________________ [169 मिपः -- यतो] चान्द्रव्याकरणम् मिपः अम् 1 / 4 / 31 // मो वा 5 / 3 / 36 / मिमतात् 2 / 4 / 83 / मि-मी-मा-रभ-लभ-शक-पत-पद-दा-धाम् य-काभ्याम् आपः अत्यक्-त्यपो वा 6 / 171 / अचः सि सनि इस् 6 / 2 / 106 / यकि 5 / 3 / 64 / मि-म्योः अखल-अचि 5 / 1 / 53 / यङश्वाप् 2 / 3 / 80 / मुदि-ग्रः गक्-गौ (उणादि) 2 / 26 / / यङि 5 // 1 // 25 // मुद्गात् अण् 3 / 4 / 25 / यङि 6 / 2 / 82 / मुहेर् मूर् च ( उणादि) 2 / 24 / यङ: बहुलम् 1 / 1 / 86 / मूर्ती घनः 1 / 3 / 65 / यङः वा 6 / 2 / 35 // मूलम् अस्य अदृढम् 3 / 4 / 87 / यच्च-यत्रयोः गर्हायाम् च 1 / 3 / 114 / मूलेन आनाम्ये 3 / 4 / 86 / यत्-छौ चलोपश्च 4 / 2 / 58 / मृ-कणिभ्याम् ईचिः (उणादि) 168 / यचि अणादौ 5 / 2 // 32 // मृगपूर्वोत्तरात् च सक्थ्नः 4 / 4 / 83 / यचि अशि-सुटि 5 / 3 / 126 / मृगव्या-अटाटये 1 / 3 / 81 / यजः 1 / 2 / 63 / मृ-गृ-वा-हसि-इण्-अमि-दमि-लू-पू-धूविभ्यः यज-जप-दह-दशः यङः 1 / 2 / 112 / तन् (उणादि) 2150 / यो शश्च (उणादि) 3 / 103 / मृङः उतिः (उणादि) 3 / 74 / यजः बहुलम् 6 / 1 / 6 / . मृङ: त्युक् (उणादि) 1 / 36 / यज्ञात् घः 4 / 1 / 77 / ' मृङ: लुङ-लिङोश्च 1 / 4 / 116 / यज्ञेभ्यः 3 / 3 / 40 / मृजेः आत् 6 / 1 / 1 / / यज्ञे संस्तावः 113 / 23 / मृड-मृद-गुध-कुष-क्लिश-वद-वस-लुच-ग्रहां यञ् 2 / 4 / 6 / क्त्वि 62 / 16 / यञ् -अञो: बहुषु अस्त्रियाम् 2 / 4 / 107 / मृदः तिकन् 4 / 4 / 23 / / यञ् -इञः 2 / 4 / 37 मृषः अक्षान्तौ 6 / 2 / 17 / यत्रः अषावटात्. 2 / 3 / 18 / मेघ-ऋति-भयात् कृत्रः खः 1 / 2 / 27 / यणः इक: 5 / 2 / 147 / . . मेङः इद् वा 5 / 3 / 81 // यण् अचि 6 / 2 / 105 / .. मेङः 1 / 3 / 130 / यण इक: 5 / 1 / 114 / मेधा-रथात् इरः 4 / 2 / 114 / यणो मयः 6 / 4 / 143 / मेः आनिः 1 / 4 / 23 / यङसंयोगात् आतः 6 / 3 / 75 // मेः णलि वा 6 / 1144 / यत् 1 / 1 / 107 / .मः नः म्-वोश्च 6 / 3 / 73 / यतो निर्धारणम् 2 / 1 / 12 / - 22