________________ 154] चान्द्रव्याकरणम् [दुषो--वि दुषो णौ 5 / 3 / 64 / दैवयज्ञि-शौचिवृक्षि-सात्यमुनि-काण्ठेदुहो दुधः 1 / 2 / 54 / विद्धीनाम् वा 2 / 3 / 5 / दूरादयः (उणादि) 3 / 10 / द: दत् 6 / 2 / 66 / दूरावाने 6 / 3 / 116 / द: अनडुहः 6 / 3 / 103 / दूरेत्य-औत्तराहौ 3 / 2 / 16 / दः अपः 1 / 1 / 4 / दृग-दृश-दृक्षे 5 / 2 / 106 / द: मः 5 / 4 / 73 / दृङो भः (उणादि) 2065 / दो-सो-मा-स्थाम् इत् ति किति 6 / 2 / 12 / दृढ : स्थूल-बलिनोः 5 / 4 / 148 / द्यावापृथ्वी-शुनासीर-मरुत्वत्-अग्नीषोमदृति-कुक्षि-कलशि-वस्ति-अस्ति-अहेः ढञ् वास्तोष्पति-गृहमेधात् छश्च 3 / 1 / 30 / 3 / 3 / 16 / द्युति-स्वाप्योः यणः इक् 6 / 2 / 120 / द-वसिभ्यां क्तिन् (उणादि) 1184 / युद्भ्यो लुङि 1 / 4 / 143 / / दृश्-अभिवाद्यो: तङाने 2 / 1 / 46 / द्यु-द्रुभ्यां मः 4 / 2 / 112 / . .. दृश्यर्थे अनालोचने 6 / 3 / 23 / द्यु-प्राग्-अपाग-उदक्-प्रतीचो यत् दृष्टं साम डित् वा 3 / 17 / 3 / 2 / 10 / द-सनि-जनि-चरि-चटि-तलिभ्यः षण् द्रव्य-वस्नात् कन्-ठनौ 4 / 1 / 73 / (उणादि) 1 / 2 / द्रु-दक्षिभ्याम् इनन् (उणादि) 2 / 65 / देङ: दिगि लिटि 6 / 1 / 66 / द्रोः 3 / 3 / 124 / / देये त्रा च 4 / 4 / 3 / / द्रोणात् 2 / 4 / 40 / देवता 3 / 1 / 21 / द्वन्द्वं रहस्य-मर्यादा-व्युत्क्रान्ति-यज्ञपात्रदेवतानां चार्थे सूक्त-हविषो: 6 / 1 / 31 / . प्रयोगेषु 6 / 3 / 12 / देवतानाम् अवायूनां वेदे सह श्रुतानाम् द्वयोः एकः 5 / 1 / 81 / 5 / 2 / 23 / द्वारादीनाम् 6 / 1 / 15 / देवतान्तात् तदर्थे यत् 4 / 4 / 31 / / द्वितीय-तृतीयौ 4 / 2 / 56 / देवव्रतादिभ्यः डिनिः 4 / 1 / 10 / द्वितीयातृतीयात् वा 6 / 2 / 58 / देवात् 2 / 4 / / द्वितीयायाम् 1 / 3 / 145 / देवादिभ्यः द्वितीया-सप्तम्योः बहुलम् द्वि-त्रि-चतुरः सुच् 4 / 4 / 7 / 4 / 4 / 40 / द्वि-त्रि-बहादे: निष्क-विस्तात् 4 / 1140 / देविका-शिंशपा-दीर्घसत्त्र-श्रेयसाम् आत् द्वि-त्रिभ्यां मूर्ध्नः 4 / 4 / 68 / 61 / 12 / द्वि-त्रिभ्याम् अञ्जले: 4 / 4 / 86 / देशे अनूपः 5 / 2 / 114 / द्वि-त्रिभ्याम् अयट् वा 4 / 2 / 47 / देहांशात् 3 / 3 / 18 / द्वि-त्रेः धमुन 4 / 3 / 23 / देहांशात् यत् 4 / 1 / 6 / द्वि-त्र्यादेः अण् च 4 / 1 / 46 /