________________ परि-पिश्यं चन्द्रिव्याकरण [161 परि-अनुभ्यां- ग्रामात् 3 / 3 / 25 / पात्रात् ष्ठन् 4 / 1 / 46 / परि-अप-आङ-बहिरञ्चः पञ्चम्या वा पात्रात् यश्च 4 / 1 / 78 / 2 / 27 / पादः 2 / 3 / 7 / / परि-अपाभ्यां वर्जने 2 / 1 / 82 / पादः पत् 5 / 3 / 127 / पर्यायः क्रमे 1 / 3 / 26 / पादस्य पाद् अहस्त्यादिभ्यः पर्वत-जीवन्तात् वा 2 / 4 / 36 / 4 / 4 / 127 / पर्वतात् 3 / 2 / 55 / पादस्य आजि-आति-ग-उप-हते पदः पर्व-मरुद्भ्यां तप् 4 / 2 / 142 / 5 / 2 / 58 // पर्वादिभ्यः अण् अस्त्रियाम् पाद्यम् 4 / 4 / 33 / 4 / 3 / 63 / पानं देशे 6 / 4 / 10 / पश्चात् 4 / 3 / 35 / / पापतिः 1 / 2 / 114 / पश्चार्धम् 4 / 3 / 36 / / पारस्करादीनि नाम्नि 5 / 1 / 142 / पाक-कर्ण-पर्ण-पुष्प-फल-मूल-बालान्तात् पारायण-तुरायण-चान्द्रायणं वर्तयति 2 / 3 / 72 / 4 / 1 / 83 / पा-घ्रा-ध्मा-धेट-दृशः शः 1 / 1 / 143 / पारावार-अवारपारात् खः 3 / 2 / 6 / पा-घ्रा-ध्मा-स्था-म्ना-दाण्-दृश-शद-सदाम् पारावार-अवारपार-अत्यन्त-अनुकामम् पिब-जिघ्र-धम-तिष्ठ-मन-यच्छ गामी 4 / 2 / 17 / पश्य-शीय-सीदाः 6 / 1 / 106 / पाराशर्य-शिलालिभ्यां णिनिः पाठे अत्वतः 5 / 4 / 162 // 3 / 3 / 78 // पाठे विभाषितात् 1 / 4 / 125 / पारे मध्ये षष्ठ्या वा 2 / 2 / 11 / पाणिगृहीती ऊंढा 2 / 3 / 58 / पाच-पौरुषेये 3 / 1153 / / पाणिघ-ताडघौ शिल्पिनि 1 / 2 / 42 / पार्श्वेन अन्विच्छति 4 / 2 / 81 / पाणि-समवाभ्यां सृजः 1 / 1 / 131 / पार्ष्यादयः (उणादि) 180 / पाण्डु-उदक-कृष्णात् भूमेः 4 / 4 / 72 / पालन्-वलो शीङः (उणादि) पाण्डोडर्यण् 2 / 4 / 102 / 3151 // पा-त-तुदि-वचि-रिचि-सिचि-विशेः ठक् पाशादिभ्यः यः 3 / 1156 / . (उणादि) 2 / 58 / पिच्छादिभ्यः च इलच् 4 / 2 / 103 / पातेः 6 / 1151 / पितृ-मात्रादेः छण् 2 / 4 / 67 / पातेः डतिः (उणादि) 185 / / पितृव्य-मातामह-पितामहाः 3 / 1 / 60 / पात्र-आचित-आढकात् खो वा पित्रादयः (उणादि) 1150 / 4 / 1 / 66 / पित्र्यं वा 3 / 3 / 51 / 21 91