यात् / पा० 1 / 3 / 46 / 116 मृडो लुङ-लिङोश्च / पा० 113 / 61 // 65 विमतौ / पा०१॥३॥५०॥ 117 प्रादेः अजाद्यन्ताद् युजेः अयज्ञपात्रेषु। 66 व्यक्तं सहोक्तौ / पा०१॥३॥४८॥ . पा०१।३।६४+भा०॥ 97 तयोर्वा / पा०१॥३॥५०॥ 118 समः क्ष्णुवः / पा०॥१॥३॥६५॥ पा०११३१४८ भा०। 116 भुजः अपालने / पा०१॥३॥६६॥ 18 अवाद् गिरः / पा०१॥३॥५१॥ 120 प्रयोजकाद् भी-स्मेणैः / 66 समः प्रतिज्ञायाम् / पा०१।३।५२। पा०१॥३॥६८। पा० 1 // 3 // 67 / Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14] . - चान्द्रव्याकरणम् [अ० 1, पा० 4, सू० 121-148 . 121 गुधि-वञ्चेः प्रलम्भने / 135 रमो वि-आडोश्च / पा०१।३।८३। पा०१।३।६। 136 उपात् / पा०१३।४। 122 लियः पूजा-अभिभवयोश्च / 137 अव्याप्याद् वा / पा०१।३।८५। पा०१।३७०। 138 अणौ चित्तवत्कर्तृकाद् णेः / 123 मिथ्यायोगे कृषः अभ्यासे / पा०१।३।८८,८६॥ पा०१॥३७१। 136 चलन-आहारार्थात् / पा०१।३।८७॥ 124 फलवति / पा०१॥३७२॥ 140 पृ-दु-नु-बुध-युध-इङ-नश-जनः / 125 पाठे विभाषितात् / पा०१।३।७२। पा०१॥३॥८६॥ 126 जितः / पा०१।३।७२। 141 न पा-दम-आयम-आयस-परिमुह१२७ अपवदः / पा०१।३।७३। अत्ति-रुचि-नृति-धेट्-वर-वसः / 128 सम्-उद्-आङभ्यो यमः अग्रन्थे / पा०१३॥८६+वा०१ .. पा०११३७५॥ तथा काशिका 1 / 3 / 87 // . 126 अप्रादेशः / पा०१॥३७६। 142 वा क्यषः / पा०१॥३॥६०। 130 शब्दान्तरगतौ वा / पा०१॥३७७। 143 युद्भयो लुङि / पा०१।३।६१। 131 न अनु-पराभ्यां कृषः / 144 वृद्भयः स्य-सनोः / पा०१॥३॥१२॥ पा० 11376,78 / 145 लुटि क्लुपः / पा०१।३।६३। 132 प्रति-अति-अभीनां क्षिपः / 146 युष्मदि मध्यमत्रयम् / पा०१।४।१०५,१०१॥ 133 प्राद् वहः / पा०१॥३॥८॥ 147 अस्मदि उत्तमम् / पा०१।४।१०७। 134 परेर्मुषश्च / पा०१।३।८२ तथा 148 एक-द्वि-बहुषु / काशिका 1 / 3 / 82 // पा०१।४।१०२। पा०१।४।२१,२२॥ [प्रथमस्य अध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः] . [चान्द्रे व्याकरणे प्रथमः अध्यायः समाप्तः] पा०१॥३॥० Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [द्वितीयः अध्यायः प्रथमः पादः] 1 सु-औ-जस-अम्-औट-शस्- 22 कतेः / पा०१।१।२५॥ टा-भ्यां-भिस्-डे-भ्यां-भ्यस्- 23 सु-अमोः नपुंसकात् / पा०७।१।२३। ङसि-भ्यां-भ्यस्-डस्-ओस्-आम- 24 अतः अम् / पा०७।१।२४।। डि-ओस्-सुप् / पा०४।१।२। 25 डतरादिभ्यः पञ्चभ्यः अनेकतरात् तः। 2 अतो भिस ऐस् / पा०७।१।। पा०७।१।२५,२६ वा०१॥ 3 इदम्-अदसोः कात् / पा०७।१।११॥ 26 युष्मद्-अस्मद्भयां उसः अश् / 4 टा-डसोः इन-स्यौ / पा०७।१।१२। पा०७।१।२७। 5 -ङस्योः य-आतौ / 27 ङ-सुटः अम् / पा०७।१।२८। . पा०७।१।१३,१२। 28 शसः नः / पा०७।१।२६। 6 सर्वादिभ्यः स्मै-स्मातौ / 26 भ्यसः अभ्यम् / पा०७।१।३०। पा०७।१।१४,१५॥ 30 उसेश्च अत् / पा०७।१।३१,३२॥ 7 H स्मिन् / पा०७।१।१५॥ 31 आमः आकम् / पा०७।१।३३। 8 जसः शीः / पा०७।१।१७। 32 ह्रस्व-आपो नुट् / पा०७।११५४। 6 आत् आमः साम् / पा०७।१३५२,५०। 33 संख्याया अनतः / पा०७।१॥५५॥ 10 न अन्यच्च नामा-प्रधानात् / 34 त्रयाणाम् / पा०७।११५३। पा०१।१।२७ वा०२। 35 स्त्री-यूभ्याम् / पा०७।११५४। 11 तृतीयार्थयोगे / पा०१।१।३०+भा०। पा०१।४।३। 12 चार्थसमासे / पा०१११॥३१॥ 36 सेयुवो वा / पा०१॥४॥५॥ 13 शी वा / पा०१॥१॥३२॥ 37 स्त्रीणाम् / पा०१।४।४। 14 प्रथम-चरम-तय-अय-अरूप-अर्ध-नेम- 38 सुपः असंख्याद् लुक् / कतिपयात् / पा०१।१।३३। पा०२।४।८२,५८। 15 पूर्वादिभ्यो नवभ्यः स्मात्-स्मिनौ च। 36 ऐकायें / पा०२।४।७१। पा०७।१।१६। पा०१।११३४-३६। पा०१।२।४५,४६। 16 स्मै च तीयात् / पा०१।१।३६ वा०३। 40 ततः प्राक् कारकात् / 17 आपः औतः शीः। पा०७।१।१८,१७। पा०११११४१,३७॥ 18 नपुंसकात् / पा०७।१।१६। 41 न अतः अम् अपश्चम्याः / 16 जस्-शसोः शिः / पा० 7 / 1 / 20 / पा०२।४।८३॥ 20 अष्टाभ्यः औश् / पा 7 / 1 / 21 / 42 तृतीया-सप्तम्योर्वा / पा०२।४।८४। 21 ष-णः संख्याया लुक् / 43 क्रियाप्ये द्वितीया / पा०२।३।२। पा०७।१।२२। पा०१।१।२४,२३॥ पा०१।४।४६-५१॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [अ० 2, पा० 1, सू० 44-87 44 गति-बोध-आहार-शब्दार्थ- 65 सहार्थेन / पा०२॥३॥१६॥ अनाप्यानां प्रयोज्ये / पा० 1 // 4 // 52 // 66 लक्षणे / पा०२॥३॥२१॥ 45 ह-क्रोर्वा / पा०१।४।५३। 67 संज्ञः व्याप्ये वा / पा०२।३।२२। 46 दृश्-अभिवाद्योः तङाने / 68 हेतौ / पा०२।३।२३। पा०१।४।५३ वा०१। 66 ऋणे पञ्चमी / पा०२।३।२४। 47 न नी-खादि-अदि-ह्वा-शब्दाय-क्रन्दः। 70 गुणे वा / पा०२।३।२५॥ पा०१।४।५२ वा०५,१भा०। 71 षष्ठी हेतुना / पा०२३।२६। 48 वहेः अनियन्तके / 72 सर्वाः सर्वादिभ्यः हेत्वर्थः / पा०२।३।२७+भा०॥ पा०१।४।५२ वा०६। 73 संप्रदाने चतुर्थी / पा०२।३।१३॥ 46 भक्षेः अहिंसायाम् / 74 रुचिमति / पा०१।४।३३। पा०१।४।५२ वा०७॥ . 75 धारेः उत्तमणे / पा० 1 // 4 // 35 // 50 समया-निकषा-हा-धिग्-अन्तरा 76 कोपस्थाने अनाप्ये / . .. अन्तरेणयुक्तात् पा०२।३।२ पा०१।४।३७,३८॥ वा०१+भा०पा०२।३।४। 77 प्रति-अनुम्यां गृणः व्याप्ये / 51 द्वित्वे अध्यादिभिः / पा०१॥४॥४१॥ पा०२।३।२ भा०। 78 नमः-स्वस्ति-स्वाहा-स्वधा-वषट्५२ सर्व-अभि-परि-उभयात् तसा / शक्ताथैः / पा०२।३।१६+वा०२। पा०२।३।२ भा०। 76 तादयें / पा०२।३।१३ वा०१। / 53 एनपा / पा०२॥३॥३१॥ 80 मन्याप्ये कुत्सायाम् अनावादी वा / 54 लक्षण-वीप्सा-इत्थंभूतेषु अभिना। पा०२।३।१७+भा०। पा०१।४।६१,६०,८३। पा०२।३।। 81 अवधेः पञ्चमी / 55 प्रति-परिभ्यां भागे च। पा०१।४।१०। पा०२।३।२८।पा०१।४।२४। 56 अनुना / पा०१।४।१०। 82 परि-अपाभ्यां वर्जने / 57 सहार्थे / पा०१।४।८५॥ . पा०२।३।१०।पा० 1 / 4 / 88 / 58 हीने / पा०१।४।८६। 83 प्रतिना प्रतिनिधि-प्रतिदानयोः / 56 उपेन / पा०१।४।८७। पा०२।३।११। पा०१।४।६२। 60 सप्तमी आधिक्ये / पा०२।३।। 84 ऋते द्वितीया च / पा०२।३।२६। 61 स्वाम्ये अधिना / पा०२।३।। 85 विना तृतीया च / पा०२॥३॥३२॥ पा०१।४।१७। तथा काशिका 2 // 3 // 32 // 62 कर्तरि तृतीया / पा०२।३।१८। 86 पृथग्-नानाभ्याम् / पा०२॥३॥३२॥ 63 करणे / पा०२॥३॥१८॥ 87 स्तोक-अल्प-कृच्छ्र-कतिपयाद् 64 परिक्रियश्चतुर्थी च / पा० 1 / 4 / 44 // असत्त्वार्थात् करणे / पा०२।३।३३। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 2, पा० 1, सू० 88; पा० 2, सू० 29] चान्द्रव्याकरणम् 88 सप्तमी आधारे / 64 संबोधने / पा०२।३।४७। पा०२।३।३६। पा०१।४।४५। 65 षष्ठी संबन्धे / . 86 निमित्ताद् व्याप्येन / पा०२।३।५० तथा काशिका 2 // 3 // 50 // पा०२।३।३६। वा०६॥ 66 तुल्याङ्कृस्तृतीया वा / पा०२।३।७२। 60 यत्क्रिया क्रियाचिह्नम्। पा०२।३।३७। 67 हित-सुखाभ्यां चतुर्थी च / 61 षष्ठी च अनादरे / पा०२॥३॥३८॥ पा०२।३।७३। 62 यतः निर्धारणम् / पा०२॥३॥४१॥ 98 आशिषि आयुष्य-भद्रार्थ-कुशलार्थश्च / 63 अर्थमात्रे प्रथमा / पा०२।३।४६। पा०२।३।७३।तथा काशिका 2 / 3 / 73 / [द्वितीयस्य अध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः] . [द्वितीयः पादः] 1 सुप् सुपा एकार्थम् / पा०२।१।४। 15 तन्नपुंसकम् / पा०२।४।१८। 2 असंख्यं विभक्ति-समीप-अभाव- 16 कारकं बहुलम् / पा०२।१।२४-४८। ख्याति-पश्चात्-यथा-युगपत्-संपत्- 17 चतुर्थी प्रकृत्या / पा०२।११३६ भा०। ___ साकल्यार्थे / पा०२।१।६।। 18 विशेषणम् एकार्थेन / पा०२।११५७। 3 यथा न तुल्ये / पा०२।१७। 16 प्राप्त-आपन्नौ द्वितीयया अत्वं च / . 4 यावद् इयत्त्वे / पा०२।१८। पा०२।२।४+भा०। 5 प्रतिना मात्रार्थे / पा०२।१।। 20 न / पा०२।२।६। 6 संख्या-अक्ष-शलाकाः परिणा द्यूते 21 ईषद् गुणेन / पा०२।२।७+वा० 1 // __ अन्यथावृत्तौ / पा०२।१।१०+भा०। 22 षष्ठी / पा०२।२।। .7 परि-अप-आङ-बहिर्-अञ्चः 23 न ल-निर्धार्य-पूरण-भाव-तृप्ताथैः / पञ्चम्या वा / पा०२।१।११-१३। पा०२।२।११,१०। 8 लक्षणेन अभि-प्रती / पा०२।१।१४। 24 कु-प्रादयः असुविधौ नित्यम् / 6 अनुः सामीप्य-आयामयोः / / पा०२।२।१८+वा०१॥ पा०२।१।१५,१६। 25 ऊर्यादिकारिकाविडाचः क्रियार्थैः / 10 तिष्ठद्गु-आदीनि / पा०२।१।१७।। पा०१।४।६१,६० वा०१॥ 11 पारे मध्ये षष्ठया वा / 26 अनुकरणम् / पा०१।४।६२। . .. पा०२।१।१८। 27 भूषण-आदर-अनादरेषु 12 संख्या वश्येन / पा०२।१।१६। अलं-सत्-असतः। पा०१।४।६३,६४। 13 नदीभिः / पा०२।१।२०। 28 अग्रहे अन्तः / पा०१॥४॥६५॥ 14. अन्यार्थे नाम्नि / पा०२१॥२१॥ 26 कणे-मनसी तृप्तौ / पा०१।४।६६। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 2, पा० 2, सू० 30-75. 30 पुरस्-अस्तम् असंख्यम् / 53 अप्राणिजातीनाम् / पा०२।४।६। पा०१।४।६७,६८। 54 नदी-देश-नगराणां भिन्नलिङ्गानाम् / 31 अच्छ गत्यर्थ-वदिभिः।पा०१।४।६६। पा०२।४।७। 32 अदः अनुपदेशे / पा० 1 // 4 // 70 / 55 नित्यंवैरिणाम् / पा०२।४।। 33 तिरः अन्तधौं / पा०१।४।७१ 56 कारूणाम् / पा०२।४।१०। 34 कृत्रा वा / पा० 1 / 4 / 72 / 57 गवाश्व-आदीनाम् / पा०२।४।११। . 35 उपाजे-अन्वाजे / पा०१।४।७३। 58 प्राणि-तूर्याङ्गाणाम् / पा०२।४।२। 36 साक्षात्-आदीनि / पा०१।४।७४।। 56 सेनाङ्गानां बहुत्वे / 37 अनत्याधाने उरसि-मनसि-मध्ये-पदे पा०२।४।२+१२वा०१॥ निवचने / पा०१।४।७५,७६। 60 क्षत्रजन्तुनाम / पा०२।४।। 38 नित्यं हस्ते-पाणौ उद्वाहे / 61 फलानाम् / पा०२।४।१२ वा०१॥ पा०१।४।७७। 62 वा वृक्ष-तृण-धान्य-मृग-शकुनि३६ प्राध्वं बन्धे / पा०१।४।७। विशेषाणाम् / पा०२।४।१२। 40 जीविका-उपनिषदौ औपम्ये / 63 व्यञ्जनानाम् / पा०२।४।१२। पा०१।४।७६। 64 अश्ववडवौ / पा०२।४।१२,२७। 41 असंख्यं वा अनभिप्रेताख्याने क्त्वा। 65 विरोधिनाम्-अद्रव्याणाम् / पा०३॥४॥५६॥ पा०२।४।१३। 42 तिर्यक् समाप्तौ / पा०३।४।६०। 66 न दधिपय-आदीनाम् / पा०२।४।१४। 43 स्वाङ्गात् तसू-ना-धार्थ भुवा च / 67 नाम्नि षष्ठयाः कन्था उशीनरेषु / - पा०३।४।६१,६२। पा०२॥४॥२०॥ 44 तूष्णीम् / पा०३।४।६३।। 68 उपज्ञा-उपक्रमं तदादित्वे / 45 अन्वग् आनुकूल्ये / पा०३।४।६४। पा०२।४।२१॥ 46 अनेकम् अन्यार्थे / पा०२।२।२४। 66 ईश्वरार्थात् अराजः सभा / 47 तत्र गृहीत्वा तेन प्रहृत्य युद्धे सरूपम्। पा०२।४।२३। काशिका 2 / 4 / 23 / पा०२।२।२७। 70 अमनुष्यात् / पा०२।४।२३। 48 चार्थे / पा०२।२।२६। 71 अशाला / पा०२।४।२४। 46 समाहारे नपुंसकम् / पा०२।४।१७। 72 सेना-सुरा-शाला-निशा वा / 50 अनुवादे चरणानां स्था-इणो ङि / पा०२॥४॥२५॥ पा०२।४।३+वा० 1,2 // 73 छाया / पा०२॥४॥२५॥ 51 अध्वर्यु-ऋतूनामनपुंसकानाम् / 74 बाहुल्ये / पा०२।४।२२॥ पा०२।४।४। 75 पथः असंख्यात् / 52 संनिकृष्टपाठानाम् / पा०२॥४॥५॥ पा०२।४।३०वा०१॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 2, पा० 2, सू०७६;पा० 3, सू० २७]चान्द्रच्याकरणम् [19 76 संख्यादिः समाहारे / 82 अहः असुदिन-पुण्यात् / पा०२।४।३० वा०२॥ पा०२।४।२६,३० भा०॥ 77 अः स्त्री / पा०२।४।३० भा०। 83 नपुंसके च अर्धर्च-आवयः। पा०२।४।३१। 78 वा आप् / पा०२।४।३० वा०३। 84 सुपि ह्रस्वः / पा०१।२।४७। 85 गोः अप्रधानस्य अन्त्यस्य / 76 अनो लोपः / पा०२।४।३० भा०। पा०१॥२॥४८॥ 80 न पात्रादयः / पा०२॥४॥३० भा०। 86 यादीनाम् / पा०१॥२॥४८॥ 81 रात्र-अहन-वाकाः पुंसि / 87 लुक् अणादिलुकि अगोण्यादीनाम् / ४।२६+वा०१॥ पा०१।२।४६,५०+भा०॥ [द्वितीयस्य अध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः ] पा० [तृतीयः पादः] 1 स्त्रियाम् / पा०४।१।३। 17 टित-ढ-अण्-अब-ठक-ठय -नम - 2 ऋ-नो की / पा०४।१।५॥ स्न -क-क्वरप-ख्युनः / 3 उगितः / पा०४।१।६। पा०४।१।१५+वा०६+भा०। 18 यबोऽषावटात् / पा०४।१।१६,७४ 4 अञ्चः / पा०४।१।६ वा०२॥ वा०११पा०४|११७५॥ - "5 अहशो वनो र च / 16 ष्फो वा / पा०४।१।१७। . पा०४।१७+वा०१॥ 20 लोहितादिभ्यः शकलान्तेभ्यः / 6 अन्यार्थे वा / पा०४।१७ वा०२॥ पा०४।१।१८+वा०१॥ / 7 पादः / पा०४।१।। 21 कौरव्य-आसुरि-माण्डूकात् / 8 अनः / पा०४।१।२८॥ पा०४।१।१६+वा०१॥ 6 ऊधसो नश्च / पा०४।१।२५ तथा 22 वयसि अचरमे / पा०४।१।२० भा०। पा०५।४।१३१॥ 23 संख्यादेः / पा०४।१॥२१॥ 10 दाम्नः संख्यादेः / पा०४.१२ 24 परिमाणाल्लुकि असंख्या-काल-विस्ता ___ आचित-कम्बल्यात्। 11 हायनाद् वयसि / पा०४।१।२७+भा०। पा०४।१।२२+भा०। 12 नोपान्तवतः / पा०४।१।१२। 25 काण्डाद् अक्षेत्रे / पा०४।१।२३। 13 मनः / पा०४।१।११॥ 26 पुरुषाद् वा / पा०४।१।२४। 14 ताभ्यां डाप् / पा०४।१।१३। 27 केवल-मामक-भागधेय-पाप-अवर१५ अजाधतः / पा०।४।१।४। समान-आर्यकृत-सुमङ्गल-भेषजाद् .16 स्वार्थे / पा०४।१।१४। नाग्नि / पा०४।१।३०। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 2, पा० 3, सू० 28-62. 28 अन्तर्वत्नी गर्भिण्याम् / / 45 पूतक्रतु-वृषाकपि-अग्नि-कुसित पा०४।१।३२+वा० 1 // कुसीदानाम् ऐ च / 26 पतिवत्नी भार्यायाम् / पा०४।१।३६,३७॥ पा०४।१।३२+वा०१॥ 46 मनाः 46 मनोः औ वा / पा०४।१॥३८॥ 30 पत्युन ऊढायाम् / पा०४।१।३३। 47 सूर्या देवी / पा०४।११४८ भा०। 31 सपूर्वस्य वा / पा०४।१।३४।। 48 इन्द्र-वरुण-भव-शर्व-रुद्र-मृडानाम् 32 अन्यार्थे / पा०४।१।३४ वा०१।। आनुक् च / पा०४।१।४६। 33 समानादिभ्यः / पा०४।१।३५।। 46 आचार्यानी / पा०४।१।४६ वा०६।। 34 श्येत-एत-हरित-रोहितात् तो नः / 50 मातुल-उपाध्यायाद् वा / पा०४।१।४६ वा०४। पा०४।१।३। 51 आर्य-क्षत्रियाच्च पा०४।१।४।वा०७। 35 क्नः असित-पलिताल / 52 हिम-अरण्याद् महत्त्वे / . .. काशिका 4 / 1136 // पा०४।१।४६ वा०१॥ 36 षितः ङीष् / पा०४।१।४१॥ 53 यवाद् दोषे / पा०४।१।४६ वा०२॥ 37 गौरादिभ्यः / पा०४।१॥४१॥ 54 यवनात् लिप्याम् / 38 भाज-गोण-नाग-स्थल-कुण्ड-काल पा०४।१।४६ वा०३। कुश-कामुक-कबरात् पक्व-आवपन- 55 क्रीतात् करणादेः / पा०४।१।५०। स्थूल-अकृत्रिम-अमत्र-कृष्ण-आयसी- 56 क्ताद् अल्पोक्तौ / पा०४।११५१॥ . रिरंसु-केशवेशेषु / पा०४।१।४२॥ 57 स्वाङ्गात् अकृत-मित-जात३६ नीलात् प्राणि-ओषध्योः / प्रतिपन्नात् अन्यार्थे / पा०४।११५४। . . पा०४।१।४२ वा० 1,2 / / पा०६।२।१७०।पा०४।११५२ वा०१॥ 40 वा नाम्नि / पा०४।१।४२ वा०३। 58 पाणिगृहीती ऊढा / पा०।४।१।५२ वा०२॥ 41 शोणादिभ्यः / पा०४।१।४३,४५॥ 56 जातेः अनाच्छादाद् वा / 42 एः अक्तिनः / काशिका 4 // 1 // 45 // पा०४।१।५३। पा०६।२।१७०। .. पा०४।१।४५। 60 संज्ञायाम् / पा०४।१।५२। वा०३,४। 43 ओः गुणाद् अखरु-संयोगोपान्तात् / 61 स्वाङ्गाद् अप्रधानात् / पा०४।१।५४। पा०४।१।४४+वा०२॥ 62 नासिका-उदर-ओष्ठ-जङ्घा-दन्त-कर्ण४४ पुंनाम्नो योगाद् अपालकान्तात् / शृङ्ग-अङ्ग-गात्र-कण्ठात् / पा०४।१।४८+भा०। पा० 4 / 1 // 55 // काशिका 4 / 1 / 54 / 1 अस्य सूत्रस्य वृत्तौ "भाषायामपीष्यते” इति निर्दिश्य ‘असिक्नी-पलिक्नी 'रूपसिद्धिबर्बोधिता। ___ 2 अत्रापि काशिकायाम् अस्मिन् सूत्रे ‘कृदिकारात् अक्तिनः' इति वार्तिकम् / Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 2, पा० 3, सू० 63; पा०४, सू० 16] चान्द्रव्याकरणम् [21 63 पुच्छात् / पा०४।१।५५ वा०१॥ 76 अप्राणिनाम् अरज्ज्वादिभ्यः / 64 कबर-मणि-विष-शरात् / पा०४।११६६ वा०१॥ पा०४।११५५ वा०२॥ 77 बाह्वन्त-कद्रुकमण्डलुभ्यो नाम्नि / 65 उपमानादेः / पा०४।१।५५ वा०३। पा०४।१।६७,७२। 66 पक्षात् / पा०४।१।५५ वा०३। 78 पडगूः श्वश्रूः / पा०४।१।६८।। 67 न क्रोडादिभ्यः / पा०४।११५६।। काशिका 4 // 1 // 6 // 68 सह-न-विद्यमानादेः / 76 ऊरोः उपमा-संहित-सहित-सह-शफ पा०४।१।५७। वाम-लक्ष्मणादेः। पा०४।१।६६,७०। 66 नख-मुखाद् नाम्नि / पा०४।१।५८। 70 भा०। 70 सखी अशिश्वी / पा०४।१।६२। 80 यङश्चाप् / पा०४।१।७४। 71 जातेः अस्त्रीविषयाद् अयोपान्तात् / 81 यूनस्तिः / पा०४।१।७७। . पा०४।१।६३८२ अनृणुर्गुरूपोत्तमाद् गोत्रे अणियोः 72 पाक-कर्ण-पर्ण-पुष्प-फल-मूल ष्यङ / पा०४।११७८॥ बालान्तात् / पा०४।१।६४। 83 कुलनाम्नः / पा०४।१।७६। 73 इतः नृजातेः / पा०४।१॥६५॥ 84 क्रौड्यादीनाम् / पा०४।१८०। 74 इञः / पा०४।१।६५ वा० 1 // 85 दैवयज्ञि-शौचिवृक्षि-सात्यमुग्नि७५ ऊङ उतः / पा०४।१।६६। काण्ठेविद्धीनां वा / पा०४।१।८१॥ [द्वितीयस्य अध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः] [चतुर्थः पादः] * 1 प्रागजिताद् अण् / पा०४।११८३। 10 बहिषः टीकक् च / 2 दिति-अदिति-आदित्य-यमाद् ण्यः / पा०४।१।८५ वा०५,४। .. पा०४।१।८५॥ काशिका 4 / 1 / 85 // 11 संख्यादेः संख्येयाद् अनपत्ये अजादेर्लंग 3 पत्युरनश्वाद्यादेः / पा०४।११८५,८४। ____ अद्विः / पा०४।१।८८+भा०। 4 अः स्थाम्नः / पा०४।१।८५ वा०७। 12 प्राग् वतेः अग्नि-कलिभ्यां ढक् / 5 लोम्नः अपत्येषु / पा०४।१।८५ पा०४।२।७ भा०॥ वा०८॥ 13 स्त्री-पुंसाभ्यां नब-स्नबौ / 6 पृथिव्या अः। पा०४।११८५ वा०२॥ पा०४।१।८७+वा०१॥ 7 उत्सादिभ्यः अब / पा०४।१।८६॥ 14 भावे वा / पा०४।१।८७ वा०२। 8 देवात् / पा०४।१।८५ वा०३। 15 गोः अचि यत् / पा०४।१।८५ वा०६। . 6 यन / पा०४।११८५। वा०३। 16 तस्य अपत्यम् / पा०४।१।१२। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22] चान्द्रव्याकरणम् 2, पा०४, सू०१७-६३ . 17 आद्यात् / पा०४।१।६३। 43 क्रुश्चा-कोकिलाभ्याम् / 18 पौत्रादेः अस्त्रियां गुर्वायत्ते / पा०४।१।१२० भा०। पा०४।१।६४ 44 ऋषि-कुरु-वृष्णि-अन्धकात् / 16 अतः इन / पा०४।१।६५॥ पा०४।१।११४॥ 20 बाह्वादिभ्यो गोत्रादिभ्यः / 45 मातुः उत् संख्या-सं-भद्रादेः / पा०४।१।६६ वा०१॥ पा०४।१।११५॥ 21 व्यासादीनाम् अकङ च / 46 कन्यायाः कनीन च / .. पा०४।१।६७ भा०। पा०४।१।११६॥ 22 बिदादिभ्यः अब / पा०४।१।१०४। 47 शुङ्ग-च्छगल-विकर्णाद् भारद्वाज२३ ऋषेः पौत्रादौ / पा०४।१।१०४। वात्स्य-आत्रेयेषु / पा०४।१।११७। 24 गर्गादिभ्यो यस् / पा०४।१।१०५॥ 48 पीला-मण्डकाद् वा / 25 मधो ह्मणे / पा०४।१।१०६।। पा०४।१।११८,११६॥ 26 बभ्रोः कौशिके / पा०४।१।१०६। 46 ढक् / पा०४।१।११६॥ 27 कपेः आङ्गिरसे / पा०४।१।१०७। 50 डी-आप-ति-ऊङः / पा०४।१।१२०। 28 बोधात् / पा०४।१।१०७॥ 51 द्वयचः / पा०४।१।१२१॥ 26 वतण्डात् / पा०४।१।१०८। 52 इतोऽनिञः / पा०४।१।१२२। 30 स्त्रियां लुक् / पा०४।१।१०६। 53 शुभ्रादिभ्यः / पा०४।१।१२३।। 31 अश्वादिभ्यः फज् / पा०४।१।११०। 54 विकर्ण-कुषीतकात् काश्यपे / . 32 भर्गात् त्रैगर्ते / पा०४।१।१११॥ पा०४।१।१२४। 33 कुञ्जादिभ्यः फ्यञ् / 55 भ्रौवेयः / पा०४।१।१२५॥ पा०४।१।१८ भा०। 34 स्त्रीबहुषु फक् / पा०५।३।११३।। 56 कल्याण्यादीनाम् इनङ / पा०४।१।१८ भा०। * पा०४।१।१२६।। 35 नडादिभ्यः / पा०४।१।६। 57 कुलटाया वा / पा०४।१।१२७। 36 हरितादिभ्यः अबः / पा०४।१।१००। 58 चटकात् ऐरक् / 37 यजिनः / पा०४।१।१०१॥ पा०४।१।१२८+वा०१॥ 38 शरद्वत्-शुनक-दर्भाद् भार्गव-वात्स्य- 59 लुक् स्त्रियाम् / आग्रायणेषु / पा०४।१।१०२।। पा०४।१।१२८ वा०२॥ 36 पर्वत-जीवन्ताद् वा / पा०४।१।१०३॥ 60 जाण्ड-पाण्डाद् आरक् / 40 द्रोणात् / पा०४।१।१०३। पा०४।१।१३० भा०॥ 41 शिवादिभ्यः अण् / पा०४।१।११२॥ 61 गोधायाः / पा०४।१।१३०। 42 नदी-मानुषीनाम्नः अनादैजाद्यचः / 62 एरक् / पा०४।१।१२। पा०४।१।११३। 63 क्षुद्राभ्यो वा / पा०४।१।१३१॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 2, पा० 4, सू० 64-106] चान्द्रव्याकरणम् [23 64 भ्रातुर्व्यत् / पा०४।१।१४४। 86 त्यदादिभ्यो वा / 65 छः / पा०४।१।१४४। काशिका 4 / 1 / 156 / 66 स्वसुः / पा०४।१।१४३। 60 अगोत्रादादैजाद्यचः। पा०४।१।१५७। 67 पितृ-मात्रादेः छण् / 61 वाकिनादीनां कुक् च / पा०४।१।१३२,१३४। पा०४।१।१५८। 68 ढकि लोपः / पा०४।१।१३३। 62 पुत्रान्ताद् वा / पा०४।१।१५६। 66 क्षत्रात् जातौ घः। पा०४।१।१३८। 63 फिन बहुलम् / पा०४।१।१६०। . काशिका 4111138 / 64 मनोर्जातौ यत् सुक् च / 70 राज्ञो यत् / पा०४।१।१३७+वा०१। पा०४।१।१६१॥ 71 श्वशुरात् / पा०४।१।१३७। 65 अञ् / पा०४।१।१६१। 72 कुलात् ढका च / पा०४।१।१४०। 73 खः पदान्ताच्च / पा०४।१।१३६ / 66 जनपदनाम्नः क्षत्रियाद् राज्ञि च / 66 जन पा०४।१।१६८+वा०३। 74 दुरः ढक् वा / पा०४।१।१४२। 75 महाकुलाद् अब-खबौ / 67 गान्धारि-शाल्वेयात् / पा०४।१।१४१। पा०४।१।१६६। 76 चतुष्पाभ्यों ढन् / पा०४।१।१३५॥ 18 आदैजाद्यचो व्यङ / पा०४।१।१७१। 77 गृष्टयादिभ्यः / पा०४।१।१३६।। 66 इत् कोशल-आजादात् / 78 रेवत्यादिभ्यः ठक् / पा०४।१।१४६। पा०४।१।१७१॥ 76 पौत्रादेः स्त्रियाः कुत्सिते ण च / 100 द्वयच्-मगध-कलिङ्ग-शूरमसाद्र पा०४।१।१४७॥ अण् / पा०४।१।१७०। 80 सौवीरेषु वा / पा०४।१।१४८। 101 कुरु 101 कुरु-नादिभ्यः ण्यः / 81 फेछ च / पा०४।१।१४६। पा०४।१।१७२। * 82 फाण्टाहृतेःण-फिौ।पा०४।१।१५०। 102 पाण्डोडर्यण् / पा०४।१।१६८ भा०। 83 मिमतात् / पा०४।१।१५०॥ 103 शाल्वाङ्ग-प्रत्यग्रथ-कलकूट८४ कुर्वादिभ्यो ण्यः / पा०४।१।१५१॥ अश्मकात् इञ् / पा०४।१।१७३। 85 सेनान्त-कार-लक्ष्मणाद् इब च / 104 कम्बोजादिभ्यो लुक् / पा०४।१।१५२,१५३। पा०४।१।१७५+वा०१॥ 86 तिकादिभ्यः फिरू / पा०४।१।१५४। 105 स्त्रियां कुरु-कुन्ति-अवन्तिभ्यः / 87 दगु-कोशल-कार-च्छाग-वृषाद् पा०४।१।१७६। . युट् च / पा०४।१।१५५ वा०१॥ 106 अतः अप्राच्य-भर्गादिभ्यः / 88 व्यचोऽणः / पा०४।१।१५६। पा०४।१।१७७,१७८। - 1. अत्र सूत्रे " त्यदादीनां वा फिञ् वक्तव्यः" इति वार्तिकम् / 2. अत्र सवृत्तिके चान्द्रव्याकरणे 'सूरमसाद्' इति पाठः। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 2, पा० 4, सू० 107-123 107 यत्र -अबोः बहुषु अस्त्रियाम् / / 115 तिक-कितवादिभ्यश्च अशैंकायें / पा०२।४।६४,६२। पा०२॥४॥६॥ 108 कुण्डिनाः / पा०२।४७०। 116 न गोपवनादिभ्यः अष्टभ्यः / 106 ज्यादीनाम् / पा०४।१।१७४। पा०२।४।६७+वा०१॥ पा०२।४।६२। 117 प्रागजितीये अचि / पा०४।१।८६। 110 यस्कादिभ्यः / पा०२।४।६३।। 118 गोत्राद् लुक् / पा०४।१।१०। 111 अत्रि-भृगु-कुत्स-वसिष्ठ-अङ्गिरस् 116 फक्-फियोर्वा / पा०४।१।६१॥ . गोतमात् / पा०२॥४६५॥ 120 अब्राह्मणात् / पा०२।४ 58 भा०। 121 पैलादिभ्यः / पा०२।४।५। 112 अगस्तयः / पा०२।४७०। 122 प्राच्याद् इत्रः अतौल्वलिभ्यः / 113 बह्वचः प्राच्याद् इनः / पा०२।४।६०,६१॥ पा०२।४।६६। 123 भिद्-आर्षण्याद् अणियोः / 114 उपकादिभ्यो वा / पा०२।४।६६। पा०२॥४॥५॥ [द्वितीयस्य अध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः ] .. [चान्द्रे व्याकरणे द्वितीयः अध्यायः समाप्तः] Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [तृतीयः अध्यायः, प्रथमः पादः] 1 तेन रक्तं रागात् / पा०४।२।१॥ 23 शुक्रात् घन् / पा०४।२।२६। 2 लाक्षा-रोचनात् ठक् / पा०४।२।२। 24 पैङ्गाक्षीपुत्रादिभ्यः छः / 3 शकल-कर्दमाद् वा / पा०४।२।२ पा०४।२।२८ वा०१॥ __ वा०१॥ 25 शतरुद्रात् घश्च / पा०४।२।२८ वा०२। 4 नील-पीताद् अन्-कनौ / 26 अपोनपात्-अपांनपातोः तु चातः / पा०४।२।२ वा०२,३॥ पा०४।२।२७,२८। 5 नक्षत्रैरिन्दुयुक्तैः कालः / 27 महेन्द्राद् वा / पा०४।२।२६। पा०४।२।३+वा०१॥ 28 सोमात् ट्यण् / पा०४।२।३०। 6 चार्थात् छः / पा०४।२।६। 26 वायु-ऋतु-पितृ-उषसो यत् / 7 दृष्टं साम डित् वा / पा०४।२।३१॥ पा०४।२७+भा०। 30 द्यावापृथिवी-शुनासीर-मरुत्वत्८ गोत्रात् अङ्कवत् / पा०४।२७ भा०। अग्नीषोम-वास्तोष्पति-गृहमेधात् 6 वामदेव्यम् / पा०४।२।। छश्च / पा०४।२।३२। 10 परिवृतो रथः / पा०४।२।१०। 31 कालेभ्यो भववत् / पा०४।२।३४। 11 कौमारी प्राथम्ये / पा०४।२।१३। 32 महाराज-प्रोष्ठपदात् ठञ् / . 12 तत्र उद्धृतं पात्रेभ्यः / पा०४।२।१४। पा०४।२॥३५॥ .13 स्थण्डिले शेते व्रती / पा०४।२।१५। 33 आदेश्छन्दसः प्रगाथे / पा०४।२॥५५॥ 14. संस्कृतं भक्ष्यम् / पा०४।२।१६। / 34 योद्धृप्रयोजनात् संग्रामे / 15 शुल-उखात् यत् / पा०४।२।१७। पा०४।२।५६। 16 दघ्नः ठक् / पा०४।२।१८। 35 प्रहरणात् अस्यां क्रीडायां णः / 17 क्षीरात् ढब् / पा०४।२।२०। पा०४।२।५७॥ 18 साऽस्य पौर्णमासी / पा०४।२।२१।। 16 आग्रहायणी-अश्वत्थात् ठक् / 37 तद् अधीते तद् वेद / पा०४।२।५६ / पा०४।२।२२। 38 ऋतु-उक्थादिभ्यः ठक् / पा०४।२।६०। 20 फाल्गुनी-श्रवणा-कार्तिकी-चैत्रीभ्यो 36 शत-षष्टः पथः ष्ठन् / वा / पा०४।२।२३। पा०४।२।६०। भा० (कारिका') 21 देवता / पा०४।२।२४। 40 क्रमादिभ्यो वुन् / पा०४।२।६१। 22 कस्य इत् / पा०४।२।२५। 41 प्रोक्तात् लुक् / पा०४।२।६४। 1 इयं च कारिका श्रीकिलहोर्नमहाशयसंपादिते व्याकरणमहाभाष्ये एवं वर्तते:-- " अनुसूर्लक्ष्यलक्षणे सर्वसादेविगोश्च लः / इकन् पदोत्तरपदात् शत-षष्टः षिकन् पथः" // -द्वितीय भागे पृ० 284 / काशिकायां तु 4 / 2 / 60 सूत्रे इदं वार्तिकम् - " शत-षष्टेः षिकन् पथो बहुलम्" / Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 3, पा० 1, सू० 42; पा० २,सू० 10. 42 सूत्रात् संख्याकात् / 56 पाशादिभ्यः यः / पा०४।२।४।। पा०४।२।६५+भा०। 57 खलादिभ्यः इनिः / 43 तस्य समूहः / पा०४।२।३७। पा०४।२।५१ वा०१। 44 भिक्षादिभ्यः अण् / पा०४।२।३८।। 58 गोत्रा / पा०४॥२॥५१॥ 45 गोत्र-उक्ष-उष्ट्र-उरभ्र-राज-राजपुत्र- 56 ग्राम-जन-गज-बन्धु-सहायात् तल् / वत्स-अज-वृद्धात् वुञ् / पा०४।२।४३+भा०। पा०४।२।३६+भा०॥ 60 पितृव्य-मातामह-पितामहाः / / 46 केदारात् यञ् च / पा०४।२।४०। पा०४।२।३६।. 47 कवचिनश्च ठक् / पा०४।२।४१॥ 61 विषये देशे / पा०४।२।५२॥ 48 हस्ति-अचित्तात् / पा०४।२।४७।। 62 राजन्यादिभ्यः वुब् / पा०४।२।५३। 46 धनोरनञः / पा०४।२।४५ भा० / ___ काशिका 4 / 2 / 47 वा०। 63 भौरिकि-ऐषुकार्यादिभ्यः विधल५० गणिका-ब्राह्मण-माणव-वाडवात् यञ् / भक्तलौ / पा०४।२॥५४॥ पा०४।२।४० भा०। पा०४।२।४२॥ 64 निवासे तन्नाम्नि। पा०४।२।६६,६७ // 51 केशाद् वा / पा० 4 / 2 / 48 / 65 अदूरभवे / पा०४।२१७०। 52 अश्वात् छः / पा०४।२।४८। 66 तेन निवृत्ते / पा०४।२।६८॥ 53 पार्श्व-पौरुषेये / पा०४।२।४३ वा०३। 67 तद् इह अस्ति च / पा०४।२।६७। पा०५।१।१० भा०। 68 वुञ-छण्-क-ठच्-इल-स-इनि-र-ढब्५४ पृष्ठय-अहीनौ ऋतौ / पा०४।२।४२ ___ -ण्य-य-फक्-फित्र-इञ्-ञ्य--का-ठक्-.. वा०१। पा०४।२।४३ वा०१,२। छ-कोय-ड्मतुप्-ड्वलचः / 55 वातात् ऊलः / पा०५।२।१२२ वा०६। पा०४।२।८०६०,६१,८७,८८। [तृतीयस्य अध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः] [द्वितीयः पादः] 1 शेषे / पा०४।२।१२। 7 दक्षिणा-पश्चात्-पुरसः त्यक् / 2 राष्ट्राद् घः / पा०४।२।६३। पा०४॥२॥१८॥ 3 पारावार-अवारपारात् खः / 8 बलि-उदि-पदि-कापिशीभ्यः ष्फक् / पा०४।२।६३वा०१,२। .. पा०४।२।६६+भा०। 4 प्रामात य-खौ / पा०४।२।६४। 6 रङ्कोः प्राणिनि वा / पा०४।२।१००। 5 कठ्यादिभ्यश्च ढकञ् / काशिका 4 / 2 / 100 / पा०४।२।९५+भा०। 10 धु-प्राग-अपाग-उदक्-प्रतीचो यत् / 6 नद्यादिभ्यः ढक् / पा०४।२।६७। पा०४।२।१०१ पा. Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 3, पा० 2, सू० 11-58] चान्द्रव्याकरणम् [27 11 कन्थायाः ठक् / पा०४।२।१०२। 34 बाहीकग्रामात् / पा०४।२।११७। 12 वर्णों वुक् / पा०४।२।१०३। 35 वा उशीनरेषु / पा०४।२।११८। 13 क्व-अमा-इह-त्र-तसः त्यप् / 36 प्रस्थ-वह-पुरान्त-योपान्त-धन्वार्थात् पा०४।२।१०४ भा०। वुब् / पा०४।२।१२२,१२१॥ 14 निसो गते / पा०४।२।१०४ भा०। 37 रोपान्त-ईतः प्राच्यात् / 15 ऐषमस्-ह्यस्-श्वसो वा / / पा०४।२।१२३। पा०४।२।१०५॥ 38 जनपदेभ्यः / पा०४।२।१२४। 16 दूरेत्य-औत्तराहो / 36 बहुत्वविषयेभ्यः / पा०४।२।१२५॥ पा०४।२।१०४ भा०। 40 कच्छ-अग्नि-वक्त्र-वर्तान्तात् / 17 णः अरण्यात् / पा०४।२।१०४ भा०। पा०४।२।१२६॥ 18 रूप्यान्तात् सः / पा०४।२।१०६। 41 धूमादिभ्यः / पा०४।२।१२७। 16 दिगादेरनाम्मि अमद्रात् / 42 नगरात् कुत्सा-प्रावीण्ययोः / / पा०४।२।१०७,१०८। पा०४।२।१२८॥ 20 बाहीकादिभ्यः अण् / पा०४।२।११०। 43 अरण्यात् पथि-न्याय-अध्याय-हस्ति२१ शकलादिभ्यः गोत्रात् / __नर-विहारेषु। पा०४।२।१२६+भा०। .. पा०४।२।१११॥ 44 वा गोमये / पा०४।२।१२६ भा०। 22 इञः / पा०४।२।११२॥ 45 कुरु-युगन्धरात् / पा०४।२।१३०। 23 न द्वयचःप्राच्यात् / पा०४।२।११३। 46 वृजि-मद्रात् कन् / पा०४।२।१३१॥ 24 आदैजाद्यचश्छः / पा०४।२।११४। 47 कोपान्ताद् अण् / पा०४।२।१३२॥ 25 एङाद्यचः प्राग्देशात् / 48 कच्छादिभ्यः / पा०४।२।१३३। - पा०१।१।७५॥ 46 न-तत्स्थयोर्बुज / पा०४।२।१३४॥ 26 ननाम्नो वा / पा०१।१७३ वा०५। 50 शालवाद् गो-यवाग्वोः / . 27 गोत्रान्तात् तद्वद् अजिह्वाकात्य . पा०४।२।१३६। हरितकात्यात् / पा०१।११७३ 51 न पदातौ / पा०४।२।१३५॥ वा०७,८। 52 गन्तिात् छः / पा०४।२।१३७॥ 28 त्यदादिभ्यः / पा०१११७४। 53 कटादेः प्राच्यात् / पा०४।२।१३६। 26 भवतो दश्च / पा०४।२।११५॥ 54 क-खोपान्त-कन्था-पलद-नगर-ग्रामपा०१।४।१६। हदान्तात् छ / पा०४।२।१४१,१४२॥ 30 ठञ् / पा०४।२।११५॥ 55 पर्वतात् / पा०४।२।१४३। 31 ओः देशात् / पा०४।२।११६। 56 अनरे वा / पा०४।२।१४४। 32 प्राच्यात् छ / पा०४।२।१२०॥ 57 कृकण-पर्णाद् भारद्वाजात् / 33 काश्यादिभ्यः किश्च / पा०४।२।१४५॥ पा०४।२।११६। 58 गहादिभ्यः / पा०४।२।१३८। . 1 पाणिनोये तु- 'वक्त्र-गर्तोतरपदात्' इति पाठः। उदाहरणमपि-चाक्रगर्तकः / Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 3, पा० 2, सू० 59; पा० 3, सू०६ 56 पृथिवीमध्यस्य मध्यमश्च / 73 रोग-आतपयोः वा / पा०४।३।१३। पा०४।२।१३८ वा०१॥ 74 निशा-प्रदोषात् / पा०४।३।१४।। 60 निवासस्य चरणे अण् च / 75 श्वसः तुट् च / पा०४।३।१५।। पा०४।२।१३८ वा०२। 76 प्राले-प्रगे-सायं-चिरम्-असंख्यात् टयुः। 61 वेणुकादिभ्यः छण् / पा०४।३।२३। काशिका 4 / 2 / 138 / 62 युष्मद्-अस्मदोः खय् युष्माक 77 पूर्वाण्ह-अपराण्हात् वा / - पा०४।३।२४। अस्माकौ च / पा०४।३।१,२। 63 अण् / पा०॥४॥३॥१॥ 78 परुत्-परारि-चिरात् नः / 64 तवक-ममको एकत्वे। पा०४।३।३। पा०४।३।२३। भा०। 65 द्वीपादनुसमुद्रात् ञ्यः। पा०४।३।१०। 76 सन्ध्यादि-ऋतु-नक्षत्रात् अण् / पा०४।३।१६। 66 अर्धात् यत् / पा०४।३।४। 80 हेमन्ताद् वा तलोपश्च / . 67 पर-अवर-अधम-उत्तमादेः / पा०४॥३॥५॥ पा०४।३।२१,२२॥ 68 दिगादेः ठञ् च / पा०४।३।६। 81 वर्षा-प्रावृड्भ्यां ठक्-एण्यौ / 66 ग्राम-जनपदांशात् अण च / पा०४।३।१८,१७॥ पा०४।३।७। 82 मध्य-आदिभ्यां मः / पा०४।३।। 70 सपूर्वात् / पा०४।३।४। वा० 1 // काशिका 4 / 3 / 8 वा०। 71 कालेभ्यः / पा०४।३।११। 83 अग्र-अन्त-पश्चाद् इमच / / 72 शरदः श्राद्धे / पा०४।३।१२। पा०४।३।२३ भा०। [तृतीयस्य अध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः] [तृतीयः पादः] 1 तत्र जाते प्रावृषः ठप् / 4 सिन्धु-अपकरात् वा / पा०४।३।२५,२६। पा०४।३।३२,३३॥ 2 पूर्वाह्ण-अवराह-आर्द्रा-मूल-प्रदोष- 5 अमावस्यार्थात् अश्च / पा०४।३।३०,३१। अवस्करात् कन् नाम्नि / तथा काशिका 4 / 3 / 30,31 // __ पा०४।३।२८,२७। 6 स्थानान्त-गोशाल-खरशालात् लुक् / 3 पन्थकः / पा०४।३।२६। पा०४।३।३५॥ 1 काशिकायाम् अस्मिन् सूत्रे “वेणुकादिभ्यः छण् वक्तव्यः ," इति वार्तिकनिर्देशे अस्य चान्द्रसूत्रस्य समावेशः / Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [29 अ० 3, पा० 3, सू० 7-49] चान्द्रव्याकरणम् 7 वत्स-शाल-नक्षत्रेभ्यः बहुलम् / 27 तदादेः / पा०४।३।६० भा०। पा०४।३।३६,३७। 28 लोकान्तात् / पा०४।३।६० भा०। 8 डिदण् / पा०४।२,७ भा०। 26 अध्यात्मादिभ्यः। पा०४।३।६० भा०। 6 श्रविष्ठा-आषाढात् छण् / 30 जिह्वामूल-अडगुलेः छः / पा०४।३।३४ वा०३। पा०४।३।६२॥ 10 फल्गुन्याः टः। पा०४।३।३४ वा०२। 31 वर्गान्तात् / पा०४।३।६३। 11 आश्वयुज्याम् उप्ते वुन् / 32 अशब्दे यत्-खौ च / फा०४।३।६४। पा०४।३।४५,४४। 33 मध्यात् मण्-मीयौ च / 12 ग्रीष्म-वसन्ताद् वा / पा०४।३।४६। पा०४।३।६० भा०। 13 कालाद् देयम् ऋणम् / 34 ललाटात् भूषणे कन् / . पा०४।३।४७,४३। पा०४॥३॥६५॥ 14 कलापि-अश्वत्थ-यवबुसाद् वुन् / 35 कर्णात् / पा०४।३।६५॥ पा०४।३।४८। 36 उपादेः ठक् / पा०४।३।४०। 15 ग्रीष्म-अवरसमात् वुञ् / 37 जानु-नीवीभ्याम् / पा०४।३।४०। पा०४।३।४६। 38 तस्य व्याख्याने च व्याख्ययनाम्नः। 16 संवत्सर-आग्रहायण्याः ठञ् च / पा०४।३॥६६॥ . पा०४।३।५०। 36 बह्वचः अन्तोदात्तात् ठञ् / 17 दिगादिभ्यः भवे यत् / / पा०४।३।६७॥ पा०४।३।५४,५३। 40 यज्ञेभ्यः / पा०४।३।६८। 18 देहांशात् / पा०४।३॥५५॥ 41 अध्यायेषु एव ऋषेः। पा०४।३।६६। 16 दृति-कुक्षि-कलशि-वस्ति-अस्ति-अहेः 42 पौरोडाश-पुरोडाशात् ष्ठन् / ढब् / पा०४।३।५६। पा०४।३१७०॥ - 20 ग्रीवातः अण् च / पा०४।३।५७। 43 छन्दसो यत् / पा०४।३।७१। 21 गम्भीर-पञ्चजनात् ञ्यः। 44 अण / पा०४।३।७१। पा०४।३।५८,६० भा०। 45 ऋगयनादिभ्यः / पा०४।३।७३। 22 चातुर्मास्यं यज्ञे / पा०५।१।६४ 46 द्वयच-ऋत्-ऋग-ब्राह्मण-प्रथम-अध्वर वा०६। -पुरश्चरण-नाम-आख्यातात् ठक् / 23 परिमुखादिभ्यः / पा०४।३।५८ पा०४।३७२। वा०१॥ 47 आयस्थानात् आगते / 24 अन्तःपूर्वात् तदर्थात् ठ / पा०४।३७५,७४। पा०४।३।६०। 48 शुण्डिकादिभ्यः अण् / पा०४।३७६। 25 परि-अनुभ्यां ग्रामात् / पा०४।३।६१॥ 46 विद्या-योनिसंबन्धात् वुञ् / . 26 समानात् / पा०४।३।६० भा०। पा०४।३।७७॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 3, पा० 3, सू० 50-94 . 50 ऋतः कञ् / पा०४।३।७।। 72 शौनकादिभ्यः / पा०४।३।१०६। 51 पित्र्यं वा / पा०४।३।७६। 73 कलापि-वैशम्पायनशिष्येभ्यः / / 52 नृ-हेतुभ्यो रूप्यः / पा०४।३।८१।। पा०४।३।१०४। 53 मयट / पा०४।३।८२। 74 कठ-चरकात् लुक् / पा०४।३।१०७। 54 गोत्रात् अङ्कवत् / पा०४।३।१०।। 75 कलापिनः अण् / पा०४।३।१०८। 55 वैदूर्यम् / पा०४।३।८४। 76 छगलिनः ढिनुक् / पा०४।३।१०६। 56 शिशुक्रन्दादीन अधिकृत्य कृते ग्रन्थे 77 कर्मन्द-कृशाश्वाभ्यां भिक्षु-नटसूत्रम् छः / पा०४।३।८८,८७। इनिः / पा०४।३।१११॥ 57 चार्थान् अदेवासुरादीन् / 78 पाराशर्य-शिलालिभ्यां णिनिः / पा०४।३।८८+वा०१॥ पा०४।३।११०॥ 58 सोऽस्य अभिजनः गिरिभ्यः 76 पुराणाह्मणम् / पा०४।३।१०५॥ शस्त्रजीविषु / पा०४।३।६०,६१। 80 कल्पे / पा०४।३।१०५॥ 56 शालातुरीयः / पा०४।३।६४। 81 अथर्वणः अण् वेदे / 60 शण्डिकादिभ्यः भ्यः / पा०४।३।१२। पा०४।३।१३१वा०२॥ 61 सिन्ध्वादिभ्यः अण् / पा०४।३।६३। 82 पुरुषात् कृते ढञ् / पा०५।१।१०भा०। 62 तुदी-वर्मतीभ्यां ढञ् / पा०४।३।६४। 83 संज्ञायां वातपात् अब् / 63 तत्र भक्तिमहाराजात् ठक् / पा०४।३।११७,११६॥ पा०४।३।६५,६७। 84 कुलालादिभ्यः वुञ् / पा०४।३।११८। 64 अचित्तात् अदेश-कालात् / . 85 तस्य स्वं रथात् यत् / पा०४।३।६६। पा०४।३।१२०,१२१। 65 वासुदेव-अर्जुनात् कन् / पा०४।३।६८। 86 यानादेः अञ् / पा०४।३।१२२॥ 66 गोत्रात् बहुलं वुञ् / पा०४।३।६६। 87 यानात् पा०४।३।१२३॥ 67 क्षत्रियात् / पा०४।३।६६। 88 हल-सीरात् ठक् / पा०४।३।१२४॥ 68 जनपदवत् सर्व तत्सरूपात् बहुत्वे / 66 / 86 चार्थाद् वैरे वुन् अदेवासुरादिभ्यः / पा०४।३।१२५+वा०१॥ पा०४।३।१००। ___60 विवाहे / पा०४।३।१२५॥ 66 तेन प्रोक्तं वेदं वेत्ति अधीते / 61 नटात् ज्यः नृत्ये / पा०४।३।१२६॥ पा०४।३।१०१। पा०४।२।६६। 62 छन्दोग-औक्थिक-याज्ञिक-बह वृचात् 70 तित्तिरि-वरतन्तु-खण्डिक-उखात् धर्म-आम्नाय-संघेषु / छण् / पा०४।३।१०२। पा०४।३।१२६,१२० वा०११॥ 71 काश्यप-कौशिकाभ्यामृषिभ्यां कल्पं च णिनिः / पा०४।३।१०३। 63 आथर्वणः / पा०४।३।१३१वा०२। पा०४।२।६६ वा० 6 // 64 चरणात् वुञ् / पा०४।३।१२६॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 31] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 3, पा० 3, सू० 95-127 65 गोत्रात् अदण्डमाणव-अन्तेवासिषु 106 मयट अभक्ष-आच्छादने / पा०४।३।१२६,१३०। पा०४।३।१४३। 66 रैवतिकादिभ्यः छः / पा०४।३।१३१॥ 110 एकाचः / काशिका 4 / 3 / 144 / 67 कौपिञ्जल-हास्तिपदात् अण् / 111 छ / पा०४।३।१४४। पा०४।३।१३१ वा०१॥ 112 व्रीहेः पुरोडाशे / पा०४।३।१४८। 68 संघ-अङ्क-घोष-लक्षणेषु अञ यविनः। 113 तिल-यव-पिष्टात् असंज्ञायाम् / पा०४।३।१२७+वा० 1 // पा०४।३।१४६,१४६। 114 शरादिभ्यः / पा०४।३।१४४। 66 शाकलात् वा / पा०४।३।१२८।। 115 क्रीतवत् परिमाणात् / 100 वहेः तुः इट् च / पा०४।३।१५६। पा०४।३।१२० वा०८। 116 शम्याः ष्लञ् / पा०४।३।१४२। 101 आग्नीधं शरणे / 117 उष्ट्रात् वुञ् / पा०४।३।१५७। पा०४।३।१२० वा०६। 118 उमा-ऊर्णात् वा / पा०४।३।१५८ / 102 समिधः आधाने घेण्यण / 116 एणी-कोशात् ढञ् / प्रा०४।३।१२० वा०१०। पा०४।३।१५६। पा०४।३।४२ वा०१॥ 103 विकारे / पा०४।३।१३४। 120 पुरुषाद् वधे च / पा०५।१।१० वा०२। 104 वृक्ष ओषधिभ्यः अंशे च / / 121 हैयंगवीनं संज्ञायाम् / पा०४।३।१३५॥ - पा०५।२।२३+वा०१॥ 105 प्राणिभ्यः अञ् / 122 पयसः यत् / पा०४।३।१६० / पा०४।३।१५४,१३५ / 123 आप्यं वा० / पा०४।३।१४४२। 106 तालादिभ्यःअण् / पा० 4 / 3 / 152 / 124 द्रोः / पा०४।३।१६१॥ - 107 हेमार्थात् परिमाणे / 125 माने वयः / पा०४।३।१६२। 126 कांस्य-पारशवौ / पा०४।३।१६८। 108 अपु-जतुनोः षुक् / पा०४।३।१३८। 127 न द्विः / पा०४।३।१५५ भा० / [तृतीयस्य अध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः] पा०४।३।१५३imm .in.c-1 1. इदं सूत्रं त्वेवम् “नित्यं वृद्ध-शरादिभ्यः” तथापि तद्वत्तौ “एकाचो नित्यं मयटम् इच्छन्ति तद् अनेन क्रियते" इति निर्देशेन प्रस्तुतस्य चान्द्रस्य सूत्रस्य अस्मिन् सूत्रे समावेशः / / 2. अस्य सूत्रस्य वृत्तौ सिद्धान्तकौमुद्याम् एवं निर्देश:--"कथं तहि आप्यम् अम्मयम्? इति / . तस्येदम् पा०४।३।१२०। इति अणन्तात् स्वार्थे ष्य' अत्र च निदशे अस्य सूत्रस्य समावेशः / Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [चतुर्थः पादः] 1 प्राग् यतः ठक् / पा०४।४।१॥ 26 ओजस्-सहस्-अम्भसा वर्तते / 2 तेन जितं जयति दीव्यति खनति / पा०४।४।२७। पा०४।४।२। 27 तं प्रत्यनोः ईप-लोम-कूलात् / / 3 संस्कृते / पा०४।४।३। पा०४।४।२८॥ 4 कुलत्थ-कोपान्तात् अण् / 28 परेः मुख-पाश्र्वात् / पा०४।४।२६। पा०४।४।४। काशिका 4 / 4 / 26 / . 5 तरति / पा०४।४।५। 26 उञ्छति / पा०४।४।३२॥ 6 द्वयच-नौभ्यां ठन् / पा०४।४।७। 30 रक्षति / पा०४।४।३३॥ 7 चरति / पा०४।४।। 31 शब्द-दर्दरं करोति / पा०४।४।३४। 8 पर्पादिभ्यः ष्ठन् / पा०४।४।१०। 32 पक्षि-मत्स्य-मगान हन्ति / 6 श्वगणाद् वा / पा०४।४।११। पा०४।४।३५ 10 वेतनादिभ्यो जीवति / पा०४।४।१२। 33 परिपन्थ तिष्ठति च / पा०४।४।३६। 11 वस्न-क्रय-विक्रयात् ठन् / 34 माथान्त-पदवी-अनुपद-आक्रन्दं पा०४।४।१३। धावति / पा०४।४।३७,३८। 12 छश्च आयुधात् / पा०४।४।१४। 35 पदान्त-प्रतिकण्ठ-अर्थ-ललामं 13 वातात् खञ् / पा०५।२।२१। गृह्णाति / पा०४।४।३६,४० : 14 हरति उत्सङ्गादिभ्यः। पा०४।४।१५। 36 गये / पा०४।४।३०भा०। 15 भस्त्रादिभ्यः ष्ठन् / पा०४।४।१६। 37 वृद्धवृधुषः / पा०४।४।३० वा०३। 16 विवध-वीवधाद् वा / 38 दश-एकादश-कुसीदात् ष्ठन् / पा०४।४।१७+भा०। पा०४।४।३१॥ 17 अण् कुटिलिकायाः / पा०४।४।१८। 36 धर्म-अधर्म चरति / पा०४।४।४१+ 18 निवृत्ते अक्षयूतादिभ्यः। वा०१। पा०४।४।१६। 40 प्रतिपथमेति ठंश्च / पा०४।४।४२। 16 भावात् इमप् / पा०४।४।२०भा०। 41 समाजार्थान् समवैति / पा०४।४।४३। 20 H / पा०४।४।२०। 42 परिषदः ण्यः / पा०४।४।४४। 21 अपमित्य कक् / पा०४।४।२१॥ 43 सेनाया वा / पा०४।४।४५॥ 22 संसृष्टे / पा०४।४।२२। 44 लालाटिक-कौक्कुटिको। 23 चूर्णात् इनिः / पा०४।४।२३। पा०४।४।४६। 24 लवणात् लुक / पा०४।४।२४। 45 परदारादीन् गच्छति / 25 मुद्गात् अण् / पा०४।४।२५॥ पा०४।४।१ वा०४॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अं० 3, पा० 4, सू० 46-95] चान्द्रव्याकरणम् [33 46 सुस्नातादीन् पृच्छति / 72 अदेश-कालात् अधीते / पा०४।४।१ वा०३। पा०४।४।७१। 47 प्रभूतादीन आह। पा०४।४।१ वा०२। 73 कठिनान्त-प्रस्तार-संस्थानात् व्यवहरति। 48 माशब्द इत्यादिभ्यः / पा०४॥४॥७२॥ पा०४।४।१ वा०॥ 74 निकटादिषु वसति / पा०४।४।७३। 46 तस्य धर्म्यम् / पा०४।४।४७॥ 75 सतीर्थ्यः / पा०४।४।१०७। 50 ऋ-महिष्यादिभ्यः अण् / 76 प्राग हितात् यत् / पा०४।४।७५॥ पा०४।४।४६,४८। 77 तद् वहति युग-प्रासङ्गात् / 51 वैशस्त्र-वैभाजित्रे। पा०४।४।७६। - पा०४।४।४६, वा०२,३। 78 धुरः ढक् च / पा०४।४।७७। 52 अवक्रयः / पा०४।४।५।। 76 सर्व-उत्तर-दक्षिणादेः खः / पा०४।४।७८। काशिका 4 / 4 / 78 / 53 तदस्य पण्यम् / पा०४।४।५१। 54 लवणात् ठञ् / पा०४।४।५२। 80 एकादेर्लुक् च / पा०४।४।७६ / 55 किशरादिभ्यः ष्ठन् / पा०४।४।५३। 81 नाम्नि जन्याः / पा०४।४।८२। 82 विध्यति अकरणेन / 56 शलालुनो वा। पा०४।४।५४। पा०४।४।८३ वा०१५ 57 शिल्पम् / पा०४।४।५५। 58 मड्डुक-झर्झरात्-अण् वा / 83 धन-गणं लब्धा / पा०४।४।८४। पा०४।४।५६। 84 अन्नात् णः / पा०४।४।८५॥ 85 वशं गतः / पा०४।४।८६। 56 प्रहरणम् / पा०४।४।५७। 86 पदम् अस्मिन् दृश्यम् / 60 शक्ति-यष्टयोः टीकापा०४।४।५। पा०४।४।८७॥ 61 अस्ति नास्ति दिष्टमिति मतिः।। 87 मूलम् अस्य अदृढम् / पा०४।४।८८। पा०४।४।६०। 88 धेनुष्या-गार्हपत्यौ नाम्नि / 62 शीलम् / पा०४।४।६१॥ पा०४।४।८६,६०। 63 छत्वादिभ्यः णः / पा० 4 / 4 / 62 // 89 मूलेन आनाम्ये / पा०४।४।६१। 64 कर्म अध्ययने वृत्तम् / पा०४।४।६३। 10 वयसा च तुल्ये / पा०४।४।६१॥ 65 बह्वच-पूर्वपदात् ठच् / पा०४।४।६४॥ 61 नौ-तुला-विषैः तार्य-संमित-वध्येषु। 66 हिता भक्षाः। पा०४॥४॥६५॥ पा०४।४।११। 67 दीयते नियुक्तम् / पा०४।४।६६। 62 सीतया समिते / पा०४।४।६१। 68 ओदनात् ठट् / पा०४।४।६७। 63 धर्मेण प्राप्ये / पा०४।४।६१। 66 भक्ताद् अण् वा / पा०४।४।६८॥ 64 पथि-अर्थ-न्यायाच अनपेते / 70 तत्र नियुक्तम् / पा०४।४।६६। पा०।४।४।१२। . 71 अगारान्तात् ठन् / पा०४।४।७०। 65 छन्दसा निमिते / पा०४।४।६३। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [अ० 3, पा० 4, सू० 96-106. 16 उरसा अण् च / पा०४।४।१४। 102 भक्तात् णः / पा०४।४।१००। 67 हृदयस्य प्रिये / पा०४।४।६५। 103 परिषदः ण्यश्च / पा०४।४।१०१३ 98 मत-जनयोः करण-जल्पयोः / काशिका 4 / 4 / 101 // पा०४।४।१७। 104 कथादिभ्यः ठक् / पा०४।४।१०२। 66 हलस्य कर्षे / पा०४।४।६७। 105 पथि-अतिथि-वसति-स्वपतेः ढञ् / 100 तत्र साधुः / पा०४।४।१८। पा०४।४।१०४। 101 प्रतिजनादिभ्यः खञ् / 106 समानोदरे शयितः / पा०४।४।६।। पा०४।४।१०। [ तृतीयस्य अध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः ] [चान्द्रे व्याकरणे तृतीयः अध्यायः समाप्तः] Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [चतुर्थः अध्यायः, प्रथमः पादः] 1 प्राक् कोतात् छः / पा०५।१।१। 25 आत् i / पा०५।१।१६। 2 उ-गवादिभ्यः यत् / पा०५।१।२। 26 कंस-अर्थात् ठट् / 3 वा हविर्-यूपादिभ्यः / पा०५।१।४। पा०५।११२५+वा०१॥ 4 तस्मै हितम् / पा०५।१॥५॥ 27 कार्षापणात् / पा०५।१।२५ वा०२। 5 न राज-आचार्य-वृषन्-ब्राह्मणात् / 28 प्रतिर्वास्य / पा०५।१।२५ वा०२। काशिका 5 / 17 / 26 शूर्पात् अञ् / पा०५।१।२६।। 6 देहांशात् यत् / पा०५।१६। 30 सहस्र-वसन-विंशतिक-शतमानात् 7 खल-यव-माष-तिल-वृष-ब्रह्म-रथात् / __ अण् / पा०५।१।२७। पा०५।१७। 31 शतात् केवलात् ठन्-यतौ अतस्मिन् / 8 अज-अविभ्यां थ्यन् / पा०५।१८। पा०५।१।२१+वा०१॥ 6 भोगान्त-आत्मनः खः / पा०५।१।। 32 संख्याया अतिशतः कन् / 10 पञ्च-विश्वात् जनान्तात् तदर्थात् / पा०५।१॥२२॥ ___. पा०५।१६+वा०४। 33 कति-गणौ तद्वत् / पा०१।१।२३। काशिका 5 / 16 / 34 वतोः / पा०१।१।२३। 11 सर्वात् / पा०५।१६ वा०५॥ . 35 इड् वा / पा०५।१।२३ / 12 महतश्च ठञ् / पा०५।११९ वा०६। 13 सर्वात् णः वा / पा०५।१।१०+वा०१।। / 36 विशति-त्रिंशद्भयाम् / पा०५।१।२४+भा०। 14 पुरुषात् ढञ् / पा०५।१।१०। 15 माणक-चरकात् खब् / पा०५॥१॥११॥ है ,37 अनाम्नि ड्युन् / पा०५१॥२४॥ 2 // * 16 विकृतेः प्रकृतौ / पा०५।१।१२। 38 संख्या-अध्यर्धादेः संख्ययात् लुक् अद्विः। 17 ऋषभ-उपानहो ञ्यः। पा०५।१।१४। पा०५।१।२८+भा०। 18 चर्मणि अञ् / पा०५॥१॥१५॥ 36 कार्षापण-सहस्र-सुवर्ण-शातमानात् वा। 16 छदिर्-बलिभ्यां ढञ् / पा०५।१।१३। पा०५।२६+वा०१॥ 20 उपधेः / पा०५।१।१३। 40 द्वि-त्रि-बह्वादेनिष्क-विस्तात् / 21 तद् अस्य अत्र स्यादिति / पा०५।१।३०,३१+वा०२। पा०५।१।१६। 41 विंशतिकात् खः / पा०५।१।३२॥ 22 परिखाया ढञ् / पा०५।१।१७। 42 खारी-काकणीभ्यः ईकन् / 23 प्राग वतेः ठञ् / पा०५।१।१८। पा०५।१।३३+वा०१-३। 24 संख्यादेश्वालुकः। पा०५।१।२०वा०२॥ 43 पण-पाद-माषात् यत् / पा०५।११३४। . 1 काशिकायाम् अस्मिन् सूत्रे वृत्तौ एतस्य चान्द्रस्य सूत्रस्य समावेशः / Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् . [अ० 4, पा० 1, सू० 44-90 . 44 शताद् वा / 68 संभवति-अवहरति च / पा०५।१।५२। . पा०५।१।३४+३५ वा०१॥ 69 पात्र-आचित-आढकात् खो वा / 45 शाणात् / पा०५।१॥३५॥ पा० 5 // 1 // 53 // 46 द्वि-त्र्यादेः अण् च / पा०५।१॥३६॥ 70 संख्यादेः ष्ठंश्च / पा०५।११५४। 47 तेन क्रीतं मूल्यात् / पा०५।१।३७। 71 कुलिजात् वा / पा०५१॥५५॥ काशिका 5 // 1 // 37 // 72 वंशादिभ्यः हरति वहति आवहति 48 तस्य वापः / पा०५।१।४५॥ भारात् / पा०५।११५०।। 46 पात्रात् ष्ठन् / पा०५।११४६। 73 द्रव्य-वस्नात् कन्-ठनौ / 50 वात-पित्त-श्लेष्म-संनिपातात् शमन पा०५॥१॥५१॥ कोपने / पा०५।१।३८ वा० 1,2 / 74 अर्हति / पा०५।१।६३। / 51 निमित्ते संयोग-उत्पाते / 75 छेदादिभ्यः नित्यम् / पा०५।१।६४। . पा०५।११३८॥ __76 शीर्षच्छेदात् यच्च / पा०५॥१॥६५॥ . . 52 द्वयचः असंख्यापरिमाण-अश्वादेर्यत् / 77 यज्ञात् घः / पा०५।१७१। ___ पा०५॥१॥३६७८ पात्रात् यश्च / पा०।५।१।६८। 53 ब्रह्मवर्चसात् / पा०५।१।३६ वा० 1 // 76 दण्डादिभ्यः / पा०५।१।६६। 54 पुत्रात् छश्च / पा०५।११४०। 80 दक्षिणा-कडङ्गर-स्थाली-बिलात् छश्च / 55 पृथिवी-सर्वभूमेः अञ्-अणौ / . पा०५।११६६,७०। पा०५।१॥४१॥ 81 आत्विजीनः / पा०५।१।७१। 56 ईश्वरे / पा०५।१॥४२॥ 57 तत्र विदिते / पा०५।१।४३। 82 अधृष्ट-अकार्ययोः श्ालीन-कौपीने / 58 लोक-सर्वलोकात् / पा०५।१।४४। . पा०५॥२॥२०॥ 56 तद् अत्र अस्मै वृद्धि-आय-लाभ-शलक- 83 पारायण-तुरायण-चान्द्रायणं वर्तयति। उपदं दीयते / पा०५।१।४७+वा०१॥ - पा०५।१।७२। 60 पूरण-अर्धात् ठन् / पा०५॥१॥४८॥ 84 संशयमापन्नः / पा०५।११७३। 85 योजनं गच्छति / पा०५।१७४। 61 भागात् यच्च / पा०५।१।४६। 62 तद् अस्य परिमाणम् / पा०५।११५७। 86 कोश-योजनादेः शतात् अभिगमनाहे च / पा०५।१।७४ वा० 1,2 // 63 पश्चत्-दशत् वर्गे वा / पा०५।१।६०। 87 पथः ष्ठन् / पा०५।११७५॥ 65 त्रिंशत्-चत्वारिंशतः ब्राह्मणाख्यायां 88 णः पन्थश्च नित्यम् / पा०५।१७६। डण् / पा०५।११६२॥ 86 अज-शकु-उत्तर-वारि-जङ्गल६६ भृति-वस्न-अंशाः / पा०५॥१॥५६॥ कान्तारादिना आहृते च / 67 तत् पचति द्रोणात् अण् च / पा०५।१७७+वा०१,२॥ पा०५।११५२+वा०१॥ 60 स्थलादिना / पा०५।१७७ वा०१। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 4, पा० 1, सू० 91-135] चान्द्रव्याकरणम् 61 मधुक-मरीचयोः अण् / 113 तत्र दीयते / पा०५।१।६६। पा०५।१७७ वा०३। 114 कालात् कार्यं च भववत् / 62 कालात् / पा०५।१७८। पा०५।१६६+भा०। 63 तेन निवृत्तः / पा०५।११७६। 115 व्युष्टादिभ्यः अण् / पा०५।१।६७। 14 तस्मै भृतः अधीष्टः / 116 यथाकथाचात् णः / पा०५।१।१८। पा०५।१८०+वा०२। 117 तेन हस्तात् यत् / पा०५।१।६८। 65 तं भूतः भावी / पा०५।१८०। 118 शोभते / प।०५।१।६६। 116 कर्म-वेशात् यत् / पा०५।१।१००। 66 मासाद् वयसि यत्-खबौ / 120 तस्मै प्रभवति संतापादिभ्यः / . पा०५.१८१॥ पा०५।१११०१० 97 संख्यादेर्यप् / पा०५।१८२। 121 योगात् यत् च / पा०५।१।१०२। 68 षषो ण्यच्च वा / पा०५।११८३॥ 122 कर्मणः उकञ् / पा०५।१।१०३। 66 ठंश्चान्यत्र / पा०५।११८४। 123 सोऽस्य प्राप्तः समयात् / 100 समायाः खः / पा०५।११८५ पा०५।१११०४॥ 101 संख्यादेर्वा / पा०५॥१८६। 124 ऋत्वादिभ्यः अण् / 102 रात्री-अहः-संवत्सरात् / पा०५।१।१०५,६७ भा०। पा०५।११८७॥ 125 कालात् यत् / पा०५।१।१०७। 103 वर्षात् लुक् च / पा०५॥१८॥ 126 प्रकृष्टः / पा०५।१।१०८। 104 प्राणिनि / पा०५।१८६। 127 प्रयोजनम् पा०५।१।१०६। 105 तेन सुकर-कार्य-लभ्य-परिजय्यम् / 128 एकागारात् चौरे / पा०५।११११३। पा०५॥१६॥ 126 आकालात् ठंश्च / 106 तत् अस्य ब्रह्मचर्ये / पा०५।१।६४। पा०५।१।११४ वा०२। - 107 महानाम्न्यादीनाम् / 130 चूडादिभ्यः अण् / पा०५।१।१४ वा०१॥ पा०५।१।६७ भा०॥ 108 तत् चरति / पा०५।१।६४ वा०२। 131 विशाखा-आषाढात् मन्थ-दण्डयोः। 106 देवव्रतादिभ्यः डिनिः / पा०५।१।११०। पा०५।१।६४ वा०३। 132 उत्यापनादिभ्यः छः / 110 अष्टाचत्वारिंशतो ड्यूँश्च / पा०५।१।१११+वा०१। पा०५।१।६४ वा०४। 133 स्वर्गादिभ्यः यत् / 111. चातुर्मास्यात् यलोपश्च / पा०५।१।१११ वा०२॥ पा०५।१।६४ वा०५॥ 134 पुण्याहवाचनादिभ्यः लुक् / 112 तस्य दक्षिणा यज्ञेभ्यः / पा०५।१।१११ वा०३। पा०५।१।९५॥ 135 इवे वतिः / पा०५।१।११५,११६। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38]. चान्द्रव्याकरणम् [अ०४,पा०१,सू०१३६; पा०२,सू०१७ . 136 तस्य भावः त्व-तलौ / 145 प्राणिजाति-वयोऽर्थ-उद्गात्रादिभ्यः / पा०५।१।११। अञ् / पा०५।१।१२६ / 137 नबः अनन्यार्थे / पा०५।१।१२१॥ 146 हायनान्त-युवादिभ्यः अण् / . 138 चतुर-संगत-लवण-बड-बुध-कतर . पा०५।१११३०॥ सलसात् वा / पा०५।१।१२१॥ 147 लघोः इकः अकवेः / 136 पृथ्वादिभ्यः इमनिन् / पा०५।१११३१। काशिका पा०५।१।१२२॥ 5 / 1 / 131 / 140 वर्ण-दृढादिभ्यः ष्यञ् च / 148 योपान्तात् गुरूपोत्तमात् असुप्रख्याद् पा०५।१।१२३। वुञ् / पा०५।१।१३२। पा०२।४।५४ . 141 गुणवचन-ब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च। वा०४। पा०५।१।१२४। 146 चार्थसमास-मनोज्ञादिभ्यः / 142 सखि-दूत-वणिग्भ्यः यः / पा०५।१।१३३।. पा०५।१।१२६। काशिका 150 गोत्रचरणात श्लाघा-अधिक्षेप५।१।१२६। अवगतेषु / पा०५।१।१३४। 143 स्तेयम् / पा०५।१।१२५। 151 ऋत्विग्भ्यः छः / पा०५।१।१३५॥ 144 कपि-ज्ञात्योः ढक् / पा०५।१।१२७। 152 ब्रह्मणः त्वः / पा०५।१।१३६। [चतुर्थस्य अध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः] . [द्वितीयः पादः] 1 धान्येभ्यः क्षेत्रे खञ् / पा०५।२।१। 10 यथामुख-संमुखं दृश्यते अस्मिन् / . 2 व्रीहि-शालेः ढक् / पा०५।२।२। पा०५।२।६। 3 यव-यवक-पष्टिकात् यत् / 11 सर्वादिपथि-अंङ्ग-कर्म-पत्त-पात्रं 11 सर्वादिपाथ-अङ्ग व्याप्नोति / पा०५।२।७। पा०५।२।३। 4 वा तिल-माष-उमा-भङ्गा-अणुभ्यः / 12 आप्रपदं प्राप्नोति / पा०५।२।८। 13 अनुपदं बद्धा / पा०५।२।। पा०५।२।४। 14 अयानयं नेयः / पा०५।२।। 5 अश्वात् एकाहगमे खञ् / पा०५॥२॥१६॥ 15 सर्वान्नम् अत्ति / पा०५।२।६। 6 गोष्ठाद् भूते / पा०५।२।१८। 16 परोवर-परंपर-पुत्रपौत्रम् अनुभवति / पा०५।२।१०। 7 साप्तपदीनं सख्ये / पा०५।२।२२। 17 पारावार-अवारपार-अत्यन्त-अनुकामं 8 सर्वचर्मणा कृतः / पा०५।२।५। गामी / पा०५।२॥११॥ 6 खः / पा०५।२।। काशिका 5 // 2 // 11 // Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अं 4, पा० 2, सं० 18-61] चान्द्रव्याकरण 18 अनुग्वलम् / पा०५॥२॥१५॥ 40 हस्ति-पुरुषात् अण् च / 16 अध्वानं यच्च / पा०५।२।१६। पा०५।२।३८॥ 20 अभ्यमित्रं छश्च / पा०५।२।१७। 41 संख्यादेः संख्येयात् लुक् / 21 समांसमीन-अद्यश्वीन-आगवीनाः / पा०५।२।३७ भा०॥ पा०५।२।१२-१४॥ 42 शन्-शत्-शतेः डिनिर्वा / 22 अषडक्ष-आशितंगु-अलंकर्म-अलंपुरुष पा०५।२।३७ भा०। ___ अध्यन्तात् / पा०५।४।७। 43 यत्-तद्-एतदः वतुप् / पा०५॥२॥३६। 23 अदिशि अञ्चा वा / पा०५।४।। 44 इयत्-कियत् / पा०५।२।४०। 24 पोल्वादीनां पाके कुणप् / 45 कतिः संख्यायाम् / पा०५।२।४१॥ पा०५।२।२४। 46 अंशे संख्यायाः तयट् / पा०५॥२॥४२॥ 25 कर्णादीनां मुले जाहच / 47 द्वि-त्रिभ्याम् अयट् वा / पा०५।२।४३। पा०५।२।२४। 48 उभात् / पा०५।२।४४। 26 पक्षस्य तिः / पा०५।२।२५॥ 46 निमान-निमेययोः मयट् / 27 तेन वित्तः चुञ्चुप-चणपौ / पा०५।२।४७+वा०५॥ . पा०५।२।२६। 50 शति-शद्-दशान्ताद् अधिका अस्मिन् 28 विना नाना / पा०५।२।२७। शतसहस्रे डः / पा०५।२।४५+भा०। 26 वेः शालच-शङ्कटचौ। पा०५।२।२८। 51 तस्य पूरणे डट् / पा०५।२।४८। 30 सं-प्र-उत्-नेश्च कटच् / पा०५।२।२६। 52 विशत्यादिभ्यः तमट् वा / . :31 अवात् कुटारच्च / पा०५।२।३०। पा०५॥२॥५६। 32 नासानतौ टीट-नाटच्-भ्रटचः / 53 शतादिमास-अर्धमास-संवत्सरात् / पा०५॥२॥३१॥ पा०५।२।५७। .33 निबिड-निबिरीष-चिक-चिकिन- 54 षष्टयादेः असंख्यादेः / पा०५।२।५८। चिपिटाः / पा०५।२।३२,३३+वा० 1 // 55 नो मट् / पा०५।२।४६। 34 क्लिन्नचक्षुषि चिल्ल-पिल्ल-चुल्लाः / 56 षट्-कति-कतिपयात् थट् / पा०५।२।३३ वा०२+भा०। पा०५॥२॥५१॥ 35 उपत्यका-अधित्यके / पा०५॥२॥३४॥ 57 चतुरः / पा०५॥२॥५१॥ 36 कर्मणि घटते अठच् / पा०५।२।३५॥ 58 यत्-छौ चलोपश्च / 37 तत् अस्य संजातं तारकादिभ्यः इतच् / पा०५।२।५१ वा०१॥ पा०५॥२॥३६॥ 56 द्वितीय-तृतीयौ / पा०५।