________________ 62] चान्द्रव्याकरणम् [अ० 5, पा० 4, सू० 115-153 115 जषः त्वः / पा०७।२॥५५॥ 134 य-र-ण-गात्मः ।पा०७।२।१०भा० 116 वृश्चित्वा / पा०७।२॥५५॥ 135 शकादिभ्यः / पा०७।२।१० भा०।, 117 उदितो वा / पा०७।२॥५६॥ 136 श्रि-उग-ऊर्णोः कितः / 118 ति-इबु-सह-लुभ-रुष-रिषः। पा०७।२।११। काशिका 7 / 2 / 11 // पा०७।२।४८। काशिका 7 / 2 / 48 // 137 सनः ग्रह-गुहश्च / पा०७।२॥१२॥ 116 सनि इवन्त-ऋध-भस्ज-दम्भु-श्रि- 138 स्वार्थे / स्व-यु-ऊणु-भर-ज्ञपि-सनि-तनि-पति- 136 श्वि-ईदितः त-तवतोः। दरिद्रः / पा०७।२।४६। काशिका पा०७।२।१४। . 7 / 2 / 4 / 140 यतः अपतेर्वा / पा०७।२॥१५॥ 120 स्य-सिचि कृत-चूत-च्छूद-तृद-नृतः। ____ काशिका 7 // 2 // 15 // पा०७।२।५७। 141 आदितः। पा०७।२।१६। 121 अनिङगमेः इट् / 142 भाव-आरम्भयोर्वा / पा०७।२।१७। पा०७।२।५८+वा० 1 // 143 जपि-वमः / काशिका 7 / 2 / 16 / 122 न तङानैः / पा०७।२।५८। 144 वि-आङः श्वसः / 123 वृद्भ्य इट् / पा०७।२।५। काशिका 7 / 2 / 16 / 1 124 तासश्च क्लुपः / पा०७।२।६।। 145 क्षुब्ध-स्वान्त-ध्वान्तं मन्थ-मनस्१२५ न स्नोः / पा०७।२।३६। तमः / पा०७।२।१८। 126 क्रमः। पा०७।२।३६। 146 विरिब्ध-फाण्ट-बाढ-म्लिष्टानि 127 तङिवषयात् कर्तरि अतिङः / स्वर-अनायास-भृश-अस्पष्टषु / पा०७॥२॥३६ वा०५। पा०७।२।१८॥ 128 वशि / पा०७।२।८। 147 धृष-शसः प्रागल्भ्ये / 126 तेः अग्रहादिभ्यः / पा०७।२।६ पा०७॥२॥१६॥ ___ वा०१॥ 148 दृढः स्थूल-बलिनोः / 13. एकाचः अश्वि-श्रि-डी-शीङ-ऊ-वा - पा०७।२।२०। दिषट्कात् / पा०७।२।१०+भा०। 146 प्रभौ परिवृढः / पा०७।२।२१॥ 131 सिधि-बुधि-स्विदि-मनि-पुष-श्लिषः 150 कृच्छ्र-गहनयोः कषः / श्यना। पा०७।२।१० भा०। काशिका पा०७॥२॥२२॥ 7 / 2 / 10 / 151 घुषः अविशब्दने / पा०७।२।२३। 132 विदेः अलुकः / पा०७।२।१० भा०। 152 सम्-नि-वेः अर्दः / पा०७।२।२४। 133 य-र-लाद् भः। पा०७।२।१० भा०। 153 अभेः अविदूरे / पा०७।२।२५। 1 अत्र सूत्रे "चकारः अनुक्तसमुच्चयार्थः” इति निर्देशः अत्र च एतस्य चान्द्रसूत्रस्य समावेशः /