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________________ सिद्ध और सर्वीय को नमस्कार करने से पूर्व नमः वागीश्वराय लिखा, तो संभवतः शब्द-ब्रह्म का कोई तृतीय रूप भी अभिप्रेत था जिसमें उक्त दोनों रूपों का समावेश होता हो। इसकी तुलना श्वे० उ० के उस अग्र्य पुरुष से कर सकते हैं जो सब का वेत्ता है परन्तु उसका वेत्ता कोई नहीं है (स वेत्ति वेद्य न च तस्यास्ति वेत्ता); वही सर्वात्मा तथा सर्वगत होकर भी नित्य है वेदाहमेतमजरं पुराणं सर्वात्मानं सर्वगतं विभुत्वात् / जन्मनिरोधं प्रवदन्ति यस्य ब्रह्मवादिनो हि प्रवदन्ति नित्यम् // कात्यायनसूत्र प्रात्मा अपने चरम सत् रूप में अनिर्वचनीय होने से वेद में कः (लिंग) अथवा कत् (नपुंसकलिंग) कहलाता है ; इस अवस्था में उसकी शक्ति अथवा वाक् उसी में लीन होने से कद्रीची कही जाती है, क्योंकि इस रूप में यह कह सकना कठिन है कि वाक् कहाँ गई (सा कद्रीची कंस्विदधं परागात्, ऋ० वे० 1, 164,17); उक्त कत् के प्रथम (कारण) व्यक्त रूप को कात्य तथा द्वितीय (सूक्ष्म) व्यक्त रूप को कात्यायन कहा जा सकता है। कारणशरीर एवं सूक्ष्मशरीर में व्यक्त होने वाले वाक्-संयुक्त आत्मा की अभिव्यक्ति को ही प्रवर्ण से नानावर्ण में रूपांतरित होने वाला कहा गया है और यही उक्त पूर्वपाणिनीयम् का विषय है। अतः इसी विषय को कात्यायन तथा पूर्वपाणिनीयम् के सूत्रों को कात्यायनसूत्र कहना सर्वथा युक्तियुक्त है / कात्यायन और पाणिनेय इस दृष्टि से पूर्वोक्त कात्यायन एवं पाणिनि का संघर्ष एक प्रतीक आख्यान के रूप में ही लिया जा सकता है। मनुष्य के अभिव्यक्तिशील व्यक्तित्व को वेद में प्रायः वृषभ या वृषन् इन्द्र के रूप में देखा गया है और इस अभिव्यक्ति को माधारभूता वाक् के व्यापार को वर्षा के रूपक' द्वारा चित्रित किया गया है / अत एव इस रूप में मानव को वर्ष ऋषि तथा उसकी सूक्ष्म एवं स्थूल अभिव्यक्तियों को क्रमशः कात्यायन एवं पाणिनेय कहा जा सकता है। स्थूल अभिव्यक्ति में जब सुबन्तों और तिङन्तों की सृष्टि होने लगती है, तो स्वतः सूक्ष्म अभिव्यक्ति का पर्यवसान ही तो स्थूल पदादि की अभिव्यक्ति में होता है / अत एव कात्यायन एवं पूर्वपाणिनेय शब्दों द्वारा एक ही मानवशक्ति की क्रमशः सूक्ष्म एवं स्थूल 1. ऋ. 1. 164 /
SR No.004292
Book TitleChandravyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1889
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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