२।५४,५५॥ 38 माने मात्रट् / पा०५।२।३७। 60 बहु-पूग-गण-संघात् तिथट् / 36 ऊर्ध्व दघ्नट-द्वयसट् च / पा०५॥२॥५२॥ पा०५।२।३७+भा०। 61 वतोः इथट् / पा० 5 / 2 / 53 / mrri Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाव्याकरणम् [अ० 4, पा० 2, सू० 62-110 62 भागे अष्टमात् बो वा / 86 वटकात् इनिः। पा०५।२।८२ वा० 1 // पा०५।३।५०।। 60 साक्षात् द्रष्टा / पा०५।२।११।। 63 षष्ठात् / पा०५॥३॥५०॥ 61 श्राद्धमनेन अद्य भुक्तं ठंश्च / 64 माने कंश्च / पा०५॥३॥५१॥ पा०५।२।८५+वा०१॥ 65 तेन गृह्णातीति लुक् च / 62 पूर्वात् / पा०५।२।८६। पा०५।२७७ वा०२॥ 63 सपूर्वात् / पा०५।२।८७। 66 ग्रहणे वा / पा०५।२।७७। 64 इष्टादिभ्यः / पा०५।२।८। 67 एकाद् आकिनिच्च असहाये / 65 अनुपदी अन्वेष्टा / पा०५।२।६। पा०५॥३॥५२॥ 16 क्षेत्रियच् परक्षेत्रे चिकित्स्यः / 68 आकर्षादिषु कुशलः / पा०५।२।६४। पा०५।२।१२। 66 पथकः / पा०५।२।६३। 67 इन्द्रियम् / पा०५।२।६३। 70 धन-हिरण्ये कामः / पा०५।२॥६५॥ 18 तद् अस्य अस्ति अत्रेति मतुप् / . 71 स्वाङ्गेषु सक्तः / पा०५।२।६६। पा०५।२।६४। 72 औदरिकः अलसे / पा०५।२।६७। 66 प्राण्यङ्गात् आतो लच् वा / . 73 सस्येन परिजातः / पा०५।२।६८। - पा०५।२।९६+भा०। 74 अंशं हारी / पा०५।२।६६। 100 सिध्मादिभ्यः / पा०५।२।६७। 75 तन्त्रात् नवोद्धृते / पा०५।२।७०। 101 वत्स-अंसात् स्नेह-बलिनोः / 76 ब्राह्मणात् नाम्नि / पा०५।२।७१। . पा०५।२।१८। 77 उष्णात् / पा०५।२।७१। 102 फेनात् / पा०५।२।६६। 78 शीतात् च कारिणि / पा०५।२।७२॥ 103 पिच्छादिभ्यश्च इलच् / 76 अधिकम् / पा०५।२।७३। पा०५।२।१००, 66 / 80 अनुक-अभिक-अभीकं कमिता / 104 लोमादि-पामादिभ्यः श-नौ। पा०५।२।७४। पा०५।२।१००। 81 पार्वेन अन्विच्छति / पा०५।२७५। 105. प्रज्ञा-श्रद्धा-अर्चा-वृत्तिभ्यो णः / 82 अयःशूल-दण्डाजिनाभ्यां ठक् / . पा०५।२।१०१+वा०१॥ पा०५।२।७६। 106 तपः-सहस्राभ्याम् अण् / 83 सोऽस्य ग्रामणीः / पा०५।२७८। पा०५।२।१०३। 84 शृङ्खलं बन्धनं करभे / पा०५।२७६। 107 ज्योत्स्नादिभ्यः / पा०५।२।१०३ 85 उत्क उन्मनाः / पा०५।२।८०। वा० 2 / 86 काल-हेतु-फलात् नाम्नि / 108 सिकता-शर्कराभ्याम् / पा०५।२१८११ काशिका 5 / 2 / 81 // पा०५।२।१०४॥ 87 प्रायः अन्नमस्मिन् / पा०५।२।८२॥ 106 इलच् देशे। पा०५।२।१०५॥ 88 कुलमाषात् अण् / पा०५।२।८३। 110 दन्तुरः / पा०५।२।१०६। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 4, पा० 2, सू० 111-149] चान्द्रव्याकरणम् [41 111 ऊषादिभ्यः रः / पा०५।२।१०७॥ 130 हस्त-दन्तात् जातौ। पा०५।२।१३३। 112 धु-द्रुभ्यां मः / पा० 5 / 2 / 10 / 131 वर्णाद् ब्रह्मचारिणि / 113 केशादिभ्यो वः। ___ पा०५।२।१३४॥ ___पा०५।२।१०६+वा० १+भा०। 132 पुष्करादिभ्यो देशे। पा० 5 / 2 / 135 // 114 मेधा-रथात् इरः। 133 मन्-मात् नाम्नि / पा०५।२।१३७। पा०५।२।१०६ वा० 3 / 134 शिखादिभ्यः वा / पा०५।२।१३६। 115 काण्ड-अण्डात् ईरच् / 135 रूपात् आहत-प्रशस्ययोः यप् / पा०५।२।१११॥ पा०५।२।१२०॥ 116 कृष्यादिभ्यो वलच / / 136 हिमादिभ्यः / पा०५।२।११२। पा०५।२।१२० वा०१॥ 117 ज्योत्स्ना-तमिस्र-ऊर्जस्विन् 137 अस्-माया-मेधा-स्रजो विनिः / ऊर्जस्वल-मलीमसाः। पा०५।२।११४। पा०५।२।१२१॥ 118 नावादिभ्यः ठन् / पा० 5 / 2 / 116 138 आमयावी / ___ भा०। काशिका 5 / 2 / 116 // पा०५।२।१२२ वा०२॥ 116 व्रीह्यादि-अत इनिश्च / 136 वृन्दात् आरकन् / पा०५।२।११६, 115 // पा०५।२।१२२ वा०३। 120 नैकाचः / पा०५।२।११५ वा० 1 // 140 शङ्गात् / पा०५।२।१२२ वा०३। 121 सप्तम्याम् / पा०५।२।११५ भा०। 141 फल-बह-मलाच्च इनच् / 122 एक-गोपूर्वात् ठञ् / पा० 5 / 2 / 118 // पा०५।२।१२२ वा०४। 123 निष्कादेः शत-सहस्रात् / पा०५२०११४॥ पा०५।२।११६। 142 पर्व-मरुद्भयां तप् / ... 124 नवयज्ञादिभ्यः / पा०४।२।३५ पा०५।२।१२२ वा० 10 // वा० // 143 स्वामिन् ईशे / पा०५।२।१२६। 125 चार्थ-रोग-गहितात् प्राणिस्यात् / 144 गोमिन् पूज्ये / पा०५।२।११४॥ ___ अस्वाङ्गात् इनिः / पा०५।२।१२८। 145 वाचो ग्मिनिः / पा०५।२।१२४। काशिका 5 / 2 / 128 // 146 आलच्-आटचौ कुत्सायाम् / 126 वात-अतिसार-पिशाचानां कुक् च / पा०५।२।१२५+भा०। पा०५।२।१२६+भा०। 147 अर्शआदिभ्यः अच् / 127 वयसि पूरणात् / पा० 5 // 2 // 130 / पा०५।२।१२७॥ 128 सुखादिभ्यः / पा० 5 / 2 / 131 // 148 तुण्डि-बलि-वटेर्भः / . 126 धर्म-शील-वर्णान्तात् / पा०५।२।१३६। पा०५।२।१३२॥ 146 कं-शंभ्याम् / पा०५।२।१३८॥ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42]] चान्द्रव्याकरणम् [अ०४,पा०२,सू०१५०; पा० 3, सू० 24 150 ति-तु-व-यस्-ताः / पा०५।२।१३८। 156 गोसदादिभ्यः वुन् / पा०५।२।६२। 151 युस् / पा०५।२।१३८ / 157 निद्रा-तन्द्रा-श्रद्धा-दया-हृदयात् वा 152 ऊर्णा-अहं-शुभंभ्यः / / आलुच् / पा०३।२।१५८ / पा०५।२।१२२ वा०५। पा०५।२।१२३,१४०। 158 शीत-उष्ण-तृप्रं न सहते / पा०५।२।१२२ वा०६। पा०५।२।५६। 156 हिमं सहते चेलुः / / 154 अध्याय-अनुवाकयोः लुग् वा / पा०५।१।१२२ वा०७॥ . पा०५।२।६०+वा 01 // 160 बल-वातं चूलः / .155 विमुक्तादिभ्यः अण् / पा०५।२।६१। पा०५।२।१२२ वा०८,६। [ चतुर्थस्य अध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः ] 153 सूक्त-साम्नोः छः / [ तृतीयः पादः] 1 षष्ठ्याः व्याश्रये तस् / 13 सर्व-एक-अन्य-कि-यत्-तदः काले दा / पा०५॥४॥४८॥ पा०५।३।१५।। 2 रोगात् प्रतीकारे / पा०५।४।४। 14 सदा अधुना इदानीं तदानीम् / 3 क्षेप-अतिग्रह-अव्यथनेषु अकर्तरि __ पा०५॥३॥६,१७,१८,१६॥ तृतीयायाः / पा०५।४।४६। 15 कि-यद्-अन्याद् अनद्यतने हिल वा। 4 हीयमान-पापयुक्तात् / पा०५।४।४७। , पा०५॥३॥२१॥ 5 प्रतिना पञ्चम्याः / पा०५।४।४४॥ 16 तहि एतर्हि सद्यः परेद्यवि / 6 अवधौ अहाक होः / पा०५।४।४५॥ पा०५।३।२१,१६,२२॥ 17 पूर्व-अन्य-अन्यतर-इतर-अपर-अधर७ सर्वादि-बहुभ्यः अद्वयादिभ्यः / उत्तराद् एद्युस् / पा०५।३।२२ पा०३।२।७॥ (वा०६)। 8 कुतः अतः इतः / पा०३।३॥५॥ 18 उभयाद् धुश्च / पा०७।२।१०४। पा०५।३।२२ वा०६,७। 6 आधादिभ्यः / पा०५।४।४४ वा०१। 16 प्रकारे थाल् / पा०५।३।२३। 10 सप्तम्याः त्रल् / पा०५।३।१०। 20 धा संख्यायाः / पा०५॥३॥४२॥ 11 क्व कुत्र इह-अत्र / 21 षोढा वा / पा०६।३।१०६ वा०४॥ पा०५।३।१२,११,५,३। 22 ऐकध्यम् / पा०५।३।४४। 12 भवद्-दीर्घायुष्-आयुष्मत्-देवानांप्रियः 23 द्वि-वेर्धमुञ् / पा०५।३।४५॥ . ते अन्याभ्यश्च / पा०५।३।१४ भा०। 24 एधा / पा० 5 / 3 / 46 / Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 4, पा० 3, सू० 25-68] चान्द्रव्याकरणम् [43 25 तद्वति धण् / पा० 5 / 3 / 45 वा०१॥ 47 गुणात् ईयसुन्-इष्ठनौ च / 26 जातीयर् / पा०५।३।६६। पा०५।३।५८। 27 स्थूलादिभ्यः कन् / पा० 5 / 4 / 3 / 48 विन्-मतोलक / पा०५॥३॥६५॥ 28 दिक्शब्दाद् दिग-देश-कालार्थात 46 प्रशस्यस्य श्रः। पा० 5 / 3 / 60 / ___सप्तमी-पञ्चमी-प्रथमान्यः अस्तातिः। 50 वृद्धस्य च ज्यः / पा०५॥३॥६१,६२। पा०५॥३॥२७। 51 बाढ-अन्तिकयोः साध-नेदौ / 26 अञ्चो लुक् / पा०५॥३॥३०॥ पा०५।३।६३। 30 उपरि-उपरिष्टात् / पा० 5 / 3 / 31 / / 52 युव-अल्पयोः कन् वा। पा०५।३।६४। 31 पूर्व-अधरयोः पुर्-अधौ च / 53 तिङश्च रूपप् / पा०५।३।६६+वा०१॥ पा०५।३।४०। 54 किञ्चिदूने कल्पप्-देश्य-देशीयरः / 32 अस् / पा०५।३।३। / पा०५।३।६७॥ 55 प्राग् ढञः कः / पा०५।३।७०। 33 अवरस्य अन् / पा०५॥३॥३६॥ 56 तिङ-असंख्यानाम् अचः अत्यात् पूर्वः 34 वा अस्ताति / पा०५॥३॥४१॥ अकच् / पा०५।३।७१। काशिका 35. पश्चात् / पा० 5 / 3 / 32 // . 5 / 3 / 71 / 36 पश्चार्धम् / पा० 5 / 3 / 32 वा०४। 57 कश्च दः / पा०५।३।७२। 37 पर-अवरात् तस् वा / पा०५।३।२६। 58 तूष्णीकाम् / पा० 5 / 3 / 72 वा० 1 / 38 दक्षिण-उत्तरात् आच्च / 56 शीले तूष्णीकः / पा०५॥३॥७२ पा०५।३।३६,२८,३८। वा०२। 36 आहि च दूरे / पा०५।३।३७,३८। 60 सर्वादीताम् / पा०५।३।७१। . 40 अधरात् चात् / पा० 5 / 3 / 34 / 61 सुपः / पा०५।३।७२ भा०। 41 एनप् अदूरे वा / पा०५॥३॥३५॥ 62 अज्ञात-कुत्सयोः / पा०५।३।७३,७४। 42 निन्द्ये पाशप् / पा०५।३।४७। 63 दयायाम् / पा०५।३।७६। 43 भूतपूर्वे . चरट् / पा०५।३।५३। 64 नृनाम्नि ठच-घन्-इलचो वा / 44 षष्ठयाः रूप्य च / पा०५॥३॥५४॥ पा०५।३।७८,७६। 45 द्वि-बहुषु प्रकर्षे तरप्-तमपौ / 65 डश्च उपात् / पा०५।३।८०। पा०५॥३॥५७,५५। 66 षषः / काशिका 5 // 3 // 831 // 46 किम्-ए-तिङ-असंख्यात् आमन्तौ 67 ऋतः ल-यौ / काशिका 5 // 3 // 832 / ___ . अद्रव्यं / पा०५।४।११। 68 उदन्तात् / काशिका 5 / 3 / 83 / - 1 " कथं षडङ्गुलिदत्तः षडिकः ? इति"। “षषः ठाजादिवचनात् सिद्धम् " / इत्येवमस्य सूत्रस्य वृतौ अस्य चान्द्रस्य सूत्रस्य नामग्राहं समावेशः / / 2 अस्मिन् सूत्रे पितृदत्तः पितृकः इत्यादिके उदाहरणे अस्य चान्द्रस्य समावेशः / 3. काशिकायाम् अस्मिन् सूत्र "उवर्णात् ल इलस्य च" इति वातिके अस्य चान्द्रस्य अन्तर्भावः तथा च तद्विषया कारिकाऽपि अत्रैव सूत्रे -- * " चतुर्थादनजादौ च लोपः पूर्वपदस्य च / अप्रत्यये तथैवेष्ट: उवर्णात् ल इलस्य च // " Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44] चान्द्रव्याकरणम् [अ०४, पा० 3, सू० 69, पा०४, सू०६ 66 अल्पे / पा०५॥३॥८॥ 82 कुशाग्रात् छः / पा०५।३।१०५॥ , 70 ह्रस्वे / पा०५।३।८६। 83 आकस्मिके / पा०५।३।१०६।। 71 कुटी-शमी-शुण्डाभ्यः रः / 84 शर्करादिभ्यः अण् / पा०५।३।१०७। पा०५।३।८८॥ 85 अङ्गुल्यादिभ्यः ठक् / पा०५।३।१०८। 72 कुतुपः / पा० 5 / 3 / 06 / 86 एकशालायाः ठच्च / पा०५।३।१०६। 87 कर्क-लोहितात् ईकक् / 73 कासू-गोणीभ्यां ष्टरच् / पा०५।३।११०। पा०५।३।१०। 88 पृगात ज्यः / पा०५।३।११२।। 74 वत्स-उक्ष-अश्व-ऋषभाणां तनुत्वे / वाताद् अस्त्रियाम् / पा०५।३।११३। . पा०५॥३॥६१॥ 10 बाहीकेषु अब्राह्मण-राजन्यात् . 75 यत्-तद्-एकात् द्वाभ्यां निर्धारणे / ___ शस्त्रजीविसंघात् ज्यट् / / डतरच पा०५।३।६२,६४ / पा०५॥३।११४। 76 जातौ डतमच् बहुभ्यः / 61 वृकात् णेण्यट् / पा०५।३।११५॥ पा०५।३।६३,६४। 62 दामन्यादिभ्यः छः। पा०५॥३॥११६। 77 तौ किमः / पा०५॥३॥६२,६३। 63 पश्वादिभ्यः अण् अस्त्रियाम् / 78 इवे संज्ञा-प्रतिकृत्योः / . पा० 5 / 3 / 117 // पा०५।३।६६,६७। 64 ञ्यादीनां बहुषु लुक् / 76 वस्तेः ढञ् / पा०५।३।१०१। पा०५।३।११। पा०२।४।६२। 80 शिलायाः ढश्च / पा०५।३।१०२॥ 65 अभिजित्-विदभृत्-शालावत् .. काशिका 5 / 3 / 102 // शिखावत्-शमीवत्-ऊर्णावत्-श्रुमद्भवः 81 शाखादिभ्यः यः / पा०५॥३॥१०३। अपत्याणः यञ् / पा०५।३।११८॥ [चतुर्थस्य अध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः] [चतुर्थः पादः] 1 बहु-अल्पार्थात् कारकात् मङ्गले शस् 4 दण्ड-दानयोः / पा० 5 / 4 / 2 / वा / पा०५।४।४२+वा०१॥ 5 वारसंख्यायाः कृत्वसुच् / 2 संख्या-एकार्थात् वीप्सायाम् / पा०५४॥१७॥ पा०५॥४॥४३॥ 6 बहोः धा च अविप्रकर्षे / 3 संख्यादेः वुन् / पा० 5 / 4 / 1 / पा०५॥४॥२०॥ 1 काशिकायाम् अत्र सूत्रे (5 / 3 / 114) 'वाहीकेषु' इति / Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 4, पा० 4, सू० 7-39] चान्द्रव्याकरणम् [45 7 द्वि-त्रि-चतुरः सुच् / पा० 5 / 4 / 18 / 26 भागात् यत् च / 8 सकृत् / पा० 5 / 4 / 16 / पा० 5 / 4 / 362 वा०२॥ 6 प्रकृते मयट / पा०५।४।२१॥ 27 सूर-मर्त-क्षेम-यविष्ठात् / . 10 अनन्त-आवसथ-इतिह-भेषजात् व्यः। पा०५॥४॥३६ 3 वा०७,८। पा० 5 / 4 / 23 / 28 नवात् / पा०५।४।३६ वा०७। 11 तीयात् ईकग न विद्या चेत् / 26 नप-तन-खा न च / पा०४।२।७१। भा। पा०५।४।३० वा०६॥ 12 यावादिभ्यः कन् / पा०५।४।२६। 30 प्रात पुराण नश्च / 13 लोहितात् मणौ / पा० 5 / 4 / 30 / पा०५॥४॥३०५ वा०७॥ 14 रक्त-अनित्ययोः। पा०५।४।३१,३२॥ 31 देवतान्तात् तदर्थे यत् / 15 कालात् / पा०५।४।३३। पा०५॥४॥२४॥ 16 क्तात् अनात्यन्तिके / पा०५।४।४।। 32 अर्घात् / पा०५।४।२५। 17 विनयादिभ्यः ठक् / पा०५।४।३४। 33 पाद्यम् / पा०५।४।२५॥ 18 वाचः संदेशे / पा०५॥४॥३५॥ काशिका 54 / 35 34 अतिथेः ण्यः / पा०५॥४॥२६॥ . (“वाचो व्याहृतार्थायाम्') 35 अभूततद्भावे कृ-भू-अस्तियोगे - 16 तथा कर्मणः अण् / पा०५॥४॥३६॥ विकारात् च्विः। पा०५।४।५०+ * 20 ओषधेः अजातौ / पा०५।४।३७। वा०१॥ 21 णच्-इनुणः / पा०५।४।१४,१५॥ 36 अरुघ्-मनस्-चक्षुष्-चेतस्-रहस्-रजसां 22 प्रज्ञादिभ्यः वा / पा०५।४।३८। लोपश्च पा०५।४।५१। 23 मृदः तिकन् / पा० 5 / 4 / 36 / 37 अभिविधौ संपदा च सातिर्वा / . 24 स-स्नौ स्तुतौ / पा०५।४।४०। पा०५।४।५३,५२॥ 25 नाम-रूपात् धेयः / 38 तदधीने / पा०५॥४॥५४॥ पा० 5 / 4362 वा०२। 36 देये त्रा च / पा०५॥४॥५५॥ 1 काशिकायाम् . 4 / 2 / 8 / सूत्र " तीयात् ईकक् स्वार्थे वा वक्तव्यः" "न विद्यायाः" इत्येवं वार्तिकद्वयम / तथा च तत्रैव कारिका -- “दृष्टे सामनि जाते च द्विरण् डिद् वा विधीयते। तीयात् ईकक् न विद्यायाः गोत्रादङ्कवदिष्यते" / / . 2 काशिकायाम् 5 / 4 / 25 / सूत्रे “भाग-रूप-नामभ्यो धेयः प्रत्ययो वक्तव्यः' इति वार्तिकम् / 3 अत्रापि 5 / 4 / 25 / काशिकायां वार्तिकम् / 4 अत्रापि काशिकायाम् 5 / 4 / 25 / सूत्रे वार्तिकम् :-- " नवस्य नू आदेशः त्ना-तनप् 5 अत्रापि काशिकायाम् 5 / 4 / 25 सूत्रे वार्तिकम् :-- " नश्च पुराणे प्रात्” / Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [अ० 4, पा० 4, सू० 40-75 / 40 देवादिभ्यः द्वितीया-सम्तम्योः बहुलम्। 6. प्रति-अनु-अवात् साम-लोम्नः।। - पा०५।४।५६। पा०५।४।७५। 41 अव्यक्तानुकरणात् अनेकाचः अनितौ 61 अक्ष्णः अचक्षुषः / पा०५।४।७६। डाच् / पा०५।४।५७। 62 धेन्वनडुह-ऋग्यजुष-अक्षिभ्रुव४२ कृया द्वितीय-तृतीय-शम्ब-बीजात् दारगव-ऊर्वष्ठीव-पदष्ठीव-नक्तंदिव कृषौ / पा०५।४।५८। रात्रिदिव-अहदिव-सरजस-पुरुषायुष४३ संख्यादेर्गुणात् / पा०५।४।५६। द्वयायुष-त्र्यायुष-जातोक्ष-महोक्ष४४ समयात् यापनायाम् / पा० 5 / 4 / 60 / वृद्धोक्ष-उपशुन-गोष्ठश्वाः / 45 सपत्त्र-निष्पत्त्रात् अतिव्यथने / पा०५।४।७७। पा०५।४।६१॥ 63 ब्रह्म-हस्ति-राज-पल्यात् वर्चसः / 46 निष्कुलात् निष्कोषणे। पा०५।४।६२। पा०५।४।७८+भा०। 47 प्रिय-सुखात् आनुकूल्ये। 64 सम्-अव-अन्धात् तमसः / पा०५।४।६३। पा०५॥४॥७६ 48 दुःखात् प्रातिकूल्ये / पा०५।४।६४॥ 65 श्वसो वसीयसः। पा०५।४।८०। 46 शूलात् पाके / पा०५॥४॥६५॥ 66 निसश्च श्रेयसः / पा०५।४।८०,७७। 50 सत्यात् अशपथे / पा०५।४।६६।। 67 तप्त-अनु-अवात् रहसः / 51 मद्र-भद्रात् वपने। पा०५।४।८१॥ पा०५॥४॥६७।+भा०। 68 प्रतेः उरसः आधारात् / त्। 52 समासान्तः / पा०५॥४॥६८। पा०५।४।८२॥ 53 न किमः क्षेपे / पा०५।४।७०। / / पा०५।४।७०। 69 अनुगवम् आयामे / पा० 5 / 4 / 83 // 54 पूजायां सु-अतेः प्राग् अन्यात् / 70 द्विस्तावा त्रिस्तावा वेदिः। पा०५।४।६६ वा० 1,2 / पा०५।४।८४॥ 55 नत्रः अनन्यार्थे / पा०५।४।७१। 71 प्रादिभ्यः अध्वनः / पा० 5 / 4 / 85 // 56 पयः वा / पा० 5 / 4 / 72 / __ 72 पाण्डु-उदक्-कृष्णाद् भूमेः।। 57 पुर्-अप्-धुरश्च अनक्षस्य अच् / काशिका 5 / 4 / 75 / / पा०५।४।७४। 73 संख्याया नदी-गोदावर्योश्च / 58 ऋचः / पा०५।४।७४। काशिका 5 / 4 / 75 / 56 नञ्-बहोः माणव-चरणयोः / 74 असंख्याञ्च अडगुलेः अनन्यासंख्यार्थे / काशिका 5 / 4 / 74 / वा० ("अनुचो . पा०५।४।८६। माणवको ज्ञेयः, बह वृचः चरणा- 75 अहः-सर्व-एकदेश-संख्यात-पुण्य-वर्षा ख्यायाम् ") / दीर्धाच रात्रैः / पा०५।४।८७। 1. अत्र च कारिका -- "कृष्ण-उदक्-पाण्डुपूर्वायाः भूमेः अच् प्रत्ययः स्मृतः। गोदावर्याश्च नद्याश्च संख्याया उत्तरे यदि // " Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 4, पा० 4, सू० 76-114] चान्द्र व्याकरणम् [47 76 सखि-अहर्-राज्ञां टच / पा०५।४।६१॥ 67 अङगुलेरिणि / पा०५।४।११४॥ 77 गोः अलुकि अचार्थे / पा०५।४।६२॥ 68 द्वि-त्रिभ्यां मूर्ध्नः / पा०५।४।११५॥ 78 उरसः अग्रे / पा० 5 / 4 / 63 / 66 अप् पूरण्याः तासु / 76 अनस्-अश्म-अयः-सरसां जाति पा०५।४।११६+वा०१॥ नाम्नोः / पा०५।४।६४। 100 प्रमाण्याः / पा०५।४।११६। 80 ग्राम-कौटात् तक्ष्णः / पा०५।४।६५। 101 अन्तर्-बहिर्त्या लोम्नः / 81 अतेः शुनः। पा०५।४।६६। पा०५।४।११७॥ 82 उपमानात् अप्राणिनि।पा०५।४।६७। 102 नक्षत्रात् नेतुः / 83 मृग-पूर्व-उत्तराच्च सक्थ्नः / पा०५।४।११६ वा०२॥ ___पा०५।४।६८। 103 नत्र -सु-वि-उप-त्रेः चतुरः अच् / 84 संख्या-अर्धात् नावः एकार्थात् / पा०५।४।७७+वा०१॥ पा०५।४।६६,१००। 104 नाभेः / पा०५।४।७५१। 85 खार्या वा / पा०५।४।१०१॥ 105 सुप्रात-सुश्व-सुदिव-शारिकुक्ष८६ द्वि-त्रिभ्याम् अञ्जलेः। पा०५।४।१०२। चतुरश्राः / पा०५।४।१२०॥ 87 कु-महद्भयांब्रह्मणः / पा०५।४।१०॥ 106 नज-सु-दुर्व्यः सक्थ्नो वा / 88 जनपदात / पा०५।४।१०४। पा०५।४।१२१॥ 86 चार्थे चु-द-ष-ह: समाहारे। 107 प्रजाया असिच् / पा०५।४।१२२। पा०५।४।१०६। 108 मन्द-अल्पाच्च मेधायाः / 60 शरदादिभ्यः असंख्यार्थे / पा०५।४।१२२॥ पा० 5 / 4 / 107 / 106 नाम्नि नासाया नसः अस्थूलात् / 61 अनः / पा०५।४।१०८। पा०५।४।११८॥ .62 नपुंसकात् वा / पा०५।४।१०६। 110 प्रादिभ्यः / पा०५।४।११।. 63 गिरि-नदी-पौर्णमासी-आग्रहायणी- 111 वे नः / पा०५।४।११६ भा०। . झयः / पा० 5 / 4 / 110-112 // 112 खुर-खरात् नस् वा / 94 निसः शतोडच् / पा० 5 / 4 / 73 वा०१॥ पा०५।४।११८ भा०। 65 संख्याया अबहोः अन्यार्थे / 113 धर्मात् अनिच् केवलात् / पा०५।४।७३। पा०५।४।१२४। 66 सक्थि-अक्ष्णः स्वाङ्गात् षच / 114 सु-हरित-तृण-सोमात् जम्भात् / पा०५।४।११३॥ पा०५।४।१२५॥ 1 अत्र सूत्रे काशिकायाम् " अन्यत्रापि च दृश्यते / पद्मनाभः ऊर्णनाभः दीर्घपात्रः समरात्रः अरात्रः / तदेतत् सर्वमिह योगविभागं कृत्वा साधयन्ति" इत्येवं निर्देशे अस्य चान्द्रस्य समावेशः / Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48] चान्त्रव्याकरणम् [अ० 4, पा० 4, सू० 115-148 115 दक्षिणेर्मा लुब्धयोगे / 133 अग्रान्त-शुद्ध-शुभ्र-वृष-वराह-अहि पा०५।४।१२६। मूषिक-श्याव-शिखर-अरोकात् वा / 116 इच् व्यतिहारे / पा०५।४।१२७। पा०५।४।१४५,१४४। काशिका 117 द्विदण्ड्यादीनि / पा०५।४।१२८। 5 / 4 / 145,144 // 118 भृति-मासात् ठच / 134 ककुत् ककुदस्य अवस्थायाम् पा०५।४।११६ वा०४। पा०५।४।१४६। 116 सं-प्रात् जानुनो ज्ञः / 135 त्रिककुत् पर्वते / पा०५।४।१४७।। पा०५।४।१२६। 136 वि-उदः काकुत काकुदस्य। 120 ऊर्ध्वात् वा / पा०५।४।१३०। पा०५।४।१४८।। 121 धनुर्नाम्नि / पा०५।४।१३३। 137 पूर्णात वा / पा०५।४।१४६। 122 जायाया निङ / पा०५।४।१३४। 138 सुहृद्-दुहृदौ मित्र-अमित्रयोः / 123 सु-उत्-पूति-सुरभेः गन्धस्य इत् / पा० 5 / 4 / 150 पा०५।४।१३५। 136 उरोभ्यः कप् / पा०५।४।१५१॥ 124 आगन्तोर्वा / पा०५।४।१३५ वा०१॥ 140 इनः स्त्रियाम् / पा०५।४।१५२। 125 अल्पे / पा०५।४।१३६। 141 डी-ऊङ-ऋतः अभ्रवः। 126 उपमानात् / पा०५।४।१३७।। पा०५।४।१५३॥ 127 पादस्य पात् अहस्त्यादिभ्यः / 142 शेषात् वा / पा०५।४।१५४। / पा०५।४।१३८॥ 143 न नाम्नि / पा०५।४।१५५॥ 128 कुम्भपद्यादयः / पा०५।४।१३६। 144 ईयसः / पा०५।४।१५६। 126 सु-संख्यादेः / पा०५।४।१४०। 145 उयः ईत् / पा०५।४।१५६ वा०१॥ 130 वयसि दन्तस्य दतृ / / 146 स्तुतौ भ्रातुः / पा० 5 / 4 / 157 / पा०५।४।१४१॥ 147 नाडी-तन्त्र्योः स्वाङ्गे। 131 षोडन् / पा०६।३।१०६ वा०३।। पा०५।४।१५६। 132 स्त्रीनाम्नि / पा०५।४।१४३। 148 निष्प्रवाणिः / पा०५।४।१६०। [चतुर्थस्य अध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः ] [चान्द्रे व्याकरणे चतुर्थः अध्यायः समाप्तः] Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [पञ्चमः अध्यायः, प्रथमः पादः] 1 सन्-यङोः आद्यम् एकाच् द्विः। 18 वशः तिङशिति अपिति / पा०६।१।६,१॥ पा०६।१।१६। 2 चङ-लिटोः / पा०६।१।११,८। 16 व्यचः अणिति अनसि / 3 आद्यात् अचः / पा०६।१।२। पा०६।१।१६,१७ वा०४। 4 न न्द्वो हलि / पा०६।१।३। 20 किति तेषाम् / पा०६।१।१५। काशिका 6 / 1 / 3 / 21 लिटि अश्वेद्विरुक्ते / पा०६।१।१७। 22 ग्रहि-प्रछोः सनि / पा०१।२।। 5 अयि रः। पा०६।१।३१। 6 पुनः। 23 स्वपः / पा०१।२।। 7 ईय॑ः यिः सन् वा। 24 चङि / पा०६।१।१८। पा०६।१।३ वा०२+भा०। 25 यङि / पा०६।१।१६। 8 सुपो यथेष्टम् / पा०६।१।३ भा०। 26 व्ये-स्यमोः / पा०६।१।१६। 6 दाश्वान् साह्वान् मीढ्वान् चिक्लिदं 27 चायः कीः / पा०६।१॥२१॥ 28 प्रे स्त्यः त-तवतोः / पा०६।१।२३। चक्नसम् / पा०६।१।१२+वा० ५+भा०। 26 स्पर्श-द्रवमूत्योः श्यः। पा०६।२४। 10 चराचर-चलाचल-पतापत-वदावद- 30 प्रतः / पा०६।११२५॥ ___घनाघन-पाटूपटा वा / 31 वा अभि-अवात् / पा०६।१।२६। पा०६।१।१२ वा०६-८। 32 स्फायः स्फीः / पा०६।१।२२॥ . 11 ष्यङः प्रधानस्य पुत्र-पत्योः स्वयोः 33 शृतं क्षीर-हविषोः / ___ इक् यणः / पा०६।१।१३। पा०६।११२७+भा०। 12 बन्धौ अन्यार्थे / पा०६।१।१४। 34 प्यायः पीः / पा०६।१॥२८॥ 13 मात-मातृक-मातृषु. वा। 35 आङः अन्धु-ऊधसोः / पा०६।१।१४ भा०। पा०६।१।२८ वा०१॥ 14 वचि-स्वपि-यजादीनां लिटि अपिति / / 36 लिट्-यडोः / पा०६।१।२६। पा०६।१।१५। पा०११२५॥ 37 वा श्वेः / पा०६।१॥३०॥ 15 अहि-व्यधोः / पा०६।१।१६। __ 38 णौ सन्-चङोः / पा०६॥१॥३१॥ 16 शिन्डितोः / पा०६।१।१६। 36 ह्वः / पा०६॥१॥३२॥ पा०११२।४। 40 द्वित्वे / पा०६।१।३३। 17 ज्या-वश्व-प्रछ-भ्रस्जाम् / स्जाम / 41 न तस्मिन् / पा०६।१।३७। पा०६।१।१६। 42 लिटि / पा०६।१॥३८॥ 1. काशिकायाम् अस्मिन् सूत्र “यकारपरस्य रेफस्य प्रतिषेधो न भवतीति वक्तव्यम्" इत्येवं निर्देशे अस्य चान्द्रस्य समावेशः / Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 5, पा० 1, सू० 43-96 . 43 वयो यः। पा०६॥१॥३८॥ 72 दीर्घस्य / पा०६।१।७५॥ 44 वेः अपिति वा / पा०६।१।३६,४०। 73 पदान्तस्य वा / पा०६।११७६। . 45 लयपि च / पा०६॥१॥४१॥ 74 इकः यण अचि / पा०६।११७७। 46 ज्यः। पा०६।११४२। 75 एचः अय्-अव-आय-आवः / 47 व्यः। पा०६।१।४३। पा०६।१७८॥ 48 परेर्वा / पा०६।११४४। 76 यि परे अव-आवौ / पा०६।१।७। 46 एचः अशिति आत / पा०६॥१॥४५॥ 77 धातोस्तत्रैव / पा०६।११८०। .. 50 अलिटि व्यः / पा०६।१।४६। 78 गव्यू तिः अध्वमाने / 51 स्फुरि-स्फुलोजि / पा०६।१।४७। पा०६।११७६ वा०३। 52 दीङः अक्ङित्सनि लयपि / 76 शक्ये क्षि-ज्योः अय् / पा०।६।११८१॥ पा०६।१।५।। 80 क्रियः क्रयाथें / पा०६।११८२॥ 53 मि-म्योः अखल्-अचि / 81 द्वयोः एकः / पा०६।१।८४। पा०६।११५०+वा०२। 82 आत् अदेड / पा०६।१८७. .. 54 लियो वा / पा०६॥१॥५१॥ 83 आदैजेवाद्यटः / पा०६।१।६। 55 अपगुरो णमुलि / पा०६।१।५३।। 84 एचि / पा०६।१।८८। 56 चि-स्फुरोः णौ / पा०६।१।५४। 85 इण-एधोः / पा०६।१८६। 57 प्रजने वियः। पा०६॥१॥५५॥ 86 ऊठि / पा०६।१८६। 58 भियः प्रयोजकात् / पा०६।११५६। 87 अक्षात् ऊहिन्याम् / 56 स्मेश्च / पा०६।११५७। पा०६।१८९वा०३। 60 क्री-इङ-जीनाम् / पा०६।१।४८॥ 88 स्वात् ईर-ईरिणोः / 61 अष्ठिवु-ध्वक्कादेः षः सः / पा०६।११८६ वा०५॥ पा०६।१।६४+वा०१॥ 86 प्रात् ऊढ-ऊढि-एष-एष्येषु / / 62 णः नः / पा०६।१॥६५॥ पा०६।१।८६ वा०४। 63 यः वलि लोपः। पा०६।१।६६। 60 ऋते तृतीयासमासे / पा०६।११८६ वा०६। 64 वेः अनचः / पा०६।१।६७। 61 प्र-दश-ऋण-वसन-कम्बल-वत्सरात् 65 हलः ति-सिपः / पा०६।१।६८। ऋणे / पा०६।१।८६ वा०७,८। 66 सोः / पा०६।१।६८। 62 ओतः अम्-शसोः आत् / 67 ङी-आपो दीर्घात् / पा०६।१।६८।। पा०६११६३ 68 एड-ह्रस्वात् संबुद्धौ अतः। 13 प्रादीनाम् ऋति धातौ / पा०६।११६६+वा०१॥ पा०६।१।६१॥ 66 ह्रस्वस्य अतिङि पिति तुक / 14 वा सुपि लुति च / पा०६।६७१॥ पा०६।११६२। काशिका 6 / 1 / 62 // 70 छ / पा०६।११७३। 65 एङि पररूपम् / पा०६।१।६४। 71 आङ-माङः / पा०६।११७४। 66 अनियोगे एवे। पा०६।११६४ वा०३। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 5, पा० 1, सू० 97-142] चान्द्रव्याकरणम् [51 67 ओष्ठ-ओत्वोः समासे वा। _ 123 न प्लुतः अनितौ / पा०६।११६४ वा०५। पा०६।१।१२५,१२६। 18 शकन्ध्वादयः / पा०६।१।६४ वा०४॥ 124 क्वचिद् वा / पा०६।१।१३०। 66 ओम्-आङोः / पा०६।१।६५॥ 125 ईत्-ऊत्-एत् द्विवचनम् / 100 उसि अनादौ / पा०६।१।६६। पा०६।१।१२५। पा०११११११॥ 101 अतः अदेङि / पा०६।११६७।। 126 अमू अमी / पा० 111 / 12 / 102 अव्यक्तानुकरणस्य अनेकाचः अतः 127 अच् अनाङ / पा०१।१।१४। इतौ / पा०६।१।६८+वा०१॥ 128 ओत् / पा० 111 // 15 // 103 न द्वित्वे / पा०६।१।१६। 126 सौ वा इतौ / पा०१।१।१६। 104 तः वा / पा०६।१।६६। . 130 उन / पा० 111 / 17 / 105 डाचि पूर्वस्य / पा०६।१।६६ वा० 1 // 131 ॐ / पा०१।१।१८॥ 106 अकः अकि दीर्घः / पा०६।१।१०१। 32 कः असस्थाने हस्वश्च असमासे / 107 ऋति ऋतः ऋर्वा / पा०६।१।१२७+वा०१। पा०६।१।१०१ वा०१॥ 133 ऋतलति अकः / पा०६।१।१२८। 108 लृति लः / पा०६।१।१०१ वा०२॥ 134 एतत्-तदोः सुलोपः अकोः 106 प्रथमयोः अचि / पा०६।१।१०२।। अनञ्समासे हलि / पा०६।१।१३२। 110 ततः शसो नः पुंसि। पा०६।१।१०३। 135 दिवः अन्ते च उत् / पा०६।१।१३१॥ 111 न आत् इचि / पा०६।१।१०४। 112 दीर्घात् जसि च / पा०६।१।१०५॥ काशिका 6 / 1 / 131 // 113 अमि पूर्वः / पा०६।१।१०७। 136 सं-परेः कृत्रः सुट / पा०६।१।१३७,१३५॥ 114 यण्इकः / पा०६।१।१०८। 137 उपात् भूषण-समवाय-यत्न-वैकृत्य११५ एङः अति पदादौ। पा०६।१।१०। अध्याहारेषु / पा०६।१।१३७,१३६। 116 सि-डसोः / पा०६।१।११०। 138 किरः लवने / पा०६।१।१४०। 117 ऋतः उत् / पा०६।१।१११॥ 136 हिंसायां प्रतेश्च / पा०६।१।१४१। 118 सख्युः पत्युः / पा०६।१।११२। 140 अपात् चतुष्पात्-शकुनिषु हृष्ट११६ हशि च अतः रोः / __अन्न-कुलायाथिषु / पा०६।१।१४२+ ... पा०६।१।११३,११४। वा०१॥ 120 गोः ओ वा / पा०६।१।१२२॥ 141 अपरस्पराः सातत्ये / 121 अचि अवङ / पा०६।१।१२३। / पा०६।१११४४। * 122 अक्ष-इन्द्रे / पा०६।१।१२४। 142 पारस्करादीनि नाम्नि। . काशिका 6 / 1 / 124,123 // पा०६११११५७॥ . [पञ्चमस्य अध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः] Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [द्वितीयः पादः] 1 अलुग उत्तरपदे / पा०६।३।१॥ 22 पुढे / पा०६।३।२५ वा०१॥ 2 पञ्चम्याः स्तोकादिभ्यः / पा०६।३।२। 23 देवतानाम् अवायूनां वेदे सह 3 ब्राह्मणाच्छंसी / पा०६।३।२ वा० 1 // श्रुतानाम् / पा०६।३।२६+ वा०१+ 4 खिति इच एकाचः अमः / भा। पा०६।३।६। 24 न आदैचि अग्नेरविष्णौ / 5 ओजस्-सहस्-अम्भस्-तपस्-अञ्जसः पा०६।३।२८+वा०१॥ तृतीयायाः / पा०६।३।३+वा०१॥ 25 सोम-वरुणयोः ईत् / पा०६।३।२७। 6 मनसो नाम्नि / पा०६।३।४। 26 दिवः द्यावा / पा०६।३।२६। 7 आज्ञायिनि / पा०६।३।५। 27 दिवस्पृथिव्यां वा / पा०६।३।३०। 8 पुम्-जनुाम् अनुज-अन्धयोः। काशिका 6 / 3 / 30 / पा०६।३।३ वा०२। 28 उषासा उषसः / पा०६।३।३१। '' 6 आत्मनः पूरणे / पा०६।३।५ वा०१॥ 26 स्त्रियां पुंवत् उक्तपुंस्कम् अनूङ एकार्थे 10 नाम्नि पराच चतुर्थ्याः। स्त्रियाम् अप्रधानपूरणी-प्रियादौ।। पा०६।३७,८॥ पा०६।३।३४+वा०८। 11 सप्तम्या बहुलम् / पा०६।३।१४।। 30 प्रसूता-प्रजाता-भिण्यः / 12 षष्ठ्या आक्रोशे / पा०६।३।२१॥ पा०६।३।३४ भा०। 13 पुत्र वा। पा०६।३।२२॥ 31 त्र-तस्-तर-तम-चरट्-कल्पप्-देश्य१४ वाग्-दिक्-पश्यद्भयः युक्ति-दण्ड रूपप्-पाशप्-शस्-थ्यन्-क्यड-मानिषु / हरेषु / पा०६।३।२१ वा०१॥ पा०६।३।३५ वा०१-५,८,६। पा०६।३।३६। 15 अदसः फग्-वुनोः।। __32 यचि अणादौ / पा०६।३।३५ वा०११। पा०६।३।२१ वा०२+भा०। 16 शुनः शेफ-पुच्छ-लाङगूलेषु नाम्नि / 33 ढे अग्नायी। पा०६।३।३५ वा० ११+भा०। पा०६।३।२१ वा०४। 34 न त्यादि-वु-कोपान्तम् / 17 दिवो दासे / पा०६।३।२१ वा०५।। 1०६।३।३७+वा०१। 18 ऋतः विद्या-योनिसंबन्धात् तत्र / 35 संज्ञा-पूरण्योः / पा०६।३।३८। पा०६।३।२३+वा०१॥ 36 अच आदज्झेतुः अरक्त-विकारे / 16 स्वसृ-पत्योर्वा / पा०६।३।२४। पा०६।३।३६। 20 मातर-पितरौ चार्थे / पा०६।३।३२॥ 37 स्वाङ्गात् ईत् अमानिनि / 21 भातः तत्र-आनङ / पा०६।३।२५॥ पा०६।३।४०+वा०१॥ 1 आदच: हेतुः आदेच्-हेतुः इति पदविभागः / Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [53 rao अ० 5, पा० 2, सू० 38-81] चान्द्रव्याकरणम् 38 जातिः अष्फादौ च / पा०६।३।४१॥ 62 यति अवर्णे / पा०६।२।६३ 36 पुंवत् स्वपदार्थ-जातीय-देशीयेषु / वा०२+भा०॥ पा०६।३।४२॥ 63 शिरसः शीर्षन वा। 40 त्व-तलोर्गुणः। पा०६॥३॥३५ वा०१०। पा०६।१।६१+वा०२॥ 41 सर्वादयः वृत्तिमात्रे / पा०६॥३॥३५॥ 64 शोषः अचि / पा०६।१।६१ वा०३। 65 नाम्नि उदकस्य उदः / 42 तर-तम-रूप-कल्प-चेलट्-ब्रुव-गोत्र पा०६।३।५७॥ ____ मत-हते ङ्यो ह्रस्वः / पा०६।३।४३। 66 उत्तरस्य / पा०६।३।५७ वा०१॥ 43 वा एकाचः / पा०६।३।४४। 67 वास-वाहने / पा०६।३।५८। 44 उगितः / पा०६।३।४५॥ 68 पेषे पिषौ / पा०६॥३॥५८। 45 ऊङः / पा०६।३।४४। 66 एकहलादौ भाण्डे वा / पा०६।३।५। 46 आत् महतः जातीय-एकार्थयोः 70 मन्थ-ओदन-सक्तु-बिन्दु-वज्र-भारअच्व्यर्थे / पा०६।३।४६+भा०। हार-वीवध-गाहेषु / पा०६।३।६०। 47 घास-कर-विशिष्ट पुंवच्च / 71 इको हस्वः / पा०६।३।६१। ___पा०६।३।४६ वा०१॥ 72 न विडीयण-इयुवाम् अभ्रकुं४८ इचि / पा०६।३।१३७। / सादीनाम् / पा०६।३।६१ वा०३। 46 नाम्नि अष्टनः / पा०६।३।१२५॥ पा०६।३।६१+भा०। 50 कपाले हविषि / पा०६॥३॥४६ वा०२। 73 डी-आपोस्तु अनाम्नोर्बहुलम् / 51 गवि युक्ते / पा०६।३।४६ वा०३। पा०६।३।६३,६४। 52 द्वेश्च संख्यायां प्राक् शतात् अनन्यार्थ- 74 इष्टका-इषीका-मालानां चित-तूलअशोत्योः / पा०६।३।४७+भा०। भारिषु / पा०६।३।६५। 53 H त्रयस् / पा०६।३।४८। 75 खिति ससंस्यस्य मुम् च / * 54 चत्वारिंशदादौ वा / पा०६।३।४६। . पा०६।३।६६,६७। 55 हृदयस्य अणि हृत् / पा०६३॥५०॥ 76 अरुषः / पा०६॥३॥६७। 56 लेखे / पा०६।३।५०। 77 कारे अस्तु-सस्य-अगदस्य / 57 लास-यतोः / पा०६।३।५०। पा०६।३१७०+वा०१५ 58 पादस्य आजि-आति-ग-उप-हते पदः। 78 लोकस्य पृणे / पा०६।३।७० वा०४। पा०६॥३॥५२॥ 79 इत्ये अनभ्याशस्य / 56 हिम-हति-काषि-ष्ठन्-यति पद् / / पा०६।३।७० वा०५। पा०६।३।५३,५४,५३ वा० 1 // 80 भ्राष्ट्र-अग्न्योः इन्धे / 60 ऋचः शि / पा०६।३।५५। पा०६।३।७० वा०६। 61 नस् नासिकायाः तस्-क्षुद्रे / 81 अगिलस्य गिले / पा०६।१।६३ वा०२। पा०६१३१७० वा०७॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 5, पा० 2, सू० 82-121 82 भद्र-उष्णयोः करणे / 104 नाम-गोत्र-रूप-स्थान-वर्ण-वयस्पा०६।३।७० वा०८। वचन-धर्म-जातीये वा / 83 मध्यस्य दिने / पा०६॥३॥८५॥ काशिका 6 // 3 // 84 / 84 श्येन-तिलयोः पाते थे। 105 उदरे ये / पा०६।३।। पा०६।३।७१। 85 रार्धातौ वा / पा०६।३।७२। 106 हग्-दृश-दृक्षे / 86 धेनोभव्यायाम् / पा०६।३।८६+वा०१॥ . पा०६।३।७० वा०३। 107 वतौ च इदम्-किमोः ईश-की। 87 मांसस्य पचि घञ्-लयुटोर्लोपः / / पा०६।३।८६,९० काशिका 61144 // 108 आः सर्वादीनाम् / पा०६।३।। 88 समः तते / पा०६।१।१४४१ वा०१। 106 विष्वग्-देवयोश्च डद्रिगाश्च वौ। 86 तुमश्च काम-मनसोः / पा०६।३।१२। पा०६।१।१४४१ वा०२+भा०। 110 समः समिः / पा०६।३।६३। . . 60 तव्यादिषट्के अवश्यमः / 111 सहस्य सध्रिः / पा०६॥३॥६५॥ पा०६।१।१४४१ वा०३। 112 तिरसः तिरि अति / पा०६।३।६४। 61 नञः नः / पा०६।३।७३। 113 द्वि-अन्तर्-प्रादेः अनात् अपः ईत् / 62 तिङि अवक्षेपे / पा०६।३।७३ वा० 1 // पा०६।३।१७+भा०। 63 ततः अचि नुट् / पा०६।३।७४। 114 देशे अनूपः / पा०६।३।६८।। 64 एकात् अन्न-अद्नौ संख्यायाम् / 115 समापः नाम्नि / पा०६।३७६+भा०। पा०६।३।६७ वा०१॥ 65 नखादयः / पा०६।३।७५। 116 छ-कारके अन्यस्य दुक् / 16 नगः अप्राणिनि वा / पा०६।३।७७। पा०६।३।६। 67 सहस्य सः अन्यार्थे / पा०६।३।८२ 117 अषष्ठी-तृतीयस्य आशीर्-आशा९८ नाम्नि / पा०६।३७८। __आस्था-आस्थित-उत्सुक-ऊति६६ अनुपाख्ये / पा०६।३।८०। रागेषु / पा०६।३।६६। 100 अकाले स्वार्थे / पा०६।३।८१॥ 118 अर्थे वा / पा०६।३।१००। 101 ग्रन्थान्ताधिक्ये / पा०६।३७६। 116 कोः कत् अचि उत्तरार्धे / 102 न आशिषि अगो-वत्स-हले / पा०६।३।१०१॥ पा०६।३।८३ + वा० 1 + भा०। 120 त्रि-रथ-वदेषु / .. 103 समानस्य पक्षादिषु / पा०६।३।८५, पा०६।३।१०२,१०१ वा० 1 / 86 / काशिका 6 / 3 / 84 // 121 तृणे जातौ / पा०६।३।१०३। 1 अत्र काशिकायाम् इथं कारिका -- "लुम्पते अवश्यमः कृत्ये तुम्-काम-मनसोरपि। समो वा हित-ततयोः मांसस्य पचि-युट्-घनोः"। ति Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०५,पा०२,सू०१२२; पा०३,सू०१३] चान्द्रव्याकरणम् 122 का- अक्ष-पथोः / पा०६।३।१०४। 135 वले / पा०६।३।११८॥ 123 ईषदर्थे / पा०६।३।१०५॥ 136 चितेः कपि / पा०६।३।१२७॥ 124 पुरुष वा / पा०६।३।१०६। 137 ठूलोपे अणः / पा०६।३।१११॥ 125 कवङ च उष्णे / पा०६।३।१०७। 138 सहि-वहोः ओत् / पा०६।३।११२॥ 126 दिक्शब्दात् तीरस्य तारः / पा०६।३।१०६ वा०॥ 136 कर्ण चिह्नस्य अविष्ट-अष्ट-पञ्च१२७ पृषोदरादीनि / पा०६।३।१०। भिन्न-च्छिन्न-च्छिद्र-व-स्वस्तिकस्य / 128 संख्या-वि-सायादेः अह्नस्य अहन् पा०६।३।११५॥ 140 नहि-वृति-वृषि-व्यधि-रुचि-सहिङौ वा / पा०६।३।११०।। 126 विश्वस्य वसु-राटोः दीर्घः / __ तनिषु क्वौ / पा०६।३।११६। 141 प्रादीनां घजि बहुलम् / . पा०६।३।१२८ / / पा०६।३।१२२॥ 130 नरे नाम्नि / पा.०६।३।१२।। 142 इकः काशे / पा०६।३।१२३। 131 ऋषौ मित्रे / पा०६।३।१३०।। 143 दः ति / पा०६।३।१२४। 132 वन-गिर्योः कोटर-अञ्जनादीनाम् / पा०६।३।११७।। 144 वहे / पा०६।३।१२१॥ 133 मतौ बह्वचः अनजिरादीनाम / 145 अन्येषामपि / पा०६।३।१३७। पा०६।३।११। 146 चौ / पा०६।३।१३८। 134 शरादीनाम् / पा०६।३।१२०। 147 यण इकः / पा०६।३।१३६। . [पञ्चमस्य अध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः] [ तृतीयः पादः] - 1. प्रकृतेः / पा०६।४।१। 6 अप्-तृ-स्वसृ-नप्त-नेष्ट-त्वष्ट-क्षत्तु२ हलः / पा०६।४।२। होतृ-पोतृ-प्रशास्तृणाम् / 3 अलुकि / पा०६।४।११॥ 4 नामि अतिस-चतस्रोः / 10 सौ असंबुद्धौ / पा०६।४।८। पा०६।४।३,४। 11 अतु-असोः / पा०६।४।१४।। 5 नुर्वा / पा०६।४॥६॥ 12 इन-हन्-पूष-अर्यम्णां शौ च / 6 नः / पा०६॥४७॥ पा०६।४।१२,१३। 7 शि-सुटि / पा०६।४।। 13 अच्-हनोः सनि झलि / 8 स्-महतोमि / पा०६।४।१०। पा०६।४।१६,१५॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [अ० 5, पा० 3, सू० 14-63 14 इङो गमः / पा०६।४।१६+वा०१॥ 36 मो वा / पा०६।४।३७ वा०२।। 15 तनो वा / पा०६।४।१७। 37 झलि तिङि अपिति / . 16 क्रमः त्वि / पा०६।४।१८। पा०६।४।३७। पा०१।२।४। 17 बमः किति वौ च / पा०६।४।१५। 38 क्ङिति / पा०६।४।३७। 18 अमि च च्छ्-वोः शूठ / 36 जन-सन-खनाम् आत् / पा०६।४।४२॥ पा०६।४१६। 40 सनि / पा०६।४।४२।। 16 ज्वर-त्वर-अव-श्रिव-मवांसोपान्तस्य। 41 ये वा / पा०६।४।४३। पा०६।४।२०। 42 तनो यकि / पा०६।४।४।। 20 रात् लोपः / पा०६।४।२१। 43 सनः क्तिचि लोपश्च / पा०६।४।४५॥ 21 प्राग्युवोः अवुगयुग असिद्धं समाना- 44 लिङि तङि गमः / पा० 1 // 2 // 13,11 // श्रये / पा०६।४।२२+वा० 12,14 / 45 सिचि / पा० 112 / 13 / .. 22 इनान्नः / पा०६।४।२३। 46 हनः / पा० 112 / 14 / . 23 हलः अनिदितः किति उपान्तस्य / . 47 यमः सूचने / पा० 1 / 2 / 15 // पा०६।४।२४। 48 वा उद्वाहे / पा०१।२।१६। 24 शिति अपिति / पा०१।२।४। 46 गमादीनां क्वौ। पा०६॥४॥४०+भा०। 25 लिटि इन्धि-श्रन्थ-ग्रन्थाम् / 50 न अश्चः पूजायाम् / पा०६।४।३०। पा० 1 / 2 / 6 / काशिका 1 / 2 / 6 / 51 क्तिचि दीर्घश्च / पा०६।४।३।। 26 दम्भः स्सनि च / काशिका 1 / 2 / 11 / 52 क्त्वि स्कन्द-स्यन्दोः। पा०६॥४॥३१॥ 27 स्वञ्जः / पा०१।२।६। काशिका 53 सेटि / पा० 1 // 2 // 18 // 112 / 6 / 54 वञ्चि-लुम्चि-थ-फो वा / 28 शपि दंश-सञ्जश्च / पा०६।४।२५॥ पा०१।२।२४,२३॥ 26 रञ्जः / पा०६।४।२६। 55 ज-नशः / पा०६॥४॥३२॥ 30 णौ मगरमणे / पा०६।४।२४ वा०३। 56 भञ्जेः चिणि / पा०६।४।३३। 31 घबि भाव-करणयोः / पा०६।४।२७। 57 शासः क्ङिति शिस् / पा०६।४।३४। 32 स्यदो जवे / पा०६।४।२८। 58 तिङि हलि अपिति / पा०१॥२॥४॥ 33 अवोद-एध-ओद्म-प्रश्रय-हिमश्रथाः। 56 शा हो / पा०६॥४॥३५॥ . पा०६।४।२६। 60 हनो जः / पा०६।४।३६। 34 लङ्गि-कम्प्योः उपताप-शरीर- 61 लिट्-आशीलिङ-अतिङशिति / विकारयोः / पा०६।४।२४ वा०१॥ पा०६।४।४६। 35 तनादिअनिट्-वनां ल्यपि अमः / 62 भ्रस्जो भर्ज वा / पा०६।४।४७। पा०६।४।३७,३८। 63 लोपः अतः / पा०६॥४॥४८॥ 1 अत्र काशिकायाम् सूत्रवृत्ती “दम्भेर्हल्ग्रहणस्य जातिवाचकत्वात् सिद्धम् - धीप्सति, धिप्सति" इति निर्देशः / Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 5, पा० 3, सू० 64-111] चान्द्रव्याकरणम् [57 64 यकिं / 86 कारक-असंख्यात् ओश्च सुपि 65 य-प्य हलः / पा०६।४।४६। असुधियः / पा०६।४।८३,८५। 66 क्यस्य वा / पा०६।४।५०। काशिका 6 / 4 / 83 // 67 णेः अनिटि / पा०६॥४॥५१॥ 60 वर्षा-दन्-पुनः-कारात् भुवः / 68 त-तवति इटि / पा०६।४।५२। पा०६।४।८४+भा०। 66 अय् आम्-अन्त-आलु-आय्य-इत्नुषु / 61 हु-श्नुवोः अलिटि / पा०६।४।८७। पा०६॥४॥५५॥ 62 भुवः वग लुङ-लिटोः / पा०६।४।८८। 70 लयपि लघोः / पा०६।४।५६। 63 ऊद् गोहः अचः / पा०६।४।८६। 71 आपः वा / पा०६।४।५७। 64 दुषः णौ / पा०६।४।१०। 72 क्षेः क्षोः / पा०६।४।५। . 65 वा चित्ते / पा०६।४।६१॥ 73 उपदेशे अच्-हन-ग्रह-दृग्भ्यः स्य-सिच- 66 गम-जन-खन-घसां ले लोपः अपिति / ___सीयुट्-तासां भाव-आप्ययोः चिण्वत् पा०६।४।१८। इट् वा / पा०६।४।६२॥ 7 किति च हनः / पा०६।४।१८। 74 दीङः लिटि युक् ।पा०६।४।६३। 18 ह-झलः अनिटः हेः धिः / 75 लोपः अचि क्ङिति च आतः / पा०६।४।१०१+वा०१॥ पा०६४।६४। 76 ईद् यति / पा०६॥४॥६५॥ 66 अतः लुक् / पा०६।४।१०५॥ 77 मा-स्था-सा-गा-पिब-हाग-दा-धांहलि। 100 उतः असंयोगात् अधातोः / पा०६।४।६६। पा०६।४।१०६। 78 लिङि एत् / पा०६।४।६७। 101 वाऽस्य व्-मोः / पा०६।४।१०७। 76 वा संयोगादेः अस्थः / पा०६।४।६। 102 कृतः ये च / पा०६।४।१०८,१०६। * 80 न ल्यपि / पा०६।४।६६। _ 103 अत उत् तत्रापिति / 81 मेङः इद् वा / पा०६।४।७०। पा०६।४।११०॥ 82 लुङ-लडा-लडाक्षु अट् अमाङयोगे। 104 श्न-सोर्लोपः। पा०६।४।१११॥ पा०६।४।७१,७४। 105 श्ना-द्विरुक्तयोः आतः / 83 अचि नु-धातु-ध्रुवां य-वोः इय्-उवौ। पा०६।४।११२॥ पा०६।४७७॥ 106 ई हलि तिङि अदा-धः / 84 द्वित्वे पूर्वस्य असमे / पा०६।४।७८॥ पा०६।४।११३। 85 स्त्रियाः / पा०६।४।७। 107 इद् दरिद्रः / पा०६।४।११४। 86 वा अम्-शसोः / पा०६।४।८०। 108 भियो वा / पा०६।४।११५॥ 87 इणः यण् / पा०६।४।८१॥ 106 हाकः / पा०६।४।११६। 88 एः असंयोगात् अनेकाचः / 110 हो वा / पा०६।४।११७। पा०६।४।८२। 111 यि लोपः / पा०६।४।११८॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 28 58] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 5, पा० 3, सू० 112-157 112 दरिद्रः किति / 134 अचः / पा०६।४।१३८। पा०६।४।११४ वा०१। 135 उदः ईत् / पा०६।४।१३। 113 अचि अयुवौ / पा०६।४।११४भा०। 136 आतः / पा०६।४।१४०। 114 लुङि वा ।.पा०६।४।११४ वा०३। 137. विंशतेडिति तेः / पा०६।४।१४२।। 115 अस्-दा-धां हौ एत् अद्विश्च। 138 अन्त्याऽजादेः / पा०६।४।१४३। पा०६।४।११६। 136 नः अणादौ / पा०६।४।१४४। . 116 लिटि अनादेशादेः एकहलमध्ये 140 कलाप्यादीनाम् / अतः / पा०६।४।१२०॥ . पा०६।४।१४४ वा०१-५॥ 141 अह्नः खे / पा०६।४।१४५। / 117 थलि इटि / पा०६।४।१२१।। 142 असर्व-असंख्य-एकदेशात् टे। 118 तु-फल-भज-त्रयः / पा०६।४।१२२॥ पा०५।४।८६,८८॥ 116 राधः हिंसायाम् / पा०६।४।१२३। 143 समाहारे / पा०५।४।८। .. 120 वा ज़-भ्रम-त्रसाम् / 144 एकात् / पा०५।४।१०। पा०६।४।१२४। 145 अन्तिकस्य तमे तादेः / 121 फणादीनां सप्तानाम् / पा०६।४।१४६ वा०६। पा०६।४।१२५॥ 146 कादेर्बहुलम् / 122 दम्भ-श्रन्थ-ग्रन्थाम् / पा०६।४।१४६ वा०८। पा०६।४।१२० वा०५। काशिका 147 ओः ओत् / पा०६।४।१४६। . 1 / 2 / 6 / 148 ढे / पा०६।४।१४७। 123 मनि-पचि-मचा नाम्नि / 146 यस्य / पा०६।४।१४८। 124 नशः अङि / पा०६।४।१२० भा०। 150 डयाम् / पा०६।४।१४८। / 125 न शस-दद-वादि-अदेङाम् / 151 मत्स्यस्य यः / पा०६।४।१२६। 106 / 4 / 146 वा०५॥ 126 यचि अशि-सुटि / पा०६।४।१२६। 152 हलः यत्रादेः / पा०६।४।१५०। 127 पादः पत् / पा०६।४।१३०। 153 सूर्य-अगस्त्ययोः छे च / 128 वसोर्व उत् / पा०६।४।१३१।। पा०६।४।१४६ वा०६। 126 श्र-युवन-मघोनाम् अनणादौ / 154 तिष्य-पुष्ययोर्नक्षत्रे अणि / पा०६।४।१३३+वा० 1 // ___पा०६।४।१४६ वा०७॥ 130 अल्लोपः अनः / पा०६।४।१३४। 155 आपत्यस्य अनाति अणादौ / 131 षपूर्व-हन-धृतराज्ञाम् अणि / प।०६।४।१५१ पा०६।४।१३५॥ 156 क्य-व्योः / पा०६।४।१५२। 132 डि-श्योर्वा / पा०६।४।१३६॥ 157 बिल्वकीयादीनाम् ईयः / 133 न संयोगात् व-मः।पा०६।४।१३७। पा०६।४।१५३। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ५,पा० ३,सू० 158; पा० ४,सू० 14] चान्द्रव्याकरणम् 158 इष्ठ-इम-ईयस्सु अन्त्याऽजादेः। 168 अभाव-कर्मणोः अनो ये / / पा०६।४।१५४,१५५।। पा०६।४।१६८॥ 156 स्थूल-दूर-युव-क्षिप्र-क्षुद्राणां यणा- 166 अणि / पा०६।४।१६७। देवोः एङ च / पा०६।४।१५६। 170 कर्मणः अशीले / पा०६।४।१७२। 160 बहोः एः भू च / पा०६।४।१५८। 171 मात् वर्मणः अपत्ये / पा०६।४।१७०। 161 इष्ठे यि च / पा०६।४।१५६। 172 हितनाम्नो वा / 162 ज्यायान् / पा०६।४।१६०। पा०६।४।१७० वा०१। 163 प्रिय-स्थिर-स्फिर-उरु-गुरु-बहुल 173 ब्रह्मणो जातौ / पा०६।४।१७१। तृप्र-दीर्घ-हस्व-वृद्ध-वृन्दारकाणां प्र 174 उक्ष्णः / पा०६।४।१७३। स्थ-स्फ-वर-गर-बंह-त्रप-द्राघ-ह्रस् 175 संयोगात् इनः असमूहे / वर्ष-वृन्दाः / पा०६।४।१५७,१५६।। पा०६।४।१६६। काशिका 164 रः ऋतः पृथु-मृदु-कश-भृश-दृढपरिवृढानाम् / पा०६।४।१६१+ 176 गाथि-विदथि-केशि-गणि-पणिनाम् / पा०६।४।१६५। 165 नैकाचः / पा०६।४।१६३॥ 177 अनपत्ये च / पा०६।४।१६४। 166 अके राजन्य-मनुष्य-यूनाम् / / 178 दाण्डिनायन-हास्तिनायन पा०६।४।१६३ वा०३। जैह्माशिनेय-वासिनायनि-भ्रौण१६७ आत्म-अध्वनोः खे / हत्य-धैवत्य-सारव-ऐक्ष्वाकपा०६।४।१६६। हिरण्मयानि / पा०६।४।१७४। [पञ्चमस्य अध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः] भा०॥ [चतुर्थः पादः] 1 युवोः अन-अकौ असः / पा०७।१।१॥ 7 ऋत इत् धातोः / पा०७।१।१००। 2 आयन-एय-ईन्-ईय्-इयः फ-ढ-ख-छ-घां 8 उपान्तस्य / पा०७।१।१०१। फाद्यादीनाम् / पा०७।१।२। 6 उत् ओष्ठ्यात् / पा०७।१।१०२। 3 ठस्य इकः / पा०७।३।५०। 10 इदितः नुम् / पा०७।१।५८। 4 इस्-उस्-उग्-दोर्यः कः / 11 शे मुचादीनाम् / पा०७॥१॥५६ पा०७।३।५१+भा०। 12 नशः झलि / पा०७।१।६०। 5 तः अशश्वतः / पा०७॥३॥५१॥ 13 मस्जः अन्त्यात पूर्वः / 6 अनसमासे क्त्वः ल्यप् / पा०७।११६०। काशिका 7 // 1 // 60 / पा०७।१।३७। 14 जभः अचि / पा०७।११६१॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60] चान्द्र व्याकरणम् [अ० 5, पा० 4, सू० 15-64 15 रधः / पा०७।१।६१॥ 40 थः न्थः / पा०७।११८७। 16 इटि लिटि / पा०७।१।६२॥ 41 इनः अचि लोपः / पा०७।१।८८। 17 रभः अशप-लिटोः / पा७।१।६३। 42 पुंसः असुङ / पा०७।१८६। 18 लभः / पा०७।१।६४। 43 गोः औः स्वार्थे / पा०७।१।६०। 16 आङो यि / पा०७।१।६५। 44 सख्युः अशौ ऐत् / पा०७।१।६२। 20 उपात् स्तुतौ / पा०७।११६६। 45 ऋत्-उशनस्-पुरुदंशस्-अनेहसां चानङ 21 प्रादिभ्यः खल-घनोः। पा०७।१।६७। सौ / पा०७।१।६३,६४। 22 न सु-दुरः केवलात् / पा०७।१।६८। 46 न संबुद्धौ / पा०७।१।१२। 23 चिण-णमोः अप्रादेर्वा / 47 वा उशनसः / काशिका 7 / 1 / 64 / पा०७।१।६६+वा०१॥ 48 क्रुशस्तुनः तृच् / पा०७॥१॥६५॥ 24 पुंसुटि उगितः / पा०७।१।७०। 46 स्त्रियाम् / पा०७।१।६६। 25 अञ्चः / पा०७।१७०। 50 चतुर्-अनडुहोः आम् / पा०७।१।१८। 26 युजेः असमासे / पा०७।११७१। 51 अम् सौ संबुद्धौ / पो०७।१।६। 27 शौ अयमः / पा०७।१।७२। 52 अष्टनः वा सुपि. आत् / 28 बहूजि बहूनि / पा०७।१।७२ पा०७।२।८४। काशिका 7 / 2 / 4 / ___वा०४,५॥ 53 रायः हलि / पा०७।२।८५॥ 26 इकः अचि सुपि / पा०७।१।७३। 54 युष्मद्-अस्मदोः अनादेशे / 30 उक्तपुंस्कस्य रादौ वा / पा०७।२।८६॥ . पा०७।१।७४। 55 औ-शस्-अम्सु / पा०७।२।८७,८८। 31 अस्थि-दधि-सक्थि-अक्षणाम् अनङ / 56 यः अचि / पा०७।२।८६। पा०७।११७५। 57 शेषे लोपः अदः / पा०७।२।१०। 32 न अज्झेः शतुः / पा०७।१७। 58 मान्तस्य युव-आवौ द्विवचने / 33 शौ वा / पा०७।११७६। पा०७।२।६१,६२। 34 आत् शी-डयोः / पा०७।१।८०।। 56 यूय-क्यौ जति / पा०७।२।६३। 35 शप-श्यनः / पा०७।१८१॥ 60 त्व-अहौ सौ / पा०७।२।६४। 36 सौ अनडुहः / पा०७।१।८२। 61 तुभ्य-मह्यौ ङयि / पा०७।२।१५। 37 दिवः औत् / पा०७।१।८४। 62 तव-ममौ ङसि / पा०७।२।१६। 38 पथि-मथि-ऋभुक्षाम् आत् / 63 त्व-मौ एकस्मिन् / पा०७।२।६७। पा०७।१८५। 64 त्रि-चतुरोः स्त्रियां तिसृ-चतसृ / 36 शि-सुटि एः / पा०७।१।८६। पा०७।२।६६। 1 “संबोधने तूशनसस्त्रिरूपं सान्तं तथा नान्तमथाप्यदन्तम्" / इत्येवं कारिका वर्तते काशिकायाम् / Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 60 लाड अ० 5, पा० 4, सू० 65-114] चान्द्रव्याकरणम् 65 तिसृका / पा०७।२।६६ वा०१॥ 87 लुङ-सन्-अच्-घञ्-असु घस्लुः / 66 ऋतः रः अचि / पा०७।२।१००। पा०२।४।३७+वा०१। पा०२।४।३८। 67 जराया जरस् वा / पा०७।२।१०१। 88 वेञः लिटि वय वा / 68 त्यदां तसादिषु च आ द्वेः अः / पा०२।४।४०,४१॥ पा०७।२।१०२+वा०१॥ 86 हनः वध लिङि / पा०२।४।४२॥ 66 किमः कः / पा०७।२।१०३। 60 लुङि / पा०२।४।४३। 70 तः सः सौ / पा०७।२।१०६। 61 तङि वा / पा०२।४।४४। 71 असौ असुकः असकौ / 62 एतेः गाः / पा०२।४।४५॥ पा०७।२।१०६,१०७+वा०१॥ 63 णौ गम अबोधे / पा०२।४।४६। 72 इदम् अयम् इयम् / 64 सनि / पा०२॥४॥४७॥ पा०७।२।१०८,१११,११०। 65 इङः / पा०२।४।४८। 73 दः मः / पा०७।२।१०६। 66 गाङ लिटि / पा०२।४।४६। 74 टा-ओसि अकः अनः / 67 वा लुङ-लुङोः / पा०२।४।५०। पा०७।२।११२॥ 18 णौ संश्चडोः / पा०२॥४॥५१॥ 75 हलि अश् / पा०७।२।११३। / 66 वलादेः इट् / पा०७।२।३५॥ 76 एतस्य चान्वादेशे द्वितीयायां चैनः / पा०२।४।३२,३४।। 100 ग्रहः अस्य अलिटि ईत् पा०७।२।३७+वा०३। .. 77 पत्-निश्-मास्-हृद्-यूषन्-दोषन् - शसादौ वा / पा०६।१।६३। 101 वृ-ऋतो वा / पा०७।२।३८। * काशिका 6 // 1 // 63 / 102 न लिङि / पा०७।२।३।। 78 लिट्-आशीलिङ-अतिङशिति / 103 सिचि अतङि / पा०७।२।४०। .. पा०२॥४॥३५॥ 104 इट् सनो वा / पा०७।२॥४१॥ 76 अस्तेः भूः / पा०२।४।५२। 105 लिङ-सिचोः तङि / पा०७।२॥४२॥ 80 ब्रुवः वच् / पा०२।४।५३। 106 ऋतः संयोगादेः / पा०७।२।४३। 81 चक्षः ख्याञ् / पा०२॥४॥५४॥ 107 स्व-सूड-ऊदितः / पा०७।२।४४। 82 वा लिटि / पा०२॥४॥५५॥ 108 रधादिभ्यः / पा०७॥२॥४५॥ 83 न अस्-अन-वर्जनेषु / 106 निष्कुषः / पा०७।२।४६। पा०२।४।५४ वा०१०,६। 110 त-तवतोः / पा०७॥२॥४७॥ 84 अजेः वी अयु-धब्-अप-क्येषु / 111 पू-क्लिशः त्वश्च / पा०२।४।५६ वा०१। पा०२।४।५७। पा०७।२।५१,५०॥ 85 ति किति अदः जग्धः / 112 वस-क्षुध इट् / पा०७।२।५२। पा०२॥४॥३६॥ 113 अञ्चः ने / पा०७।२।५३। , 66 ल्यपि / पा०२।४।३६। 114 लुभ आकुले / पा०७।२।५४। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 5, पा० 4, सू० 115-153 115 जषः त्वः / पा०७।२॥५५॥ 134 य-र-ण-गात्मः ।पा०७।२।१०भा० 116 वृश्चित्वा / पा०७।२॥५५॥ 135 शकादिभ्यः / पा०७।२।१० भा०।, 117 उदितो वा / पा०७।२॥५६॥ 136 श्रि-उग-ऊर्णोः कितः / 118 ति-इबु-सह-लुभ-रुष-रिषः। पा०७।२।११। काशिका 7 / 2 / 11 // पा०७।२।४८। काशिका 7 / 2 / 48 // 137 सनः ग्रह-गुहश्च / पा०७।२॥१२॥ 116 सनि इवन्त-ऋध-भस्ज-दम्भु-श्रि- 138 स्वार्थे / स्व-यु-ऊणु-भर-ज्ञपि-सनि-तनि-पति- 136 श्वि-ईदितः त-तवतोः। दरिद्रः / पा०७।२।४६। काशिका पा०७।२।१४। . 7 / 2 / 4 / 140 यतः अपतेर्वा / पा०७।२॥१५॥ 120 स्य-सिचि कृत-चूत-च्छूद-तृद-नृतः। ____ काशिका 7 // 2 // 15 // पा०७।२।५७। 141 आदितः। पा०७।२।१६। 121 अनिङगमेः इट् / 142 भाव-आरम्भयोर्वा / पा०७।२।१७। पा०७।२।५८+वा० 1 // 143 जपि-वमः / काशिका 7 / 2 / 16 / 122 न तङानैः / पा०७।२।५८। 144 वि-आङः श्वसः / 123 वृद्भ्य इट् / पा०७।२।५। काशिका 7 / 2 / 16 / 1 124 तासश्च क्लुपः / पा०७।२।६।। 145 क्षुब्ध-स्वान्त-ध्वान्तं मन्थ-मनस्१२५ न स्नोः / पा०७।२।३६। तमः / पा०७।२।१८। 126 क्रमः। पा०७।२।३६। 146 विरिब्ध-फाण्ट-बाढ-म्लिष्टानि 127 तङिवषयात् कर्तरि अतिङः / स्वर-अनायास-भृश-अस्पष्टषु / पा०७॥२॥३६ वा०५। पा०७।२।१८॥ 128 वशि / पा०७।२।८। 147 धृष-शसः प्रागल्भ्ये / 126 तेः अग्रहादिभ्यः / पा०७।२।६ पा०७॥२॥१६॥ ___ वा०१॥ 148 दृढः स्थूल-बलिनोः / 13. एकाचः अश्वि-श्रि-डी-शीङ-ऊ-वा - पा०७।२।२०। दिषट्कात् / पा०७।२।१०+भा०। 146 प्रभौ परिवृढः / पा०७।२।२१॥ 131 सिधि-बुधि-स्विदि-मनि-पुष-श्लिषः 150 कृच्छ्र-गहनयोः कषः / श्यना। पा०७।२।१० भा०। काशिका पा०७॥२॥२२॥ 7 / 2 / 10 / 151 घुषः अविशब्दने / पा०७।२।२३। 132 विदेः अलुकः / पा०७।२।१० भा०। 152 सम्-नि-वेः अर्दः / पा०७।२।२४। 133 य-र-लाद् भः। पा०७।२।१० भा०। 153 अभेः अविदूरे / पा०७।२।२५। 1 अत्र सूत्रे "चकारः अनुक्तसमुच्चयार्थः” इति निर्देशः अत्र च एतस्य चान्द्रसूत्रस्य समावेशः / Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 5, पा० 4, सू० 154-176] चान्द्रव्याकरणम् [63 154 णे: वृत्तं ग्रन्थे / पा०७।२।२६॥ 165 क्वसोः एकाच-आत्-घसः / 155 वा दान्त-शान्त-पूर्ण-दस्त-स्पष्ट पा०७।२।६७। च्छन्न-ज्ञप्ताः / पा०७।२।२७। 166 वा हन-गम-विद-विश-दृशः / 156 रुष-हष-अम-त्वर-संधुष-आस्वनः / पा०७।२।६८+भा०। पा०७।२।२८,२६। 167 ऋ-हनः स्ये / पा०७।२।७०। 157 अपवितिः / पा०७।२।३० भा०। 168 अञ्जः सिचः / पा०७।२।७१। 158 सृ-भू-वृ-स्तु-द्रु-उ-श्रुवः लिटः / 166 स्तु-सुञः अतङि / पा०७।२।७२। पा०७।२।१३। 170 यम-रम-नम-आतां सक् च / 156 कृत्रः असुटः / पा०७।२।१३ वा०१॥ पा०७।२।७३। 160 ऋतः तासि नित्यानिटस्थलः / 171 ऋ-स्मि-पूड-अञ्ज-अशः सनः / . पा०७।२।६३,६१॥ पा०७।२।७४। 161 अचो वा / पा०७।२।६३। 172 कभ्यः पञ्चभ्यः / पा०७।२।७५॥ काशिका 7 / 2 / 63 / 1 173 रुद्भयः तिङः / पा०७।२।७६। 162 पाठे अत्वतः / पा०७।२।६२। 174 जनि-ईशि-ईडः स्-ध्वे / 163 सृ-जि-दृशः / पा०७॥२॥६५॥ पा०७।२।७७,७८+भा० 164 ऋ-वृ व्यञ्-अदः / पा०७।२।६६, 175 आने मुग् अतः / पा०७।२।८२। 64 भा०। 176 आसीनः / पा०७।२।८३ / [पञ्चमस्य अध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः] [चान्द्रे व्याकरणे पञ्चमः अध्यायः समाप्तः] 1 अत्र सूत्र "ऋत एव भारद्वाजस्य नान्येषां धातूनाम् " / इति निर्देशे अस्य चान्द्रसूत्रस्य 'समावेशः / Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - [षष्ठः अध्यायः, प्रथमः पादः] . 1 मृजेः आत् / पा०७।२।११४॥ 24 अमद्राणां दिशः / पा०७।३।१३। 2 ऋतः अचि वा / पा०७।२।११४। 25 प्राचां ग्रामाणाम् / पा०७।३।१४। 3 अजाग-णि-श्चीनां सिचि अतङि 26 संख्यायाः संवत्सर-परिमाणस्य असंज्ञा आदेच् / पा०७।२।५,१। शाण-कुलिजस्य / पा०७।३।१५,१७। 4 हलः अचः / पा०७।२।३। काशिका 7 / 3 / 15,17 // 5 न इटि / पा०७।२।४। 27 वर्षस्याभाविनि / पा०७।३।१६। 6 वा ऊर्णोः / पा०७।२।६। 28 जाते प्रोष्ठ-भद्रात् पदस्य / 7 हलादेः उपान्तस्य अश्वस-क्षण-ह-म्- पा०७।३।१८। काशिका 7 / 3 / 18 / य-एदितः अतः / पा०७।२।७,५॥ 26 हृद्-भग-सिन्धोः पूर्वस्य च / 8 वद-व्रज-ल-रः / पा०७।२।३,२। . पा०७।३।१। 6 किणति / पा०७।२।११५,११६। 30 अनुशतिकादीनाम् / पा० 7 / 3 / 20 / 10 अचः। पा०७।२।११५॥ 31 देवतानां चार्थे सूक्त-हविषोः / 11 किति च अपत्यादौ अचाम् आदेः। पा०७।३।२१। काशिका 7 / 3 / 21 / पा०७।२।११८,११७। 32 नेन्द्रस्य परस्य / पा०७।३।२२। 12 देविका-शिशपा-दीर्घसत्र-श्रेयसामात् / 33 दीर्घात् वरुणस्य / पा०७।३।२३। : पा०७।३।१। 34 प्राचां नगरस्य / पा०७।३।२४। 13 केकय-मित्रयु-प्रलयानां यादेरियः। 35 जङ्गल-धेनु-बलजस्य वा / पा०७।३।२। पा०७।३।२५। 14 ऐज्भाविनः य-वः पदान्तात् 36 अर्धात् परिमाणस्य पूर्वस्य तु वा / पा०७।३।३। . पा०७।३।२६। 15 द्वारादीनाम् / पा०७३।४। 37 नातः। प।०७।३।२७। 16 न्यग्रोधस्य केवलस्य / पा०७।३।५॥ 38 प्रात् वाहनस्य ढे। पा०७।३।२८। 17 न व्यतिहारे / पा०७।३।६। 36 नत्रः शुचि-ईश्वर-क्षेत्रज्ञ-कुशल१८ स्वागतादीनाम् / पा०७।३।७। निपुणानाम् / पा०७।३।३०। 16 श्वादेरिति / पा०७।३।८। 40 हनः तः अचिण-णलो।पा०७।३॥३२॥ 20 पदस्य वा / पा०७।३।। 41 आतो युग अलि। 21 उत्तरस्य / पा०७।३।१०। पा०७।३।३३+भा०॥ 22 अंशात् ऋतोः / पा०७।३।११॥ 42 मः सेटः न अवमि-अमि-कम-आचम२३ सु-सर्व-अर्धात् जनपदस्य / विश्रमः / पा०७।३।३४+भा०। पा०७।३।१२। 43 जनि-वधोः / पा०७।