________________ सकता है ? इसके उत्तर के लिए उक्त 24 सूत्रों पर विचार करना आवश्यक है। पूर्वपाणिनोयम् या कात्यायनसूत्रम् के सूत्रों को इस प्रकार दिया गया है: प्रोम् नमः सिद्धम् / (1) अथ शब्दानुशासनम् / (13) सर्वः शब्दः। (2) शब्दो धर्मः। (14) सर्वार्थः / (3) धर्मादर्थकामापवर्गाः। (15) नित्यः / (4) शब्दार्थयोः। (16) तंत्रः। (5) सिद्धः। (17) भाषास्वेकादशी। (6) सम्बन्धः / (18) अनित्यः / (7) ज्ञानं छन्दसि / (19) लौकिकोऽत्र विशेषेण। (8) ततो न्यत्र / (20) व्याकरणात् / (9) सर्वमार्षम् / (21) तज्ज्ञाने धर्मः / (10) छन्दोविरुद्धमन्यत् / (22) अक्षराणि वर्णाः / (11) अदृष्टं वा। (23) पदानि वर्णेभ्यः। (12) ज्ञानाधारः / (24) ते प्राक् / उक्त 24 सूत्रों का विषय निस्संदेह 'शब्दानुशासन' है और इस प्रसंग में शब्द से अभिप्राय पद से नहीं धर्म' से है / धर्म को अर्थ, काम एवं अपवर्ग का स्रोत' बताया गया है। इनमें से अर्थ क्रियाशक्तिमूलक, काम इच्छाशक्तिमूलक, तथा अपवर्ग ज्ञानशक्तिमूलक माना जा सकता है। आगमों में क्रिया, इच्छा तथा ज्ञानशक्तियों को पराशक्ति द्वारा 'मयूराण्डरसवत्' बीजरूप में धारण किया जाना माना जाता है; अत: इसी पराशक्ति को धर्म को संज्ञा दी जा सकती है और फलतः इसी धर्म से उत्पन्न होने के कारण क्रिया, ज्ञान तथा इच्छा-शक्तियों के पूर्वरूप को पुरुषसूक्त' में 'तानि धर्माणि प्रथमानि' कहा गया है। पराशक्तिरूप धर्म का धर्मी प्रात्मा या पुरुष है जिसे कई बार इन्द्र की भी संज्ञा दी जाती है / यह इन्द्र या पुरुषरूप धर्मी अपने धर्म द्वारा ही अपने को व्यक्त करता हैं; इसीलिए इस धर्म को ऊपर 'शब्द' कहा गया है और अन्यत्र इसे वाक्-नाम भी दिया जाता है, क्योंकि शब्द या वाक् द्वारा ही मनुष्य अपने को व्यक्त करता 1. शब्दो धर्मः। 2. धर्मात् अर्थकामापवर्गाः। 3. भारतीय सौन्दर्यशास्त्र की भूमिका, पृ. 56.65 / 4. देखिये-वैदिकदर्शन, पृ० 14-15 /