________________ 134] चान्द्रव्याकरणम् [आवश्यके-इन् / आवश्यके णिनिः 1 / 2 / 55 / इङ: गमः 5 / 3 / 14 / आशिताद् भुवः भाव-करणयोः इचि 5 / 2 / 48 / 1 / 2 / 26 / इजादेर्गुरुमतोऽनृछ्-ऊर्णोः 1 / 1 / 52 / आशिषि 1 / 1 / 156 / इच् व्यतिहारे 4 / 4 / 116 / आशिषि 6 / 178 // इञः 2 / 3 / 74 / .. आशिषि. तु-ह्यो: तातङ वा 1 / 4 / 22 / इञः 3 / 2 / 22 / आशिषि दीर्घः 6 / 2 / 77 / इट: ईटि 6 / 3 / 57 / आशिषि नाथः 1 / 4 / 62 / इटि लिटि 5 / 4 / 16 / आशिषि आयुष्य-भद्रार्थ-कुशलार्थश्च इट: अत् 1 / 4 / 38 / 2 / 1 / 18 / आशेषात् भूते वा 1 / 3 / 108 / इट् सनो वा '5 / 4 / 104 / इडादीनाम् ऐप् आश्चर्ये 1 / 3 / 115 / 1 / 4 / 26 / इड् आश्वयुज्याम् उप्ते वुन् 3 / 3 / 11 / वा 4 / 1 / 35 / / आसत्तौ 1 / 3 / 142 / इणः कित् (उणादि). 2 / 67 / आ-समः स्रो: 1111148 / / इणः षः 6 / 4 / 34 / आसीनः 5 / 4 / 176 / इण्-एधो: 5 / 185 // आसु-यु-वपि-रपि-लपि-त्रपि-चमि-दभः इण: णित् (उणादि) 3 / 63 / / 1 / 1 / 133 / इणः नुट् च (उणादि) 3 / 107 / .. आहारार्थात् 1 / 2 / 71 / इणः यण् 5 / 3 / 87 / आहि च दूरे 4 / 3 / 3 / इण्-जि-सृ-नश क्वरप्, .1 / 2 / 106 / इण-भी-का-पा- लि-मचिभ्यः कन् इक: काशे 5 / 2 / 142 / ( उणादि) 2 / 1 / इक्-इश्-तिप : स्वरूपे 1 / 3 / 66 / इण्-स्तु-शासु-वृ -दृ-जुषः 111 / 120 / इकः अचि सुपि 5 / 4 / 26 इकः अदेङ क्रियार्थायाः 6 / 2 / 1 / इतः अङि 1 / 4 / 30 / इतः अनिञः 2 / 4 / 52 / इक: अनिटि 6 / 2 / 23 / इक: यण् अचि 5 / 1 / 74 / इत: नृजातेः 2 / 3 / 73 / इक: असस्थाने हस्वश्च असमासे इत् कोशल-आजादात् 2 / 4 / 66 / 5 / 1 / 132 / इत्ये अनभ्याशस्य 5 / 276 / इकः हस्वः 5 / 2 / 71 / इदम्-अदसोः कात् 2 / 1 / 3 / इगुपान्तात् कि: (उगादि) 1 / 52 / / इदम् अयम् इयम् 5 / 4 / 72 / इङ: 5 / 4 / 65 इदितः नुम् 5 / 4 / 10 / इङः शक्तौ 1 / 2 / 85 / इदुतो: एङ 6 / 2 / 48 / इङ: षित् वा 1 / 3 / 6 / इद्-उद्भयाम् औट 6 / 2 / 61 /