________________ अ० 1, पा० 4, सू० 76-120] चान्द्रव्याकरणम् [13 76 नि-सं-वि-उपेभ्यः ह्वः। पा० 1 / 3 / 30 / 100 किरादि-श्रन्थ-ग्रन्थ-सनाम् आप्ये / 77 स्पर्धायाम् आङः / पा०१॥३॥३१॥ पा०३११८७ वा०१८॥ 78 सूचन-अवक्षेपण-सेवा-साहस पा०३१११८६ भा०। यत्न-कथा-उपयोगेषु कृत्रः / 101 लुङि अचः / पा०३।१।६२। पा 113 // 32 // पा०३।१।४३। 76 अधेः शक्तौ / पा०१।३।३३। 102 स्नु-नमः स्वयम् / पा०३।११८६।पा०३।११८७। 80 वेः शब्दाप्यात् / पा०१॥३॥३४॥ 103 सृजः श्राद्धे / 81 अव्याप्यात् / पा०१३।३५।। पा०३।११८७ वा०१५+भा०। 82 पूजा-उत्सङ्ग-उपनयन-ज्ञान-भृति 104 शे श्यन् / व्यय-विगणनेषु नियः। पा०१॥३॥३६॥ पा०३।११८७ वा०१५+भा०। 83 कर्तृस्थामूर्ताप्यात् / पा० 1 / 3 / 37 / / 105 लुङि ते चिण् / 84 वृत्ति-उत्साह-तायनेषु क्रमः / 106 उदश्चरः साप्यात् / पा०१॥३॥३८॥ . पा०१॥३॥५३॥ 85 परा-उपात् / पा० 1 // 3 // 36 // 107 समस्तृतीयायुक्तात् / पा० 1 // 3 // 54 // 86 आडो ज्योतिरुद्गतौ / / 108 दाणः सा चेत् चतुर्थ्यर्थे / ३।४०+वा०११ पा०१॥३॥५५॥ 106 उपयर 87 वेः पादाभ्याम् / पा०१॥३॥४१॥ पा० 1 // 3 // 56 तथा काशिका 13 // 56 // 88 प्र-उपाद् आरम्भे / पा०१॥३॥४२॥ 110 आमः कृत्रः प्राग्वत् / 86 अप्रादेः वा / पा० 1 / 3 / 43 / पा०१।३।६३। पा०१॥३॥६२। 60 निह्नवे ज्ञः / पा०१॥३॥४४॥ 61 अव्याप्यात् / पा०१।३।४५॥ 111 सनः / पा०१॥३॥६२। 62 सं-प्रतेः अस्मृतौ / पा० 1 // 3 // 46 // 112 स्मृ-दृशः / पा०१॥३॥५७। 113 अननोज्ञः / पा०१॥३॥५८। 63 ज्ञान-यत्न-उपच्छन्दनेषु वदः / 114 श्रुवः अनाङ-प्रतेः / पा०१॥३॥५६ / पा०१॥३॥४७॥ 115 शदेः शिति / पा०१॥३॥६०। 64 अनोः अव्याप्यात् / पा० 1 / 3 / 46 / 116 मृडो लुङ-लिङोश्च / पा० 113 / 61 // 65 विमतौ / पा०१॥३॥५०॥ 117 प्रादेः अजाद्यन्ताद् युजेः अयज्ञपात्रेषु। 66 व्यक्तं सहोक्तौ / पा०१॥३॥४८॥ . पा०१।३।६४+भा०॥ 97 तयोर्वा / पा०१॥३॥५०॥ 118 समः क्ष्णुवः / पा०॥१॥३॥६५॥ पा०११३१४८ भा०। 116 भुजः अपालने / पा०१॥३॥६६॥ 18 अवाद् गिरः / पा०१॥३॥५१॥ 120 प्रयोजकाद् भी-स्मेणैः / 66 समः प्रतिज्ञायाम् / पा०१।३।५२। पा०१॥३॥६८। पा० 1 // 3 // 67 /