३।३५॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 6, पा० 1, सू० 44-92] चान्द्रव्याकरणम् 44 मेलि वा / पा०७।१।६१। 70 अधातोः कीदतोऽसुप आपि / 45 ऋ-री-ली-हो-क्नूयो-क्ष्मायि-आतां पा०७॥३॥४४॥ पुग् णौ / पा०७।३।३६। 71 य-काभ्यामापः अत्या-त्यपो वा / 46 शा-छा-सा-ह्वा-व्या-वे-पां युक् / पा०७।३।४६,४४ वा० 5 // पा०७॥३॥३७॥ 72 भस्त्रा-एषा-अजा-ज्ञा-द्वा-स्वानाम् / 47 वः विधूनने जुक् / पा०७।३।३८। पा०७।३।४७+वा०२। 48 धब्-प्रोञोर्नु / पा०७।३।३७ वा०१॥ 73 अनुक्तपुंस्कात् आञ्च / 46 लियः स्नेह-विलापने वा / पा०७।३।४८,४६। .पा०७।३।३। 74 वर्तका शकुनौ। पा०७।३।४५ वा०८। 50 लो लुक् / पा०७।३।३६। . 75 सूतका-पुत्रका-वृन्दारकाः / 51 पातेः / पा०७।३।३७ वा०२। पा०७।३।४५ वा०१०॥ 52 प्रयोक्तुभियः षुक् / पा०७।३।४०। 76 नरिका / पा०७।३।४४ वा०४। 53 स्कायो वः / पा०७।३।४१।। 77 न यत्-तदोः / पा०७।३।४५॥ 54 शदेः अगतौ तः / पा०७।३।४२॥ 78 आशिषि / पा०७।३।४५ वा०३। 55 मन्य-अर्थ-वेदानाम आपक। 76 क्षिपकादीनामापा०७३।४५ वापर पा०३।१।२५ वा०२। 80 तारका ज्योतिषि / 56 मितां हस्वः / पा०६।४।१२। पा०७।३।४५ वा०६। 57 चिण-णमोः दीर्घश्च / पा०६।४।६३। 81 वर्णका तान्तवे / पा०७।३।४५ वा०७। 58 छादेः घे / पा०६।४।६६। 82 अष्टका पितृणाम् / 56 प्रादौ एकस्मिन् / पा०६।४।६६। 107 / 3 / 45 वा०६। 60 इस्-मन्-त्रन्-क्विषु / पा०६।४।६७। 83 च-जोः कुः चित्-ण्यतोः / 61 चङि उपान्तस्य / पा०७।४।१। पा०७।३।५२। 62 न अग्लोपि-शासू-ऋदिताम् / 84 न्यङकुआदयः / पा०७।३।५३। पा०७।४।२। 85 णित्-नि हनो हः / 63 माज-भास-भाष-दीप-जीव पा०७१३.५४॥ मील-पीडां वा / पा०७।४।३। 86 द्वित्वहेतौ / पा०७।३।५५॥ 64 कणादीनाम् / पा०७।४।३ भा०। 87 हेः अचङि / पा०७॥३॥५६॥ 65 उः ऋत् / पा०७।४।७। 88 सन्-लिटोः जेः / पा०७।३।५७। 66 घाः इत् / पा०७।४।६। 86 चेर्वा / पा०७।३।५८॥ 67 स्थः / पा०७॥४॥५॥ 10 न क्वादेः / पा०७॥३॥५६॥ 68 पिबः पीप्यः / पा०७।४।४। 61 अजि-व्रजोः / पा०७।३।६०। 66 देङः दिगि लिटि / पा०७।४।६। 62 वञ्चेर्गतौ / पा०७।३।६३। प . Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66] चान्द्रव्याकरणम् [अ०६,पा०१,०९३; पा० २,सू०२१ 63 ण्ये आवश्यके / पा०७॥३॥६५॥ 102 शमामष्टानां श्ये दीर्घः / 64 ऋच-रुच-याच-त्यजाम् / पा०७।३।७४। पा०७।३।६६+वा०३। 103 ष्ठिव-क्लम-आचमां शिति / पा०७।३।७५+वा०१॥ . 65 वचःअशब्दाख्यायाम् / पा०७॥३॥६७। 66 प्रयोज्य-नियोज्यौ शक्ये / 104 क्रमः अतङाने / पा०७।३।७६। 105 इषु-गमि-यमां छः / पा०७।३।७७। पा०७।३।६८।। काशिका 7 / 3177 / . 67 भोज्यम् अन्ने / पा०७।३।६६ / 106 पा-घा-ध्मा-स्था-म्ना-दाण-दृश-शद१८ यजः बहुलम् / पा०७।३।६६,६२। सदां पिब-जिघा-धम-तिष्ठ-मन-यच्छ६६ ओलोपः श्ये / पा०७।३।७१। पश्य-शीय-सीदाः / पा०७।३।७८। 100 क्सस्य अचि / पा०७।३।७२। 107 ज्ञा-जनोः जाः / पा०७।३७६। 101 लुग वा दुह-दिह-लिह-गुहां तङि 108 प्वादीनां हस्वः / पा०७।३।८०। दन्त्ये / पा०७।३।७३। 106 मिदेः एत् / पा०७।३।८२॥ . . [षष्ठस्य अध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः] * [द्वितीयः पादः] 1 इकः अदेड क्रियायाः / 12 अतिङि आञ्च तल्लोपे। पा०७।३।८४। पा०१।१।४+वा०७॥ 2 उ-श्नोः / पा०७।३।८४। 13 कुटादीनाम् अणिति / पा०१।२।१। पा०७।३।८३,८६। 14 विजः इटि / पा०१।२।२। / 4 लघोः उपान्तस्य / पा०७।३।८६।। 15 वा ऊर्णोः पा० 1 / 2 / 3 / 5 सृजि-दृशोः झलि अम् / पा०६।११५८। 16 की 16 त-तवतोः अपू-शी-स्विदि-मिदि . विदि-धृषः / पा०१।२।१६,२२॥ 6 स्पृश-मृश-कृष-तृप-दृप-सृपां वा। पा०६।१।५६। 17 मृषः अक्षान्तौ / पा०१॥२॥२०॥ 18 उत्उपान्तस्य शब्वतः भाव७ द्विरुक्तस्य न अचि अलिटि। आरम्भयो / पा०१।२।२१+वा०१॥ पा०७॥३॥८७॥ 16 मृड-मृद-गुध-कुष-क्लिश-वद-वस८ तिङशिति अपिदाशीलिङि / लुच-ग्रहां क्त्वि। पा०१।२७,२४,८। पा०१॥२॥४,५॥ 20 ऋत-तष-मृष-कृशां वा। 6 जागुः अलिटि / पा०७।३।८।। पा०१२।२४,२५॥ 10 चिण्णल्डित्सु / पा०७।३।८५॥ 21 रलः हलादेः इदुतोः सनि च। 11 डिति / पा०१।१।। पा०१॥२॥२६॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०६, पा० 2, सू० 22-75] चान्द्रव्याकरणम् [67 22 रुद-विद-मुष-ग्रहाम् / पा० 112 / / 46 जसि / पा०७।३।१०६। .. 23 इकः अनिटि / पा०१।२।। 50 ङिति असख्युः / पा०७।३।१११। 24 उपान्तस्य / पा०१।२।१०। पा०१।४।७। 25 लिङ-सिचोः तङि / पा०१।२।११।। 51 पत्युः समासे / पा० 1 / 4 / 8 / 26 उः / पा० 1 // 2 // 12 // 52 स्त्रियां वा / पा०१॥४॥६॥ 27 सिचि दा-धा-स्थाम् इच्च / 53 ई-ऊभ्यां च आट् / पा०७।३।११२॥ पा०१।२।१७। 54 सेयुवो वा / पा०१।४।४,६। 28 गाङ ईत् स्ये च / पा०१॥२॥१॥ 55 स्त्रियाः / पा० 1 / 4 / 4 / 26 भू-सुवः अद्वेः तिङि / 56 याड् आपः / पा०७।३।११३। पा०७।३।८८+वा०१॥ 57 स्मैवतः स्याड् अत् च / 30 हलि पिति उतः औत् / पा०७।३।८६। पा०७।३।११४॥ 31 वा ऊर्णोः / पा०७।३।१०। 58 द्वितीया-तृतीयात् वा। 32 न अलि / पा०७।३।६१॥ पा०७।३।११५॥ 33 तृगहः इम् / पा०७।३।१२। 56 : आम् तत्र / पा०७।३।११६,११७। 34 ब्रुव ईट् / पा०७।३।६३। 60 नियः / पा०७।३।११६। 35 यङो वा / पा०७।३।१४। 61 इत्-उद्भयाम् औत् / पा०७।३।११८। 36 अस्ति-सिचः अलः / पा०७।३।६६। 62 एङः अत् च / पा०७।३।११६। 37 रुद्धपः पञ्चभ्यः अट् च / 63 टः अस्त्रियां ना / पा०७।३।१२०॥ पा०७।३।१८।६६। 64 ऋतः ङि-सुटि अत् / पा०७।३।११०। 38 अदः / पा०७।३।१००। 65 संयोगादेः लिटि / पा०७।४।१०+ 36 अतः आत् यत्रि / पा०७।३।१०१॥ वा०२॥ * '40 सुपि / पा०७।३।१०२। 66 स्कृतः / पा०७।४।१० वा० 1 // 41 बहुषु झलि एत् / पा०७।३।१०३। 67 ऋत्-ऋछ्-ऋणाम् / पा०७।४।११। 42 ओसि / पा०७।३।१०४। 68 ऋ-श्वि-दृशः अङि / पा०७।४।१६,१८॥ . 43 टि च आपः / पा०७।३।१०५॥ 66 असु-पत-वचां थुक्-पुम्-उमः 44 संबोधने सौ। पा०७३।१०६। पा०७।४।१७,१९,२०॥ 45 अम्बार्थानाम् अडलेकानां हस्वः 70 के अणो हस्वः / पा०७।४।१३। पा०७।३।१०७+भा०। 71 न कपि / पा०७।४।१४। 46 ङी-ऊङः / पा०७।३।१०७। 72 आपः वा / पा०७।४।१५॥ 47 मातुः मातच पुत्र श्लाव्ये। 73 शीङः एत् अलिटि / पा०७।४।२१। पा०७।३।१०७ भा०। 74 यि क्ङिति अयङ / पा०७।४।२२। .48 इत्-उतोः एछ / पा०७।३।१०। 75 प्रादिभ्य ऊहः हस्वः / पा०७।४।२३। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 6, पा० 2, सू० 76-123 76 लिङि इणः / पा०७।४।२४। 101 ह एति / पा०७।४।५२। 77 आशिषि दीर्घः / पा०७।४।२५॥ 102 क्यङि वा / पा०३।१।११ वा०१। 78 वि-यङ-यक्-क्येषु / 103 ओजस्-अप्सरसोः / पा०७।४।२६,२५॥ पा०३।१।११ वा०२। . 76 रीङ ऋतः ये च / पा०७।४।२७। 104 य-इवर्णयोः दीधी-वेव्योः।। 80 रिङ श-यग्-आशीलिङि / पा०७।४।५३। पा०७।४।२८। 105 यण् अचि / पा०१।१।६। / 81 ऋ-संयोगाद्योः अत / पा०७४।२। 106 मि-मी-मा-रभ-लभ-शक-पत-पद-दा८२ यडि / पा०७।४।३०। धाम् अचः सि सनि इस् / 83 हनः नी हिंसायाम् / पा०७।४।५४। काशिका 7 / 4 / 54 / पा०७।४।३० वा०१॥ 107 राधः हिंसायाम् / पा०७।४।५४ 84 ई घा-ध्मोः / पा०७।४।३१। - वा०१॥ 85 अस्य च्वौ / पा०७।४।३२॥ 108 ज्ञपि-आप्-ऋधाम् ईत् / 86 क्यचि / पा०७।४।३३। .. पा०७॥४॥५५॥ 87 न क्षुधि अशनस्य / पा०७।४।३४॥ 106 दम्भः इत् च / पा०७।४।५६। 88 धनस्य तृष्णायाम् / पा०७।४।३४॥ 110 अव्याप्यस्य मुचेः ओत् वा / 86 उदन्यः। पा०७।४।३४। पा० 7 / 4 / 57 // 60 वृष-अश्वयोः मैथुने सुक् / 111 द्वित्वे पूर्वस्यात्र लोपः। पा०७।१।५१ वा०१॥ , पा०७।४।५८॥ 61 असुक् च अतुम् / 112 हलः अनादेः / पा०७।४।६०। पा०७।११५१ भा०। 113 खयि खरः / पा०७।४।६१+वा०१॥ 62 दो-सो-मा-स्थाम् इत् ति किति / 114 चर् / पा०८॥४॥५४॥ पा०७।४।४०। 115 झषः जश् पा०८।४।५४,५३। 63 छो वा / पा०७।४।४१॥ 116 कु-होः चुः / पा०७।४।६२॥ 64 धाञः हिः / पा०७।४।४२। 117 न कुङः यङि / पा०७।४।६३। 65 हाकः त्वि / पा०७।४।४३। 118 उः अत / पा०७॥४॥६६॥ 66 दो दत् / पा०७।४।४६। 116 हस्वः / पा०७।४।५६। 67 प्रादेः अचः तः / पा०७।४।४७। 120 द्युति-स्वाप्योः यण: इक् / 18 अपो भि / पा०७।४।४८। पा०७।४।६७॥ 66 सि सः लिङतिङि / पा०७।४।४। 121 व्यथः लिटि / पा०७।४।६८। 100 तास-असो; रि च लोपः 122 दीर्घः अपिति इणः / पा०७।४।६६। पा०७।४।५०,५१॥ 123 अतः आदेः। पा०७।४।७०। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ६,पा०२,सू०१२४; पा०३,सू०१५] चान्द्रव्याकरणम् [69 124 नुक् च अनेकहलः। पा०७।४।७१॥ 135 जप-जभ-दह-दश-भञ्ज-पशाम् / 125 अश्नोतेः / पा०७।४।७२। पा०७॥४॥८६॥ 126 भुवः अत् / पा०७।४।७३। 136 चर-फलोः। पा०७।४।८७। 127 निजां लुकि एत् / पा०७।४।७५॥ 137 ति च उत् अतः। पा०७।४।८६,८८। 128 ऋ-पृ-भू-मा-हाङाम् इत् / 138 रीग ऋत्वतः / पा०७।४।६०+ पा०७।४।७७,७६। वा०१॥ 126 सनि अतः / पा०७।४।७६। 136 रुग्-रिकौ च लुकि / पा०७।४।६१॥ 130 ओःपु-यण-जि अपरे। पा०७।४।८०। 140 सन्वत लघुनि णौ चङि अनग्लोपे / 131 जु-श्रु-द्रु-गु-प्लु-च्यूनां वा। पा०७।४।१३। पा०७।४।८१॥ 141 दीर्घः लघोः / पा०७।४।१४। 132 आ-अदेङ यङि / पा०७।४।८२,८३। 142 स्म-द-त्वर-प्रथ-म्रद-स्तृ-स्पशाम् 133 नीग् वञ्च-स्रंसु-ध्वंसु-भ्रंशु-कस-पत अत् / पा०७।४।९५॥ पद-स्कन्दाम् / पा०७।४।८४॥ 143 वा वेष्टि-चेष्टयोः / पा०७।४।१६। 134 अमः अतः नुक् / पा०७।४।८५॥ 144 ईत् च गणः / पा०७।४।६७। [षष्ठस्य अध्यायस्य द्वितीयः पादः समाप्तः] [तृतीयः पादः] 1 वीप्सा-आभीक्षण्ययोः द्वे पा०८।१।४। 6 व्यतिहारे सर्वादीनां सुबहुलम् / पा०८।१।१। पा०८।१।१२ वा०११॥ . . 2 परेः वर्जने वाक्ये वा / पा०८।११५+ 10 परस्य अपुंसि आम् / वा०१,२। पा०८।१।१२ वा०१२। 3 अधि-उपरि-अधसां सामीप्ये / 11 यथास्वे यथायथम् / पा०८।१।१४। पा०८।१७। 12 द्वन्द्वं रहस्य-मर्यादा-व्युत्क्रान्ति-यज्ञ४ वाक्यादेः आमन्त्रितस्य असूया पात्रप्रयोगेषु / पा०८।१।१५। ..संमत्योः / पा०८।१८। 13 अत्यन्तसहचरिते लोकविज्ञाते / 5 एकस्य सुप्लुक् / पा०८।१६+वा०३। पा०८।१।१५ वा०१॥ 6 आबाधे पुंवञ्च पा०८।१।१०+६ वा०३। 14 संभ्रमे यावद्वोधम् / 7 प्रकारे गुणस्य / पा०८।१।१२।। पा०८।१।१२ वा०५+भा०। 8 अकृच्छे प्रिय-सुखयो / 15 अपादादौ पदादेकवाक्ये / पा०८।१११३॥ पा०८।१।१८,१७,१८ वा०५।। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 70] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 6, पा० 3, सू० 16-64 . 16 युष्मद्-अस्मदोः षष्ठी-चतुर्थी- 36 अष्ठीवत्-चक्रीवत्-कक्षीवत्-उदन्वत्द्वितीयान्तयोः वाम्-नौ वा। रुमण्वत्-चर्मण्वती। पा०८।१।२०,२६ भा०। पा०८।२।१२,१३॥ 17 बहुवचनस्य वस्-नसौ। पा०८११२१॥ 40 राजन्वान् सौराष्ये / पा०८।२॥१४॥ 18 एकवचनस्य ते-मे / पा०८११२२॥ 41 कृपो रो लोऽकृपणादीनाम् / 16 त्वा-मौ द्वितीयायाः। पा०८।१।२३। पा०८।२।१८+भा०। 20 अन्वादेशे पा०८।१।२६ वा०१।। 42 प्रादीनाम् अयतौ / पा०८।२।१६। 21 सपूर्वात् प्रथमान्तात् वा।। 43 ग्रो यङि / पा०८।२।२०। पा०८।१।२६। है 44 अचि वा / पा०८।२।२१। 45 परेः घ-अङ्क-योगेषु / 22 न च-वा-ह-अह-एबयोगे। पा०८।२।२२+भा०। पा०८।१।२४। 46 कपिरिकादीनाम् / 23 दृश्यर्थे अनालोचने / पा०८।१।२५॥ पा०८।२।१८ भा०। 24 आमन्त्रितं पूर्वम् असद्वत् / 47 डः।। पा०८।१।७२॥ 48 सुपः प्रकृतेर्नो लोपः / पा०८।२।७। 25 न सामान्यवचनमेकार्थे / 46 न संबुद्धौ / पा०८।२।। पा०८।११७४ भा०। 50 नपुंसके वा / पा०८।२।८ वा०२। 51 सुपि वलि तद्वत् / पा०१।४।१७,१८। 26 बहुत्वे वा / पा०८।१।७४। . 52 संयोगस्य पदस्य / पा०८॥२॥२३॥ 27 पूर्वत्र असिद्धम् / पा०८।२।१। 53 रात् सः। पा०८।२।२४। 28 सुपि. न लोपः / पा०८।२।२। 54 धि सङि / पा०८।२।२५,२२ वा०१॥ 26 न नि मुः। पा०८।२।३। 30 सिज्लोपः एकादेशे / पा०८।२।६।। 55 झलः झलि / पा०८।२।२६। 56 हस्वात् / पा०८।२।२७। वा० 5 / 57 इटः ईटि / पा०८२।२८। 31 ष-ठनिक्तादेशः। पा०८।२।६ वा०७। 58 स्-कोः संयोगाद्योः अन्ते च / 32 प्लुतस्तुकि / पा०८।२।६ वा० 11 // पा०८।२।२६। 33 धुटि प्रचुः / पा०८।२।६ वा०१२। 56 चोः कुः। पा०८॥२॥३०॥ 34 द्वित्वे परसवर्णः। पा०८।२। 6 60 क्विनः। पा०८।२।६२॥ वा०१४। 61 नग वा / पा०८।२।६३। 35 मात उपान्ताच मतोर्वः।पा०८।२।। 62 हः ढः। पा०८॥२॥३१॥ 36 झयः / पा०८।२।१०। 63 दादेर्धातोः घः / पा०८।२।३२॥ 37 नाम्नि / पा०८॥२॥११॥ 64 वा द्रुह-मुह-स्नुह-स्निहाम् / 38 न यवादिभ्यः / पा०८।२।। पा०८।२॥३३॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [71 अ० 6, पा० 3, सू० 65-116] चान्द्रव्याकरणम् 65 नह-आहो धः / पा०८॥२॥३४,३५। 62 ह्रादः ह्लद् / पा०६॥४॥६५॥ 66 वश्च-भ्रस्ज-सज-मृज-यज-राज-भ्राज- 63 क्तिनि / काशिका 6 // 4 // 65 // शां षः। पा०८।२।३६। 64 फुल्ल-क्षीब-कृश-उल्लाघाः / 67 झलः जश् / पा०८।२।३६। पा०८।२१५५। 68 त-सोस्त-सौ मत्वर्थे / पा०१।४।१६। 65 न ध्या-ख्या-प-मूछि-मदाम् / 66 झषः एकाचः स्-ध्वोः बशो भए / पा०८।२।५७। पा०८।२।३७। 66 वित्तःप्रतीत-भोगयोः। पा०८।२।५८। 70 धस्त-थोश्च / पा०८।२॥३८॥ 67 भित्तं शकले / पा०८।२।५६ / 71 त-योः धः अधः / पा०८।२।४०। 68 ससजुषः रः / पा०८।२।६६। 72 सि ष-ढोः कः / पा०८॥२॥४१॥ 16 अह्नः। पा०८।२।६८। 73 मो नो म्बोश्च / पा०८।२।६४,६५। 100 लुकि अरि रः। पा०८।२१६६। 74 र-दात् त-तवतोर्दश्च / पा०८।२॥४२॥ 101 प्रचेतसः राजनि वा / 75 यणसंयोगात् आतः। पा०८।२।४३। पा०८।२।७०वा०१। 76 ऋ-लवादिभ्यः क्तिनश्च / 102 पत्यादिषु अहरादीनाम् / - पा०८।२।४४+वा०१॥ पा०८॥२॥७० भा०॥ : 77 पूत्रः नाशे / पा०८।२।४४ वा०३। 103 दः अनडुहः / पा०८।२।७२। 78 दु-खोः ऊ च / पा०८।२।४४ वा०२॥ 104 वसु-स्रंसु-ध्वंसां सः।पा०८।२।७२। * 76 सेः ग्रासे / पा०८।२।४४ वा०४। 105 तिपि / पा०८।२।७३। 80 ओदितः / पा०८।२।४५॥ 106 सिपि रुर्वा / पा०८।२।७४। 81 क्षेः क्षी च / पा०८।२।४६। 107 दः। पा०८।२।७५। 82 वा भाव-आक्रोश-दैन्येषु / 108 धातोः र-वोः अनचि इकः दीर्घः / . .. पा०६।४।६०,६१। पा०८।२।७६,७७॥ 83 इयः अस्पशे / पा०८॥२॥४७॥ 106 न सुपि यचि / पा०८।२।७६। 84 अञ्चः अनवधौ / पा०८।२।४।। 110 द्वित्वे / पा०८।२।७८ वा०१॥ - 85 अद्यूते दिवः / पा०८।२।४६। 111 कुरु-च्छुरोः / पा०८।२७६। .86 अवाते निर्वाणः / पा०८।२।५०। 112 अदसः अत्वे दात् उ दः मः। 87 घा-त्रा-अति-ही-नुद-उन्द-विदो वा / पा०८।२।८०॥ पा०८।२।५६,६०। 113 अद्रौ वा / पा०८।२।८० भा०। 88 प्रस्त्यः मः। पा०८॥२॥५४॥ 114 एत ईत् / पा०८।२।८१॥ 86 क्षः / पा०८।२।५३। 115 वाक्याचां प्लुतः अन्त्यः। 60 शुषः कः / पा०८॥२॥५१॥ पा०८।२।८२॥ 6.1 पचो वः। पा०८॥२॥५२॥ पा०८/२१८४॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72] चान्द्रव्याकरणम् [अ०६,पा०३,सू०११७; पा०४,सू०२१ 117 अनन्त्यऽपि हे-है / पा० 8 / 2 / 85 // 125 विचारे / पा०८।२।६७,६८१ . 118 गुरु एकैकम् अनृत् था। 126 प्रतिश्रुतौ / / पा०८।२।६।। पा०८।२।८६। 127 पूजिते / पा०८।२।१००। 116 अस्त्री-शूद्रप्रत्यभिवादे। 128 चिति उपमार्थे / पा०८।२।१०१।। पा०८।२।८३+वा०१॥ 126 निन्दा-आशी:-प्रेष्येषु तिङ 120 प्रत्युक्तौ हिः / पा०८।२।६३। आकाङक्षम् / पा०८।२।१०४। 121 उपालम्भे / पा०८।२।६४। 130 अनन्त्यस्यापि प्रश्न-आख्यानयोः / 122 अङ्गयुक्तं तिङ आकाङक्षम् / पा०८।२।१०५॥ पा०८।२।६६। 131 एचः प्रश्नान्त-पूजा-विचार- . . 123 भर्त्सने द्विरुक्तं पर्यायेण / प्रत्यभिवादेषु आत् इत्-उत्परः पा०८।२।६५+वा०१॥ पा०८।२।१०७+वा०२+भा०। 124 असूया-संमत्योः पूर्वम् / 132 न एतो द्वित्वे / पा०८।२।१०७। पा०८।२।१०३। 133 तयोः य-वौ अचि ।पा०८।२।१०। [षष्ठस्य अध्यायस्य तृतीयः पादः समाप्तः]. [चतुर्थः पादः] 1 समः सुटि सः / पा०८।३।५,१। 12 ङ-णोः कुक्-टुको शरि / 2 पुमः खयि अमि / पा०८।३।६। पा०८॥३॥२८॥ 3 नः छवि अप्रशानः / पा०८।३।७। 13 डः सः धुट / पा०८।३।२६। 4 कान् कानि। पा०८।३।१२। 14 नः / पा०८।३।३०। 5 नन् पे रः वा / पा०८।३।१०। 15 शि तुक् / पा०८॥३॥३१॥ काशिका 8 / 3 / 10 16 मयः उञः अचि वः / 6 अत्र अनुनासिकः पूर्वस्य / पा०८।३।२। पा०८।३।३३,३२॥ 7 अनुस्वारः। पा०८।३।४। 17 ङमो हस्वात् द्वे / पा०८॥३॥३२॥ 8 हलि मः। पा०८।३।२३,२२। 18 ढे अनादौ ढलोपः। 6 नश्च अनन्त्यस्य झलि / पा०८।३।२४। पा०८।३।१३+वा०१॥ 10 सम्राट् / पा०८।३।२५॥ 16 रः रि। पा०८।३।१४। 11 हे म-न-य-व-लपरे ते वा। 20 विरामे विसर्जनीयः / पा०८॥३॥१५॥ पा०८।३।२६,२७,२६ वा०१॥ 21 खरि / पा०८।३।१५॥ 1 मूलसूत्रपाठपुस्तके 'अप्रशान्' इति / Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म० 6, पा० 4, सू० 22-70] चान्द्रव्याकरणम् 22 शर्परे / पा०८।३॥३५॥ 48 स्तोः षणिः / पा०८।३।६१॥ 23 रोः सुपि / पा०८।३।१६। 46 णेः अस्विदि-स्वदि-सहः / 24 भो-भगो-अघोभ्यः अशि लोपः। पा०८।३।६१,६२॥ पा०८।३।१७,२०। 50 प्रादीनां सु-सू-सो-स्तु-स्तुभ-स्था-सेनि२५ आत् / पा०८।३।१७। __ सेध-सिच-सञ्ज-स्वञ्जाम् पा०८।३।६५॥ 26 यः अचि वा अनुचि / 51 सदः अप्रतेः / पा०८॥३॥६६॥ पा०८।३।१७,२१,२२॥ 52 स्तम्भेः / पा०८।३।६७। 27 व्-योः ईषत्स्पृष्टौ च / पा०८॥३॥१८॥ 53 अवात् औजित्य-आलम्बन-अविदूर्येषु / 28 छवि रः सः। पा० 8 / 3 / 34 / पा०८।३।६८॥ 26 वा शरि / पा०८।३।३६। 54 वेश्च स्वनः भोजने / पा०८।३।६९। 30 खरि लोपः / पा०८।३।३६ वा०१॥ 55 नि-परेश्च सेव-सिवु-सह-सुटाम् 31 कु-प्वोः )(कर पौ। पा०८।३।३७। पा०८॥३७॥ 32 ससंख्यस्य अनादौ सः / 56 स्तु-स्वञ्ज-सिवादीनां वा अडव्यवाये / पा०८।३।३८+वा०१५ पा०८।३।७०,७१॥ 33 रोः काम्ये / पा०८।३।३८ वा०२॥ 57 स्वादीनाम् / पा०८।३।६३। 34 इणः षः / पा०८।३।३६॥ 58 स्थादीनां द्विरुक्तेन तस्य च / 35 निर्-दुर्-बहिर्-आविर्-चतुर्-प्रादुर् पा०८।३६४ . पुरसाम् / पा०८।३।४१,४०। 56 नेः सय-सितयोः / पा०८।३।७०। 36 सुचो वा / पा०८॥३॥४३॥ 60 वि-परेः पा०८।३।७०। 37 इस्-उसोः संबन्ध / पा०८।३।४४। 61 निर-अभि-अनोश्च स्यन्दः अप्राणिनि 38 प्लुतात् ति च / पा०८।३।४१ वा०२।। वा। पा०८॥३॥७२॥ 36 समासे अनुत्तरस्य / पा०८।३।४५। 62 वेः स्कन्दः अत-तवतोः। 40 अतः कृ-कमि-कंस-कुम्भ-पात्र-कुशा पा०८।३।७३। कर्णीषु ससंख्यस्य / पा०८।३।४६। 63 परेः / पा०८।३।७४। 41 अधः-शिरसोः पदे / पा०८।३।४७। 64 स्फुरि-स्फुलोः निर्-नि-विभ्यः / 42 नमसः / पा०८॥३॥४०॥ पा०८।३।७६। - 43 कृषि वा / पा०१।४।७४। 65 वेः स्कम्नः षः / पा०८।३।७७। 44 तिरसः / पा०१।४।७२। 66 समासे अङ्गलेः सङ्गः।पा०८।३।८०॥ 45 कस्कादयः। पा०८।३।४८। 67 भीरोः स्थानम् / पा०८॥३॥८१॥ 46 कोश्च आदेश-सनादि-शासि-वसि-घसा 68 अग्नेः स्तुत् / पा०८।३।२। सः / पा०८।३।५७,५६,६०,५६। 66 ईतः सोमः / पा०८।३।८२+वा०१॥ 47 नुम्-विसर्जनीय-शर्यवाये। 70 ज्योतिर्-आयुषश्च स्तोमः / पा०८।३।५८। पा०८।३।८३,८२॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 6, पा० 4, सू० 71-115 71 मातृ-पितृभ्यां स्वसा। पा०८।३।८४। 68 सदि-स्वञ्जः लिटि / 72 अलुकि वा / पा०८।३।८५। पा०८।३।११८+वा०११ 73 अभिनिष्टानो वर्णे। पा०८॥३॥८६॥ 66 धातोः सोलुङोश्च धः ढः।। 74 प्रादुः-प्रादिभ्यः यचि अस्तेः। पा०८।३।७८। पा०८॥३॥८७। 100 वेटः / पा०३।७६। 75 सु-वि-निर्-दुर्व्यः सम-सूति-सुपाम् / 101 र-षात् नः णः एकपदे। पा०८।४।१॥ पा०८।३।८। 102 पूर्वपदात् नाम्नि / पा०८।४।३। 76 नदीष्णः कुशले / पा०८॥३॥८६॥ 103 वनं पुरगा-मिश्रका-सिधाका७७ नेः स्नातः पा०८।३।८६। शारिका-अग्रे-कोटरात् / 78 प्रतेः सूत्रे। पा०८।३।१०। पा०८॥४॥४॥ 76 प्रष्ठः अग्रगामी / पा०८॥३॥६२।। 104 प्र-निर-अन्तः-शर-इक्षु-प्लक्ष-आम्र८० वेः स्त्रः नाम्नि / पा०८।३।६३,६४। कार्य-पीयूक्षा-खदिरात् / .. 81 गवि-युधेः स्थिरः / पा०८।३।१५। - पा०८॥४॥५॥ 82 कपेः स्थलस्य / पा०८।३।६१। 105 वा औषधिवृक्षात् द्वि-त्र्यचः 83 वि-कु-शमि-परिभ्यः / पा०८।३।६६। अनिरिकादेः पा०८।४।६+भा०॥ 84 अम्ब-आम्ब-गो-भूमि-द्वि-त्रि-कु-शेकु- 106 अह्नः अतः / पा०८।४।७। शङ्क-अङ्ग-मञ्जि-पुञ्जि-बहिस्-दिवि- 107 त्रि-चतुल् हायनो वयसि / अग्निभ्यः स्थः / पा०८।३।६७। पा०४।१।२७ भा०। काशिका 85 एति संज्ञायाम् अकोः।पा०८।३।६६ / - 4 / 1 / 27 / 86 नक्षत्रात् इतो वा / पा०८।३।१००। 108 वाहनं वाह्यात् / पा०८।४।८। 87 हस्वात् सुपः ति / पा०८।३।१०१। 106 पानं देशे / पा०८।४।। 88 निसः तपि सकृत् / पा०८।२।१०२॥ 110 वा भाव-करणयोः / पा०८।४।१०। 86 सुषामादयः / पा०८।३।६८। 111 गिरिनद्यादीनाम् / 60 न आदि-अन्तयोः / पा०८।३।१११॥ पा०८।४।१० वा०१॥ 61 सात् / पा०८।३।१११॥ 112 समस्तान्त-समीपयोः अयुवादीनाम् / 12 सिचः यङि / पा०८।३।११२॥ पा०८।४।११ वा०१,३॥ 63 सिधः गतौ / पा०८।३।११३। 113 कुमत्-एकाचः।पा०८।४।१२,१३॥ 14 नि-प्रतेः स्तब्धः / पा०८।३।११४। 114 प्रादि-अन्तरः अदुरः णः / 65 सोढः / पा०८।३।११५॥ पा०८।४।१४। पा०१।४।६५ वा०१॥ 85 पाटिभ्यः स्तम्भ-सिव-सहां चङि। पा०॥४॥६० वा०७॥ पा०८।३।११६+वा०१॥ 115 हिनु-मीना-आनि / - 17 सोः स्य-सनोः / पा०८।३।११७। पा०८।४।१५,१६॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० 6, पा० 4, सू० 116-158] चान्द्रव्याकरणम् [75 116 नेः. गद-नद-पत-पद-दा-धा-मा-वा- 136 स्-तोः श्-चु-ष्-टुभ्यां तौ / दिह-वह-शम-हन-या-सा-द्रा-प्सा-चि पा०८।४।४०,४१। वपिषु / पा०८।४।१७। 137 न टोः अनवति-नगर्योः आदेः। पा०८।४।४२+भा०। 117 अक-खादौ अषान्ते पाठे वा।। 138 तोः वि / पा०८।४।४३। पा०८।४।१८। 118 अनः अन्ते च / पा०८।४।१६,२० / 136 शात् / पा०८।४।४४॥ 116 हनः / पा०८।४।२२। 140 यरः अमि अम् वा / पा०८॥४॥४५॥ 120 व-मोः वा / पा०८।४।२३। 141 अचः र-हात् द्वे / पा०८।४।४६। 121 अन्तरः अयनस्य च अदेशे / 142 अनचि / पा०८।४।४७। पा०८।४।२४,२५॥ 143 यणः मयः। पा०८।४।४७ वा०१॥ 122 सुपि अचः / पा०८।४।२६। 144 शरः खयः / पा०८।४।४७ वा०२। 123 निविण्णः / पा०८।४।२६ वा०१॥ 145 न आक्रोशे पुत्रस्य आदिनि तत्परे 124 णेर्वा / पा०८॥४॥३०॥ च / पा०८॥४॥४८+वा०१॥ 125 हलादेः इउपान्तात् / 146 शरः अचि रात् / पा०८।४।४६। पा.८।४।३१। 147 दीर्घात् / पा०८।४।५२। 126 नुमि इच्-आदेहलः। पा०८।४।३२। 148 खरि चर् झलः / पा०८।४।५५॥ 127 वा निक्ष-निस-निन्दाम् / 146 वा विरामे। पा०८।४।५६। . पा०८।४।३३। 128 न.भा-भू-पूञ्-कमि-गमि-प्यायो 150 अणः अनुनासिकः / पा०८।४।५७। वेपाम् / पा०८।४।३४+वा०॥ 151 अनुस्वारस्य यथि यम् / पा०८।४।५८॥ 126 षः पदे / पा०८॥४॥३५॥ 152 पदादौ वा / पा०८।४।५६। 130. नशेःष्-कः / पा०८।४।३६+वा०१। 153 तोः लि। पा०८।४।६०। 131 अन्ते / पा०८।४।३७। 154 उदः स्था-स्तम्भोः तः / 132 चु-टु-तु-ल-शर्यवाये। पा०८।४।६१॥ पा०८॥४॥२॥ 155 हलः झरां झरि सस्थाने लोपो 133 सुपा अनाङ-मयेन / पा०८।४।३८। वा / पा०८॥४॥६५॥ - पा०८।४।२। पा०८।४।३८ भा०। 156 झयः हो झम् / पा०८।४।६२। 134 घाहः। पा०८।४।२२। पा०८।४।२। 157 शः छः अमि / पा०८।४।६३। वा०४,५। 158 चयः शरि द्वितीयः / / 135 क्षुभ्नादीनाम् / पा०८।४।३। पा०८।४।४८। वा०३। [षष्ठस्य अध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्त :] .. // चान्द्रे व्याकरणे सूत्रस्य षष्ठः अध्यायः समाप्तः॥ . [आचार्यचन्द्रगोमिकृतं चान्द्रं व्याकरणं मूलसूत्रपाठतः समाप्तम् ] Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारादिक्रमेण चान्द्रव्याकरणसूत्रनिर्दिष्टगणानां तत्तत्सूत्रनिर्देशपूर्वकं सूचिः। 1 अक्षयूतादि 3 / 4 / 18 / 28 ऊषादि 4 / 2 / 111 / 2 अङ्गल्यादि 4 / 3 / 85 / 26 ऋगयनादि 313145 / 3 अजादि 2 / 3 / 15 / 30 ऋतुआदि 4 / 1 / 124 / 4 अजिरादि 5 / 2 / 133 / 31 ऐषुकारिआदि 3 / 1 / 63 / 5 अञ्जनादि 5 / 2 / 132 // 32 कच्छादि 3 / 2 / 48 / 6 अदादि (धातुगण) 1 / 1 / 83 / 33 कणादि (धातुगण) 6 / 1 / 64 / . 7 अध्यादि 2 / 1 / 51 // 34 कण्डूआदि (,,) 1 / 1 / 36 / 8 अध्यात्मादि 3 / 3 / 26 / 35 कत्त्रिआदि 3 / 2 / 5 / / 6 अनुशतिकादि 6 / 1 / 30 / 36 कथादि 3 / 4 / 104 / ' 10 अर्घर्चादि 2 / 2 / 83 / 37 कपिरिकादि 6 / 3 / 46 / 11 अर्शस्-आदि 4 / 2 / 147 / 38 कम्बोजादि 2 / 4 / 104 / 12 अश्वादि 2 / 4 / 3 / 36 कर्णादि 4 / 2 / 25 // 4 / 1 / 52 / 40 कलापिन्आदि 5 / 3 / 140 / 13 अश्वादि 2 / 4 / 31 / 41 कल्याणीआदि 2 / 4 / 56 / 14 अहर् (अहन्)-आदि 6 / 3 / 102 / 42 कस्कादि 6 / 4 / 45 / / 15 आकर्षादि 4 / 2 / 68 / 43 काशीआदि 3 / 2 / 33 / 16 आदिआदि 4 / 3 / / 44 किसरादि 3 / 4 / 55 / 17 इरिकादि 6 / 4 / 105 // 45 कुञ्जादि 2 / 4 / 33 / 18 इष्टादि 4 / 2 / 14 / 46 कुटआदि (धातुगण) 6 / 2 / 13 / 16 उक्थादि 3 / 1 / 38 / 47 कुम्भपदीआदि 4 / 4 / 128 / 20 उण् ('उण्' प्रत्यय) आदि 48 कुरुआदि 2 / 4 / 84 / 1 / 3 / 1 / 46 कुलालादि 3 / 3 / 84 / 21 उत्थापनादि 4 / 1 / 132 / 50 कृपणादि 6 / 3 / 41 / 22 उत्सादि 2 / 4 / 7 / 51 कृषिआदि 4 / 2 / 116 // 23 उत्सङ्गादि 3 / 4 / 14 / 52 कृआदि (धातुगण) 1 / 4 / 100 / 24 उद्गातृआदि 4 / 1 / 145 / 5 / 4 / 172 / 25 उपक 2 / 4 / 114 / 53 केशादि 4 / 2 / 113 / 26 उरस्-आदि 4 / 4 / 139 / 54 कोटरादि 5 / 2 / 132 / 27 ऊरीआदि 2 / 2 / 25 / 55 क्रमादि 3 / 1 / 40 / Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 क्रीआदि (ध तुगण) 111 / 101 / 57 क्रोडादि 2 / 3 / 67 / 58 क्रौडिआदि 2 / 3 / 84 / . 56 क्षिपकादि 6 / 17 / 60 क्षुभ्नादि 6 / 4 / 135 // 61 खलादि 3 / 1 / 57 / 62 गमादि (धातुगण) 5 / 3 / 46 / 63 गर्गादि 2 / 4 / 24 / 64 गवाश्वादि 2 / 2 / 57 / 65 गहादि 3 / 2 / 58 / 66 गिरिनद्यादि 6 / 4 / 111 / . 67 गृष्टयादि 2 / 4 / 77 / 68 गोआदि 4 / 12 / 66 गोणीआदि 2 / 2 / 87 / 70 गोपवनादि 2 / 4 / 116 // 71 गोसदादि 4 / 2 / 156 / 72 गौरादि 2 / 3 / 37 / 73 ग्रहादि (धातुगण) 1 / 1 / 140 / 5 / 4 / 126 / 74 चत्वारिंशत्आदि 5 / 2 / 54 / 75 चुरादि (धातुगण) 1 / 1 / 45 / / 76 चूडादि 4 / 1 / 130 / 77 छत्रादि 3 / 4 / 63 / 78 छेदादि 4 / 1 / 75 / 76 जक्षादि (धातुगण) 1 / 4 / 5 / 80 ज्योत्स्नादि 4 / 2 / 107 / / 81 ज्वलादि (धातुगण) 1 / 1 / 146 / 82 डतरादि (प्रत्यय) 2 / 1 / 25 / 83 तनादि (धातुगण) 1 / 1 / 64 / / 1 / 1 / 64 / 5 / 3 / 35 // 84 तारकादि 4 / 2 / 37 / 85 तालादि 3 / 3 / 106 / 86 तिकादि 2 / 4 / 86 / 87 तिककितवादि 2 / 4 / 115 / 88 तिष्ठद्गुआदि 2 / 2 / 10 / 86 तुदादि (धातुगण) 1 / 1 / 62 / 60 तौल्वल्यादि 2 / 4 / 122 / 61 त्यदादि 1 / 2 / 51 // 2 // 4 // 86 3 / 2 / 28 // 5 / 4 / 68 / 62 दण्डादि 4 / 1 / 76 / 63 दधिपयस्आदि 2 / 2 / 66 / 64 दामनि-आदि 4 / 3 / 12 / 65 दिवादि (धातुगण) 1 / 187 / 66 दिआदि 3 / 3 / 17 / 97 दृढादि 4 / 1 / 140 / 18 देवादि 4 / 4 / 40 / ह देवव्रतादि 4 / 1 / 10 / / 3 / 3 / 57 / 3 / 3 / 86 / 101 द्युतादि 1 / 1 / 73 / 1 / 4 / 143 / 102 द्वारादि 6 / 1 / 15 // 103 द्विदण्डिआदि 4 / 4 / 117 / 104 धूमादि 3 / 2 / 41 / 105 नखादि 5 / 2 / 15 / 106 नडादि 2 / 4 / 35 // 107 नद्यादि 3 / 2 / 6 / 108 नन्दादि (धातुगण) 1 / 1 / 140 / 106 नवयज्ञादि 4 / 2 / 124 / 110 निकटादि 3 / 4 / 74 / 111 निजादि (धातुगण) 6 / 2 / 127 / Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78] चान्द्रव्याकरणम् 112 नौ-आदि 2 / 1 / 80 / 4 / 2 / 118 // 113 न्यङकुआदि 6 / 1 / 84 / 114 पक्षादि 5 / 2 / 103 / 115 पत्यादि 6 / 3 / 102 / 116 परदारादि 3 / 4 / 45 / 117 परिमुखादि 3 / 3 / 23 / / 118 पर्यादि 3 / 4 / / 116 पशुआदि 4 / 3 / 63 / 120 पाण्यादि 1 / 2 / 14 / 121 पात्रादि 2 / 2 / 80 / 122 पामन्-आदि 4 / 2 / 104 / 123 पारस्करादि 5 / 1 / 142 / 124 पाशादि 3 / 1 / 56 / 125 पिच्छादि 4 / 2 / 103 / 126 पील्वादि 4 / 2 / 24 / . 127 पुण्याहवाचनादि 4 / 1 / 134 / 128 पुष्ादि (धातुगण) 1 / 1 / 73 / 126 पुष्करादि 4 / 2 / 132 / 130 पूआदि (धातुगण) 6 / 1 / 108 / 131 पूर्वादि 2 / 1 / 15 / 132 पृथ 4 / 1 / 136 / 133 पृषोदरादि 5 / 2 / 127 / 134 पिङ्गाक्षिपुत्रादि 3 / 1 / 24 / 135 पैलादि 2 / 4 / 121 / 136 प्रादि 1 / 1 / 10 / 1 / 1 / 142 / 1 / 1 / 144 / 1 / 1 / 150 / 1 / 2 / 2 / 1 / 3 / 11 / 1 / 3 / 14 / 1 / 3 / 46 / . 13 / 511 1 / 3 / 58 / 1 / 371 / 1 / 3 / 87.. 1 / 4 / 72 / 1 / 4 / 86 / 1 / 4 / 117) 1 / 4 / 126 / 2 / 2 / 24 / 4 / 4 / 71 / 4 / 4 / 110 / 5 / 1 / 13 / 5 / 2 / 113 / 5 / 2 / 141 / 5 / 4 / 21 / 5 / 4 / 23 / 6 / 1156 / 6 / 2 / 75 / 6 / 2 / 97 6 / 3 / 42 / 6 / 4 / 50 / 6 / 4 / 74 / 6 / 4 / 66 / 6 / 4 / 114 / 137 प्रज्ञादि 4 / 4 / 22 / 138 प्रतिजनादि 3 / 4 / 101 / 136 प्रभूतादि 3 / 4 / 47 / 140 प्रियाआदि 5 / 2 / 26 / 141 फण् आदि (धातुगण) 5 / 3 / 121 // 142 बाहीकादि 3 / 2 / 20 / 143 बाहुआदि 2 / 4 / 20 / Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [79 गणसूचिः 144 बिदादि 2 / 4 / 22 / 173 लोमन् आदि 4 / 2 / 104 / ... 145 बिल्वकीयादि 5 / 3 / 157 / / 174 लोहितादि 1 / 1 / 31 / / 146 ब्राह्मणादि 4 / 1 / 141 / 175 लोहितादि 2 / 3 / 20 / . .. 147 भाँदि 2 / 4 / 106 / 176 वंशादि 4 / 1 / 72 / / 148 भस्त्रादि 3 / 4 / 15 / 177 वाकिनादि 2 / 4 / 61 / 146 भिक्षादि 3 / 1 / 44 / 178 विंशत्यादि 4 / 2152 / 150 भिदादि (धातुगण) 1 / 3 / 86 / / 176 विनयादि 4 / 4 / 17 / 151 भशादि / / 30 // 180 विमुक्तादि 4 / 2 / 155 / 152 भौरिकिआदि 3 / 1 / 63 / 181 वृत्आदि (धातुगण) 1 / 4 / 144 / 153 भ्रूकुंसादि 5 / 2 / 72 / / 5 / 4 / 123 / 154 मनोज्ञादि 4 / 1 / 146 / 182 वेणुकादि 3 / 2 / 61 / 155 महानाम्नीआदि 4 / 1 / 107 / 183 वेतनादि 3 / 4 / 40 / 156 महिषीआदि 3 / 4 / 50 / 184 व्यासादि 2 / 4 / 21 / 157 'मा' शब्दादि 3 / 4 / 48 / 185 व्युष्टादि 4 / 1 / 115 / 158 मुचादि (धातुगण) 5 / 4 / 11 / 186 व्रीहिआदि 4 / 2 / 116 / 156 यजादि (धातुगण) 5 / 1 / 14 / / 187 शकादि (धातुगण) 5 / 4 / 135 / . 160 यवादि 6 // 3 // 38 // 188 शकन्धआदि 511 / 18 / 161 यस्कादि 2 / 4 / 110 / 186 शकलादि 3 / 2 / 21 / 162 यावादि 4 / 4 / 12 / 190 शण्डिकादि 3 / 3 / 60 / 163 युवन्आदि 4 / 1 / 146 / 161 शतादि 4 / 2 / 53 / 6 / 4 / 112 / 162 शब्दादि 1 / 1 / 36 / 164 यूपादि 4 / 1 / 3 / 163 शमादि (धातुगण) 6 / 1 / 102 / 165 रज्जुआदि 2 / 3 / 76 / 164 शरादि 3 / 3 / 114 / 5 / 2 / 134 / 166 रधादि (धातुगण) 5 / 4 / 108 / 165 शरदआदि 4 / 4 / 10 / 167 राजन्यादि 3 / 1 / 62 / 166 शर्करादि 4 / 3 / 84 / 168 रुदादि (धातुगण) 5 / 4 / 173 / / 197 शाखादि 4 / 3 / 81 / 6 / 2 / 37 / 198 शिखादि 4 / 2 / 134 / 169 रुधादि (धातुगण) 1 / 1 / 63 / / 196 शिवादि 2 / 4 / 41 / 170 रेवत्यादि 2 / 4 / 7 / 200 शिशुक्रन्दादि 3 / 3 / 56 // 171 रैवतिक 3 / 3 / 66 / 201 शुण्डिकादि 3 / 3 / 48 / 172 लू आदि (धातुगण) 6 / 3 / 76 / 202 शुभ्रादि 2 / 4 / 53 / Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4.] - चानण्याकरणम् 203 शोणादि 2 / 3 / 41 / 214 सिआदि (धातुगण) 6 / 4 / 56 / . 204 शौनकादि 3 / 3 / 72 / 215 सुआदि (धातुगण) 1 / 1 / 65 205 षष्टि आदि 4 / 2 / 54 / 6 / 4 / 57 / 206 संतापादि 4 / 1 / 120 / 6 / 4 / 50 / 207 संपादि 13 / 63 / 216 सुखादि / 1 / 1 / 35 / 208 संध्यादि 3 / 2 / 76 / 4 / 2 / 128 / 206 समानादि 2 / 3 / 33 / 217 सुषामन्आदि 6 / 4 / 86 / 210 सर्वादि 2 / 1 / 6 / 218 सुस्नातादि 3 / 4 / 46 / 2 / 172 / 216 स्तोकादि 5 / 2 / 2 / 4 / 3 / 7 / 220 स्थाआदि (धातुगण) 6 / 4 / 58 / 4 / 3160 6 / 4 / 50 / 5 / 2 / 41 / 221 स्थूलादि 4 / 3 / 27 / 5 / 2 / 108 / 222 स्वर्गादि 4 / 1 / 133 / 6 / 3 / / 223 स्वागतादि 6 / 1 / 18 / 211 साक्षात्आदि 2 / 2 / 36 / 224 हरितादि 2 / 4 / 36 / 212 सिध्मादि 4 / 2 / 100 / 225 हस्तिन् आदि 4 / 4 / 127 / / 213 सिन्धुआदि 3 / 3 / 61 / 226 हिमादि 4 / 2 / 136 / .. [इति चान्वसूत्रोक्तगणसूचिः समाप्ता] Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो मृत्युजिते [स्वर-व्यञ्जनानां स्थान-करण-प्रयत्नपरिचयः' ] स्थान-करण-प्रयत्नेभ्यो वर्णा जायन्ते। विसर्जनीय - जिह्वामूलीय - उपध्मानीयाश्च (1) तत्र स्थानम् -- विवृतकण्ठाः श्वासानुप्रदानाः अघोषाश्च / कण्ठः अ-कु-ह-विसर्जनीयानाम् / / प्रथम - तृतीय - पञ्चमाः अन्तःस्थाश्च कण्ठ-तालुकम् इत्-एत्-ऐताम् / / अल्पप्राणाः / कण्ठ-ओष्ठम् उत्-ओत्-औताम् / इतरे महाप्राणाः / मूर्धा ऋ-टु-र-षाणाम् / तृतीय- चतुर्थ - पञ्चमाः सानुस्वारदन्ता लु-तु-ल-सानाम् / अन्तःस्थ-हकाराः संवृतकण्ठाः नादानुनासिका अनुस्वारस्य / प्रदानाः घोषवन्तः / स्वस्थान-अनुनासिका द्वितीय - चतुर्थाः श-ष - स-हाश्च __ङ-ञ-ण-न-माः / ऊष्माणः / तालु इ-चु-य-शानाम् / कादयः मावसानाः स्पर्शाः / ओष्ठौ उ-पु-उपध्मानीयानाम् / अन्तःस्था य-र-ल-वा इति एष बाह्यदन्त-ओष्ठम् वकारस्य / प्रयत्नः / जिह्वामूलम् जिह्वामूलीयस्य / / अत्र च अवर्णः हस्वः दीर्घः प्लुत (2) करणम् -- इति त्रिधा भिन्नः / जिह्वाग्रम् दन्त्यानाम् / प्रत्येकम् उदात्त-अनुदात्त-स्वरितभेदेन जिह्वोपानम् शिरस्यानाम् / सानुनासिक-निरनुनासिकभेदेन च अष्टाजिह्वामध्यम् तालव्यानाम् / दशधा भवति / शेषाः स्वस्थानकरणाः // एवम् इवर्ण-उवर्णी ऋवर्णश्च / (3) प्रयत्नः द्विविधः-आभ्यन्तरः बाह्य लुवर्णस्य दीर्घा न सन्ति तेन स श्च / तत्र आभ्यन्तरः-- द्वादशधा भवति / संवृतत्वम् विवृतत्वम् स्पृष्टत्वम् / सन्ध्यक्षराणां हस्वाभावात् तानि अपि ईषत्स्पृष्टत्वं च / द्वादशधा / संवृतत्वम् अकारस्य / एकमात्रिकः हस्वः / / विवृतत्वम् स्वराणाम् ऊष्मणां च / द्विमात्रिक: दीर्घः / तेभ्यः विवृततरत्वम् एत्-ओतोः / त्रिमात्रिकः प्लुतः / .... ताभ्याम् ऐत्-औतोः / ताभ्यामपि उच्चैः उदात्तः / आकारस्य / नीचैः अनुदात्तः / . स्पृष्टत्वम् स्पर्शानाम् / समाहारः स्वरितः / / ईषत्स्पृष्टत्वम् अन्तःस्थानाम् / स्वस्थानानुनासिकः निरनुनासिकश्च / बाह्य :-- अन्तःस्थाः द्विप्रभेदा रेफजिताः वर्गाणां प्रथम-द्वितीयाः श-ष-स- सानुनासिका निरनुनासिकाश्च / [इति चन्द्रगोमिकृतं वर्णसूत्रं समाप्तम् ] . 1 एतद्विषयः “इकः असस्थाने ह्रस्वश्व असमासे" 5 / 2 / 132 / इत्यस्मिन् सूत्रे प्रयुक्ते 'सस्थान' शब्दे। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // नमो मञ्जघोषाय // आचार्यश्रीचन्द्रगोमिविरचितम् उणादिप्रकरणम् उणादयः / 1 / 3 / 1 / 1 कृ-वा-पा-जि-मि-स्वदि-साधि-अशूभ्यः कारु: शिल्पी / वायुः समीरणः / .पायुः अपानम् / जायुः औषधम् / मायु: पित्तम् / गोमायुः सृगाल: / स्वादुः मधुरम् / साधुः परोपकारी / आशु शीघ्रम् धान्यनाम च / 2 दृ-सनि-जनि-चरि-चटि-तलिभ्यः बुण् / दारु काष्ठम् / सानुः गिरिप्रदेशः / जानु जङ्घास्थानम् / चारु शोभनम् / चाटुः स्फुटवादी / तालुः वदनैकदेशः / 3 किम्-जराभ्याम् श-इणः / किंशारुः शारः / जरायुः गर्भवेष्टनम् / 4 कृकात् वचः कश्च / कृकवाकुः कुक्कुट: कृकलासश्च / 5 भृ-म-तृ-चरि-तनि-मस्जि-शीभ्यः उः। भरु: भर्ता / मरु: निर्जलो देशः / तरुः पादपः / चरुः हविष्यान्नम् / तनुः शरीरम् / मद्गुः पक्षिविशेषः / शयुः अजगरः / 6 अणः / अणु सूक्ष्मम् / 7 धान्ये नित् / अणुः व्रीहिः / 8 पटि-असि-वसि-त्रपि-हनि-मनि-इन्दिकन्दि-बन्धिभ्यः / पटुः स्फुटवादी / असुः प्राणः / वसु द्रव्यम् / त्रपु सीसम् / हनुः वदनैकदेशः / मनुः प्रजापतिः / इन्दुः चन्द्रमाः / कन्दुः पाकस्थानम् / बन्धुः स्वजनः / 6 वहि-पंसेः दीर्घश्च / / बाहुः भुजः / पांसुः रेणुः / 10 नमि-मनि-जनां नाकि-ध-तश्च / नाकुः वल्मीकम् / मधु क्षौद्रम् / / जतु लाक्षा। 11 वलि-फलेः गुक् च / वल्गुः मनोज्ञः / Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणावि० पा० 1 सू० 12-23] फल्गुः असारः / . . 12 नेः अञ्चेः / न्यङकुः मृगः / 13 इषि-भिदि-व्यधि-गृधि-धृषि- प-पृथि-मृदेः कुः / इषुः शरः / भिदुः वज्रम् / विधुः अग्निः / गृधुः कामः / धृषुः प्रगल्भः / पुरुः समुद्रः / पृथुः विस्तीर्णः / मृदुः मर्दितः / 14 शशि-रपयोः अतः इत् च / शिशुः बाल: ____ रिपुः शत्रुः / 15 कृ-ग्रोः उत् च / .. कुरुः राजा / .. गुरुः आचार्यः / . 16 अर्तेः ऊत् च / .. ऊरुः सक्थि / उरुः महान् / -- 17 स्यन्दः यणः इक् धश्च / सिन्धुः नदी / 18 भ्रस्जि-स्पशेः सलोपश्च / ... भृगुः प्रपातः / . पशुः चतुष्पादः / - 16 सृजेः असुम् च / - रज्जुः द्वित्रिवृत्ता। ... 20 आखनि-बहेः नलोपश्च / __ आखुः मूषिकः / .. बहु भूरि / चान्द्रव्याकरणम् 21 शङकुआदयः / शङकुः चिह्नम् तर्कुः कर्तनद्रव्यम् / . शरुः आयुधम् / त्सरुः दर्पणदण्डः / धनुः शस्त्रम् / मयुः किन्नरः / अपष्ठः बालः / सुष्ठु शोभनम् / दुष्ठुः दुर्विनीतः / हरिद्रुः वृक्षजातिः / मितद्रुः समुद्रः / मित्रयुः मित्रवत्सलः / शतद्रुः नदी / . देवयुः धार्मिकः / कुमारयुः कुमारघाती / मृगयुः व्याधः / जटायुः पक्षी / पटायुः वस्त्रम् / 22 सि-तनि-गमि-मसि-सचि-अवि-धा क्रुशिभ्यः तुन् / सेतुः जलवन्धः / तन्तुः सूत्रम् / गन्तुः पथिकः / आगन्तुः अभ्यागतः / मस्तु दध्यवयवः / सक्तुः यवविकारः / ओतु: विडालः / धातुः लोहादिः / क्रोष्टुः सृगालः / 23 वसेः णित् वा / वास्तुः गृहभूमिः ।.वस्तु पदार्थः / Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [उणादि० पा० 1 0 24-38 24 कमि-मनि-जनि-हिभ्यः तुः / / कन्तुः कन्दर्पः / 30 सू-विषिभ्यां कित् / मन्तुः प्रजापतिः / सूनुः पुत्रः / जन्तुः प्राणी / विष्णुः नारायणः / हेतुः कारणम् / 31 धेनुआदयः / 25 ऋतुआदयः / धेनुः नवप्रसूता गौः / ऋतुः हेमन्तादिः / जह्नः ऋषिः / क्रतुः ससोमको यज्ञः / / स्थाणुः महादेवः / केतुः ध्वजः / वेणुः वंशः / पीतुः सूर्यः / / वग्नुः वावदूकः / गातु: उद्गाता / 32 क्षिपि-नदिभ्यां चनुङ / भातु: भास्करः / क्षिपणुः वायुः / यातुः कामुकः / नदनुः मेघः / / एधतुः पुरुषः / 33 सर्तेः अयुः / . वहतुः अनड्वान् / सरयुः नदी / . . जीवातुः औषधम् / 34 जनि-मनि-दसि-भुजेः क्युस् / अप्तुः याज्ञिकः / जन्युः प्राणी / 26 स्तनि-हृषि-पुषि-गदि-मदिभ्यः णेः मन्यः क्रोधः / इत्नुच् / दस्युः चौरः / स्तनयित्नुः मेघः / भुज्युः ओदनः / हर्षयित्नुः सुवर्णम् / 35 ही-इषि-कृशिभ्यः कुक् सुग् आनुक् / पोषयित्नुः कोकिलः / हीकु: अधृष्टः / गदयित्नुः वावदूकः / * ह्लीकुः स एव / / मदयित्नुः सुरा / इक्षुः खाद्यविशेषः / 27 हृ-क्रोः एणुः / कृशानुः वह्निः / हरेणुः गन्धद्रव्यम् / 36 मृङः त्युक् / करेणुः हस्ती / मृत्युः प्राणवियोगः / 28 दा-भाभ्यां नुः / 37 शीङः घुक् / दानुः दाता / शीधुः सुराविशेषः / भानुः भास्करः / 38 शुन्-अशुचौ पुरः / 26 री-वृषोः नित् / पशुः पार्वास्थि / रेणुः धूलिः / परशुः कुठारः / Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8 उणादि० पा० 1 सू० 39-50] 36 पी-म्योः रुः / पेरु: भास्करः / मेरुः पर्वतराजः / सुमेरुः स एव / 40 जत्रुआदयः / जत्रु ग्रीवाप्रदेशः / शत्रुः अमित्रः / रुरुः मृगः / श्मश्रु मुखरोम / खरुः दर्पः / शिग्रुः शोभाजनकः / 41 योः आगूच / यवागू: पेया / 42 भ्रमेः डूः / भ्रूः नेत्रोपरिस्थानम् / .. 43 चमि-तनि-बधिभ्यः ऊः। ___चमूः सेना / तनूः शरीरम् / . वधूः पुत्रभार्या / - 44 कषेः छश्च / ... कच्छू: पामा / -- 45 तिरः दुट् च / ... तर्दुः परिवेषणभाण्डम् / 46 यालोपः दरिद्रः / ___दर्दू: कुष्ठविकारः / - 47 जम्बूआदयः / जम्बू: वृक्षजातिः / दृन्भूः सर्पजातिः / दिधिषुः रण्डिका / पुनर्भूः पुनरूढिका / कर्कन्धः बदरीफलम् / , आडू: जलतरणी / चान्द्रव्याकरणम् अलाबूः तुम्बीफलम् / करूः भक्षणद्रव्यम् / कासूः विकलवाक् / पादूः पादधारणी / सर्जूः विद्युत् / खजूं: वृक्षजातिः / मर्जूः मलविशुद्धभाण्डम् / नृतूः दीर्घकृमिः / शृधूः यज्ञः / कर्षः शुष्कगोमयाग्निः / कम्बूः परद्रव्यापहारी / रतूः नदी / अन्दूः भूषणजातिः / कफेलू: श्लेष्मातकः / 48 दिवेः ऋन् / देवा पतिभ्राता / 46 नियो डित् / / ना पुरुषः / 50 पितृआदयः / पिता जनकः / माता जननी / दुहिता आत्मजा / ननान्दा पतिभगिनी। भ्राता सोदर्यः / जामाता दुहितृपतिः / स्वसा भगिनी / नप्ता पौत्रः / नेष्टा ऋत्विक् / त्वष्टा आदित्यः / क्षत्ता प्रतीहारः / .. होता विष्णुः / पोता बालः / Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 86] चान्द्रव्याकरणम् [उणादि० पा० 1 0 51-63 प्रशास्ता उपाध्यायः / वारि सलिलम् / 51 रवि-कवि-दरि-शरि-वलि-वल्लि घातिः प्रहरणम् / ध्वनि-अवि-हरि-ग्रन्थिभ्यः इः / नाभिः शरीरावयवः / रविः सूर्य / 57 अजि-जनि-अति-घसि-रशि-पणेः इण् / कविः काव्यकर्ता / आजिः युद्धम् / दरिः प्रपातः / जनिः माता / .. शरिः शारः / आतिः गमनम् / बलिः असुरेन्द्र: / घासिः अग्निः / वल्लि: शाखा / राशिः समूहः / ध्वनिः शब्दः / पाणिः करः / अविः मेषः / हरिः विष्णुः / 58 वेबः डिः / ग्रन्धिः पर्वसन्धिः / वि: पक्षी / 52 इगुपान्तात् किः / 56 नेः ईत् च / क्षिपिः योद्धा / नीविः मेखला / शुचिः विविक्तः / 60 सखीआदयः / रुचिः अभिलाषः / सखा मित्रम् / कृषिः कर्षणम् / अश्रि: कोटि: / . 53 क्रमः अतः इत् च / प्रहिः कूपः / भ्रमि: वायुः / क्रिमिः क्षुद्रजन्तुः / कारिः शिल्पी / 54 मनेः उत् च / 61 सङ्ग्-असिभ्यां क्थिन् / मुनिः ऋषिः / सक्थि ऊरुप्रदेशः / 55 अंहि-कम्पोः नलोपश्च / अस्थि शरीरावयवः / अहिः सर्पः / कपिः वानरः / 62 सारेः अथिन् / 56 शृ-वसि-वपि-राजि-व-हनि-नभेः इन। सारथिः रथवाहः / शारिः शारिका / 63 अङ्गि-अतिभ्याम् उरि-इथिनौ / वासिः तक्षकमाण्डम् / अङ्गरिः करावयवः / वापिः पुष्करिणी / अङ्गलि: स एव / राजिः पङक्तिः / अतिथि: अभ्यागतः / Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रब्याकरणम् उगादि० पा० 1 0 64-81] 64 नी-दलिभ्यां मिः। नेमिः शकटम् / दल्मिः शक्रः / 65 मि-रश्मि-भूमयः / ऊर्मिः तरङ्गः / रश्मिः प्रभा / भूमिः पृथ्वी / 66 कुषेः सिक् / कुक्षिः उदरम् / 67 अशेः नित् / __अक्षि नेत्रम् / 68 मृ-कणिभ्याम् ईचिः / मरीचिः मयूखः कणीति - . - . 66 रा-शदिभ्यां निप् / रात्रिः क्षपा / शत्तिः कुञ्जरः / 70 भू-सूङ्-अदिभ्यः क्रिन् / भूरि प्रभूतम् / . . सूरिः आदित्यः / अद्रिः पर्वतः / 71 शकि-भूभ्याम् उन्ति-अन्तिचौ / शकुन्तिः पक्षी / भवन्तिः कालः / 72 अर्तेः अनिच् / __अरनिः करः / 73 अञ्जः अलिन् / - अञ्जलि: करसम्पुटः / 74 ऋ-तृ-स-धू-धमि-अशि-अवि-वृति-प्रहेः अनिः / अरणिः अग्निकाष्ठम् / तरणिः समुद्रः / सरणिः पन्थाः / धरणिः पृथ्वी / धमनिः गलसिरा। अशनिः वज्रः / अवनिः पृथ्वी / वर्तनिः कर्तनद्रव्यम् / ग्रहणिः वह्निस्थानम् / 75 क्षिपः कित् / __ क्षिपणिः वायुः / 76 शकेः उनिः / शकुनिः पक्षी / 77 अगेः निः / अग्निः पावकः / 78 वेणिः / वेणिः केशबन्धः / 76 श्रु-शि-यु-वहः नित् / श्रोणिः कटिप्रदेशः / श्रेणिः पङ्क्तिः / योनिः मार्गः / वह्निः अग्निः / 80 पाष्णिआदयः / पाणिः पादप्रहारः / वृष्णिः शक्रः / घृणिः रश्मिः / शृणि: अङ्कशः / भूमिः पृथिवी / भूणिः वारणः / चर्णि: ग्रन्थविशेषः / तूर्णिः त्वरितः / 'जूणिः मुसलः / 81 वृ-दृभ्यां विन् / वर्वि: शकटम् / Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88] दर्विः तर्दूः / 82 जागुः क्विन् / जागवी राजा / 83 छविआदयः / छविः त्वक् / स्थविः तन्तुवायः / किकि: पक्षी / दिविः आदित्यः / दीदिविः स्वर्गः / कृविः धूपः। पृष्विः रजः / - जीविः औषधिः / 84 ह-वसिभ्यां क्तिन् / दृतिः चर्म / वस्तिः मुद्राश्रयः / 85 पातेः डतिः / पतिः स्वामी / पशुपतिः महादेवः / 86 अमेः अतिः / अमतिः कालः / 87 वहि-वसिभ्याम् चतिः / वहतिः गौः / वसतिः ग्रामसन्निवेशः / 88 तन्द्रेः ईः। तन्द्री: मूर्छा। 86 लक्षेः मुटु च। लक्ष्मी: श्रीः / 10 अवीआदयः। अवीः प्रकाशः। तरीः वैश्वानरः / स्तरी: धूमः। ययीः अश्वः। पपी: आदित्यः / चान्द्रव्याकरणम् [उणादि०पा०१सू०८२-९५; पा०२सू०२ वातप्रमीः वातमृगः / 61 रातः डैः। राः सुवर्णम् / 12 गमेः डोः / ____ गौः पृथिवी। 63 ग्ला-नुविभ्यां डौः। ग्लौः चन्द्रमाः / नौः जलतरणी। 64 तारेः अन् / तारा भगवती। 65 जे : नुक् च / जिन: भगवान् बुद्धः / .. // उणादौ प्रथमः पादः समाप्तः // 1 इण्-भी-का-पा-शलि-मचिभ्यः कन् / एक: एकाकी / भेक: मण्डूकः। काक: वायसः / . पाक: बाल: / शल्क: वल्कल: / मर्कः वायुः / - 2 यूकाआदयः। यका ओकणी / अर्भक: शिशुः / पृथुकः बाल: / . . भीक: भीरुः / उदकम् जलम् / घूक: काल: / स्यमीकः वल्मीकः / वीका अन्तर्गलवर्तिका / ह्रीकः अधृष्ट: / ह्लीकः स एव / एवम् अन्येऽपि द्रष्टव्याः / Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [89 उणादि० पा० 2 सू० 3-17] चानण्याकरणम् 3 क-दा-धा-रा-अचिभ्यः कः / , आपतिक: बालः / कर्कः वर्णविशेषः / 10 स्यमः यः ईत् च / कल्कम् पिष्टद्रव्यम् / सीमिकः वृक्षः / दाकः यज्ञः / 11 भी-शीभ्याम् आनकः / धाकः ओदनः / भयानकम् गहनम् / राका पौर्णमासी / शयानक: अजगरः / अर्कः आदित्यः / 12 शिङ्कोः आणकः। 4 उल्कादयः / शिवाणक: नासास्रवः / उल्का ज्वाला / 13 कृति-भिदि-लतेः क्तिकन् / उल्मुकम् अर्धदग्धकाष्ठम् / कृत्तिका नक्षत्रम्। सृकः उत्पलम् / भित्तिका कुड्यम् / वृकः पशुजातिः / लत्तिका गोधा। भूकम् छिद्रम् / 14 इषेः क्तकन् / मुष्कः वृषणम् / . इष्टका पक्वमृत्तिका / वल्कम् वल्कलम् / 15 वलि-पतेः आकः / शुकः पक्षी / वलाका पक्षिजातिः / 5 क्षिपि-लवि-लिखि-धमिभ्यः क्वुन् / पताका ध्वजः / क्षिपकः योद्धा / 16 पिनाकआदयः / / - लङ्घक: मालाकारः / पिनाक: त्रिशूल: / - लिखक: चित्रकरः / खजाकः पक्षी। धमक: कर्मकरः / मनाक: स्तोकः / गुवाकः पूगफलम् / / जहकः कालः / तडाक: सरः / - 7 कृषेः अचश्चाद् वा / शलाका विद्योपकरणद्रव्यम् / - कार्षक: कुटुम्बी / नशाक: ताडयिता / कृष्को वा / श्यामाकः तृणजातिः / / 8 वश्चि-मूषेश्च किकन् / विदाक: ज्ञानम् / वृश्चिक: कीट: / नमाकः पिच्छिल: / मूषिक: आखुः / भण्डाकम् शुभम् / कृषिक: कुटुम्बी। खुराक: मर्मच्छेदनद्रव्यम् / 6 पणि-पतेः आङः / 17 क्रियः इकन् / ...... , आपणिकः वणिक् / क्रयिकः क्रेता / Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 अलि-इषः कोकन् / अलीकम् मृषा / इषीका तूलाश्रयः / 16 किङ्किणीकाआदय / किङ्किणीका क्षुद्रघण्टिका / तिन्तिडीका वृक्षजातिः / मृद्वीका द्राक्षा / मृडीक: उरगः / पतत्रीका पक्षी / वर्वरीका तरुणी / जर्जरीका छिद्रम् / वलीका उदरवर्तिः / ऋजीक: ऋजुकः / वालीक: जनपदः / शर्शरीकः इन्द्रः / . पर्परीका अश्वशाला / दर्दरीक: मर्दलकः / शृणीका लाला / मणीका मेखला / कणीका सूक्ष्मजातिः / 20 कृत्रादिभ्यः वुन् / करका सुराभाण्डम् सरकः सुरापानम् / नरकः दुःखस्थानम् भरकः स्वामी। वरकः चरणम् / कनकम् सुवर्णम् / जनकः पिता। 21 शलि-मण्डः ऊकञ् / शालूकम् उत्पलादिमूलम् / मण्डूक: भेकः / चान्द्रव्याकरणम् [उणादि० पा० 2 सू० 18-31 22 उलूक आदयः / उलूकः पेचकः / मधुक: वृक्षजातिः। वलूकः हिंस्रः / जलका प्राणकविशेषः / मरूकः मयूरः। काणूकः काकः / मलूकः कृमिजातिः / भालूकः अच्छभल्ल: / पिचूकः कर्पासः / . कचूकः शाकजातिः। 23 शमः खः / __ शङ्खः उदकसंभवः। 24 मुहेः मूर्च / मूर्खः बालः / 25 शिखा / - शिखा दीप्तिः / 26 मुदि-प्रोः गक्-गौ। मुद्गः व्रीहिजातिः / गर्गः शास्त्रविशेषः / 27 पतेः अङ्गच् / पतङ्गः शलभः। 28 गमेः गन् / गङ्गा जाहनवी। 26 शृङ्ग-अङ्ग-भृङ्गाः। शृङ्गम् विषाणम् / अङ्गम् शरीरम् / भृङ्गः भ्रमरः / 30 जनेः घः / - जङ्घा प्राण्यङ्गम् / 31 कचेः छः। कच्छ: पावः / Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणावि० पा० 2 सू० 32-46] 32 शकादिभ्यः अटन् / शकटम् वाहनम् / अकटम् हिरणम् / कुलटा बन्धकी / देवटः ऋषिः / मर्कट: वानरः / कमट: रुद्रः / 33 जटा-लोष्टम् / जटा केशबन्धः / लोष्टम् मृद्वलिः / 34 कु-तृ-कृपेः कोटन् / किरीटम् मुकुटम् / तिरीटम् वेष्टनम् / कृपीटम् जलम् / 35 शमेः ण्ठः / ____शण्ठः महिषचौरः / 36 कमः अठत् च / ___कमठः वामनः / कण्ठः ग्रीवा / 37 क-वृक्षः अण्डन् / - करण्ड : गुह्यस्थानम् / * वरण्ड: मुखरोगः / 38 ऊर्णोः डः / ऊर्णा मेषरोम / 36 बमन्तात् डः / चण्ड: दुर्जनः / . दण्ड: लगुडः / अण्ड: पक्षिप्रसवः / रण्डा अप्रसवा / वण्ड: दुश्चर्मा / गण्ड: कपोलः / - खण्ड: गुडविकारः / चानव्याकरणम् __ [91 40 कुण्ड आदयः / कुण्डम् भाजनम् / मुण्डम् शिरः / जुण्डम् वनम् / तुण्डम् मुखम् / एवम् अन्येऽपि द्रष्टव्याः / 41 शमेः ढः / शण्डः अप्रसवः / 42 शकेः उन्तः / शकुन्तः पक्षी / 43 ज-विशः अन्तच् / जरन्तः महिषः / वेशन्तः वल्लभः / 44 रुहि-नन्दि-जीवेः षित् / रोहन्तः वृक्षः / रोहन्ती ओषधी / नन्दन्ती सखी / जीवन्ती ओषधी / 45 भू-जि-वसि-वहि-साधि-भासि-गडि मण्डि-हेमिभ्यः / भवन्तः काल: / जयन्तः वृक्षविशेषः / , वसन्तः ऋतुविशेषः / वहन्तः रथः / साधन्तः भिक्षुः / भासन्तः सूर्यः / गडयन्त: मेघः / मण्डयन्तः ओदनः / हेमन्तः ऋतुः / 46 अतः भुवः डुतच् / अद्भुतम् आश्चर्यम् / Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 92]. बालन्याकरणम् [उणादि० पा० 2 सू० 47-57. 47 रुहि-ह-श्याभ्यः इतच् / सितम् शुक्लम् / रोहित: मत्स्यः / दूतः प्रेष्यः / लोहितम् रक्तम् / 52 तात-पलित-जर्त-सूरताः / हरितः वर्णविशेषः / तातः पिता / श्यतः स एव / पलित: केशविकारः / 48 भृञादिभ्यः अतच् / जर्तः दीर्घरोमा / भरतः नटः / सूरतः सुखसंवासः / जयतः वह्निः / 53 शमादिभ्यः अथः / पर्वतः गिरिः / शमथः समाधिः / पचतः सूपकारः / शपथः प्रत्ययकारः / यमतः व्याधिः / आवसथः गृहम् / दर्शतः सोमः / वदथः कोकिल: / नमत: नम्रः / रवथः स एव / . . हर्यतः यज्ञः / गमथः काल: / खलतः दुर्जनः / जीवथः धर्मः / 46 पृषि-रजेः कित् / प्राणथः प्रजापतिः / पृषतः मृगः / भरथः अग्निः / रजतम् रूप्यम् / वेदथ: मार्गः / 50 मृ-ग-वा-हसि-इण्-अमि-दमि-लू-पू- 54 रमि-कुषि-काशिभ्यः क्थन् / धूविभ्यः तन् / रथः स्यन्दनम् / मर्तः लोकः / कुष्ठः व्याधिः / गर्त: श्वभ्रम् / काष्ठम् इन्धनम् / वात: वायुः / 55 अवात् भृतः / / हस्तः करः / अवभृथः यज्ञावसानम् / एत: वर्णः / 56 उषि-कुषि-गा-अतिभ्यः थन् / अन्तः अवसानम् / ओष्ठः अधरः / दन्तः दशनम् / कोष्ठः उदरः / लोत: अश्रुपातः / गाथा ग्रन्थविशेषः / (छन्दोविशेषः) पोत: बाल: / अर्थः धनम् / धूर्तः शठः / 57 . वृषः ऊथन् / 51 घृ-सि-दूभ्यः क्तः / जरूथम् अग्रमांसम् / घृतम् आज्यम् / वरूथः बलसमूहः / . Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [91 उणादि० पा० 2 सू० 58-70] चान्द्रग्याकरणम् 58 पा-न-तुदि-वचि-रिचि-सिचि-विशेः 62 श्या-स्त्या-हब-अविभ्यः इनच् / थक् / श्येनः पक्षी / पीथम् जलम् / स्त्येनः चौरः / तीर्थम् पुण्यस्थानम् / हरिणः मृगः / तुत्थः अग्निः / अविनः दृश्यः / उक्थः सामवेदः / 63 वृजिन-अजिनम् / रिक्थम् द्रव्यम् / वृजिनः कुटिलः / सिक्थम् मधूच्छिष्टम् / अजिनम् चर्म / विष्ठा पुरीषम् / 64 वी-पतिभ्यां तनन् / 56 यूथ-आदयः / वेतना भृतिः / यूथः प्राणिसमूहः / पत्तनं नगरम् / गूथः विष्ठा / 65 द्रु-दक्षिभ्यां इनन् / पृष्ठम् प्राण्यङ्गम् / . द्रविणम् द्रव्यम् / समिथः ऋत्विविशेषः / दक्षिणा लोकयात्रा / निशीथः प्रदोषान्तः / / 66 विपिन-इरिण-तुहिन-महिनानि / निर्ऋथः यज्ञावसानम् / विपिनम् गहनम् / निभृथः भर्ता / इरिणम् ऊषरम् / गोपीथः प्रत्यूषः / तुहिनम् तुषारः / उद्गीथः साम / महिनम् महत्त्वम् / प्रोथम् घ्राणाश्रयः / 67 रसि-रुचि-रु-वृञः युच् / तिथः अग्निः / रसना मेखला / - 60 शवि-कमिभ्यां दन् / रोचना गोपित्तम् / रवणः आदित्यः / शब्दः ध्वनिः / वरणा नदी / कन्दः मूलम् / 68 उन्देः नलोपश्च / 61 अब्द-आदयः / ओदनः अन्नम् / अब्दः संवत्सरः / 66 रजेः क्युन् / वृन्दम् समूहः / रजनम् रङ्गः / कुन्दः पुष्पविशेषः / रजनी रात्रिः / मन्द: जड: / 70 कृ-प-वृजि-मण्डि-निधाञः क्युः / तुन्दः उदरवृद्धिः / किरणः प्रभा / श्यान्दः सुवर्णम् / पूरणः समुद्रः / Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पानव्याकरणम् [उणादि० पा० 2 सू० 71-84 वृजनम् अन्तरीक्षम् / 77 शिलषेः इतः अत् च / मण्डनम् भूषणम् / __श्लक्ष्णः मृदुः / निधानम् निधिः / 78 तिजेः ईत् च / 71 षेः धिष च। तीक्ष्णम् निशितम् / घिषणा बुद्धिः / 76 रास्ना-आवयः / 72 हनः जघ च / रास्ना ओषधिः। जघनम् कटिप्रदेशः। सास्ना गोग्रीवा / 73 अधि-वसि-धा-पृभ्यः नः / स्थूणा गृहधरणी। ब्रन: आदित्यः / वीणा वाद्यविशेषः / वस्न: मूल्यम् / तृणम् वीरणादि / धाना यवविकारः / अर्णः विटपः / पर्णम् पत्त्रम् / जीर्णः वृद्धः / .. 