________________ चान्द्रव्याकरणम् . [अ० 4, पा० 1, सू० 44-90 . 44 शताद् वा / 68 संभवति-अवहरति च / पा०५।१।५२। . पा०५।१।३४+३५ वा०१॥ 69 पात्र-आचित-आढकात् खो वा / 45 शाणात् / पा०५।१॥३५॥ पा० 5 // 1 // 53 // 46 द्वि-त्र्यादेः अण् च / पा०५।१॥३६॥ 70 संख्यादेः ष्ठंश्च / पा०५।११५४। 47 तेन क्रीतं मूल्यात् / पा०५।१।३७। 71 कुलिजात् वा / पा०५१॥५५॥ काशिका 5 // 1 // 37 // 72 वंशादिभ्यः हरति वहति आवहति 48 तस्य वापः / पा०५।१।४५॥ भारात् / पा०५।११५०।। 46 पात्रात् ष्ठन् / पा०५।११४६। 73 द्रव्य-वस्नात् कन्-ठनौ / 50 वात-पित्त-श्लेष्म-संनिपातात् शमन पा०५॥१॥५१॥ कोपने / पा०५।१।३८ वा० 1,2 / 74 अर्हति / पा०५।१।६३। / 51 निमित्ते संयोग-उत्पाते / 75 छेदादिभ्यः नित्यम् / पा०५।१।६४। . पा०५।११३८॥ __76 शीर्षच्छेदात् यच्च / पा०५॥१॥६५॥ . . 52 द्वयचः असंख्यापरिमाण-अश्वादेर्यत् / 77 यज्ञात् घः / पा०५।१७१। ___ पा०५॥१॥३६७८ पात्रात् यश्च / पा०।५।१।६८। 53 ब्रह्मवर्चसात् / पा०५।१।३६ वा० 1 // 76 दण्डादिभ्यः / पा०५।१।६६। 54 पुत्रात् छश्च / पा०५।११४०। 80 दक्षिणा-कडङ्गर-स्थाली-बिलात् छश्च / 55 पृथिवी-सर्वभूमेः अञ्-अणौ / . पा०५।११६६,७०। पा०५।१॥४१॥ 81 आत्विजीनः / पा०५।१।७१। 56 ईश्वरे / पा०५।१॥४२॥ 57 तत्र विदिते / पा०५।१।४३। 82 अधृष्ट-अकार्ययोः श्ालीन-कौपीने / 58 लोक-सर्वलोकात् / पा०५।१।४४। . पा०५॥२॥२०॥ 56 तद् अत्र अस्मै वृद्धि-आय-लाभ-शलक- 83 पारायण-तुरायण-चान्द्रायणं वर्तयति। उपदं दीयते / पा०५।१।४७+वा०१॥ - पा०५।१।७२। 60 पूरण-अर्धात् ठन् / पा०५॥१॥४८॥ 84 संशयमापन्नः / पा०५।११७३। 85 योजनं गच्छति / पा०५।१७४। 61 भागात् यच्च / पा०५।१।४६। 62 तद् अस्य परिमाणम् / पा०५।११५७। 86 कोश-योजनादेः शतात् अभिगमनाहे च / पा०५।१।७४ वा० 1,2 // 63 पश्चत्-दशत् वर्गे वा / पा०५।१।६०। 87 पथः ष्ठन् / पा०५।११७५॥ 65 त्रिंशत्-चत्वारिंशतः ब्राह्मणाख्यायां 88 णः पन्थश्च नित्यम् / पा०५।१७६। डण् / पा०५।११६२॥ 86 अज-शकु-उत्तर-वारि-जङ्गल६६ भृति-वस्न-अंशाः / पा०५॥१॥५६॥ कान्तारादिना आहृते च / 67 तत् पचति द्रोणात् अण् च / पा०५।१७७+वा०१,२॥ पा०५।११५२+वा०१॥ 60 स्थलादिना / पा०५।१७७ वा०१।