________________ ठि-- ऋषि] चान्द्रव्याकरण [137 ऊठि 5 / 1 / 86 / ऋते तृतीयासमासे 5 / 1 / 60 / ऊति-यूति-जूति-साति-हेति-कीर्तयः ऋते द्वितीया च 2 / 184 / 1 / 3 / 75 / ऋतः ङि-सुटि अत् 6 / 2 / 64 / ऊद् गोहः अचः 5 / 3 / 13 / ऋत: अचि वा 6 / 1 / 2 / ऊधसः नश्च 2 / 3 / / ऋतः रः अचि 5 / 4 / 66 / ऊरोः उपमा-संहित-सहित-सह-शफ- ऋतः ल-यौ 4 / 3 / 67 / वाम-लक्ष्मणादेः 2 / 3 / 76 / ऋतः विद्या-योनिसम्बन्धात तत्र ऊर्णा-अहम्-शुभंभ्यः 4 / 2 / 152 / 5 / 2 / 18 / ऊर्णोः डः (उणादि) 2 / 38 / ऋति ऋतः ऋर्वा 5 / 1 / 107 / ऊर्ध्वं दघ्नट-द्वयसट् च / 4 / 2 / 3 / ऋतुआदयः (उणादि) 1 / 25 / ऊर्ध्वाद् वा 4 / 4 / 120 / ऋत्वादिभ्यः अण् 4 / 1 / 124 / ऊमि-रश्मि-भूमयः (उणादि) 1 / 65 / ऋत्विग्भ्यः छः 4 / 1 / 151 / ऊर्यादिकारिकावि-डाचः। ऋदुपान्ताद् अक्लपि-वृतः 1 / 1 / 121 / क्रियार्थैः 2 / 2 / 25 // ऋत्-उशनस्-पुरुदंशस्-अनेहसाम् चानड ऊषादिभ्यः रः 4 / 2 / 111 / सौ 5 / 4 / 45 // ऋलक् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 2) ऋद्-लृति अक: 5 / 1 / 133 / ऋकोऽणो रलौ 111 / 15 / ऋ-नः ङीप् 2 / 3 / 2 ऋगयनादिभ्यः 3 / 3 / 45 / ऋ-पृ-भृ-मा-हाङाम् इत् 6 / 2 / 128 / ऋचः 4 / 4 / 58 / ऋ-प-वपि-यजि-धनि-त्रपेः ऋचः शि 5 / 2 / 60 / नित् (उणादि) 3 / 12 / ऋच-रुच-याच-त्यजाम् 6 / 1 / 64 / ऋ-मञ्जि-पीयि-हनि-अगिभ्यः ऋणे पञ्चमी 2 / 1166 / ___ऊषन् (उणादि) 3 / 57 / * ऋतः ईयङ् 1 / 1 / 48 / ऋ-महिष्यादिभ्य अण् 3 / 4 / 5 / / ऋतः उत् 5 / 1 / 117 / ऋ-री-व्ली-ह्री-क्नूयी-क्ष्मायिऋतः कञ् 3 / 3 / 50 / आतां पुग् णौ 6 / 1 / 45 / ऋतः संयोगादेः 5 / 4 / 106 / ऋ-वृ-व्येञ्-अदः 5 / 4 / 164 / ऋत-तृष-मृष-कृशां वा 6 / 2 / 20 / ऋ-श्वि-दृशः अङि 6 / 2 / 68 / ऋतः तत्र-आनङ् 5 / 2 / 21 / ऋषभ-उपानहो ज्यः 4 / 1 / 17 / ऋतः तासि नित्यानिट: थल: ऋषि-कुरु-वृष्णि-अन्धकात् 2 / 4 / 44 / __5 / 4 / 160 / ऋषि-वृषि-रासि-वल्ले: कित् ऋतुमती उपसर्या 1 / 1 / 115 // (उणादि) 2064 / ऋ-त-सृ-धृ-धमि-अशि-अवि-वृति-ग्रहः ऋषि-वृषि-स्नुभ्यः सक् अनिः (उणादि) 174 / (उणादि) 3 / 64 / *18 सर