74 कृ-वृ-तृ-स्वपि-सि-ब्रुभ्यः नन् / 80 क-व-त-यमि-दारि-अर्जेः उनन् / कर्णः श्रोत्रम् / करुणा कृपा / वर्णः नीलादिः / वरुणः जलराजः / तर्णः समुद्रः / तरुणः युवा / स्वप्नः निद्रा / तलुनः स एव / सेना बलसमूहः / यमुना नदी / द्रोण: परिमाणम् / दारुणः रौद्रः / 75 उषि-इण्-अवि-कृषि-तृषि-बुधि-रति- अर्जुनः वृक्षविशेषः / धा-पृभ्यः नक् / 81 शकः उनः। उष्णः अग्निः / शकुनः पक्षी / इनः स्वामी / 82 पृ-पा-तलेः पः। ऊनः विकल: / पर्पः गृहम् / कृष्णः वर्णः / पापम् जिह्मम् / तृष्ण: अभिलाषः / तल्पम् शयनम् / बुध्न: पृष्ठान्तः / 83 स्तोः ऊ च / रत्नम् जातो जातो यद् उत्कृष्टम् / स्तूपम् चैत्यम् / धीनः समुद्रः / 84 यु-कु-सूनां कित् च / पूर्णः स एव / यूपः यज्ञयष्टिः / 76 कृतेः सुक् च। कूपः प्रहिः / कृत्स्नम् निरवशेषम् / सूपः व्यञ्जनम् / Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादि० पा० 2 सू० 85-98] चान्द्रव्याकरणम् 85 बाष्प-आदयः / खट्वा शयनीयम् / बाष्पः ऊष्मागमः विश्वम् निरवशेषम् / शष्पम् बालतृणम् / 12 शिव-आदयः / शिल्पम् विज्ञानम् / शिवम् शान्तम् / रूपम् नीलादि / सर्वम् अशेषम् / शूर्पम् कुलवः / उल्बम् जरायुः / खष्पः बलात्कारः / शुल्बम् ताम्रम् / 86 सर्तेः अपः सुक् च / निम्बम् अरिष्टम् / सर्षपः व्रीहिजातिः / बिम्बम् शरीरम् / 87 विटप-आदयः / शम्बः लोहविकारः / विटपम् गहनम् / स्तम्बः विटपम् / विशपः गृहम् / . जिह्वा रसना / उलप: संतापः / ग्रीवा गलप्रदेशः / कुणपः मृतकः / 63 क-श-गर्देः अभच् / उषपः अग्निः / करभः उष्ट्रः / कुतपः प्रस्थचतुर्थभागः / / कलभः हस्तिपोतः / दलप: प्रहरणम् / शरभः पशुजातिः / कचपः शाकविशेषः / शलभः पतङ्गः / विष्टपः स्वर्गः / गर्दभः खरः / मण्डपः देवगृहम् / 14 ऋषि-वृषि-रासि-बल्ले: कित् / विशिपः प्रवेशः / ऋषभ: बलीबर्दः / 88 रातेः इफः / वृषभः स एव / रेफः अक्षरम् / रासभः गर्दभः / 89 गुरेः फक् / वल्लभः प्रियः / गुल्फः प्रपदम् / 65 दुङः भः / .. 60 ग-शृभ्यां वः / दर्भः कुशः / गर्वः मानः / 66 गिरः भन् / - शर्वः महादेवः / गर्भः अन्तःप्रदेशः / 61 अशि-लटि-कणि-खटि-विशेः क्वन् / 97 इणः कित् / अश्वः तुरङ्गः / - इभः कुखरः / .. लट्वा पक्षी / 18 गुधेः ऊमः / कण्वम् पापम् / गोधूमः व्रीहिजातिः / Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [उणादि० पा० 2 सू० 99-115. 66 प्रथि-चरेः अमच् / युग्मम् युगलम् / प्रथमम् प्रमुखम् / रुग्मम् रजतम् / चरमम् पश्चात् / तिग्मम् तीक्ष्णम् / 100 ऋ-स्तु-सु-हु-धृ-क्षि-क्षु-भा-या-पवि- 106 धर्म-ग्रीष्म-अधमाः / यक्षि-णीभ्यः मन् / / धर्मः प्रस्वेदः / / / अर्मः अक्षिरोगः / ग्रीष्मः ऋतुविशेषः / स्तोमः संघातः / अधमः प्रत्यपरः / . . सोमः शशाङ्कः / 107 तनेः कयन् / होमः होतव्यम् / तनयः पुत्रः / धर्मः पुण्यम् / 108 हरः दुक् च / क्षेमम् कुशलम् / . हृदयम् मनः / क्षोमम् अतसी / 106 मा-छा-ससि-सभ्यः यः / . भामः कान्तिः / माया परवञ्चना / यामः प्रहरः / छाया प्रतिबिम्बम / पद्मम् कमलम् / सस्यम् सारः / यक्ष्मः व्याधिः / सव्यम् वामम् / नेमः अधस्तात् / 110 जाया-आदयः / 101 ग्रसेः आत् च / जाया भार्या / ग्रामः जनपदसन्निवेशः / कन्या कुमारी / , 102 सूचेः स्मन् / सन्ध्या दिनावसानम् / सूक्ष्मम् निरञ्जनम् / बन्ध्या कुलटा / 103 युधि-हि-इन्धि-जनि-श्या-धूभ्यः मक् / 111 रुचि-भुजेः किष्यन् / युध्मः शरः / रुचिष्यः ओदनम् / हिमम् तुहिनम् / भुजिष्यः श्रेष्ठः / . इध्मः काष्ठम् / 112 मदेः स्यन् / जन्मः प्रसवः / मत्स्यः जलचरः / श्यामः वर्णविशेषः / 113 स्पृहेः आय्यः / धूमः अग्निसंभवः / स्पृहयाय्यम् घृतम् / 104 भियः षुक वा / / 114 वृडः एन्यः। भीष्मः कुरुपिता / वरेण्यः श्रेष्ठा। भीमः भयानक: / 115 अर्तेः अण्यच् / 105 युजि-रुजि-तिजेः कुश्च / अरण्यम् वनम् / Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / उणादि०पा०२सू०११६; पा०३सू०८] चान्द्रव्याकरणम् 116 हः हिर् च। 6 स्थिर-आदयः / ____ हिरण्यम् सुवर्णम् / स्थिरम् अचलम् / 117 पर्जन्यः। अजिरम् गृहम् / / पर्जन्यः शक्रः / शिशिरम् ऋतुविशेषः / 118 पुणेः क्यन् / खदिरः वृक्षजातिः : . पुण्यम् कुशलस्थानम् / स्थविरः वृद्धः / 116 शिक्यम् धिष्ण्यम् / इषिरः शरः / / शिक्यम् उद्ग्राह्यम् / छिदिरः छिद्रम् / धिष्ण्यम् गृहम् / भिदिर: वज्रः / .. // उणादौ द्वितीयः पादः समाप्तः // मुहिरः मूर्खः / मुचिरः दाता / ...... 1 मदि-अङ्गि-वाशि-मथि-चतिभ्यः उरच। रुचिरः शोभनः / मन्दुरा वाजिशाला / श्रथिरम् शिथिलम् / अङ्गरः बीजप्रसवः / . रिफरम् स्फीतम् / वाशुरा रात्रिः / 7 तञ्च-वञ्च-शकि-क्षिपि-क्षुदि-रुदिमथुरा नगरी / मदि-मन्दि-चन्दिभ्यः रक्। चतुरः दक्षः / 2 मकुर-दर्दुर-विधुराः / तक्रम् मथितम् / मकुर: दर्पणः / वक्रम कुटिलम् / दर्दुरः भेकः / शक्रः देवराजः / क्षिप्रम् त्वरितम् / विधुरः विगुणः / 3 असेः उरन् / क्षुद्रः अदानी / रुद्रः महादेवः / असुरः . आदित्यः / मद्रः देशः / 4 श्वशुरः / श्वशुर: भार्यापिता / मन्द्रः धीरः / 5 तिमि-रुधि-मदि-मन्दि-चन्दि-बन्धिभ्यः चन्द्रः चन्द्रमाः / किरच / 8 विति-वृति-नी-वी-छिदि-मुदि-दहितिमिरम् अन्धकारः / तृपि-शुभिभ्यश्च / रुधिरम् क्षतजम् / वित्रम् कुष्ठम् / मदिरा सुरा / वृत्रः दैत्यः / . मन्दिरम् गृहम् / नीरम् जलम् / चन्दिरः हस्ती / वीर: विक्रान्तः / बधिरः श्रोत्रविकलः / छिद्रम् विवरः / Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [उणादि० पा० 3 सू०९-१६. 98] मुद्रा प्रत्ययकरणी। दहम् तरुणम् / . तृप्रः पुरोडाशः / शुभ्रम् शुक्लम् / 6 तमि-अमि-जीनां दीर्घश्च / ताम्रम् शुल्बम् / आम्रः वृक्षजातिः / जीरः वह्निः। 10 दूर-आदयः दूरम् विप्रकृष्टम् उद्रः जलचरः / कृच्छम् कष्टम् / चुक्रम् आम्लम् / दभ्रः कुशः / उस्र: केदारः / उस्रा गोग्रीवा / वाश्रम् पुरीषम् / शीरः अजगरः / हस्रः हासः। . सिध्रः साधुजनः / . रन्ध्रम् विवरः / ... चन्द्रमाः / वन्द्रः पूजकः / खिद्रः दैन्यः / 11 सु-सू-धाब्-गधेः ऋन् / / सुरा मद्यम् / ... .. सूरः रविः / ... . धीरः मत्स्यघाती / गृध्रः पक्षिजातिः / 12 सि-मि-चीनाम् ईत् च / सीरः लाङ्गलम् / मीरः जलम् / चीरम् वल्कलम् / 13 वपि-वजि-वृधि-इन्दिभ्यः रन् / . वप्रः केदारः / वज्रः कुलिशः / वर्धः चन्द्रः / . . इन्द्रः शक्रः / 14 भद्र-आदयः / भद्रम् कल्याणम् / उग्रः उत्कृष्ट: / भेरः दुन्दुभिः / भेरी स एव / अग्रम् श्रेष्ठम् / ... गौरः अवदातः / .. गौरी शिवा / शुक्रम् रेतः / वृध्रः वयोधिकः / ऋज्रः नायकः / विप्रः ब्राह्मणः / कुप्रः शङ्करः / चुनः प्रीतिकरः / क्षुरः रोमायुधम् / खुरः मर्मच्छेदनः / इरा मही। . 15 चति-कटि-श-वृनः ट्वरच् / चत्वरम् अङ्गनम् / कट्वरम् दधिविकारः / शर्वरः महादेवः / शर्वरी निशा / वर्वरी कुटिलकेशा / वर्वरम् केशविकारः / 16 पीवर-आदयः / पीवरः स्थूलः Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [99 उणादि० पा० 3 सू० 17-32] चान्द्रव्याकरणम् चीवरम् भिक्षुप्रावरणम् / भृङ्गारः सुवर्णभाजनम् / तीवरः म्लेच्छः / मार्जारः बिडाल: / नीवरम् गृहम् / कजारः मयूरः / गह्वरम् गहनम् / 23 कमः अतः उत् च / चित्वरः धूर्तः / कुमारः बालजनः / चत्वरः उपस्थः / 24 शिरः करन् / धीवरः मत्स्यघाती / शर्करा गुडविकारः / मीवरः पूज्यः 25 पुषः कित् / संयद्वरः बाष्पः / पुष्करम् पद्मम् 17 कुवः क्रवन् / 26 क्षणः डीरच / कुरवः पक्षी / क्षीरम् पयः / . 18 मदि-अशि-वसेः सरन् / 27 कृ-श-शौटिभ्यः ईरच् / मत्सरः कृपणः / करीरः वंशाङकुरः / अक्षरम् वर्णः / शरीरम् देहः / वत्सरः वर्षः / शौटीरः दाता संवत्सरः स एव / 28 वशेः कित् / 16 क-धू-तनेः कित्। उशीरम् वीरणमूलम् / कृसरा तिलयवागूः / .26 गम्भीर-आदयः। धूसर: रूक्षः / गम्भीरम् भयानकम् / तसरः कुन्दद्रव्यम् / गभीरः दुरवगाहः / 20 भ्रमि-वठि-देवि-वासे: अरन् / कुम्भीरः जलचरः / भ्रमरः षट्पदः / कुटीरः जनवासः वठरः मूर्खः / परीरः समुद्रः / देवरः पतिभ्राता / पटीरः कन्दर्पः / वासरः दिवसः / कुरीरम् मैथुनम् / . 21 अङ्गि-मदि-मन्दि-कडेः आरन् / 30 मसेः ऊरन् / अङ्गारः दग्धकाष्ठम् / मसूरः व्रीहिजातिः / मदारः मणिविशेषः / 31 जनेः अरः ठश्च / मन्दारः वृक्षजातिः / जठरः मूर्खः / कडारः पिङ्गलः / 32 वदेर्वा / 22 शृङ्गि-भृङ्गि-मृजि-कञ्जः चित् / वठरः जडः / . शृङ्गारम् दर्शनीयम् / बदरम् कर्कन्धूफलम् / . Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100] चान्नग्याकरणम् [उणादि० पा० 3 सू० 33-48. - बदरी तद् एव / 42 वह-लादिभ्यः इत्र-उत्रौ / 33 पचेः अतः इत् च / वहित्रम् वहनम् पिठरः स्थालीपाकः / पवित्रम् यज्ञसूत्रम् / 34 कठि-चकिभ्याम् ओरः / कडित्रम् चर्ममयम् / कठोरः निबिडः / लोत्रम् अपहृतद्रव्यम् / चकोर: पक्षी / पोत्रम् सूकरनासाग्रम् / 35 घुणेः डोरः / श्रोत्रम् श्रुतिः / घोरम् अन्तकरम् / 43 जि-पिञ्जादिभ्यः ऊर-ऊलचौ / 36 धा-दा-नी-पति-पा-शसिभ्यः ष्ट्रन् / खजूरः वृक्षजातिः / धात्री धरणी / कर्पूरः मुखसुगन्धिद्रव्यम् / दात्रम् लवनद्रव्यम् / वल्लूरम् शुष्कमांसमयम् / / नेत्रम् चक्षुः / पिञ्ज ल: पक्षिजातिः / पत्त्रम् पर्णम् / लाङ्ग लम् पुच्छम् / पात्रम् भाजनम् / 44 तमेः बुक् च। शस्त्रम् प्रहरणम् / ताम्बूलम् मुखभूषणम् / .. 37 उषि-सू-मूभ्यः कित् / 45 शवि-कमः कलन् / उष्ट्र: करभः / शबलम् व्यामिश्रम् / सूत्रम् कल्याणम् (?) / कमलम् पद्मम् / मूत्रम् प्रस्रावः / 46 वृषादिभ्यः चित् / 38 अमि-नक्षि-कडिभ्यः अत्रच् / अमत्रम् भाजनम् / वृषल: शूद्रः / उत्पलम् इन्दीवरम् / नक्षत्रम् तारकादि / वटल: अक्षिरोगः / कडत्रम् भार्या / कला कालविशेषः / .. कलत्रम् सा एव / गल: कण्ठप्रदेशः / 36 वृक्षश्च / चपल: दुविनीतः / वरत्रा चर्ममयी / 40 अमि-चि-मिदेः क / केवलम् असहायम् / अन्त्रम् कुक्षनाडी / 47 शकि-शमेः नित् / चित्रम् अद्भुतम् / शकलम् अस्थि / मित्रम् सुहृत् / शमलम् अशुचि / 41 पूङः हस्वश्च / 48 कुटेः क्मलच् / पुत्रः तनयः / कुट्मलम् अविकसितम् / Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादि० पा० 3 सू० 49-63] चान्द्रव्याकरणम् [101 46 पति-चण्डिभ्याम् आलच् / 57 ऋ-मञ्जि-पीयि-हनि-अगिभ्यः ऊषन् / पातालम् रसातलम् / अरूषः चन्द्रमाः / चण्डाल: मातङ्गः। मञ्जूषा काष्ठमयम् / 50 कुणि-पीभ्याम् कालन् / पीयूषः अमृतकम् / कुणाल: पक्षी / हनूषः व्याघ्रः / पियाल: वृक्षजातिः / अङ्ग षः देवगमः (?) / 51 पालन्-वलयौ शीङः / 58 पुरः कुषन् / शेपालम् जलतृणम् / पुरुषः नरः / शैवल: स एव / 56 कृ-तृभ्याम् ईषन् / करीष: गोमयम् / 52 मङ्गः अलच् / तसेषः समुद्रः / मङ्गल: प्रशस्तः / 60 शिरीष-आदयः / 53 माला-इल्वल-पल्वल-चषाल-शिथिल शिरीषः वृक्षजातिः / शुक्ल-तण्डुलाः / पुरीषम् विष्ठा / माला स्रग्दाम / अम्बरीषः भ्राष्ट्रम् / इल्वला: तारकाः / ऋजीषः नायकः / पल्वलम् शाखापत्रम् / 61 अवेः टिषच / चषाल: यज्ञोपकरणद्रव्यम् / अविष: समुद्रः / शिथिलम् अदृढम् अविषी नदी / शुक्लम् श्वेतम् / 62 किल्बिष-आदयः / तण्डुल; धान्यसंभवः / किल्बिषम पापम् / . . 54 अर्तेः पिशन् / रोहिषः मृगः / अपिशः अग्रमांसम् / लोहिषः स एव / 55 वृ-भू-वमि-कुभ्यः शक् / ताविषः सूर्यः / वृशः गौः ताविषी नदी / भृशः गत्यर्थः / व्यथिषः व्याधिः / वंश: वेणुः / अव्यथिषः स्वर्गः / कुशः दर्भः / 63 वृ-त-वदि-हनि-मानि-कमि-अशि-कशेः 56 कोनाश-दाश-अङ्कशाः। सः / कीनाशः कृपणः / वर्षः संवत्सरः / दाशः कैवर्तः / तर्षः समुद्रः / अङकुशः गजप्रबोधकः / वत्सः बालः / Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 102] चान्द्रव्याकरणम् [उणादि० पा० 3 0 64-78 हंसः पक्षी। 70 गमः द्वे च / मांसम् पिशितम् / जगत् त्रैलोक्यम् / कंस: असुरराजः / 71 परिव्रजेः षश्च पदान्ते / अक्षम् इन्द्रियम् / परिव्राट् परिव्राजो परिव्राजः / कक्षः वनप्रदेशः / 72 नुवः चिक् / 64 ऋषि-वृषि-स्नुभ्यः सक् / सुग् यज्ञभाण्डम् / ऋक्षम् नक्षत्रम् / 73 वशि-वणिभ्याम् इजिक / वृक्षः तरुः / उषिक तन्त्रवायः / स्नुषा पुत्रवधूः / . वणिग् वाणिजः / 65 पनि-मनि-रभि-चमि-अति-वेति-युवः 74 मृङः उतिः। असच / पनसः कण्टकफलम' / मरुत् वायुः / 75 ग्रो वा मुटु च। मनसम् हृदयम् / रभसः उत्साहः / गरुत् पक्षः / चमस: पिष्टकः / गर्मुत् सुवर्णम् / अतसः पुष्पजातिः / / 76 हृ-सृ-तडि-रुहि-युषिभ्यः इतिः / वेतसः वृक्षः / हरित् शाद्वलः / यवसः घासः / सरित् नदी / तडित विद्युत् / 66 कृषः पासप् / कर्पासः कर्तनद्रव्यम् / रोहित् मत्स्यः / 67 सिचेः कन् उम्-हौ च / लोहित् रक्तः / सिंहः केसरी। योषित् अङ्गना / 68 श्रि-नु-द्रु-गु-ज्वां क्विप् दीर्घश्च / 77 पृषि-वृषि-महेः शतः / श्री: लक्ष्मी : / पृषत् मृगः / स्रः सुक् / वृषत् विपुल: द्रूः सुवर्णम् / महत् महायानम् / प्रू : कामवारः / महान् उत्तमः / जू: पिशाचः / 78 शरद्-दरद् दृषदः। 66 प्रछि-वचोः तौ च / शरत् ऋतुः / प्राट् शिष्यः / दरत् द्रव्यम् / वाग् वाणी / दृषत् शिला / 1 कण्टकयुक्तं फलं कण्टककलम् (फणस) / Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उणादि० पा० 3 सू० 79-92] चान्द्रव्याकरणम् [103 76 वृषि-तक्षि-राजि-धन्वि-प्रतिदिव-युवः 84 पथि-मथिभ्याम् इनिः / कनिन् / पन्था मार्गः / वृषा गौः / मन्था बृहस्पतिः मन्थनदण्डो वा / तक्षा वर्धकिः / 85 गमः / राजा नृपः / गमी गमिष्यति / धन्वा धनुः / 86 आङः णित् च / प्रतिदिवा दिवसः / आगामी आगमिष्यति / युवा तरुणः / 87 भुवः / 80 श्वन आदयः / भविष्यति इति भावी / श्वा कुक्कुरः / 88 परमेष्ठी / उक्षा बलीवर्दः / परमेष्ठी ब्रह्मा / पूषा रविः / प्लीहा व्याधिः / 86 अचि-हु-सृपि-च्छदि-दिभ्यः इसिः। मर्धा शिरः / / अचिः ज्वाला / मज्जा अस्थिसारः हविः यज्ञः / मातरिश्वा वातः / सपिः घृतम् / मघवा इन्द्रः / . छदिः आतपत्रम् / 81 भसि-जनि-वृतेः मनिन् / छर्दिः उद्गारः / : भस्म छारः / 60 ज्योतिर् आदयः / जन्म उत्पत्तिः / ज्योतिः दीप्तिः नक्षत्रं वा / वर्त्म पन्थाः / शोचि: पिङ्गलम् / .82 व्योमन आदयः भुविः पृथिवी / . व्योम आकाशः / निपथि: विमार्गः / वेम कौलिकानां भाण्डम् / 61 जनेः उसिः / साम वेदः / जनुः जन्म / रोम अङ्गजः / 62 ऋ-प-वपि-यजि-धनि-त्रपेः नित् / लोम स एव / अरु: वणः / नाम संज्ञा / परु: चिरकाल: / 83 इमनिन् / वपुः शरीरम् / हरिमा विष्णुः / यजुः वेदः / . धरिमा पृथ्वी माता वा / धनुः शस्त्रम् / भरिमा स्वामी भाजनं वा / त्रपुः सीसम् / Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 ] चान्द्रव्याकरणम् [उणादि० पा० 3 सू० 93-114 63 इणः कित् / 102 वसि-अगिभ्यां णित् / / ____ आयुः जीवनपरिमाणम् / वासः वस्त्रम् / 64 चक्षेः उसिन् / आगः पापम् / .. चक्षुः नेत्रम् / 65 वशेः कनसिः / यशः कीर्तिः / . उशना शुक्रः / 104 उषेः जश्च / 66 विधि-इणः कसिः / __ ओजः दीप्तिः / वेधाः प्रजापतिः / 105 वशेः सुट च / ___ अयः लोहम् / __ वक्षः क्रोडः / 67 पयः-पुरसः धात्रः / 106 जु-रीङभ्याम् तु च। / पयोधाः पर्जन्यः / स्रोतः नदी / - पुरोधाः पुरोहितः / . रेतः शुक्रम् / ... 18 चन्द्रात् माङः ङित् / 107 इणः नुट् च / चन्द्रमाः चन्द्रः / ____ एनः पापम् / 66 अनेहस-अङ्गिरस्-अप्सरसः / / 108 शीङः फूट च / अनेहाः काल: / . शेफः लिङ्गम् / .. अङ्गिराः नाम ऋषिः / 106 छदेः नम च / अप्सरा: देवयोषित् / छन्दः वेदः / 100 असुन् / 110 अमेः भुक् च / वयः शरीरम् / अम्भः सलिलम् / पयः क्षीरम् / 111 अर्तेः उत् च / तेजः दीप्तिः / __उरः कोड: / अंहः पापम् / 112 शुट च / तपः पुण्यम् / . अर्शः व्याधिः / 101 उषि-रञ्जि-शभ्यः कित् / / 113 नुट् च / उषा: रविः / अर्णः जलम् / रजः रेणुः / 114 युट् च / शिरः मूर्धा / अर्यः वैश्यः / // उणादौ तृतीयः पादः समाप्तः // // आचार्यचन्द्रगोमिकृतम् उणादिसूत्रम् समाप्तम् // // शुभमस्तु सर्वजगताम् // Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // नमो बुद्धाय // [आचार्यचन्द्रगोमिरचितः धातुपाठः ] 1 भू सत्तायाम् / (1) 1 25 चदि आहलादने (68) 2 चिती संज्ञाने / (36) 26 त्रदि चेष्टायाम् / (66) 3 अत सातत्यगमने / (38) 27 कदि ऋदि क्लदि आह्वाने / 4 च्युतिर् आसेचने / (40) (70-72) 5 श्युतिर् क्षरणे / (41) 28 क्लिदि परिदेवने / (73) 26 शुन्ध शुद्धौ / (74) 6 कुथि पुथि लुथि हिंसायाम् / 30 फक्क नीचैर्गतौ / (116) 31 तक हसने / (120) 7 मन्थ विलोडने / (43) 32 तकि कृच्छ्रजीवने / (121) 8 षिधु गत्याम् / (48) 33 शुक गतौ / (123) 6 षिधू शिष्टौ / (46) 34 बुक्क भषणे / (122) 10 खादृ भक्षणे / (50) 35 कक्ख हसने / (124) 11 खद स्थितौ / (51) 36 ओख राख लाख द्राक्ष ध्राखू .12 बद स्थैर्ये / (52) शोषणे / (125-126) 13 गद वचने / (53) 37 शाख श्लाख व्याप्तौ / 14 रद विलेखने / (54) 15 णद नई गर्द शब्दे / 55,57,58 (130, 131) 16 कर्द कुत्सिते शब्दे / (60) 38 उख णख वख मख रख लख * 17 तर्द हिंसायाम् / (56) रखि लखि इसि ईखि वल्ग 18 अर्द गतौ / (56) व्लगि रगि लगि अगि वगि मगि 16 खर्द दशने / (61) तगि त्वगि अगि श्रगि श्लगि इगि 20 अति अदि बन्धने (62, 63). रिगि लिगि गत्यर्थाः / 21 इदि परमैश्वर्ये / (64) / (132, 138, 134, 136, 22 बिदि अवयवे / (65) 140, 142, 141, 143, 145, . 23 णिदि कुत्सायाम् / (66) . 146, 152, 153-160, 16224 टुनदि समृद्धौ (67) 165) 1 पाणिनीयधातुपाठस्थितधातुमिः सह अस्य धातुपाठस्थितस्य धातोः सादृश्यप्रदर्शनाय एते अङ्का निदिष्टाः / यथा चिती धातुः अत्र धातुपाठे द्वितीयः स एव च पाणिनीये धातुपाठे एकोनचत्वारिंशत्तमः / . . 14 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106] चान्द्रव्याकरणम् [धातु० 39 युगि-९१ शिट 36 युगि जुगि वुगि वर्जने / 66 गर्ज शब्दे / (244) __ (167-166) 67 तर्ज भर्त्सने / (245) 40 दघि पालने / (171) 68 खर्ज मार्जने / (247) 41 लघि शोषणे / (172) 66 तेज पालने / (246) 42 घग्घ हसने / (170) 70 गज मदे / (265) 43 शिघि आघ्राणे / (174) 71 खज मन्थे / (250) / 44 शुच शोके / (198) 72 खजि गतिवैकल्ये / (252) 45 कुच शब्दे / (166) 73 एज़ कम्पने / (253) 46 क्रुन्च गतौ / (201) 74 टुओस्फूर्जा वज्रनिष्पेषे / (254) 47 कुन्चु कौटिल्ये / (200) 75 क्षि क्षये / (255) 48 लुन्चु अपनयने / (202) .. 76 क्षीज कूज गुजि अव्यक्ते शब्दे / 46 अन्चु वन्चु मन्चु चन्चु तन्चु त्वन्चु ... (256) म॒न्चु म्लुन्चु चुचु म्लुचु गत्यर्थाः। 77 लज लाजि लाज लजि भर्त्सने / . (203, 204, 205-211) (257, 260, 256, 258) 78 जज जजि युद्धे / (261, 262) 50 ग्रुचु ग्लुचु कुजु खुजु स्तेये / / 76 तुज तुजि हिंसायाम् / (212-215) (263, 264) 51 ग्लुन्चु षस्ज गतौ / (216-217) 80 गज गजि गृज गृजि मुज मुजि 52 अर्च पूजायाम् / (216) / 53 म्लेछ अव्यक्ते वचने (220) शब्दार्थाः / (265-270) 54 लछ लाछि लक्षणे / (221,222) 81 अज वज व्रज गतौ / (248, 55 वाछि इच्छायाम् / (223) 271, 272) 56 आछि आयामे / (224) / 82 शौट गर्वे / (310) 57 ह्रीछ लज्जायाम् / (225) 83 यौट सम्बन्धे / (311) 58 हुर्छा कौटिल्ये / (226) 84 मेट म्लेट उन्मादने / 56 मुर्छा मोहे / (227) (314, 312) 60 स्फुर्छा विस्मृतौ / (228) 85 कटे वरणे / (315) 61 युछ प्रमादे / (226) 86 रट परिभाषणे / (316) 62 उछि उञ्छे / (230) 87 लट बाल्ये / (320) 63 उछी विवासे / (231) 88 शट विशरणे / (321) 64 धृजि ध्रजि ध्वजि गतौ / (237, 86 वट वेष्टने / (322) - 233, 236) 60 खिट उत्त्रासने (324) 65 अर्ज सर्ज अर्जने / (242, 243) 61 शिट षिट अनादरे / (325,326) Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [107 धातु० 92 जट-१४६ शुन्भ] 62 जट झट पिट संघाते / 121 शुठि कुठि गुठि शोषणे / (327, 328, 333) ... (367, 365) 63 भट भृतौ / (326) 122 लुठि आलस्ये / (366) 64 तट उच्छाये / (330) 123 रुठि लुठि गतौ। (368, 366) 65 खट काङक्ष्ये / (331) 124 चुद्ड हावकरणे / (370) 66 नट नृतौ / (332) 125 अद्ड अभियोगे / (371) .67 हट दीप्तौ / (334) 126 क्रीड़ विहारे / (373) 68 षट अवयवे। (335) 127 तुड़ तोडने / (374) 66 लुट विलोटने / (336) 128 हूड होड़ गतौ / (375, 376) 100 चिट प्रैष्धे / (337) 126 रौड़ अनादरे / (377) *101 विट शब्दे / (338) 130 लौड़ उन्मादे / (376) 102 बिट आक्रोशे / (336) 131 अड उद्यमे / (380) .. 103 एठ हेठ विबाधायाम् / / 132 लड विलासे / (381) (343, 286) 133 कड मदे / (383) / 104 अट इट पट किट कटी इ गतौ। 134 कद्ड कार्कश्ये / (372) . (317, 340, 318, 341,342) 135 गडि वदनैकदेशे / (384) 105 मडि भूषायाम् / (344) 136 गुपू रक्षणे / (422) 106 कुटि वैकल्ये / (345) 137 धूप संतापे / (423) 138 रप लप जप जल्प वचने / 107 मुटि प्रमर्दने / (346) (428, 426, 424, 425) 108 चुटि अल्लीभावे / (347) 106 मुडि खण्डने / (348) 136 चप सान्त्वने / (426) 110 वदि विभाजने / (351) 140 षच समवाये / (1046) 111 रुटि लुटि स्तेये / (346, 350) 141 चुप मन्दायां गतौ / (430) 112 स्फ़ट स्फुटिर् विशरणे / (352) 142 तुप तुन्प ग्रुप त्रुन्प तुफ तुन्फ 113 पठ उच्चारणे / (353) त्रुफ त्रुन्फ सृभु सृन्भु हिंसार्था : / 114 वठ स्थौल्ये / (354) . (431-438, 457, 458) 115 मठ निवासे / (355) 143 बर्फ रफ रफि अर्ब पर्ब खर्ब गर्ब 116 कठ कृच्छ्रजीवने (356) शर्ब षर्ब चर्ब गतौ / (440 117 हठ बलात्कारे / (358) .-443, 448-452) 118 रुठ लुठ उपघाते। (356, 360) 144 कुबि छादने / (453) 116 पिठ हिंसायाम् / (362) 145 चुबि वक्त्रसंयोगे / (456) 120 शठ कैतवे च / (363) 146 शुभ भाषणे / (460) Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 108] चान्द्रव्याकरणम् [धातु० 147 अण-१९७ गुर्वी 147 अण रण वण भण मण कण क्षण 172 मूल प्रतिष्ठायाम् / (562). ... व्रण भ्रण ध्रण ध्वन शब्दार्थाः। 173 फल निष्पत्तौ / (563) (471-476, 487, 881) 174 चुल्ल हावकरणे / (564) 148 ओण अपनयने / (482) 175 फुल्ल विकसने / (565) 146 शोण वर्णे / (483) 176 चिल्ल शैथिल्ये / (566) 150 श्रोण संघाते / (484) 177 शिल्ल गतौ / 151 पेण गतौ / 178 वेल चेल केल खेल शेल षेल 152 कनी दीप्तौ / (488) चलने / (568-571, 576) 153 ष्टन वन कल शब्दे / 176 पेल फेल गतौ / (574, 575) (486, 460, 526) 180 स्खल चलने / (577) 154 षण संभक्तौ / (462) 181 खल संचये च / (578) 155 अम द्रम हम्य मीम गतौ / 182 गल अदने / (576) .. (463, 464, 466) 183 पल गतौ / (892) 156 चमु छमु जमु झमु अदने / 184 दल विशरणे / (581) (467-466, 501) 185 शल श्वल्ल आशुगमने / 157 क्रमु पादविहरणे / (502) (582, 583 ) 158 मव्य बन्धने / (541) 186 खोर गतिप्रतिघाते / (584) 156 धूर्म ईक्ष्य ईj ईर्ष्यार्थाः / / 187 धोर गतिचातुर्ये / (585) (543, 544) 188 त्सर छद्मगतौ / (586) 160 हय हर्य गतौ / (545, 547) 186 क्मर हुर्छने / (587) , 161 शुच्यी अभिषवे / (546) 160 अभ्र वभ्र मभ्र चर गत्यर्थाः / 162 फला विशरणे / (546) .. (588-561) 163 मील स्मील क्ष्मील निमेषणे / 161 ष्ठिवु क्षिवु निरसने / (550, 552, 553) - (562, 566) 164 पील प्रतिष्ठायाम् (554) 162 जि जये / (563) 165 नील वर्णे / (555) * . 163 जीव प्राणधारणे / (564) 166 शील समाधौ / (556) 164 पीव मीव नीव तीव स्थौल्ये / 167 कील बन्धे / (557) . (565, 566, 568, 567) 168 कूल वरणे / (558) 165 उर्वी तुर्वी थुर्वी दुर्वी धुर्वी 166 शूल रुजायाम् / (556) हिंसाः / (600, 604). 170 तूल निष्कर्षे / (560) 166 मुर्वी बन्धने / (606) 171 पूल संघाते / (561) 167 गुर्वी उद्यमे / (605) Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पातु० 198 पूर्व - 248 वश] चान्द्रव्याकरणम् [109 198 पूर्व पर्व मर्व पूरणे। (607,606) 222 चूष पाने / (704) 166 चर्व अदने / (610) 223 तूष तुष्टौ / (705) 200 कर्व खर्व गर्व दर्प / (612-614) 224 पूष वृद्धौ / (706) 201 अर्व शर्व भर्व हिंसायाम् / 225 मूष स्तेये / (707) (615, 616, 611) 226 फूष प्रसवे / (710) 202 इवि व्याप्तौ / (618) 227 भूष अलंकारे (712) 203 पिवि मिवि निवि सेचने / 228 ऊष रुजायाम् (714) (616-621) 226 ईष उञ्छे / (715) 204 हिवि दिवि धिवि प्रीणनार्थाः / 230 कष शिष जष झष वष मष रुष (622-624) रिष यूष जूष हिंसायाम् / (716, 205 रिवि रवि धवि गत्यर्थाः / 718-720, 722-725, 711) . (626-628) 231 भष भर्त्सने / (726) 206 कृवि हिंसायाम् / (626) 232 उष दाहे / (727) 207 मव बन्धने / (630) 233 जिषु विषु मिषु सेचने / 208 अव रक्षणे / (631) (728-730) 206 घुषिर् शब्दे / (683) 234 पुष पुष्टौ / (732) 210 अक्षू व्याप्तौ (684) 235 श्रिषु श्लिषु पुषु प्लुषु दाहे / 211 तक्षू त्वष तनूकरणे / .. (733-736) (685, 686) 236 पृषु वृषु सेचने (737, 738) 212 उक्ष सेचने / (687) 237 मृषु सहने / (736) 213 रक्ष पालने / (688) 238 घृषु संहर्षे / (740) 214 णिक्ष चुम्बने / (686) 236 हृषु अलीके / (741) 215 तृक्ष स्तृक्ष णक्ष गतौ / 240 तुष हष ल्हष रस शब्दे / (745) (660-662) 241 जर्स चर्च झर्झ परिभाषणे / 216 वक्ष रोषे / (693) (748-750) .217 म्रक्ष संघाते (664) 242 लस क्रीडायाम् / (746) 218 त्वक्ष त्वचने / 243 पिसृ पेसृ गतौ / (751, 752) 216 मूर्ख अनादरे / (667) 244 घस्ल अदने / (747) 220 काक्षि वाक्षि माक्षि काङक्षायाम् / 245 हसे हसने (757) (668-700) 246 णिश समाधौ / (758) 221 द्राक्षि ध्राक्षि ध्वाक्षि घोरवाशिते 247 मश मिश शब्दे / (760, 756) च / (701-703) 248 वश गतौ / Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110] चान्द्रव्याकरणम् [धातु० 249 शश - 307 पर्ष 246 शश प्लुतगतौ / (762) 276 दाण् दाने / (977) 250 शसु हिंसायाम् / (763) 280 व कौटिल्ये / (678) 251 शन्सु स्तुतौ / (764) 281 स्वृ शब्दे / (976) 252 चह परिकल्कने / (765) 282 द्व वरणे / (181) 253 रह परित्यागे / (767) 283 स गतौ / (982) 254 रहि गतौ / (768) 284 ऋ प्रापणे / (183) 255 दृह दृहि वृह वृहि वृद्धौ / / 285 गृ घृ सेचने / (684, 985) (766-772) 286 ध्वृ हुर्छने / (686) 256 वृहिर् शब्दे / (772) 287 शु स्रु दु द्रु गतौ / / 257 तुहिर् दुहिर् अर्दने / (773,774) (687, 661, 662) 258 अर्ह मह पूजायाम् / (776,766) 288 षु प्रसवे / (688). 256 धेट पाने / (651) 286 जि जि अभिभवे / (663, 664) 260 ग्लै हर्षक्षये (652) 260 तु प्लवने / (1018). 261 म्लै गाविनामे / (653) 261 क्ष्विदा अव्यक्ते शब्दे / (1027) 262 द्यै न्यक्करणे / (654) 262 स्कन्दिर् गतौ / (1028). 263 नै स्वप्ने / (655) 263 यभ मैथुने / (1026) 264 | दीप्तौ / (656) 264 णम प्रह्वत्वे शब्दे च / (1030) . 265 ध्यै स्मृ चिन्तायाम् / (657,680) 265 गम्ल सृप्ल गतौ / . . . 266 कै गै रै शब्दे / (1031, 1032) . (664, 665, 658) 266 यमु उपरमे। (1033) 267 ष्टय स्त्यै संघाते च / (656) 267 तप संतापे / (1034) 268 खै खदने / (660) 268 त्यज हानौ / (1035) 266 : जै पै क्षये / (661-663) 266 षन्ज गतौ / (1036) 270 भै नै पाके / (666, 667) - 300 दृशिर् प्रेक्षणे / (1037) 271 पै ओवै शोषणे / (668, 666) 301 दश दशने / (1038) 272 ष्टै वेष्टने / (970) 302 कृष विलेखने / (1036) 273 दैप् शोधने / (971) 303 दह भस्मीकरणे / (1040) 274 पा पाने / (972) 304 मिह सेचने (1041) 275 घ्रा गन्धोपादाने / (673) - 305 कित निवासे (1042) 276 घ्मा शब्दे / (674) / अतङानाः / 277 ष्ठा गतिनिवृत्तौ / (675) 306 एध वृद्धौ / (2) 278 म्ना अभ्यासे / (676) 307 स्पर्ध संहर्षे / (3) Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु० 308 गाधू-३६३ ऋजि] चान्द्रव्याकरणम् [111 308 गाई-प्रतिष्ठायाम् / (4) 337 रेक शङ्कायाम् / (80) 306 बाधृ विलोडने / (5) 338 सेकृ स्रक श्रकृ श्लक गत्यर्थाः 310 दध धारणे / (8) (81, 82) 311 स्कुदि आप्रवणे / (6) 336 शक शङ्कायाम् / (86) 312 श्विदि श्वेत्ये / (10) 340 अकि लक्षणे / (87) 313 वदि अभिवादने / (11) 341 वकि कौटिल्ये / (88) 314 भदि कल्याणे / (12) 342 मकि मण्डने / (86) 315 मदि जाड्ये / (13) 343 कक लौल्ये / (60) 316 स्पदि किञ्चिच्चलने / (14) 344 कुक वृक आदाने / (61, 62) 317 क्लिदि परिदेवने / (15) / 345 चक तृप्तौ / (63) 318 मुद हर्षे / (16) 346 ककि श्वकि त्रकि ढौक त्रौकृ ष्वस्क 316 दद दाने / (17) वस्क मस्क टिक टीकृ रघि लघि 320 ष्वद स्वाद स्वर्द आस्वादने / गत्यर्थाः / (64, 66-104, (18, 28, 16) 107, 108) 321 उर्द माने / (20) 347 अघि वघि गत्याक्षेपे / 322 कुर्द खुर्द गुर्द क्रीडायाम् / (106, 110) . (21, 23) 348 मघि कैतवे च / (112) 323 षूद क्षरणे / (25) 346 राघू लाघु सामर्थ्य / (113,114) 324 ह्राद शब्दे / (26) 350 द्रा आयासे च / (117) 325 ल्हादी सुखे च / (27) 351 श्लाघृ कत्थने / (118) 326 पर्द कुत्सिते शब्दे / (26) 352 वर्च दीप्तौ / (175) 327 यती प्रयत्ने / (30) 353 लोच दर्शने / (177). 328 युतृ जुतृ भाषणे / (31, 32) 354 षच सेचने / (176) 326 नार्थ नाथ विथू वेथू याचने / / 355 शच श्वचि गतौ / (180) (6, 7, 33, 34) 356 कच बन्धने / (181) 330 श्रथि शैथिल्ये / (35) 357 कचि दीप्तौ / (182) 331 ग्रथ कौटिल्ये / (36) 358 मचि धारणे / (186) . 332 कत्य श्लाघायाम् / (37) 356 मच मुचि कल्कने / (184,185) 333 शीक सेचने / (75) 360 पचि व्यक्तीकरणे / (187) 334 लोक दर्शने / (76) 361 ष्टुच प्रसादे / (188) 335 श्लोक संघाते / (77) 362 ईज ऋज गतौ / (166, 186) 336 द्रेक ब्रेक वृद्धौ / (78, 76) 363 ऋजि भृजी भर्जने / (160, 161) Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 112] चान्द्रव्याकरणम् [धातु० 364 एज-४१७ घिणि 364 एज़ रेज़ भेज़ भ्राजु दीप्तौ / 361 होड़ अनादरे / (305) (162, 165, 163, 164) 362 बाढ़ आप्लाव्ये / (306). 365 अट्ट अतिक्रमे / (273) 363 द्राड़ ध्राड़ विशरणे / 366 वेष्ट वेष्टने / (274) (307, 308) 367 चेष्ट चेष्टायाम् / (275) 364 श्लाड़ श्लाघायाम् / (306) . 368 गोष्ट लोष्ट संघाते / (276,277) 365 ति! तेपृ ष्टेपृ क्षरणार्थाः / / 366 घट्ट चलने / (278) (385, 386, 388) 396 ग्लेपृ दैन्ये / (360) / 370 स्फुट विकसने / (276) 371 अठि गतौ / (280) 397 टुवेपृ कम्पने / (361) 372 वठि एकचर्यायाम् / (281) / 368 केपृ गेपृ ग्लेपृ च / (362-364) 373 मठि कठि शोके / (282,283) 366 केबृ पेष मेब रेब गतौ / 374 मुठि पलायने / (284) 400 पूष् लज्जायाम् / (366) 375 एठ हेठ विबाधायाम् / 401 कपि चलने / (400) (286, 285) 402 अबि शब्दे / (403) 376 हिडि गतौ / (287) 403 रबि लबि अवस्रंसने / 377 हुडि पिडि संघाते / (401, 404) (288, 263) 404 कबृ वर्णे / (405) 405 क्लीब आधाष्टर्ये / (406) 378 कुडि दाहे / (286) 406 क्षीब मदे / (407) 376 वडि मडि वेष्टने / 407 शीभृ कत्थने / (408) (260, 261) 408 चीभ च / (406) 380 भडि परिभाषणे / (262) 406 रेभ शब्दे / (410) 381 मुडि मार्जने / (264) 410 ष्टभि स्तभि स्कभि प्रतिबन्धे / 382 तुडि तोडने / (265) (413, 414) 383 भुडि भरणे (266) 411 जभि जुभि गात्रविनामे / (416) 384 स्फुडि विकसने / (267) 412 शल्भ कत्थने / (417) 385 चडि कोपे / (268) 413 वल्भ भोजने / (418) 386 शडि रुजायाम् / (266) .. 414 गल्भ धाष्टर्ये / (416) 387 तडि ताडने / (300) 415 श्रन्भु प्रमादे / (420) 388 पडि गतौ / (301) 416 ष्टुभु स्तम्भे / (421) 386 काड मद / (302) 417 घिणि घुणि घृणि ग्रहणे / 360 खडि मन्थे / (303) (461, 463) m mr m WWW Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु० 418 घुण-४७३ घुषिर् ] चान्द्रव्याकरणम् [113 418 घुण घूर्ण भ्रमणे / (464, 465) 444 भिक्ष याञ्चायाम् / (637) 416 पन स्तुतौ / (467) 445 क्लेश बाधने / (638) 420 पण व्यवहारे / (466) 446 दक्ष वृद्धौ / (636) 421 भाम क्रोधे / (468) 447 दीक्ष मौण्डये / (640) 422 क्षमूष् सहने / (466) 448 ईक्ष दर्शने / (641) 423 कमु कान्तौ / (470) 446 ईष गतौ / (642) 424 अय वय मय चय तय णय रय 450 भाष वचने / (643) गतौ / (503, 504, 506- 451 स्पर्श स्नेहने / . 506, 511) 452 ग्लेष अन्विच्छायाम् / (645) 425 दय रक्षणे / (510) 453 येष प्रयत्ने / 426 ऊयी तन्तुसंताने / (512) 454 जेष णेष एष हेष गतौ / (647427 पूयी विशरणे / (513) 650) 428 क्नूयी शब्दे / (514) 455 रेष अव्यक्ते शब्दे / (651) 426 क्ष्मायी विधूनने / (515) / 456 काश भासृ दीप्तौ / (678,655) 430 स्फायी औप्यायी वृद्धौ / 457 कासृ णासृ रासृ हेसृ शब्दे / / (516, 517) (654, 656, 657, 652) 431 ताय संताने / (518) 458 णस कौटिल्ये / (658) 432 शंल चलने / (516) 456 भ्यस भये / (656) 433 वल संवरणे / (520) 460 आङः शन्सु इच्छायाम् (660) 434 मल मल्ल धारणे / (522, 523) 461 ग्रसु ग्लसु अदने / (661, 662) 435 भल भल्ल परिभाषणे / 462 ईह चेष्टायाम् / (663) (524, 525) 463 बहि महि वृद्धौ / (664, 665) 436 कल संख्याने / (526) 464 अहि गतौ / (666) 437 कल्ल अव्यक्ते शब्दे / (527) 465 गर्ह गल्ह कुत्सने / (667, 668) 438 तेव देव देवने / (528, 526) 466 बर्ह बल्ह प्राधान्ये / (666, 670) 436 षेव शेव केवृ गेवृ ग्लेवृ पेव मेवृ 467 प्लीह गतौ / म्लेव सेवने / (530, 536,536, 468 वेह जेह बाह प्रयत्ने / (674-676) 531-535) 466 द्राहृ निद्राक्षये / (677) 440 रेव प्लवगतौ / (540) 470 ऊह वितर्के / (679) 441 धुक्ष धिक्ष संदीपने / (633,634) 471 गाहू विलोडने / (680) 442 वृक्ष वरणे / (635) 472 गृहू ग्रहणे (681) 443 शिक्ष विद्योपादाने / (636) 473 घुषिर् करणे / Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114] चान्द्रव्याकरणम् [धातु० 474 स्मिा -532 लगे 474 स्मिङ विहसने / (666) 503 क्षुभ संचलने (787) 475 गुङ अव्यक्ते शब्दे / (667) 504 णभ तुभ हिंसायाम् / (788, 476 गाङ गतौ / (668) 786) 477 घुङ कुङ कुङ उङ शब्दे। 505 स्रन्सु भ्रन्शु अवलंसने / (790,762) (1000, 666, 1002, 1001) 506 ध्वन्सु गतौ। (763). 478 च्युङ क्व्युङ ज्युङ झ्युङ पुङ 507 सन्भु विश्वासे / (764) प्लुङ रुङ गतौ / (1004-1008) 508 वृतु वर्तने / (765) 476 धृङ अवध्वंसने / (1006) 506 वृधु वृद्धौ। (766) 480 मेङ प्रतिदाने / (1010) 510 शृधु शब्दकुत्सायाम् / (767) 481 देङ रक्षणे / (1011) 511 स्यन्दू स्रवणे / (768) 482 श्यैङ गतौ / (1012) 512 कृपू सामर्थ्ये / वृत् / (766) 483 प्यङ वृद्धौ / (1013) 513 घट चेष्टायाम् / (800).. 484 त्रैड पालने (1014) 514 व्यथ दुःखे / (801) 485 पूङ पवने (1015) 515 प्रथ पृथु विस्तारे / (802) 486 मूङ बन्धने / ( 1016) 516 म्रद मृदु मर्दने / (804) 487 डीङ आकाशगमने (1017) 517 स्खद स्खदने / (805) 488 गुप् गोपने / (1016) 518 क्षजि दक्ष गतौ। (806, 807) 486 तिज निशाने / (1020) 516 क्रप कृपायाम् / (808) 460 मान पूजायाम् / (1021) 520 कदि ऋदि क्लदि वैक्लव्ये / 461 बध बन्धने / (1022) (806-811) 462 रभ आरम्भे / ( 1023 ) 521 त्वरा संभ्रमे / (812) 463 डुलभष् प्राप्तौ ( 1024 ) 522 घटादयः षितः तङानिनः / 464 ष्वन्ज परिष्वङ्गे / (1025) 523 ज्वर रोगे (813) 465 हद पुरीषोत्सर्गे। ( 1026 ) / 524 गड सेचने / (814) 466 द्युता दीप्तौ / (777) 525 हेड वेष्टने / (815) 467 श्विता वर्णे / (778) 526 वट भट परिभाषणे / (816,817) 468 मिदा विदा क्ष्विदा स्नेहने 527 नट नृतौ / (818) (776, 780) 528 चक तृप्तौ / (820) 466 रुच दीप्तौ / (781) 526 ष्टक प्रतीघाते / (816) 500 घुट परिवर्तने / (782) 530 कखे हसने (821) 501 रुट लुट प्रतीघाते / (783, 784) 531 रगे शङ्कायाम् (822) 502 शुभ दीप्तौ। ( 786 ) 532 लगे सङ्गे / (823) Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु० 533 ह्रगे - 584 बुध] चान्द्रव्याकरणम् [115 533 ह्रगे टंगे षगे ष्ठगे संवरणे। 558 भ्राज़ टुभ्रातृ टुभ्लाश दीप्तौ / (824-827) (875-877) 534 अक अग कुटिलायां गतौ / तङानिनः / (826, 830) 556 स्यम स्वन ध्वन शब्दे (878 535 कण रण गतौ (831, 832) 876, 881) 536 श्नथ क्रथ क्लथ हिंसायाम् / 560 षम ष्टम वैक्लव्ये। (882,883) (836, 838, 836) 561 ज्वल दीप्तौ / (884) 537 ज्वल दीप्तौ / (842) 562 चल कम्पने / (885) 538 ज्वल ह्वल ह्मल चलने / (843 563 जल धान्ये / (886) 844) 564 टल ट्वल वैक्लव्ये (887, 888) 536 स्मृ अध्ययने / (845) .. 565 ष्ठल स्थाने। (886) 540 दृ भये / (846) 566 हल विलेखने / (860) 541 न नये / (847) 567 णल गन्धे / (861) 542 श्रा पाके / (848 ). 568 पल गतौ / (862) 543 मारण-तोषण-निशानेषु ज्ञा। (846) 569 बल प्राणने / (893) 544 कम्पने चलि: / (850) 570 पुल महत्त्वे / (894) 545 ऊर्जने छदिः / (851) 571 कुल संस्त्याने / (865) 546 जिह्वोन्मन्थने लडि: / (852) 572 शल हुल पल पथे गतौ / 547 हर्ष-ग्लेपनयो: मदिः / (853) (866-868,600 ) 548 घटादयो मितः / 573 क्वथे निष्पाके / (866) 546 जनी-ज-क्नसु-रञ्जः अमन्ताश्च / 574 मथे विलोडने / (901) (862-866 ) 575 टुवम उगिरणे / (602) 550 ज्बल-ह्वल-ह्मल-नमाम् अप्रादीनां च। 576 भ्रम चलने / (903) (867) 577 क्षर संचलने / (904) 551 ग्ला-स्ना-वनु-वमां च / (868 ) अतङानाः / 552 न कमि-अमि-चमाम् (866) 578 षह मर्षणे / (605) .553 शमो दर्शने / (870) 576 रमु क्रीडायाम् / (606) 554 यमोऽपरिवेषणे / (871) ___ तडानिनौ। 555 स्खदेः अप-परिभ्यां च। (872) / 580 षद्ल विशरणे / (907) 556 फण गतौ / वृत् (873) 581 शद्ल शातने / (108) अतङानाः / 582 क्रुश आह्वाने (606) '557 राज दीप्तौ। (874) 583 कुच कौटिल्ये / (610) विभाषितः / 584 बुध बोधने / (611) Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [धातु० 585 युध - 638 टुओश्वि 585 युध संप्रहारे / 613 झष आदाने / (640) 586 रुह प्रादुर्भावे / (612) 614 भक्ष भक्षणे / (641) 587 कस गतौ / वृत् (613) 615 दास दाने / (642) अतङानाः। 616 माहू माने / (643) 588 हिक्क शब्दे / (614) 617 गुहू संवरणे / (944) 586 धावु गति-शुद्धयोः। (632) 618 श्रि सेवायाम् (945) 560 अन्चु गतौ / (615) 616 हृञ् हरणे / (647) 561 टुयाच याञ्चायाम् / (616) 620 भृञ् भरणे / (946) 562 रेट परिभाषणे / (617) 621 धृ धारणे / (648) 563 चते चदे च याचने / (618) 622 णी प्रापणे / (950) 564 प्रोथ पर्याप्तौ / (616) 623 दान अवखण्डने / (1043) 565 मेधृ संगमे / (920) 624 शान तेजने / (1044) 566 णिदृ णेदृ संनिकर्षे / (921) 625 डुपचष् पाके / (1045) 567 मिदृ मेद मेधा-हिंसयोः / (920) 626 भज सेवायाम् (1047) 568 शृधु मृधु उन्दे / (622, 623) / 627 रन्ज रागे / (1048) 566 बुध बोधने / (924) 628 शप आक्रोशे / (1046) .. 600 उचुन्दिर् निशाने (925) 626 त्विष दीप्तो (1050). 601 २वेण गतौ / (926) 630 यज देवपूजायाम् / (1051) : 602 खनु अवदारणे (627) 631 डुवप बीजनिक्षेपे / (1052) 603 चीवृ आदाने (628) 632 वह प्रापणे / (1053) 604 चा पूजायाम् / (626) 633 वेञ् तन्तुसंताने (1055) . 605 व्यय गतौ / (930) 634 व्यञ् संवरणे / (1056) 606 दाश दाने। (631) 635 ह्वेञ् स्पर्धायाम् / (1057) 607 भेष भये / (632) . विभाषिताः / 608 अस गतौ / (634) / 636 वस निवासे / (1054) 606 स्पश बाधने / (636) / 637 वद वचने / (1058) 610 लष कान्तौ / (937) . 638 टुओश्वि गतिवृद्धौ / वृत् / 611 चष भक्षणे / (638) (1056) 612 कष हिंसायाम् / (636) अतङानाः / भूवादय : समाप्ताः // 1 // 1. हेमचन्द्रसंगृहीते धातुपाठे माधवीयधातुवृत्तौ च अनुक्रमेण "ओबुन्दृग् निशामने " " उत्रुन्दिर निशामने" इति धातुः / / 2. एवं तयोरेव ग्रन्थयो; " वेण गति-ज्ञान-चिन्ता-निशामन-वादित्रग्रहणेषु " इति / Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु० 1 अद - 62 ब] .. चान्द्रव्याकरणम् [117 1 अद प्सा भक्षणे / (1, 46) 34 चकासृ दीप्तौ / (65) 2 षस स्वप्ने / (66) 35 शासृ अनुशिष्टौ / (66) 3 वश कान्तौ (70) 36 यङलुक् च / (71) 4 हन हिंसायाम् / (2) अतङानाः / 5 धु अभिगमने / (31) 37 चक्ष वचने / (7) 6 यु मिश्रणे / (23) 38 ईर गतौ / (8) 7 णु स्तुतौ / (26) 36 ईड स्तुतौ / (8) 8 क्ष्णु तेजने (28) 40 ईश ऐश्वर्ये / (10) 6 ष्णु प्रस्रवणे / (26) 41 आस उपवेशने / (11) 10 टुक्षु रु कु शब्दे / (27,24,33) 42 आङ: शासु इच्छायाम् / (12) 11 इक् स्मरणें / (38) . 43 वस आच्छादने / (13) 12 इण् वी वा गतौ / (36,36,41) 44 कसि गतौ / (14) 13 या प्रापणे (40) 45 णिसि चुम्बने / (15) 14 भा दीप्तौ / (42) 15 ष्णा शौचे / (43) 46 णिजि शुद्धौ / (16) 16 श्रा पाके / (44) 47 शिजि शब्दे / (17) 17 द्रा पलायने / (45) 48 वजी वर्जने / (16) 18 पा रक्षणे (47) 46 पृची संपर्के / (20) 16 रा ला आदाने / (48, 46) 50 षूङ प्रसवे / (21) 20 दाप् लवने (50) 51 शीङ स्वप्ने / (22) 21 ख्या प्रकथने (51) 52 इङ अध्ययने / (37) 22 प्रा पूरणे (52) 53 दीधीङ दीप्तौ / (67) 23 मा माने / (53) 54 वेवीङ गतौ / (68) 24 विद ज्ञाने / (55) 55 ह्लङ अपनयने / (72) 25 अस भुवि / (56) तङानिनः / 26 मृजू शुद्धौ (57) 56 द्विष अप्रीतौ / (3) 27 वच भाषणे / (54). 57 दुह प्रपूरणे / (4) 28 रुदिर् अश्रुविमोक्षणे। (58) 58 दिह उपचये / (5) 26 ष्वप शये / (56) 56 लिह आस्वादने / (6) 30 अन श्वस प्राणने / (61,60) 60 ऊर्जुन आच्छादने / (30) 31 जक्ष भक्षणे / (62) 61 ष्टु स्तुतौ / (34) 32 जागृ निद्राक्षये / (63) 62 ब्रू वचने / (35) 33 दरिद्रा दुर्गतौ (64) विभाषिताः / अदादयः समाप्ताः / / 2 // Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118]. चान्द्रव्याकरणम् [1 हु - 21 ओहाङ 1 दिवु - 35 णश . 1 हु हवने / (1) 13 जन जनने / (24) 2 भी भये / (2) 14 गा स्तुतौ / (25) 3 ह्री लज्जायाम् / (3) अतङानाः / 4 प पालने / (4) 15 णिजिर् शुद्धौ / (11) 5 ओहाक् त्यागे / (8) 16 विजिर् पृथग्भावे / (12) 6 घृ क्षरणे / (14) 17 विष्ल व्याप्तौ / वृत् / (13) 7 ऋ सृ गतौ / (16, 17) 18 डुदा दाने / (6) 8 भस भर्त्सने / (18) 16 डुधाञ् डुभृज धारण / (10,5) 6 कि कित ज्ञाने / (16, 20) विभाषिताः / 10 तुर त्वरणे / (21) 20 माङ माने / (6) 11 धिष शब्दे / (22) 21 ओहाङ गतौ / (7) 12 धन धान्ये / (23) तङानिनौ / जुहोत्यादयः समाप्ताः // 3 / / 1 दिवु क्रीडायाम् / (1) 2 षिवु तन्तुसंताने (2) 3 श्रिवु सिवु गतौ / / 4 ष्ठिवु क्षिवु निरसने / (4) 5 क्नसु बरणे / (6) 6 नृती नाटये / (9) 7 त्रसी भये / (10) 8 कुथ पूतिभावे / (11) 6 पुथ हिंसायाम् / (12) 10 गुध वेष्टने / (13) 11 क्षिप प्रेरणे / (14) 12 पुष्प विकसने / (15) 13 तिम ष्टिम ष्टीम आर्द्रभावे (16, 17) 14 वीड चोदने / (18) 15 इष गतौ / (16) 16 षुह शक्तौ / (21) 17 जृष् झुष् जरायाम् (22, 23) 18 शो तनूकरणे / (37) 16 छो छेदने / (38) 20 षो अवसाने / (36) 21 दो अवखण्डने / (40) 22 राध साध संसिद्धौ / (71) / 23 व्यध ताडने / (72) 24 पुष पुष्टौ / (73) 25 शुष शोषणे / (74) 26 तुष प्रीतौ / (75) 27 दुष वैकृत्ये / (76) 28 श्लिष आलिङ्गने / (77) 26 विदा पाके / (76) 30 क्रुध कोपे / (80) 31 क्षुध बुभुक्षायाम् / (81) 32 शुध शौचे / (82) 33 षिधु संराद्धौ / (83) 34 रध हिंसायाम् / (84) 35 णश अदर्शने / (85) Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [119 धातु. 36 तृप - 98 तूरी] चान्द्रव्याकरणम् 36 तृप तृप्तौ / (86) 68 रुष रोषे / (120) 37 दृप हर्षे / (87) 66 डिप क्षेपे / (121) 38 द्रुह द्रोहे / (88) 70 स्तूप समुच्छाये / (127) 36 मुह वैचित्त्ये / (86) 71 कुप क्रोधे / (122) 40 ष्णुह उद्गिरणे / (60) 72 गुप व्याकुलत्वे / (123) 41 ष्णिह प्रीतौ / वृत् / (61) 73 युप रुप लुप विमोहने (124-126) 42 शमु दमु उपशमे / (62, 64) 74 लुभ गायें / (128) 43 तमु काङक्षायाम् / (63) 75 क्षुम संचलने / (126) 44 श्रमु खेदे / (65) 76 णभ तुभ हिंसायाम्। (130,131) 45 भ्रम अनवस्थाने / (66) 77 क्लिदू आर्द्रभावे / (132) 46 क्षमूष् सहने / (67) 78 मिदा स्नेहने (133) 47 क्लमु ग्लानी / (68) 76 क्ष्विदा मोचने / (134) 48 मदी हर्षे / (66) 80 ऋधु वृद्धौ / (135) 46 असु क्षेपणे / (100) 81 गृधु अभिकाङक्षायाम् (136) 50 यसु प्रयत्ने / (101) अतङानाः / 51 जसु मोक्षणे / (102) 82 षूङ प्राणिप्रसवे (24) 52 तसु दसु उपक्षेपे। (103, 104) 83 दूङ परितापे / (25) 53 वसु स्तम्भे / (105) 84 दीङ क्षये / (26) 54 प्युष विभागे / (106) 85 डीङ गतौ / (27) 55 प्लुष दाहे / (107) 86 धीङ अनादरे / (28) 56 बिस प्रेरणे / (108) 87 मीङ हिंसायाम् (26) 57 कुस श्लेषणे / (106) 88 रीङ स्रवणे / (30) 58 बुस उत्सर्गे / (110) 86 लीङ श्लेषणे (31) 56 मुष खण्डने / (111) 60 वीङ वरणे / (32) 60 पसी मसी परिमाणे / (112) 61 स्वादय ओदितः / 61 लुट विलोटने / (113) 62 पीङ पाने / (33) 62 उच समवाये / (114) 93 ईङ गतौ / (35) 63 भृशु भ्रन्शु अधःपतने / (115) 14 प्रीङ प्रीतौ / (36) 64 वृश वरणे / (116) 65 जनी प्रादुर्भाव (41) 65 कृश तनूकरणे / (117) 66 दीपी दीप्तौ / (42) 66 तृष पिपासायाम् / (118) 67 पूरी आप्यायने / (43) .67 हृष तुष्टौ / (116) 68 तूरी त्वरायाम् / (44) Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120] चान्द्रव्याकरणम् [धातु०९९ जूरी - 122 शप; 1 षुञ् - 21 ऋषु 66 जूरी जरायाम् (48) 112 अनोः रुध कामे / (65) , 100 गूरी घूरी धूरी शूरी हिंसायाम्। 113 मन ज्ञाने / (67) (46,47,45,46) 114 युज समाघौ / (68) 101 चूरी दाहे / (50) 115 सृज विसर्गे / (66) 102 तप अश्वर्ये / (51) 116 लुजो विनाशे / 103 वावृतु वर्तने / (52) 117 लिश अल्पीभावे / (70) 104 २क्लिश उपतापे / (52 अ) तडानिनः / 105 काश दीप्तौ / (53) 118 शक मृष क्षान्तौ / (78,55) 106 वा” शब्दे / (54) 116 ईशुचिर् पूतिभावे (56) 107 पद गतौ / (60) 120 णह बन्धने / (57) . . 108 खिद असहने / (61) 121 रन्ज रागे / (58) 106 विद सत्तायाम् / (62) 122 शप आक्रोशे / (56) 110 बुध अवगमने / (63) विभाषिताः। 111 युध संप्रहारे / (64) दिवादयः समाप्ताः // 4 // 1 षुञ् अभिषवे / (1) 12 क्षि क्षये / (30) 2 षि बन्धने / (2) 13 पृ स्पृ प्रीतौ / (12, 13) 3 शि निशाने / (3) 14 आप्ल व्याप्तौ / (14) 4 डुमि प्रक्षेपणे / (4) 15 शक्ल शक्तौ / (15) 5 चि चये / (5) 16 श्रु श्रवणे / 6 स्तृ आच्छादने / (6) 17 राध साध संसिद्धौ / (16,17) 7 कृ हिंसायाम् (7) 18 षघ तिक ष्टिक हिंसायाम् / 8 वृ), वरणे / (8) 6 धून कम्पने / (6) / (21, 20) विभाषिताः। 16 धृषा प्रागल्भ्ये / (22) . 10 टुदु उपतापे / (10) 20 दन्भु दम्भे / (23) 11 हि गतौ / (11) 21 ऋधु वृद्धौ / (24) 1. हैमे धातुपाठे माधवीये च "वृतूचि वरणे" "वृतु वरणे" इति धातुः / “तप अश्वर्ये वा", इत्यस्य धातोः माधवीयवृत्ती एवं निर्दिष्टम्-" केचिदिह वाग्रहणं वक्ष्यमाणस्य “वृतु वरणे" इत्यस्य आद्यांशमिच्छन्ति वावृतु वरणे' इति / तथा च भट्टिः “ततो वावृत्यमाना सा रामशालां न्यविक्षत" इति / (माध० वृ०प० 293) 2. माधवीयायां धातुवृत्तौ अयं धातु: ५३-त्रिपञ्चाशत्तमः / Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु०२२ऋक्ष-२५ष्टिघ ; तुद-५१खुर] चान्द्रव्याकरणम् [121 22 ऋक्ष चिरि जिरि हिंसायाम् / 24 अशू व्याप्तौ / / (18) (26-32) 25 ष्टिघ स्कन्दने / (16) 23 तृप प्रीणने / (25) ___ तङानिनौ / अतङानाः / स्वादयः समाप्ताः / / 5 / / 1 तुद व्यथने / (1) 2 णुद प्रेरणे / (2) 3 दिश अतिसर्जने / (3) 4 भ्रस्ज पाके / (4) 5 क्षिप प्रेरणे / (5) 6 कृष विलेखने (6) 7 मिल संगमे / (135) 8 मुच्ल मोक्षणे / (136) 6 लुप्ल छेदने / (137) 10 विद्लु लाभे / (138) 11 लिप उपदेहे / (136) 12 षिच क्षरणे / (140) विभाषिताः / / 13 कृती छेदने / (141) 14 खिद परिघाते / (142) 15 पिश अवयवे / वृत् / (143) 16 ऋषी गतौ / (7) 17 ओवश्च छेदने / (11) 18 व्यच व्याजीकरणे / (12) 16 उछि उञ्छे / (13) 20 उछी विवासे / (14) 21 ऋछ गतौ / (15) 22 मिछ उत्क्लेशे / (16) 23 जर्स चर्च झर्झ परिभाषणे। (17) 24 त्वच संवरणे / (18) 25 ऋच स्तुतौ / (16) 26 उब्ज आर्जवे / (20) 27 उद्झ उत्सर्गे / (21) 28 लुभ विमोहने / (22) 26 ऋफ कत्थने / 30 ऋफ ऋन्फ हिंसायाम् / (30) 31 तृप तृन्प तृप्तौ / (24) 32 दृप दृन्प उत्क्लेशे (28) 33 गुफ गुन्फ ग्रन्थे / (31) 34 उभ उन्भ पूरणे / (32) 35 शुभ शुभ शोभार्थे / (33) 36 दृभी ग्रन्थे / (34) 37 घृती हिंसायाम् / (35) 38 विध विधाने / (36) 36 जुन शुन गतौ / (37, 46) 40 पृड मृड सुखने / (36, 38) 41 पृण प्रीणने / (40) 42 मृण हिंसायाम् / (41) 43 तुण कौटिल्ये। (42) 44 पुण शुभे / (43). 45 मुण प्रतिज्ञाने / (44) 46 कुण शब्दे / (45) 47 द्रुण हिंसायात् / (47) 48 घुण पूर्ण भ्रमणे / (48, 46) 46 षुर ऐश्वर्ये (50) 50 कुर शब्दे / (51) 51 खुर छुर छेदने / (52, 76) Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 122] चान्द्रव्याकरणम् धातु० 52 मुर-११० सूज 52 मुर संवेष्टने (53) 84 कुड बाहुल्ये / (86) 53 क्षुर विलेखने / (54) 85 लुड विलसने / 54 घुर भीमे / (55) 86 घुट प्रतीघाते / (61) 55 पुर अग्रगमने / (56) 87 तुड थुड स्फुड रोड भ्रड संवरणे / 56 वृहू उद्यमें / (57) (62, 63, 67, 66) 57 तृहू स्तुहू तृन्हू हिंसायाम् (58) 88 स्फुर चलने / (65) .... 58 इषु इच्छायाम् / (56) 86 स्फुल संचये च / (66) 56 मिष स्पर्धायाम् / (60) 60 णू स्तुतौ / (104) 60 किल क्रीडायाम् (61) 61 धू विधूनने / (105) 61 तिल स्नेहने (62) 62 गुध पुरीषोत्सर्गे। 62 चिल वसने / (63) 63 ध्रुव स्थैर्ये / (107) 63 चल विलसने (64) अतङानाः / / 64 इल गतौ / (65) 64 गुरी उद्यमे / (103) 65 बिल भेदे / (67) 65 कुङ शब्दे / वृत्। (108) 66 णिल गहने / (68) 66 पृङ व्यायामे / (106) 67 हिल हावे / (66) 97 मृङ प्राणत्यागे / (110) 68 शिल षिल उञ्छे / (70) 18 जुषी सेवायाम् / () 66 लिख लेखने / (72) 66 ओविजी उद्वेगे / (6) 70 कुट कौटिल्ये / (73) 100 ओलजी ओलस्जी वीडे / (10) 71 पुट संश्लेषणे / (74) - तङानिनः। 72 कुच संकोचने (75) 101 रि पि गतौ / (111, 112) 73 गुज शब्दे / (76) 102 धि घारणे / (113) 74 गुड रक्षायाम् / (77) 103 क्षि निवासे / (114) 75 डिप क्षेपे / (78) 104 ) प्रेरणे (115) 76 हुड संघाते / (102) 105 कृ विक्षेपे / (116) 77 स्फुट भेदे / (80) 106 ग निगरणे / (117) 78 मुट प्रमर्दने (81) . अतङानाः / 76 त्रुट चुट छेदने / (82,84) 107 दृङ आदरे / (118) 80 तुट कलहे / (83) 108 धृङ अवस्थाने / (116) 81 जुड बन्धे / (85) तङानिनौ / 82 लुट संश्लेषणे / 106 प्रछ प्रश्ने / (120) 83 कृड घसने (88) 110 सृज विसर्गे / (121) Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु०१११टुमस्जो-१२१शद्लू; १रुधिर-६स्कु] चान्द्रव्याकरणम् [123 111 टुमस्जो शुद्धौ / (122) 117 स्पृश संस्पर्शे / (128) 112 रुजो भङ्गे / (123) 118 विश प्रवेशने / (130) 113 भुजो कौटिल्ये / (124) 116 मृश आमर्श / (131) 114 छुप स्पर्श / (125) 120 षद्लु अवसादे / (133) 115 रुश रिश हिंसायाम् / (126) 121 शद्ल शातने / (134) 116 लिश विछ गतौ / (127, 126) अतङानाः / तुदादयः समाप्ताः // 6 // 1 रुधिर् आवरणे / (1) 13 भन्जो आमर्दने / (16) 2 भिदिर् विदारणे / (2) 14 भुज पालने / (17) 3 छिदिर् द्वैधीकरणे / (3) 15 तृह हिसि हिंसायाम् (18, 16) 4 रिचिर् विरेचने / (4) 16 उन्दी क्लेदने / (20) 5 विचिर् पृथग्भावे / (5) 17 अन्जू व्यक्तौ / (21) 6 क्षुदिर् संपेषणे (6) 18 तन्चू संकोचने / (22) 7 युजिर् योगे / (7) 16 वृजी वर्जने / (24) 8 उछृदिर् ‘दीप्तौ / (8) . 