________________ 186] चान्द्रव्याकरणम् [स्तोमे --बु स्तोमे डट् 4 / 1164 / / स्थूलादिभ्यः कन् 4 / 3 / 27 / स्तोः ऊ च (उणादि) 2 / 83 / स्नु-नमः स्वयम् 1 / 4 / 102 / स्त्रियां कुरु-कुन्ति-अवन्तिभ्यः 2 / 4 / 105 // स्पर्धायाम् आङः 1 / 4 / 77 / स्त्रियां क्तिन् 1 / 3 / 74 / स्पर्श-द्रवमूर्योः श्यः 5 / 1 / 26 / स्त्रियां पुंवत् उक्तपुंस्कम् अनूङ एकार्थे स्पृश-मृश-कृष-तृप-दृप-सृपां वा 6 / 2 / 6 / स्त्रियाम् अप्रधानपूरणी-प्रियादौ स्पृश-मृश-कृष-तृप-दृपो वा 1 / 1 / 61 / 5 / 2 / 26 / स्पृशः अनुदकात् क्विन् 1 / 2 / 48 / स्त्रियां लुक् 2 / 4 / 30 / स्पृहि-गृहि-पति-शीङ: आलुच् 1 / 2 / 104 / स्त्रियां वा 6 / 2 / 52 // स्पृहेः आय्यः (उणादि) 2 / 113 / / स्त्रियाः 5 / 3 / 85 // स्फायः स्फी: 5 / 1 / 32 / स्त्रियाः 6 / 2 / 55 // स्फायो वः 6 / 1153 / स्त्रियाम् 2 / 3 / 1 / स्फुरि-स्फुलोर्घत्रि 5 / 1 / 51 / स्त्रियाम् 5 / 4 / 46 / स्फुरि-स्फुलोनिर्-नि-विभ्यः 6 / 4 / 64 / स्त्रीणाम् 2 / 1 / 37 / स्मपरे लङ च 1 / 3 / 5 / . स्त्रीनाम्नि 4 / 4 / 132 / स्-महतोर्नुमि 5 / 3 / / स्त्री-पुंसाभ्यां नञ् -स्नौ 2 / 4 / 13 / / स्मि-अजस-हिंस-दीप-नम-कम-कम्पो रः स्त्रीबहुषु फक् 2 / 4 / 34 / 1 / 2 / 116 // स्त्री-यूभ्याम् 2 / 1 / 35 // स्मृत्युक्तौ लुट् 1 / 2 / 7 / स्थः 6 / 1167 / स्मृ-दृशः 1 / 4 / 112 / स्थः प्रतिज्ञा-निर्णय-प्रकाशनेषु 1 / 4 / 64 / स्मृ-द-त्वर-प्रथ-प्रद-स्त-स्पशाम् अत् स्थण्डिले शेते व्रती 3 / 1 / 13 / / 6 / 2 / 142 स्थलादिना 4 / 1 / 6 / / स्मे लोट् 113 / 125 // स्थादीनां द्विरुक्तेन तस्य च 6 / 4 / 58 / स्मेः च 5 / 1156 / स्थानान्त-गोशाल-खरशालात् लुक् स्मै च तीयात् 2 / 1 / 16 / 3 / 3 / 6 / स्मैवतः स्याड् अत् च 6 / 2 / 57 / स्था-भास-पिस-कसो वरच् 1 / 2 / 122 / स्य-तासौ ल-लुटोः 1 / 1 / 56 / स्था-स्ना-पा-व्यधि-हनि-युधः कः / स्यदो जवे 5 / 3 / 32 / 1 / 3 / 46 / स्यन्दो यणः इग् धश्च (उणादि) 1 / 17 / स्थास्नुः 1 / 2 / 65 / स्यमो यः ईत् च (उणादि) 2 / 10 / स्थिरादयः (उणादि) 3 / 6 / स्य-सिचि कृत-चूत-च्छृद-तृद-नृतः स्थूल-दूर-युव-क्षिप्र-क्षुद्राणां यणादेः य-वोः __5 / 4 / 120 // ___एक च 5 / 3 / 156 / जु-रिङभ्यां तुट् च (उणादि) 3 / 106 /