________________ वातात् --विधु] चान्द्रव्याकरणम् [175 वातात् ऊलः 3 / 1155 / वास्तव्यः 111 / 106 / वा तिल-माष-उमा-भङ्ग-अणुभ्यः वा अस्ताति 4 / 3 / 34 / 4 / 2 / 4 / वाऽस्य व्-मोः 5 / 3 / 101 / वा दान्त-शान्त-पूर्ण-दस्त-स्पष्ट-छन्न . वाहनं वाह्यात् 6 / 4 / 108 / ज्ञप्ताः 5 / 4 / 155 / वा हन-गम-विद-विश-दृशः 5 / 4 / 166 / वा द्रुह-मुह-स्नुह-स्निहाम् 6 / 3 / 64 / / वा हविर्-यूपादिभ्यः 4 / 1 / 3 / वा नाम्नि 2 / 3 / 40 / / विंशतिकात् खः 4 / 1 / 41 / वा निक्ष-निस-निन्दाम् 6 / 4 / 127 / विंशति-त्रिंशद्भ्याम् 4 / 1 / 36 / विंशतेडिति टे: 5 / 3 / 137 / बा आप् 2 / 278 / . विंशत्यादिभ्यः तमट् वा 4 / 2 / 52 / वा भाव-करणयोः 6 / 4 / 110 / . वा भाव-आक्रोश-दैन्येषु 6 / 3 / 82 / विकर्ण-कुषीतकात् काश्यपे 2 / 4 / 54 / वा विकारे 3 / 3 / 103 / अभि-अवात् 5 / 1 / 31 / वि-कु-शमि-परिभ्यः 6 / 4 / 83 / वामदेव्यम् 3 / 16 / विकृतेः प्रकृतौ 4 / 1 / 16 / वा अम्-शसोः 5 / 3 / 06 / विचारे 6 / 3 / 125 // वायु-ऋतु-पितृ-उषसो यत् 3 / 1 / 26 / विछ-रक्षो नङ 11370 / वारसंख्यायाः कृत्वसुच् 4 / 4 / 5 / वा लिटि 5 / 4 / 2 / विजः इटि 6 / 2 / 14 / वा लिप्सायाम् 1 / 4 / 66 / विटपादयः (उणादि) 2 / 87 / वा लुङ-लिङो: 5 / 4 / 67 / वित्तः प्रतीत-भोगयोः 6 / 3 / 66 / वा वणिजाम् 1 / 3 / 3 / विदः 1 / 4 / 44 / वा विरामे 6 / 4 / 146 / विदाम् 1 / 1157 / वां वृक्ष-तृण-धान्य-मृग-शकुनिविशे विदि-भिदि-च्छिदेः कुरच् 1 / 2 / 108 / षाणाम् 2 / 2 / 62 / विदेः श्वसुः 1 / 2 / 83 / वा वेष्टि-चेष्टयोः 6 / 2 / 143 / विदेः अलुकः 5 / 4 / 132 / वा शरि 6 / 4 / 26 / / विदो लटो वा 1 / 4 / 12 / वा श्वे: 5 / 1137 / विद्या-योनिसंबन्धात् वुञ् 3 / 3 / 46 / वाष्प-ऊष्म-फेनम् उद्वमति 1 / 1 / 34 / विधिविशेषणान्तस्य 1 / 1 / 6 / / वा संयोगादेः अस्थः 5 / 3 / 76 / विधि-संप्रश्न-प्रार्थनेषु 1 / 3 / 121 / वास-वाहने 5 / 2 / 67 / विधि-इणः असिः (उणादि) 3 / 66 / वासुदेव-अर्जुनात् कन् 3 / 3 / 65 / विध्यति अकरणेन 3 / 4 / 02 / वा . सुपि लुटि च 5 / 164 / विधु-अरुस्-तिलात् तुदः 1 / 2 / 16 /