________________ [उदः-- अङ् 136] चान्द्रव्याकरणम् उदः पच-पत-मदः 1 / 2 / 61 / उपान्तस्य 5 / 4 / 8 / उदः श्रि-यु-पू-द्रुवः 1 / 3 / 34 / / उपान्तस्य 6 / 2 / 24 / उदः स्था-स्तम्भोः तः 6 / 4 / 154 / उपात् मन्त्रेण 1 / 4 / 67 / उदन्तात् 4 / 3 / 68 / उपालम्भे 6 / 3 / 121 / उदन्यः 6 / 2 / 86 / उपेन 2 / 1 / 56 / . उदरे ये 5 / 2 / 105 / उभयाद् धुश्च 4 / 3 / 18 / / उदः चरः साप्यात् 1 / 4 / 106 / / उभात् 4 / 2 / 48 / . उदितो वा 5 / 4 / 117 / उमा-ऊर्णात् वा 3 / 3 / 11 / / उदपान्तस्य शब्वतः भाव-आरम्भयोः वा उरगः 112 // 36 / 6 / 2 / 18 / उ: अत् 6 / 2 / 118 / / उदः अनूइँहायाम् 1 / 4 / 66 / उरसा अण् च 3 / 4 / 66 / उदः ओष्ठ्यात् 5 / 4 / / उरसः अग्रे 4 / 4 / 75 / उन्दे: नलोपश्च (उणादि) 2 / 68 / उ: ऋत् 6 / 165 / उपकादिभ्यो वा 2 / 4 / 114 / उरोभ्यः कप् 4 / 4 / 13 / / उपज्ञा-उपक्रमं तदादित्वे 2 / 2 / 68 / उलूकादयः (उणादि) 2 / 22 / / उपत्यका-अधित्यके 4 / 2 / 35 / उपदंशः तृतीयायाम् 1 / 3 / 13 / / उल्कादयः (उणादि) 2 / 4 / / स्य-सिच-सी उ-श्नो: उपदेशे अच्-हन-ग्रह-दग्भ्यः 6 / 2 / 2 / उषासा उषसः 5 / 2 / 28 / युट-तासां भाव-आप्ययोः चिण्वद् इट् वा 5 / 3 / 73 / उषि-कुषि-गा-अतिभ्यः थन उपधेः 4 / 1 / 20 / ( उणादि ) 2 / 56 / उपमानात् 4 / 4 / 126 / उषि-रजि-शृभ्यः कित् (उणादि) उपमानात् कर्तुश्च 1 / 3 / 138 / 3 / 101 / , उपमानाद् अप्राणिनि 4 / 4 / 82 / उषि-सू-मूभ्यः कित्. (उणादि) 3 / 37 / उपमानाद् आचारे 1 / 1 / 25 / उषि-इण्-अवि-कृषि-तृषि-बुधि-रति-धाउपमानादे: 2 / 3 / 65 / / पभ्यः नक् (उणादि) 275 / उपयमः उद्वाहे 1 / 4 / 106 / उषः जश्च (उणादि) 3 / 104 / उपरि उपरिष्टात् 4 / 3 / 30 / उष्ट्रात् वुन 3 / 3 / 117 / उपाजे अन्वाजे 2 / 2 / 35 / उष्णात् 4 / 2 / 77 उपात् 1 / 4 / 136 / उसि अनादौ 5 / 1 / 100 / उपात् स्तुतौ ५।४।२०।उपादेः ठक् 3 / 3 / 36 / ऊँ 5 / 1 / 131 / उपाद् भूषण-समवाय-यत्न-वैकृत्य-अध्या- ऊङ: 5 / 2 / 45 / हारेषु 5 / 1 / 137 / ऊङ् उतः 2 / 3 / 75 /