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________________ [ 4 ] हमारे देश में इस प्रवृत्ति का सर्वप्रथम प्रारम्भ करने वाले तो आचार्यश्री ही हैं, परन्तु कई एक कारणों से इसका प्रकाशन विलम्ब से हुआ अतः / इस बीच में डेक्कन कॉलेज, पूना से भी इसका प्रकाशन हो गया। इस प्रकाशन 'चान्द्रमूलसूत्रपाठ' के संशोधन- सम्पादन की शैली का परिचय इस प्रकार है: यह सारा व्याकरण छह अध्यायों में विभक्त है, जब कि पाणिनीय व्याकरण आठ अध्यायों में है। ग्रन्थकार चन्द्रगोमी महामुनि ने अपनी इस कृति के प्रारम्भ में ही सूचित किया है कि 'लघु-विस्पष्ट-सम्पूर्णमुच्यते शब्दलक्षणम्' अर्थात् "पाणिनीय की अपेक्षा लघु, विशेषरूप से स्पष्ट और सम्पूर्ण ऐसा शब्दलक्षए कहता हूँ"। ग्रन्थकार अपनी इस सूचना को बराबर सार्थक करता हुआ "एकमात्रालाघवमपि पुत्रोत्सवम्मन्यन्ते वैयाकरणाः" इस न्याय को अक्षरशः, . सफल कर दिखाया है। प्रस्तुत प्रकाशन में सर्वप्रथम चान्द्र का मूलसूत्रपाठ दिया गया है तथा साथ में पाणिनीय-अष्टाध्यायी के समान सूत्रों के साथ तुलना बताने के लिये उसके अध्याय, पाद और सूत्रांक दिये हैं तथा कई स्थानों पर वार्तिक के अंक तथा महाभाष्य, काशिकावृत्ति, और सिद्धान्तकौमुदी का भी उपयोग किया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत संस्करण में मूलसूत्रपाठ 75 पृष्ठों में पूरा होता है। इसके पश्चात् ८०वें पृष्ठ तक चान्द्र में पाये हुए गणों के केवल नामों की ही प्रकारादिक्रम से सूची दी गई है और साथ में जिस सूत्र में जिस गण का उपयोग हुआ है उस सूत्र के अध्याय, पाद, और अंक का निर्देश कर दिया गया है। 81 वें पृष्ठ में चन्द्रगोमिकृत वर्णसूत्र दिया गया है, जिसमें स्वरों तथा व्यञ्जनों के स्थान-प्रयत्न और भेद दिखाये गये हैं। 104 वें पृष्ठ तक आचार्यचन्द्रगोमिकृत तीन पादों में सम्पूर्ण उणादिसत्र दिया गया है। इसके अन्त में प्राचार्य ने 'शुभमस्तु सर्वजगताम्' का शुभाशीर्वाद देते हुए भगवान् बुद्ध की परमकारुणिकता को प्रतिध्वनि कर दो है। __126 वें पृष्ठ तक चन्द्रगोमिकृत सम्पूर्ण धातुपाठ दिया है, साथ में पणिनीयधातुओं के तत्तद्गण के अंक देकर तुलना भी बताई है / धातुपाठ के अन्त में प्राचार्य ने लिखा है कि यद्यपि प्रत्येक धातु का एक ही अर्थ दिखाया है, परन्तु वास्तव में "अनेकार्था हि धातवः" अर्थात् प्रयोगानुसार एक-एक धातु के अनेक अर्थ हैं।
SR No.004292
Book TitleChandravyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1889
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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