________________ 130 चान्द्रव्याकरणम् [अन्तःपूर्वात् -- अयःशूल अन्तःपूर्वात् तदर्थात् ठञ् 3 / 3 / 24 / अप्रादेर्वा 1 / 4 / 86 / अन्तरः अयनस्य च अदेशे 6 / 4 / 121 / अब्दादयः (उणादि) 2061 / - अन्तर्-बहिाम् लोम्नः 4 / 4 / 101 / अब्राह्मणात् 2 / 4 / 120 / अन्तर्वत्नी गभिण्याम् 2 / 3 / 28 / अभाव-कर्मणोः अनो ये 5 / 3 / 168 / / अन्तिकस्य तमे तादेः 5 / 3 / 145 / अभिजित्-विदभृत्-शालावत्-शिखावत्अन्ते 6 / 4 / 131 // शमीवत्-ऊर्णावत्-श्रुमद्भयः अपत्याणः अन्त्याऽजादे: 5 / 3 / 138 / यञ् 4 / 3 / 65 / अन्नात् णः 3 / 4 / 84 / अभिनिष्टानो वर्णे 6 / 4 / 73 / अन्यार्थे 2 / 3 / 32 / अभिविधौ इनुण 1 / 373 / अन्यार्थे नाम्नि 2 / 2 / 14 / अभिविधौ संपदा च सातिर्वा अन्यार्थे वा 2 / 3 / 6 / 4 / 4 / 37 / अन्येषाम् अपि 5 / 2 / 145 / अभूततद्भावे कृ-भू-अस्तियोगे विकारात् अन्वग् आनुकूल्ये 2 / 2 / 45 / विः 4 / 4 / 35 // अन्वादेशे 6 / 3 / 20 / अभेः अविदूरे 5 / 4 / 153 / अपगुरः णमुलि 5 / 1 / 55 / अभ्यमित्रं छश्च 4 / 2 / 20 / / अपचितिः 5 / 4 / 157 / / अमद्राणां दिशः 6 / 1 / 24 / अपमित्य कक् 3 / 4 / 21 / अमनुष्यात् 2 / 2 / 7 / / अपरस्पराः सातत्ये 5 / 1 / 141 / अमावसो वा 111 / 134 / / अपवदः 1 / 4 / 127 / अमावस्यार्थात् अश्व. 3 / 3 / 5 / अपस्किरः 1 / 4 / 60 / अमि-चि-मिदेः त्रक् (उणादि) 3 / 40 / अपात् चतुष्पात्-शकुनिषु हृष्ट-अन्न अमि-नक्षि-कडिभ्यः अत्रच (उणादि) कुलायार्थिषु 5 / 1 / 140 / 3 / 3 / अपादादौ पदात् एकवाक्ये 6 / 3 / 15 / अमि पूर्वः 5 / 1 / 113 / अपोनपात्-अपांनपातोः तृ चात: अमू अमी 5 / 1 / 126 / 3 / 1 / 26 / अमेः अतिः (उणादि) 186 / अपः भि 6 / 2 / 68 / अमेः भुक् च (उणादि) 3 / 110 / अप्-तृ-स्वस-नप्तृ-नेष्ट-त्वष्ट्र-क्षतृ-होतृ- अम्बा-अम्ब-गो-भूमि-द्वि-त्रि-कु-शेकु-शङकु __ पोतृ-प्रशास्तृणाम् 5 / 3 / 6 / अङगु-मञ्जि-पुज-बहिस्-दिवि-अग्निभ्यः अप् पूरण्याः तासु 4 / 4 / 6 / / स्थः 6 / 4 / 04 / अप्राणिजातीनाम् 2 / 2 / 53 / अम्बार्थानाम् अडलेकानां ह्रस्वः 6 / 2 / 45 / अप्राणिनाम् अरज्वादिभ्यः - 2 / 3 / 76 / अम् सौ संबुद्धौ 5 / 4 / 51 / / अप्रादेः ज्ञः 1 / 4 / 126 / अयःशूल-दण्डाजिनाभ्यां ठक् 4 / 2 / 2 /