________________ तद् --तिरसः] चान्द्रव्याकरणम् [151 तद् नपुंसकम् 2 / 2 / 15 / तस्य एश् 1 / 4 / 10 / . तपआप्यात् 1 / 4 / 75 / ता तत्काल: 1 / 13 / तपः-सहस्राभ्याम् अण् 4 / 2 / 106 / / तात-पलित-जर्त-सूरताः (उणादि) 2 / 52 / तपसः तपआप्यात् 1 / 1 / 81 / तादर्से 2 / 176 / तप्त-अनु-अवात् रहसः 4 / 4 / 67 / ताभ्यां डाप् 2 / 3 / 14 / तमेः बुक् च (उणादि) 3 / 44 / तारका ज्योतिषि 6 / 1 / 80 / तमि-अमि-जीनाम् दीर्घश्च (उणादि) 3 / / तारेः अन् (उणादि) 164 / तयोः य-वौ अचि 6 / 3 / 133 / तालादिभ्यः अण् 3 / 3 / 106 / तयोः वा 1467 / ताससः रि च लोपः 6 / 2 / 100 / तर-तम-रूप-कल्प-चेलट्-ब्रुव-गोत्र-मत-हते तासश्च क्लप: 5 / 4 / 124 / ङयः ह स्व: 5 / 2 / 42 / तिक-कितवादिभ्यः चार्थेकाक्षं 2 / 4 / 115 / तरति 3 / 4 / 5 / तिकादिभ्यः फिञ 2 / 4 / 86 / तर्हि एतर्हि सद्यः परेद्यवि 4 / 3 / 16 / ति किति अदो जग्धः 5 / 4 / 85 / तवक-ममको एकत्वे 3 / 2 / 64 / तिङश्च रूपप् 4 / 3 / 53 / तव-ममौ ङसि / 5 / 4 / 62 / तिङ-असंख्यानाम् अचोऽन्त्यात् पूर्वोऽकच् तव्यादिषट्के अवश्यमः 5 / 2 / 10 / 4 / 3 / 56 / तव्य-अनीयर्-केलिमरः 111 / 105 // तिङि हलि अपिति 5 / 3 / 58 / तसोः तसौ मत्वर्थे 6 / 3 / 68 / / तिङि अवक्षेपे 5 / 2 / 12 / त-स्थ-स्थानां तां-तं-ताः डिन्तश्च 1 / 4 / 28 / तिङशिति यक् अलिट्-आशीर्-लिङि तस्मै प्रभवति संतापादिभ्यः 4 / 1 / 120 / 1 / 180 / तस्मै भृतः अधीष्ट: 4 / 1 / 14 / / तिङशिति अपित्आशीलिङि 6 / 2 / / तस्मै हितम् 4 / 1 / 4 / . ति चोद् अतः 6 / 2 / 137 / तस्य दक्षिणा यज्ञेभ्यः 4 / 1 / 112 / / तिजः क्षान्तौ सन् 1 / 1 / 17 / तस्य धर्म्यम् 3 / 4 / 46 / . तिजे: ईच् च (उणादि) 278 / तस्य पूरणे डट् 4 / 2 / 51 / ति-तु-ब-यस्-ताः 4 / 2 / 150 / तस्य भावः त्व-तलौ 4 / 1 / 136 / / तित्तिरि-वरतन्तु-खण्डिक-उखात् छण् तस्य वापः 4 / 1 / 48 / 3 / 3170 / तस्य व्याख्याने च व्याख्येय-नाम्नः / तिपि 6 / 3 / 105 / तिमि-रुधि-मदि-मन्दि-चन्दि-बन्धिभ्यः तस्य समूहः 3 / 1 / 43 / किरच् (उणादि) 3 // 5 // तस्य स्वं रथात् यत् 3 / 3 / 85 / तिरसः 6 / 4 / 44 / / तस्यापत्यम् 2 / 4 / 16 / तिरसः तिरि अति / 5 / 2 / 112 / 3 / 3 / 38 / ह