________________ द्वित्वहेती-धेनोः चान्द्र व्याकरणम् [155 द्वित्वहेतौ . 6 / 186 / धर्मात् अनिच् केवलात् 4 / 4 / 113 / द्वित्वे 5 / 1 / 40 / धर्म-अधर्मं चरति 3 / 4 / 36 / द्वित्वे 6 / 3 / 110 / धर्मेण प्राप्ये 3 / 4 / 63 / द्वित्वे अध्यादिभिः 2 / 1151 / धस् त-थोश्च 6 / 3 / 70 / द्वित्वे परसवर्णः 6 / 3 / 34 / धानो हिः 6 / 2 / 64 // द्वित्वे पूर्वस्य अत्र लोपः 6 / 2 / 111 / धातूक्तौ अयदि वा 1 / 3 / 116 / द्वित्वे पूर्वस्य असमे 5 / 3 / 84 / धातोः सी-लुङोश्च धः ढः 6 / 4 / 6 / / द्विदण्ड्यादीनि 4 / 4 / 117 / . धातोः र्वोः अनचि इक: दीर्घः द्वि-बहुषु प्रकर्षे तरप्-तमपौ 4 / 3 / 45 / 6 / 3 / 108 / द्विरुक्तस्य नाचि अलिटि 6 / 27 / धातोः तत्रैव 5 / 1177 / द्विरुक्तात् अत् 1 / 4 / 4 / धा-दा-नी-पति-पा-शसिभ्यः ष्ट्रन् (उणादि) द्विस्तावा त्रिस्तावा वेदिः 4 / 4 / 70 / 3 // 36 // द्वीपात् अनुसमुद्रात् ज्यः 3 / 2 / 65 / धान्ये नित् (उणादि) 17 / द्वेश्च संख्यायां प्राक् शतात् अनन्यार्थ धान्येभ्यः क्षेत्रे खञ् 4 / 2 / 1 / ..अशीत्योः 5 / 2 / 52 / धाय्या-पाय्य-आनाय्य-सांनाय्य-निकाय्या द्वयचः 2 / 4 / 51 / नाम्नि 1111136 / द्वयच: अणः 2 / 4 / 88 / द्वयचः असंख्यापरिमाण-अश्वादेः यत् धारि-पारि-वेदि-उदेजि-चेति-साति-साहि४।११५२। __विन्दः अप्रादेः 111 / 144 / द्वयच्-ऋत्-ऋग्-ब्राह्मण-प्रथम-अध्वर- धारे: उत्तमणे 2 / 174 / . पुरश्चरण-नाम-आख्यातात् ठक् धारेः धर् च 1 / 2 / 31 / 3 / 3 / 46 / धा संख्यायाः 4 / 3 / 20 / यच-नौभ्यां ठन् 3 / 4 / 6 / / धि सङि 6 / 3 / 54 / द्वयच्-मगध-कलिङ्ग-शूरमसात् अण् धुटि श्चुः 6 / 3 / 33 / 2 / 4 / 100 / धरो ढक् च 3 / 4 / 78 / द्वि-अन्तः-प्रादेः अनात् अप ईत् धूञ्-प्रीमो: नुक् 6 / 1 / 48 / 5 / 2 / 113 / धूमादिभ्यः 3 / 2 / 41 // धन-गणं लब्धा 3 / 4 / 83 / / धृष-शसः प्रागल्भ्ये 5 / 4 / 147 / धनस्य तृष्णायाम् 6 / 2 / 88 / धृषेः धिष् च (उणादि) 271 / धन-हिरण्ये कामः 4 / 270 / धेनुष्या-गार्हपत्यौ नाम्नि 3 / 4 / 88 / धनुर्नाम्नि 4 / 4 / 121 // धेनोः अनञः 3 / 1146 / धर्म-शील-वर्षान्तात् 4 / 2 / 126 / धेनोः भव्यायाम् 5 / 2 / 86 /