________________ योजनं --हहि] चान्द्रव्याकरणम् [171 योजनं गच्छति 4 / 1 / 85 // राजन्वान् सौराज्ये 6 / 3 / 40 / योद्धप्रयोजनात् संग्रामे 3 / 1 / 34 / राजसूय-रुच्य-कृष्टपच्य-अव्यथ्याः योपान्तात् गुरूपोत्तमात् असुप्रख्याद् 1 / 1 / 126 / वुन 4 / 1 / 148 / राज्ञो यत् 2 / 470 / यो यङः 112 / 123 / रातेः इफः (उणादि) 2 / 88 / योः आगूच (उणादि) 1141 / / राते: डैः (उणादि) 161 / यो वलि लोपः 5 / 1 / 63 / रात्र-अह्न-वाकाः पुंसि 2 / 2 / 81 / रावेर्धातौ वा 5 / 2 / 85 / रः ऋतः पृथु-मृदु-कृश-भृश-दृढ-परिवृ रात्रि-अहः-संवत्सरात् 4 / 1 / 102 / ढानाम् 5 / 3 / 164 / रात् सः 6 // 3 // 53 // रक्त-अनित्ययोः 4 / 4 / 14 / राधः हिंसायाम् 5 / 3 / 116 / रक्षति 3 / 4 / 30 / राधः हिंसायाम् 6 / 2 / 107) रङ्कोः प्राणिनि वा 3 / 2 / / रायः हलि 5 / 4 / 53 / रनः 5 / 3 / 26 / रात् लोपः 5 / 3 / 20 / रञ्जः क्युन् (उणादि) 2 / 66 / रा-शदिभ्याम् त्रिप् (उणादि) 1166 / र-दात् त-तवतो: दश्च 6 / 3 / 74 / राष्ट्रात् घः 3 / 2 / 2 / रधः 5 / 4 / 15 / . रास्नादयः (उणादि) 276 / रधादिभ्यः 5 / 4 / 108 / रिङ श-यग्-आशीलिङि 6 / 2 / 80 / रभः अशप-लिटो: 5 / 4 / 17 / रीग् ऋत्वतः 6 / 2 / 138 / रमि-कुषि-काशिभ्यः क्थन् (उणादि) रिङ ऋतः ये च 6 / 2 / 76 / 2 / 54 / रसः वि-आडोश्च 1 / 4 / 135 / री-वृ: नित् (उणादि) 1 / 26 / रल: हलादें: इदुतोः सनि च रुग्-रिकौ च लुकि 6 / 2 / 136 / 6 / 2 / 21 / रुचि-भुजेः किष्यन् (उणादि) 2 / 111 / रवि-कवि-दरि-शरि-वलि-वल्लि-ध्वनि- रुचिमति 2 / 1 / 74 / ___अवि-हरि-ग्रन्थिभ्यः इः (उणादि)। रुद-विद-मुष-ग्रहाम् 6 / 2 / 22 / 1 / 51 / रुद्भ्यः पञ्चभ्यः अट् च 6 / 2 / 37 / . रश्मौ 1 / 3 / 40 / रुद्भ्यः तिङ: 5 / 4 / 173 / र-षात् नः णः एकपदे 6 / 4 / 101 / रुधादीनाम् श्नम् 1 / 1 / 63 / रसि-रुचि-रु-वृञः युच् (उणादि) 2 / 67 / रुष-हृष-अम-त्वर-संधुष-आस्वनः राजघः 1 / 2 / 43 / 5 / 4 / 156 / राजन्यादिभ्यः वुञ् 3 / 1 / 62 / रुहि-नन्दि-जीवेः षित् (उणादि) 2 / 44 /