________________ 120] चान्द्रव्याकरणम् [धातु०९९ जूरी - 122 शप; 1 षुञ् - 21 ऋषु 66 जूरी जरायाम् (48) 112 अनोः रुध कामे / (65) , 100 गूरी घूरी धूरी शूरी हिंसायाम्। 113 मन ज्ञाने / (67) (46,47,45,46) 114 युज समाघौ / (68) 101 चूरी दाहे / (50) 115 सृज विसर्गे / (66) 102 तप अश्वर्ये / (51) 116 लुजो विनाशे / 103 वावृतु वर्तने / (52) 117 लिश अल्पीभावे / (70) 104 २क्लिश उपतापे / (52 अ) तडानिनः / 105 काश दीप्तौ / (53) 118 शक मृष क्षान्तौ / (78,55) 106 वा” शब्दे / (54) 116 ईशुचिर् पूतिभावे (56) 107 पद गतौ / (60) 120 णह बन्धने / (57) . . 108 खिद असहने / (61) 121 रन्ज रागे / (58) 106 विद सत्तायाम् / (62) 122 शप आक्रोशे / (56) 110 बुध अवगमने / (63) विभाषिताः। 111 युध संप्रहारे / (64) दिवादयः समाप्ताः // 4 // 1 षुञ् अभिषवे / (1) 12 क्षि क्षये / (30) 2 षि बन्धने / (2) 13 पृ स्पृ प्रीतौ / (12, 13) 3 शि निशाने / (3) 14 आप्ल व्याप्तौ / (14) 4 डुमि प्रक्षेपणे / (4) 15 शक्ल शक्तौ / (15) 5 चि चये / (5) 16 श्रु श्रवणे / 6 स्तृ आच्छादने / (6) 17 राध साध संसिद्धौ / (16,17) 7 कृ हिंसायाम् (7) 18 षघ तिक ष्टिक हिंसायाम् / 8 वृ), वरणे / (8) 6 धून कम्पने / (6) / (21, 20) विभाषिताः। 16 धृषा प्रागल्भ्ये / (22) . 10 टुदु उपतापे / (10) 20 दन्भु दम्भे / (23) 11 हि गतौ / (11) 21 ऋधु वृद्धौ / (24) 1. हैमे धातुपाठे माधवीये च "वृतूचि वरणे" "वृतु वरणे" इति धातुः / “तप अश्वर्ये वा", इत्यस्य धातोः माधवीयवृत्ती एवं निर्दिष्टम्-" केचिदिह वाग्रहणं वक्ष्यमाणस्य “वृतु वरणे" इत्यस्य आद्यांशमिच्छन्ति वावृतु वरणे' इति / तथा च भट्टिः “ततो वावृत्यमाना सा रामशालां न्यविक्षत" इति / (माध० वृ०प० 293) 2. माधवीयायां धातुवृत्तौ अयं धातु: ५३-त्रिपञ्चाशत्तमः /