________________ [119 धातु. 36 तृप - 98 तूरी] चान्द्रव्याकरणम् 36 तृप तृप्तौ / (86) 68 रुष रोषे / (120) 37 दृप हर्षे / (87) 66 डिप क्षेपे / (121) 38 द्रुह द्रोहे / (88) 70 स्तूप समुच्छाये / (127) 36 मुह वैचित्त्ये / (86) 71 कुप क्रोधे / (122) 40 ष्णुह उद्गिरणे / (60) 72 गुप व्याकुलत्वे / (123) 41 ष्णिह प्रीतौ / वृत् / (61) 73 युप रुप लुप विमोहने (124-126) 42 शमु दमु उपशमे / (62, 64) 74 लुभ गायें / (128) 43 तमु काङक्षायाम् / (63) 75 क्षुम संचलने / (126) 44 श्रमु खेदे / (65) 76 णभ तुभ हिंसायाम्। (130,131) 45 भ्रम अनवस्थाने / (66) 77 क्लिदू आर्द्रभावे / (132) 46 क्षमूष् सहने / (67) 78 मिदा स्नेहने (133) 47 क्लमु ग्लानी / (68) 76 क्ष्विदा मोचने / (134) 48 मदी हर्षे / (66) 80 ऋधु वृद्धौ / (135) 46 असु क्षेपणे / (100) 81 गृधु अभिकाङक्षायाम् (136) 50 यसु प्रयत्ने / (101) अतङानाः / 51 जसु मोक्षणे / (102) 82 षूङ प्राणिप्रसवे (24) 52 तसु दसु उपक्षेपे। (103, 104) 83 दूङ परितापे / (25) 53 वसु स्तम्भे / (105) 84 दीङ क्षये / (26) 54 प्युष विभागे / (106) 85 डीङ गतौ / (27) 55 प्लुष दाहे / (107) 86 धीङ अनादरे / (28) 56 बिस प्रेरणे / (108) 87 मीङ हिंसायाम् (26) 57 कुस श्लेषणे / (106) 88 रीङ स्रवणे / (30) 58 बुस उत्सर्गे / (110) 86 लीङ श्लेषणे (31) 56 मुष खण्डने / (111) 60 वीङ वरणे / (32) 60 पसी मसी परिमाणे / (112) 61 स्वादय ओदितः / 61 लुट विलोटने / (113) 62 पीङ पाने / (33) 62 उच समवाये / (114) 93 ईङ गतौ / (35) 63 भृशु भ्रन्शु अधःपतने / (115) 14 प्रीङ प्रीतौ / (36) 64 वृश वरणे / (116) 65 जनी प्रादुर्भाव (41) 65 कृश तनूकरणे / (117) 66 दीपी दीप्तौ / (42) 66 तृष पिपासायाम् / (118) 67 पूरी आप्यायने / (43) .67 हृष तुष्टौ / (116) 68 तूरी त्वरायाम् / (44)