________________ 156] चान्द्रव्याकरण [धेन्वनडुह-त धेन्वनडुह-ऋग्यजुष-अक्षिध्रुव-दारगव- नञः शुचि-ईश्वर-क्षेत्रज्ञ-कुशल-निपुणानाम् ऊर्वष्ठीव-पदष्ठीव-नक्तंदिव-रात्रिंदिव 6 / 13 / अहदिव-सरजस-पुरुषायुष-द्वयायुष-त्र्या- नञः नः 5 / 2 / 6 / / युष-जातोक्ष-महोक्ष-वृद्धोक्ष-उपशुन- नञः अनन्यार्थे 4 / 1 / 137 / - गोष्ठश्वाः 4 / 4 / 62 / नञः अनन्यार्थे 4 / 4 / 55 // धेन्वादयः (उणादि) 1 / 31 / नज-बहो: माणव-चरणयोः 4 / 4 / 56 / धे-श्वेः वा 1 / 1 / 66 / नञ-सु-दुर्यः सक्थ्नो वा 4 / 4 / 106 / धे-सि-शद-सदो रुः 1 / 2 / 105 / ना-सु-वि-उप-त्रेः चतुरः अच् 4 / 4 / 103 / ध्मः पाण्यादिभ्यश्च 1 / 2 / 14 / नटात् ञ्यः नृत्ये 3 / 3 / 61 / न टो: अनवति-नगर्योः आदेः 6 / 4 / 137 / नः 5 / 3 / 6 / नडादिभ्यः 2 / 4 / 35 / नः 6 / 4 / 14 / न तङानः 5 / 4 / 122 // न कपि 6 / 271 / न किमः क्षेपे 4 / 4 / 53 / न तस्मिन् 5 / 1 / 41 / / न कुङ: यङि 6 / 2 / 117 / न त्यादि-वुकोपान्तम् 5 / 2 / 34 / न क्रोडादिभ्यः 2 / 3 / 67 / न दधिपयआदीनाम् 2 / 2 / 66 न क्वादेः 3 / 10 / नदी-देश-नगराणां भिन्नलिङ्गानाम् नक्षत्रात् इतो वा 6 / 4 / 86 / . 2 / 2 / 54 / नदीभिः 2 / 2 / 13 / नक्षत्रात् नेतुः 4 / 4 / 102 / नदी-मानुषीनाम्नः अनादैजाद्यचः२।४।४२। नक्षत्रः इन्दुयुक्तः कालः 3 / 1 / 5 / नदीष्णः कुशले 6 / 4 / 76 / न क्षुधि अशनस्य 6 / 2 / 87 / नद्यादिभ्यः ढक् 3 / 2 / 6 / नख-मुखात् नाम्नि 2 / 3 / 66 / न द्विः 3 / 3 / 127 / नखादयः 5 / 2 / 15 / न गति-हिंसा-शब्दार्थ-हसः 114 / 50 / न द्वित्वे 5 / 111.03 / न द्वयचः प्राच्यात् 3 / 2 / 23 / नगरात् कुत्सा-प्रावीण्ययोः 3 / 2 / 42 / नगरात् अहस्तिनि 1 / 2 / 41 / / न ध्या-ख्या-प-मूछि-मदाम् 6 / 3 / 65 / न गोपवनादिभ्यः अष्टभ्यः 2 / 4 / 116 / न नाम्नि 4 / 4 / 143 / नगः अप्राणिनि वा 5 / 2 / 66 / न नि मुः 6 / 3 / 26 / न नी-खादि-अदि-ह्वा-शब्दाय-क्रन्दः नक् वा 6 / 3 / 61 // न च-वा-हा-हैवयोगे 6 / 3 / 22 / 2 / 1147 / न च्विङीयण-इयुवाम् अभ्रकंसादीनाम् नन्दि-ग्रहादिभ्यः ल्यु-णिनी 1 / 1 / 140 / 5 / 272 / न न्द्वो हलि 5 / 1 / 4 / नन् 2 / 2 / 20 / न पदातौ 3 / 2 / 51 //