________________ 138] चान्द्रमाकरणम् [ :--: ऋषेः पौत्रादौ 2 / 4 / 23 / . एकाच: हलादेः क्रियार्थाद् भृश-. ऋषौ मित्रे 5 / 2 / 131 // आभीक्ष्ण्ये यङ 1 / 1140 / ऋ-संयोगाद्योः अत् 6 / 2 / 81 / एकात् 5 / 3 / 144 / ऋ-सूत्रि-मूत्रि-सूचि-अट्-अश् एकाद् अन्न-अद्नौ संख्यायाम् . ऊर्गुभ्यः 1 / 1 / 41 / . 5 / 2 / 14 / ऋ-सृ-शास्-असु-ख्या-वचः अङ् एकाद् आकिनिच् चासहाये 111170 / 4 / 2 / 67 / ऋ-स्तु-सु-हु-धृ-क्षि-क्षु-भा-या-पदि-यक्षि- णीभ्यो मन् (उणादि) 2 / 100 / एकादेर्लुक् च 3 / 4 / 80 / ऋ-स्मि-पूङ्-अञ्ज-अशः सनः एडाद्यचः प्राग देशात् 3 / 2 / 25 / 5 / 4 / 171 / एङि पररूपम् 5 / 1 / 15 / ऋ-हनः स्ये 5 / 4 / 167 / एङ: अच् च 6 / 2 / 62 / ऋ-हलो ण्यत् / 1 / 1 / 130 / एङोऽति पदादौ 5 / 1 / 115 // एङ्-हस्वात् संबुद्धौ अतः 5 / 1 / 68 / ऋत इद् धातोः 5 / 4 / 7 / एचः प्रशान्त-पूजा-विचार-प्रत्यभिवादेषु ऋत्-ऋछ्-ऋणाम् 6 / 2 / 67 / ___आत् इत्-उत्परः 6 / 3 / 131 / ऋत्-ओः अप् 113 / 47 / एचि 5 / 1184 / ऋ-ल्वादिभ्यः क्तिनश्च 6 / 3 / 76 / एच: अय्-अव-आय-आव: 5 / 175 / लुति लः 5 / 1 / 108 / / एचः अशिति आत् 5 / 1 / 46 / लदिद्-धुतादि-पुष्यत्यादिभ्यः अतङि एजेः खश् 1 / 2 / 11 / 1 / 1 / 73 / एणी-कोशात् ढञ् 3 / 3 / 116 / एतः ईत् 6 / 3 / 114 / एओङ् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 3) एतत्-तदोः सुलोपः अकोः अनन्सएककर्तृकयोः पूर्वात् 1 / 3 / 131 / मासे. हलि 5 / 1 / 134 / एक-गोपूर्वात् ठञ् 4 / 2 / 122 / एतस्य चान्वादेशे द्वितीयायां एक-द्वि-बहुषु 1 / 4 / 148 / __ चैनः 5 / 4 / 76 / एकवचनस्य ते-मे 6 / 3 / 18 / एति संज्ञायाम् अकोः 6 / 4 / 85 / एकशालायाः ठच् च 4 / 3 / 86 / एकस्य सुप्लुक् 6 / 3 / 5 / एतेः गाः 5 / 4 / 12 / एकहलादो भाण्डे वा 5 / 2 / 66 / एधा 4 / 3 / 24 / एकागारात् चौरे 4 / 1 / 128 / / एनपा 2 / 1 / 53 / एकाच: 3 / 3 / 110 / एनप् अदूरे वा 4 / 3 / 41 / एकाचः अश्वि-श्रि एरक् 2 / 4 / 62 / य्वादिषट्कात् . 5 / 4 / 130 / ए: अक्तिनः 2 / 3 / 42 / EEEEEE