________________ चान्द्रव्याकरणम् षषः - संप्रदाने] [181 षषः 4 / 3166 / संख्यादेर्यप् 4 / 1 / 67 / षषः ण्यः च वा 4 / 1 / 18 / संख्यादेर्वा 4 / 1 / 101 / षष्टयादेः असंख्यादेः 4 / 2 / 54 / संख्यादेवुन् 4 / 4 / 3 / षष्ठात् 4 / 2 / 63 / संख्यादेशचालुकः 4 / 1 / 24 / षष्ठी 2 / 2 / 22 / संख्या-अध्यर्धादेः संख्येयाल्लुग् अद्विः षष्ठी च अनादरे 2 / 1 / 61 // 4 / 1138 / षष्ठी संबन्धे 2 / 165 / संख्यायाः अतिशतः कन् 4 / 1 / 32 / षष्ठी हेतुना 2 / 171 / संख्यायाः अनतः 2 / 1 / 33 / षष्ठया आक्रोशे 5 / 2 / 12 / . संख्यायाः अबहोः अन्यार्थे 4 / 4 / 65 / षष्ठया अन्त्यस्य 1 / 1 / 10 / संख्यायाः संवत्सर-परिमाणस्य असंज्ञाषष्ठ्या रूप्ये च . 4 / 3 / 44 / शाण-कुलिजस्य 6 / 1 / 26 / षष्ठया व्याश्रये तस 4 / 3 / 1 / संख्यायाः नदी-गोदावर्योश्च 4 / 4 / 73 / षितः ङीष् 2 / 3 / 36 / संख्या-अर्धात् नावः एकार्थात् 4 / 4 / 84 / षोडन् 4 / 4 / 131 / संख्या वंश्येन 2 / 2 / 12 / षोढा वा 4 / 3 / 21 / संख्या-वि-सायादेः अह्नस्य अहन् ङौ वा ष्ठिवु-क्लम-आचमां शिति 6 / 1 / 103 / 5 / 2 / 128 / ष्ठिवु-सिवो दीर्घश्च 1 / 3 / 18 / संख्या-एकार्थात् वीप्सायाम् 4 / 4 / 2 / ष्णः संख्यायाः लुक् 2 / 1 / 21 / संघ-अङ्क-घोष-लक्षणेषु अञ् योजनः ष्फो वा 2 / 3 / 16 / 3 / 3 / 68 // ष्यङ: प्रधानस्य पुत्र-पत्योः स्वयोः इग् संघे अनुत्तराधरे 1 / 3 / 33 / यणः 5 / 1 / 11 / संज्ञा-पूरणयोः 5 // 2 // 35 // संज्ञायां वातपात् अन 3 / 3 / 83 / संख्या-अक्ष-शलाकाः परिणा द्यूते संज्ञायाम् 2 / 3 / 60 / . अन्यथावृत्तौ 2 / 2 / 6 / संज्ञः व्याप्ये वा 2 / 1 / 67 / संख्यातात् 1 / 3 / / संध्यादि-ऋतु-नक्षत्रात् अण् 3 / 2 / 76 / संख्यादिः समाहारे 2 / 2 / 76 / संनिकृष्टपाठानाम् 2 / 2 / 52 / संख्यादेः 2 / 3 / 23 / सम्-नि-वेः अर्दः 5 / 4 / 152 / संख्यादेः ष्ठंश्च 4 / 1 / 70 / संख्यादेः संख्ययात् अनपत्ये अजादेः संपदादिभ्यः क्विप् 113 / 63 / लुग् अद्विः 2 / 4 / 11 / सम्-परेः कृत्रः सुट् 5 / 1 / 136 / संख्यादेः संख्येयाल्लुक् 4 / 2 / 41 / सम्-प्रतेः अस्मृतौ 1 / 4 / 12 / संख्यादेर्गुणात् 4 / 4 / 43 / संप्रदाने चतुर्थी 2 / 1 / 73 /