________________ चान्द्रव्याकरणम् 188] - [हस्ति-हवा हस्ति -पुरुषात् अण् च 4 / 2 / 40 / / हृदयस्य अणि हृत् 5 / 2 / 55 / हस्तेन 113 / 137 / हृद्-भग-सिन्धोः पूर्वस्य च 6 / 1 / 26 / हस्ति-अचित्तात् 3 / 1 / 4 / हृ-सृ-तडि-रुहि-युषिभ्यः इतिः (उणादि) हाकः 5 / 3 / 106 / 376 / हाकः त्वि 6 / 2 / 65 // हृ-सः अवात् 1 / 1 / 146 / हायनात् वयसि 2 / 3 / 11 / हेतु-फलयोः 1 / 3 / 120 / हायनान्तयुवादिभ्यः अण् 4 / 1 / 146 / / __ हेतौ 2 / 1 / 68 / हिंसायां प्रतेश्च 5 / 1 / 136 / हे म-न-य-व-लपरे ते वा 6 / 4 / 11 / हिंसात् एकाप्यात् 1 / 3 / 140 / हेमन्तात् वा तलोपश्च 3 / 2 / 80 / हितनाम्नो वा 5 / 3 / 172 / हेमार्थात् परिमाणे 3 / 3 / 107 / हित-सुखाभ्यां चतुर्थी च 2 / 167 / हेः अचङि 6 / 187 / हिता भक्षाः 3 / 4 / 66 / हैयंगवीनं संज्ञायाम् 3 / 3 / 121 / . हिनु-मीना-आनि 6 / 4 / 115 // हो ढः 6 / 3 / 62 / . . हिमं सहते चेलुः 4 / 2 / 156 / हो द्वे च (उणादि) 2 / 6 / हिम-हति-काषि-ष्ठन्-यति पद् 5 / 2 / 56 / हः व्रीहि-कालयोः 1 / 1 / 156 / हिमादिभ्यः 4 / 2 / 136 / हः हिर् च (उणादि) 2 / 116 / हिम-अरण्यात् महत्त्वे 2 / 3 / 52 / / हो वा 5 / 3 / 110 / हीने 2 / 1 / 58 / हस्वः 6 / 2 / 116 / हीयमान-पापयुक्तात् 4 / 3 / 4 / हस्वस्य अतिङि पिति तुक् 5 / 1 / 66 / हु-झल: अनिटः हेः धिः 5 / 3 / 68 / हस्वात् 6 / 3 / 56 / हु-स्नुवोः अलिटि 5 / 3 / 61 / हस्वात् सुपः ति 6 / 4 / 87 / हूनां द्वे च 1 / 1184 / हस्वापो नुट् . 2 / 1 / 32 / हृ-क्रोः एणुः (उणादि) 1 / 27 / / हस्वे 4 / 3 / 70 / . हृ-क्रोर्वा 2 / 1 / 45 / ही-इषि-कृशिभ्यः कुक्-सुग्-आनुक् हुस्रो गतिशीले 1 / 4 / 61 / . (उणादि) 1 // 35 // हो दुक् च (उणादि) 2 / 108 / / हु लादो ह लद् 6 / 3 / 12 / हो दृति-नाथात् पशौ 1 / 2 / 6 / / ह वः 5 / 1 / 36 / हृदयस्य प्रिये 3 / 4 / 67 / ह वा-लिप्-सिच: 1 / 171 /