________________ वेः -- शकन्ध्वादयः] चान्द्रव्याकरणम् [177 वेः स्कन्नः षः 6 / 4 / 65 / व्यतिहारे णच् 11376 / वेः स्त्रः नाम्नि 6 / 4 / 80 / व्यतिहारे सर्वादीनां सुः बहुलम् 6 / 3 / / वेञः डिः (उणादि) 1158 / व्यथः लिटि 6 / 2 / 121 / वेञः लिटि वय वा 5 / 4 / 88 / व्यध-जपोप्रादेः 1 / 3 / 51 / वेट: 6 / 4 / 100 / वि-आङः श्वसः 5 / 4 / 144 / वेणिः (उणादि) 1178 / व्याप्यात् काम्यच् 1 / 1 / 23 / वेणुकादिभ्यः छण् 3 / 2 / 61 / व्याप्याद् अण् 1 / 2 / 1 / वेतनादिभ्यो जीवति 3 / 4 / 10 / व्याप्याद् आक्रोशे कृत्रः खमुत्र वेत्तेर्वा 1 / 4 / / 1 / 3 / 134 / वेः अनचः 5 / 1 / 64 / व्याप्याद् आधारे 1 / 372 / वेः अपिति वा. 5 / 1144 / व्यासादीनाम् अकङ च 2 / 4 / 21 / वेश्च स्वनो भोजने .6 / 4 / 54 / वि-उदः काकुत् काकुदस्य 4 / 4 / 136 / वैकाचः 5 / 2 / 43 / वि-उदः तपः 114 / 74 / वैडूर्यम् 3 / 3 / 55 / वि-उपात् शीङः 1 / 3 / 30 / वैशस्त्र-वैभाजित्रे 3 / 4 / 51 / व्युष्टादिभ्यः अण् 4 / 1 / 115 / *वोद्वाहे 5 / 3 / 4 / व्ये-स्यमो: 5 / 1 / 26 / / वोर्णोः 6 / 1 / 6 / व्योमादयः (उणादि) 3 / 82 / वोर्णोः 6 / 2 / 15 / व्-योः ईषत्स्पृष्टौ च 6 / 4 / 27 / वोर्णोः 6 / 2 / 31 // व्रज-व्यजौ 1 / 3 / 101 / वो विधूनने जुक् 6 / 1 / 47 / व्रते 112 / 56 / वोशनसः 5 / 4 / 47 / व्रश्व-भ्रस्ज-सृज-मृज-यज-राज-भ्राज-शां वोशीनरेषु .3 / 2 / 35 / . षः 6 / 3 / 66 / वौषधि-वृक्षात् द्वि-त्र्यचः अनिरिकादेः वृश्चित्वा 5 / 4 / 116 / 6 / 4 / 105 / व्रश्चि-मूषेः च किकन् (उणादि) 2 / / व्-पोर्वा 6 / 4 / 120 / वातात् खञ् 3 / 4 / 13 / व्-मोः टाप् 1 / 4 / 27) वातात् अस्त्रियाम् 4 / 3 / 6 / व्यः 5 / 1 / 47) व्रीहि-शालेः ढक् 4 / 2 / 2 / व्यक्तं सहोक्तौ 1 / 4 / 66 / व्रीहेः पुरोडाशे 3 / 3 / 112 / व्यचः अणिति अनसि 5 / 1 / 16 / / व्रीह्यादि-अतः इनिश्च 4 / 2 / 116 / व्यञ्जनानाम् 2 / 2 / 63 / शकन्ध्वादयः 5 / 1 / 68 / __. * सूत्रपाठे तत्र तत्र एतादृशानि सूत्राणि सन्धिं खण्डयित्वा निर्दिष्टानि, यथा -- ‘वा उद्वाहे'। 23