________________ [139 ए:- कमि]. चान्द्रव्याकरणम् ए: अच् / 1 / 3 / 45 / कंस-अर्धात् ठट् 4 / 1 / 26 / ए: असंयोगात् अनेकाचः 5 / 3 / 88 / ककुत् ककुदस्य अवस्थायाम् 4 / 4 / 134 / क-खोपान्त-कन्था-पलद-नगर-ग्रामऐ गौच प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 4) / हदान्तात् छे 3 / 2 / 54 / ऐकध्यम् 4 / 3 / 22 / ऐकाक्षं 2 / 1 / 36 / कचे छः (उणादि) 2 // 31 // ऐज्भाविनो वः पदान्तात् प्राग् ऐच् / कच्छ-अग्नि-वक्त्र-१ वर्तान्तात् 3 / 2 / 40 / कच्छादिभ्यः 3 / 2 / 48 / 6 / 1 / 14 / ऐषमस्-ह्यस्-श्वसो वा 3 / 2 / 15 / / कटादेः प्राच्यात् 3 / 2 / 53 / कठ-चरकात् . लुक् 3 / 3 / 74 / ओः पु-यण-जि अपरे 6 / 2 / 130 / / कठि-चकिभ्यां ओरः (उणादि) 3 / 34 / ओजस्-सहस्-अम्भस्-तपस्-अञ्जसः कठिनान्त-प्रस्तार-संस्थानात् व्यवहरति : 5 / 2 / 5 / 3 / 4 / 73 / ओजस्-सहस्-अम्भसा वर्तते 3 / 4 / 26 / कणादीनाम् 6 / 1 / 64 / ओजस्-अप्सरसोः 6 / 2 / 103 / कणे-मनसी तृप्तौ 2 / 2 / 26 / ओत् 5 / 1 / 128 // ओतः अम्-शसो: आत् 5 / 1 / 62 / कण्ड्वादिभ्यो यक् 1 / 1 / 36 / कतिः संख्यायाम् 4 / 2 / 45 / ओदनात् ठट् 3 / 4 / 68 / ओदितः . 6 / 3 / 80 / कति-गणौ तद्वत् 4 / 1 / 33 / कतेः 2 / 1 / 22 / ओम्-आङोः 6 / 1 / 66 / ओ: आवश्यके .1 / 1 / 132 / कल्यादिभ्यश्च ढका 3 / 2 / 5 / ओ: ओत् 5 / 3 / 147 / कथादिभ्यः ठक् 3 / 4 / 104 / कन्थायाः ठक् 3 / 2 / 11 / ओर्गुणाद् अखरु-संयोगोपान्तात् 2 / 3 / 43 / ओर्देशात् 3 / 2 / 31 / कन्थायाः कनीन च 2 / 4 / 46 / ओलोपः श्ये 6 / 1 / 9 / कपय प्रत्याहारसूत्र (शिवशूत्र 11) ओषधेः अजातौ 4 / 4 / 20 / कपाले हविषि 5 / 2 / 50 / ओष्ठ-ओत्वोः समासे वा 5 / 1 / 67 कपि-ज्ञात्योः ढक् 4 / 1 / 144 / कपिरिकादीना। 6 / 3 / 46 / 'ओसि 6 / 2 / 42 / औदरिकः अलसे 4 / 2 / 72 / कपः स्थलस्य 6 / 4 / 82 / कपः अङ्गिरसे 2 / 4 / 27 / औ-शस्-अम्सु 5 / 4 / 55 / कमि-मनि-जनि-हिभ्यः तुः (उणादि) कम्-शम्भ्याम् 4 / 2 / 146 / 1 // 24 // 1 रोमनाक्षरैर्मुद्रिते अकाराद्यनुक्रमे ‘गर्तान्तात्' इति पाठः /