________________ 126] चान्द्रव्याकरणम् [धातु० 75 मजू-१०५ श्वेताश्व 75 मृजू शौचे / (604) 62 निवास आच्छादने / (336) 76 मृष क्षान्तौ / (305) ' 63 भाज पृथक्रियायाम् / (340) 77 धृष प्रसहने / (306) / 64 ध्वन शब्दे / (343) 78 कथ वाक्यप्रबन्धे / (307) 65 स्तेन चौर्ये / ( 346) 76 वर ईप्सायाम् / (308) 66 गृह प्रग्रहणे / (351) 80 गण संख्याने / (306) 97 मृग अन्वेषणे / (352) 81 शठ श्वठ सम्यगाभाषणे / (310) 18 कुह विस्मापने / ( 353) / 82 रह त्यागे / (312) 66 स्थूल परिबृंहणे / (356) . 83 ष्टन गद देवशब्दे / (313,314) 100 अर्थ याञ्चायाम् / (357) 84 रच प्रतियत्ने / (318) 101 गर्व माने / (356) . 85 कल संख्याने / (316) 102 मिश्र संपर्के। (375) 86 मह पूजायाम् / (321) 103 सुपो धात्वर्थे बहुलम् इष्ठवच्च / 87 स्पृह ईप्सायाम् / (325) (386) 88 शील उपधारणे / (332) 104 णिङ अङ्गनिरसने / (363) 86 साम सान्त्वने / (333) 105 श्वेताश्व-अश्वतर-गालोडित-आह्वर६० गवेष मार्गणे / (337) काणाम् अश्व - तर - इत - कलोपश्च 61 वास उपसेवायाम् / (338) (364) नित्यण्यन्ताश्चुरादयः समाप्ताः / / 10 / / क्रियावाचित्वमाख्यातुमेकैकोऽर्थः प्रदर्शितः / / प्रयोगतोऽनुगन्तव्या अनेकार्था हि धातवः / / // धातुपाठः समाप्तः // ...