20 पृची संपर्के / (25) 6 उतृदिर् हिंसायाम् / (6) __ अतङानाः / विभाषिताः / / 21 इन्धी दीप्तौ / (11) 10 कृती वेष्टने / (10) 22 खिद दैन्ये / (12) 11 शिष्ल विशेषणे / (14) 23 विद विचारे / (13) 12 पिष्ल संचूर्णने / (15) तङानिनः / ___ रुधादयः समाप्ताः / / 7 // . 1 तनु विस्तारे / (1) 7 डुकृञ् करणे / (10) - 2 षणु दाने / (2) विभाषिताः / . 3 क्षणु हिंसायाम् / (3) 8 वनु याचने / (8) 4 ऋणु गतौ / (5) 6 मनु बोधने / (6) 5 तृणु अदने / (6) तङानिनौ / 6 घृणु दीप्तौ / (7) तनादयः समाप्ताः / / 8 / / 1 डुक्रीन द्रव्यविनिमये / (1) 4 मी हिंसायाम् / (4) . 2 प्रीञ् तर्पणे / (2) 5 षि यु बन्धने / (5, 6) 3 श्री पाके / (3) 6 स्कु आप्रवणे / (6) Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 124] चान्द्रव्याकरणम् [धातु०७फ्नूयी-४८वृङ् १चुर-१०पीड . 7 क्नूयी शब्दे / 26 बन्ध बन्धने / (37) 8 पूत्र पवने / (12) 30 श्रन्थ ग्रन्थ संदर्भे / (36, 41) 6 लू छेदने / (13) 31 मन्थ विलोडने / (40) 10 स्मृ छादने (14) 32 कुन्थ संश्लेषणे / (42) 11 क हिंसायाम् (15) 33 मृद क्षोदे / (43) 12 वृ वरणे / (16) 34 पृड मृड सुखने / (44) 13 धूञ् कम्पने / (17) 35 गुध रोषे / (45) 14 ग्रह उपादाने / (61) 36 कुष निष्कर्षे / (46) विभाषिताः। 37 क्षुभ संचलने / (47) 15 श म हिंसायाम् / (18, 22) 38 णभ तुभ हिंसायाम् / (48,46) 16 पृ पूरणे / (16) 36 क्लिश बाधने / (50). 17 भृ भर्त्सने / (21) 40 अश भोजने / (51) 18 दृ विदारणे / (23) 41 1 उध्रस् उञ्छे / (52) 16 ज़ जरायाम् / (24) 42 इष आभीक्ष्ण्ये / (53). 20 नू नये / (25) 43 विष विप्रयोगे / (54) 21 गृ शब्दे / (28) 44 पुष पुष्टौ / (57) 22 ज्या हानौ / (26) 45 पुष प्लुष स्नेहने / (55, 56) 23 व्ली री ऋ गतौ / (32,30,27) 46 मुष स्तेये / (58) 24 ली द्रवीकरणे / वृत् / (31) 47 खव प्रादुर्भाव / (56) 25 वी वरणे / (33) . अतङानाः / 26 भी भये / 48 वृङ संभक्तौ / (38) 27 क्षिष् हिंसायाम् / (35) 28 ज्ञा अवबोधने / (36) ज्यादयः समाप्ताः / / 6 / / 1 चुर स्तेये / (1) 6 कुद्रि अनृतभाषणे / (6 ) 2 चिति स्मृत्याम् / (2) 7 लड उपसेवायाम् / (7) 3 यत्रि संकोचने / (3) 8 मिद स्नेहने / (8) 4 स्फुडि परिहासे / (4) 6 ओलडि उत्क्षेपे / (6) 5 लक्ष लोक दर्शने / (5, 236) 10 पीड बाधायाम् / (11) 1. हैमे तथा माधवीये धातुपाठे 'ध्रसुश् उञ्छे " " ध्रस् उञ्छे " इति धातुः / एतद्विषये माधव: एवं निर्दिशति-“अत्र क्षीरस्वामी उकारं धात्ववयवमाह। तन्मते उध्रस्नाति, उध्रसांचकार” इत्यादि / (माध० वृ० पृ० 374) तङानी। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु० 11 ऊर्ज-७४ कठि] चान्द्रव्याकरणम् [125 11 ऊर्ज- बले / (16) 43 क्षल शोचे / (57) 12 कुट्ट छेदने / (23) 44 तल प्रतिष्ठायाम् / (58) 13 पुट्ट अल्पीभावे / (24) , 45 तुल उन्माने / (56) 14 अट्ट अनादरे / (25) 46 दुल उत्क्षेपे / (60) 15 घट्ट चलने / (87) 47 वृजी वर्जने / (270) 16 खट्ट संवरणे / (86) 48 पुल महत्त्वे / (61) 17 षट्ट हिंसायाम् / (60) 46 चुल निमज्जने / (62) 18 लुण्ट स्तेये / (27) 50 पाल रक्षणे / (66) 16 श्वठ गतौ / (26) 51 लूष हिंसायाम् (70) 20 तुजि पिजि हिंसायाम् / (30,31) 52 चुट छेदने / (72) 21 तिज निशाने / (110) . 53 मुट संचूर्णने / (73) 22 व्यप कूट दाहे / (66, 344) 54 पसि नाशने / (74) 23 नट नाटये / (12) 55 छबि गतौ / 24 श्वल्क वल्क भाषणे / (34, 35) 56 क्षपि क्षान्तौ / (78) 25 स्फिट अनादरे / 57 क्षजि कृच्छ्रजीवने / (76) 26 पथि गतौ / (36) 58 पूज पूजायाम् / (101) 27 पिच्च कुट्टने / (40) 56 जुड प्रेरणे / (105) 28 छदि संवरणे / (41) 60 पचि विस्तारे / (106) 26 श्रणु दाने / (42) 61 सृच पैशुन्ये / (327) 30 तड आघाते / (43) 62 त संशब्दने / (111) 31 खड खडि भेदे / (44) 63 लप वचने / 22 कडि खण्डने / (44) 64 मत्रि गुप्तिभाषणे / (140) 33 वडि विभाजने / (48) 65 तत्रि कुटुम्बधारणे / (136) 34 भडि कल्याणे / (50) 66 लल ईप्सायाम् / (148) 35 बुस्त वञ्चने / (52) 67 चर्च अध्ययने / (172) 36 चुद संचोदने / (53) 68 मान पूजायाम / (266) 37 वदि अभिवादने / 66 घुषिर् विशब्दने / (187) 38 विद वेदनायाम् / (168) 70 ऊन परिहाणौ / (342) 36 श्रा पाके / 71 संग्राम युद्धे / (376) 40 ज्ञा तोषणे / 72 छद अपवारणे / (260) 41 नक्क धक्क नाशने / (54, 55) 73 मार्ग अन्वेषणे / (302) 42 चक्क चुक्क व्यथने / (56) 74 कठि शोके / (303) Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126] चान्द्रव्याकरणम् [धातु० 75 मजू-१०५ श्वेताश्व 75 मृजू शौचे / (604) 62 निवास आच्छादने / (336) 76 मृष क्षान्तौ / (305) ' 63 भाज पृथक्रियायाम् / (340) 77 धृष प्रसहने / (306) / 64 ध्वन शब्दे / (343) 78 कथ वाक्यप्रबन्धे / (307) 65 स्तेन चौर्ये / ( 346) 76 वर ईप्सायाम् / (308) 66 गृह प्रग्रहणे / (351) 80 गण संख्याने / (306) 97 मृग अन्वेषणे / (352) 81 शठ श्वठ सम्यगाभाषणे / (310) 18 कुह विस्मापने / ( 353) / 82 रह त्यागे / (312) 66 स्थूल परिबृंहणे / (356) . 83 ष्टन गद देवशब्दे / (313,314) 100 अर्थ याञ्चायाम् / (357) 84 रच प्रतियत्ने / (318) 101 गर्व माने / (356) . 85 कल संख्याने / (316) 102 मिश्र संपर्के। (375) 86 मह पूजायाम् / (321) 103 सुपो धात्वर्थे बहुलम् इष्ठवच्च / 87 स्पृह ईप्सायाम् / (325) (386) 88 शील उपधारणे / (332) 104 णिङ अङ्गनिरसने / (363) 86 साम सान्त्वने / (333) 105 श्वेताश्व-अश्वतर-गालोडित-आह्वर६० गवेष मार्गणे / (337) काणाम् अश्व - तर - इत - कलोपश्च 61 वास उपसेवायाम् / (338) (364) नित्यण्यन्ताश्चुरादयः समाप्ताः / / 10 / / क्रियावाचित्वमाख्यातुमेकैकोऽर्थः प्रदर्शितः / / प्रयोगतोऽनुगन्तव्या अनेकार्था हि धातवः / / // धातुपाठः समाप्तः // ... Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 / 21 / चान्द्रसूत्राणाम् . अकारादिक्रमेण संकलनम् / अइउण् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 1) अग्र-अन्त-शुद्ध-शुभ्र-वृष-वराह-अहि-मूषिकअंशं हारी 4 / 2 / 74 / श्याव-शिखर-अरोकाद् वा / अंशात् ऋतोः 6 / 1 / 22 / 4 / 4 / 133 / अंशे संख्यायाः तयट 4 / 2 / 46 / अङ्गयुक्तं तिङ आकाङक्षम् 6 / 3 / 122 / अंहि-कम्पोः नलोपश्च (उणादि)* 1 / 55 / अङ्गि-मदि-मन्दि-कडे: आरन् (उणादि) अः सनाद्यन्तात् च 1 / 3 / 84 / अः स्त्री 2 / 2 / 77 / . अङ्गले: दारुणि 4 / 4 / 17 / अः स्थाम्नः 2 / 4 / 4 / / अङ्गल्यादिभ्यः ठक् 4 / 3 / 85 // अक-खादौ अषान्ते पाठे वा. 6 / 4 / 117 / अङ्गि-अतिभ्याम् उरि-इथिनौ (उणादि) अकाले स्वार्थे 5 / 2 / 100 / . 1 / 63 / अकृच्छे प्रिय-सुखयोर्वा 6 / 3 / / अच आदैज्झेतुः अरक्तविकारे 5 / 2 / 36 / अके राजन्य-मनुष्य-यूनाम् 5 / 3 / 166 / अचः 5 / 3 / 134 / / अकः अकि दीर्घः 5 / 1 / 106 / अचः 6 / 1 / 10 / अक्षात् ऊहिन्याम् 5 / 1 / 87 / अचित्ताद् अदेश-कालात् / 3 / 3 / 64 / अक्ष-इन्द्रे 5 / 1 / 122 / अचि वा 6 / 3 / 44 / अक्षो वा 1 / 1 / 67 / अचि श्नु-धातु-भ्रुवाम् य-वोः इय्-उवा अक्ष्णः अचक्षुषः 4 / 4 / 61 / अगस्तयः 2 / 4 / 112 / अचः र-हात् द्वे 6 / 4 / 141 / अगारान्तात् ठन् 3 / 4 / 71 / अचो वा 5 / 4 / 161 / अगिलस्य गिले 5 / 2 / 81 / अच्छ गत्यर्थ-वदिभिः 2 / 2 / 31 / अगुरौ आङः 1 / 1 / 111 / अचि अयुवौ 5 / 3 / 113 / अगेः निः (उणादि) 177 / अचि अवङ 5 / 1 / 121 / अगोत्रात् आदैजाद्यचः 2 / 4 / 10 / अच् अनाङ 5 / 1 / 127 / अग्नेः स्तुत् 6 / 4 / 68 / अजयम् संगतम् 1 / 1 / 116 / अग्नौ चित्या-उपचाय्य-परिचाय्याः अज-शङ्क-उत्तर-वारि-जङ्गल-कान्तारादिना 1 / 1 / 138 / - आहृते च 4 / 1 / 86 / अग्रहे अन्तः 2 / 2 / 28 / _अजागृ-णि-श्वीनां सिचि अतङि आदेच् अग्र-अन्त-पश्चात् इमच 3 / 2 / 83 / 6 / 1 / 3 / _* उणादिप्रकरणे केवलं पाद: न अध्यायः, अतस्तत्र प्रथमः अङ्कः पादसूचकः द्वितीयः सूत्र सूचकः / 5 / 3 / 83 / Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 128] चाम्द्रव्याकरणम् [अजातेः-- अधूते अजातेः शील-आभीक्ष्ण्ययोः 1 / 2 / 56 / अतः उत् तत्रापिति 5 / 3 / 103 / अजाद्यतः 2 / 3 / 15 / अतः कृ-कमि-कंस-कुम्भ-पात्र-कुशाअज-अविभ्यां थ्यन् 4 / 1 / / कर्णीषु ससंख्यस्य 6 / 4 / 10 / अजि-जनि-अति-घसि-रशि-पणेः इण् अतङां णल्-अतुस्-उस्-थल-अथुस-अण्(उणादि) 1157 / अल-व-माः 1 / 4 / 11 / अजि-व्रजोः 6 / 1 / 61 / / अति 1 / 4 / 45 / अजेः वी अयु-घञ्-अप्-क्येषु 5 / 4 / 84 / अतिङि आच्च तल्लोपे 6 / 2 / 12 / अच्-हनोः सनि झलि 5 / 3 / 13 / / अतिथेः ण्यः 4 / 4 / 34 / अज्ञात-कुत्सयोः 4 / 3 / 62 / अतेः शुनः 4 / 4 / 81 // अञ् 2 / 4 / 65 / अतोऽदेङि 5 / 1 / 101 / अञ्चः 2 / 3 / 4 / अतोऽप्राच्य-भर्गादिभ्यः 2 / 4 / 106 / / अञ्चः 5 / 4 / 25 // अतो भिस ऐस् 2 / 1 / 2 / अञ्चु-युजः 1 / 2 / 50 / अतो भुवो डुतच् (उणा०) 2 / 46 / अञ्चः अनवधौ 6 / 3 / 84 / अतः अम् 2 / 1 / 24 / अञ्चो ने 5 / 4 / 113 / अतः लुक् 5 / 3 / 6 / अञ्चो लुक् 4 / 3 / 26 / . अत्यन्तसहचरिते लोकविज्ञाते 6 / 3 / 13 / अञ्जः सिचः 5 / 4 / 168 / अत्रानुनासिकः पूर्वस्य 6 / 4 / 6 / अञ्जः अलिच् (उणा०)* 173 / अत्रि-भृगु-कुत्स-वसिष्ठ-अङ्गिरस्-गोतमात् अण् 3 / 2 / 63 / 2 / 4 / 111 // अण् 3 / 3 / 44 / अतु-असोः 5 / 3 / 11 / अणः (उणा०) 1 / 6 / . अथर्वणः अण् वेदे 3 / 3 / 81 // अणि 5 / 3 / 166 / अदः 6 / 2 / 38 / अणोऽनुनासिकः 6 / 4 / 150 / अदस: फग-वुओः / 5 / 2 / 15 / अणौ चित्तवत्कर्तृकाद् णेः 1 / 4 / 138 / अदसः अत्वे दाद् उ द: मः 6 / 3 / 112 / अण् कुटिलिकायाः 3 / 4 / 17 / अदादिभ्यो लुक् 1 / 1 / 83 / अतः आतः इत् 1 / 4 / 2 / अदिशि अञ्चो वा 4 / 2 / 23 / अतः आदेः 6 / 2 / 123 / अदूरभवे 3 / 1 / 65 / अतः आद् यत्रि 6 / 2 / 39 / अदेश-कालात् अधीते 3 / 4 / 72 / अतः इञ् 2 / 4 / 16 / अदः अनुपदेशे 2 / 2 / 32 / अतः (अत्) इय् 1 / 4 / 35 / अद्यूते दिवः 6 / 3 / 85 / * 'उणा०' इत्यनेन ‘उणादि' सूच्यते / + मूलसूत्रपुस्तकपाठः / Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्रौ -- अनस् ] चान्द्रव्याकरणम् [129 अद्रौ वा * 6 / 3 / 113 / अनपत्ये च 5 / 3 / 177 / अधः-शिरसोः पदे 6 / 4 / 41 / अनरे वा 3 / 2 / 56 / अधरात् चात् 4 / 3 / 40 / अनाम्नि ड्वुन् 4 / 1 / 37 / अधातो: कित् अतोऽसुपः आपि अनिङगमेः इट् 5 / 4 / 121 / 6 / 170 / अनियोगे एवे 5 / 1 / 66 / अधिकम् 4 / 2 / 76 / अनुः सामीप्य-आयामयोः 2 / 2 / 6 / अधीष्टौ 1 / 3 / 126 / अनुकरणम् 2 / 2 / 26 / अधृष्ट-अकार्ययोः शालीन-कौपीने अनुक-अभिक-अभीकम् कमिता 4 / 2 / 80 / 4 / 1 / 2 / अनुक्तपुंस्कात् आत् च 6 / 1 / 73 / अधेः शक्तौ 1 / 4 / 7 / अनुगवम् आयामे 4 / 4 / 66 / अध्यात्मादिभ्यः 3 / 3 / 26 / अनुगु अलम् 4 / 2 / 18 / अध्याय-अनुवाकयोलृक् बा 4 / 2 / 154 / अनुना 2 / 1 / 56 / अध्यायेष्वेव ऋषेः 3 / 3 / 41 / अनुपदं बद्धा 4 / 2 / 13 / अधि-उपरि-अधसां सामीप्ये 6 / 3 / 3 / अनुपदी अन्वेष्टा 4 / 2 / 65 / अध्रुवे स्वाङ्गे 1 / 3 / 146 / अनुपाख्ये 5 / 2 / 66 / अध्वर्युक्रतूनाम् अनपुंसकानाम् 2 / 2 / 51 / अनुवादे चरणानां स्था-इणो: लुङि अध्वानं यच्च . 4 / 2 / 16 / 2 / 2 / 50 / अनः 2 / 3 / / अनुशतिकादीनाम् 6 / 1 / 30 / अनः 4 / 4 / 11 / अनुस्वारः 6 / 4 / 7 / अनंशचिह्नम् इत् 1 / 1 / 5 / अनुस्वारस्य ययि यम् 6 / 4 / 151 / अनचि 6 / 4 / 142 / / अनृषुः गुरूपोत्तमाद् गोत्रे अणिो : अनञ्समासें क्त्वः ल्यप् 5 / 4 / 6 / . ष्यङ 2 / 3 / 82 / अनत्याधाने उरसि-मनसि-मध्ये - अनेकम् अन्यार्थे 2 / 2 / 46 / ___ पदे-निवचने 2 / 2 / 37 / अनेकाचः लिट: आम् कृ-भू-अस्तिलिट् अनद्यतने लङ 11277 / ___चानु 1 / 1 / 51 / अनद्यतने लुट् 1 / 3 / 3 / अनेहस्-अङ्गिरस्-अप्सरसः (उणादि) अननोः ज्ञः 1 / 4 / 113 / 366 / अनन्त-आवसथ-इतिह-भेषजात् ञ्यः अनः अन्ते च 6 / 4 / 118 / .. 4 / 4 / 10 / अनोः अव्याप्यात् .1 / 4 / 14 / अनन्त्यस्यापि प्रश्न-आख्यानयोः अनो लोपः 2 / 2 / 76 / / 6 / 3 / 130 / अनस्-अश्म-अयः-सरसां जाति-नाम्नो: अनन्त्येऽपि हे-है 6 / 3 / 117 / 4 // 4 // 76 / 17 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 130 चान्द्रव्याकरणम् [अन्तःपूर्वात् -- अयःशूल अन्तःपूर्वात् तदर्थात् ठञ् 3 / 3 / 24 / अप्रादेर्वा 1 / 4 / 86 / अन्तरः अयनस्य च अदेशे 6 / 4 / 121 / अब्दादयः (उणादि) 2061 / - अन्तर्-बहिाम् लोम्नः 4 / 4 / 101 / अब्राह्मणात् 2 / 4 / 120 / अन्तर्वत्नी गभिण्याम् 2 / 3 / 28 / अभाव-कर्मणोः अनो ये 5 / 3 / 168 / / अन्तिकस्य तमे तादेः 5 / 3 / 145 / अभिजित्-विदभृत्-शालावत्-शिखावत्अन्ते 6 / 4 / 131 // शमीवत्-ऊर्णावत्-श्रुमद्भयः अपत्याणः अन्त्याऽजादे: 5 / 3 / 138 / यञ् 4 / 3 / 65 / अन्नात् णः 3 / 4 / 84 / अभिनिष्टानो वर्णे 6 / 4 / 73 / अन्यार्थे 2 / 3 / 32 / अभिविधौ इनुण 1 / 373 / अन्यार्थे नाम्नि 2 / 2 / 14 / अभिविधौ संपदा च सातिर्वा अन्यार्थे वा 2 / 3 / 6 / 4 / 4 / 37 / अन्येषाम् अपि 5 / 2 / 145 / अभूततद्भावे कृ-भू-अस्तियोगे विकारात् अन्वग् आनुकूल्ये 2 / 2 / 45 / विः 4 / 4 / 35 // अन्वादेशे 6 / 3 / 20 / अभेः अविदूरे 5 / 4 / 153 / अपगुरः णमुलि 5 / 1 / 55 / अभ्यमित्रं छश्च 4 / 2 / 20 / / अपचितिः 5 / 4 / 157 / / अमद्राणां दिशः 6 / 1 / 24 / अपमित्य कक् 3 / 4 / 21 / अमनुष्यात् 2 / 2 / 7 / / अपरस्पराः सातत्ये 5 / 1 / 141 / अमावसो वा 111 / 134 / / अपवदः 1 / 4 / 127 / अमावस्यार्थात् अश्व. 3 / 3 / 5 / अपस्किरः 1 / 4 / 60 / अमि-चि-मिदेः त्रक् (उणादि) 3 / 40 / अपात् चतुष्पात्-शकुनिषु हृष्ट-अन्न अमि-नक्षि-कडिभ्यः अत्रच (उणादि) कुलायार्थिषु 5 / 1 / 140 / 3 / 3 / अपादादौ पदात् एकवाक्ये 6 / 3 / 15 / अमि पूर्वः 5 / 1 / 113 / अपोनपात्-अपांनपातोः तृ चात: अमू अमी 5 / 1 / 126 / 3 / 1 / 26 / अमेः अतिः (उणादि) 186 / अपः भि 6 / 2 / 68 / अमेः भुक् च (उणादि) 3 / 110 / अप्-तृ-स्वस-नप्तृ-नेष्ट-त्वष्ट्र-क्षतृ-होतृ- अम्बा-अम्ब-गो-भूमि-द्वि-त्रि-कु-शेकु-शङकु __ पोतृ-प्रशास्तृणाम् 5 / 3 / 6 / अङगु-मञ्जि-पुज-बहिस्-दिवि-अग्निभ्यः अप् पूरण्याः तासु 4 / 4 / 6 / / स्थः 6 / 4 / 04 / अप्राणिजातीनाम् 2 / 2 / 53 / अम्बार्थानाम् अडलेकानां ह्रस्वः 6 / 2 / 45 / अप्राणिनाम् अरज्वादिभ्यः - 2 / 3 / 76 / अम् सौ संबुद्धौ 5 / 4 / 51 / / अप्रादेः ज्ञः 1 / 4 / 126 / अयःशूल-दण्डाजिनाभ्यां ठक् 4 / 2 / 2 / Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अयानयं-- अशाला] चान्द्रव्याकरणम् [131 अयानयं नेयः 42 / 14 / अल्पे 4 / 3 / 66 / अय् आम्-अन्त-आलु-आय्य-इत्नुषु अल्पे 4 / 4 / 125 / 5 / 3 / 66 / अल्लोपः अनः 5 / 3 / 130 / . अयि रः 5 / 1 / / अवक्रयः 3 / 4 / 52 / अरण्यात् पथि-न्याय-अध्याय-हस्ति-जर- अवद्य-पण्य-वर्याः गद्य-विक्रेय-अनिविहारेषु 3 / 2 / 43 / रोधषु 1 / 1 / 112 / अरुष्-मनस्-चक्षुष्-चेतस्-रहस्-रजसां अवधौ अहाक्-रुहो: 4 / 3 / 6 / लोपश्च 4 / 4 / 36 / अवधेः पञ्चमी 2 / 1 / 81 / अरुषः 5 / 2 / 76 / अवरस्य अव् 4 / 3 / 33 / अर्थात् 4 / 4 / 32 / अवाते निर्वाणः 6 / 3 / 86 / अचि-हु-सृपि-च्छदि-च्छदिभ्यः इसिः / अवात् कुटारच्च 4 / 2 / 31 / ' (उणादि) 3 / 86 / अवात् त्रश्च 1 / 3 / 27 / अर्तेः पिशन् (उणादि) 3 / 54 / अवात् औजित्य-आलम्बन-अविर्येषु / अर्तेः अण्यच् (उणादि) 2 / 115 / 6 / 4 / 53 / अर्तेः अनिच् (उणादि) 1172 / अवात् गिरः 1468 / अर्तेः उच् च (उणादि) 3 / 111 / अवात् बृंहः (उणादि) 2 / 55 / अर्तेः ऊच् च (उणादि) 1 / 16 / अवात् वर्षविबन्धे 1 / 3 / 41 / अर्थमात्रे प्रथमा 2 / 1 / 63 / अवः टिषच् (उणादि) 3 / 61 / अर्थे वा 5 / 2 / 118 / अव-उद: 1 / 3 / 16 / अर्धात् परिमाणस्य पूर्वस्य तु वा / / अवोद-एध-ओद्म-प्रश्रय-हिमश्रथाः 6 / 1 / 36 / 5 / 3 / 33 / अर्धात् यत् 3 / 2 / 66 / अव्यक्तानुकरणस्य अनेकाचः अतः इतौ अर्यः स्वामि-वैश्ययोः 1 / 1 / 114 / 5 / 1 / 102 / अर्श आदिभ्यः अच् 4 / 2 / 147 / अव्यक्तानुकरणाद् अनेकाच: अनितौ डाच् अर्हति 4 / 1 / 74 / 4 / 4 / 41 / अर्ह-शक्त्योः 1 / 3 / 128 / अव्यादयः (उणादि) 160 / अलम्-खल्वोः प्रतिषेधे क्त्वा वा अव्याप्यस्य मुचेः ओद् वा 6 / 2 / 110 / 1 / 3 / 126 / अव्याप्यात् 1 / 4 / 70 / अलिटि व्यः 5 / 1 / 50 / अव्याप्यात् 16481 / अलि-इषः कीकन् (उणादि) 2 / 18 / अव्याप्यात् 1 / 4 / 61 / अलुकि 5 / 3 / 3 / अव्याप्याद् वा 1 / 4 / 137 / अलुकि वा 6 / 4 / 72 / अशब्दे यत्-खौ च 3 / 3 / 32 / अलुक् उत्तरपदे 5 / 2 / 1 / अशाला 2 / 2 / 71 / Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 132] चान्द्रव्याकरणम् अशि --आग्रहायणी] अशि-लटि-कणि-खटि-विशे: क्वन् (उणादि) असु-पत-वचाम् थुक्-पुम्-उमः 6 / 2 / 66 / 2 / 11 / असूया-सम्मत्योः पूर्वम् 6 / 3 / 124 / अशेः नित् (उणादि) 1 / 67 / / असेः उरन् (उणादि) 3 / 3 / अश्नोतेः 6 / 2 / 125 // अस्ति नास्ति दिष्टम् इति मति: अश्ववडवो 2 / 2 / 64 / . 3 / 4 / 61 / अश्वात् छ: 3 / 1 / 52 / अस्ति-सिचः अलः 6 / 2 / 36 / / अश्वादिभ्यः फन् 2 / 4 / 31 / अस्तेः भूः 5 / 4 / 76 / अश्वात् एकाहगमे खल 4 / 2 / 5 / / अस्त्री-शूद्रप्रत्यभिवादे 6 / 3 / 116 / . अषडक्ष-आशितंगु-अलंकर्म-अलंपुरुष-अध्य- अस्थि-दधि-सक्थि-अक्षणाम् अनङ 5 / 4 / 31 / न्तात् 4 / 2 / 22 / अषष्ठी-तृतीयस्य आशीर्-आशा-आस्था अस्-दा-धां हो एत् अद्विश्च 5 / 3 / 115 / . अस्मदि उत्तमम् 1 / 4 / 147 / ' आस्थित-उत्सुक-ऊति-रागेषु 5 / 2 / 117 / अस्-माया-मेधा-स्रजो विनिः 4 / 2 / 137 / अष्टका पितृणाम् 6 / 1 / 82 / अस्य च्वौ 6 / 2 / 8 / / अष्टनो वा सुपि आत् 5 / 4 / 52 / अहः-सर्व-एकदेश-संख्यात-पुण्य-वर्षाअष्टाचत्वारिंशतो ड्यूँश्च 4 / 1 / 110 दीर्घाच्च रात्रेः 4 / 4 / 75 / अष्टाभ्यः औश् 2 / 1 / 20 / अहशो वनो र च 2 / 3 / 5 / अष्ठिवु-वक्कादेः षः सः 5 / 1 / 61 / अहः असुदिन-पुण्यात् 2 / 2 / 82 / . अष्ठीबत्-चक्रीवत्-कक्षीवत्-उदन्वत्-रुम ___ अहनः 6 / 3 / 66 / ___ण्वत्-चर्मण्वती 6 / 3 / 36 / अहनः खे 5 / 3 / 141 / अस् 4 / 3 / 32 / अहनः . अतः 6 / 4 / 106 / असंख्यं वा अनभिप्रेताख्याने क्त्वा 2 / 2 / 41 / आः सर्वादीनाम् 5 / 2 / 108 / असंख्यं विभक्ति-समीप-अभाव-ख्याति- आकर्षादिषु कुशल: 4 / 2 / 68 / पश्चात्-यथा-युगपत्-संपत्-साकल्यार्थे आकस्मिके 4 / 3 / 83 / 2 / 2 / 2 / आकालात् ठंश्च 4 / 1 / 126 / असंख्याच्च अङ्गले: अनन्यासंख्यार्थे आक्रोशे नञः अनिः 1 / 3 / 64 / 4 / 4 / 74 / आक्रोशे नि-अवात् ग्रहः 1 / 3 / 35 / असर्व-असंख्य-एकदेशात् टे 5 / 3 / 142 / आखनि-बहेः नलोपश्च (उणादि) असौ असुकः असको 5 / 4 / 71 / 1 / 20 / असुक् च अत्तुम् 62 / 11 / / आगन्तोर्वा 4 / 4 / 124 / असु-तृषः कालेषु विच्छेदे 1 / 3 / 146 / आग्नीधं शरणे 3 / 3 / 101 / असुन् (उणादि) 3 / 100 / __ आग्रहायणी-अश्वत्थात् ठक् 3 / 1 / 16 / Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आडो-- आलच्] चान्द्रव्याकरणम् [133 आङो ज्योतिरुद्गतौ 1 / 4 / 86 / आदैजाद्यचः छः 3 / 2 / 24 / आङो णिच्च (उणादि) 3 / 86 / आदैजाद्यचो व्यङ 2 / 4 / 18 / आङ: दः 1 / 4 / 54 / आदैजेवाद्यट: 5 / 1 / 83 / आङ: अन्धु-ऊधसोः 5 / 1 / 35 / आद्यात् 2 / 4 / 17 / आङ: यम-हन: स्वाङ्गाप्याच्च आद्यात् अच: 5 / 1 / 3 / 1 / 4 / 73 / आद्यादिभ्यः 4 / 3 / / आङो यि 5 / 4 / 16 / आधारात् 1 / 1 / 26 / आङो रु-प्लो: 1 / 3 / 42 / आने मुक् अतः 5 / 4 / 175 / आङ-माङ: 5 / 171 / आत् महत: जातीय-एकार्थयोः आचार्यानी 2 / 3 / 46 / अच्व्य र्थे 5 / 2 / 46 / आत् शी-योः 5 / 4 / 34 / आपः औतः शी: 2 / 1 / 17 / आज्ञायिनि 5 / 2 / 7 / . आपत्यस्य अनाति अणादौ आत् 6 / 4 / 25 / 5 / 3 / 155 / आत: 1 / 4 / 42 / आपो वा 5 / 3 / 71 / आतः 5 / 3 / 136 / आपो वा 6 / 2 / 72 / आतः प्रादिभ्यः 1 / 1 / 142 / आप्यं वा 3 / 3 / 123 / आतो णल औः 1 / 4 / 14 / आप्रपदं प्राप्नोति 4 / 2 / 12 / आत: / अन्तः-प्रादिभ्यः 1 / 3 / 87 / आबाधे पुंवच्च 6 / 3 / 6 / आतः अप्रादेः कः 1 / 2 / 2 / आभीक्ष्ण्ये णमुल च 1 / 3 / 132 / आतः युक् अणलि 6 / 1 / 41 / आमः आकम् 2 / 1 / 31 / आतः युच्. 1 / 3 / 105 // आमः 1 / 4 / 16 / * * आत्मनः पूरणे 5 / 2 / 6 / आमः कृञः प्राग्वत् 1 / 4 / 110 / आत्मनि खश्च 1 / 2 / 61 / आमन्त्रितं पूर्वम् असद्वत् 6 / 3 / 24 / आत्म-अध्वनोः खे 5 / 3 / 167 / आमयावी 4 / 2 / 138 / आथर्वणः 3 / 3 / 63 / आम् एतः 1 / 4 / 24 / / आत् अदेङ 5 / 1182 / आयन्-एय-ईन्-ईय्-इयः फ-ढ-ख-छ-घां आत् मः साम् 2 / 1 / 6 / फाद्यादीनाम् 5 / 4 / 2 / आदित: 5 / 4 / 141 / आयस्थानात् आगते 3 / 3 / 47 / आदिरिता समध्यः 1 / 1 / 1 / आत्विजीनः 4 / 1 / 81 / आदेः 1 / 1 / / आर्य-क्षत्रियाच्च 2 / 3 / 51 / आ-अदेङ यङि 6 / 2 / 132 / आत् i4 / 1 / 25 / आदेश्छन्दस: प्रगाथे 3 / 1 / 33 / आलच्-आटचौ कुत्सायाम् 4 / 2 / 146 / Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 134] चान्द्रव्याकरणम् [आवश्यके-इन् / आवश्यके णिनिः 1 / 2 / 55 / इङ: गमः 5 / 3 / 14 / आशिताद् भुवः भाव-करणयोः इचि 5 / 2 / 48 / 1 / 2 / 26 / इजादेर्गुरुमतोऽनृछ्-ऊर्णोः 1 / 1 / 52 / आशिषि 1 / 1 / 156 / इच् व्यतिहारे 4 / 4 / 116 / आशिषि 6 / 178 // इञः 2 / 3 / 74 / .. आशिषि. तु-ह्यो: तातङ वा 1 / 4 / 22 / इञः 3 / 2 / 22 / आशिषि दीर्घः 6 / 2 / 77 / इट: ईटि 6 / 3 / 57 / आशिषि नाथः 1 / 4 / 62 / इटि लिटि 5 / 4 / 16 / आशिषि आयुष्य-भद्रार्थ-कुशलार्थश्च इट: अत् 1 / 4 / 38 / 2 / 1 / 18 / आशेषात् भूते वा 1 / 3 / 108 / इट् सनो वा '5 / 4 / 104 / इडादीनाम् ऐप् आश्चर्ये 1 / 3 / 115 / 1 / 4 / 26 / इड् आश्वयुज्याम् उप्ते वुन् 3 / 3 / 11 / वा 4 / 1 / 35 / / आसत्तौ 1 / 3 / 142 / इणः कित् (उणादि). 2 / 67 / आ-समः स्रो: 1111148 / / इणः षः 6 / 4 / 34 / आसीनः 5 / 4 / 176 / इण्-एधो: 5 / 185 // आसु-यु-वपि-रपि-लपि-त्रपि-चमि-दभः इण: णित् (उणादि) 3 / 63 / / 1 / 1 / 133 / इणः नुट् च (उणादि) 3 / 107 / .. आहारार्थात् 1 / 2 / 71 / इणः यण् 5 / 3 / 87 / आहि च दूरे 4 / 3 / 3 / इण्-जि-सृ-नश क्वरप्, .1 / 2 / 106 / इण-भी-का-पा- लि-मचिभ्यः कन् इक: काशे 5 / 2 / 142 / ( उणादि) 2 / 1 / इक्-इश्-तिप : स्वरूपे 1 / 3 / 66 / इण्-स्तु-शासु-वृ -दृ-जुषः 111 / 120 / इकः अचि सुपि 5 / 4 / 26 इकः अदेङ क्रियार्थायाः 6 / 2 / 1 / इतः अङि 1 / 4 / 30 / इतः अनिञः 2 / 4 / 52 / इक: अनिटि 6 / 2 / 23 / इक: यण् अचि 5 / 1 / 74 / इत: नृजातेः 2 / 3 / 73 / इक: असस्थाने हस्वश्च असमासे इत् कोशल-आजादात् 2 / 4 / 66 / 5 / 1 / 132 / इत्ये अनभ्याशस्य 5 / 276 / इकः हस्वः 5 / 2 / 71 / इदम्-अदसोः कात् 2 / 1 / 3 / इगुपान्तात् कि: (उगादि) 1 / 52 / / इदम् अयम् इयम् 5 / 4 / 72 / इङ: 5 / 4 / 65 इदितः नुम् 5 / 4 / 10 / इङः शक्तौ 1 / 2 / 85 / इदुतो: एङ 6 / 2 / 48 / इङ: षित् वा 1 / 3 / 6 / इद्-उद्भयाम् औट 6 / 2 / 61 / Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इद् -- उवः चान्द्रव्याकरणम् [135 इद् दरिद्र: 5 / 3 / 107 / / ईत् यति 5 / 3 / 76 / इनः स्त्रियाम् 4 / 4 / 140 / ईयसः 4 / 4 / 144 / इनः अचि लोपः 5 / 4 / 41 / ईयिवान् अनाश्वान् अनूचानः इन्द्र-वरुण-भव-शर्व-रुद्र-मडानाम् 112 / 75 / आनुक् च 2 / 3 / 48 / / ईयः यिः सन् वा 5 / 17 / इन्द्रियम् 4 / 2 / 67 / ईश्वरार्थात् अराज्ञः सभा 2 / 2 / 66 / इन्-हन्-पूष-अर्यम्णाम् सौ च ईश्वरे 4 / 1 / 56 / 5 / 3 / 12 / ईषदर्थे 5 / 2 / 123 / इमनिच् (उणादि) 3 / 83 / ईषद् गुणेन 2 / 2 / 21 / इयत् कियत् 4 / 2 / 44 / ईषत्-दुः-सुभ्यः खल् 113 / 103 / इरितो वा 1 / 174 / ई हलि तिङि अदा-धः 5 / 3 / 106 / इलज् देशे 4 / 2 / 106 / इवे वतिः 4 / 1 / 135 / उ: 6 / 2 / 26 / इवे संज्ञा-प्रतिकृत्योः 4 / 3 / 7 / / उक्तपुंस्कस्य टादौ वा 5 / 4 / 30 / इषि-भिदि-व्यधि-गृघि-धृषि-प-पृथि- उक्ष्णः 5 / 3 / 174 / ___मृदेः कुः (उणादि) 1 / 13 / उ-गवादिभ्यः यत् 4 / 1 / 2 / : इषु-गमि-यमां छः . 6 / 1 / 105 / उगितः 2 / 3 / 3 / इषेः क्तकन् (उणादि) 2 / 14 / / उगितः 5 / 2 // 44 // इषः अनिच्छायाम् 1 / 3 / 6 / / उग्र-असूर्याद् दृशः 1 / 2 / 21 / इष्टका-इषीका-मालानाम् . चित उञ् 5 / 1 / 130 / . तूल-भारिषु 5 / 2 / 74 / उञ्छति 3 / 4 / 26 / इष्टादिभ्यः 4 / 2 / 64 / उणादयः 1 / 3 / 1 / इष्ठ-इम-ईयःसु अन्त्याजादेः उत-अप्योः बाढाथै लिङ् 5 / 3 / 158 / 1 / 3 / 117 / इष्ठे यिक् च 5 / 3 / 161 / उता सवर्गः 1 / 1 / 2 / / इसुसुग्दोWः कः 5 / 4 / 4 / उतः असंयोगात् अधातोः . इसुसोः संबन्धे 6 / 4 / 37 / 5 / 3 / 100 / इस्-मन्-त्रन्-क्विषु 6 / 1 / 60 / उत्कः उन्मनाः 4 / 2 / 85 / उत्तरस्य 5 / 2 / 66 / ई घ्रा-ध्मोः . 6 / 2 / 8 / / उत्तरस्य 6 / 1 / 21 / ईच् च गणः 6 / 2 / 144 / उत्थापनादिभ्यः छः 4 / 1 / 132 / ईतः सोमः 6 / 4 / 66 / उत्सादिभ्यः अञ् 2 / 4 / 7 / / .. ईदूदेत् द्विवचनम् 5 / 1 / 125 // उद: ईत् 5 / 3 / 135 / Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [उदः-- अङ् 136] चान्द्रव्याकरणम् उदः पच-पत-मदः 1 / 2 / 61 / उपान्तस्य 5 / 4 / 8 / उदः श्रि-यु-पू-द्रुवः 1 / 3 / 34 / / उपान्तस्य 6 / 2 / 24 / उदः स्था-स्तम्भोः तः 6 / 4 / 154 / उपात् मन्त्रेण 1 / 4 / 67 / उदन्तात् 4 / 3 / 68 / उपालम्भे 6 / 3 / 121 / उदन्यः 6 / 2 / 86 / उपेन 2 / 1 / 56 / . उदरे ये 5 / 2 / 105 / उभयाद् धुश्च 4 / 3 / 18 / / उदः चरः साप्यात् 1 / 4 / 106 / / उभात् 4 / 2 / 48 / . उदितो वा 5 / 4 / 117 / उमा-ऊर्णात् वा 3 / 3 / 11 / / उदपान्तस्य शब्वतः भाव-आरम्भयोः वा उरगः 112 // 36 / 6 / 2 / 18 / उ: अत् 6 / 2 / 118 / / उदः अनूइँहायाम् 1 / 4 / 66 / उरसा अण् च 3 / 4 / 66 / उदः ओष्ठ्यात् 5 / 4 / / उरसः अग्रे 4 / 4 / 75 / उन्दे: नलोपश्च (उणादि) 2 / 68 / उ: ऋत् 6 / 165 / उपकादिभ्यो वा 2 / 4 / 114 / उरोभ्यः कप् 4 / 4 / 13 / / उपज्ञा-उपक्रमं तदादित्वे 2 / 2 / 68 / उलूकादयः (उणादि) 2 / 22 / / उपत्यका-अधित्यके 4 / 2 / 35 / उपदंशः तृतीयायाम् 1 / 3 / 13 / / उल्कादयः (उणादि) 2 / 4 / / स्य-सिच-सी उ-श्नो: उपदेशे अच्-हन-ग्रह-दग्भ्यः 6 / 2 / 2 / उषासा उषसः 5 / 2 / 28 / युट-तासां भाव-आप्ययोः चिण्वद् इट् वा 5 / 3 / 73 / उषि-कुषि-गा-अतिभ्यः थन उपधेः 4 / 1 / 20 / ( उणादि ) 2 / 56 / उपमानात् 4 / 4 / 126 / उषि-रजि-शृभ्यः कित् (उणादि) उपमानात् कर्तुश्च 1 / 3 / 138 / 3 / 101 / , उपमानाद् अप्राणिनि 4 / 4 / 82 / उषि-सू-मूभ्यः कित्. (उणादि) 3 / 37 / उपमानाद् आचारे 1 / 1 / 25 / उषि-इण्-अवि-कृषि-तृषि-बुधि-रति-धाउपमानादे: 2 / 3 / 65 / / पभ्यः नक् (उणादि) 275 / उपयमः उद्वाहे 1 / 4 / 106 / उषः जश्च (उणादि) 3 / 104 / उपरि उपरिष्टात् 4 / 3 / 30 / उष्ट्रात् वुन 3 / 3 / 117 / उपाजे अन्वाजे 2 / 2 / 35 / उष्णात् 4 / 2 / 77 उपात् 1 / 4 / 136 / उसि अनादौ 5 / 1 / 100 / उपात् स्तुतौ ५।४।२०।उपादेः ठक् 3 / 3 / 36 / ऊँ 5 / 1 / 131 / उपाद् भूषण-समवाय-यत्न-वैकृत्य-अध्या- ऊङ: 5 / 2 / 45 / हारेषु 5 / 1 / 137 / ऊङ् उतः 2 / 3 / 75 / Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठि-- ऋषि] चान्द्रव्याकरण [137 ऊठि 5 / 1 / 86 / ऋते तृतीयासमासे 5 / 1 / 60 / ऊति-यूति-जूति-साति-हेति-कीर्तयः ऋते द्वितीया च 2 / 184 / 1 / 3 / 75 / ऋतः ङि-सुटि अत् 6 / 2 / 64 / ऊद् गोहः अचः 5 / 3 / 13 / ऋत: अचि वा 6 / 1 / 2 / ऊधसः नश्च 2 / 3 / / ऋतः रः अचि 5 / 4 / 66 / ऊरोः उपमा-संहित-सहित-सह-शफ- ऋतः ल-यौ 4 / 3 / 67 / वाम-लक्ष्मणादेः 2 / 3 / 76 / ऋतः विद्या-योनिसम्बन्धात तत्र ऊर्णा-अहम्-शुभंभ्यः 4 / 2 / 152 / 5 / 2 / 18 / ऊर्णोः डः (उणादि) 2 / 38 / ऋति ऋतः ऋर्वा 5 / 1 / 107 / ऊर्ध्वं दघ्नट-द्वयसट् च / 4 / 2 / 3 / ऋतुआदयः (उणादि) 1 / 25 / ऊर्ध्वाद् वा 4 / 4 / 120 / ऋत्वादिभ्यः अण् 4 / 1 / 124 / ऊमि-रश्मि-भूमयः (उणादि) 1 / 65 / ऋत्विग्भ्यः छः 4 / 1 / 151 / ऊर्यादिकारिकावि-डाचः। ऋदुपान्ताद् अक्लपि-वृतः 1 / 1 / 121 / क्रियार्थैः 2 / 2 / 25 // ऋत्-उशनस्-पुरुदंशस्-अनेहसाम् चानड ऊषादिभ्यः रः 4 / 2 / 111 / सौ 5 / 4 / 45 // ऋलक् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 2) ऋद्-लृति अक: 5 / 1 / 133 / ऋकोऽणो रलौ 111 / 15 / ऋ-नः ङीप् 2 / 3 / 2 ऋगयनादिभ्यः 3 / 3 / 45 / ऋ-पृ-भृ-मा-हाङाम् इत् 6 / 2 / 128 / ऋचः 4 / 4 / 58 / ऋ-प-वपि-यजि-धनि-त्रपेः ऋचः शि 5 / 2 / 60 / नित् (उणादि) 3 / 12 / ऋच-रुच-याच-त्यजाम् 6 / 1 / 64 / ऋ-मञ्जि-पीयि-हनि-अगिभ्यः ऋणे पञ्चमी 2 / 1166 / ___ऊषन् (उणादि) 3 / 57 / * ऋतः ईयङ् 1 / 1 / 48 / ऋ-महिष्यादिभ्य अण् 3 / 4 / 5 / / ऋतः उत् 5 / 1 / 117 / ऋ-री-व्ली-ह्री-क्नूयी-क्ष्मायिऋतः कञ् 3 / 3 / 50 / आतां पुग् णौ 6 / 1 / 45 / ऋतः संयोगादेः 5 / 4 / 106 / ऋ-वृ-व्येञ्-अदः 5 / 4 / 164 / ऋत-तृष-मृष-कृशां वा 6 / 2 / 20 / ऋ-श्वि-दृशः अङि 6 / 2 / 68 / ऋतः तत्र-आनङ् 5 / 2 / 21 / ऋषभ-उपानहो ज्यः 4 / 1 / 17 / ऋतः तासि नित्यानिट: थल: ऋषि-कुरु-वृष्णि-अन्धकात् 2 / 4 / 44 / __5 / 4 / 160 / ऋषि-वृषि-रासि-वल्ले: कित् ऋतुमती उपसर्या 1 / 1 / 115 // (उणादि) 2064 / ऋ-त-सृ-धृ-धमि-अशि-अवि-वृति-ग्रहः ऋषि-वृषि-स्नुभ्यः सक् अनिः (उणादि) 174 / (उणादि) 3 / 64 / *18 सर Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 138] चान्द्रमाकरणम् [ :--: ऋषेः पौत्रादौ 2 / 4 / 23 / . एकाच: हलादेः क्रियार्थाद् भृश-. ऋषौ मित्रे 5 / 2 / 131 // आभीक्ष्ण्ये यङ 1 / 1140 / ऋ-संयोगाद्योः अत् 6 / 2 / 81 / एकात् 5 / 3 / 144 / ऋ-सूत्रि-मूत्रि-सूचि-अट्-अश् एकाद् अन्न-अद्नौ संख्यायाम् . ऊर्गुभ्यः 1 / 1 / 41 / . 5 / 2 / 14 / ऋ-सृ-शास्-असु-ख्या-वचः अङ् एकाद् आकिनिच् चासहाये 111170 / 4 / 2 / 67 / ऋ-स्तु-सु-हु-धृ-क्षि-क्षु-भा-या-पदि-यक्षि- णीभ्यो मन् (उणादि) 2 / 100 / एकादेर्लुक् च 3 / 4 / 80 / ऋ-स्मि-पूङ्-अञ्ज-अशः सनः एडाद्यचः प्राग देशात् 3 / 2 / 25 / 5 / 4 / 171 / एङि पररूपम् 5 / 1 / 15 / ऋ-हनः स्ये 5 / 4 / 167 / एङ: अच् च 6 / 2 / 62 / ऋ-हलो ण्यत् / 1 / 1 / 130 / एङोऽति पदादौ 5 / 1 / 115 // एङ्-हस्वात् संबुद्धौ अतः 5 / 1 / 68 / ऋत इद् धातोः 5 / 4 / 7 / एचः प्रशान्त-पूजा-विचार-प्रत्यभिवादेषु ऋत्-ऋछ्-ऋणाम् 6 / 2 / 67 / ___आत् इत्-उत्परः 6 / 3 / 131 / ऋत्-ओः अप् 113 / 47 / एचि 5 / 1184 / ऋ-ल्वादिभ्यः क्तिनश्च 6 / 3 / 76 / एच: अय्-अव-आय-आव: 5 / 175 / लुति लः 5 / 1 / 108 / / एचः अशिति आत् 5 / 1 / 46 / लदिद्-धुतादि-पुष्यत्यादिभ्यः अतङि एजेः खश् 1 / 2 / 11 / 1 / 1 / 73 / एणी-कोशात् ढञ् 3 / 3 / 116 / एतः ईत् 6 / 3 / 114 / एओङ् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 3) एतत्-तदोः सुलोपः अकोः अनन्सएककर्तृकयोः पूर्वात् 1 / 3 / 131 / मासे. हलि 5 / 1 / 134 / एक-गोपूर्वात् ठञ् 4 / 2 / 122 / एतस्य चान्वादेशे द्वितीयायां एक-द्वि-बहुषु 1 / 4 / 148 / __ चैनः 5 / 4 / 76 / एकवचनस्य ते-मे 6 / 3 / 18 / एति संज्ञायाम् अकोः 6 / 4 / 85 / एकशालायाः ठच् च 4 / 3 / 86 / एकस्य सुप्लुक् 6 / 3 / 5 / एतेः गाः 5 / 4 / 12 / एकहलादो भाण्डे वा 5 / 2 / 66 / एधा 4 / 3 / 24 / एकागारात् चौरे 4 / 1 / 128 / / एनपा 2 / 1 / 53 / एकाच: 3 / 3 / 110 / एनप् अदूरे वा 4 / 3 / 41 / एकाचः अश्वि-श्रि एरक् 2 / 4 / 62 / य्वादिषट्कात् . 5 / 4 / 130 / ए: अक्तिनः 2 / 3 / 42 / EEEEEE Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [139 ए:- कमि]. चान्द्रव्याकरणम् ए: अच् / 1 / 3 / 45 / कंस-अर्धात् ठट् 4 / 1 / 26 / ए: असंयोगात् अनेकाचः 5 / 3 / 88 / ककुत् ककुदस्य अवस्थायाम् 4 / 4 / 134 / क-खोपान्त-कन्था-पलद-नगर-ग्रामऐ गौच प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 4) / हदान्तात् छे 3 / 2 / 54 / ऐकध्यम् 4 / 3 / 22 / ऐकाक्षं 2 / 1 / 36 / कचे छः (उणादि) 2 // 31 // ऐज्भाविनो वः पदान्तात् प्राग् ऐच् / कच्छ-अग्नि-वक्त्र-१ वर्तान्तात् 3 / 2 / 40 / कच्छादिभ्यः 3 / 2 / 48 / 6 / 1 / 14 / ऐषमस्-ह्यस्-श्वसो वा 3 / 2 / 15 / / कटादेः प्राच्यात् 3 / 2 / 53 / कठ-चरकात् . लुक् 3 / 3 / 74 / ओः पु-यण-जि अपरे 6 / 2 / 130 / / कठि-चकिभ्यां ओरः (उणादि) 3 / 34 / ओजस्-सहस्-अम्भस्-तपस्-अञ्जसः कठिनान्त-प्रस्तार-संस्थानात् व्यवहरति : 5 / 2 / 5 / 3 / 4 / 73 / ओजस्-सहस्-अम्भसा वर्तते 3 / 4 / 26 / कणादीनाम् 6 / 1 / 64 / ओजस्-अप्सरसोः 6 / 2 / 103 / कणे-मनसी तृप्तौ 2 / 2 / 26 / ओत् 5 / 1 / 128 // ओतः अम्-शसो: आत् 5 / 1 / 62 / कण्ड्वादिभ्यो यक् 1 / 1 / 36 / कतिः संख्यायाम् 4 / 2 / 45 / ओदनात् ठट् 3 / 4 / 68 / ओदितः . 6 / 3 / 80 / कति-गणौ तद्वत् 4 / 1 / 33 / कतेः 2 / 1 / 22 / ओम्-आङोः 6 / 1 / 66 / ओ: आवश्यके .1 / 1 / 132 / कल्यादिभ्यश्च ढका 3 / 2 / 5 / ओ: ओत् 5 / 3 / 147 / कथादिभ्यः ठक् 3 / 4 / 104 / कन्थायाः ठक् 3 / 2 / 11 / ओर्गुणाद् अखरु-संयोगोपान्तात् 2 / 3 / 43 / ओर्देशात् 3 / 2 / 31 / कन्थायाः कनीन च 2 / 4 / 46 / ओलोपः श्ये 6 / 1 / 9 / कपय प्रत्याहारसूत्र (शिवशूत्र 11) ओषधेः अजातौ 4 / 4 / 20 / कपाले हविषि 5 / 2 / 50 / ओष्ठ-ओत्वोः समासे वा 5 / 1 / 67 कपि-ज्ञात्योः ढक् 4 / 1 / 144 / कपिरिकादीना। 6 / 3 / 46 / 'ओसि 6 / 2 / 42 / औदरिकः अलसे 4 / 2 / 72 / कपः स्थलस्य 6 / 4 / 82 / कपः अङ्गिरसे 2 / 4 / 27 / औ-शस्-अम्सु 5 / 4 / 55 / कमि-मनि-जनि-हिभ्यः तुः (उणादि) कम्-शम्भ्याम् 4 / 2 / 146 / 1 // 24 // 1 रोमनाक्षरैर्मुद्रिते अकाराद्यनुक्रमे ‘गर्तान्तात्' इति पाठः / Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् 140] [कमः -- कालेभ्यो. कमः अठच् च (उणादि) 2 / 36 / कवङ च उष्णे 5 / 2 / 125 / कमः णिङ 111 / 46 / कवचिनश्च ठक् 3 / 1 / 47 / कमः अतः उच्च (उपादि) 3 / 23 / कवर-मणि-विष-शरात् 2 / 3 / 64 / कम्बोजादिभ्यो लुक् 2 / 4 / 104 / कश्च दः 4 / 3 / 57 / करणे 2 / 1 / 63 / कषेः छश्च (उणादि). 1144 / कर्क-लोहितात् ईकक् 4 / 3 / 87 / कष्ट-कक्ष-सत्र-गहनाय पापे क्रमणे कर्णात् 3 / 3 / 35 // . 1 / 1 / 32 / कर्णादीनां मूले जाहच् 4 / 2 / 25 / कस्कादयः 6 / 4 / 45 / कर्णे चिहनस्य अविष्ट-अष्ट-पञ्च-भिन्न कस्य इत् 3 / 1 / 22 / -छिन्न-च्छिद्र-स्रुव-स्वस्तिकस्य कांस्य-पारशवौ 3 / 3 / 126 / . 5 / 2 / 136 / काक्ष-पथोः 5 / 2 / 122 / / कर्तरि चारभ्भे 1 / 2 / 68 / / काण्ड-अण्डात् ईरच् 4 / 2 / 115 / .. कर्तरि ण्वुल-तृच्-अचः 1 / 1 / 136 / काण्डात् अक्षेत्रे 2 / 3 / 25 / कर्तरि तृतीया 2 / 1 / 62 / कादेः बहुलम् 5 / 3 / 146 / कर्तरि शप् 1 / 182 / कान् कानि 6 / 4 / 4 / कर्तुः उपमानात् 1 / 2 / 58 / कारकं बहुलम् 2 / 2 / 16 / कर्तुः विप् 1 / 1 / 27 / कारक-असंख्यात् ओश्च सुपि असुधियः कर्तृस्थामूर्ताऽऽप्यात् 1 / 4 / 83 / 5 / 3 / / कर्तृ-आप्याभ्यां च भू-कञः 113 / 104 / कारूणाम् 2 / 2 / 56 / . कर्मणः उकञ् 4 / 1 / 122 / कारे अस्तु-सत्य-अगदस्य 5 / 2 / 77 / कर्मणि घटते अठच् 4 / 2 / 36 / . कार्षापण-सहस्र-सुवर्ण-शतमानात् वा कर्मणः अशीले 5 / 3 / 170 / 4 / 1 / 3 / कर्मन्द-कृशाश्वाभ्यां भिक्षु-नटसूत्रम् कार्षापणात् 4 / 1 / 27 / इनि: 3 / 3 / 77 / काल-समय-वेलासु लिङ यदि 1 / 3 / 127 / कर्म-वेशात् यत् 4 / 1 / 116 / काल-हेतु-फलात् नाम्नि 4 / 2 / 86 / कर्माध्ययने वृत्तम् 3 / 4 / 64 / कालात् 4 / 1 / 12 / कलापिनः अण् 3 / 375 / कालाक् 4 / 4 / 15 / कलापि-वैशम्पायनशिष्येभ्यः 3 / 3 / 73 / कालात् कार्यं च भववत् 4 / 1 / 114 / कलापि-अश्वत्थ-यवबुसात् वुन् 3 / 3 / 14 / कालाद् देयम् ऋणम् 3 / 3 / 13 / कलाप्यादीनाम् 5 / 3 / 140 / कालात् यत् 4 / 1 / 125 / कल्पे 3 / 3 / 80 / कालेभ्यः 3 / 2 / 71 / कल्याण्यादीनाम् इनङ 2 / 4 / 56 / / कालेभ्यो भववत् 3 / 1 / 31 / Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् काश्यप--कूलाद् ] [141 काश्यप-कौशिकाभ्याम् ऋषिभ्यां कल्पं कुणि-पीभ्यां कालन् (उणादि) च णिनिः 3 / 3 / 71 / 3150 / काश्यादिभ्यः किश्च 3 / 2 / 33 / कुण्डादयः (उणादि) 2 / 40 / कास्-अय-दय्-आसः 1 / 1153 / कुण्डिनाः 2 / 4 / 108 / कासू-गोणीभ्यां ष्ट रच् 4 / 3 / 73 / . कुतुपः 4 / 3 / 72 / किंकिल-अस्त्यर्थयोः लुट 1 / 3 / 112 / कुतः अतः इतः 4 / 3 / 8 / किञ्चिदूने कल्पप्-देश्य-देशीयरः कुप्य-आज्य-भिद्य-उद्धय-सिध्य 4 / 3 / 54 / युग्यानि. नाम्नि 1 / 1 / 127 / किम्-जराभ्यां -इणः (उणादि) 1 / 3 / कु-प्रादयः असुप्विधौ नित्यम् कम्-यद्-अन्याद् अनद्यतने हिल् वा 2 / 2 / 24 / 4 / 3 / 15 / कु-प्वोः )(क २७पौ 6 / 4 / 31 / किङ्किणीकादयः (उणादि) 2 / 16 / कुमदेकाचः 6 / 4 / 113 / कितः संशय-चिकित्सयो: 1 / 1 / 18 / कु-महद्भ्यां ब्राह्मणः 4 / 4 / 87 / किति च हनः 5 / 3 / 67 / कुम्बि-चिभ्याम् 1 / 3 / 88 / किति चापत्यादौ. अचामादेः कुम्भपद्यादयः 4 / 4 / 128 / 6 / 1 / 11 / कुरु-च्छुरोः 6 / 3 / 111 / किति तेषाम् 5 / 1 / 20 / कुरु-नादिभ्यो यः 2 / 4 / 101 / किमः कः 5 / 4 / 66 / कुरु-युगन्धरात् 3 / 2 / 45 / किमि लृट् च 1 / 3 / 110 / कुर्वादिभ्यो ण्यः 2 / 4 / 84 / किम्-ए-तिङ-असंख्यात् आमन्तौ कुलटाया वा 2 / 4 / 57 / . अद्रव्ये 4 / 3 / 46 / कुलत्थ-कोपान्तात् अण् 3 / 4 / 4 / किरादि-श्रन्थ-ग्रन्थ-सनाम् आप्ये कुलनाम्नः 2 / 3 / 83 / 1 / 4 / 100 / कुलात् ढकञ् च 2 / 4 / 72 / किरो लवने 5 / 1 / 138 / कुलालादिभ्यो वुज 3 / 3 / 84 / किल्बिषादयः (उणादि) 3 / 62 / कुलि जाद् वा 4 / 1 / 71 / किशरादिभ्यः ष्ठन् 3 / 4 / 55 / कुल्माषाद् अण् 4 / 2 / 88 / कीनाश-दाश-अङकुशाः (उणादि) कुवः कवन् (उणादि) 3 / 17 / 3 / 56 / कुश-अग्रात् छः 4 / 3 / 82 / कुजादिभ्यः फ्यञ् 2 / 4 / 33 / कुषि-रजः आप्ये 1 / 1 / 61 / कुटादीनाम् अणिति 6 / 2 / 13 / कुषेः सिक् (उणादि) 1 / 66 / कुटी-शमी-शुण्डाभ्यो रः 4 / 3 / 71 / / कु-होः चुः 6 / 2 / 116 / कुटे: क्मलच् (उणादि) 3 / 48 / कूलाद् उदो रुजि-वहः 1 / 2 / 15 / Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 142] चान्द्रव्याकरणम् [कूल- क्तात् कूल-अभ्र-करीषाच्च कषः 1 / 2 / 26 / क-ग्रोः उच् च (उणादि) 1 / 15 / कृकण-पर्णात् भारद्वाजात् 3 / 2 / 57 / क-त-कृपेः कीटन् (उणादि) 2 / 34 / कृकाद् वचः कश्च (उणादि) 1 / 4 / क-तभ्याम् ईषन् (उणादि) 3 / 56 / कृच्छ्र-गहनयोः कषः 5 / 4 / 150 / कृ धान्ये 1 / 3 / 21 / कृञः करणे ख्युन् 1 / 2 / 47 / क-प-जि-मण्डि-निधाञः क्युः (उणादि) कृत्रः कर्तरि 1 / 3 / 6 / / 270 / कृञः पासप् (उणादि) 3 / 66 / कभ्यः पञ्चभ्यः 5 / 4 / 172 / कृआदिभ्यः वुन् (उणादि) 2 / 20 / क-वृजो अण्डन् (उणादि) 2 / 37 / कृञा द्वितीय-तृतीय-शम्ब-बीजात्क -श-गर्देः अभच् (उणादि) 2 / 63 / कृषौ 4 / 4 / 42 / क-श-शौटिभ्यः ईरच् (उणादि) 3 / 27 / कृत्रा वा 2 / 2 / 34 / / केकय-मित्रयु-प्रलयानां यादेः ईयः कृत्रि वा 6 / 4 / 43 / . . . 6 / 1 / 13 / कृतो ये च 5 / 3 / 102 / के अणो ह स्वः 6 / 2170 / कृञः असुट: 5 / 4 / 156 / / केदारात् यब च 3 / 1 / 46 / कृत्री हेतु-शील-अनुलोमेषु 1 / 2 / 7 / / केवल-मामक-भागधेय-पाप-अवर-समानकृति-भिदि-लतेः क्तिकन् / आर्य-कृत-सुमङ्गल-भेषजात् नाम्नि (उणादि) 2 / 13 / कृतेः सुक् च (उणादि) 276 / केशादिभ्यो वः 4 / 2 / 113 / / कृ-दा-धा-रा-अचिभ्यः कः केशाद् वा 3 / 1151 / (उणादि) 213 / को: कद् अचि उत्तरार्थे 5 / 2 / 116 / कृपो रो ल: अकृपणादीनाम् 6 / 3 / 41 / कोपस्थाने अनाप्ये 2 / 1 / 76 / कृ-भू-तनेः कित् (उणादि) 2 / 16 / कोपान्ताद् अण् 3 / 2 / 47 / कृ-वा-पा-जि-मि-स्वदि-साधि-अशूभ्यः कोश्च आदेश-सनादि-शासि-वसि-घसां सः उण् (उणादि) 1 / 1 / 6 / 4 / 46 / कृ-वृ-त-यमि-दारि-अर्जेः उनन् (उणादि) कौपिञ्जल-हास्तिपदाद् अण् 3 / 3 / 67 / 280 / कौमारी प्राथम्ये 3 / 1 / 11 / कृ-वृ-त-स्वपि-सि-द्रुभ्यः नन् (उणादि) कौरव्य-आसुरि-माण्डुकात् 2 / 3 / 21 / 2074 / क्ङिति 5 / 3 / 38 / कृ-वृ-षि-मृजि-शंसि-दुहि-गुहः 1 / 1 / 125 / डिति 6 / 2 / 11 / कृ-व्रज-यजः 1 / 3 / 80 / / क्तवतुः 1 / 2 / 66 / कृषः अचश्चाद् वा (उणादि) 2 / 7 / क्तात् अनात्यन्तिके 4 / 4 / 16 / कृष्यादिभ्यो वलच् 4 / 2 / 116 / क्तात् अल्पोक्तौ 2 / 3 / 56 / 2 / 3 / 27 // Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 143 क्तिचि --क्षेम] चान्द्रव्याकरणम क्तिचि दीर्घश्च 5 / 3 / 51 / क्लिन्नचक्षुषि चिल्ल-पिल्ल-चुल्लाः क्तिनि 6 / 3 / 63 / 8 / 2 / 34 / क्त्वि स्कन्द-स्यन्दो: 5 / 3 / 52 / क्व-कुत्र-इह-अत्र 4 / 3 / 11 / क्न: असित-पलितात् 2 / 3 / 35 / क्वचिद् वा 5 / 1 / 124 / क्यङ 1 / 1 / 26 / क्वण: वीणायाश्च 1 / 3 / 56 / क्यङि वा 6 / 2 / 102 / क्वसोः एकाच्-आत्-घसः 5 / 4 / 165 / क्यचि 6 / 2 / 86 / क्व-अमा-इह-अत्र-तसः त्यप् 3 / 2 / 13 / क्य-व्योः 5 / 3 / 156 / क्विनः 6 / 3 / 60 / क्यस्य वा 5 / 3 / 66 / . क्विप्-विच्-मनिन्-क्वनिप्-वनिपः क्रतु-उक्थादिभ्यः ठक् 3 / 1 / 38 / . 1 / 2 / 53 / ऋतो कुण्डपाय्य-संचाय्यौ 1 / 1 / 137 / क्षः 6 / 3 / 8 / / क्रमः 5 / 4 / 126 / / क्षणः डीरच् (उणादि) 3 / 26 / क्रमः क्त्वि 5 / 3 / 16 / क्षत्रात जातौ घः 2 / 4 / 66 / क्रमादिभ्यः वुन् . 3 / 1 / 40 / क्षत्रियात् 3 / 3 / 67 / क्रमः अतः इत् च (उणादि) 1153 / क्षिपः कित् (उणादि) 1175 // क्रमः अतङाने 6 / 1 / 104 / क्षिपकादीनाम् 6 / 1176 / क्रियः इकन् (उणादि) 2 / 17 / / क्षिपि-नदिभ्यां चनुङ (उणादि) 1 / 32 / क्रियः क्रयार्थे 5 / 180 / क्षिपि-लङ्घि-लिखि-धमिभ्य, क्वुन् / क्रियाऽऽप्ये द्वितीया 2 / 1 / 43 / (उणादि) 2 // 5 // क्री-इङ-जीनाम् 5 / 1 / 60 / क्षीरात् ढञ् 3 / 1 / 17 / क्रीडः अनु-परिभ्यां च 1 / 4 / 58 / क्षुद्रजन्तूनाम् 2 / 2 / 60 / क्रीतवत् परिमाणात् 3 / 3 / 115 / क्षुद्राभ्यो वा / 2 / 4 / 63 / क्रीतात् करणादेः 2 / 3 / 55 / क्षुब्ध-स्वान्त-ध्वान्तम् मन्थ-मनस्-तमः क्रुञ्चा-कोकिलाभ्याम् 2 / 4 / 43 / 5 / 4 / 145 / क्रुध-भूषार्थात् 1 / 2 / 100 / / क्षुभ्नादीनाम् 6 / 4 / 135 / कुंशः तुनः तृच 5 / 4 / 48 / क्षेः क्षी: 5 / 3 / 72 / क्रोध-अश्रद्धयोः 1 / 3 / 111 / / क्षेः क्षी च 6 / 3 / 81 / क्रोश-योजनादेः शतात् अभिगमार्थे च क्षेत्रियच् परक्षेत्रे चिकित्स्यः 4 / 2 / 66 / 4 / 1 / 86 / क्षेप-अतिग्रह-अव्यथनेषु अकर्तरि क्रोड्यादीनाम् 2 / 3 / 84 / तृतीयायाः 4 / 3 / 3 / क्यादिभ्यः 1 / 1 / 101 / क्षेम-प्रिय-मद्रात् अण् च 1 / 2 / 28 / Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 / 43 / 144] चान्द्रव्याकरणम् क्सिस्य -- गिरो क्सस्य अचि 6 / 1 / 100 / गद-मद-यमः अप्रादेः 1 / 1 / 106 / गमः 1 / 2 / 32 / खः 4 / 2 / / गमः (उणादि) 385 / खः पदान्ताच्च 2 / 4 / 73 / गम-जन--खन-घसां ले लोप: अपिति। खड् 112 // 34 // 5 / 3 / 16 / खन: डर-इकौ च 1 / 3 / 102 / गमादीनां क्वौ 5 / 3 / 46 / ख-फ-छ-ठ-थ-च-ट-तव् प्रत्याहारसूत्र / गमेः क्षान्तौ 1 / 4 / 56 / (शिवसूत्र 10) गमेः गन् (उणादि) 2 / 28 / खयि खरः 6 / 2 / 113 / गमेः डोः (उणादि) 162 / खरि 6 / 4 / 21 / गमो द्वे च (उणादि) 3170 / खरि चर् झलः 6 / 4 / 148 / गम्भीर-पञ्चजनात् ज्यः 3 / 3 / 21 / खरि लोपः 6 / 4 / 30 / / खजि-पिजादिभ्यः ऊर-ऊलचौ (उणादि) गम्भीरादयः (उणादि) 3 / 26 / . . गर्गादिभ्यः यञ् 2 / 4 / 24 / गर्तान्तात् छः 3 / 2 / 52 / खल-यव-माष-तिल-वृष-ब्रह्म-रथात् गर्दायां कथमि लिङ 1 / 3 / 10 / 4 / 17 / खलादिभ्यः इनिः 3 / 1157 / गये 3 / 4 / 36 / खारी-काकणीभ्य ईकन् 4 / 1 / 42 / गल्भ-क्लीब-होडेभ्यः ङित् 1 / 1 / 28 / गवाश्वादीनाम् 2 / 2 / 57 / खार्या वा 4 / 4 / 85 / / खिति ससंख्यस्य मुम् च 5 / 2 / 75 / गवि युक्ते 5 / 2 / 51 / गवि-युधेः स्थिरः 6 / 4 / 81 / खिति इच एकाचः अमः 5 / 2 / 4 / गव्यूतिः अध्वमाने 5 / 1 / 78 / खुर-खरात् णस् वा 4 / 4 / 112 / गः थकन् 1 / 1 / 158 / खेयम् 111 / 112 / गहादिम्यः 3 / 2158 / गः 1 / 2 / 44 / गाङः ईत् स्ये च 6 / 2 / 28 / गणिका-ब्राह्मण-माणव-वाडवाद् यञ् / गाङ लिटि 5 / 4 / 66 / 3 / 1150 / गाथि-विदथि-केशि-गणि-पणिनाम् गति-बोध-आहार-शब्दार्थ-अनाप्यानां 5 / 3 / 176 / प्रयोज्ये 2 / 1 / 44 / गान्धारि-शालवेयात् 2 / 4 / 67 / गत्यर्थात् कौटिल्ये एव 1 / 1 / 42 / गिरि-नदी-पौर्णमासी-आग्रहायणी-झयः गत्यर्थ-अनाप्यात् आधारे च 1 / 2 / 70 / 4 / 4 / 63 / गत्वरः 1 / 2 / 110 / गिरिनद्यादीनाम् 6 / 4 / 111 / गद-नद-पठ-स्वनः 1 / 3 / 55 / गिरो भन् (उणादि) 2 / 66 / Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् गुणवचन -- घास] [145 गुणवचन-ब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च गोः अलुकि अचार्थे 4 / 4 / 77 / 4 / 1 / 141 / गोः ओ वा 5 / 1 / 120 / गुणान् ईयसुन्-इष्ठनौ च 4 / 3 / 47 / गो: औ: स्वार्थे 5 / 4 / 43 / गुणे वा 2 / 1 / 70 / गोष्ठात् भूते 4 / 2 / 6 / गुधेः ऊमः ( उणादि) 2068 / गोसदादिभ्यः वुन् / 4 / 2 / 156 / गुपू-धूप-विछ-पण-पनः आयोचा 1 / 1 / 47 / गौरादिभ्यः 2 / 3 / 37 / गुपो निन्दायाम् 111 / 16 / ग्रन्थान्ताधिक्ये 5 / 2 / 101 गुरेः फक् (उणादि) 2 / 86 / ग्रसेः आच् च (उणादि) 2 / 101 / गुरोहलः 11385 / ग्रहः 111 / 152 / गुर्वेकैकमनृत् वा 6 / 3 / 118 / ग्रहणे वा 4 / 2 / 66 / गृधि-वञ्चेः प्रलम्भने 1 / 4 / 121 / ग्रह-वृ-दृ-निश्चि-गम-वश-रणः 1 / 3 / 48 / गृष्ट्यादिभ्यः 2 / 4 / 77 / ग्रहि-प्रछोः सनि 5 / 1 / 22 / गृहांशे प्रघाणः 1 / 3 / 66 / ग्रहि-व्यधोः 5 / 1 / 15 / गृ-गृभ्यां वः ( उणादि) 2060 / ग्रहोऽस्यालिटीत् 5 / 4 / 100 / गेहे कः 111153 / ग्राम-कोटात् तक्ष्णः 4 / 4 / 80 / गोत्रचरणात् श्लाघा-अधिक्षेप-अव- ग्राम-जन-गज-बन्धु-सहायात् तल्३।१।५६ / गतेषु 4 / 1 / 150 / ग्राम-जनपदांशात् अण् च 3 / 2 / 66 / गोत्रा 3 / 1 / 58 / ग्रामात् य-खो 3 / 2 / 4 / गोत्रात् अङ्कवत् 3 / 1 / 8 / ग्रीवातः अण् च 3 / 3 / 20 / गोत्रात् अङ्कवत् 3 / 1 / 54 / / ग्रीष्म-वसन्तात् वा 3 / 3 / 12 / गोत्रात् अदण्ड-माणव-अन्तेवासिषु ग्रीष्म-अवर-समात् वुञ 3 / 3 / 15 / 3 / 3 / 65 / ग्रो यङि 6 / 3 / 43 / / गोत्रात् बहुलं वुन 3 / 3 / 66 / / ग्रो वा मुट् च ( उणादि ) 375 / गोत्रान्तात् तद्वत् अजिह्वाकात्य ग्ला-नुदिभ्यां डौः (उणादि) 163 / हरितकात्यात् 3 / 2 / 27 / ग्ला-हा-ज्यः 1 / 3 / 65 / गोत्रात् लुक् 2 / 4 / 118 / / गोत्र-उक्ष-उष्ट्र-उरभ्र-राज-राजपुत्र-वत्स- घः 1 / 3 / 100 / - अज-वृद्धात् वुञ् 3 / 1145 / घनि भाव-करणयोः 5 / 3 / 31 / 3 / 1145 / घा गोधायाः 2 / 4 / 61 / घञ् कारके च 1 / 37 / गोमिन् पूज्ये 4 / 2 / 144 / घ-ढ-धश् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 8) गोः अचि यत् 2 / 4 / 15 / धर्म-ग्रीष्म-अधमाः ( उणादि ) 2 / 106 / गो: अप्रधानस्यान्त्यस्य 2 / 2 / 85 / घास-कर-विशिष्टे पुंवच्च 5 / 2 / 47 / * 16 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 146] चान्द्रव्याकरणम् [घा-- चायः घा हः 6 / 4 / 134 / चक्षेः उसिन् (उणादि) 364 / घुणे: डोरः ( उणादि ) 3 / 35 // चङि 5 / 1 / 24 / घुषेः अविशब्दने. 5 / 4 / 151 / चडि उपान्तस्य 6 / 1 / 61 / घृ-सि-दूभ्यः क्तः (उणादि) 2 / 51 / चङ-लिटोः. 5 / 1 / 2 / घ्र इत् 6 / 1 / 66 / च-जोः कुः घित्-ण्यतोः 6 / 1 / 83 / घ्रा-त्रा-अति-ही-नुद-उन्द-विदो वा चटकात् ऐरक् 2 / 4 / 5 / / 6 / 3 / 87 / चति-कटि-श-वृनः ट्वरच् (उणादि) घ्रा-धे-शा-च्छा-सो वा 1 / 1 / 63 / 3 / 15 / चतुरः 4 / 2 / 57 / ङमो हस्वात् द्वे 6 / 4 / 17 / चतुर्-अनडुहो: आम् 5 / 4 / 50 / ङसि-ङसोः 5 / 1 / 116 / चतुर-संगत-लवण-वड-बुध-कतर-सलसात् ङसेश्चात् 2 / 1 / 30 / / * वा 4 / 1 / 138 / डित् 1 / 1 / 11 / चतुर्थी प्रकृत्या 2 / 2 / 17 / डितः 1 / 4 / 48 / चतुष्पाद्भ्यः ढञ् 2 / 4 / 76 / डिति असख्युः 6 / 2 / 50 / चत्वारिंशदादौ वा 5 / 2 / 54 / डित् अनाशिषि 1 / 4 / 34 / चन्द्रात् माङो डित् (उणादि) 3 / 68 / ङि-स्योर्वा 5 / 3 / 132 / चमि-तनि-बधिभ्यः ऊः (उणादि) .: स्मिन् 2 / 1 / 7 / - 1143 / 3-ङस्योः य-आतौ 2 / 1 / 5 / : आम् तत्र 6 / 2 / 56 / चयः शरि द्वितीयः 6 / 4 / 158 / डे-सुटः अम् 2 / 1 / 27 / चर् 6 / 2 / 114 / चरः 1 / 1 / 110 / ङणोः कुक्-टुको शरि 6 / 4 / 12 / चरणात् वुञ् 3 / 3 / 64 / ङयः ईत् 4 / 4 / 145 / चरति 3 / 4 / 7 / / ङयादीनाम् 2 / 2 / 86 / चर-फलो: 6 / 2 / 136 / ङयापो दीर्घात् 5 / 1 / 67 / चराचर-चलाचल-पतापत-वदावद-घनाघनड्यापोः त्वनाम्नोः बहुलम् 5 / 2 / 73 / वा 5 / 1 / 10 / डी-आप्-ति-ऊङः 2 / 4 / 50 / / चरे: ट: 1 / 2 / 4 / ड्याम् 5 / 3 / 150 / चर्मणि अञ् 4 / 1 / 18 / डी-ऊङः 6 / 2 / 46 / चलन-आहारार्थात् 1 / 4 / 136 / डी-ऊङ-ऋतः अभ्रवः 4 / 4 / 141 // चातुर्मास्यं यज्ञे 3 / 3 / 22 / चक्रि-सस्रि-जज्ञयः 1 / 2 / 115 / / चातुर्मास्यात् यलोपश्च 4 / 1 / 111 // चक्षः ख्यान 5 / 4 / 81 / चायः कीः 5 / 1 / 27 / Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [147 चार्य - जन] चान्द्रव्याकरणम् चार्थ-रोग-गर्हितात् प्राणिस्थात् अस्वाङ्गात् छ-कारके अन्यस्य दुक् 5 / 2 / 116 / ' इनिः 4 / 2 / 125 / छगलिनो ढिनुक् 3 / 3 / 76 / चार्थसमास-मनोज्ञादिभ्यः 4 / 1 / 146 छश्च आयुधात् 3 / 4 / 12 / चार्थसमासे 2 / 1 / 12 / छत्रादिभ्यः णः 3 / 4 / 63 / चार्थात् छः 3 / 1 / 6 / छदिर्-बलिभ्यां ढञ् 4 / 1 / 16 / चार्थात् वैरे वुन् अदेवासुरादिभ्यः छदे: नुम् च (उणादि) 3 / 10 / 3 / 3 / 86 / छन्दसा निर्मिते 3 / 4 / 65 / चार्थान् अदेवासुरादीन् 3 / 3 / 57 / छन्दसो यत् 3 / 3 / 43 / चार्थे 2 / 2 / 48 / छन्दोग-औक्थिक-याज्ञिक-बहवृचात् धर्मचार्थे चु-द-ष-हः समाहारे 4 / 4 / 86 / आम्नाय-संघेषु 3 / 3 / 12 / चाल-शब्दार्थात् . अनाप्यात् युच् छन्दोनाम्नि 1 / 3 / 26 / 1 / 2 / 67 / छवि रः सः 6 / 4 / 28 / चिणः 1 / 185 / छविआदयः (उणादि) 1183 / चिण्-णमो: अप्रादे: वा 5 / 4 / 23 / / छादेर्पा 6 / 1 / 58 / चिण्-णमोः दीर्घश्च 6 / 1 / 57 / छाया 2 / 2 / 73 / चिण्णल्ङित्सु 6 / 2 / 10 / छे 3 / 3 / 111 // चिण ते पदः 11176 / छे 5 / 170 / चिति-राशि-वास-देहेषु चः कः 1 / 3 / 32 / छेदादिभ्यो. नित्यम् 4 / 1 / 75 / चितेः कपि 5 / 2 / 136 / / छो वा 6 / 2 / 63 / चिति उपमार्थे 6 / 3 / 128 / चित्रङ: आश्चर्ये 1 / 1 / 38 / जक्षादिभ्यः पञ्चभ्यः 1 / 4 / 5 / . चि-स्फुरोः णौ 5 / 1156 / जङ्गल-धेनु-बलजस्य वा 6 / 1 / 35 / चु-टु-तु-ल-शर्यवाये 6 / 4 / 132 / जटा-लोष्टम् (उणादि) 2 / 33 / चुरादिभ्यः णिच् 1 / 1 / 45 / जवादयः (उणादि) 1140 / चूडादिभ्यः अण् 4 / 1 / 130 / जनपदनाम्नः क्षत्रियात् राशि च चूर्णात् इनिः 3 / 4 / 23 / 2 / 4 / 66 / चेर्वा 6 / 186 / जनपदवत् सर्वं तत्सरूपात् बहुत्वे चोः कुः 6 / 3 / 56 / 3 / 3 / 68 / चौ 5 / 2 / 146 / जनपदात् 4 / 4 / 88 / च्वि-यङ-यक्-क्येषु 6 / 278 / जनपदेभ्यः 3 / 2 / 38 / व्यर्थे भृशादिभ्यः स्-तलोपश्च 1 / 1 / 30 / ज-नशः 5 / 3 / 55 / छः 2 / 4 / 65 / . जन-सन-खनाम् आत् 5 / 3 / 36 / Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 148] चान्द्रव्याकरणम् [जनि -- ज्वलादिभ्यो जनि-मनि-दसि-भुजेः क्युस् (उणादि) जायादयः (उणादि) 2 / 110 / . 