________________ नुवः-- हस्तप्राप्ये] चान्द्रव्याकरणम् [187 स्रुवः चिक् (उणादि) 372 / हनः 6 / 4 / 116 / स्रु-श्रु-द्रु-गु-प्लु-च्यूनाम् वा 6 / 2 / 131 / हनः कुत्सायाम् 1 / 2 / 64 / स्वञ्जः 5 / 3 / 27 / हनस्तोऽचिण्-णलोः 6 / 1140 / स्वन-हसो वा 1 / 3 / 52 / हनः घ्नी हिंसायाम् 6 / 2 / 83 / स्वपः 5 / 1 / 23 / हनः जः 5 / 3 / 60 / स्वप्नक् तृष्णक् 1 / 2 / 116 / हनो जघ च (उणादि) 2072 / स्वर्गादिभ्यः यत् 4 / 1 / 133 / हनो वध लिङि 5 / 4 / 86 / स्वसुः 2 / 4 / 66 / ह-य-व-र-लण् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 5) स्वसृ-पत्योर्वा 5 / 2 / 16 / हरति उत्सङ्गादिभ्यः 3 / 4 / 14 / स्वागतादीनाम् 6 / 1 / 18 / हरितादिभ्यः अञः 2 / 4 / 36 / स्वाङ्गात् तस्-ना-धार्थं भुवा च 2 / 2 / 43 / हल प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 13) स्वाङ्गात् अकृत-मित-जात-प्रतिपन्नात् हल: 5 / 3 / 2 / अन्यार्थे 2 / 3 / 57 / हल-सीरात् ठक् 3 / 3 / 88 / स्वाङ्गात् अप्रधानात् 2 / 3 / 61 / / हल: ति-सिपः 5 / 1 / 65 / स्वाङ्गात् ईद् अमानिनि 5 / 2 / 37 / हलस्य कर्षे 3 / 4 / 66 / स्वाङ्गेषु शक्तः 4 / 271 / हलादे: इजुपान्तात् 6 / 4 / 125 / स्वात् ईर-ईरिणो: .5 / 1 / / हलादेः उपान्तस्य अश्वस-क्षण-ह-म्-य्स्वादिभ्यः नुः 1 / 165 / एदितः अतः 6 / 17 / स्वादीनाम् 6 / 4 / 57 / हलि पिति उतः औत् 6 / 2 / 30 / स्वाद्वर्थात् अदीर्घात् 1 / 3 / 135 / हलि मः 6 / 4 / / स्वामिन् ईशे 4 / 2 / 143 / हल: अचः 6 / 1 / 4 / स्वाम्ये अधिना 2 / 1 / 61 / हलः झरां झरि सस्थाने लोपो वा स्वार्थे 2 / 3 / 16 / 6 / 4 / 155 / स्वार्थे 5 / 4 / 138 / हल: अनादेः 6 / 2 / 112 / स्व-सूङ-ऊदितः 5 / 4 / 107 / हल: अनिदितः क्ङिति उपान्तस्य 5 / 3 / 23 / स्-वो वा-ऽमौ 1 / 4 / 25 / * सु-औ-जस्-अम्-औट-शस्-टा-भ्यां-भिस्-डे हल: यादेः 5 / 3 / 152 / भ्यां-भ्यस्-ङसि-भ्यां-भ्यस्-डस्-ओस हल: हौ शानच् - 1 / 1 / 102 / आम्-ङि-ओस्-सुप् 2 / 1 / 1 / हलि अश् 5 / 4 / 75 / हवः 1 / 3 / 62 / ह एति 6 / 2 / 101 / हशि च अतो रो: 5 / 1 / 116 / हनः 1 / 2 / 37 / हस्त-दन्तात् जातौ 4 / 2 / 130 / हनः 5 / 3 / 46 / हस्तप्राप्ये घेः अस्तेये 1 / 3 / 31 /