________________ त्व-दुरो] चान्द्रव्याकरणम् [153 त्व-अही. सौ 5 / 4 / 60 / दाम्नः संख्यादेः 2 / 3 / 10 / थलीटि 5 / 3 / 117 / दास्वान् साह्वान् मीढ्वान् चिक्लिवदम् थासः से 1 / 4 / 17 / चक्नसम् 5 / 16 / थो न्थ: 5 / 4 / 40 / दिक्शब्दात् तीरस्य तारः 5 / 2 / 126 / दिक्शब्दात् दिग्देशकालार्थात् सप्तमीदः 6 / 3 / 107 / __ पञ्चमी-प्रथमाभ्यः अस्तातिः 4 / 3 / 28 / दक्षिणा-कडङ्गर-स्थालीबिलात् छश्च दिगादिभ्यः भवे यत् 3 / 3 / 17 / 4 / 1180 / दिगादे: अनाम्नि अमद्रात् 3 / 2 / 16 / दक्षिणा-पश्चात्-पुरसः त्यक् 3 / 2 / 7 / / दक्षिणेर्मा लुब्धयोगे 4 / 4 / 11 / / दिगादेः ठञ् च 3 / 2 / 68 / दक्षिण-उत्तरात् आच्च दिति-अदिति-आदित्य-यमात् ण्यः 2 / 4 / 2 / 4 / 3 / 38 / / दगु-कोशल-कार-छाग-वृषात् युट च दिवः औत् 5 / 4 / 37 / 2 / 4 / 87 / दिवस्-पृथिव्यां वा 5 / 2 / 27 / दण्ड-दानयोः 4 / 4 / 4 / दिवादिभ्यः श्यन् 1 / 1 / 87 / दण्डादिभ्यः 4 / 176 / .. दिवेर् ऋन् (उणादि) 1148 / दधृग्-उष्णिक-क्रुञ्चः 1 / 2 / 46 / दिवो दासे 5 / 2 / 17 / दनः ठक् 3 / 1 / 16 / दिवो द्यावा 5 / 2 / 26 / दन्तुरः 4 / 2 / 110 / दिवः अन्ते च उत् 5 / 1 / 135 / दम्भः इच्च 6 / 2 / 106 / दीङ अक्ङित्सनि ल्यपि 5 / 1 / 52 / दम्भः स्सनि च 5 / 3 / 26 / दीङ: लिटि युक् 5 / 3 / 74 / दम्भ-श्रन्थ-ग्रन्थाम् 5 / 3 / 122 / दीप-जन-बुध-पूरि-तायि-प्यायो वा दयायाम् 4 / 3 / 63 / 1 / 177 / दरिद्रः किति 5 / 3 / 112 / दीयते नियुक्तम् 3 / 4 / 67 / दशैकादश-कुसीदात् ष्ठन् 3 / 4 / 38 / / दीर्घस्य 5 / 172 / दः ति 5 / 2 / 143 / दीर्घात् जसि च 5 / 1 / 112 / दाणः सा चेत् चतुर्थ्यर्थे 1 / 4 / 108 / दीर्घात् 6 / 4 / 147 / दाण्डिनायन-हास्तिनायन-जैह्माशिनेय- दीर्घात् वरुणस्य 6 / 1 / 33 / वासिनायनि-भ्रौणहत्य-धैवत्य-सारव- दीर्घः अपिति इणः 6 / 2 / 122 / - ऐक्ष्वाक-हिरण्मयानि 5 / 3 / 178 / / दीर्घः लघोः 6 / 2 / 141 / दादेर्धातोः घः 6 / 3 / 63 / दा-धा-गाति-स्था-भू-पः अतङि लुक् / दुःखात् प्रातिकूल्ये 4 / 4 / 48 / 111162 / दु-ग्वोः ऊ च 6 / 3 / 78 / दा-भाभ्याम् नुः (उणादि) 1 / 28 / दु-न्यः अप्रादेः 1 / 1 / 150 / दामन्यादिभ्यः छः 4 / 3 / 12 / दुरो ढक् वा 2 / 4 / 74 / 20