1 / 34 / जायायाः निङ् 4 / 4 / 122 / जनि-वधोः 6 / 1 / 43 / __ जि-ग्लश्च क्स्नुः 1 / 2 / 64 / जनि-ईशि-ईड: स-ध्वे 5 / 4 / 174 / जित्या-विपूय-विनीया हलि-मुञ्ज-कल्केषु / जनः अरः ठश्च (उणादि) 3 / 31 / 1 / 1 / 128 / जनः उसिः (उणादि) 3 / 61. जिह्वामूल-अङ्गलेः छः 3 / 3 / 30 / .. जनेः घः (उणादि) 2 / 30 / - जीवात् ग्रहः णमुल स चानु 1 / 3 / 136 / जप-जभ-दह-दश-भञ्ज-पशाम् 6 / 2 / 135 / जीविका-उपनिषदौ औपम्ये 2 / 2 / 40 / जपि-वमः 5 / 4 / 143 / / जु-चङक्रम्य-दन्द्रम्य-सृ-गृधि-ज्वल-शुच- . ज-ब-ग-ड-दश् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 6) लष-पत-पदः 1 / 2 / 66 / जभः अचि 5 / 4 / 14 / जुस्-पुकोः 6 / 2 / 3 / जम्ब्वादयः (उणादि) 1147 / ज-विशः अन्तच् (उणादि) 2 / 43 / जराया जरस् वा 5 / 4 / 67 / ज-वृञः ऊथन् (उणादि) 2 / 57 / जल्प-भिक्ष-कुट्ट-लुण्ट-वृङ: शाकन् ज-श्वि-स्तम्भु-मुचु-म्लुचु-ग्लुचः 1 / 175 / 1 / 2 / 103 / जषः त्वः 5 / 4 / 115 // जसः शी: 2 / 1 / / जषः अतृन् 1 / 2 / 72 / जसि 6 / 2 / 46 / जेः नुक् च (उणादि) 165 / जस्-शसोः शि: 2 / 1 / 16 / ज्ञपि-आप्-ऋधाम् ईत् 6 / 2 / 108 / / जागुः 1 / 3 / 83 / ज्ञा-क-प्री-इगुपान्तात् कः 1 / 1 / 141 / जागुः क्विन् (उणादि) 182 / ज्ञा-जनोः जाः 6 / 1 / 107 / जागुः अलिटि 6 / 26 / ज्ञान-यत्न-उपच्छन्दनेषु वदः 1 / 4 / 63 / जागुः ऊकः 1 / 2 / 111 / ज्यः 5 / 1 / 46 / जागृ-उषो वा 1 / 1154 / ज्यायान् 5 / 3 / 162 / जाण्ड-पाण्डाद् आरक् 2 / 4 / 60 / ज्या-वश्व-प्रछ-भ्रस्जाम् 5 / 1 / 17 / जातिः अष्फादौ च 5 / 2 / 38 / ज्योतिस्-आयुषश्च स्तोमः 6 / 4 / 70 / जातीयर् 4 / 3 / 26 / ज्योतिरादयः (उणादि) 360 / जाते प्रोष्ठ-भद्रात् पदस्य 6 / 1 / 28 / ज्योत्स्ना-तमिस्र-ऊर्जस्विन्-ऊर्जस्वलजातेः अनाच्छादात् वा 2 / 3 / 56 / ___ मलीमसाः 4 / 2 / 117 / जातेः अस्त्रीविषयात् अयोपान्तात् ज्योत्स्नादिभ्यः 4 / 2 / 107 / 2 / 3 / 71 / ज्वर-त्वर-अव-श्रिवु-मवां सोपान्तस्य जातौ डतमच् बहुभ्यः 4 / 3 / 76 / 5 / 3 / 16 / जानु-नीवीभ्याम् 3 / 3 / 37 / ज्वलादिभ्यो णो वा 111 / 146 / Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H-- ]] चान्द्रव्याकरणम् [149 ट्वितः अथुच् 1 / 3 / 66 / झ-भञ् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 7) झयः 6 / 3 / 36 / ठंश्चान्यत्र 4 / 1 / 6 / / झयः हो झय 6 / 1 / 156 / ठञ् 3 / 2 / 30 / झलि तिङि अपिति . 5 / 3 / 37 / ठस्य इकः 5 / 4 / 3 / झल: जश् 6 / 3 / 67 / डः 1 / 2 / 35 / झलः झलि 6 / 3 / 55 / डः 112 / 65 / झषः एकाचः स्-ध्वोः बशो भष् .. ड: 6 / 3 / 47 / 6 / 3 / 66 / ड: सः धुट 6 / 4 / 13 / झषः जश् 6 / 2 / 115 / डतरादिभ्यः पञ्चभ्यः अनेकतरात् तः झसि अरन् 1 / 4 / 37 / 2 // 1 // 25 // झेः जुस् 1 / 4 / 40 / डश्चोपात् 4 / 3 / 65 // झः अन्तः 1 / 4 / 3 / / डाचि पूर्वस्य 5 / 1 / 105 / . डाच्-लोहितादिभ्यः क्यष् 1 / 1 / 31 / अमः किति वो च 5 / 3 / 17 / / डित् अण् 3 / 3 / 8 / .. अ-म-ङ-ण-न-म् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 6) ड्वितः त्रिः 1 / 3 / 68 / अमन्तात् डः (उणादि) 2036 / अमि च च्छ्-वोः शूठ 5 / 3 / 13 / ढक् 2 / 4 / 46 / अमोऽतः नुक् 6 / 2 / 134 / ढकि लोपः 2 / 4 / 68 / जितः 1 / 4 / 126 / ढे 5 / 3 / 148 / मित्-आर्षण्यात् अणिमो: 2 / 4 / 123 / ढे अग्नायी 5 / 2 / 33 / णिति 6 / 1 / / ढे अनादौ ढलोपः 6 / 4 / 18 / ञ्णिन्नि। हनो हः 6 / 185 / ठुलोपे अण: 5 / 2 / 137 / 'ज्यादीनां . बहुषु लुक् 4 / 3 / 64 / ज्यादीनां 2 / 4 / 106 / णः पन्थश्च नित्यम् 4 / 1 / 88 / णच्-इनुणः 4 / 4 / 21 // टक् 112 / 36 / णि-श्रन्थ-ग्रन्थ-विद-आस-घट्ट-वन्दः युच् टकितो आद्यन्तौ 1 / 1 / 13 / 11386 / टा-ङसोः इन-स्यौ 2 / 1 / 4 / णि-श्रि-द्रु-स्रु-कमः कर्तरि चङ 1 / 1 / 68 / टि चापः 6 / 2 / 43 / णेः अनिटि 5 / 3 / 67 / टित्-ड-अण्-अञ्-ठक्-ठ-नत्र-स्नञ् -कत्र - णेः अस्विदि-स्वदि-सहः 6 / 4 / 46 / * क्वरप्-ख्युनः 2 / 3 / 17 / णेर्वा 6 / 4 / 124 / टित्तङाम् एत् 1 / 4 / 15 / णेः वृत्तं ग्रन्थे 5 / 4 / 154 / 'टः अस्त्रियां ना 6 / 2 / 63 / णः नः 5 / 1 / 62 / टा-ओसि अक: अनः 5 / 4 / 74 / णः अरण्यात् 3 / 2 / 17 / Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [गौ--तन्नेः णी गम-बोधे 5 / 4 / 63 / तत्र नियुक्तम् 3 / 4 / 70 / णो मृगरमणे 5 / 3 / 30 / तत्र भक्तिः महाराजात् ठक् 3 / 3 / 63 / णौ संश्चङोः 5 // 1 // 38 // तत्र विदिते 4 / 1157 / णौ संश्चङोः 5468 / तत्र साधुः 3 / 4 / 100 / ण्यः आवश्यके 6 / 1 / 63 / तत्रोद्धृतं पात्रेभ्यः 3 / 1 / 12 / ण्युट 1 / 1 / 155 / तथा कर्मणः अण् 4 / 4 / 16 / . . ण्वुच् 1 / 3 / 61 / त-थोः धः अधः 6371 / तं प्रति-अनोः ईप-लोम-कूलात 3 / 4 / 27 / तद् अत्र अस्मै वृद्धि-आय-लाभ-शुलकतं भूतो भावी 4 / 1 / 65 / उपदं दीयते 4 / 1 / 56 / तः सः सौ 5 / 4 / 70 / / तद् अधीते तद् वेद -3 / 1 / 37 / तङाना यथापाठम् 1 / 4 / 46 / तदधीने 4 / 4 / 3 / तङाम् 1 / 4 / 16 / तद् अस्य पण्यम् 3 / 4 / 53 / .. तङि वा 1 / 1 / 72 / तद् अस्य परिमाणम् 4 / 1 / 62 / तङि वा 5 / 4 / 6 / तद् अस्य ब्रह्मचर्ये 4 / 1 / 106 / तङि अनतः 1 / 4 / 6 / तद् अस्य संजातं तारकादिभ्यः इतच् तङवतः हलादेः अणः 1 / 2 / 18 / . 4 / 2 / 37 / तविषयात् कर्तरि अतिङः 5 / 4 / 127 / तद् अस्यात्र स्याद् इति 4 / 1 / 21 / तत् चरति 4 / 1 / 108 / तद् अस्य अस्ति अत्रेति मतुप् तञ्च-वञ्च-शकि-क्षिपि-क्षुदि-रुदि-मदि मन्दि-चन्दिभ्यः रक् (उणादि) 3 / 7 / तदादेः 3 / 3 / 27 / ततः प्राक् कारकात् 2 / 1140 / तद् इहास्ति च 3 / 1167 / ततः शसो नः पुंसि 5 / 1 / 110 / तद्वति धण् 4 / 3 / 25 / त-तवति इटि 5 / 3 / 68 / तद् वहति युग-प्रसिङ्गात् 3 / 4 / 77 / त-तवतोः 5 / 4 / 110 / तनादिभ्यः उ: 1 / 164 / त-तवतोः अपू-शी-स्विदि-मिदि-क्ष्विदि- तनादिभ्यः त-थासोः 1 / 1164 / धृषः 6 / 2 / 16 / तनादिअनिट्-वनां ल्यपि अमः 5 / 3 / 35 // ततः अचि नुट् 5 / 2 / 63 / तनूकृतौ तक्षः 1 / 168 / तत् पचति द्रोणात् अण् च 4 / 167 / तने कयन् (उणादि) 21107 / तत्र गृहीत्वा तेन प्रहृत्य युद्धे सरूपम् तनो यकि 5 / 3 / 42 / 2 / 2 / 47 / तनो वा 5 / 3 / 15 / तत्र जाते प्रावृषः ठप् 3 / 3 / 1 / तन्त्रात् नवोद्धृते 4 / 2 / 75 / तत्र दीयते 4 / 1 / 113 / तन्द्रेः ई: (उणादि) 1188 / 4 / 2 / 6 / Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तद् --तिरसः] चान्द्रव्याकरणम् [151 तद् नपुंसकम् 2 / 2 / 15 / तस्य एश् 1 / 4 / 10 / . तपआप्यात् 1 / 4 / 75 / ता तत्काल: 1 / 13 / तपः-सहस्राभ्याम् अण् 4 / 2 / 106 / / तात-पलित-जर्त-सूरताः (उणादि) 2 / 52 / तपसः तपआप्यात् 1 / 1 / 81 / तादर्से 2 / 176 / तप्त-अनु-अवात् रहसः 4 / 4 / 67 / ताभ्यां डाप् 2 / 3 / 14 / तमेः बुक् च (उणादि) 3 / 44 / तारका ज्योतिषि 6 / 1 / 80 / तमि-अमि-जीनाम् दीर्घश्च (उणादि) 3 / / तारेः अन् (उणादि) 164 / तयोः य-वौ अचि 6 / 3 / 133 / तालादिभ्यः अण् 3 / 3 / 106 / तयोः वा 1467 / ताससः रि च लोपः 6 / 2 / 100 / तर-तम-रूप-कल्प-चेलट्-ब्रुव-गोत्र-मत-हते तासश्च क्लप: 5 / 4 / 124 / ङयः ह स्व: 5 / 2 / 42 / तिक-कितवादिभ्यः चार्थेकाक्षं 2 / 4 / 115 / तरति 3 / 4 / 5 / तिकादिभ्यः फिञ 2 / 4 / 86 / तर्हि एतर्हि सद्यः परेद्यवि 4 / 3 / 16 / ति किति अदो जग्धः 5 / 4 / 85 / तवक-ममको एकत्वे 3 / 2 / 64 / तिङश्च रूपप् 4 / 3 / 53 / तव-ममौ ङसि / 5 / 4 / 62 / तिङ-असंख्यानाम् अचोऽन्त्यात् पूर्वोऽकच् तव्यादिषट्के अवश्यमः 5 / 2 / 10 / 4 / 3 / 56 / तव्य-अनीयर्-केलिमरः 111 / 105 // तिङि हलि अपिति 5 / 3 / 58 / तसोः तसौ मत्वर्थे 6 / 3 / 68 / / तिङि अवक्षेपे 5 / 2 / 12 / त-स्थ-स्थानां तां-तं-ताः डिन्तश्च 1 / 4 / 28 / तिङशिति यक् अलिट्-आशीर्-लिङि तस्मै प्रभवति संतापादिभ्यः 4 / 1 / 120 / 1 / 180 / तस्मै भृतः अधीष्ट: 4 / 1 / 14 / / तिङशिति अपित्आशीलिङि 6 / 2 / / तस्मै हितम् 4 / 1 / 4 / . ति चोद् अतः 6 / 2 / 137 / तस्य दक्षिणा यज्ञेभ्यः 4 / 1 / 112 / / तिजः क्षान्तौ सन् 1 / 1 / 17 / तस्य धर्म्यम् 3 / 4 / 46 / . तिजे: ईच् च (उणादि) 278 / तस्य पूरणे डट् 4 / 2 / 51 / ति-तु-ब-यस्-ताः 4 / 2 / 150 / तस्य भावः त्व-तलौ 4 / 1 / 136 / / तित्तिरि-वरतन्तु-खण्डिक-उखात् छण् तस्य वापः 4 / 1 / 48 / 3 / 3170 / तस्य व्याख्याने च व्याख्येय-नाम्नः / तिपि 6 / 3 / 105 / तिमि-रुधि-मदि-मन्दि-चन्दि-बन्धिभ्यः तस्य समूहः 3 / 1 / 43 / किरच् (उणादि) 3 // 5 // तस्य स्वं रथात् यत् 3 / 3 / 85 / तिरसः 6 / 4 / 44 / / तस्यापत्यम् 2 / 4 / 16 / तिरसः तिरि अति / 5 / 2 / 112 / 3 / 3 / 38 / ह Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 152] चान्द्रव्याकरणम् [तिरो-त्वा तिरो डट् च (उणादि) 1145 / / तेन रक्तं रागात् 3 / 1 / 1 / / तिरः अन्तर्षी 2 / 2 / 33 / तेन वित्तः चञ्चुप्-चणपो 4 / 2 / 27 / तिर्यक् समाप्तौ 2 / 2 / 42 / तेन सुकर-कार्य-लभ्य-परिजय्यम् तिल-यव-पिष्टात् असंज्ञायाम् 3 / 3 / 113 / 4 / 1 / 105 / ति-इषु-सह-लुभ-रुष-रिषः 5 / 4 / 11 / / तेन हस्तात् यत् . 4 / 1 / 117 / / तिष्ठद्गवादीनि 2 / 2 / 10 / / ते: अग्रहादिभ्यः 5 / 4 / 12 / / तिष्य-पुष्ययोः नक्षत्रे अणि 5 / 3 / 158 / तो: षि 6 / 4 / 138 / तिसृका 5 / 4 / 65 // तो: लि 6 / 4 / 153 / तीयात् ईका न विद्या चेत् 4 / 4 / 11 / तः वा 5 / 1 / 104 / तुण्डि-वलि-वटेः भः 4 / 2 / 148 / तः अशश्वतः 5 / 4 / 5 / तुदादिभ्यः शः 1 / 1 / 12 / तौ किमः 4 / 3 / 77 / तुदी-वर्मतीभ्यां . ढन 3 / 3 / 62 / तौ लुटः 1 / 2 / 88... तुभ्य-मह्यौ ङयि 5 / 4 / 61 / त्नप्-तन-खा नू च 4 / 4 / 26 / ' तुमश्च काम-मनसोः 5 / 2 / 86 / त्यदां तसादिषु चाऽऽद्वेः अ: 5 / 4 / 68 / तुमुन् भावे क्रियायां तदर्थायाम् त्यदादिभ्यः 3 / 2 / 28 / / 13 / 6 / त्यदादिभ्यो वा 2 / 486 / तुमो लुक् चेच्छायाम् 1 / 1 / 22 / त्र-तस्-तर-तम-चरट-कल्पप्-देश्य-रूपप्- तुल्यार्थः तृतीया वा 2 / 1 / 16 / पाशप्-शस्-थ्यन्-क्यङ-मानिषु 5 / 2 / 31 // तूष्णीकाम् 4 / 3 / 58 / त्रपु-जतुनोः षुक् , 3 / 3 / 108 / तूष्णीम् 2 / 2 / 44 / त्रयाणाम् 2 / 1 / 34 / तृणहः इम् 6 / 2 / 33 / .. त्रसि-गृधि-धृषि-क्षिपेः क्नुः 1 / 2 / 66 / तृणे जातौ 5 / 2 / 121 / त्रिंशत्-चत्वारिंशतो ब्राह्मणाख्यायाम् डण् तृतीयार्थयोगे 2 / 1 / 11 / 4 / 1 / 65 / तृतीया-सप्तम्योः वा 2 / 1 / 42 / / त्रिककुत् पर्वते 4 / 4 / 135 // तु-फल-भज-त्रपः 5 / 3 / 118 / / त्रि-चतुरोः स्त्रियां तिसृ-चतसृ 5 / 4 / 64 / तेन क्रीतं मूल्यात् 4 / 1 / 47 / त्रि-चतुर्थ्यां हायनो वयसि 6 / 4 / 107 / तेन गृह्णातीति लुक् च 4 / 2 / 65 / त्रि-रथ-वदेषु 5 / 2 / 120 / तेन जितं जयति दीव्यति त्रेः 3 / 4 / 20 / खनति 3 / 4 / 2 / त्रेः त्रयः 5 / 2 / 53 / तेन निर्वृत्तः 4 / 1 / 63 / त्व-तलोः गुणः 5 / 2 / 40 / तेन निर्वृत्ते 3 / 1 / 66 / त्व-मौ एकस्मिन् 5 / 4 / 63 / तेन प्रोक्तं वेदं वेत्ति अधीते 3 / 3 / 66 / त्वा-मौ द्वितीयायाः 6 / 3 / 16 / . Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्व-दुरो] चान्द्रव्याकरणम् [153 त्व-अही. सौ 5 / 4 / 60 / दाम्नः संख्यादेः 2 / 3 / 10 / थलीटि 5 / 3 / 117 / दास्वान् साह्वान् मीढ्वान् चिक्लिवदम् थासः से 1 / 4 / 17 / चक्नसम् 5 / 16 / थो न्थ: 5 / 4 / 40 / दिक्शब्दात् तीरस्य तारः 5 / 2 / 126 / दिक्शब्दात् दिग्देशकालार्थात् सप्तमीदः 6 / 3 / 107 / __ पञ्चमी-प्रथमाभ्यः अस्तातिः 4 / 3 / 28 / दक्षिणा-कडङ्गर-स्थालीबिलात् छश्च दिगादिभ्यः भवे यत् 3 / 3 / 17 / 4 / 1180 / दिगादे: अनाम्नि अमद्रात् 3 / 2 / 16 / दक्षिणा-पश्चात्-पुरसः त्यक् 3 / 2 / 7 / / दक्षिणेर्मा लुब्धयोगे 4 / 4 / 11 / / दिगादेः ठञ् च 3 / 2 / 68 / दक्षिण-उत्तरात् आच्च दिति-अदिति-आदित्य-यमात् ण्यः 2 / 4 / 2 / 4 / 3 / 38 / / दगु-कोशल-कार-छाग-वृषात् युट च दिवः औत् 5 / 4 / 37 / 2 / 4 / 87 / दिवस्-पृथिव्यां वा 5 / 2 / 27 / दण्ड-दानयोः 4 / 4 / 4 / दिवादिभ्यः श्यन् 1 / 1 / 87 / दण्डादिभ्यः 4 / 176 / .. दिवेर् ऋन् (उणादि) 1148 / दधृग्-उष्णिक-क्रुञ्चः 1 / 2 / 46 / दिवो दासे 5 / 2 / 17 / दनः ठक् 3 / 1 / 16 / दिवो द्यावा 5 / 2 / 26 / दन्तुरः 4 / 2 / 110 / दिवः अन्ते च उत् 5 / 1 / 135 / दम्भः इच्च 6 / 2 / 106 / दीङ अक्ङित्सनि ल्यपि 5 / 1 / 52 / दम्भः स्सनि च 5 / 3 / 26 / दीङ: लिटि युक् 5 / 3 / 74 / दम्भ-श्रन्थ-ग्रन्थाम् 5 / 3 / 122 / दीप-जन-बुध-पूरि-तायि-प्यायो वा दयायाम् 4 / 3 / 63 / 1 / 177 / दरिद्रः किति 5 / 3 / 112 / दीयते नियुक्तम् 3 / 4 / 67 / दशैकादश-कुसीदात् ष्ठन् 3 / 4 / 38 / / दीर्घस्य 5 / 172 / दः ति 5 / 2 / 143 / दीर्घात् जसि च 5 / 1 / 112 / दाणः सा चेत् चतुर्थ्यर्थे 1 / 4 / 108 / दीर्घात् 6 / 4 / 147 / दाण्डिनायन-हास्तिनायन-जैह्माशिनेय- दीर्घात् वरुणस्य 6 / 1 / 33 / वासिनायनि-भ्रौणहत्य-धैवत्य-सारव- दीर्घः अपिति इणः 6 / 2 / 122 / - ऐक्ष्वाक-हिरण्मयानि 5 / 3 / 178 / / दीर्घः लघोः 6 / 2 / 141 / दादेर्धातोः घः 6 / 3 / 63 / दा-धा-गाति-स्था-भू-पः अतङि लुक् / दुःखात् प्रातिकूल्ये 4 / 4 / 48 / 111162 / दु-ग्वोः ऊ च 6 / 3 / 78 / दा-भाभ्याम् नुः (उणादि) 1 / 28 / दु-न्यः अप्रादेः 1 / 1 / 150 / दामन्यादिभ्यः छः 4 / 3 / 12 / दुरो ढक् वा 2 / 4 / 74 / 20 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 154] चान्द्रव्याकरणम् [दुषो--वि दुषो णौ 5 / 3 / 64 / दैवयज्ञि-शौचिवृक्षि-सात्यमुनि-काण्ठेदुहो दुधः 1 / 2 / 54 / विद्धीनाम् वा 2 / 3 / 5 / दूरादयः (उणादि) 3 / 10 / द: दत् 6 / 2 / 66 / दूरावाने 6 / 3 / 116 / द: अनडुहः 6 / 3 / 103 / दूरेत्य-औत्तराहौ 3 / 2 / 16 / दः अपः 1 / 1 / 4 / दृग-दृश-दृक्षे 5 / 2 / 106 / द: मः 5 / 4 / 73 / दृङो भः (उणादि) 2065 / दो-सो-मा-स्थाम् इत् ति किति 6 / 2 / 12 / दृढ : स्थूल-बलिनोः 5 / 4 / 148 / द्यावापृथ्वी-शुनासीर-मरुत्वत्-अग्नीषोमदृति-कुक्षि-कलशि-वस्ति-अस्ति-अहेः ढञ् वास्तोष्पति-गृहमेधात् छश्च 3 / 1 / 30 / 3 / 3 / 16 / द्युति-स्वाप्योः यणः इक् 6 / 2 / 120 / द-वसिभ्यां क्तिन् (उणादि) 1184 / युद्भ्यो लुङि 1 / 4 / 143 / / दृश्-अभिवाद्यो: तङाने 2 / 1 / 46 / द्यु-द्रुभ्यां मः 4 / 2 / 112 / . .. दृश्यर्थे अनालोचने 6 / 3 / 23 / द्यु-प्राग्-अपाग-उदक्-प्रतीचो यत् दृष्टं साम डित् वा 3 / 17 / 3 / 2 / 10 / द-सनि-जनि-चरि-चटि-तलिभ्यः षण् द्रव्य-वस्नात् कन्-ठनौ 4 / 1 / 73 / (उणादि) 1 / 2 / द्रु-दक्षिभ्याम् इनन् (उणादि) 2 / 65 / देङ: दिगि लिटि 6 / 1 / 66 / द्रोः 3 / 3 / 124 / / देये त्रा च 4 / 4 / 3 / / द्रोणात् 2 / 4 / 40 / देवता 3 / 1 / 21 / द्वन्द्वं रहस्य-मर्यादा-व्युत्क्रान्ति-यज्ञपात्रदेवतानां चार्थे सूक्त-हविषो: 6 / 1 / 31 / . प्रयोगेषु 6 / 3 / 12 / देवतानाम् अवायूनां वेदे सह श्रुतानाम् द्वयोः एकः 5 / 1 / 81 / 5 / 2 / 23 / द्वारादीनाम् 6 / 1 / 15 / देवतान्तात् तदर्थे यत् 4 / 4 / 31 / / द्वितीय-तृतीयौ 4 / 2 / 56 / देवव्रतादिभ्यः डिनिः 4 / 1 / 10 / द्वितीयातृतीयात् वा 6 / 2 / 58 / देवात् 2 / 4 / / द्वितीयायाम् 1 / 3 / 145 / देवादिभ्यः द्वितीया-सप्तम्योः बहुलम् द्वि-त्रि-चतुरः सुच् 4 / 4 / 7 / 4 / 4 / 40 / द्वि-त्रि-बहादे: निष्क-विस्तात् 4 / 1140 / देविका-शिंशपा-दीर्घसत्त्र-श्रेयसाम् आत् द्वि-त्रिभ्यां मूर्ध्नः 4 / 4 / 68 / 61 / 12 / द्वि-त्रिभ्याम् अञ्जले: 4 / 4 / 86 / देशे अनूपः 5 / 2 / 114 / द्वि-त्रिभ्याम् अयट् वा 4 / 2 / 47 / देहांशात् 3 / 3 / 18 / द्वि-त्रेः धमुन 4 / 3 / 23 / देहांशात् यत् 4 / 1 / 6 / द्वि-त्र्यादेः अण् च 4 / 1 / 46 / Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वित्वहेती-धेनोः चान्द्र व्याकरणम् [155 द्वित्वहेतौ . 6 / 186 / धर्मात् अनिच् केवलात् 4 / 4 / 113 / द्वित्वे 5 / 1 / 40 / धर्म-अधर्मं चरति 3 / 4 / 36 / द्वित्वे 6 / 3 / 110 / धर्मेण प्राप्ये 3 / 4 / 63 / द्वित्वे अध्यादिभिः 2 / 1151 / धस् त-थोश्च 6 / 3 / 70 / द्वित्वे परसवर्णः 6 / 3 / 34 / धानो हिः 6 / 2 / 64 // द्वित्वे पूर्वस्य अत्र लोपः 6 / 2 / 111 / धातूक्तौ अयदि वा 1 / 3 / 116 / द्वित्वे पूर्वस्य असमे 5 / 3 / 84 / धातोः सी-लुङोश्च धः ढः 6 / 4 / 6 / / द्विदण्ड्यादीनि 4 / 4 / 117 / . धातोः र्वोः अनचि इक: दीर्घः द्वि-बहुषु प्रकर्षे तरप्-तमपौ 4 / 3 / 45 / 6 / 3 / 108 / द्विरुक्तस्य नाचि अलिटि 6 / 27 / धातोः तत्रैव 5 / 1177 / द्विरुक्तात् अत् 1 / 4 / 4 / धा-दा-नी-पति-पा-शसिभ्यः ष्ट्रन् (उणादि) द्विस्तावा त्रिस्तावा वेदिः 4 / 4 / 70 / 3 // 36 // द्वीपात् अनुसमुद्रात् ज्यः 3 / 2 / 65 / धान्ये नित् (उणादि) 17 / द्वेश्च संख्यायां प्राक् शतात् अनन्यार्थ धान्येभ्यः क्षेत्रे खञ् 4 / 2 / 1 / ..अशीत्योः 5 / 2 / 52 / धाय्या-पाय्य-आनाय्य-सांनाय्य-निकाय्या द्वयचः 2 / 4 / 51 / नाम्नि 1111136 / द्वयच: अणः 2 / 4 / 88 / द्वयचः असंख्यापरिमाण-अश्वादेः यत् धारि-पारि-वेदि-उदेजि-चेति-साति-साहि४।११५२। __विन्दः अप्रादेः 111 / 144 / द्वयच्-ऋत्-ऋग्-ब्राह्मण-प्रथम-अध्वर- धारे: उत्तमणे 2 / 174 / . पुरश्चरण-नाम-आख्यातात् ठक् धारेः धर् च 1 / 2 / 31 / 3 / 3 / 46 / धा संख्यायाः 4 / 3 / 20 / यच-नौभ्यां ठन् 3 / 4 / 6 / / धि सङि 6 / 3 / 54 / द्वयच्-मगध-कलिङ्ग-शूरमसात् अण् धुटि श्चुः 6 / 3 / 33 / 2 / 4 / 100 / धरो ढक् च 3 / 4 / 78 / द्वि-अन्तः-प्रादेः अनात् अप ईत् धूञ्-प्रीमो: नुक् 6 / 1 / 48 / 5 / 2 / 113 / धूमादिभ्यः 3 / 2 / 41 // धन-गणं लब्धा 3 / 4 / 83 / / धृष-शसः प्रागल्भ्ये 5 / 4 / 147 / धनस्य तृष्णायाम् 6 / 2 / 88 / धृषेः धिष् च (उणादि) 271 / धन-हिरण्ये कामः 4 / 270 / धेनुष्या-गार्हपत्यौ नाम्नि 3 / 4 / 88 / धनुर्नाम्नि 4 / 4 / 121 // धेनोः अनञः 3 / 1146 / धर्म-शील-वर्षान्तात् 4 / 2 / 126 / धेनोः भव्यायाम् 5 / 2 / 86 / Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 156] चान्द्रव्याकरण [धेन्वनडुह-त धेन्वनडुह-ऋग्यजुष-अक्षिध्रुव-दारगव- नञः शुचि-ईश्वर-क्षेत्रज्ञ-कुशल-निपुणानाम् ऊर्वष्ठीव-पदष्ठीव-नक्तंदिव-रात्रिंदिव 6 / 13 / अहदिव-सरजस-पुरुषायुष-द्वयायुष-त्र्या- नञः नः 5 / 2 / 6 / / युष-जातोक्ष-महोक्ष-वृद्धोक्ष-उपशुन- नञः अनन्यार्थे 4 / 1 / 137 / - गोष्ठश्वाः 4 / 4 / 62 / नञः अनन्यार्थे 4 / 4 / 55 // धेन्वादयः (उणादि) 1 / 31 / नज-बहो: माणव-चरणयोः 4 / 4 / 56 / धे-श्वेः वा 1 / 1 / 66 / नञ-सु-दुर्यः सक्थ्नो वा 4 / 4 / 106 / धे-सि-शद-सदो रुः 1 / 2 / 105 / ना-सु-वि-उप-त्रेः चतुरः अच् 4 / 4 / 103 / ध्मः पाण्यादिभ्यश्च 1 / 2 / 14 / नटात् ञ्यः नृत्ये 3 / 3 / 61 / न टो: अनवति-नगर्योः आदेः 6 / 4 / 137 / नः 5 / 3 / 6 / नडादिभ्यः 2 / 4 / 35 / नः 6 / 4 / 14 / न तङानः 5 / 4 / 122 // न कपि 6 / 271 / न किमः क्षेपे 4 / 4 / 53 / न तस्मिन् 5 / 1 / 41 / / न कुङ: यङि 6 / 2 / 117 / न त्यादि-वुकोपान्तम् 5 / 2 / 34 / न क्रोडादिभ्यः 2 / 3 / 67 / न दधिपयआदीनाम् 2 / 2 / 66 न क्वादेः 3 / 10 / नदी-देश-नगराणां भिन्नलिङ्गानाम् नक्षत्रात् इतो वा 6 / 4 / 86 / . 2 / 2 / 54 / नदीभिः 2 / 2 / 13 / नक्षत्रात् नेतुः 4 / 4 / 102 / नदी-मानुषीनाम्नः अनादैजाद्यचः२।४।४२। नक्षत्रः इन्दुयुक्तः कालः 3 / 1 / 5 / नदीष्णः कुशले 6 / 4 / 76 / न क्षुधि अशनस्य 6 / 2 / 87 / नद्यादिभ्यः ढक् 3 / 2 / 6 / नख-मुखात् नाम्नि 2 / 3 / 66 / न द्विः 3 / 3 / 127 / नखादयः 5 / 2 / 15 / न गति-हिंसा-शब्दार्थ-हसः 114 / 50 / न द्वित्वे 5 / 111.03 / न द्वयचः प्राच्यात् 3 / 2 / 23 / नगरात् कुत्सा-प्रावीण्ययोः 3 / 2 / 42 / नगरात् अहस्तिनि 1 / 2 / 41 / / न ध्या-ख्या-प-मूछि-मदाम् 6 / 3 / 65 / न गोपवनादिभ्यः अष्टभ्यः 2 / 4 / 116 / न नाम्नि 4 / 4 / 143 / नगः अप्राणिनि वा 5 / 2 / 66 / न नि मुः 6 / 3 / 26 / न नी-खादि-अदि-ह्वा-शब्दाय-क्रन्दः नक् वा 6 / 3 / 61 // न च-वा-हा-हैवयोगे 6 / 3 / 22 / 2 / 1147 / न च्विङीयण-इयुवाम् अभ्रकंसादीनाम् नन्दि-ग्रहादिभ्यः ल्यु-णिनी 1 / 1 / 140 / 5 / 272 / न न्द्वो हलि 5 / 1 / 4 / नन् 2 / 2 / 20 / न पदातौ 3 / 2 / 51 // Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -नान्यश्च] बीन्द्रव्याकरणम् न पात्रादयः 2 / 2 / 80 / नशेः क्षः 6 / 4 / 130 / न पा-दम-आयम-आयस-परिमुह-अत्ति- नशः अङि 5 / 3 / 124 / रुचि-नृति-धेट्-वद-वस: 1 / 4 / 141 / नशः झलि 5 / 4 / 12 / नपुंसकात् 2 / 1 / 18 / नश् च अनन्त्यस्य झलि 6 / 4 / / नपुंसकात् वा 4 / 4 / 12 / नश् छवि अप्रशान् 6 / 4 / 3 / नपुंसके च अर्धर्च-आदयः 2 / 2 / 83 / न संबुद्धौ 5 / 4 / 46 / नपुंसके वा 6 / 3 / 50 / न संबुद्धौ 6 / 3 / 46 / न प्लुतः अनितौ 5 / 1 / 123 / . न संयोगात् व-मः 5 / 3 / 133 / न भा-भू-पूञ -कमि-गमि-प्यायी-वेपाम् न सामान्यवचनम् एकार्थे 6 / 4 / 128 / 6 / 3 / 25 / नमः-स्वस्ति-स्वाहा-स्वधा-वषट्-शक्ताथैः न सु-दुरः केवलात् 5 / 4 / 22 / . 2 / 17 / न सुपि यचि 6 / 3 / 10 / / नमसः 6 / 4 / 42 / नस् नासिकायाः तस्-क्षुद्रे 5 / 2 / 61 / नमस्-तपस्-वरिवसः क्यच् 111137 / न स्नोः 5 / 4 / 125 / नमि-मनि-जनाम् नाकि-ध-तश्च (उणादि) न स्वप्रसारणे 1 / 4 / 55 / 1110 / नह-आहः धः 6 / 3 / 65 / नहन्नाह . न यत्-तदोः 6 / 177 / नहि-वृति-वृषि-व्यधि-रुचि-सहि-तनिषु न यदि 11276 / __ क्वौ 5 / 2 / 140 / न य-दीक्षः 1 / 2 / 101 / नाक्रोशे पुत्रस्य आदिनि तत्परे च न यवादिभ्यः 6 / 3 / 38 / 6 / 4 / 145 // न राज-आचार्य-वृषन्-ब्राह्मणात् नाग्लोपिशास्वृदिताम् 6 / 1 / 62 / 4 / 1 / 5 // नाझेः शतुः 5 / 4 / 32 // नरिका 6 / 176 / नाञ्चः पूजायाम् 5 / 3 / 50 / नरे नाम्नि 5 / 2 / 130 / नाडी-तन्त्रयोः स्वाङ्गे 4 / 4 / 147 / . न ल-निर्धार्य-पूरण-भाव-तृप्ताथैः 2 / 2 / 23 / नातः 6 / 1 / 37 / न लिङि 5 / 4 / 102 / नातः अम् अपञ्चम्याः 2 / 1 / 41 / न ल्यपि 5 / 3 / 80 / नात् इचि 5 / 1 / 111 // नबयज्ञादिभ्यः 4 / 2 / 124 / नात् ऐचि अग्नेः अविष्णौ 5 / 2 / 24 / नवात् 4 / 4 / 28 / नाद्यन्तयोः 6 / 4 / 10 / न व्यतिहारे 6 / 1 / 17 / नानु-पराभ्याम् कृतः 1 / 4 / 131 // न शस-दद-वादि-अदेङाम् 5 / 3 / 125 // नानोः तपः 1176 / / . न शुभ-रुचः 111144 / नान्यश्च नामाप्रधानात् 2 / 1 / 10 / Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - चान्द्रव्याकरणम् [नाभ:--निसः नाभेः 4 / 4 / 104 / निन्दा-आशी:-प्रेष्येषु तिङाकाङक्षम् नाम-गोत्र-रूप-स्थान-वर्ण-वयस्-वचन-धर्म 6 / 3 / 126 / जातीये वा 5 / 2 / 104 / निन्ये पाशप् 4 / 3 / 42 / नाम-रूपात् धेयः 4 / 4 / 25 / / नि-परेः च सेव-सिवु-सह-सुटाम् नाम्नि 5 / 2 / 18 / 6 / 4 / 55 // नाम्नि 6 / 3 / 37 / निपानम् आहावः 1 / 3 / 63 / नाम्नि क्तिच् 1 / 3 / 77 / नि-प्रते: स्तब्धः 6 / 4 / 6 / / नाम्नि ग्रह-आदिशः 1 / 3 / 150 / निबिड-निबिरीष-चिक्क-चिकिन-चिपिटाः नाम्नि जन्याः 3 / 4 / 1 / 4 / 2 / 33 / नाम्नि नासाया नसः अस्थूलात् / निमान-निमेययोः मयट् 4 / 2 / 46 / ___4 / 4 / 106 / निमित्ताद् व्याप्येन 2 / 1 / 86 / नाम्नि परात् च चतुर्थ्याः 5 / 2 / 10 / निमित्ते संयोगोत्पाते 411 // 51 // ... नाम्नि षष्ठ्याः कन्या-उशीनरेषु 2 / 2 / 67 / नियः 1 / 3 / 15 / नाम्नि अष्टनः 5 / 2 / 46 / नियः 6 / 2 / 60 / .. नाम्नि उदकस्य उद: 5 / 2 / 65 / नियः डित् (उणादि) 1146 / नामि अतिसृ-चतस्रोः 5 / 3 / 4 / निर्-अभेः पू-ल्वः 1 / 3 / 16 / नालि 6 / 2 / 32 / निर्-अभि-अनोः च स्यन्दः अप्राणिनि ... नावादिभ्यः ठन् 4 / 2 / 118 / वा 6 / 4 / 61 / नाशिषि अगो-वत्स-हले 5 / 2 / 102 / - निरा-अलंभ्याम् कुः इष्णुच् 1 / 2 / 6 / / नासन-वर्जनेषु 5 / 4 / 83 / निर्-दुर्-बहिर्-आविर्-चतुर्-प्रादुष्-पुरनासानतौ टीट-नाटच्-भ्रटचः 4 / 2 / 32 / साम् 6 / 4 / 35 // नासिका-नाडी-मुष्टि-घटी-खरीभ्यः निविण्णः 6 / 4 / 123 / 1 / 2 / 13 / निर्वृत्ते अक्षयूतादिभ्यः 3 / 4 / 18 / / निवासस्य चरणे अण् च 3 / 2 / 60 / नासिका-उदर-ओष्ठ-जङ्घा-दन्त-कर्ण-शृङ्ग निवासे तन्नाम्नि 3 / 1 / 64 / . अङ्ग-गात्र-कण्ठात् 2 / 3 / 62 / निशा-प्रदोषात् 3 / 2 / 74 / / निकटादिषु वसति 3 / 4 / 74 / निष्कादेः शत-सहस्रात् 4 / 2 / 123 / निजाम् लुकि एत् 6 / 2 / 127 / / निष्कुलात् निष्कोषणे 4 / 4 / 46 / नित्यवैरिणाम् 2 / 2 / 55 / / निष्कुषः 5 / 4 / 106 / नित्यं हस्ते-पाणौ उद्वाहे 2 / 2 / 38 / निष्प्रवाणिः 4 / 4 / 148 / निद्रा-तन्द्रा-श्रद्धा-दया-हृदयात् वालुच्. नि-सम्-वि-उपेभ्यः ह्वः 1 / 4 / 76 / .. .. 4 / 2 / 157 / निसः शतो डच 4 / 4 / 64 / . .. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निसः --पति] .. - चान्द्रव्याकरणम् निसः च श्रेयसः 4 / 4 / 66 / नर्ण च ११३।५०।निसः तपि सकृत् 6 / 4 / 88 / नेविंशः .114 // 51 // निसः गते 3 / 2 / 14 / नैकाचः 4 / 2 / 120 / निहनवे ज्ञः 1 / 4 / 10 / नैकाचः 5 / 3 / 165 / नीक वञ्च-स्रंसु-ध्वंसु-भ्रंशु-कस-पत-पद- . नैतो द्वित्वे 6 / 3 / 132 / . स्कन्दाम् 6 / 2 / 133 / नोऽणादौ 5 / 3 / 136 / नी-दलिभ्याम् मिः (उणादि) 1164 / नोपान्तवतः 2 / 3 / 12 / नील-पीतात् अन्-कनौ 3 / 1 / 4 / / नो मट 4 / 2 / 55 नीलात् प्राणि-ओषध्योः 2 / 3 / 36 / नौ-तुला-विषैः तार्य-सम्मित-वध्येषु नीवारा: 1 / 3 / 22 / ... 3 / 4 / 61 नुक् च अनेकहल: 6 / 2 / 124 / न्यग्रोधस्य केवलस्य / 6 / 1 / 16 / नुट् च (उणादि) . 3 / 113 / न्यङक्वादयः 6 / 1184 / नु-प्रच्छः 114 / 57 / / न्यायो नये 1 / 3 / 28 / . नुमि इच्-आदेहल: 6 / 4 / 126 / नि-उदो ग्रहः 1 / 3 / 20 / नुम्-विसर्जनीय-शरव्यवाये 6 / 4 / 47 / नुर्वा 5 / 3 / 5 / पक्षस्य तिः 4 / 2 / 26 / नृ-तत्स्थयोवुन 3 / 2 / 46 / पक्षात् 2 / 3 / 66 / नृति-खनि-रजः शिल्पिनि वुन् 1 / 1 / 157 / पक्षि-मत्स्य-मृगान् हन्ति 3 / 4 / 32 / नृनाम्नि ठच्-घन्-इलचो वा 4 / 3 / 64 / पङ्गः श्वश्रूः 2 / 3 / 78 / पचेः अतः इत च (उणादि) 3 / 33 / नृनाम्नो वा 3 / 2 / 26 / नृहेतुभ्यो रूप्यः 3 / 3 / 52 / पचः वः 6 / 3 / 61 / नन् पे रो वा 6 / 4 / 5 / पञ्चत्-दशत् वर्गे वा 4 / 1 / 63 / नेः 1 / 3 / 54 / पञ्चम्यां त्वरायाम् 113 / 144 / नेः सत्-पतः 11376 / पञ्चम्यां परस्य 1 / 1 / / नेः सय-सितयोः 3 / 4 / 5 / / पञ्चम्याः स्तोकादिभ्यः 5 / 2 / 2 / नेः स्नातः 6 / 4 / 77 / पञ्च-विश्वात् जनान्तात् तदर्थात् 4 / 1 / 10 / नेटि 6 / 1 / 5 / पटि-असि-वसि-त्रपि-हनि-मनि-इन्दि-कन्दिनेन्द्रस्य परस्य 6 / 1 / 32 / बन्धिभ्यः (उणादि) 1 / / नेः अञ्चेः (उणादि) 1 / 12 / पणः परिमाणे 1 / 3 / 57 / / नेः ईच् च (उणादि) 1156 / पण-पाद-मासात् यत् 4 / 1 / 43 / नेः गद-नद-पत-पद-दा-धा-मा-वा-दिह-वह पणि-पतेः आङ: (उणादि) 2 / 6 / शम-हन-या-सा-द्रा-प्सा-चि-वपिष पति-चन्दिभ्याम् आलञ (उणादि) 6 / 4 / 116 / 3 / 46 / Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160] चानव्याकरणम् [पतिवत्नी-पादिभ्यः पतिवत्नी भार्यायाम् 2 / 3 / 29 / पर-अवरात् तस् वा 4 / 3 / 37 / / पते: अङ्गच् (उणादि) 2 / 27 / पर-अवर-अधम-उत्तमादेः 3 / 2 / 67 / पत्यादिषु अहआदीनाम् 6 / 3 / 102 / परिक्रियश्चतुर्थी च 2 / 1 / 64 / पत्युः समासे 6 / 2 / 51 / परिखायाः ढा 4 / 1 / 22 / पत्युः अनश्वाद्यादेः 2 / 4 / 3 / परिघ-उद्घ-निघाः 1 / 3 / 67 / पत्युन ऊढायाम् 2 / 3 / 30 / परिपन्थं तिष्ठति च 3 / 4 / 33 / पथः ष्ठन् 4 / 1 / 87 / परिमाणात् पचः 1 / 2 / 17 / पथकः 4 / 2 / 66 / परिमाणात् लुकि असंख्याकाल-विस्तापथि-मथिभ्याम् इनिः (उणादि) 3 / 84 / आचित-कम्बल्यात् 2 / 3 / 24 / / पथि-मथि-ऋभुक्षाम् आत् 5 / 4 / 38 / परिमुखादिभ्यः 3 / 3 / 23 / पथो वा 4 / 4 / 56 / . परिवृतो रथः 3 / 1 / 10 / पथः असंख्यात्। 2 / 2 / 75 / परि-वि-अवात् क्रियः 1 / 4 / 52 / .. पथि-अतिथि-वसति-स्वपतेः ढञ् परिव्रजेः षश्च पदान्ते (उणादि) 3 / 71 / 3 / 4 / 105 / परिषदो ण्यः 3 / 4 / 42 / पथि-अर्थ-न्यायात् च अनेपते 3 / 4 / 14 / परिषदो ण्यश्च 3 / 4 / 103 / पथि-आराधनयोः 1 / 4 / 68 / परुत्-परारि-चिरात् त्नः 3 / 278 / पदम् अस्मिन् दृश्यम् 3 / 4 / 86 / परेः 6 / 4 / 63 / पदस्य वा 6 / 1 / 20 / परेः स-चरो यः 11382 / पदादी वा 6 / 4 / 152 / परेघ-अङ्क-योगेषु 6 / 3 / 45 / पदान्त-प्रतिकण्ठ-अर्थ-ललामम् गृह्णाति / / परे ते 1 / 3 / 17 / परेर्भुवः अवज्ञाने 1 / 3 / 44 / पदान्तस्य वा 5 / 1 / 73 / पद-अस्वैरि-पक्ष्य-बाह्यासु ग्रहः 1 / 1 / 126 / परेर्मुख-पार्वात् / 3 / 4 / 28 / पनि-मनि-रभि-चमि-अति-वेति-युवः असच् S परेर्मेशश्च 1 / 4 / 134 / (उणादि) 3 / 65 / परेर्यज्ञे 1 / 3 / 37 / परेवर्जने वाक्ये वा 6 / 3 / 2 / पन्थक: 3 / 3 / 3 / परेर्वा 5 / 1 / 48 // पद्-निश्-मास्-हृद्-यूषन्-दोषन् शसादौ / वा 5 / 4 / 77 / परोक्षे लिट् 1 / 2 / 81 / पय:-पुरसो धानः (उणादि) 3 / 67 / पयसो यत् 3 / 3 / 122 / / परोवर-परंपर-पुत्रपौत्रम् अनुभवति परदारादीन् गच्छति 3 / 4 / 45 / 4 / 2 / 16 / परमेष्ठी (उणादि) 3 / 88 / पर्जन्यः (उणादि) 2 / 117 / परस्य अपुंसि आम् 6 / 3 / 10 / / पादिभ्यः ष्ठन् 3 / 4 / / 3 / 4 / 35 // 17 परा-उपात 114185 / Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परि-पिश्यं चन्द्रिव्याकरण [161 परि-अनुभ्यां- ग्रामात् 3 / 3 / 25 / पात्रात् ष्ठन् 4 / 1 / 46 / परि-अप-आङ-बहिरञ्चः पञ्चम्या वा पात्रात् यश्च 4 / 1 / 78 / 2 / 27 / पादः 2 / 3 / 7 / / परि-अपाभ्यां वर्जने 2 / 1 / 82 / पादः पत् 5 / 3 / 127 / पर्यायः क्रमे 1 / 3 / 26 / पादस्य पाद् अहस्त्यादिभ्यः पर्वत-जीवन्तात् वा 2 / 4 / 36 / 4 / 4 / 127 / पर्वतात् 3 / 2 / 55 / पादस्य आजि-आति-ग-उप-हते पदः पर्व-मरुद्भ्यां तप् 4 / 2 / 142 / 5 / 2 / 58 // पर्वादिभ्यः अण् अस्त्रियाम् पाद्यम् 4 / 4 / 33 / 4 / 3 / 63 / पानं देशे 6 / 4 / 10 / पश्चात् 4 / 3 / 35 / / पापतिः 1 / 2 / 114 / पश्चार्धम् 4 / 3 / 36 / / पारस्करादीनि नाम्नि 5 / 1 / 142 / पाक-कर्ण-पर्ण-पुष्प-फल-मूल-बालान्तात् पारायण-तुरायण-चान्द्रायणं वर्तयति 2 / 3 / 72 / 4 / 1 / 83 / पा-घ्रा-ध्मा-धेट-दृशः शः 1 / 1 / 143 / पारावार-अवारपारात् खः 3 / 2 / 6 / पा-घ्रा-ध्मा-स्था-म्ना-दाण्-दृश-शद-सदाम् पारावार-अवारपार-अत्यन्त-अनुकामम् पिब-जिघ्र-धम-तिष्ठ-मन-यच्छ गामी 4 / 2 / 17 / पश्य-शीय-सीदाः 6 / 1 / 106 / पाराशर्य-शिलालिभ्यां णिनिः पाठे अत्वतः 5 / 4 / 162 // 3 / 3 / 78 // पाठे विभाषितात् 1 / 4 / 125 / पारे मध्ये षष्ठ्या वा 2 / 2 / 11 / पाणिगृहीती ऊंढा 2 / 3 / 58 / पाच-पौरुषेये 3 / 1153 / / पाणिघ-ताडघौ शिल्पिनि 1 / 2 / 42 / पार्श्वेन अन्विच्छति 4 / 2 / 81 / पाणि-समवाभ्यां सृजः 1 / 1 / 131 / पार्ष्यादयः (उणादि) 180 / पाण्डु-उदक-कृष्णात् भूमेः 4 / 4 / 72 / पालन्-वलो शीङः (उणादि) पाण्डोडर्यण् 2 / 4 / 102 / 3151 // पा-त-तुदि-वचि-रिचि-सिचि-विशेः ठक् पाशादिभ्यः यः 3 / 1156 / . (उणादि) 2 / 58 / पिच्छादिभ्यः च इलच् 4 / 2 / 103 / पातेः 6 / 1151 / पितृ-मात्रादेः छण् 2 / 4 / 67 / पातेः डतिः (उणादि) 185 / / पितृव्य-मातामह-पितामहाः 3 / 1 / 60 / पात्र-आचित-आढकात् खो वा पित्रादयः (उणादि) 1150 / 4 / 1 / 66 / पित्र्यं वा 3 / 3 / 51 / 21 91 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 162] चाद्रव्याकरणम् [पिनाकादयः -- पूर्वाह पिनाकादयः (उणादि) 2 / 16 / पुरस्-अग्रतेस्-अग्रेभ्यः सर्तेः 1 / 2 / / पिबः पीप्यः 6 / 1 / 68 / पुरस्-अस्तम् असंख्यम् 2 / 2 / 30 / पीडायाम् 1 / 3 / 147 / पु-शकि-तकि-चति-यति-शसि-सहि-यजः पी-म्योः रुः (उणादि) 1 / 36 / 1 / 1 / 108 // पीला-मण्डूकात् वा 2 / 4 / 4 / / पुषः कित् (उणादि) 3 / 25 / पील्वादीनां पाके कुणप् 4 / 2 / 24 / पुष्करादिभ्यः देशे 4 / 2 / 132 / पीवरादयः (उणादि) 3 / 16 / पू-क्लिशः त्वश्च 5 / 4 / 111 / / पुम्-जनुाम् अनुज-अन्धयोः 5 / 2 / / पूगात् ञ्यः 4 / 3 / 88 / पुन्नाम्नः योगात् अपालकान्तात् पूङो हस्वश्च (उणादि) 3 // 41 // 2 / 3 / 44 / पूजायां सु-अतेः प्राग् अन्यार्थात् पुंवत् स्वपदार्थ-जातीय-देशीयेषु - 4 / 4 / 54 / 5 / 2 / 36 / पूजिते 6 / 3 / 127 / . पुंसि उटि उगित: 5 / 4 / 24 / - पूजा-उत्सङ्ग-उपनयन-ज्ञान-भृति-व्ययपुंसः असुङ 5 / 4 / 42 / विगणनेषु नियः 1 / 4 / 2 / पुच्छात् 2 / 3 / 63 / पूजो नाशे 6 / 3 / 77 / पुणेः क्यन् (उणादि) 2 / 118 / / पूतक्रतु-वृषाकपि-अग्नि-कुसित-कुसीदानाम् पुण्याहवाचनादिभ्यः लुक् 4 / 1 / 134 / ऐ च 2 / 3 / 45 // पुत्रात् छश्च 4 / 1 / 54 / पूरण-अर्धात् ठन् 4 / 1 / 60 / पुत्रान्तात् वा 2 / 4 / 62 / पूर्णात् वा 4 / 4 / 137 / पुत्रे 5 / 2 / 22 / पूर्वत्र असिद्धम् 6 / 3 / 27 / पुत्रे वा 5 / 2 / 13 / पूर्वपदात् नाम्नि 6 / 4 / 102 / पुनः 5 / 16 / पूर्व-अग्रे-प्रथमेषु 1 / 3 / 133 / पुमः खयि अमि 6 / 4 / 2 / पूर्वात् 4 / 2 / 12 / पुरः कुषन् (उणादि) 3 / 58 / पूर्वात् कर्तुः 1 / 2 / 6 / पुर्-अप-धुरश्च अनक्षस्य अच् 4 / 4 / 57 / पूर्वादिभ्यो नवभ्यः स्मात्-स्मिनी च 2 / 1 / 15 / पुराणर्षेः ब्राह्मणम् 3 / 3 / 76 / पूर्व-अधरयोः पुर्-अधौ च 4 / 3 / 31 / , पुरुषात् ढञ् 4 / 1 / 14 / पूर्व-अन्य-अन्यतर-इतर-अपर-अधरपुरुषात् कृते ढग 3 / 3 / 2 / उत्तरात् एद्युः 4 / 3 / 17 / पुरुषात् वधे च 3 / 3 / 120 / पूर्वाह्ण-अपराह्णात् वा 3 / 277 / पुरुषात् वा 2 / 3 / 26 / पूर्वाह्ल-अपराह्ण-आर्द्रमूल-प्रदोष-अवपुरुषे वा 5 / 2 / 124 // स्करात् कन् नाम्नि 3 / 3 / 2 / Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथग--प्रयोक्तुः] चान्द्रव्याकरणम् [163 पृथग्-नानाभ्याम् 2 / 1 / 86 / प्रज्ञा-श्रद्धा-अर्चा-वृत्तिभ्यो ण : 4 / 2 / 105 / पृथिवीमध्यस्य मध्यमश्च 3 / 2 / 56 / / प्रणाय्यः असम्मते 1 / 1 / 135 // पृथिवी-सर्वभूमेः अ -अणौ 4 / 1 / 55 / / प्रतिजनादिभ्यः खञ 3 / 4 / 101 / पृथिव्या ञः 2 / 4 / 6 / / प्रतिना पञ्चम्याः 4 / 3 / 5 / पृथ्वादिभ्यः इमनिन् 4 / 1 / 136 / प्रतिना प्रतिनिधि-प्रतिदानयोः 2 / 1183 / पृषि-रञ्जः कित् (उणादि) 2 / 46 / प्रतिना मात्रार्थे 2 / 2 / 5 / पृषि-वृषि-महेः शतः (उणादि) 377 / प्रतिपथम् एति ठंश्च 3 / 4 / 40 / पृषोदरादीनि 5 / 2 / 127 / प्रति-परिभ्यां भागे च 2 / 1 / 55 / पृष्ठय-अहीनो ऋतौ 3 / 1154 / / प्रतिस्यि 4 / 1 / 28 / पृ-पा-तले: पः (उणादि) 2 / 2 / प्रतिश्रुतौ 6 / 3 / 126 / पेषे पिषौ 5 / 2 / 68 / प्रते: 5 / 1 / 30 / पैङ्गाक्षिपुत्रादिभ्यः छः. 3 / 1 / 24 / प्रतेः सूत्रे 6 / 4 / 78 / पैलादिभ्यः 2 / 4 / 121 / प्रते: उरसः आधारात् 4 / 4 / 68 / पौत्रादेः स्त्रियाः कुत्सिते ण च प्रति-अति-अभीनां क्षिपः 1 / 4 / 132 / 2 / 4 / 76 प्रति-अनुभ्यां गृणो व्याप्ये 2 / 177 / पौत्रादेः अस्त्रियां गुर्वायत्ते 2 / 4 / 18 / प्रति-अनु-अवात् साम-लोम्नः 4 / 4 / 60 / पौरोडाश-पुरोडाशात् ष्ठन् 3 / 3 / 42 / प्रत्युक्तौ हिः 6 / 3 / 120 / / प्यायः पी: 5 / 1 / 34 / प्रथने वेः अशब्दे 1 / 3 / 25 / प्रकारे गुणस्य 6 / 3 / 7 / प्रथम-चरम-तय-अय-अल्प-अर्ध-नेम-कतिप्रकारे थाल् 4 / 3 / 16 / पयात् 2 / 1 / 14 / प्रकृतेः 5 / 3 / 1 // प्रथमयोः अचि 5 / 1 / 106 / प्रकृते मयट . . 4 / 4 / 6 / प्रथि-चरे: अमच् (उणादि) 266 / प्रकृष्टः 4 / 1 / 126 / प्र-दश-ऋण-वसन-कम्बल-वत्सरात् ऋणे प्रचेतसो राजनि वा 6 / 3 / 101 // 5 / 1 / 61 / प्रच्छि-वचोः तौ च (उणादि) 3 / 66 / प्र-निर्-अन्तर्-शर-इक्षु-प्लक्ष-आम्र-कार्ण्यप्रजन-रुचि-अपत्रप-वृतु-वृधु-सह-चर-भ्राजः पायूक्षा-खदिरात् 6 / 4 / 104 / 1 / 2 / 12 / प्रभूतादीन् आह 3 / 4 / 47 / प्रजने वियः 5 / 1157 / प्रभौ परिवृढः 5 / 4 / 146 / प्रजने सर्तेः 1 / 3 / 61 / प्रमाणे 1 / 3 / 143 / प्रजाया असिच् 4 / 4 / 107 / प्रमाण्याः 4 / 4 / 100 / प्रज्ञादिभ्यो वा 4 / 4 / 22 / प्रयोक्तुः भियः षुक् 6 / 1 / 52 / Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 164] चान्द्र व्याकरणम् [प्रयोजकव्यापारे-प्राद प्रयोजकव्यापारे 1 / 1 / 46 / / प्राणि-तूर्याङ्गानाम् 2 / 2 / 58 / प्रयोजकात् भी-स्मेः णेः 1 / 4 / 120 / प्राणिनि 4 / 1 / 104 / प्रयोजनम् 4 / 1 / 127 / प्राणिभ्यः अञ 3 / 3 / 105 / प्रयोज्य-नियोज्यौ शक्ये 6 / 1 / 66 / प्राण्यङ्गात् आतः लच् वा प्रशस्यस्य श्रः 4 / 3 / 46 / . . 4 / 2 / 16 / प्रश्न-आख्यानयोः इन च 1 / 3 / 12 / प्रात् पुराणे नश्च 4 / 4 / 30 / प्रष्ठः अग्रगामी 6 / 4 / 76 / प्रात् स्र-द्रु-स्तुवः 1 / 3 / 18 / प्र-संभ्याम् हर्षे 1 / 3 / 56 / प्रादौ एकस्मिन् 6 / 1 / 56 / प्रसूता-प्रजाता-गर्भिण्यः 5 / 2 / 30 // प्रादिभ्यः ऊहः हस्वः 6 // 275 / प्रस्त्यः मः 6 / 3 / 08 / प्रादिभ्यः 4 / 4 / 110 / . .. प्रस्त्रः अन्यत्र 113 / 24 / / प्रादिभ्यः खल-घत्रो: 5 / 4 / 21 / / प्रस्थ-वह-पुरान्त-योपान्त-धन्वार्थात् वुञ् प्रादिभ्यः स्तम्भु-सिव-सहाम् चङि 3 / 2 / 36 / 6 / 4 / 66 / प्रहरणम् 3 / 4 / 56 / प्रादिभ्यः अदः 1 / 3 / 46 / प्रहरणात् अस्यां क्रीडायां णः 3 / 1 / 35 // प्रादिभ्यः दा-धः किः 1 / 3 / 71 / प्राक् क्रीतात् छः 4 / 1 / 1 / प्रादिभ्यः अध्वनः 4 / 4 / 71 / प्राक् हितात् यत् 3 / 4 / 76 / प्रादिभ्यः रुवः 113 / 11 / प्राक् जितात् अण् 2 / 4 / 1 / प्रादिभ्यः असु-ऊहो वा 114 / 72 / प्राजितीये, अचि 2 / 4 / 117 / - प्रादीनां घञि बहुलम् 5 / 2 / 141 / प्राक् ढञः कः 4 / 3 / 55 / प्रादीनां सु-सू-सो-स्तुभ-स्था-सेनि-सेधप्राक् यतः ठक् 3 / 4 / 1 / सिच्-सञ्ज-स्वजाम् प्राग् युवोः अवुग्युग् असिद्धं समानाश्रये 6 / 4 / 50 / 5 / 3 / 21 / प्रादीनाम् अयतौ 6 / 3 / 42 / : अग्नि-कलिभ्यां ढक 2 / 4 / 12 / प्रादीनाम ऋति धातौ 5 / 1 / 63 / प्राग वतेः ठञ 4 / 1 / 23 / प्रादुः-प्रादिभ्यः यचि अस्तेः 6 / 4 / 74 / प्राचां ग्रामाणाम् 6 / 1 / 25 // प्राद् ऊढ-ऊढि-एष-एष्येषु 5 / 1 / 86 / प्राचां नगरस्य 6 / 1 / 34 / प्रादेः अचः तः 6 / 2 / 67 / प्राच्यात् छे 3 / 2 / 32 / प्राच्यात् इञः अतौल्वलिभ्यः प्रादेः अजाद्यन्तात् युजेः अयज्ञपात्रेषु 2 / 4 / 122 / 1 / 4 / 117 / प्राणिजाति-वयोऽर्थ-उद्गात्रादिभ्यः अञ प्रादि-अन्तरः अदुरः णः 6 / 4 / 114 / 4 / 1 / 145 / प्राद् वहः 1 / 4 / 133 / Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राद -- बाष्पादयः] चान्द्रव्याकरणम् [165 प्राद् वाहनस्य ढे 6 / 1 / 3 / / ___ फल्गुन्याः ट: 3 / 3 / 10 / प्राध्वं बन्धे 2 / 2 / 3 / / फाण्टाहृतेः ण-फिञौ 2 / 4 / 82 / प्राप्त-आपन्नौ द्वितीयया अत्वं च फाल्गुनी-श्रवणा-कार्तिकी-चैत्रीभ्यः वा 2 / 2 / 16 / 3 / 1 / 20 / प्रायः अन्नम् अस्मिन् 4 / 2 / 87 / / फिन् बहुलम् 2 / 4 / 63 / प्राल्लिप्सायाम् 1 / 3 / 38 / / फुल्ल-क्षीब-कृश-उल्लाघाः 6 / 3 / 64 / प्रार्लो-प्रगे-सायम्-चिरम्-असंख्यात् ट्युः / फेनात् 4 / 2 / 102 / . 3 / 276 / फेः छ च 2 / 4 / 81 / प्रिय-वशात् वदः 1 / 2 / 23 / बध ए: ई च 1 / 1 / 20 / प्रिय-सुखात् आनुकूल्ये 4 / 4 / 47 / / बन्धौ अन्यार्थे 5 / 1 / 12 / प्रिय-स्थिर-स्फिर-उरु-गुरु-बहुल-तृप्रं-दीर्घ बभ्रोः कौशिके 2 / 4 / 26 / हस्व-वृद्ध-वृन्दारकाणां प्र-स्थ-स्फ बल-वातं चूल: 4 / 2 / 160 / - वर-गर-बह-त्रप-द्राघ-हस्-वर्ष बहिषः टीकक् च 2 / 4 / 10 / वृन्दाः 5 / 3 / 163 / बहुत्वविषयेभ्यः 3 / 2 / 36 / पु-द्रु-स्र-बुध-युध-इङ-नश-जनः बहुत्वे वा 6 / 3 / 26 / 1 / 4 / 140 / बहु-पूग-गण-संघात् तिथट् 4 / 2 / 60 / ग्रु-सृ-ल्वो वुन् 111 / 158 / बहुलम् 1 / 1 / 103 / प्रे स्त्यः त-तवतो: 5 / 1 / 28 / बहुवचनस्य वस्-नसौ 6 / 3 / 17 / प्रेष-अनुज्ञा-प्राप्तकालेषु 1 / 3 / 123 / बहुषु झलि एत् 6 / 2 / 41 / प्रोक्तात् लुक् 3 / 1 / 41 / / बहूजि बहूजि 5 / 4 / 28 / प्र-उपात् आरम्भे 1 / 4 / 88 / बहोः ए: भू च 5 / 3 / 160 / . प्लुतः तुकि 6 / 3 / 32 / बहोः धा च अविप्रकर्षे 4 / 4 / 6 / / प्लुतात् ति च 6 / 4 / 38 / बलि-उदि-पदि-कापिशीभ्यः ष्फक् प्वादीनां हस्वः 6 / 1 / 108 / 3 / 2 / 8 // फक्-फिञोः वा 2 / 4 / 116 / बह्वचः प्राच्यात् इञः 2 / 4 / 113 / फणादीनां सप्तानाम् 5 / 3 / 121 / / बह्वचः अन्तोदात्तात् ठञ 3 / 3 / 36 / फल-बर्ह-मालात् च इनच् 4 / 2 / 141 / बह्वच्पूर्वपदात् ठच 3 / 4 / 65 / / फलवति 1 / 4 / 124 / बहु-अल्पार्थात् कारकात् मङ्गले शस् फलानाम् 2 / 2 / 61 // वा 4 / 4 / 1 / फलेग्रहिः आत्मभरिः कुक्षिभरिः बाढ-अन्तिकयोः साध-नेदौ 4 / 3 / 51 / / 1 / 2 / 10 / बाष्पादयः (उणादि) 285 / Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 166] चान्द्रव्याकरणम् [बाहीकप्रामात् - भिवादि बाहीकग्रामात् 3 / 2 / 34 / भद्र-उष्णयोः करणे 5 / 2 / 2 / बाहीकादिभ्यः अण् 3 / 2 / 20 / / भर्गात् त्रिगर्ते 2 / 4 / 32 / बाहीकेषु अब्राह्मण-राजन्यात् शस्त्रजी- भर्सने द्विरुक्तं पर्यायेण 6 / 3 / 123 / विसंघात् ज्यट् 4 / 3 / 60 / भवतो दश्च 3 / 2 / 26 / बाहुल्ये 2 / 2 / 74 / भवत्-दीर्घायुर्-आयुष्मत्-देवानांप्रियस्ते बाह्वन्त-कद्रु-कमण्डलुभ्यः नाम्नि __ अन्याभ्यश्च 4 / 3 / 12 / 2 / 3 / 77 / भविष्यति लुट् 1 / 3 / 2 / / बाह्वादिभ्यः गोत्रादिभ्यः 2 / 4 / 20 / भसि-जनि-वृतेः मनिन् (उणादि) बिदादिभ्यः अत्र 2 / 4 / 22 / 3181 / बिभराम् 1 / 1 / 56 / भस्त्रादिभ्यः ष्ठन् 3 / 4 / 15 / बिल्वकीयादीनाम् ईयः 5 / 3 / 157 / .. भस्त्रा-एषा-अजा-ज्ञा-द्वा-स्वानाम् बोधात् 2 / 4 / 28 / .6 / 1 / 72 / अघि-वसि-धा-पृभ्यो नः (उणादि) भागात् यत् च 4 / 1 / 61 / 2 / 73 / भागात् यत् च 4 / 4 / 26 / ब्रह्मणः त्वः 4 / 1 / 152 / भागे अष्टमात् ञः वा 4 / 2 / 62 / ब्रह्मणो जातौ 5 / 3 / 173 / भाज-गोण-नाग-स्थल-कण्ड-काल-कुशब्रह्म-वर्चसात् 4 / 1 / 53 / कामुक-कबरात् पक्व-आवपन-स्थूलब्रह्म-हस्ति-राज-पल्यात् वर्चसः 4 / 4 / 63 / कृत्रिम-अमत्र-कृष्ण-आयसी-रिरंसुब्राह्मणात् शंसी 5 / 2 / 3 / - केशवेशेषु 2 / 3 / 38 / ब्राह्मणात् नाम्नि 4 / 2 / 76 / भावघञः ञः 3 / 1 / 36 / ब्रुवः ईट् 6 / 2 / 34 / भावात् इमप् 3 / 4 / 16 / ब्रवः पञ्चानाम् आदितः आह च भाव-आप्ययोः 111178 1 / 4 / 13 / भाव-आप्ययोः 1 / 104 / ब्रुवः वच् 5 / 4 / 80 / भाव-आप्ययोः 1 / 4 / 47 / भाव-आप्ययोः क्तः 1 / 2 / 67 / भक्तात् णः 3 / 4 / 102 / भक्तात् अण् वा 3 / 4 / 66 / भाव-आरम्भयोः वा 5 / 4 / 142 / भक्षेः अहिंसायाम् 2 / 1 / 46 / भावे वा 2 / 4 / 14 / भुजः ण्विः 1 / 2 / 52 / भावे हनः त च 1 / 1 / 116 // भजि -भास-मिदः घुरच् 1 / 2 / 107 / भिक्षादिभ्यः अण् 3 / 1 / 44 / भजेः चिणि 5 / 3 / 56 / भित्तं शकले 6 / 3 / 67 / भद्रादयः (उणादि) 3 / 14 / भिदादि-षितः अङ 1 / 3 / 86 / Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भियः-मः धान्नव्याकरणम् भियः : 1 / 2 / 121 / भृ-वृ-त-जि-सहि-तपि-दमः नाम्नि भियः प्रयोजकात् 5 / 1158 / 12 / 30 / भियः षुग् वा (उणादि) 2 / 104 / भोग-अन्त-आत्मनः खः 4 / 16 / भियः वा 5 / 3 / 10 / भोज्यम् अन्ने 6 / 1 / 67 / भिरो: स्थानम् 6 / 4 / 67 / भो-भगो-अघोभ्यः अशि लोपः 6 / 4 / 24 / भी-शीभ्याम् आनकः (उणादि) भौरिकि-ऐषुकार्यादिभ्यः विधल्२।११। भक्तलौ 3 / 1 / 63 / भी-ही-हूनां द्वे च 1 / 1155 / भ्यसः अभ्यम् 2 / 1 / 26 / भुजः अपालने 1 / 4 / 116 / / भ्रमि-वठि-देवि-वासे: अरन् (उणादि) भुवः 1 / 1 / 118 / 3 / 20 / भुवः 1 / 2 / 63, भ्रमेः डूः (उणादि) 1142 / भुवः (उणादि) 3 / 87 / भ्रस्जि-स्पशेः सलोपः च (उणादि) भुवः अत् 6 / 2 / 126 / . 1618 // भुवः वा 1 / 1 / 151 / भ्रस्जः भ वा 5 / 3 / 62 / भुवः वुग् लुङ-लिटोः 5 / 3 / 12 / भ्राज-भास-भाष-दीप-जीव-माल-पीडां वा भू-जि-वसि-वहि-साधि-भासि-गडि-मण्डि 6 / 1 / 63 / हेमिभ्यः (उणादि) 2 / 45 / भ्रातुः व्यत् 2 / 4 / 64 / / भूतपूर्व चरट् 4 / 3 / 43 / भ्राश-भ्लाश-भ्रमु-क्रमु-क्लमु-त्रसि-त्रुटिभूते 1 / 2 / 62 / लषः वा 111188 / भूषण-आदर-अनादरेषु अलम्-सत्-असतः भ्राष्ट्र-अग्न्योः इन्धे 5 / 2 / 80 / 2 / 2 / 27 / भ्रौवेयः 2 / 4 / 5 / / भू-सुवः अद्वेः तिङि 6 / 2 / 26 / ___मः सेटः न अवमि-अमि-कम-आचमभू-सुङ्-अदिभ्यः क्रिन् (उणादि) विश्रमः 6 / 1142 / 1 / 70 / मकुर-दर्दुर-विधुराः (उणादि) 3 / 2 / भृञादिभ्यः अतच् (उणादि) मङ्गेः अलच् (उणादि) 3 / 52 / मड्डुक-झर्झरात् अण् वा 3 / 4 / 58 / भृञः असंज्ञायाम् 1 / 1 / 123 / मत-जनयोः करण-जल्पयोः 3 / 4 / 68 / भृति-माषात् ठच् 4 / 4 / 11 / मतौ बह्वचः अनजिरादीनाम् 5 / 2 / 133 / भृति-वस्न-अंशाः 4 / 1166 / मत्स्यस्य यः 5 / 3 / 151 / भू-म-त-चरि-तनि-मस्जि-शीभ्यः उः मदेः स्यन् (उणादि) 2 / 112 / (उणादि) 115 मदः अप्रादेः 1 / 3 / 58 / 2048 / Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 168 चन्द्रिव्याकरणम् [मदि-मिः मदि-अङ्गि-वाशि-मथि-चतिभ्यः उरच् महाराज-प्रोष्ठपदात् ठत्र 3 / 1 / 32 / . (उणादि) 3 / 1 / महेन्द्राद् वा 3 / 1 / 27 / मदि-अशि-वसे: सरन् (उणादि) मांसस्य पचि घञ्-ल्युटोर्लोपः 5 / 2 / 87 / 3 / 18 / माङि लुङ 1 / 3 / 4 / / मद्र-भद्रात् वपने 4 / 4 / 51 / मा-छा-ससि-सूभ्यः यः (उणादि) मधुक-मरीचयोः अण् 41161 2 / 106 / मधोः ब्राह्मणे 2 / 4 / 25 / माणव-चरकात् ख 4 / 1 / 15 / मध्यस्य दिने 5 / 2 / 83 / मात-मातृक-मातृषु वा 5 / 1 / 13 / मध्य-आदिभ्यां मः 3 / 2 / 12 / / मातर-पितरौ चार्थे 5 / 2 / 20 / / मध्यात् मण-मीयौ च 3 / 3 / 33 / मातुः उत् संख्या-सं-भद्रादेः 2 / 4 / 45 / मनः 1 / 2 / 60 / मातु: मातच पुत्रे श्लाघ्ये 6 / 2 / 47 / मनः 2 / 3 / 13 / मातुल-उपाध्यायात् वा 2 / 3 / 50 / . मनसः नाम्नि 5 / 2 / 6 / मातृ-पितृभ्यां स्वसा . 6 / 4 / 71 / मनि-पचि-मचां नाम्नि 5 / 3 / 123 / माथान्त-पदवी-अनुपद-आक्रन्दं धावति मनेः उत् च (उणादि) 1 / 54 / 3 / 4 / 34 / मनोः औ वा 2 / 3 / 43 / मात् उपान्तात् च मतोर्वः 6 / 3 / 35 // मनोः जातो यत् सुक् च 2 / 4 / 64 / मात् वर्मणः अपत्ये 5 / 3 / 171 / . मन्थ-ओदन-सक्तु-बिन्दु-वज्र-भार-हार- माने कंश्च 4 / 2 / 64 / / वीवध-गाहेषु 5 / 270 / माने मात्रट 4 / 2 / 38 / मन्द-अल्पाच्च मेधायाः 4 / 4 / 10 / माने वयः 3 / 3 / 125 // मन्-मात् नाम्नि 4 / 2 / 133 / .. मान्तस्य युव-आवौ द्विवचने 5 / 4 / 58 / मन्याप्ये कुत्सायाम् अनावादौ वा माला-इल्वल-पलवल-चषाल-शिथिल 2 / 1 / 80 / शुक्ल-तण्डुलाः' (उणादि) 3 / 53 / मयः उञोऽचि वः 6 / 4 / 16 / माशब्दात् इत्यादिभ्यः 3 / 4 / 48 / मयट 3 / 3 / 53 / मासात् वयसि यत्-खौ 4 / 1 / 16 / मयट् अभक्ष-आच्छादने 3 / 3 / 106 / मा-स्था-सा-गा-पिब-हाग-दा-धां हलि 5 / 3 / 77 / मसेर् ऊरन् (उणादि) 3 / 30 / मित-नखात् 1 / 2 / 18 / मस्जः अन्त्यात् पूर्वः 5 / 4 / 13 / .. मितां हस्वः 6 / 1 / 56 / महतश्च ठञ् 4 / 1 / 12 / मिथ्यायोगे कृञः अभ्यासे 1 / 4 / 123 / महाकुलाद् अत्र -खौ 2 / 4 / 75 / मित् अचः अन्त्यात् परः . 1 / 1 / 14 / महानाम्न्यादीनाम् 4 / 1 / 107 / मिदेः एत् 6 / 1 / 106 / Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [169 मिपः -- यतो] चान्द्रव्याकरणम् मिपः अम् 1 / 4 / 31 // मो वा 5 / 3 / 36 / मिमतात् 2 / 4 / 83 / मि-मी-मा-रभ-लभ-शक-पत-पद-दा-धाम् य-काभ्याम् आपः अत्यक्-त्यपो वा 6 / 171 / अचः सि सनि इस् 6 / 2 / 106 / यकि 5 / 3 / 64 / मि-म्योः अखल-अचि 5 / 1 / 53 / यङश्वाप् 2 / 3 / 80 / मुदि-ग्रः गक्-गौ (उणादि) 2 / 26 / / यङि 5 // 1 // 25 // मुद्गात् अण् 3 / 4 / 25 / यङि 6 / 2 / 82 / मुहेर् मूर् च ( उणादि) 2 / 24 / यङ: बहुलम् 1 / 1 / 86 / मूर्ती घनः 1 / 3 / 65 / यङः वा 6 / 2 / 35 // मूलम् अस्य अदृढम् 3 / 4 / 87 / यच्च-यत्रयोः गर्हायाम् च 1 / 3 / 114 / मूलेन आनाम्ये 3 / 4 / 86 / यत्-छौ चलोपश्च 4 / 2 / 58 / मृ-कणिभ्याम् ईचिः (उणादि) 168 / यचि अणादौ 5 / 2 // 32 // मृगपूर्वोत्तरात् च सक्थ्नः 4 / 4 / 83 / यचि अशि-सुटि 5 / 3 / 126 / मृगव्या-अटाटये 1 / 3 / 81 / यजः 1 / 2 / 63 / मृ-गृ-वा-हसि-इण्-अमि-दमि-लू-पू-धूविभ्यः यज-जप-दह-दशः यङः 1 / 2 / 112 / तन् (उणादि) 2150 / यो शश्च (उणादि) 3 / 103 / मृङः उतिः (उणादि) 3 / 74 / यजः बहुलम् 6 / 1 / 6 / . मृङ: त्युक् (उणादि) 1 / 36 / यज्ञात् घः 4 / 1 / 77 / ' मृङ: लुङ-लिङोश्च 1 / 4 / 116 / यज्ञेभ्यः 3 / 3 / 40 / मृजेः आत् 6 / 1 / 1 / / यज्ञे संस्तावः 113 / 23 / मृड-मृद-गुध-कुष-क्लिश-वद-वस-लुच-ग्रहां यञ् 2 / 4 / 6 / क्त्वि 62 / 16 / यञ् -अञो: बहुषु अस्त्रियाम् 2 / 4 / 107 / मृदः तिकन् 4 / 4 / 23 / / यञ् -इञः 2 / 4 / 37 मृषः अक्षान्तौ 6 / 2 / 17 / यत्रः अषावटात्. 2 / 3 / 18 / मेघ-ऋति-भयात् कृत्रः खः 1 / 2 / 27 / यणः इक: 5 / 2 / 147 / . . मेङः इद् वा 5 / 3 / 81 // यण् अचि 6 / 2 / 105 / .. मेङः 1 / 3 / 130 / यण इक: 5 / 1 / 114 / मेधा-रथात् इरः 4 / 2 / 114 / यणो मयः 6 / 4 / 143 / मेः आनिः 1 / 4 / 23 / यङसंयोगात् आतः 6 / 3 / 75 // मेः णलि वा 6 / 1144 / यत् 1 / 1 / 107 / .