________________ 182] चान्द्रव्याकरणम् [सम् - समः सम्-प्रात् जानुनः ज्ञः 4 / 4 / 119 / सदा-अधुना-इदानीम् तदानीम् सम्-प्र-उत्-ने: च कटच् 4 / 2 / 30 / 4 / 3 / 14 / संबोधने 2 / 1 / 14 / सदि-स्वञ्जलिटि 6 / 4 / 68 / संबोधने सौ 6 / 2 / 44 / सदः अप्रतेः 6 / 4 / 51 / संभवति अवहरति च 4 / 1 / 68 / सनः 1 / 4 / 111 // . . संभावने अलमर्थे तदर्थाप्रयोगे सनः क्तिचि लोपश्च 5 / 3 / 43 / 1 / 3 / 11 / सन्-आशंसः उः 1 / 2 / 117 / संभ्रमे यावद्बोधम् 6 / 3 / 14 / सनि श३।४०। संयोगस्य पदस्य 6 / 3 / 52 / सनि 5 / 4 / 6 / / संयोगात् इनः असमूहे 5 / 3 / 175 / सनि इवन्त-ऋध-भ्रस्ज-दम्भु-श्रि-स्व-युसंयोगादेः लिटि 6 / 2 / 65 / ऊर्ण-भर-ज्ञपि-सनि-तनि-पति-दरिद्रः संवत्सर-आग्रहायण्याः ठञ् च 3 / 3 / 16 / ... 5 / 4 / 116 / सम्-वि-प्र-अवात् सनो ग्रह-गुहश्च 5 / 4 / 137 / ' 1 / 4 / 65 / सन्-यङो: आद्यम् एकाच् द्वि: 5 / 1 / 1 / संशयम् आपन्न: 4 / 1 / 84 / संसृष्टे 3 / 4 / 22 / सनि अतः 6 / 2 / 126 / सन्-लिटोः जेः 6 / 1 / 88 / संस्कृतं भक्ष्यम् 3 / 1 / 14 / संस्कृते 3 / 4 / 3 / सन्वत् लघुनि णौ चङि अनग्-लोपे सकृत् 4 / 4 / / 6 / 2 / 140 / सपत्न-निष्पत्नात् अतिव्यथने 4 / 4 / 45 / सक्थि-अक्ष्णः स्वाङ्गात् षच् 4 / 4 / 66 / सपूर्वस्य वा 2 / 3 / 31 / सखि-दूत-वणिग्भ्यः यः 4 / 1 / 142 / सपूर्वात् 3 / 2 / 70 / सखी अशिश्वी 2 / 3 / 70 / सपूर्वात् 4 / 2 / 63 / सखी-अहर्-राजां टच् 4 / 4 / 76 / सपूर्वात् प्रथमान्तात् वा 6 / 3 / 21 / सखीआदयः (उणादि) 160 / सप्तम्यां च उपात् पीड-रुध-कर्षः सख्युः पत्युः 5 / 1 / 118 / 1 / 3 / 141 // सख्युः अशौ ऐत् 5 / 4 / 44 / सप्तम्यां पूर्वस्य 1 / 17 / सप्तमी आधारे 2 / 1 / 88 / सञ्-असिभ्यां क्थिन् (उणादि) सप्तमी आधिक्ये 2 / 1 / 60 / 1161 सप्तम्या बहुलम् 5 / 2 / 11 / सतीर्थ्यः 3 / 4 / 75 // सप्तम्याम् 4 / 2 / 121 / सत्त्वाश्लेषे 1 / 1 / 67 / सप्तम्याः त्रल् 4 / 3 / 10 / सत्याद् अशपथे 4 / 4 / 50 / समः 1 / 1 / 10 / सत्य-अर्थ-वेदानाम् आपुक् 6 / 1 / 55 // समः क्ष्णुवः 1 / 4 / 118 /