________________ . 176] चान्द्र व्याकरणम् [विनयादिभ्यः'--: विनयादिभ्यः ठक् 4 / 4 / 17 / वुन -छण्-क-ठच्-इल-स-इनि-र-ढन -ण्य-यविना तृतीया च 2 / 185 // फक्-फिज -इञ -ञ्य-कक्-ठक्-छविना नाना 4 / 2 / 28 / कीय-ड्मतुप्-डव्लचः 3 / 1 / 68 / विनिमये 1 / 4 / 4 / वृकात् णेण्यट् 4 / 3 / 61 // विन्दुः इच्छुः 1 / 2 / 118 / वृक्ष-औषधीभ्यः अंशे च 3 / 3 / 104 / विन्-मतो: लुक् 4 / 3 / 48 / वृङ: एन्यः (उणादि) 2 / 114 / वि-पराभ्यां जेः 1 / 4 / 53 / वृजिन-अजिनम् (उणादि) 2 / 63 / वि-परेः 6 / 4 / 60 / वृजि-मद्रात् कन् 3 / 2 / 46 / विपिन-इरिण-तुहिन-महिनानि वृञः आच्छादे 1 / 3 / 43 / (उणादि) 2 / 66 / वृञश्च (उणादि) 3 / 39 / विप्रतिषेधे 1 / 1 / 16 / वृ-त-वदि-हनि-मानि-कमि-अशि-कशेः सः विमती 11465 / (उणादि) .3 / 63 / विमुक्तादिभ्यः अण् 4 / 2 / 155 / वृत्ति-उत्साह-तायनेषु क्रमः 1 / 4 / 84 / विरामे विसर्जनीयः 6 / 4 / 20 / / वृ-दृभ्यां विन् . (उणादि) 1181 / विरिब्ध-फाण्ट-बाढ-म्लिष्टानि स्वर- वृद्धस्य च ज्यः 4 / 3 / 50 / / अनायास-भृश-अस्पष्टेषु 5 / 4 / 146 / वृद्धेः वृधुषः 3 / 4 / 37 / विरोधिनाम् अद्रव्याणाम् 2 / 2 / 65 // वृद्भयः इट्. 5 / 4 / 123 / विवध-वीवधात् वा 3 / 4 / 16 / वृद्भ्यः स्य-सनोः 1 / 4 / 144 / विवाहे 3 / 3 / 10 / वृन्दात् आरकन्, * 4 / 2 / 136 / / विशाखा-आषाढात् मन्थ-दण्डयोः वृ-भू-वमि-कुभ्यः शक् (उणादि) 3155 / . 4 / 1 / 131 / वृषादिभ्यः चित् (उणादि) 3 / 46 / विशि-पति-पदि-स्कन्दां वीप्सा- वृष-अश्वयोमैथुने सुक् 6 / 2 / 10 / __ आभीक्ष्ण्ययोः 1 / 3 / 148 / वृषि-तक्षि-राजि-धन्वि-प्रतिदिव-युवः विशेषणम् एकार्थेन 2 / 2 / 18 / . कनिन् (उणादि) 376 / विश्वस्य वसु-राटोः दीर्घः 5 / 2 / 129) वृ-ऋतो वा 5 / 4 / 101 / विषये देशे 3 / 1 / 61 / / वेः क्षु-श्रुवः 1 / 3 / 13 / विष्वग्-देवयोश्च डद्रिग् अञ्चि वो वेः खः 4 / 4 / 111 // 5 / 2 / 10 / वेः पादाभ्याम् 1 / 4 / 87 / विहायसो विहश्च 1 / 2 / 33 / वे: शब्दाप्यात् 1 / 4 / 80 / वी-पतिभ्यां तनन् (उणादि) 2 / 64 / वेः शालच्-शङ्कटचौ 4 / 2 / 26 / वीप्सा-आभीक्ष्ण्ययोः द्वे 6 / 3 / 1 / वेः स्कन्दः अत-तवतोः 6 / 4 / 62 /