मः नः म्-वोश्च 6 / 3 / 73 / यतो निर्धारणम् 2 / 1 / 12 / - 22 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 170] चान्द्रव्याकरणम् [यतः--योऽचि यतः अपतेर्वा 5 / 4 / 140 / यासुट् अतङः कित् 1 / 4 / 33 / यत्क्रिया क्रियाचिह्नम् 2 / 1 / 60 / यि किङति अयङ 6 / 2 / 74 / यत्-तद्-एकात् द्वाभ्यां निर्धारणे डतरच् यि परे अव-आवौ 5 / 1176 / 4 / 3 / 75 / यि लोपः 5 / 3 / 111 / / यत्-तद्-एतदः वतुप् 4 / 2 / 43 / य्-इवर्णयोः दीधी-वेव्योः 6 / 2 / 104 / यति अवर्णे 5 / 2 / 62 / / यु-कु-सूनां किञ्च (उणादि) 2 / 84 / यथा-कथाचात् णः 4 / 1 / 116 / युजि-रुजि-तिजेः कुश्च (उणादि) यथा न तुल्ये 2 / 2 / 3 / 2 / 105 // यथामुख-सम्मुखं दृश्यते अस्मिन् युजेः असमासे 5 / 4 / 26 / 4 / 2 / 10 / युट् च (उणादि) 3 / 114 / यथास्वे यथायथम् 6 / 3 / 11 / युधि-हि-इन्धि-जनि-श्या-धूभ्यः मक् यद्-यदि-यदा-जातुषु लिङ 1 / 3 / 113 / (उणादि) 2 / 103 / यमः सं-वि-उपाञ्च 1 / 3 / 53 / युव-अल्पयोः कन् वा 4 / 3 / 52 / यमः सूचने 5 / 3 / 47 / युवोः अन-अको असः 5 / 4 / 1 / यम-रम-नम-आतां सक् च 5 / 4 / 170 / युष्मद्-अस्मदोः कञ् युष्माकय-र-ण-गात् मः 5 / 4 / 134 / अस्माकौ च 3 / 2 / 62 / य-र-लात् भः 5 / 4 / 133 / युष्मद्-अस्मदोः षष्ठी-चतुर्थी-द्वितीयान्तयरः अमि अम् वा 6 / 4 / 140 / योः वाम्-नौ वा 6 / 3 / 16 / यवनात् लिप्याम् 2 / 3 / 54 / युष्मद्-अस्मदोः अनादेशे 5 / 4 / 54 / यव-यवक-षष्टिकात् यत् 4 / 2 / 3 / युष्मद्-अस्मद्भयां ङसः अश् 2 / 1 / 26 / यवात् दोषे 2 / 3 / 53 / युष्मदि मध्यमत्रयम् 1 / 4 / 146 / यसः 1 / 1 / 86 / युस् 4 / 2 / 151 // यस्कादिभ्यः 2 / 4 / 110 / यूकाआदयः (उणादि) 2 / 2 / यस्य 5 / 3 / 146 / यूथआदयः (उणादि) 2056 / यस्य हलः 5 / 3 / 65 / यूनः तिः 2 / 3 / 81 // याड् आपः 6 / 2 / 56 / / ई-ऊभ्याम् चाट् 6 / 2 / 53 / यानात् 3 / 3 / 87 / _यूय-वयो जसि 5 / 4 / 56 / यानादेः अञ् 3 / 3 / 86 / ये वा 5 // 3 // 41 // यालोपो दरिद्रः (उणादि) 1146 / योगात् यच्च 4 / 1 / 121 // यावद् इयत्त्वे 2 / 2 / 4 / योचि 5 / 4 / 56 / यावादिभ्यः कन् 4 / 4 / 12 / योऽचि वा अनुनि 6 / 4 / 26 / Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योजनं --हहि] चान्द्रव्याकरणम् [171 योजनं गच्छति 4 / 1 / 85 // राजन्वान् सौराज्ये 6 / 3 / 40 / योद्धप्रयोजनात् संग्रामे 3 / 1 / 34 / राजसूय-रुच्य-कृष्टपच्य-अव्यथ्याः योपान्तात् गुरूपोत्तमात् असुप्रख्याद् 1 / 1 / 126 / वुन 4 / 1 / 148 / राज्ञो यत् 2 / 470 / यो यङः 112 / 123 / रातेः इफः (उणादि) 2 / 88 / योः आगूच (उणादि) 1141 / / राते: डैः (उणादि) 161 / यो वलि लोपः 5 / 1 / 63 / रात्र-अह्न-वाकाः पुंसि 2 / 2 / 81 / रावेर्धातौ वा 5 / 2 / 85 / रः ऋतः पृथु-मृदु-कृश-भृश-दृढ-परिवृ रात्रि-अहः-संवत्सरात् 4 / 1 / 102 / ढानाम् 5 / 3 / 164 / रात् सः 6 // 3 // 53 // रक्त-अनित्ययोः 4 / 4 / 14 / राधः हिंसायाम् 5 / 3 / 116 / रक्षति 3 / 4 / 30 / राधः हिंसायाम् 6 / 2 / 107) रङ्कोः प्राणिनि वा 3 / 2 / / रायः हलि 5 / 4 / 53 / रनः 5 / 3 / 26 / रात् लोपः 5 / 3 / 20 / रञ्जः क्युन् (उणादि) 2 / 66 / रा-शदिभ्याम् त्रिप् (उणादि) 1166 / र-दात् त-तवतो: दश्च 6 / 3 / 74 / राष्ट्रात् घः 3 / 2 / 2 / रधः 5 / 4 / 15 / . रास्नादयः (उणादि) 276 / रधादिभ्यः 5 / 4 / 108 / रिङ श-यग्-आशीलिङि 6 / 2 / 80 / रभः अशप-लिटो: 5 / 4 / 17 / रीग् ऋत्वतः 6 / 2 / 138 / रमि-कुषि-काशिभ्यः क्थन् (उणादि) रिङ ऋतः ये च 6 / 2 / 76 / 2 / 54 / रसः वि-आडोश्च 1 / 4 / 135 / री-वृ: नित् (उणादि) 1 / 26 / रल: हलादें: इदुतोः सनि च रुग्-रिकौ च लुकि 6 / 2 / 136 / 6 / 2 / 21 / रुचि-भुजेः किष्यन् (उणादि) 2 / 111 / रवि-कवि-दरि-शरि-वलि-वल्लि-ध्वनि- रुचिमति 2 / 1 / 74 / ___अवि-हरि-ग्रन्थिभ्यः इः (उणादि)। रुद-विद-मुष-ग्रहाम् 6 / 2 / 22 / 1 / 51 / रुद्भ्यः पञ्चभ्यः अट् च 6 / 2 / 37 / . रश्मौ 1 / 3 / 40 / रुद्भ्यः तिङ: 5 / 4 / 173 / र-षात् नः णः एकपदे 6 / 4 / 101 / रुधादीनाम् श्नम् 1 / 1 / 63 / रसि-रुचि-रु-वृञः युच् (उणादि) 2 / 67 / रुष-हृष-अम-त्वर-संधुष-आस्वनः राजघः 1 / 2 / 43 / 5 / 4 / 156 / राजन्यादिभ्यः वुञ् 3 / 1 / 62 / रुहि-नन्दि-जीवेः षित् (उणादि) 2 / 44 / Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 172] चान्द्रव्याकरणम् [रुहि --लग् रुहि-हृ-श्याभ्यः इतच् (उणादि) लस् तिप्-तस्-झि-सिप्-थस्-थ-मिप्-वस् 2 / 47 / मस्-ता-ताम्-झ-थस्-आथाम्-ध्वम्-इट्रूपात् आहत-प्रशस्ययोः यप् वहि-महिङ् 1 / 4 / 1 / 4 / 2 / 135 / लाक्षा-रोचनात् ठक् 3 / 1 / 2 / रूप्यान्तात् नः 3 / 2 / 18 / / लालाटिक-कौक्कुटिको 3 / 4 / 44 / / रेवत्यादिभ्यः ठक् 2 / 4 / 78 / लास-यतोः 5 / 2 / 57 / रैवतिकादिभ्यः छः 3 / 3 / 66 / लिङ: सीयुट 1 / 4 / 32 / रोः काम्ये 6 / 4 / 33 / लिङि तङि गमः 5 / 3 / 44 / रोः सुपि 6 / 4 / 23 / लिङि इणः 6 / 2 / 76 / रोग-आतपयोः वा 3 / 2 / 73 / लिङि च ऊर्ध्वमौहूतिके . 1 / 3 / 124 / रोगात् प्रतीकारे 4 / 3 / 2 / लिङि अतिपत्तौ लुङ 1 / 3 / 107 / रोपान्त-इतः प्राच्यात् 3 / 2 / 37 / / लिङि एत् 5 / 378 / / रोमन्थं वर्तयति हनुचाले 1 / 1 / 33 / लिङ-सिचोः तङि 5 / 4 / 105 / रो रि 6 / 4 / 16 / लिङ-सिचोः तङि 6 / 2 / 25 / लिट: इरच् 146 / लक्षण-वीप्सा-इत्थंभूतेषु अभिना लिट: क्वसुः 1 / 2 / 74 / 211154 / लिटि 5 / 1142 / लक्षणे 2 / 1 / 66 / लिटि इन्धि-श्रन्थ-ग्रन्थाम् 5 / 3 / 25 // लक्षणेन अभि-प्रती 2 / 2 / / लिटि अनादेशादेः एकहलमध्ये अतः लक्षेः मुट् च (उणादि) 186 / 5 / 3 / 116 / लघोः इक: अकवेः 4 / 1 / 147 / / लिटि अश्वेः द्विरुक्ते 5 / 1 / 21 / लघोः उपान्तस्य 6 / 2 / 4 / / लिट्-आशीलिङ-अतिशिति 5 / 3 / 61 / लङः द्विषश्च वा 1 / 4 / 43 / / लिट्-आशीलिङ-अतिङशिति 5 / 4 / 78 / लङ्गि-कम्प्योः उपताप-शरीरविकारयोः लिट्-योः 5 / 1 / 36 / / 5 / 3 / 34 / लिपः नेश्च 1 / 1 / 145 / लभः 5 / 4 / 18 / / लियः पूजा-अभिभवयोश्च 1 / 4 / 122 / ललाटात् तपः 1 / 2 / 22 / लियः स्नेहविलापने वा 6 / 1 / 46 / ललाटात् भूषणे कन् 3 / 3 / 34 / लियः वा 5 / 1 / 54 / लवणात् ठञ् 3 / 4 / 54 / लुकि अरि रः 6 / 3 / 100 / लवणात् लुक् 3 / 4 / 24 / लुक् स्त्रियाम् 2 / 4 / 59 / लष-पत-पद-स्था-भू-श-वृष-हन-कम-गमः लुग् अणादिलुकि अगोण्यादीनाम् उकञ् 1 / 2 / 102 / 2 / 2 / 87 / Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुग -- वयसा] चान्द्रव्याकरणम् [173 लुग् वा * दुह-दिह-लिह-गुहाम् तङि ल्यपि च 5 / 1 / 45 / . ___ दन्त्ये 6 / 1 / 101 / ल्यपि लघोः 5 / 3 / 70 / लुङ 1 / 276 / ल्युट् 1 / 3 / 67 / लुङि 5 / 4 / 10 / लुङि ते चिण् 1 / 4 / 105 / वंशादिभ्यः हरति वहति आवहति लुङि वा 5 / 3 / 114 / __ भारात् 4 / 1 / 72 / लुङि सिच्. 1 / 1 / 60 / वचि-स्वपि-यजादीनां लिटि अपिति लुङि अचः 1 / 4 / 101 / 5 / 1 / 14 / लुङ-लङ-लुङक्षु अड् अमाङयोगे वचः अशब्दाख्यायाम् 6 / 1 / 65 // 5 / 3 / 82 / वञ्चि-लुञ्चि -थ-फो वा 5 / 3 / 54 / लुङ-सन्-अच्-घन -अप्सु घस्ल: 5 / 4 / 87 / वञ्चेर्गतौ 6 / 1 / 12 / लुट: आद्यानां डा-रौ-रसः 1 / 4 / 18 / वटकात् इनि: 4 / 2 / 86 / लुटि क्लपः 1 / 4 / 145 / वतण्डात् 2 / 4 / 26 / लुप-सद-चर-ग-जप-जभ-दह-दशः गात् वतोः 4 / 1 / 34 / . 1 / 1 / 43 / वतोः इथट् 4 / 2 / 61 / लुभः आकुले 5 / 4 / 114 / वतौ च इदम्-किमोः ईश्-की लेखे // 2 // 56 / 5 / 2 / 107 / लोक-सर्वलोकात् 4 / 1158 / वत्स-शाल-नक्षत्रेभ्यः बहुलम् 3 / 3 / 7 / लोकस्य पृणे 5 / 2 / 78 / वत्स-अंशात् स्नेह-बलिनोः 4 / 2 / 101 / लोकान्तात् 3 / 3 / 28 / वत्स-उक्ष-अश्व-ऋषभाणां तनुत्वे 4 / 3 / 74 / लोट् 1 / 3 / 122 // वद: सुपः क्यप् च 1 / 1 / 117 / लोट: ए: उ: 1 / 4 / 20 / वद-व्रज-ल-रः . 6 / 1 / / लोटः कृलोट् 1 / 1 / 58 / वदेर्वा (उणादि) 3 / 32 / लोपः अचि किङति चातः 5 / 3 / 75 / वधः घातः 1 / 3 / 64 / लोपः अतः 5 / 3 / 63 / वनं पुरगा-मिश्रका-सिध्रका-शारिकालोमादि-पामादिभ्यः श-नौ 4 / 2 / 104 / __ अग्रे-कोटरात् 6 / 4 / 103 / लोम्नः अपत्येषु 2 / 4 / 5 / वन-गिर्योः कोटर-अञ्जनादीनाम् लो लुक् 6 / 1 / 50 / 5 / 2 / 132 // लोहितादिभ्यः शकलान्तेभ्यः 2 / 3 / 20 / वपि-वजि-वृधि-इन्दिभ्यः रन् (उणादि) लोहितात् मणौ 4 / 4 / 13 / 3 / 13 / ल्यपि 5 / 4 / 86 / वयसा च तुल्ये 3 / 4 / 10 / Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 174] चानव्याकरणम् [वयसि -- बात वयसि दन्तस्य दतृ 4 / 4 / 130 / वस्न-क्रय-विक्रयात् ठन् 3 / 4 / 11 / वयसि पूरणात् 4 / 2 / 127 / वस्-मसोर्लोपः 1 / 4 / 26 / / वयसि अचरमे 2 / 3 / 22 / वसि-अगिभ्यां णित् (उणादि) 3 / 102 / वयो यः 5 / 1 / 43 / वह-लादिभ्यः इत्र-उत्रौ (उणादि) 3 / 42 / वर्गान्तात् 3 / 3 / 31 / वह-अभ्रात् लिहः 1 / 2 / 16 / वर्णका तान्तवे 6 / 1 / 81 / / वहि-पंसेर्दीर्घश्च (उणादि) 16 / वर्ण-दृढादिभ्यः ष्यञ् च 4 / 1 / 140 / वहि-वसिभ्यां चतिः (उणादि) 1187 / वर्णात् ब्रह्मचारिणि 4 / 2 / 131 / / वहे 5 / 2 / 144 / वर्णी वुक् 3 / 2 / 12 / वहेः अनियन्तृके 2 / 1 / 48 / वर्तका शकुनौ 6 / 1 / 74 / वहे: तुः इट् च 3 / 3 / 100 / वर्तमाने लट् 1 / 2 / 2 / वह्यं करणम् 1 / 1 / 113 / वर्षस्याभाविनि 6 / 1 / 27 / वा आकाङक्षायाम् 1 / 2 / 80 / वर्षा-दृन्-पुनर्-कारात् भुवः 5 / 3 / 60 / वाकिनादीनां कुक् च 2 / 4 / 61 / वर्षा-प्रावृड्भ्यां ठक्-एण्यौ 3 / 2 / 81 / वा क्यषः 1 / 4 / 142 / वर्षात् लुक् च 4 / 1 / 103 / वाक्याऽचां प्लुतः अन्त्यः 6 / 3 / 115 / वलादेः इट् 5 / 4 / 6 / / वाक्यादेः आमन्त्रितस्य असूया-संमत्योः वलि-पटे: आकः (उणादि) 2 / 15 / वलि-फले: गुक् च (उणादि) 1 / 11 / / वा गोमये 3 / 2 / 44 / / वले 5 / 2 / 135 / वाग्-दिक्-पश्यद्भयः / युक्ति-दण्ड-हरेषु वशं गतः 3 / 4 / 85 // 5 / 2 / 14 / वशः तिङशिति अपिति 5 / 1 / 18 / वाचंयमो व्रते 1 / 2 / 24 / वशि 5 / 4 / 128 / वाचः संदेशे 4 / 4 / 18 / वशि-वणिभ्याम् इजिक् (उणादि) 3 / 73 / वा चित्ते 5 / 3 / 65 // वशेः कनसिः (उणादि) 365 // वाचः ग्मिनिः 4 / 2 / 145 / वशेः कित् (उणादि) 3 / 28 / वा ज़-भ्रम-त्रसाम् 5 / 3 / 120 / वशेः सुट् च (उणादि) 3 / 105 / वात-पित्त-श्लेष्म-संनिपातात् शमन-कोपने वस-क्षुधः इट् 5 / 4 / 112 / 4 / 150 / वसु-स्रंसु-ध्वंसां सः 6 / 3 / 104 / वातमज-शर्धजह-इरंमद-परंतप-द्विषंतपवसेणित् वा (उणादि) 1 / 23 / / __ भगंदर-पुरंदराः 1 / 2 / 20 / वसोर्व उत् 5 / 3 / 128 / वात-अतीसार-पिशाचानां कुक् च वस्तेढञ् 4 / 3 / 76 / 4 / 2 / 126 / 6 / 3 / 4 / Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वातात् --विधु] चान्द्रव्याकरणम् [175 वातात् ऊलः 3 / 1155 / वास्तव्यः 111 / 106 / वा तिल-माष-उमा-भङ्ग-अणुभ्यः वा अस्ताति 4 / 3 / 34 / 4 / 2 / 4 / वाऽस्य व्-मोः 5 / 3 / 101 / वा दान्त-शान्त-पूर्ण-दस्त-स्पष्ट-छन्न . वाहनं वाह्यात् 6 / 4 / 108 / ज्ञप्ताः 5 / 4 / 155 / वा हन-गम-विद-विश-दृशः 5 / 4 / 166 / वा द्रुह-मुह-स्नुह-स्निहाम् 6 / 3 / 64 / / वा हविर्-यूपादिभ्यः 4 / 1 / 3 / वा नाम्नि 2 / 3 / 40 / / विंशतिकात् खः 4 / 1 / 41 / वा निक्ष-निस-निन्दाम् 6 / 4 / 127 / विंशति-त्रिंशद्भ्याम् 4 / 1 / 36 / विंशतेडिति टे: 5 / 3 / 137 / बा आप् 2 / 278 / . विंशत्यादिभ्यः तमट् वा 4 / 2 / 52 / वा भाव-करणयोः 6 / 4 / 110 / . वा भाव-आक्रोश-दैन्येषु 6 / 3 / 82 / विकर्ण-कुषीतकात् काश्यपे 2 / 4 / 54 / वा विकारे 3 / 3 / 103 / अभि-अवात् 5 / 1 / 31 / वि-कु-शमि-परिभ्यः 6 / 4 / 83 / वामदेव्यम् 3 / 16 / विकृतेः प्रकृतौ 4 / 1 / 16 / वा अम्-शसोः 5 / 3 / 06 / विचारे 6 / 3 / 125 // वायु-ऋतु-पितृ-उषसो यत् 3 / 1 / 26 / विछ-रक्षो नङ 11370 / वारसंख्यायाः कृत्वसुच् 4 / 4 / 5 / वा लिटि 5 / 4 / 2 / विजः इटि 6 / 2 / 14 / वा लिप्सायाम् 1 / 4 / 66 / विटपादयः (उणादि) 2 / 87 / वा लुङ-लिङो: 5 / 4 / 67 / वित्तः प्रतीत-भोगयोः 6 / 3 / 66 / वा वणिजाम् 1 / 3 / 3 / विदः 1 / 4 / 44 / वा विरामे 6 / 4 / 146 / विदाम् 1 / 1157 / वां वृक्ष-तृण-धान्य-मृग-शकुनिविशे विदि-भिदि-च्छिदेः कुरच् 1 / 2 / 108 / षाणाम् 2 / 2 / 62 / विदेः श्वसुः 1 / 2 / 83 / वा वेष्टि-चेष्टयोः 6 / 2 / 143 / विदेः अलुकः 5 / 4 / 132 / वा शरि 6 / 4 / 26 / / विदो लटो वा 1 / 4 / 12 / वा श्वे: 5 / 1137 / विद्या-योनिसंबन्धात् वुञ् 3 / 3 / 46 / वाष्प-ऊष्म-फेनम् उद्वमति 1 / 1 / 34 / विधिविशेषणान्तस्य 1 / 1 / 6 / / वा संयोगादेः अस्थः 5 / 3 / 76 / विधि-संप्रश्न-प्रार्थनेषु 1 / 3 / 121 / वास-वाहने 5 / 2 / 67 / विधि-इणः असिः (उणादि) 3 / 66 / वासुदेव-अर्जुनात् कन् 3 / 3 / 65 / विध्यति अकरणेन 3 / 4 / 02 / वा . सुपि लुटि च 5 / 164 / विधु-अरुस्-तिलात् तुदः 1 / 2 / 16 / Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 176] चान्द्र व्याकरणम् [विनयादिभ्यः'--: विनयादिभ्यः ठक् 4 / 4 / 17 / वुन -छण्-क-ठच्-इल-स-इनि-र-ढन -ण्य-यविना तृतीया च 2 / 185 // फक्-फिज -इञ -ञ्य-कक्-ठक्-छविना नाना 4 / 2 / 28 / कीय-ड्मतुप्-डव्लचः 3 / 1 / 68 / विनिमये 1 / 4 / 4 / वृकात् णेण्यट् 4 / 3 / 61 // विन्दुः इच्छुः 1 / 2 / 118 / वृक्ष-औषधीभ्यः अंशे च 3 / 3 / 104 / विन्-मतो: लुक् 4 / 3 / 48 / वृङ: एन्यः (उणादि) 2 / 114 / वि-पराभ्यां जेः 1 / 4 / 53 / वृजिन-अजिनम् (उणादि) 2 / 63 / वि-परेः 6 / 4 / 60 / वृजि-मद्रात् कन् 3 / 2 / 46 / विपिन-इरिण-तुहिन-महिनानि वृञः आच्छादे 1 / 3 / 43 / (उणादि) 2 / 66 / वृञश्च (उणादि) 3 / 39 / विप्रतिषेधे 1 / 1 / 16 / वृ-त-वदि-हनि-मानि-कमि-अशि-कशेः सः विमती 11465 / (उणादि) .3 / 63 / विमुक्तादिभ्यः अण् 4 / 2 / 155 / वृत्ति-उत्साह-तायनेषु क्रमः 1 / 4 / 84 / विरामे विसर्जनीयः 6 / 4 / 20 / / वृ-दृभ्यां विन् . (उणादि) 1181 / विरिब्ध-फाण्ट-बाढ-म्लिष्टानि स्वर- वृद्धस्य च ज्यः 4 / 3 / 50 / / अनायास-भृश-अस्पष्टेषु 5 / 4 / 146 / वृद्धेः वृधुषः 3 / 4 / 37 / विरोधिनाम् अद्रव्याणाम् 2 / 2 / 65 // वृद्भयः इट्. 5 / 4 / 123 / विवध-वीवधात् वा 3 / 4 / 16 / वृद्भ्यः स्य-सनोः 1 / 4 / 144 / विवाहे 3 / 3 / 10 / वृन्दात् आरकन्, * 4 / 2 / 136 / / विशाखा-आषाढात् मन्थ-दण्डयोः वृ-भू-वमि-कुभ्यः शक् (उणादि) 3155 / . 4 / 1 / 131 / वृषादिभ्यः चित् (उणादि) 3 / 46 / विशि-पति-पदि-स्कन्दां वीप्सा- वृष-अश्वयोमैथुने सुक् 6 / 2 / 10 / __ आभीक्ष्ण्ययोः 1 / 3 / 148 / वृषि-तक्षि-राजि-धन्वि-प्रतिदिव-युवः विशेषणम् एकार्थेन 2 / 2 / 18 / . कनिन् (उणादि) 376 / विश्वस्य वसु-राटोः दीर्घः 5 / 2 / 129) वृ-ऋतो वा 5 / 4 / 101 / विषये देशे 3 / 1 / 61 / / वेः क्षु-श्रुवः 1 / 3 / 13 / विष्वग्-देवयोश्च डद्रिग् अञ्चि वो वेः खः 4 / 4 / 111 // 5 / 2 / 10 / वेः पादाभ्याम् 1 / 4 / 87 / विहायसो विहश्च 1 / 2 / 33 / वे: शब्दाप्यात् 1 / 4 / 80 / वी-पतिभ्यां तनन् (उणादि) 2 / 64 / वेः शालच्-शङ्कटचौ 4 / 2 / 26 / वीप्सा-आभीक्ष्ण्ययोः द्वे 6 / 3 / 1 / वेः स्कन्दः अत-तवतोः 6 / 4 / 62 / Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेः -- शकन्ध्वादयः] चान्द्रव्याकरणम् [177 वेः स्कन्नः षः 6 / 4 / 65 / व्यतिहारे णच् 11376 / वेः स्त्रः नाम्नि 6 / 4 / 80 / व्यतिहारे सर्वादीनां सुः बहुलम् 6 / 3 / / वेञः डिः (उणादि) 1158 / व्यथः लिटि 6 / 2 / 121 / वेञः लिटि वय वा 5 / 4 / 88 / व्यध-जपोप्रादेः 1 / 3 / 51 / वेट: 6 / 4 / 100 / वि-आङः श्वसः 5 / 4 / 144 / वेणिः (उणादि) 1178 / व्याप्यात् काम्यच् 1 / 1 / 23 / वेणुकादिभ्यः छण् 3 / 2 / 61 / व्याप्याद् अण् 1 / 2 / 1 / वेतनादिभ्यो जीवति 3 / 4 / 10 / व्याप्याद् आक्रोशे कृत्रः खमुत्र वेत्तेर्वा 1 / 4 / / 1 / 3 / 134 / वेः अनचः 5 / 1 / 64 / व्याप्याद् आधारे 1 / 372 / वेः अपिति वा. 5 / 1144 / व्यासादीनाम् अकङ च 2 / 4 / 21 / वेश्च स्वनो भोजने .6 / 4 / 54 / वि-उदः काकुत् काकुदस्य 4 / 4 / 136 / वैकाचः 5 / 2 / 43 / वि-उदः तपः 114 / 74 / वैडूर्यम् 3 / 3 / 55 / वि-उपात् शीङः 1 / 3 / 30 / वैशस्त्र-वैभाजित्रे 3 / 4 / 51 / व्युष्टादिभ्यः अण् 4 / 1 / 115 / *वोद्वाहे 5 / 3 / 4 / व्ये-स्यमो: 5 / 1 / 26 / / वोर्णोः 6 / 1 / 6 / व्योमादयः (उणादि) 3 / 82 / वोर्णोः 6 / 2 / 15 / व्-योः ईषत्स्पृष्टौ च 6 / 4 / 27 / वोर्णोः 6 / 2 / 31 // व्रज-व्यजौ 1 / 3 / 101 / वो विधूनने जुक् 6 / 1 / 47 / व्रते 112 / 56 / वोशनसः 5 / 4 / 47 / व्रश्व-भ्रस्ज-सृज-मृज-यज-राज-भ्राज-शां वोशीनरेषु .3 / 2 / 35 / . षः 6 / 3 / 66 / वौषधि-वृक्षात् द्वि-त्र्यचः अनिरिकादेः वृश्चित्वा 5 / 4 / 116 / 6 / 4 / 105 / व्रश्चि-मूषेः च किकन् (उणादि) 2 / / व्-पोर्वा 6 / 4 / 120 / वातात् खञ् 3 / 4 / 13 / व्-मोः टाप् 1 / 4 / 27) वातात् अस्त्रियाम् 4 / 3 / 6 / व्यः 5 / 1 / 47) व्रीहि-शालेः ढक् 4 / 2 / 2 / व्यक्तं सहोक्तौ 1 / 4 / 66 / व्रीहेः पुरोडाशे 3 / 3 / 112 / व्यचः अणिति अनसि 5 / 1 / 16 / / व्रीह्यादि-अतः इनिश्च 4 / 2 / 116 / व्यञ्जनानाम् 2 / 2 / 63 / शकन्ध्वादयः 5 / 1 / 68 / __. * सूत्रपाठे तत्र तत्र एतादृशानि सूत्राणि सन्धिं खण्डयित्वा निर्दिष्टानि, यथा -- ‘वा उद्वाहे'। 23 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 178] चान्द्रव्याकरणम् [शकल --श शकल-कर्दमाद् वा 3 / 1 / 3 / शप-श्यनः 5 / 4 / 35 / शकलादिभ्यः गोत्रात् 3 / 2 / 21 / शब्द-दर्दरं करोति 3 / 4 / 31 / / शकादिभ्यः 5 / 4 / 135 // शब्दादीन् करोति 1 / 1 / 36 / . शकादिभ्यः अटन् (उणादि) 2 / 32 / शब्दान्तर्गतौ वा 1 / 4 / 130 / शकि-भूभ्यां उन्ति-अन्तिचौ (उणादि) शमादिभ्यः अथः (उणादि) 2 / 53 / 171 / शमाम् अष्टानां श्ये दीर्घः 6 / 1 / 102 / शकि-शमेः नित् (उणादि) 3 / 47 / शमेः खः (उणादि) 2 / 23 / शके: उनः (उणादि) 281 / शमेः ढः (उणादि) 2 // 41 // शके: उनिः (उणादि) 176 / शमेः ठः (उणादि) 2 // 35 // शके: उन्तः (उणादि) 2 / 42 / शम्याः प्लञ् 3 / 3 / 116 / शक्ति-यष्टयोः टीका 3 / 4 / 60 / शरः खयः 6 / 4 / 144 / / शक्ति-वयः-शीलेषु 1 / 2 / 87 / शरदः श्राद्धे 3 / 2 / 72 / शक्तौ हस्ति-कपाटात् 1 / 2 / 40 / शरदादिभ्यः असंख्यार्थे 4 / 4 / 10 / शक्ये क्षि-ज्योः अय् 5 / 1 / 76 / शरद्-दरद्-दृषदः (उणादि) 378 / शङ्क-आदयः (उणादि) 1 / 21 / शरद्वत्-शुनक-दर्भात् भार्गव-वात्स्यशन्-शत्-शतेः डिनिः वा 4 / 2 / 42 / आग्रायणेषु 2 / 4 / 38 / शण्डिकादिभ्यः ज्यः 3 / 3 / 60 / शरादिभ्यः 3 / 3 / 114 / शत-रुद्रात् घः च 3 / 1 / 25 / शरादीनाम् 5 / 2 / 134 / शत-षष्टेः पथः ष्ठन् 3 / 1 / 36 / शरः अचि रात् , 6 / 4 / 146 / शतात् केवलात् ठन्-यतौ अतस्मिन् शर्करादिभ्यः अण् 4 / 3 / 4 / / 4 / 1 / 31 / शरे 6 / 4 / 22 / शतादिमास-अर्धमास-संवत्सरात् शल: इगुपान्तात् अदृशः अनिट: क्सः 4 / 2 / 53 / 1 / 1 / 65 // शताद् वा 4 / 1 / 44 / शलालुनः वा 3 / 4 / 56 / / शति-शद्-दशान्तात् अधिका अस्मिन् शलि-मण्डे: ऊकञ् (उणादि) 2 / 21 / ___ शतसहस्र ड: 4 / 2 / 50 / शवि-कमः कलन् (उणादि) 3 // 45 // शतृ 1 / 2 / 84 / शवि-कमिभ्यां दन् (उणादि) 2 / 60 / शदे: शिति 1 / 4 / 115 / शशि-रपयोः अतः इत् च (उणादि) शदेः अगतौ तः 6 / 1154 / 1 / 14 / शपः शपथे 1 / 4 / 63 / शः छः अमि 6 / 4 / 157 / शपि दंश-सजेः च 5 / 3 / 28 / श-ष-सर् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 12) Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शसः- शूल] चान्द्रव्याकरणम् [179 शसः नः 2 / 1 / 28 / शिशुक्रन्दादीन् अधिकृत्य कृते ग्रन्थे छः शाकलात् वा 3 / 3 / 66 / 3 / 3 / 56 / शाखादिभ्यः यः 4 / 3 / 81 / शि-सुटि 5 / 3 / 7 / शा-छा-सा-ह्वा-व्या-वे-पां युक् 6 / 1 / 46 / शि-सुटि ए: 5 / 4 / 36 / शाणात् 4 / 1 / 45 / शीङः एत् अलिटि 6 / 2 / 73 / शात् 6 / 4 / 136 / शीङः फुट च् (उणादि) 3108 / शानच् 1 / 2 / 86 / शीङ: धुक् (उणादि) 1 / 37 / शान्-दान्-मानः 111 / 21 / शीङः रत् 1 / 4 / 7 / शालातुरीयः 3 / 3 / 56 / शीतात् च कारिणि 4 / 2 / 78 / शाल्वाङ्ग-प्रत्यग्रथ-कलकूट-अश्मकात् इञ् शीत-उष्ण-तृप्रं न सहते 4 / 2 / 158 / . 2 / 4 / 103 / शीर्ष-कुमारात् णिनिः 1 / 2 / 38 / शाल्वात् गो-यवाग्वोः . 3 / 2 / 50 / शीर्षच्छेदात् यत् च 4 / 1 / 76 / शासः क्ङिति शिस् 5 / 3 / 57 / शीर्षः अचि 5 / 2 / 64 / शासि-युधि-दृशि-धृषि-मृषः 1 / 3 / 106 / शीलम् 3 / 4 / 62 / . शा हौ 5 // 3 // 56 / शील-साधु-धर्मेषु तृन् 1 / 2 / 86 / शिक्यं धिष्ण्यम् (उणादि) 2 / 11 / / शीले तूष्णीक: 4 / 3 / 56 / शिखा (उणादि) 2 / 25 / / शी वा 2 / 1 / 13 / शिखादिभ्यः वा 4 / 2 / 134 / शुक्रात् घन् 3 / 1 / 23 / शिर्छः आणक: (उणादि) 2 / 12 / / शुङ्ग-च्छगल-विकर्णात् भारद्वाज-वात्स्यशि तुक् 6 / 4 / 15 / आत्रेयेषु 2 / 4 / 47 / शिति अपिति 5 / 3 / 24 / शुट च (उणादि) 3 / 112 / 'शिति आयादयः 1 / 1 / 50 / शुण्डिकादिभ्यः अण् 3 / 3 / 48 / शिदनेकाल् सर्वस्य 1 / 1 / 12 / शुनः शेफ-पुच्छ-लाङ्गलेषु नाम्नि शिन्डितो: 5 / 1 / 16 / 5 / 2 / 16 / शिरः करन् (उणादि) 3 / 24 / शुन्-अशुचौ पुरः (उणादि) 1 / 38 / शिरसः शीर्षन् वा 5 / 2 / 63 / शुनी-स्तनात् धेटः 1 / 2 / 12 / शिरीषादयः (उणादि) 3 / 60 / शुभ्रादिभ्यः 2 / 4 / 53 / शिलाया ढः च 4 / 3 / 80 / शुषः कः 6 / 3 / 10 / शिल्पम् 3 / 4 / 57 / शूर्पात् अञ् 4 / 1 / 26 / शिवादयः (उणादि) 2 / 12 / शूलात् पाके 4 / 4 / 46 / / शिवादिभ्यः अण् 2 / 4 / 41 / शूल-उखात् यत् 3 / 1 / 15 / Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् - 3 / 68 / 180] [शृतं-- षपूर्व शृतं क्षीर-हविषोः 5 / 1 / 33 / श्यः अस्पर्श 6 / 3 / 83 / शृङ्खलं बन्धनं करभे 4 / 2 / 84 / श्रविष्ठा-आषाढात् छण् 3 / 3 / 6 / शृङ्ग-अङ्ग-भृङ्गाः (उणादि) 2 / 26 / श्राद्धम् अनेन अद्य भुक्तं ठन् च शृङ्गात् 4 / 2 / 140 / 4 / 2 / 61 / शृङ्गि-भृङ्गि-मृजि-कजेः चित् (उणादि) श्रि-भुवः अप्रादेः 1 / 3 / 14 / __3 / 22 / श्रि--- -ज्वाम् विप् दीर्घश्च (उणादि). श-वन्देः आरुः 1 / 2 / 120 / श-वसि-वपि-राजि-वृ-हनि-नभेः इञ् श्रु-कृव-धिवां श-कृ-धि च 1 / 1 / 66 / (उणादि) 1156 / श्रुवः अनाङ-प्रते: 1 / 4 / 114 / श वायु-वर्ण-निवृतेषु 1 / 3 / 10 / श्रु-श्रि-यु-वहो नित् (उणादि) 176 / शे मुचादीनाम् 5 / 4 / 11 / श्रु-सद्-वसः लिट् वा 112 / 73 / शे स्यन् 1 / 4 / 104 / श्रि-उग्-ऊर्णोः कितः 5 / 4 / 136 / . शेषात् वा 4 / 4 / 142 / श्लिषः 1 / 1166 / . शेषे 3 / 2 / 1 / श्लिष-शीङ-स्था-आस-वस-जन-रुह-जभ्यः शेषे लृट् 1 / 3 / 116 // 1 / 2 / 66 / शेषे लोप: अदः 5 / 4 / 57 / श्लिषेः इतः अत् च (उणादि) 2 / 77 / शोणादिभ्यः 2 / 3 / 41 // श्वगणात् वा . 3 / 4 / 6 / शोभते 4 / 1 / 11 / श्व-युवन्-मघोनाम् अनणादौ 5 / 3 / 126 / शौ अयमः 5 / 4 / 27 / श्वसुरः (उणादि), . 3 / 4 / शौनकादिभ्यः 3 / 3 / 72 / श्वसुरात् 2 / 4 / 71 / शौ वा 5 / 4 / 33 / श्वसः तुट् च 3 / 2 / 75 / श्न-सोः लोपः 5 / 3 / 104 / श्वसः वसीयसः 4 / 4 / 65 / श्वादयः (उणादि) 380 / श्नाः 1111100 / श्वादेरिति 6 / 1 / 16 / श्ना-द्विरुक्तयोः आतः 5 / 3 / 105 / / श्चिति-वृति-नीवी-छिदि-मुदि-दहि-तृपिश्नात् नः 5 / 3 / 22 / शुभिभ्यः च (उणादि) 3 / 8 / श्या-आद्-इण-व्यध-श्वस-तनः 1 / 1 / 147 / श्वि-ईदितः त-तवतो: 5 / 4 / 136 / . श्या-स्त्या-हृञ -अविभ्यः इनच् . (उणादि) 2 / 62 / षः पदे 6 / 4 / 12 / श्येत-एत-हरित-रोहितात् तो नः षट्-कति-कतिपयात् थट् 4 / 2 / 56 / 2 / 3 / 34 / ष-उनि क्तादेशः 6 / 3 / 31 / श्येन-तिलयोः पाते मे 5 / 2 / 84 / षपूर्व-हन्-धृतराज्ञाम् अणि 5 / 3 / 131 / Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् षषः - संप्रदाने] [181 षषः 4 / 3166 / संख्यादेर्यप् 4 / 1 / 67 / षषः ण्यः च वा 4 / 1 / 18 / संख्यादेर्वा 4 / 1 / 101 / षष्टयादेः असंख्यादेः 4 / 2 / 54 / संख्यादेवुन् 4 / 4 / 3 / षष्ठात् 4 / 2 / 63 / संख्यादेशचालुकः 4 / 1 / 24 / षष्ठी 2 / 2 / 22 / संख्या-अध्यर्धादेः संख्येयाल्लुग् अद्विः षष्ठी च अनादरे 2 / 1 / 61 // 4 / 1138 / षष्ठी संबन्धे 2 / 165 / संख्यायाः अतिशतः कन् 4 / 1 / 32 / षष्ठी हेतुना 2 / 171 / संख्यायाः अनतः 2 / 1 / 33 / षष्ठया आक्रोशे 5 / 2 / 12 / . संख्यायाः अबहोः अन्यार्थे 4 / 4 / 65 / षष्ठया अन्त्यस्य 1 / 1 / 10 / संख्यायाः संवत्सर-परिमाणस्य असंज्ञाषष्ठ्या रूप्ये च . 4 / 3 / 44 / शाण-कुलिजस्य 6 / 1 / 26 / षष्ठया व्याश्रये तस 4 / 3 / 1 / संख्यायाः नदी-गोदावर्योश्च 4 / 4 / 73 / षितः ङीष् 2 / 3 / 36 / संख्या-अर्धात् नावः एकार्थात् 4 / 4 / 84 / षोडन् 4 / 4 / 131 / संख्या वंश्येन 2 / 2 / 12 / षोढा वा 4 / 3 / 21 / संख्या-वि-सायादेः अह्नस्य अहन् ङौ वा ष्ठिवु-क्लम-आचमां शिति 6 / 1 / 103 / 5 / 2 / 128 / ष्ठिवु-सिवो दीर्घश्च 1 / 3 / 18 / संख्या-एकार्थात् वीप्सायाम् 4 / 4 / 2 / ष्णः संख्यायाः लुक् 2 / 1 / 21 / संघ-अङ्क-घोष-लक्षणेषु अञ् योजनः ष्फो वा 2 / 3 / 16 / 3 / 3 / 68 // ष्यङ: प्रधानस्य पुत्र-पत्योः स्वयोः इग् संघे अनुत्तराधरे 1 / 3 / 33 / यणः 5 / 1 / 11 / संज्ञा-पूरणयोः 5 // 2 // 35 // संज्ञायां वातपात् अन 3 / 3 / 83 / संख्या-अक्ष-शलाकाः परिणा द्यूते संज्ञायाम् 2 / 3 / 60 / . अन्यथावृत्तौ 2 / 2 / 6 / संज्ञः व्याप्ये वा 2 / 1 / 67 / संख्यातात् 1 / 3 / / संध्यादि-ऋतु-नक्षत्रात् अण् 3 / 2 / 76 / संख्यादिः समाहारे 2 / 2 / 76 / संनिकृष्टपाठानाम् 2 / 2 / 52 / संख्यादेः 2 / 3 / 23 / सम्-नि-वेः अर्दः 5 / 4 / 152 / संख्यादेः ष्ठंश्च 4 / 1 / 70 / संख्यादेः संख्ययात् अनपत्ये अजादेः संपदादिभ्यः क्विप् 113 / 63 / लुग् अद्विः 2 / 4 / 11 / सम्-परेः कृत्रः सुट् 5 / 1 / 136 / संख्यादेः संख्येयाल्लुक् 4 / 2 / 41 / सम्-प्रतेः अस्मृतौ 1 / 4 / 12 / संख्यादेर्गुणात् 4 / 4 / 43 / संप्रदाने चतुर्थी 2 / 1 / 73 / Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 182] चान्द्रव्याकरणम् [सम् - समः सम्-प्रात् जानुनः ज्ञः 4 / 4 / 119 / सदा-अधुना-इदानीम् तदानीम् सम्-प्र-उत्-ने: च कटच् 4 / 2 / 30 / 4 / 3 / 14 / संबोधने 2 / 1 / 14 / सदि-स्वञ्जलिटि 6 / 4 / 68 / संबोधने सौ 6 / 2 / 44 / सदः अप्रतेः 6 / 4 / 51 / संभवति अवहरति च 4 / 1 / 68 / सनः 1 / 4 / 111 // . . संभावने अलमर्थे तदर्थाप्रयोगे सनः क्तिचि लोपश्च 5 / 3 / 43 / 1 / 3 / 11 / सन्-आशंसः उः 1 / 2 / 117 / संभ्रमे यावद्बोधम् 6 / 3 / 14 / सनि श३।४०। संयोगस्य पदस्य 6 / 3 / 52 / सनि 5 / 4 / 6 / / संयोगात् इनः असमूहे 5 / 3 / 175 / सनि इवन्त-ऋध-भ्रस्ज-दम्भु-श्रि-स्व-युसंयोगादेः लिटि 6 / 2 / 65 / ऊर्ण-भर-ज्ञपि-सनि-तनि-पति-दरिद्रः संवत्सर-आग्रहायण्याः ठञ् च 3 / 3 / 16 / ... 5 / 4 / 116 / सम्-वि-प्र-अवात् सनो ग्रह-गुहश्च 5 / 4 / 137 / ' 1 / 4 / 65 / सन्-यङो: आद्यम् एकाच् द्वि: 5 / 1 / 1 / संशयम् आपन्न: 4 / 1 / 84 / संसृष्टे 3 / 4 / 22 / सनि अतः 6 / 2 / 126 / सन्-लिटोः जेः 6 / 1 / 88 / संस्कृतं भक्ष्यम् 3 / 1 / 14 / संस्कृते 3 / 4 / 3 / सन्वत् लघुनि णौ चङि अनग्-लोपे सकृत् 4 / 4 / / 6 / 2 / 140 / सपत्न-निष्पत्नात् अतिव्यथने 4 / 4 / 45 / सक्थि-अक्ष्णः स्वाङ्गात् षच् 4 / 4 / 66 / सपूर्वस्य वा 2 / 3 / 31 / सखि-दूत-वणिग्भ्यः यः 4 / 1 / 142 / सपूर्वात् 3 / 2 / 70 / सखी अशिश्वी 2 / 3 / 70 / सपूर्वात् 4 / 2 / 63 / सखी-अहर्-राजां टच् 4 / 4 / 76 / सपूर्वात् प्रथमान्तात् वा 6 / 3 / 21 / सखीआदयः (उणादि) 160 / सप्तम्यां च उपात् पीड-रुध-कर्षः सख्युः पत्युः 5 / 1 / 118 / 1 / 3 / 141 // सख्युः अशौ ऐत् 5 / 4 / 44 / सप्तम्यां पूर्वस्य 1 / 17 / सप्तमी आधारे 2 / 1 / 88 / सञ्-असिभ्यां क्थिन् (उणादि) सप्तमी आधिक्ये 2 / 1 / 60 / 1161 सप्तम्या बहुलम् 5 / 2 / 11 / सतीर्थ्यः 3 / 4 / 75 // सप्तम्याम् 4 / 2 / 121 / सत्त्वाश्लेषे 1 / 1 / 67 / सप्तम्याः त्रल् 4 / 3 / 10 / सत्याद् अशपथे 4 / 4 / 50 / समः 1 / 1 / 10 / सत्य-अर्थ-वेदानाम् आपुक् 6 / 1 / 55 // समः क्ष्णुवः 1 / 4 / 118 / Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समः -- सस्येन] चान्द्रव्याकरणम् [183 समः प्रतिज्ञायाम् 1 / 4 / 66 / सम्-उद्भयाम् अजः पशुषु 1 / 3 / 60 / समः समिः 5 / 2 / 110 / समः अकूजने 1 / 4 / 56 / समः सुटि सः 6 / 4 / 1 / समः गम्-ऋच्छि-पृच्छि-स्व-श्रु-वेत्तिसमज-मन-विद-सु-शी-भृञ -इणः भावे अर्ति-दृशः 1 / 4 / 71 / __ क्यप् 11378 / समो मुष्टौ 1 / 3 / 36 / समयात् यापनायाम् 4 / 4 / 44 / समो यु-द्रु-दुवः 1 / 3 / 12 / समया-निकषा-हा-धिक्-अन्तरा समो वा 1 / 1 / 124 / अन्तरेणयुक्तात् 2 / 1 / 50 / सम्राट् 6 / 4 / 10 / सम्-अव-अन्धात् तमसः . 4 / 4 / 64 / सर्तेः अपः सुक् च (उणादि) 2 / 86 / समः तते 5 / 2 / 88 / सर्तेः अयुः (उणादि) 1 / 33 / समस्तान्त-समीपयोः अयुवादीनाम् सर्वचर्मणा . कृतः 4 / 2 / / 6 / 4 / 112 / सर्वाः सर्वादिभ्यो हेत्वर्थैः 2 / 1 / 72 / समः तृतीयायुक्तात् 1 / 4 / 107 / / सर्वात् णो वा 4 / 1 / 13 / समांसमीन-अद्यश्वीन-आगवीनाः 4 / 2 / 21 / सर्वात् 4 / 1 / 11 / / समाजार्थान् समवैति 3 / 4 / 41 / सर्वात् सहः 1 / 2 / 25 / समानस्य पक्षादिषु 5 / 2 / 103 / सर्वादयो वृत्तिमात्रे 5 / 2 / 41 / समानात् 3 / 3 / 26 / सर्वादिपथि-अङ्ग-कर्म-पत्त्र-पात्रं व्याप्नोति समानादिभ्यः 2 / 3 / 33 / 4 / 2 / 11 / समान-अन्य-त्यदादेः उपमानात् व्याप्ये सर्वादि-बहुभ्यः अद्वयादिभ्यः 4 / 3 / 7 / दृशः क्स-कौ च 1 / 2 / 51 / सर्वादिभ्यः स्मै-स्मातौ 2 / 1 / 6 / समानोदरे शयितः 3 / 4 / 106 / / सर्वादीनाम् 4 / 3 / 60 / समापो नाम्नि 5 / 2 / 115 / सर्वान्नम् अत्ति 4 / 2 / 15 / समायाः खः 4 / 1 / 100 / सर्व-अभि-परि-उभयात् तसा 2 / 1 / 52 / समासान्तः 4 / 4 / 52 / सर्व-एक-अन्य-किम्-यत्-तद: काले दा समासे अङ्गले: सङ्गः 6 / 4 / 66 / 4 / 3 / 13 / समासे अनुत्तरस्य 6 / 4 / 36 / सर्व-उत्तर-दक्षिणादेः खः 3 / 4 / 76 / समाहारे 5 / 3 / 143 / ससंख्यस्य अनादौ सः 6 / 4 / 32 / / समाहारे नपुंसकम् 2 / 2 / 46 / / ससंख्यात् अमः क्यच् वा 1 / 1 / 24 / समिधः आधाने षेण्यण् 3 / 3 / 102 / स-सजुषो रुः 6 / 3 / 68 / सम्-उत्-आङभ्यः यमेः अग्रन्थे स-स्नौ स्तुतौ 4 / 4 / 24 / 1 / 4 / 12 / सस्येन परिजातः 4 / 2 / 73 / Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 184] चानव्याकरणम् [सह-सु सह-न-विद्यमानादे: 2 / 3 / 68 / सिन्धु-अपकरात् वा 3 / 3 / 4 / सहस्य सध्रिः 5 / 2 / 111 / सिन्ध्वादिभ्यः अण् 3 / 3 / 61 / . सहस्य सः अन्यार्थे 5 / 2 / 67 / सिपि रुर्वा 6 / 3 / 106 / सहस्र-वसन-विंशतिक-शतमानात् अण् / सि-मि-चीनां ईत् च (उणादि) 3 / 12 / 4 / 1 / 30 / सि ष-ढोः कः 6 / 3 / 72 / सहार्थे 2 / 1 / 57 / सि सः लिङतिङि 6 / 2 / 66 / . . . सहार्थेन 2 / 165 / सितया समिते 3 / 4 / 62 / सहि-चलि-वहः कि-किनौ 1 / 2 / 113 / सीधु-सुरात् पिबः 1 / 2 / 45 // सहि-वहोः ओत् 5 / 2 / 138 / . सु-अमोः नपुंसकात् 2 / 1 / 23 / / साक्षात् आदीनि 2 / 2 / 36 / सुखादिभ्यः 4 / 2 / 128 / साक्षात् द्रष्टा 4 / 2 / 60 / सुखादीनि वेदयते 1 / 1 / 35 / सात् 6 / 4 / 61 / सुचो वा 6 / 4 / 36 / साधोः 12 / 57 / / सुट् त-थोः 1 / 4 / 36 / साप्तपदीनं सख्ये 4 / 27 / सुपः 1 / 2 / / सारेर् अथिन् (उणादि) 162 / सुपः 4 / 3 / 61 / साऽस्य पौर्णमासी 3 / 1 / 18 / सुपः प्रकृतेर्नो लोपः 6 / 3 / 48 / सिकता-शर्कराभ्याम् 4 / 2 / 108 / सुपा अनाङ-मयेन 6 / 4 / 133 / सुपि 6 / 2 / 40 / सिचः 1 / 4 / 41 / सुपि नलोपः 6 / 3 / 28 / सिचि 5 / 3 / 45 / सुपि वलि तद्वत् 6 / 3 / 51 / सिचि दा-धा-स्थाम् इत् च 6 / 2 / 27 / सुपि हस्वः 2 / 2 / 04 / सिचेः कन् नुम्-हौ च (उणादि) सुपो यथेष्टम् 5 / 1 / / सुपः असंख्यात् लुक् 2 / 1 / 38 / सिचो यङि 6 / 4 / 2 / सुपि अचः 6 / 4 / 122 / सिचि अतङि 5 / 4 / 103 / सुप्रात-सुश्व-सुदिव-शारिकुक्ष-चतुरश्राः सिच्लोपः एकादेशे 6 / 3 / 30 / 4 / 4 / 105 // सि-तनि-गमि-मसि-सचि-अवि-धाञ सुप् सुपा एकार्थम् 2 / 2 / 1 / क्रुशिभ्यः तुन् (उणादि) 1 / 22 / सुभग-आढय-स्थूल-पलित-नग्न-अन्धसिधि-बुधि-स्विदि-मनि-पुष-श्लिषः श्यना प्रियात् अच्वेः भुवः खिष्णुच्-खुकना 5 / 4 / 131 / 1 / 2 / 46 / सिधो गतौ 6 / 4 / 63 / सु-वि-निर्-दुर्व्यः सम-सूति-सुपाम् सिध्मादिभ्यः 4 / 2 / 100 / 6 / 4 / 75 // 367 / Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ eta सुषामावयः -- स्तोक] चान्द्रव्याकरणम् [185 सुषामादयः 6 / 4 / 86 / सेहिङ 1 / 4 / 21 / सु-संख्यादेः 4 / 4 / 126 / सोः 5 / 166 / सु-सर्व-अर्धात् जनपदस्य 6 / 1 / 23 / सोः स्य-सनोः 6 / 4 / 67 / सु-सू-धाञ -गृधे : क्रन् (उणादि) 3 / 11 / सोढः 6 / 4 / 65 / सुस्नातादीन् पृच्छति 3 / 4 / 46 / सोम-वरुणयोः ईत् 5 / 2 / 25 / सु-हरित-तृण-सोमात् जम्भात् 4 / 4 / 114 / सोमात् टयण् 3 / 1 / 28 / सुहृद-दुहृदौ मित्र-अमित्रयोः 4 / 4 / 138 / सो लोपः अनन्त्यस्य 1 / 4 / 36 / सूक्त-साम्नोः छः 4 / 2 / 153 / सोऽस्य ग्रामणीः 4 / 2 / 83 / सूचन-अवक्षेपण-सेवा-साहस-यत्न-कथा- सोऽस्य प्राप्तः समयात् 4 / 1 / 123 / उपयोगेषु कृषः 11478 / सोऽस्य अभिजनः गिरिभ्यः शस्त्रसूचेः स्मन् (उणादि) 2 / 102 / जीविषु 3 / 3 / 58 / सूतका-पुत्रका-वृन्दारकाः 6 / 1 / 75 / सौ अनडुहः 5 / 4 / 36 / सु-उत्-पूति-सुरभेः गन्धस्य इत् 4 / 4 / 123 / सो असंबुद्धौ 5 / 3 / 10 / सूत्रात् संख्याकात् 3 / 1 / 42 / सौ वा इतौ 5 / 1 / 126 / सूर-मर्त-क्षेम-यविष्ठात् 4 / 4 / 27 / / सौवीरेषु वा 2 / 4 / 80 / सूर्य-अगस्त्ययोः छे च 5 / 3 / 153 / स्कृञः 6 / 2 / 66 / सूर्या देवी 2 / 3 / 47 / स्कोः संयोगाद्योः अन्ते च 6 / 3 / 58 / सू-विषिभ्यां कित् (उणादि) 1 / 30 / स्तनि-हृषि-पुषि-गडि-मडिभ्यो णे इत्नुच् सृ-घस्-अदः क्मरच् 1 / 2 / 106 / (उणादि) 1 / 26 / सृजः श्राद्धे 1 / 4 / 103 / स्तम्ब-शकृद्भयां व्रीहि-वत्सयोः इन् 112 / 8 / सृजि-दृशः 5 / 4 / 163 / स्तम्भु-स्तुम्भु-स्कम्भु-स्कुम्भु-स्कुभ्यः / सृजि-दृशोः झलि अम् 6 / 2 / 5 / 1 / 116 सृजेः असुम् च (उणादि) 1 / 19 / / स्तम्भेः 6 / 4 / 52 / सृ-भृ-वृ-स्तु-द्रु-स्र-श्रुवो लिट: 5 / 4 / 158 / स्तुतौ भ्रातुः 4 / 4 / 146 / / सेटि 5 / 3 / 53 / स्तु-सुगः अतङि 5 / 4 / 169 / सेनाङ्गानां बहुत्वे 2 / 2 / 56 स्तु-स्वञ्ज-सिवादीनाम् वा अड्व्यवाये सेनान्त-कारु-लक्ष्मणात् इञ् च 2 / 4 / 85 / 6 / 4 / 56 / सेनाया वा 3 / 4 / 43 / स्तेयम् 4 / 1 / 143 / सेना-सुरा-शाला-निशा वा 2 / 272 / स्तोः श्च-ष्टुभ्यां तौ 6 / 4 / 136 / सेयुवो वा 2 / 1 / 36 / स्तोः षणि 6 / 4 / 48 // सेयुवो वा 6 / 2 / 54 / स्तोक-अल्प-कृच्छ्र-कतिपयात् असत्त्वार्थात् सेनासे 6 / 376 / करणे 2 / 187 / Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 186] चान्द्रव्याकरणम् [स्तोमे --बु स्तोमे डट् 4 / 1164 / / स्थूलादिभ्यः कन् 4 / 3 / 27 / स्तोः ऊ च (उणादि) 2 / 83 / स्नु-नमः स्वयम् 1 / 4 / 102 / स्त्रियां कुरु-कुन्ति-अवन्तिभ्यः 2 / 4 / 105 // स्पर्धायाम् आङः 1 / 4 / 77 / स्त्रियां क्तिन् 1 / 3 / 74 / स्पर्श-द्रवमूर्योः श्यः 5 / 1 / 26 / स्त्रियां पुंवत् उक्तपुंस्कम् अनूङ एकार्थे स्पृश-मृश-कृष-तृप-दृप-सृपां वा 6 / 2 / 6 / स्त्रियाम् अप्रधानपूरणी-प्रियादौ स्पृश-मृश-कृष-तृप-दृपो वा 1 / 1 / 61 / 5 / 2 / 26 / स्पृशः अनुदकात् क्विन् 1 / 2 / 48 / स्त्रियां लुक् 2 / 4 / 30 / स्पृहि-गृहि-पति-शीङ: आलुच् 1 / 2 / 104 / स्त्रियां वा 6 / 2 / 52 // स्पृहेः आय्यः (उणादि) 2 / 113 / / स्त्रियाः 5 / 3 / 85 // स्फायः स्फी: 5 / 1 / 32 / स्त्रियाः 6 / 2 / 55 // स्फायो वः 6 / 1153 / स्त्रियाम् 2 / 3 / 1 / स्फुरि-स्फुलोर्घत्रि 5 / 1 / 51 / स्त्रियाम् 5 / 4 / 46 / स्फुरि-स्फुलोनिर्-नि-विभ्यः 6 / 4 / 64 / स्त्रीणाम् 2 / 1 / 37 / स्मपरे लङ च 1 / 3 / 5 / . स्त्रीनाम्नि 4 / 4 / 132 / स्-महतोर्नुमि 5 / 3 / / स्त्री-पुंसाभ्यां नञ् -स्नौ 2 / 4 / 13 / / स्मि-अजस-हिंस-दीप-नम-कम-कम्पो रः स्त्रीबहुषु फक् 2 / 4 / 34 / 1 / 2 / 116 // स्त्री-यूभ्याम् 2 / 1 / 35 // स्मृत्युक्तौ लुट् 1 / 2 / 7 / स्थः 6 / 1167 / स्मृ-दृशः 1 / 4 / 112 / स्थः प्रतिज्ञा-निर्णय-प्रकाशनेषु 1 / 4 / 64 / स्मृ-द-त्वर-प्रथ-प्रद-स्त-स्पशाम् अत् स्थण्डिले शेते व्रती 3 / 1 / 13 / / 6 / 2 / 142 स्थलादिना 4 / 1 / 6 / / स्मे लोट् 113 / 125 // स्थादीनां द्विरुक्तेन तस्य च 6 / 4 / 58 / स्मेः च 5 / 1156 / स्थानान्त-गोशाल-खरशालात् लुक् स्मै च तीयात् 2 / 1 / 16 / 3 / 3 / 6 / स्मैवतः स्याड् अत् च 6 / 2 / 57 / स्था-भास-पिस-कसो वरच् 1 / 2 / 122 / स्य-तासौ ल-लुटोः 1 / 1 / 56 / स्था-स्ना-पा-व्यधि-हनि-युधः कः / स्यदो जवे 5 / 3 / 32 / 1 / 3 / 46 / स्यन्दो यणः इग् धश्च (उणादि) 1 / 17 / स्थास्नुः 1 / 2 / 65 / स्यमो यः ईत् च (उणादि) 2 / 10 / स्थिरादयः (उणादि) 3 / 6 / स्य-सिचि कृत-चूत-च्छृद-तृद-नृतः स्थूल-दूर-युव-क्षिप्र-क्षुद्राणां यणादेः य-वोः __5 / 4 / 120 // ___एक च 5 / 3 / 156 / जु-रिङभ्यां तुट् च (उणादि) 3 / 106 / Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नुवः-- हस्तप्राप्ये] चान्द्रव्याकरणम् [187 स्रुवः चिक् (उणादि) 372 / हनः 6 / 4 / 116 / स्रु-श्रु-द्रु-गु-प्लु-च्यूनाम् वा 6 / 2 / 131 / हनः कुत्सायाम् 1 / 2 / 64 / स्वञ्जः 5 / 3 / 27 / हनस्तोऽचिण्-णलोः 6 / 1140 / स्वन-हसो वा 1 / 3 / 52 / हनः घ्नी हिंसायाम् 6 / 2 / 83 / स्वपः 5 / 1 / 23 / हनः जः 5 / 3 / 60 / स्वप्नक् तृष्णक् 1 / 2 / 116 / हनो जघ च (उणादि) 2072 / स्वर्गादिभ्यः यत् 4 / 1 / 133 / हनो वध लिङि 5 / 4 / 86 / स्वसुः 2 / 4 / 66 / ह-य-व-र-लण् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 5) स्वसृ-पत्योर्वा 5 / 2 / 16 / हरति उत्सङ्गादिभ्यः 3 / 4 / 14 / स्वागतादीनाम् 6 / 1 / 18 / हरितादिभ्यः अञः 2 / 4 / 36 / स्वाङ्गात् तस्-ना-धार्थं भुवा च 2 / 2 / 43 / हल प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 13) स्वाङ्गात् अकृत-मित-जात-प्रतिपन्नात् हल: 5 / 3 / 2 / अन्यार्थे 2 / 3 / 57 / हल-सीरात् ठक् 3 / 3 / 88 / स्वाङ्गात् अप्रधानात् 2 / 3 / 61 / / हल: ति-सिपः 5 / 1 / 65 / स्वाङ्गात् ईद् अमानिनि 5 / 2 / 37 / हलस्य कर्षे 3 / 4 / 66 / स्वाङ्गेषु शक्तः 4 / 271 / हलादे: इजुपान्तात् 6 / 4 / 125 / स्वात् ईर-ईरिणो: .5 / 1 / / हलादेः उपान्तस्य अश्वस-क्षण-ह-म्-य्स्वादिभ्यः नुः 1 / 165 / एदितः अतः 6 / 17 / स्वादीनाम् 6 / 4 / 57 / हलि पिति उतः औत् 6 / 2 / 30 / स्वाद्वर्थात् अदीर्घात् 1 / 3 / 135 / हलि मः 6 / 4 / / स्वामिन् ईशे 4 / 2 / 143 / हल: अचः 6 / 1 / 4 / स्वाम्ये अधिना 2 / 1 / 61 / हलः झरां झरि सस्थाने लोपो वा स्वार्थे 2 / 3 / 16 / 6 / 4 / 155 / स्वार्थे 5 / 4 / 138 / हल: अनादेः 6 / 2 / 112 / स्व-सूङ-ऊदितः 5 / 4 / 107 / हल: अनिदितः क्ङिति उपान्तस्य 5 / 3 / 23 / स्-वो वा-ऽमौ 1 / 4 / 25 / * सु-औ-जस्-अम्-औट-शस्-टा-भ्यां-भिस्-डे हल: यादेः 5 / 3 / 152 / भ्यां-भ्यस्-ङसि-भ्यां-भ्यस्-डस्-ओस हल: हौ शानच् - 1 / 1 / 102 / आम्-ङि-ओस्-सुप् 2 / 1 / 1 / हलि अश् 5 / 4 / 75 / हवः 1 / 3 / 62 / ह एति 6 / 2 / 101 / हशि च अतो रो: 5 / 1 / 116 / हनः 1 / 2 / 37 / हस्त-दन्तात् जातौ 4 / 2 / 130 / हनः 5 / 3 / 46 / हस्तप्राप्ये घेः अस्तेये 1 / 3 / 31 / Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् 188] - [हस्ति-हवा हस्ति -पुरुषात् अण् च 4 / 2 / 40 / / हृदयस्य अणि हृत् 5 / 2 / 55 / हस्तेन 113 / 137 / हृद्-भग-सिन्धोः पूर्वस्य च 6 / 1 / 26 / हस्ति-अचित्तात् 3 / 1 / 4 / हृ-सृ-तडि-रुहि-युषिभ्यः इतिः (उणादि) हाकः 5 / 3 / 106 / 376 / हाकः त्वि 6 / 2 / 65 // हृ-सः अवात् 1 / 1 / 146 / हायनात् वयसि 2 / 3 / 11 / हेतु-फलयोः 1 / 3 / 120 / हायनान्तयुवादिभ्यः अण् 4 / 1 / 146 / / __ हेतौ 2 / 1 / 68 / हिंसायां प्रतेश्च 5 / 1 / 136 / हे म-न-य-व-लपरे ते वा 6 / 4 / 11 / हिंसात् एकाप्यात् 1 / 3 / 140 / हेमन्तात् वा तलोपश्च 3 / 2 / 80 / हितनाम्नो वा 5 / 3 / 172 / हेमार्थात् परिमाणे 3 / 3 / 107 / हित-सुखाभ्यां चतुर्थी च 2 / 167 / हेः अचङि 6 / 187 / हिता भक्षाः 3 / 4 / 66 / हैयंगवीनं संज्ञायाम् 3 / 3 / 121 / . हिनु-मीना-आनि 6 / 4 / 115 // हो ढः 6 / 3 / 62 / . . हिमं सहते चेलुः 4 / 2 / 156 / हो द्वे च (उणादि) 2 / 6 / हिम-हति-काषि-ष्ठन्-यति पद् 5 / 2 / 56 / हः व्रीहि-कालयोः 1 / 1 / 156 / हिमादिभ्यः 4 / 2 / 136 / हः हिर् च (उणादि) 2 / 116 / हिम-अरण्यात् महत्त्वे 2 / 3 / 52 / / हो वा 5 / 3 / 110 / हीने 2 / 1 / 58 / हस्वः 6 / 2 / 116 / हीयमान-पापयुक्तात् 4 / 3 / 4 / हस्वस्य अतिङि पिति तुक् 5 / 1 / 66 / हु-झल: अनिटः हेः धिः 5 / 3 / 68 / हस्वात् 6 / 3 / 56 / हु-स्नुवोः अलिटि 5 / 3 / 61 / हस्वात् सुपः ति 6 / 4 / 87 / हूनां द्वे च 1 / 1184 / हस्वापो नुट् . 2 / 1 / 32 / हृ-क्रोः एणुः (उणादि) 1 / 27 / / हस्वे 4 / 3 / 70 / . हृ-क्रोर्वा 2 / 1 / 45 / ही-इषि-कृशिभ्यः कुक्-सुग्-आनुक् हुस्रो गतिशीले 1 / 4 / 61 / . (उणादि) 1 // 35 // हो दुक् च (उणादि) 2 / 108 / / हु लादो ह लद् 6 / 3 / 12 / हो दृति-नाथात् पशौ 1 / 2 / 6 / / ह वः 5 / 1 / 36 / हृदयस्य प्रिये 3 / 4 / 67 / ह वा-लिप्-सिच: 1 / 171 / Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्र-उणादिसाधितशब्दानाम् अकारादिक्रमेण संकलनम्। शब्दः पादः सूत्रम् शब्दः पादः सूत्रम् अंहस् 3 / 100 / अन्दु 1147 / अकट 2 // 32 // अपष्ठु 1 / 21 / अक्ष 3 / 63 // अस्तु 1 / 25 / अक्षर 3 / 18 // अप्सरस् 3166 / अक्षि 1167 / अब्द 2 / 61 / अग्नि 177) अमति 186 / अग्र 3 / 14 / अमत्र 3 / 38 अङकुश 3 / 56 अम्बरीष 3060 / अङ्ग 2 / 26 / अम्भस् 3 / 110 / अङ्गार 321 अयस् 366 / अङ्गिरस् 3 / 66 / अरणि 174 / अङ्गुर 3 / 1 / / अरण्य 21115 // अङ्गुर 1163 / अरत्नि 172 / अङ्गुलि 1 / 63 / अरुस् 3 / 62 / अरूष 3157) अङ्गष 3 / 57 / अर्क 2 / 3 / अजिन 2 / 63 / . अचिस् 3 / 86 / अजिर 3 / 6 / अर्जुन 2 / 80 / अञ्जलि. 173 / अर्ण 2176 / अणु 16,7 / अण्ड 2 // 36 / अर्णस् 3 / 113 / अतस 365 / अर्थ 2056 / अतिथि 1 / 63 / अर्पिश 3 / 54 / * अद्भुत 2 / 46 / अर्भक 2 / 2 / अद्रि 170 / अर्म 2 / 100 / अधम 2 / 106 / अर्य 3 / 114 / अनेहस् 366 / अर्शस् 3 / 112 // अन्त 2 / 50 / अलाबू 1147 / अन्त्र 3 / 40 / अलीक 2 // 18 // Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [अवट-- उन्न 190] अवट 2 // 32 // अवनि 174 / अवभृथ 2 // 55 // अवि 1151 / अविन 2062 / अविष 3 / 61 / अविषी 3 / 61 / अवी 160 / अव्यथिष 3 / 62 // अशनि 174 / अश्रि 1160 / अश्व 2061 / . असु 1 / 8 / असुर 3 / 3 / अस्थि 1161 / अहि 1155 / आखु 1 / 20 / आगन्तु 1 / 22 / आगस् 3 / 102 // आगामिन् 386 / आजि 1 / 57 / आडू 1147 / आति 1157 / आपणिक 2 / / आपतिक 26 / आम्र 36 / आयुस् 3 / 63 / आवसथ 2 / 53 / आशु 1 / 1 / इक्षु 1 // 35 // इध्म 2 / 103 / इन 275 // इन्दु 18 / इन्द्र 3 / 13 / इभ 2067 / इरा 3 / 14 / इरिण 2166 / इल्वला 3153 / इषिर 36 / इषीका 2 // 18 // इषु 1 / 13 / / इष्टका 2 / 14 / उक्थ 2 / 58 / उक्षन् 380 / उग्र 3 / 14 / उत्पल 3 / 46 / उदक 2 / 2 / उद्गीथ 2056 / उद्र 3 / 10 / उरस् -3 / 111 / उरु 1 / 16 / उलप 2 / 87) उलूक 2 / 22 / उल्का 2 / 4 / . उल्ब 2 / 2 / उल्मुक 2 / 4 / उशनस् 3 // 65 // उशीर 3 / 28 / उषप 2 / 87 / उषस् 3 / 101 / उषिज् 3 / 73 / उष्ट्र 3 / 37 / उष्ण 275 / उस्र 3 / 10 / / Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उना--कलक] उस्रा 3 / 10 / ऊन 275 / ऊरु 1 / 16 / ऊर्णा 2 // 38 / ऊर्मि 1165 / ऋक्ष 3 / 64 / ऋजीक 2 / 16 / ऋजीष 360 / ऋज्र 3 / 14 / ऋतु 1 / 25 / ऋषभ 2 / 14 / . एक 2 / 1 / एत 2 / 50 / एधतु 1 / 25 / एनस् 3 / 107 / . . ओजस् 3 / 104 / ओतु 1 / 22 / ओदन 2068 / ओष्ठ 2156 / कंस 3 / 63 / कक्ष 3163 / . कचप 2 / 87 / कचूक 2 / 22 // कच्छ 2 / 31 / कच्छू 1144 / कखार 3 / 22 / कट्वर 3 / 15 / 'कठोर 3 / 34 / कडत्र 3 / 3 / कडार 3 // 21 // कडित्र 3 / 42 / कणीका 2 / 16 / चान्द्रव्याकरणम् कणीचि 168 / कण्ठ 2 / 36 / कण्व 2 / 11 / कनक 2 / 20 / कन्तु 1 / 24 / कन्द 2060 / कन्दु 1 / / कन्या 2 / 110 / कपि 1155 / कफेलू 1147 / कमट 2 // 32 // कमठ 2 / 36 कमल 3 / 45 / कम्बू 1147 / करक 2 / 20 / करण्ड 2 / 37 / करभ 2 / 63 / करीर 3 / 27 / करीष 3 / 5 / करुणा 2180 / करेणु 1 / 27 / कर्क 2 / 3 / कर्कन्धू 1 / 47 / कर्ण 2074 / कर्पास 366 / कर्पूर 3 / 43 / कर्पू 1147 / कलत्र 3 / 3 / कलभ 2193 / कला 3 / 46 / कलक 2 / / Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [कवि--क्षेम 192] कवि 1151 // कषेरू 1147 / काक 2 / 1 / काणूक 2 / 22 / कारि 160 / कारु 11 // कार्षक 27 / काष्ठ 2 // 54 // कासू 1147 / किंशारु 1 / 3 / किकि 183 / किङ्किणीका 2 / 16 / किरण 270 / किरीट 2 / 34 / किल्बिष 3 / 62 / कीनाश 3 / 56 / कुक्षि 1166 / कुतप 2 / 7 / कुटीर 3 / 26 / कुट्मल . 3 / 48 / कुणप 2 / 87 / कुणाल 3150 / कुण्ड 2140 / कुन्द 2061 कुप्र 3 / 14 / कुमार 3 / 23 / कुमारयु 1 / 21 // कुम्भीर 3 / 26 / कुरव 3 / 17 / कुरीर 3 / 26 / कुरु // 15 // कुलटा 2 // 32 // चान्द्रव्याकरणम् कुश 3 / 55 / कुष्ठ 2054 / कूप 2 / 04 / कृकवाकु 1 / 4 / कृच्छ 3 / 10 / कृत्तिका 2 // 13 // कृत्स्न 276 / कृपीट 2 / 34 / कृवि 1183 / कृशानु 1 / 35 // कृषक 27 / कृषि 1152 / कृषिक 2 / / कृष्ण 275 / . कृसरा 3 / 16 / केतु 1 / 25 / केवल 3 / 46 / कोष्ठ 2156 / ऋतु 1 / 25 / ऋयिक 2 / 17 / क्रिमि 1153 / क्रोष्टु 1 / 22 / क्षत्तृ 1150 / / क्षिपक 2 / 5 / क्षिपणि 1175 // क्षिपणु 1 / 32 / क्षिपि 1152 / क्षिप्र 37 / क्षीर 3 / 26 / क्षुद्र 37 / क्षुर 3 / 14 / - क्षेम 2 / 100 / Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रिव्याकरण [193 सोम-चन्द्र क्षोम 2 / 100 / खजाक 2 / 16 / खट्वा 2 / 61 खण्ड 2 / 36 / खदिर 3 / 6 / खरु 1140 / खर्जू 1447 / खजूर 3 / 43 / खलत 2 / 4 / खष्प 2 / 8 / खिद्र 3 / 10 / खुर 3 / 14 / खुराक 2 / 16 / गङ्गा 2 / 28 / गडयन्त 2 / 45 / गण्ड 2139 / गदयित्नु 1 / 26 / गन्तु . 1122 // गभीर 3 / 26 / गमथ 2 / 53 / / गमिन् 385 // गम्भीर 3 // 26 // गरुत् 375 // गर्ग 2 / 26 / गर्त 2 / 50 / गर्दभ 2 / 63 / गर्भ 266 / गरमुत् 375 // गर्व 2060 / / गल 3 / 46 / गह्वर 3 / 16 / गातु 1125 // गाथा 2056 / गुरु 1 / 15 / / गुल्फ 2 / 86 / गुवाक 2 / 16 / गूथ 2 / 5 / गृधु 1 / 13 / गृध्र 3 / 11 / गो 1162 / गोधूम 2 / 68 / गोपीठ 2056 / गोमायु 1 / / गौर 3 / 14 / गौरी 3 / 14 / ग्रन्थि 1151 // ग्रहणि 1174 / ग्राम 2 / 101 / ग्रीवा 262 / ग्रीष्म 2 / 106 / ग्लो 1193 / धर्म 2 / 106 / घाति 1156 / घासि 1157 / घृणि 180 / घृत 2 / 51 / घोर 3 // 35 // चकोर 3 / 34 / चक्षुस् 3 / 64 / चण्ड 2 / 36 / चतुर 3 / 1 / चत्वर 3 // 15 // चण्डिर 315 // चन्द्र 37 / . Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रमस् 398 // चपल 3 / 46 / चमस 365 / चमू 1143 / चरम 2 / 66 / चरु 115 // चषाल 3 / 53 / चाटु 1 / 2 / चाण्डाल 3 / 46 / चारु 112 / चित्र 3 / 4 / / चीर 3 / 12 / चीवर 3 / 16 / चुक्र 3 / 10 / चुब 3 / 14 / चूणि 180 / छत्वर 3 / 16 / छदिष् 386 / छन्दस् 3 / 106 / छर्दिस् 386 / छवि 1183 / छाया 2 / 106 / छित्वर 3 / 16 / छिदिर 3 / 6 / छिद्र 38 / जगत् 370 // जघन 272 / जङ्घा 2 // 30 // जटा 2 // 33 // जटायु 1 / 21 / जठर 3 / 31 / जतु 1 / 10 / चान्द्रव्याकरणम् [चनमस् - जीवि जत्रु 1140 / जनक 2 / 20 / जनि 1157 / जनुस् 361 / जन्तु 1 / 24 / जन्म 21103 / जन्मन् 381 जन्यु 1 // 34 // जम्बू 1147 जयत 2 / 48 / जयन्त 2 / 45 / जरन्त 2 / 43 / जरायु 1 / 3 / जरूथ 2057 / / जर्जरीका 2 / 16 / जर्त 2152 / जलूका 2 / 22 / जहक 2 / 6 / जह नु 1 / 31 / जागृवि 1182 / जानु 1 / 2 / जामातृ 1150 / जाया 2 / 110 / जायु 1 / 1 / जिन 195 // जिह्वा 2062 / जीर 36 / जीर्ण 2176 / जीवथ 2153 / जीवन्ती 2 // 44 // जीवातु 1 / 25 // जीवि 1183 / Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [195 जुण्ड-बबू] जुण्ड 2140 / जू 3 / 68 / जूणि 1180 / ज्योतिस् 3 / 10 / . तक 37 / तक्षन् 376 / तडाक 2 / 16 / तडित् 376 / तण्डुल 3 / 53 / तनय 2 / 107 / तनु 1 / / . तनू 1143 / तन्तु 1 / 22 / तन्द्री 1188 / तपस् 3 / 100 / तरणी 174 / तरी 160 / तरीष 3156 / तरु 1 / / तरुण 2180 / तर्कु 1 / 21 / तर्ण 2074 / तर्दू 1145 / तर्ष 3163 / तलुन 2180 / तल्प 2 / 2 / तसर 3 / 16 / तात 2052 / ताम्बूल 3 / 44 / ताम्र 36 / तारा 1194 / तालु 1 / 2 / ताविष 3 / 62 / ताविषी 3 / 62 / तिग्म 2 / 105 // तित्थ 2056 / तिन्तिडीका 2 / 16 / तिमिर 3 / 5 / तिरिट 2 / 34 / तीक्ष्ण 278 // तीर्थ 2058 / तीवर 3 / 16 / तुण्ड 2 / 40 / . तुत्थ 2 / 58 / तुन्द 2 / 61 / तुहिन 2066 / तूर्णि 1180 / तृण 2176 / तृप्र 38 // तृष्णा 275 / तेजस् 3 / 100 / त्रपु 1 / / पुस् 3 / 2 / त्वष्ट 1150 / त्सरु 1 / 21 / दक्षिणा 2 // 65 // दण्ड 2 / 36 / दन्त 2 / 50 / दभ्र 3 / 10 / दरद् 378 // दरि 1151 / दर्दरीक 2 / 16 / दर्दुर 3 // 2 // दद्रू 1146 / Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 196] दर्भ 2 / 15 / दर्वि 181 / दर्शट 2048 / दलप 2187 / दल्मि 1164 / दस्यु 1134 / दह, 38 / दाक 2 / 3 / दात्र 3 / 36 / दानु 1 / 28 / दारु 1 / 2 / दारुण 2 / 80 / दाश 3 // 56 // दिधिषू 1 / 47 / दिवि 1183 / दीदिवि 1183 / दुष्ठु 1 / 21 / दुहित 1150 / दूत 2 / 51 / दूर 3 / 10 / दृति 1184 / दृन्भू 1147 / दृषद् 378 / देवट 2 / 32 // देवयु 1 / 21 / देवर 3 / 20 / देवृ 1148 / द्रविण 2 / 65 / द्रू 3 / 68 / द्रोण 2074 / चान्द्रव्याकरणम् [दर्भ -- माकु धन्वन् 376 / धमक 2 / / धमनि 174 / धरणि 1174 / धरिमन् 3 / 83 / . . धर्म 2 / 100 / धाक 2 / 3 / धातु 1 / 22 / धात्री 3 / 36 / धाना 2073 / धिषणा 271 / धिष्ण्य 2 / 11 / .. धीन 275 / .. धीर 3 / 11 / / धीवर 3 / 16 / धूक 2 / 2 / धूम 2 / 103 / धूर्त 2050 / धूसर 3 / 16 / . धृषु 1 / 13 / धेनु 1 / 31 / ध्वनि 1151 / नक्षत्र 3138 / / नदनु 1132 / ननान्दृ 1150 / नन्दन्ती 2 / 44 / नप्तृ 1150 / नमत 2 / 48 // नमाक 2016 नरक 2 / 20 / नशाक 2 / 16 / नाकु 1 / 10 / धनु 121 // धनुस् 3 / 12 / Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [197 नाभि--पित] नाभि 1156 / नामन् 382 / निधान 2070 / निपथि 3 / 10 / निभृथ 2 // 56 // निम्ब 2 / 12 / निर्ऋथ 2 / 5 / निशीथ 2 / 56 / नीर 318 // नीवर 3 / 16 / नीवि 1156 / . नृ 1146 / नृतु 1147 / नेत्र 336 / नेम २।१००।नेमि 1164 / नेष्ट 1150 / नो 1163 / न्यङ्क 1 / 12 / पचत 2148 / पटायु 1 / 21 / पटीर 3 / 26 / पटु 118 पतंग 2 / 27 / पतत्रीका 2 / 16 / पताका 2 // 15 // पति 185 पत्तन 2064 / पत्त्र 3 / 36 / / पथिन् . 3 / 84 / पद्म 2 / 100 / पनस 365 / पपी 1 / 10 / पयस् 3 / 100 / पयोधस् 367 / परमेष्ठिन् 3 / 08 / परशु 1138 / परिव्राज् 371 / परीर 3 / 26 / परुस् 3 / 12 / पर्जन्य 2 / 117 // पर्ण 2073 / पर्प 2 / 2 / पर्परीका 2 // 16 // पर्वत 2048 / पशु 1138 / पलित 2052 / पल्वल 3153 / पवित्र 3 / 42 // पशु 1 / 18 / पशुपति 1185 // पांसु 1 / / पाक 2 / 1 / पाणि 1157 / . पाताल 3 / 46 / पात्र 3 / 36 / पादू 1147 / पाप 2 / 82 / पायु 1 / 1 / पाणि 1180 / पिचूक 2 / 22 / पिञ्जूल 3 / 43 / पिठर 3 / 33 / पितृ 150 / Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [पिनाक-भानु प्राछ् 3 / 66 / प्राणथ 2 / 53 / पू 3 / 68 / प्रोथ 2 / 56 / प्लीहन् 380 / फल्गु 1 / 11 / / 198] पिनाक 2 / 16 / पियाल 3 / 50 / पीतु // 25 // पीठ 2058 / पीयूष 3 / 57 / पीवर 3 / 16 / पुण्य 2 / 118 / पुत्र 341 / पुनर्भू 1147 / पुरीष 3 / 60 / / पुरु 1 / 13 / पुरुष 3 / 58 / / पुरोधस् 367 / पुष्कर 3 // 25 // पूर्ण 275 / पूरण 270 / पूषन् 3 / 80 // पृथु 1 / 13 / पृथुक 2 / 2 / पृषत् 377 / पृषत 2 / 46 / पृष्ठ 2156 / पृष्वि 1183 / पेरु 1136 / पोत 2050 / पोतृ 1150 / पोत्र 3 // 42 // पोषयित्नु 1 / 26 // प्रतिदीवन् 376 / प्रथम 2066 / प्रशास्तृ 1150 / प्रहि // 6 // बदर 3 / 32 / बदरी 3 / 32 / बधिर 3 / 5 / बन्धु 1 / बन्ध्या 21110 / बलि 1151 // बहु 1 / 20 / बाष्प 2 / 5 / बाहु 1 / / बिम्ब 2 / 12 / बुध्न 275 / अध्न 2 / 73 / भद्र 3 / 14 / भन्दाक 2 / 16 / भयानक 2 / 11 / भरक 2 / 20 / भरत 2 / 4 / भरथ 2053 / भरिमन् 3 / 83 / भरु 1 / 5 / भवन्त 2 / 45 / भवन्ति 1171 / भस्मन् 3 / 81 भातु 1 // 25 // भानु 1 / 28 / Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाम-- मरुत्] भाम 2 / 100 / भालूक 2 / 22 // भाविन् 387 / भासन्त 2145 / भित्तिका 2 / 13 / भिदिर 3 / 6 / भिदु 1 / 13 / भीक 2 / 2 / भीम 2 / 104 / भीष्म 2 / 104 / भुजिष्य 2 / 111 / भुज्यु 1134 / भुविस् 360 / भूक 2 / 4 / / भूनि 180 भूमि 1165 / भूरि 170 / भूणि 180 भृगु 1 / 18 / भृङ्ग 2 / 26 / भृङ्गार 3 / 22 / भूमि 1 / 60 / भृश 3 / 55 / भेक 2 / 1 / भेर 3 / 14 / भेरी 3 / 14 / भ्रमर 3 / 20 / भ्रातृ 150 / भ्रू 1142 / . चान्द्रव्याकरणम् मज्जन् 3 / 80 / मञ्जूषा 3157 / मणीका 2 / 16 / मण्डन 2070 / मण्डप 287 मण्डयन्त 2145 / मण्डूक 2 / 21 / मत्सर 3 // 18 // मत्स्य 2 / 112 / मथिन् 3 / 4 / मथुरा 3 / 1 / मदयित्नु 1 / 26 / मदार 3 // 21 // मदिरा 3 // 5 // मद्गु 1 / 5 / मद्र 37 / मधु 1 / 10 / मधूक 2 / 22 / मनस 365 / मनाक 2 / 16 / मनु 1 / / मन्तु 1 / 24 / मन्द 2161 // मन्दार 3121 // मन्दिर 3 / 5 / मन्दुरा 331 मन्द्र 37 / मन्यु 1 / 34 / मयु 1 / 21 / मरीचि 1168 / मरु 115 // मरुत् 3174 / 2010 मकुर 3 / 2 / मघवन् 380 / मङ्गल 3 / 52 / Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [महक --रतू 200] मरूक 2 / 22 / मर्क 2 / 1 / मर्कट 2 / 32 / मर्जू 1147 / मत 2 / 50 / मलूक 2 / 22 / मसूर 3 / 30 / मस्तु 1 // 22 // महत् 377 / महिन 2 / 66 / मांस 3 / 63 / मातरिश्वन् 3 / 8 / मातृ 1150 / माया 21106 / मायु 1 / 1 / मार्जार 3 // 22 // माला 3 // 53 // मितद्रु 1 / 21 / मित्र 3 / 40 / मित्रयु 1 / 21 / मीर 3 / 12 / मीवर 3 / 16 / मुचीर 316 / मुण्ड 2140 / मुद्ग 2 / 26 / मुद्रा 38 / मुनि 1154 / मुष्क 2 / 4 / मुहिर 3 / 6 / मूत्र 3 / 37 / मूर्ख 2 / 24 / मूर्धन् 380 / मूषिक 2 / / मृगयु 1 / 21 / मृडीक 2 // 16 // मृत्यु 1136 / मृदु 1 / 13 / मृद्वीका 2 // 16 // मेरु 1 // 36 // यक्ष्म 2 / 100 / यजुस् 3 / 12 / यमत 2 / 48 / यमुना 2 / 80 / ययी 1160 / यवस 365 / यवागू 1141 / . यशस् 33103 / यातु // 25 // याम 2 / 100 / युग्म 2 / 105 // युध्म 2 / 103 / . युवन् 376 / यूका 2 / 2 / यूथ 2 // 56 // यूप 2 / 04 / योनि 176 / योषित् 3 / 76 / रजत 2 / 46 / रजन 2066 / रजनी 2166 / रजस् 3 / 101 / रज्जु 1 / 16 / रण्डा 2 / 36 / रतू 1147 / Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [301 रल-बयस्] रत्न 275 // रथ 2054 / रन्ध्र 3 / 10 / रभस 3 // 65 // रवण 2 / 67 रवथ 2053 / रवि 1 // 51 // र श्म 1165 / रसना 2067 / राका 2 / 3 / राजन् 376 / . राजि 1156 / रात्रि 1166 / राशि 1157 / रासभ 2 / 14 / . रास्ना 2176 / रिक्थ 2058 / रिपु 114 / रुग्म 2 / 105 // रुचि 1152 / रुचिर. 3 / 6 / रुचिष्य 2 / 111 // रुद्र 37 / रुधिर 3 // 5 // रुरु 1140 / रूप 2 / 05 / रेणु 1 / 26 / रेतस् 3 / 106 / रेफ 218 // रै 191 / . रोचना 2067 / रोमन् 3 / 2 / रोहन्त 2 // 44 // चान्द्रव्याकरणम् रोहन्ती 2 / 44 / रोहित् 376 / रोहित 2 / 47 / रोहिष 3 / 62 / लक्ष्मी 186 / लवक 2 // 5 // लट्वा 2 / 11 / लत्तिका 2 / 13 / लाङ्गल 3 / 43 / लिखक 2 // 5 // लोत 2050 / लोत्र 3 / 42 / लोमन् 3 / 02 / लोष्ट 2 / 33 / लोहित् 376 / लोहित 2047 / लोहिष 3162 / वंश 3055 / वक 37.. वक्षस् 3 / 105 / वग्नु 1 / 31 / वज्र 3 / 13 / वटल 3 / 46 / वठर 320,32 / वणिज् 3 / 73 / वण्ड 2 / 36 / वत्स 3 / 63 / वत्सर 3118 // वदथ 2 / 53 / वधू 1143 / वन्द्र 3 / 10 / वपुस् 392 / वप्र 3 / 13 / वयस् 3 / 100 / Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .202] वरक 2 / 20 / वरणा 2067 / वरण्ड 2 / 37 / वरत्रा 3 // 36 // वरुण 2 / 80 / वरूथ 2057 / वरेण्य 21114 / वर्ण 2074 / वर्गु 1 / 26 / वर्तनि 174 / वमन् 381 / वर्ध 3 / 13 / वर्वर 3 / 15 / वर्वरी 3 // 15 // वर्वरीका 2 / 19 / ववि 118 // वर्ष 3 / 63 / वलाका 2 // 15 // वलीका 2 / 16 / वलूक 2 / 22 / वल्क 2 / 4 / वल्गु 1 / 11 / वल्लभ 2064 / वल्लि 1351 वल्लूर 3 / 43 // वसति 1187 / वसन्त 2 / 45 // वसु 1 / / वस्ति 1184 / वस्तु 1 / 23 / वस्न 2073 / वहति 1187 / वहतु 1325 // चन्द्रिव्याकरणम् [वरक -- वीर वहन्त 2 // 45 // वहित्र 3 / 42 / वह्नि 176 / वाच 3 / 6 / वात 2 / 50 / . . वातप्रमी 160 / वापि 1156 / वायु 1 / 1 / वारि 1156 / वालीक 2 / 16 / .. वाशुरा 3 / 1 / वान 3 / 10 / . . . वासर 3 / 20 / .. वासस् 3 / 102 / वासि 1156 / वास्तु 1 / 23 / वि 1158 / विकुल 3 / 10 / विटप 2 / 87 / विदाक 2016 विधु 1 / 13 / विधुर 3 / 2 / विपिन 2066 / विप्र 3 / 14 / विशप 2 / 7 / विशिप 2 / 87 / विश्व 2061 / विष्टप 2187 / विष्ठा 2 / 58 / विष्णु 1 // 30 // वीका 2 / 2 / वीणा 276 / वीर 38 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [203 वृक-- शिवाणक] वृक 2 / 4 / / वृक्ष 3 / 64 / वृजन 2170 / वृजिन 2063 / वृत्र 38 वृध्र 3 / 14 / वृन्द 2061 / वृश 3 / 55 / वृश्चिक 2 / / वृषत् 377 / वृषन् 376 / वृषभ 2064 वृषल 3 / 46 / वृष्णि 1180 / वेणि 1178 / . वेणु 1 / 31 / वेतना 2064 / वेतस 3 / 65 / वेदथ 2053 / वेधस् 366 / वेमन् 3 / 2 / वेशन्त 2 / 43 / व्यथिष 3 / 62 / व्योमन् 382 / शकट 2 // 32 // शकल 3 / 47 / शकुन 181 / शकुनि 176 / शकुन्त 2 / 42 / शकुन्ति 171 / शक्र 37 / शङ्क 1 / 21 / शङ्ख 2 / 23 / शण्ठ. 2 // 35 // शण्ढ 2 / 41 / शतद्रु 1 / 21 / शत्त्रि 1166 / शत्रु 1140 / शपथ 2 / 53 / शबल 3 / 45 / शब्द 2 / 60 / शमथ 2053 / शमल 3 / 47 / शम्ब 2 / 12 / शयानक 2 / 11 / शयु 1 / / शरद् 378 / शरभ 2 / 3 / शरि 1151 / शरीर 3 / 27 / शरु 1 / 21 / शर्करा 3 / 24 / शर्व 2 / 10 / शर्वर 3 / 15 / शर्वरी 3 / 15 / शर्शरीक 2 / 16 / शलभ 2 / 63 / शलाका 2 / 16 / शल्क 2 / 1 / शष्प 2185 / शस्त्र 3 / 36 / शारि 1156 / शालूक 2 / 21 शिक्य 2 / 116 // शिखा 2 / 25 / शिग्र 1140 / शिवाणक 2 / 12 / Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 204] शिथिल 3 / 53 / शिरस् 3 / 101 / शिरीष 3 / 60 / शिल्प 2 / 85 // शिव 2 / 12 / शिशिर 3 / 6 / शिशु 1 / 14 / शीधु 1137 / शीर 3 / 10 / शुक 2 / 4 / शुक्र 3 / 14 / शुक्ल 3 / 53 / शुचि 1152 / शुभ्र 38 / शुल्ब 2 / 12 / शूर्प 2185 // शृङ्ग 2 / 26 / शृङ्गार 3 / 22 / शृधू 1147 // शेपाल 3 / 51 शेफस् 3 / 108 / शैवल 3 / 51 / शोचिस् 360 / शौटीर 3 / 27 / श्मश्रु 1140 / श्यान्द 2061 / श्याम 21103 / श्यामाक 2 / 16 / श्येत 2 / 47 / श्येन 2062 / श्रथिर 3 / 6 / श्री 3168 / श्रेणि 1176 / चान्द्रव्याकरणम् [शिथिल-सिघ्र श्रोणि 176 / श्रोत्र 3 / 42 / श्लक्ष्ण 277 / श्वन् 380 / श्वशुर 3 / 4 / / श्वित्र 3 / / सन्ध्या 2 / 110 / संयवर 3 / 16 / संवत्सर 3 / 18 / सक्तु 1 / 22 / सक्थि 161 / सखि 160 / समिध 2 / 56 / सरक 2 / 20 / . सरणि 1174 / सरयु 1 / 33 / सरित् 376 / सर्जू 1147 / सर्पिस् 386 / .. सर्व 2 / 12 / सर्षप 2 / 86 / सव्य 2 / 106 / सस्य 2 / 106 / / साधन्त 2 / 45 / साधु 1 / 1 / सानु 1 / 2 / सामन् 3182 / सारथि 1162 / सास्ना 276 / सिंह 3 / 67 / सिक्थ 2058 / सित 2051 / सिध्र 3 / 10 / Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [205 सिन्धु-होकु] चान्द्रव्याकरणम् सिन्धु 1217 / स्यमीक 2 / 2 / सीमिक 2 / 10 / स्रुच् 3 / 72 / सीर 3 / 12 / स्रु 3 / 6 / सुमेरु 1139 / स्रोतस् 3 / 106 / सुरा 3 / 11 / स्वप्न 2174 / सुष्ठु 1 / 21 / स्वसृ 1150 / सूक्ष्म 2 / 102 / स्वादु 111 // सूत्र 3 / 37 / हंस 3 / 63 / सूनु 1 / 30 / हनु 1 / / सूप 2 / 84 / हनूष / 3 / 57 / सूर 3 / 11 / . हरि 1151 / सूरत 2032 / हरिण 2062 / सूरि 1170 / हरित् 376 / सृक् 2 / 4 / हरित 2 / 47 / सृणि 180 / हरिद्रु 1 / 21 / सृणीका 2 / 16 / हरिमन् 3 / 83 / -सेतु 1 / 22 / हरेणु 1 / 27 / सेना 2074 / हर्यत 2048 / सोम 22100 / हर्षयित्नु 1 / 26 / स्तनयित्नु 1 / 26 / हविस् 3186 / स्तम्ब 2 / 12 / हस्त 2 / 50 / स्तरी 160 हस्र 3 / 10 / स्तूप 2183. हिम 2 / 103 / स्तोम 2 / 100 / हिरण्य 2 / 116 / स्त्येन 2062 / हृदय 2 / 108 / स्थवि 1183 / हेतु 1 / 24 / स्थविर 3 / 6 / हेमन्त 2 / 45 // स्थाणु 1 / 31 / होतृ 1150 / स्थिर 36 / होम 2 / 100 / स्थूणा 2176 / हीक 2 / 2 / स्नुषा 3 / 64 / हीकु 1135 / स्पृहयाय्य 2 / 113 / ह्लीक 2 / 2 / स्फिर 3 / 6 / ह्रीकु 1 // 35 // इति उणादिसाधितशब्दानाम् अकाराविक्रमेण संकलनं समाप्तम् / / Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणस्थितधातुपाठागतधातूनाम् अकारादिक्रमेण संकलनम् / धातुः गणः संख्याङ्कः धातुः गणः संख्याङ्कः अंह 11464 / अर्थ 10 / 100 / अक 11534 / अर्द 1 / 18 / अक्ष 1 / 210 / अर्ब 1 / 143 / अग 11534 // अर्व 1 / 201 / अङ्क 11340 / अर्ह 1 / 258 / अङ्ग 1138 / अव 11208 / अङ्घ 11347 / अश 5 / 24 / अज 1181 // 6 / 40 / अञ्च 1646,560 / अश्व 10 / 105 // अञ्ज 7 / 17 / अस् 11608 / . अट 1 / 104 / 2 / 25 / अट्ट 1 // 365 // 4 // 46 // 10 / 14 / आञ्छ 1156 / अड 11131 // आप 5 // 14 // अड्ड 1 / 125 // आस 2 / 41 / . अण 1 / 147 / आह्वर 10 / 105 // अण्ठ 11371 / इ 1 / 104 / अत 1 / 3 / 2 / 11,12,52 / अद 2 / 1 / इङ्ख 1138 / अन 2 / 30 / इङ्ग 1138 / अन्त 120 // इट 1 / 104 / अन्द 1 / 20 / इन्द 1 / 21 / अभ्र 11160 / इन्ध 7 / 21 / अम 11155,552 // इन्व 1 / 202 / अम्ब 11402 / इल 6164 / अय 11424 / इष 4 / 15 / अर्च 1152 / 6 / 58 / अर्ज 1165 / 6 / 42 / ཝཱ ཀྐཱ ཀྵ ཀྵ ཀྵ ཀྵ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / ई 4 / 63 / . ईक्ष 11448 // ईङ्ख 1138 / ईज 11362 / ईड् 2 / 36 / ईर 2 // 38 // ईर्ष्या 14156 / ईj 11156 / ईश 2 // 40 // ईष 11226,446 / ईह 11462 / उ 11477 / उक्ष 11212 // उख 1138 उच 4 / 62 / उछ 163 / 6 / 20 / उज्झ 6 / 27 / उञ्छ् 1162 / 6 / 16 / उन्द 7 / 16 / . उब्ज. . 6 / 26 / उभ 634 / उम्भ 6 / 34 / उर्द 11321 उर्व 1 / 165 / उष 11232 / ऊन. 1070 / ऊय 11426 / ऊर्ज 10 / 11 / ऊर्गु 2 / 60 / ऊष 11228 // चान्द्रव्याकरणम् ऊह 11470 / ऋ 11284 / 317 ऋक्ष 5 / 22 / ऋच 6 // 25 // ऋछ 6 / 21 / ऋज 11362 / ऋज 11363 / ऋण 8 // 4 // ऋध 4180 / 5 // 21 // ऋफ 6 / 26,30 / ऋम्फ 6 / 30 / ऋष् 6 / 16 / ऋ 6 / 23 / एज 173,364 / एठ 11103,375 // एध 11306 / . एष 11454 / ओख 1136 / ओण 1 / 148 / ओलण्ड 10 / / कंस 2 / 44 / कक 1 / 343 / कक्ख 1 / 35 // कख 1530 // कङ्क 11346 / / कच 11356 / कञ्च 11357 / कट 1185,104 / कठ 11116 / कड 11133 / Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 208] कड्ड 1 / 134 / कण 1147,535 // कण्ठ 11373 / 10.74 / कण्ड 11386 / 10 // 32 / कत्थ 11332 / कथ / 1078 // कन 1152 / कन्द 1127,520 / कब 11404 / कम 11423,552 / कम्प 11401 / कर्द 1 / 16 / कर्व 11200 / कल 11153,436 / 10 / 85 // कल्ल 11437 / कष 11230,612 / कस 11587 / काउक्ष 11220 / काश 11456 / 4 / 105 / कास 11457 / कि 3 / 6 / किट 11104 / कित 11305 // 3 / / किल 6 / 60 / कील 1167 / कु 11477 / 2 / 10 / चान्द्रव्याकरणम् 6 // 65 // कुक 1 / 344 / कुच 1145,583 / 672 / कुज 1150 / . . कुञ्च 1147 / कुट 670 / कुट्ट 10 / 12 / कुड 684 / कुण 6 / 46 / कुण्ट 1 / 106 / कुण्ठ 1 / 121 / .. कुण्ड 11378 // कुथ 4 / / कुन्थ 116 / 6 / 32 / कुन्द्र 10 / 6 / कुप 4 / 71 / कुम्ब 1 / 144 / कुर 6 / 50 / कुर्द 11322 / कुल 11571 / कुष 6 / 36 / . - कुस 4 / 57 / कुह 1068 / कूज 176 / कूट 10 / 22 / कूल 11168 / कृ 5 / 7 / ___87 / कृड 683 / कृण्व 206 / Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [209 བྷྱཱ བྷྱཱ བྷྱཱ ཙྪཱ ཙྪཱ བྷྱཱ བྷྱཱ ཙྪཱ हुत--र कृत 6 / 13 7 / 10 / कृप 11512 // कृश 4 / 65 / कृष 11302 / 6 / 6 / क 6 / 10 / 6 / 11 / कृत 10 // 62 / केप 11368 / केब 11366 / केल 1 / 178 / केव 11436 / कै 1 / 266 / क्नस 11546 / / 4 // 5 // क्नूय 11428 / 17) क्मर 1 / 186 / क्रथ 11536 / क्रन्द 1 / 27,520 / ऋप. 11516 / . क्रम 11157 / की 6 / 1 / क्रीड 1 / 126 / क्रुञ्च 1646 / क्रुध 4 / 30 / क्रुश 11582 / क्लथ 11536 / . क्लन्द 1127,520 / कम 4 / 47 / क्लिद. 4177 / चाद्रव्याकरणम् क्लिन्द 1 / 28,317 / क्लिश 4 / 104 / 6 / 36 / क्लीब 11405 // क्लेश 11445 // क्वण 1 / 147 / क्वथ 11573 / क्षा 11518 // 10 // 57 क्षण 8 / 3 / क्षम 11422 / 4 / 46 / क्षम्प 10 // 56 / क्षर 1577 / क्षल 10 / 43 / क्षि 1175 / 5 / 12 / 6 / 103 / 6 / 27 / क्षिप 4 / 11 / 6 / / शिव 1 / 161 4 / 4 / क्षीज 176 / क्षीब 11406 / क्षु 2 / 10 / क्षुद 7 / 6 / क्षुध 4 / 31 / क्षुभ 11503 / 4 / 75 / 6 / 37 / क्षुर 6153 / ཟླ་ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम [ -- गुष 210] क्षै 1266 / / क्ष्णु 2 / / क्ष्माय 11426 / क्ष्मील 11163 / विद 1 / 261,468 / 476 / खज 171 / खञ्ज 172 / खट 1195 खट्ट 10 / 16 / खड 10 // 31 // खण्ड 13360 / 10 // 31 // खद 1 / 11 / खन 11602 / खर्ज 1168 / खर्द 1 / 16 / खर्ब 11143 / खर्व 1200 / खल 11181 खव 647 / खाद 1 / 10 / खिट 1160 / खिद 4 / 108 / 6 / 14 / 7 // 22 // खुज 1150 / खुर 6151 / खुर्द 1 / 322 // खोल 11178 // खै 1 / 268 / खोर 11186 / ख्या 2 / 21 / गज 170,80 / गञ्ज 180 / गड 11524 / गण 1080 / गण्ड 11135 / गद 1 / 13 / 10 / 3 / गम 1 / 265 / गर्ज 1166 / गर्द 1 / 15 / गर्ब 11143 / गर्व 1200 / 10 / 101 / . गर्ह 11465 // गल 11182 / गल्भ 11414 / गल्ह 11465 / गवेष 1060 / गा 11476 / 3 // 14 // गाध 11308 / गालोड 10 / 105 // गाह 7 / 471 / गु 11475 / गुज 673 / गुञ्ज 176 / गुड 674 / गुण्ठ 1 / 121 / गुध 4 / 10 / 6 / 12 / 6 / 35 // Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [211 ग्लेष 11452 / ग्लै 1 / 260 / घग्घ 1142 / घट 11513 / घट्ट 1 / 366 / 10 / 15 / घस 1 / 244 / घिण्ण 11417 / घु . 1 / 477 / घुट 11500 / गुप-चञ्च] गुप 11136,488 / 4 / 72 / गुफ 6 / 33 / गुम्फ 6 / 33 / गुर 6164 गुर्द 11322 // गुर्व 1 / 167 / गुह 11617 / गूर 4 / 100 / गृ 1 / 285 / गृज 1180 / गृञ्ज 1180 / गृध 4 / 81 गृह 11472 / 10196 / गृ 6 / 106 / 6 / 21 / गेप 11368 / गेव 11436 / गै 1 / 266 / गोष्ट 11368 / ग्रथ. : 11331 / . ग्रन्थ है।३०। ग्रस 11461 / ग्रह 6 / 14 / ग्रुच 1150 / ग्लस 11461 / ग्ला 11551 / ग्लुच 1150 / .. ग्लुञ्च 1151 / ग्लेप 11366,368 / ग्लेव . 11436 / घुण 11418 / 6 / 48 / घुण्ण 11417 / घुर 6 // 54 // घुष 1 / 206,473 / 10 // 66 // घूर 41100 / घूर्ण 11418 / 6 / 48 / घृ 1 / 285 / 3 / 6 / घृण 8 / 6 / घृण्ण 11417 / घृष 1 / 238 // घ्रा 11275 / कु 11477 / चक 11345,528 / चकास 2 / 34 / चक्क 10 // 42 // चक्ष 2 / 37 / चञ्च 1146 / Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 212] चान्द्रव्याकरणम् 464 चण्ड 11385 / चत 11563 / चद 11563 / चन्द 1125 // चप 1 / 136 / चम 11156,552 / चय 11424 / चर 11160 / चर्च 1 / 241 / 6 / 23 / 10 // 67 चर्ब 11143 / चर्व 11166 / चल 11544,562 / 663 / चष 11611 / चह 1 / 252 / चाय 14604 / चि 5 // 5 // चित् 11100 / चित 1 / 2 / चिन्त 10 / 2 / चिरि 5 / 22 / चिल 6 / 62 / चिल्ल 11176 / चीभ 11408 / चीव 11603 / चुक्क 10 // 42 / चुट 676 / 10 // 52 // चुड्ड 1 / 124 / चुण्ट 1 / 108 / चुद 10 // 36 // चुन्द 11600 / चुप 11141 / चुम्ब 1 / 145 // चुर 10 / 1 / चुल 10 / 46 / . . चुल्ल 11174 / चूर 4 / 101 / चूष 1 / 222 / चूत 6 / 37 / चेल 11178 / चेष्ट 11367 / च्यु 11478 / च्युत 1 / 4 / छद 11545 / 1072 / छन्द 10 // 28 // छम 1 / 156 / छम्ब 10 // 55 // छिद 7 / 3 / छुप 6 / 114 / छुर 6 / 51 / छूद 7 / / छो 4 / 16 / . छयु 11478 / जक्ष 2 / 31 / जज 178 / जञ्ज 178 / जट 1162 / जन 11546 / 3 / 13 / 4 // 65 // जप 1 / 138 // Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बान्द्रव्याकरणम् [213 जम--तन्त्र] जम 1 / 156 / जम्भ 11411 / जर्ल्स 11241 // 6 / 23 / जल 11563 / जल्प 11138 / जष 11230 / जस 4 / 51 / जागृ 2 / 32 / जि 11162,286 / जिरि 5 / 22 / . जिष 11233 // जीव 11163 / जङ्ग 1136 / / जुड 681 / . . 10 // 56 जुत 11328 / जुन 6 / 36 / जुष 6 / 18 / जूर 4 / 6 / जूष 1 / 230 / जम्भ 11411 / जृ 1 / 546 / 4 / 17 / 6 / 16 / जेष 11454 / जेह 11468 / जै 1 / 266 / ज्ञा 11543 / . 6 / 28 / 10 // 40 // . ज्या 6 / 22 / ज्यु 1 / 478 // ज्रि 1 / 286 / ज्वर 11523 / ज्वल 11537,538, 550,561 / झट 1 / 12 / झम 11156 / झर्झ 1 / 241 / 6 / 23 / झष 11230,613 / झ 4 / 17 / झ्यु 11478 / टल 11564 / टिक 11346 / टीक 11346 / ट्वल 11564 // डिप 4 / 66 / 675 / डी 11487 / 4 // 85 ढोक 1 / 346 / तक 1 / 31 / तक्ष 1211 / तङ्क 1 / 32 / तङ्ग 1138 // तञ्च 1146 / 7 / 18 / तट 1164 / तड 10 // 30 // तण्ड 1387 / तन 81 / तन्त्र 10 / 65 / / Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 214] चान्द्रव्याकरणम् [तप-त्रुफ 4 4 4 A. 3, 4 तप 1 / 267 / 4 / 102 / तम 4 / 43 / तय 11424 / तर्ज 1167 / तर्द 1 / 17 / तल 10 // 44 // तस 4 / 52 / ताय 11431 / तिक 5 // 18 // 11486 / 10 / 21 / तिप 11365 / तिम 4 / 13 / तिल 6 / 61 / तीव 11164 / तुज 176 / तुञ्ज 176 / 10 / 20 / तुट 6180 तुड 1 / 127 / 687 / तुण 6 / 43 / तुण्ड 11382 // तुद 6 / 1 / तुप 1142 / तुफ 11142 // तुभ 11504 // 4 / 76 / 638 / तुम्प 11142 / तुम्फ 11142 // तुर 3 / 10 / तुर्व 1 / 165 / तुल 10 // 45 // तुष 1 / 240 / 4 / 26 / तुह 1 / 257 / / तूर 468 / तूल 11170 / तूष 11223 / तृक्ष 11215 / तृण 8 / 5 / तृद 7 / / तृप 4 / 36 / 5 / 23 / 6 / 31 / तृम्प 6 / 31 / तृष 4 / 66 / तृह 6 / 57 / 7 // 15 // तुंह 6 / 57 / त 11260 / तेज 1166 / तेप 11365 / तेव 11438 / त्यज 1 / 268 / अङ्क 11346 / त्रङ्ग 1138 / बन्द 1 / 26 / त्रप 11400 / त्रस 4 / 7 / त्रुट 676 / त्रुप 1 / 142 / त्रुफ 11142 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरण [215 अम्प--] त्रुम्प 14142 / त्रुम्फ 1 / 142 / त्रै 11484 // त्रोक 11346 / त्वक्ष 1 / 211,218 / त्वङ्ग 1138 // त्वच 6 / 24 / त्वञ्च 1146 / त्वर 11521 // त्विष 11626 / त्सर 11188 / / थुड 687 / थुर्व 11165 / दश 11301 / दक्ष 11446,518 / दङ्घ 1140 / दद 11316 / दध 1 / 310 / दम 4 / 42 / दम्भ 5 / 20 / दय 11425 / दरिद्रा 2 / 33 / दल 13184 / दस 4 / 52 / दह 1 / 303 / दा 11276 / 2 / 20 / 3 / 18 / दान 11623 / दाश 11606 / दास 11615 / दिन्व 11204 / दिव 4 / 1 दिश 6 / 3 / दिह 2058 / दी 4 / 04 / दीक्ष 11447 / दीधी 2153 / दीप 4 / 66 / दु 1287 / 5 // 10 // दुर्व 11165 दुल 10 // 46 / दुष 4 / 27 / दुह 1257 / 2 / 57 / दू 4 / 83 / दृ 11540 / 6 / 107 / इंह 11255 / दृप 4 / 37 / 6 / 32 / दृभ 636 / दृम्प 6 / 32 / दृश 11300 / दृह 1 / 255 / द 6 / 18 // दे 11481 // देव 11438 / दै 1 / 273 / दो 4 / 21 / धु 2 // 5 // द्युत 11466 / ये 1 / 262 / Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चानव्याकरणम् [ब्रम-नम 216] द्रम 11155 // द्रा 2 / 17 / द्राख 1136 / द्राघ 11350 / द्राङक्ष 1 / 221 // द्राड 11363 // द्राह 11466 / द्रु 11287 / द्रुण 6 / 47 / द्रुह 4 / 3 / द्रेक 11336 / दै 1 / 263 / द्विष 2156 / दृ 1 / 282 / . धक्क 10 // 41 // धन 3 / 12 / धन्व 11205 / धा 3 / 16 / धाव 11586 / धि 6 / 102 / धिक्ष 11441 / धिन्व 1 / 204 / धिष 3 / 11 / धी 4 / 86 / धुक्ष 1 / 441 / धुर्व 1 / 195 // धू 5 / 6 / 9 / 9 / 13 / धूप 11137 / धूर 41100 / धृ 11476,621 // 6 / 108 / धृञ्ज 1164 / धृष 5 / 16 / 1077 / धे 1 / 256 / / धोर 1 / 187 / ध्मा 11276 / ध्ये 1 / 265 / ध्रज 1664 / ध्रण 1 / 147 / ध्रस 6 / 41 / ध्राख 1136 / / ध्राङक्ष 1 / 221 / . ध्राड 1 / 363 / ध्रुव 663 / ध्रेक 11336 / | 1 / 264 / ध्वंस 11506 / ध्व ज 1464 / , ध्वन 1 / 147,556 / 10 / 64 / ध्वाङक्ष 11221 / ध्वृ 1 / 286 / / नक्क 10 // 41 // नक्ष 11215 // नख 1138 / नट 1596,527 / 10 / 23 / नद 1 / 15 / नन्द 1024 / नभ 11504 // 476 / 6 / 38 // Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरण [217 नम --पौर] नम 11294,550 / नय 11424 // नर्द 1 / 15 / नल 11567 / नश 4 / 35 / नस 11458 / नह 4 / 120 / नाथ 1 / 326 / नाध 11326 // नास 11457 / निस 2045 / निक्ष 11214 / निज 3 / 15 / निज 2 / 46 / निद 11566 / / निन्द 1123 / : निन्व 11203 / निल 6 / 66 / निवास 1062 / निष 11246 / . नी. 11622 / नील 1 / 165 / नीव 11164 / नु 2 / 7 / नुद 6 / 2 / नू 660 / नृत् 4 / 6 / न. 11541 / 20 / नेद 11566 / नेष 11454 / पंस 10 // 54 / . 28 पच 11625 // पञ्च 1 / 360 / 10 / 60 / पट 1 / 104 / पठ 1 / 113 / पण 11420 / पण्ड 11388 / पत 11572 / पथं 11572 / पद 4 / 107 / पन 11416 / पन्थ 10 / 26 / पर्द 1 / 326 / पर्ब 1 / 143 / पर्व 1 / 168 / पल 1 / 183,568 / पस 4 / 60 / पा 11274 / 2 / 18 / पाल 10 // 50 / पि 6 / 101 / पिच्छ 10 / 27 / पिज 10 / 20 / पिट 1 / 12 / पिठ 1 / 11 / पिण्ड 11377 / पिन्व 1 / 203 / पिश 6 / 15 / पिष 7 / 12 / पिस 1 / 243 / पी 462 // पीड 10 // 10 // Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [पोल--बद पील 1 / 164 / पीव 1 / 164 / पुट 671 / पुट्ट 10 / 13 / पुण 6 / 44 / पुथ 4 / / पुन्थ 1 / 6 / पुर 6 / 55 / पुल 11570 / 10 / 48 / पुष 1 / 234 / .4 / 24 / . है।४४॥ पुष्प 4 / 12 / पू 11485 // བ བྷྱ ཤྩ , ཐཱ བྷྱ ཤྩ བ བྷྱ 6 / 16 / पेण 1 / 151 / पेब 1 / 366 / पेल 1 / 176 / पेव 11439 / पेस 11243 / पै 11271 / प्याय 11430 / प्युष 4 / 54 / प्यै 11483 / प्रच्छ 6 / 106 / प्रथ 11515 / प्रा 2 / 22 / प्री 4 / 64 / / 2 / घु 11478 / पुष 1235 / है।४५। प्रोथ 11564 / प्लीह 11467 / प्लु 11478 / प्लुष 1 / 235 // 4 / 55 / है।४५। प्सा 2 / 1 / फक्क 1 / 30 / फण 11556 / फल 11162,173 / फुल्ल 1 / 175 // फेल 1 / 176 / बंह 11463 / बद 1 / 12 / पूज 10 / 58 / पूय 11427 / पूर 4 / 67 / पूर्व 1 / 168 / पूल 1171 / पूष 1 / 224 / पृ 5 / 13 / 6 / 66 / पृच 2 / 46 / 7 / 20 / पृड 6 / 40 / है।३४। पृण 6 / 41 / पृथ 15515 // पृष 1 / 236 / 33 में से अव 3 3 3 3 འབ 'བྦེ བྱཱ 'ཤྩ पृ 3 / 4 / Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [219 बध -- लाश बध 11461 / बन्ध 6 / 26 / बर्फ 11143 / बर्ह 11466 / बल 16566 / बल्ह 11466 / बाड 11362 / बन्ध 11306 / बाह 11468 / बिट 11102 / बिन्द 1 / 22 / / बिल 6 / 65 / बिस 4 / 56 / बुक्क 1134 / बुध 11584,566 / 4 / 110 / बुस 4 / 58 / बुस्त 10 // 35 // बूं 2 / 62 / भक्ष 14614 / / भज 11626 / भञ्ज 7 / 13 / भट 1163,526 / भण 1 / 147 / भण्ड 11380 / 10 // 34 // भन्द 11314 / भई 1 / 201 / भल 11435 भल्ल 11435 // भत्र 11231 // भस 3 / / भा 2 / 14 / भाज 10 / 13 / भाम 1 / 421 / भाष 11450 / भास 11456 / भिक्ष 11444 // भिद 7 / 2 / भी 3 / 2 / 9 / 26 / भुज 6 / 113 / 7 / 14 / भुण्ड 11383 / भू 1 / 1 / भूष 1227 / भृ 11620 / 3 / 16 / भृज 11363 / भश 4 / 63 / भृ 6 / 17 / भेष 16607 / भ्यस 11456 / भ्रंश 11505 / 4 / 63 / भ्रज्ज 6 / 4 / भ्रण 1 / 147 / भ्रम 11576 / 4 // 45 // भ्राज 11364,558 / भ्राश 11558 / . भ्रड 6 / 87 / भ्रेज 11364 / भलाश 11558 // Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [मंह-- मुट 220] मंह 11463 / मख 1138 / मङ्क 11342 / मङ्ग 1138 / मङ्घ 11348 / मच 1356 / मज्ज 6 / 111 / मञ्च 1146,358 / मठ 11115 / मण 1 / 147 / मण्ठ 11373 / मण्ड 11105,376 / मथ 11574 / मद 11547 / 4 // 48 // मन 4 / 113 / 8 मन्त्र 10 // 64 // मन्थ 17 6 / 31 / मन्द 11315 // मभ्र 11160 / मय 11424 / मर्व 11168 / मल 11434 / मल्ल 11434 // मव 1 / 207 / मव्य 1 / 158 / मश 1 / 247 / मष 1 / 230 / मस 4 / 60 / मस्क 11346 / मह 1 / 258 / 1086 / मा 2 / 23 / 3 / 20 / माङक्ष 11220 // मान 11460 / 10 / 68 / मार्ग 1073 / माह 11616 / मि 5 / 4 / मिछ 6 / 22 / मिद 11468, 567 / / 4 / 78 // 10 / / मिन्व 11203 / मिल 67 / 1 / 247 / मिश्र 10 / 102 / मिष 11233 / , 656 / .. मिह 1 / 304 / मी 4 / 87 / . 6 / 4 / मीम 1 / 155 / मील 11163 / मीव 11164 / मुच 68 / मुज 180 / . मुञ्च 11356 / मुञ्ज 1180 / मुट 678 / 10.53 मिश Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [221 मुण-- युप] मुण 6 / 45 / मुण्ट 1 / 107 / मुण्ठ 11374 / मुण्ड 11106, 381 / मुद 1 / 318 / मुर 6 / 52 / मुर्छ 1156 / 11166 / मुष 4 / 56 / 6 / 46 / मुह 4 / 3 / / मू 1 / 486 / मूल 11172 / मूष 15225 / मृ 6 / 67 / . मृग 1067 / मृज 2 / 26 / 1075 / 6.40 / 6 / 34 / 6 / 42 / . मृद 1 / 516 / 6 / 33 / मृध 11568 मृश 6 / 116 // मृष 11237 / 4 / 118 / 1076 / म् / / 15 / मे 11480 / मेट 1184 / मेद ' 11567 / मेध 11565 // मेब 11366 / मेव 11436 / म्ना 11278 / म्रक्ष 1217 / म्रद 11516 / मुच 1146 / मुञ्च 1 / 46 / म्लुच 1 / 46 / म्लुञ्च 1146 / म्लेछ 1 / 53 / म्लेट 1184 / म्लेव 11436 / म्लै 1 / 261 / यज 11630 // यत 11327 / यन्त्र 10 // 3 // यभ 1 / 263 / यम 1 / 266,554 / यस 4 / 50 / या 2 / 13 / याच 11561 / यु 2 / 6 / 6 / 5 / युङ्ग 1 / 36 / युछ 1161 / युज 4 / 114 / 77 युत 1 / 328 / 1 / 585 / 4 / 111 / युप 4 / 73 / Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चान्द्रव्याकरणम् [यूष - रेभ 222] यूष 1 / 230 / येष 11453 / यौट 1183 / रंह 11254 / रक्ष 11213 / रख 1138 / रग 11531 / रङ्ख 1 / 38 / रङ्ग 1138 / रङ्घ 11346 / रच 1084 // रज 11546,627 / 4 / 121 // रट 186 / रण 11147,535 // रद 1 / 14 / रध 4 / 34 / रन्व 1 / 205 / रप 11138 / रफ 1143 / रभ 11462 / रम 11576 / रम्फ 1 / 143 / रम्ब 11403 / रय 11424 // रस 11240 / रह 1 / 253 / 1082 / रा 2 / 16 / राख 1136 / राघ 11346 / राज 11557 / राध 4 / 22 / 5 / 17 / रास 11457 / रि 6 / 101 / रिङ्ग 1138 / रिच 7 / 4 / रिव 1 / 205 // रिश 6 / 115 // रिष 11230 / री 4 / 8 / 6 / 23 / रु 11478 / 2 / 10 / रुच 11466 / रुज 6 / 112 / रुट 11501 / रुठ 1 / 118 / . रुण्ट 1 / 111 // रुण्ठ 1 / 123 / रुद 2 / 28 / रुध 4 / 112 / 7 / 1 / / रुप 4 / 73 / रुश 6 / 115 // रुष 11230 / 4 / 68 / रुह 11586 / रेक 1 / 337 / रेज 11364 / रेट 11562 / रेब 1 / 366 / रेभ 11406 / Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [223 रैव-- बङ्क] रेव 1 / 440 / रेष 11455 / रै 1 / 266 / रोड 1 / 12 / लक्ष 10 / 5 / लख 1138 / लग 11532 / लङ्क 1138 / लङ्ग 1138 // लङ्घ 1141,346 / लछ 1154 / लज 1177 6.100 / लज्ज ६।१००।लञ्ज 177 / . . लट 1187 / लड 11132,546 / / 107 / लप : 11138 / 10 // 63 / लभ 1 / 463 / लम्ब. 11403 / लल 10 // 66 लष 11610 // लस 16242 / ला 2 / 16 / लाख 1 / 36 / लाघ 11346 / लाज 177 / लाञ्छ 1154 / लाञ्ज 177 / लिख, 6166 / चान्द्रव्याकरणम् लिङ्ग 1138 / लिप 6 / 11 / लिश 4 / 117 / 6 / 116 / लिह 2056 / ली 4 / 86 / 6 / 24 / लुज 4 / 116 // लुञ्च 1148 / लुट 166,501 4 / 61 / 6 / 02 / लुठ 1 / 118 // लुड 685 // लुण्ट 1 / 111 / 10 / 18 लुण्ठ 1 / 122,123 / लुन्थ 16 / . लुप 4 / 73 / 6 / / लुभ 4 / 74 / 6.28 / लू है / लूष 1051 / लोक 1334 / 10 / 5 / लोच 11353 / लोष्ट 11368 / लौड 11130 / वक्ष 1 / 216 / वख 1 / 3 / वङ्क 1 / 341 / Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 224 वङ्ग 1138 / वङ्घ 11347 // वच 2 / 27 / वज 1181 / वञ्च 1146 / वट 1186,526 / वठ 1 / 114 / वण 1 / 147 / वण्ट 1 / 110 / वण्ठ 11372 / वण्ड 11376 / 10 / 33 / वद 11637 / वन 1 / 153,551 / वन्द 1313 / 10 / 37 / वप 1 / 631 / वभ्र 11160 / वम 11551,575 / वय 11424 / वर 1076 / वर्च 11352 / वल 11433 / वल्क 10 / 24 / वल्ग 1138 // वल्भ 11413 / वश 1 / 248 / 2 / 3 / वष 11230 / बस 11636 / 2 / 43 / 4 // 53 // चन्द्रिव्याकरण [वङ्ग-वृज वह 1 / 632 / वा 2 / 12 / वाङक्ष 11220 / वाञ्छ 1155 / वावृत 4 / 103 / . वाश 4 / 106 / वास 1061 / विच 7 / 5 / विछ 6 / 116 / विज 3 / 16 / 6166 / विट 1 / 101 / विथ 1 / 326 / .. विद 2 / 24 / 4 / 106 / 6 / 10 / 7 / 23 / 10 / 38 / विध 6 / 38 / , विश 6 / 118 / विष 11233 / 3 / 17 / 6 / 43 / वी 2 / 12 / वुङ्ग 1 / 36 / व 58 / है।४८॥ वृंह 1 / 255 / वृक 1 / 344 // वृक्ष 11442 / वृज 2 / 48 / Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वज-शिज] चान्द्रव्याकरणम् [ 225 . . . . 我 वृज 716 // 10 // 47 // वत 11508 / वृध 11506 / वृश 4 / 64 / वृष 1 / 236 // वृह // 25 // 11256 6056 / वृ. 6 / 12 / . 1633 // वेण 1601 // वेथ 11329 / वेप 2367 / / वेल 11178 // वेवी 2054 / वेष्ट 11366 / वेहं 11468 / व 11271 / .. व्यच 6 / 18 / 'व्यथ 15514 / व्यध 4 / 23 / व्यप 10022 व्यय श६०५॥ व्ये 2634 / व्रज 118 // व्रण 11147 // वश्च 6 / 17 / वी 4 / 10 / 6 / 25 // बीड 4 // 14 // ब्रुड 687 / व्लङ्ग 1138 व्ली 6 / 23 / शंस 11251 // 11460 / शक 4118 // 5 // 15 // शङ्क 11336 / शञ्च 1355 // शट 188 शठ 11120 // 108 // शण्ड 11386 / शद 11581 6 / 12 / शप 1628 // 4 / 122 // शम 1553 / 4 // 42 // शर्ब 11143 / शर्व 11201 // शल 1118 // 16432 // 11572 / शल्भ 11412 / शश 1246 / शस 1250 / शाख 1137 शान श६२४॥ शास 2 // 35 // 2142 / शि // 3 // शिक्ष 11443 / शिङ्घ 1143 / शिज 2 / 47 / . Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 226] चान्द्रव्याकरणम् शिट-घल्क शिट श६१) शिल 668) शिल्ल 11177 / शिष 11230 / 7 / 11 / 251 // शीक 1333 शीभ 1407 शील 11166 / 1088 शु 1287 शुक // 33 // शुच 1144 // 4.116 शुच्य 11161 शुण्ठ 1 / 121 // शुध 4 // 32 // शुन 636 / शुन्ध श२६॥ शुभ 1502 // शुम्भ 11146 6 / 35 // शुष 4 / 25 // शूर 4100 शूल 11166 // शूध 11510 // 11568 / शु. 15 // 111780 शेव 11436 / शो 4 / 18 / शोण 1 / 1460 शौट 122 / श्च्यु त 1 / / श्नय 11536 / श्य 11482 / श्रक 1 / 338 // श्रङ्ग 1138 // श्रण 10 // 26 // श्रन्थ 11330 // 6 / 30 / श्रम् 4 / 44 / श्रम्भ 11415 // श्रा 11542 / 2 / 16 / . 10 // 36 / श्रि 11618 // श्रिव 43 // श्रिष 11235 // 6 / 3 / श्रु 5 / 16 / . | 1270 / श्रोण 1 / 150 / श्लक .11338 / श्लङ्ग 113 / श्लाख 137 / श्लाघ 1351 // श्लाड 2364 / श्लिष 1235 // 428 / श्लोक 11335 // श्वङ्क 11346 / श्वञ्च 11355 // श्वठ 10 / 16 / 10 // 8 // श्वल्क 10 / 24 / . Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्वल्ल-स्कम्भ ] चान्द्रव्याकरणम् [ 227 ཨ ཀྵ ཨཱ ཨ ཟླ ཟླ་ ཟྭ ཟླ་ 7 श्वल्ल 11185 // श्वस 2 / 30 / श्वि 11638 // श्वित 11467 / श्विन्द 11312 / श्वेत 10 / 105 // 11161 4 / 4 / ध्वस्क 11346 / संग्राम 1071 / सग 1533 / . सघ 5 / 18 / सच 11140 // 11354 सज्ज // 5 // सञ्ज 11266 / सट / 198 // सट्ट 10 / 17 / सद 11580 / 6 / 120 // . सन . 11154 / दा। सम - 11560 / सर्ज 165 11143 / सस 212 / सह 11578 / साध 4 / 223 5 // 17 // साम 10186 / 5 / 2 / 5 // * सिच 6 / 12 / सिट 1161 सिध 118 शह। 4 // 33 // सिल 668 सिव 4 // 2 // 4 // 3 // 128 // 5 // 1 // 6146 सुह 4 / 16 / 2 // 50 // 4 / 8 / 6 / 104 / सूच 1061 सूद 1323 // सूर्फ 11216 // सूर्ख 1156 / सूष 1226 / सृ श२८३। 317 सृज 4 / 11 // 6 / 110 // सृप श२६॥ सृभ 11142 // सृम्भ 11142 / सेक 1338 सेल 11178 / सेव 11436 / . सै // 26 // सो 4 // 20 // स्कन्द 10262 / स्कम्भ 11410 // सर्ब सि Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 228 ) चान्द्रव्याकरणम् स्कु 6 / 6 / स्कुन्द 1311 // स्खद 12517) 11555 // स्खल 11180 // स्तक 11526 // स्तघ 12533 // स्तन 11153 / 10 // 83 स्तम 11560 स्तम्भ 11410 स्तिक श१८॥ स्तिष 525 // स्तिम 4 / 13 / स्तोम 4 / 13 / स्तु 2061 स्तुच 11361 स्तुभ 11416 // स्तूप 4 / 70 / स्तृ 5 / 6 / स्तृक्ष 11215 // स्तृह 6157 / स्तृ. 6 / 10 / स्तेन 106 // स्तेप 1:365 स्तै 12272 / स्त्य 1267 / स्थल 165655 स्था 1277 स्थल 1066 स्ना 11551. 2 // 15 // स्निह 4 / 41 // स्नु 2 / / स्नुह 4 / 10 / स्पन्द 11316 // स्पर्ध 11307 / स्पर्श 11451 // स्पश 12606 / स्पृ 5 / 13 / स्पृश 6 / 117 // स्पृह 1087 स्फट 11112 / स्फाय 11430 // स्फिट 10 // 25 // स्फुट 1 / 112 / // 37 // 677) स्फुड 6187 / स्फुन्ड 11384r 10 / 4 / स्फुर 688 // स्फुर्छ 160 / स्फुल 686 / स्फूर्ज 174 / स्मि 11474 स्मोल 111630 स्म 12265 1536 / स्यन्द 11511 स्यम 11556 / स्रम्भ 11507 स्रस 115050 स्र श२८७। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावण्याकरणम् [ 229 GU हट लेक-खे ] स्रक 1 / 338 / स्र 1270 / स्वञ्ज 11464 / स्वद 1 / 320 // स्वन 11556 / स्वप 2 / 26 / स्वर्द 1 / 320 // स्वाद 11320 // स्विद 12468 / 4 // 26 // स्वृ 11281 // 197 / 11117 / / 146 // हन 2 / 4 / हम्य 111.55 // हय 116 // हर्य 11160 / हल 11566 हस . 1245 // 2 // 5 // 3 // 21 // 5 // 1 // हिंस 7 // 15 // हिक्क .1588 // हिण्ड 376 / हिन्व 1 / 204 // हिल 6 / 67 / 3 / 1 / 676 / 2377 / ह्मल 1158 11572 / 1 / 12 // 11616 / 1 // 23 // 4 / 67 / 11103 11375 // 115254 16457 / 11361 1 / 128 // 2 // 5 // 11538 // 11550 11533 1 // 24 // 11324 // 3 // 3 // 1157 / 11454 // 11533. 12401 32 // 1538 / 11550 11280 // 11635 // ह्रष हाद N ह्री ह्लग लष ह्लाद बल ह.. ___ इति' धातुपाठस्य प्रकारादिकः अनुक्रमः समाप्तः टिप्पण-१. अत्र चान्द्रव्याकरणे 105 पृष्ठतः 126 पृष्ठपर्यन्तमाचार्यचन्द्रगोमिरचितो. धातुपाठः समायातः / तत्र दश गणा दर्शिताः, तथा प्रत्येकधातुभिः सह प्रादा वङ्का निर्दिष्टाः / अत्र तेषां धातूनामकारादिकोऽनुक्रमः प्रकाशितः / तत्र सर्वत्राद्योऽङ्को गणसूचकः / अन्योऽङ्कश्च धातुपाठदर्शितधातुसंख्यासूचकः / Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 230 ] चाव्याकरणम् शुद्धिसूची पृष्ठाङ्क अशुद्धम् शुद्धम् 17 / सूत्र 12 // वश्येन वंश्येन 28 / सूत्र 61 खञ् कञ् . 31 / सूत्र 123 / वा० वा . 31 / प्रथमे टिप्पणे तद्वत्तौ तद्वत्ती 31 // द्वितीये टिप्पणे निदशे निर्देशे 37 / सूत्र 102 रात्री रात्रि४७। सूत्र 112 नस् शस् 71 / सूत्र 68 ससजुषः रः स-सजुषः रुः 101 / सूत्र 63 वृ-त वृ-तृ१०४। सूत्र 63 कित 104 / सूत्र 66 कसिः असिः 126 / सूत्र 103 इष्ठवच्च इष्टवच्च *मुद्रणदोषाद् दृष्टिदोषान्मतिमान्याच्च प्रन्या प्रपि काश्चनाशुखयोऽत्र संजातास्ताः सर्वाः समन्ता विचक्षणाः संशोषयन्तु च करुणां कृत्वेति संपादकप्रार्थनम् / س . سه णित .. // इति समाप्तं सर्वाङ्गं चान्द्रव्याकरणसंशोधन-संपादनम् / / Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक-पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य प्रकाशित-ग्रन्थ (क) संस्कृत-प्राकृत 1. प्रमाणमञ्जरी (ग्रन्थाङ्क 4), तार्किक चूड़ामरिण सर्वदेवाचार्यकृत; अद्वयारण्य, बलभद्र, वामनभट्ट कृत टीकात्रयोपेत; सम्पादक - मीमांसान्यायकेसरी पं० पट्टाभिराम शास्त्री, विद्यासागर (7+106), 1953 ई० / 2. यन्त्रराज-रचना (ग्रन्थाङ्क 5), महाराजा सवाई जयसिंह कारित; संपादक - स्व० - पं० केदारनाथ ज्योतिविद् (+28), 1953 ई० / मू. 1.75 3. महषिकुलवैभवम्, भाग 1 (ग्रन्थाङ्क 6) स्व० पं० मधुसूदन अोझा प्रणीत, म.म.पं. गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित एवं हिन्दी व्याख्या सहित (56+291), 1956 ई० / मू. 10.75 4. महर्षिकुलवैभवम् (मूलमात्र) (ग्रन्थाङ्क 56), स्व. पं० मधुसूदन ओझा-प्रणीत, - संपादक -पं० प्रद्युम्न प्रोझा (16+133+10), 1961 ई० / मू. 4.00 5. तर्कसंग्रह, अनंभट्टकृत (ग्रं०६) टीकाकार-क्षमाकल्याणगणि; संपादक - डा. जितेंद्र . जेटली, (17+74), 1956 ई०। . मू. 3.00 6. कारकसंबंधोद्योत, (ग्र० 10) पं० रमसनन्दीकृत; कातन्त्रव्याकरणपरक रचना; - संपादक - डा. हरिप्रसाद शास्त्री (22+34), 1956 ई० / मू. 1.75 7. वृत्तिदीपिका (ग्र० 7) मोनिकृष्ण भट्टकृत; संपादक - स्व. पं. पुरुषोत्तमशर्मा चतुर्वेदी, साहित्याचार्य (6+44+12), 1956 ई०। मू. 2.00 8. कृष्णगीति (ग्र० 16) कवि सोमनाथ विरचित, राधाकृष्ण सम्बन्धी प्रेमकाव्य; ______ संपादिका - डॉ० कु. प्रियबाला शाह (27+32), 1956 / मू. 1.75 6. शब्दरत्नप्रदीप (ग्र० 19), अज्ञातकर्तृक, बह्वर्थक शब्दकोश संपादक डॉ० हरिप्रसाद शास्त्री (12+44), 1956 ई० / मू. 2.00 10. नृत्तसंग्रह (ग्र० 17), प्रज्ञातकर्तृक; संपादिका - डॉ० कु. प्रियबाला शाह (6+45) मू. 1.75 11. भृङ्गारहारावली (ग्र० 15), श्री हर्षकवि विरचित संस्कृत-गीतकाव्य ; संपादिका - डॉ० कु. प्रियबाला शाह (10+2) 1956 ई० / मू. 2.75 Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 2 ] 12. राजविनोद महाकाव्य (ग्र०८), महाकवि उदयराज प्रणीत, अहमदाबाद के सुलतान महमूद बेगड़ा का चरित्र-वर्णन; संपादक - श्री गोपालनारायण बहुरा (2+44) 1956 ई० / मू. 2.25 13. चक्रपाणिविजय महाकाव्य (ग्र० 20), भट्ट लक्ष्मीधर विरचित; उषापरिणय संबंधी अद्यावधि अज्ञात काव्य संपादक - के. का. शास्त्री (7+112), 1956 ई. / मू. 3.50 14. नृत्यरत्नकोश (प्रथम भाग) (ग्र० 25), महाराणा कुम्भकर्णकृत, संगीतराजरत्न कोषान्तर्गत; संपादक -प्रो० रसिकलाल छो० परीख एवं डॉ. कु. प्रियबाला शाह (7+144), 1957 ई०। मू. 3.75 15. उक्तिरत्नाकर (ग्र० 12), साधुसुन्दर गणि विरचित, संस्कृत एवं देशी शब्दकोष; संपादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय पुरातत्त्वाचार्य (10+118), 1957 / मू. 4.75 16. दुर्गापुष्पाञ्जलि, (ग्र० 22), म. म. पं० दुर्गाप्रसाद द्विवेदी प्रणीत; संपादक पं० श्री . गङ्गाधर द्विवेदी (36+147), 1956 ई० / . मू. 4.25 17. कर्णकुतूहल एवं कृष्णलीलामृत, (ग्र० 26), महाकवि भोलानाथ, जयपुर नरेश सवाई ___ प्रतापसिंह समाश्रित विरचित; संपादक - श्री गोपालनारायण बहुरा (25+30), 1957 ई.। मू. 1.50 18. ईश्वरविलास महाकाव्यम्. (ग्र० 26), कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट विरचित, जयपुर निर्माता सवाई जयसिंह द्वारा अनुष्ठित अश्वमेध यज्ञ का प्रत्यक्ष वर्णन एवं जयपुर राज्येतिहास सम्बन्धी अनेक संस्मरण संवलित महाकाव्य; संपादक-स्व. कवि शिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री (76+263), 1958 ई०॥ मू. 11.50 16. रसदीधिका, (ग्र० 41), कवि विद्याराम प्रणीत, संस्कृत रसालङ्कारपरक सरल एवं लघु कृति; संपादक - श्री गोपालनारायण बहुरा (12+80) 1956 ई० / मू. 2.00 20. पद्यमुक्तावली, (ग्र० 30), कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट विरचित, अनेक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक पद्य संग्रह; संपादक - स्व० कविशिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री (20+146), 1956 / मू. 4.00 21. काव्यप्रकाश, भाग 1, (ग्र०४६), मूल ग्रन्थकार मम्मटाचार्य के समकालीन भट्ट सोमेश्वर कृत 'काव्यादर्श संकेत' सहित, जैसलमेर के जैन ग्रन्थभंडारों से प्राप्त प्राचीन प्रति के आधार पर संपादित संपादक - श्री रसिकलाल छो० परीख (4+352), 1956 ई०। मू. 12.00 काव्यप्रकाश भाग 2, (ग्र० 47), संपादक - श्री रसिकलाल छो० परीख (22+ 110+64), 1956 ई० / मू. 8.25 23. वस्तुरस्नकोश, (ग्र० 45), अज्ञातकर्तृक, संस्कृत का सामान्यज्ञान-कोश; संपादक - डॉ० कु. प्रियबाला शाह (E+64); 1956 / 24. बशकण्ठवथम्, (म० 23), म. म. पं० दुर्गाप्रसाद द्विवेदी कृत, रामचरित्रात्सक संस्कृत चम्पू; संपादक - श्री गङ्गाधर द्विवेदी (4+156), 1960 ई०। मू. 4.00 Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 25. श्री भुवनेश्वरीमहास्तोत्रम्, (ग्र० 54), पृथ्वीधराचार्य विरचित, कवि पद्मनाभ प्रणीत भाष्यान्वित, पूजा-पञ्चाङ्गादि संवलित; संपादक - श्री गोपालनारायण बहुरा (1+ 169), 1960 ई० / ___ मू. 3.75 26. रत्नपरीक्षादि सप्तग्रन्थ संग्रह, (60) दिल्ली-सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के मुद्राधीक्षक ठक्कूर फेरू विरचित, मध्यकालीन भारत की आर्थिक दशा एवं रत्नपरीक्षादि वस्तुजातसंग्रहादिक विषयों पर विस्तृत विवेचनात्मक ग्रन्थ; संपादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय पुरातत्त्वाचार्य। __ मू. 6.25 27. स्वयम्भूछन्व, (ग्र० 37) कवि स्वयम्भू कृत, दसवीं शताब्दी में रचित प्राकृत एवं अप भ्रंश छन्दःशास्त्र पर अलभ्य कृति; संम्पा० प्रो. एच०डी० वेलणकर (25+244) 1962 ई० / मू. 7.75 28. वृत्तजातिसमुच्चय, (ग्र० 61), कवि विरहाङ्क कृत, ७वीं शताब्दी में प्रणीत संस्कृत एवं प्राकृत छन्दःशास्त्र पर अलभ्य कृति; संपादक प्रो० एच. डी. गेलणकर (32+ 144), 1962 ई०। . - मू. 5.25 29. कविवर्पण, (ग्र०६२), प्रज्ञातकर्तृक, १३वीं शताब्दी में रचित प्राकृत-संस्कृत छन्दः शास्त्र पर अनुपम कृति; संपादक - प्रो० एच. डी. वेलणकर (52+356), - 1962 ई० / मू. 6.00 30. वृत्तमुक्तावली, (म०६६), कविकलानिधि श्रीकृष्ण भट्ट प्रणीत, नैदिक एवं संस्कृत छन्दःशास्त्र पर दुर्लभ कृति; संपादक - स्व० पं० श्री मथुरानाथ भट्ट (17+76) 1963 ई० / 31. कर्णामृतप्रपा, (ग्र० 2) सोमेश्वर भट्ट कृत (१३वीं शताब्दी) मध्यकालीन संस्कृत-काव्य संग्रह, जैसलमेर के जैन-भंडारों से प्राप्त अलभ्य प्रति के आधार पर; संपादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य; (10+56),1963 ई०। मू. 2.25 32. पदार्थ रत्नमञ्जूषा, (ग्र. 38), श्रीकृष्णमिश्र प्रणीत दर्शनशास्त्र की वैशेषिक शाखा पर आधारित, जैसलमेर के जैन-भंडारों से प्राप्त प्राचीन प्रति के आधार पर संपादित; संपादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य; प्रस्तावना- श्री दलसुख मालवणिया / (7+45) 1963, ई० / मू 3.75 33. त्रिपुराभारती-लघु-स्तष, (ग्र० 1), लघ्वाचार्य प्रणीत वागीश्वरी स्तोत्र, सोमतिलक सूरि (1340 ई०) कृत टीका सहित; संपादक-पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य (10+56) ई० 1952 ई० / मू. 3.25 34. प्राकृतानन्द, (ग्रं० 10). रघुनाथ कवि कृत प्राकृत भाषा व्याकरण संबंधी महत्त्वपूर्ण रचना; संपादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य (17+52+53+76) 1962 ई०। . मू. 4.25 25. इन्द्रप्रस्थ-प्रबन्ध, (प्र. 70), प्रज्ञात कर्तृक, दिल्ली के प्रारम्भिक शासकों के विषय में ऐतिहासिक काव्य; संपादक - डा० दशरथ शर्मा (+46) 1963 ई० / मू. 2.25 Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 4 ] (ख) राजस्थानी - हिन्दी 1. कान्हड़दे प्रबन्ध, (ग्र० 11), महाकवि पद्मनाभ विरचित, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा जालोर दुर्ग के प्रसिद्ध घेरे आदि का वर्णन; संपादक - प्रो० के. बी. व्यास _ (33+275) 1953 ई० / मू. 12.25 2. क्यामखां रासा, (न० 13), कवि जानकृत, फतेहपुर के नवाब अलफखांन तथा राज• पूताने के क्यामखानी मुस्लिम राजपूतों के उद्गम और इतिहास का रोचक वर्णन; . संपादक - डा० दशरथ शर्मा और अगरचन्द भंवरलाल नाहटा (50+128) 1953 ई० / मू. 4.75 3. लावा रासा, (ग्र० 14) अपर नाम कूर्मवंशयशप्रकाश, गोपालदान कविया कृत, नरूका (कछवाहा) राजपूतों और पिंडारी पठानों के बीच हुए पांच युद्धों का समकालीन प्रोजस्वी वर्णन, संपादक-श्री महताबचन्द खारेड़, (19+86) 1953 ई०। मू. 3.75 , 4. बाकीदास री ख्यात, (21) बांकीदास कृत, राजस्थान के प्राचीन ऐतिहासिक विव. रणों का प्रमुख ग्रन्थ ; संपादक - श्री नरोत्तमदास स्वामी (6+218) 1956 ई० / 5. राजस्थानी साहित्य-संग्रह, भाग 1, (ग्र० 27) राजस्थानी भाषा में रचित प्रतिनिधि गद्य कथा-संग्रह; संपादक - श्री नरोत्तमदास स्वामी (14+52) 1957 ई० / मू. 2.25 6. राजस्थानी साहित्य-संग्रह, भाग 2, (ग्र० 52) तीन ऐतिहासिक वार्ताएं-बगड़ावत, प्रतापसिंह महोकमसिंह और वीरमदे सोनगिरा; संपादक - डा० पुरुषोत्तमलाल मेनारिया, (24+108) 1960 ई० / मू. 2.75 7. कवीन्द्र-कल्पलता, (ग्र० 34), मुगल बादशाह शाहजहां के समकाकीन कवीन्द्राचार्य सरस्वती कृत; संपादक - रानी लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत (7+55+5) 1958 ई० / मू० 2.00 8. जुगलविलास, (ग्र० 32), कुशलगढ़ के महाराजा पृथ्वीसिंहजी अपरनाम कवि पीथल क्रत; संपादिका - रानी लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत (5+50) 1910 ई०। मू. 1.75 6. भगतमाल, (43) चारण ब्रह्मदास दादूपंथी कृत; संपादक - श्री उदयराज उज्ज्वल (+64) 1956 ई० / मू. 1.75 10. राजस्थान पुरातत्व मंदिर के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची, भाग 1, (ग्र० 42) ई० स० 1956 तक संग्रहीत 4000 ग्रन्थों का वर्गीकृत सूचीपत्र; संपादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य, (2+302+20) 1956 ई० / मू. 7.50 11. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची, भाग 2, (ग्र० 51) 7855 तक के ग्रंथों का सूची-पत्र; (2+391) 1960 ई० / संपादक - श्री गोपालनारायण बहुरा। मू. 12.00 Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12. राजस्थानी हस्तलिखित-ग्रन्थ-सूची, भाग 1 (ग्र 44) मार्च 1958 तक के ग्रन्थों का विवरण; संपादक -पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य, (1960 ई०)। मू. 4.50 13. राजस्थानी हस्तलिखित-अन्य-सूची, भाग 2 (ग्र० 58) 1958-59 के संग्रहीत ग्रंथों का विवरण; संपादक - डॉ० पुरुषोत्तमलाल मेनारिया (2+61) 1961 ई.।। मू. 2.75 14. स्व० पुरोहित हरिनारायणजी विद्याभूषण ग्रन्थ-संग्रह सूची, (ग्र० 55), संपादक - श्री गोपालनारायण बहुरा और श्री लक्ष्मीनारायण गोस्वामी (8+163+38), 1961 ई. / . मू. 6.25 15. मुंहता नैणसी री ख्यात, भाग 1. (ग्र. 48), मुंहता नैणसी कृत साधारणतः राज स्थान देशीय एवं मुख्यतः मारवाड़ राज्य का प्रथम प्रामाणिक ऐतिहासिक ग्रन्थं; संपादक - प्रा० श्री बदरीप्रसाद साकरिया (11+365), 1960 ई०। मू. 8.50 16. म नै० री ख्यात भाग 2, (ग्र० 46), सं० प्रा० बदरीप्रसाद साकरिया (11+343) 1962 ई० / मू. 6.50 17. मुं० नै० री ख्यात भाग 3, (ग्र० 72)(2+264) 1964 ई० , मू. 8.00 18. सूरजप्रकास भाग 1, (ग्र० 56), चारण करणीदान कविया कृत, सामान्य रूप से मारवाड़ का ऐतिहासिक विवरण व विशेषतः जोधपुर के महाराजा अभयसिंहजी व सरबुलन्दखान के बीच हए अहमदाबाद के युद्ध का समकालीन वर्णन: संपादक - श्री सीताराम लाळस (20+310+37), 1961 ई०। / मू. 8.00 सूरजप्रकाश भाग 2, (ग्र० 57), संपादक - श्री सीताराम लाळस (8+363+61) 1962 ई० / मू. 6.50 20. , भाग 3, (ग्र० 58), (97+275+84) 1963 ई० / मू. 6.75 21. नेहतरंग, (ग्र० 63), बूंदी नरेश राव बुधसिंह हाड़ा कृत, काव्य शास्त्रीय ग्रन्थ संपादक - श्री रामप्रसाद दाधीच (32+120), 1961 ई०। मू. 4.00 . 22. मत्स्य-प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन, (ग्र०६६), लेखक डा. मोतीलाल गुप्त, पूर्वी राजस्थान में हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज विषयक शोध-प्रबन्ध; (6+266), 1960 ई०। मू. 7.00 23. राजस्थान में संस्कृत साहित्य की खोज, (ग्र० 31), श्री ब्रह्मदत्त त्रिवेदी द्वारा प्रोफेसर एस. प्रार. भाण्डारकर लिखित हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थों की खोज में मध्यप्रदेश व राजस्थान में 1605-6 ई० में की गई खोज-रिपोर्ट का हिन्दी अनुवाद (2+77 +19), 1963 ई० / मू. 3.00 24. समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र, (ग्र० 68), लेखक पं० सुखलालजी, हिन्दी अनुवादक. , शान्तिलाल म. जैन, राजस्थान के गण्यमान्य साहित्यकार एवं विचारक आचार्य हरि- भद्र का जीवन-चरित्र और दर्शन, (+122), 1963 ई० / Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 6 ] 25. वीरवांण, (ग्र० 33), ढाढी बादर कृत, जोधपुर के वीर-शिरोमणि वीरमजी राठौड़ संबंधी रचना; संपादिका - रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत (16+62+112), 1960 ई० / मू. 4.50 26. बसन्त-विलास फागु, (ग्र० 36), प्रज्ञातकर्तृक, १३वीं शताब्दी का एक प्राचीन राज स्थानी भाषा निबद्ध श्रृंगारिक काव्य संपादक - एम. सी. मोदी, (14+116), 1960 ई.। मू. 5.50 27. रुषमणीहरण, (प्र० 74), महाकवि सांयाजी झूला कृत; राजस्थानी भक्तिकाव्य; संपादक - डॉ. पुरुषोत्तमलाल मेनारिया (52+113) 1964 ई०। मू. 3.50 28. बुद्धि-विलास, (प्र०७३), बखतराम साह कृत, जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंहजी का समकालीन ऐतिहासिक वर्णन; संपादक - श्री पद्मधर पाठक (24+179), 1964 ई० / मू. 3.75 26. रघुवरजसप्रकास, (म० 50), चारण कवि किसनाजी पाढा कृत, राजस्थानी भाषा का काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ; संपादक - श्री सीतारामजी लाळस (20+376) 1960 ई.। मू. 8.25 30. सन्त कवि रज्जब : सम्प्रदाय और साहित्य (प्र.७६) : लेखक - डा. ब्रजलाल वर्मा (84 315+316+314), 1965 ई० / मू. 7.25 31. प्रतापरासो-जाचिक जीवण कृत, (प्र. 75): अलवर राज्य के संस्थापक रावराजा प्रतापसिंहजी के शौर्य का ऐतिहासिक वर्णन, भाषा-शास्त्रीय विशिष्ट अध्ययन सहित, सम्पादक * डा. मोतीलाल गुप्त (166+118), 1965 ई०। मू. 6.75 32. भक्तमाल, (प्र. 78) राघोदास कृत, चतुरदास कृत टीका; दादूपन्थीय भक्त नामावली और विवरण, सम्पादक-श्री अगरचन्द नाहटा (3+2+286) 1965 मू. 6.75 (ग) अंग्रेजी 1. संस्कृत व प्राकृत ग्रन्थों का सूचीपत्र भाग 1 (म०७१), राजस्थान प्राच्यविद्या प्रति ष्ठान, जोधपुर-संग्रह का स्वरित रोमन-लिपि में 4000 ग्रन्थों का सूचीपत्र, अंत में विशिष्ट ग्रन्थों के उद्धरण; संपादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य (16+6+ 373+159), 1863 ई.। मू. 37.50 " भाग 2 अ (प्र० 77), संपादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य, (16+70+326+6E), 1964 ई०। मू. 34.50 सूचना- पुस्तक विक्रेतामों को 25% कमीशन दिया जाता है। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- _