________________ [ 143 क्तिचि --क्षेम] चान्द्रव्याकरणम क्तिचि दीर्घश्च 5 / 3 / 51 / क्लिन्नचक्षुषि चिल्ल-पिल्ल-चुल्लाः क्तिनि 6 / 3 / 63 / 8 / 2 / 34 / क्त्वि स्कन्द-स्यन्दो: 5 / 3 / 52 / क्व-कुत्र-इह-अत्र 4 / 3 / 11 / क्न: असित-पलितात् 2 / 3 / 35 / क्वचिद् वा 5 / 1 / 124 / क्यङ 1 / 1 / 26 / क्वण: वीणायाश्च 1 / 3 / 56 / क्यङि वा 6 / 2 / 102 / क्वसोः एकाच्-आत्-घसः 5 / 4 / 165 / क्यचि 6 / 2 / 86 / क्व-अमा-इह-अत्र-तसः त्यप् 3 / 2 / 13 / क्य-व्योः 5 / 3 / 156 / क्विनः 6 / 3 / 60 / क्यस्य वा 5 / 3 / 66 / . क्विप्-विच्-मनिन्-क्वनिप्-वनिपः क्रतु-उक्थादिभ्यः ठक् 3 / 1 / 38 / . 1 / 2 / 53 / ऋतो कुण्डपाय्य-संचाय्यौ 1 / 1 / 137 / क्षः 6 / 3 / 8 / / क्रमः 5 / 4 / 126 / / क्षणः डीरच् (उणादि) 3 / 26 / क्रमः क्त्वि 5 / 3 / 16 / क्षत्रात जातौ घः 2 / 4 / 66 / क्रमादिभ्यः वुन् . 3 / 1 / 40 / क्षत्रियात् 3 / 3 / 67 / क्रमः अतः इत् च (उणादि) 1153 / क्षिपः कित् (उणादि) 1175 // क्रमः अतङाने 6 / 1 / 104 / क्षिपकादीनाम् 6 / 1176 / क्रियः इकन् (उणादि) 2 / 17 / / क्षिपि-नदिभ्यां चनुङ (उणादि) 1 / 32 / क्रियः क्रयार्थे 5 / 180 / क्षिपि-लङ्घि-लिखि-धमिभ्य, क्वुन् / क्रियाऽऽप्ये द्वितीया 2 / 1 / 43 / (उणादि) 2 // 5 // क्री-इङ-जीनाम् 5 / 1 / 60 / क्षीरात् ढञ् 3 / 1 / 17 / क्रीडः अनु-परिभ्यां च 1 / 4 / 58 / क्षुद्रजन्तूनाम् 2 / 2 / 60 / क्रीतवत् परिमाणात् 3 / 3 / 115 / क्षुद्राभ्यो वा / 2 / 4 / 63 / क्रीतात् करणादेः 2 / 3 / 55 / क्षुब्ध-स्वान्त-ध्वान्तम् मन्थ-मनस्-तमः क्रुञ्चा-कोकिलाभ्याम् 2 / 4 / 43 / 5 / 4 / 145 / क्रुध-भूषार्थात् 1 / 2 / 100 / / क्षुभ्नादीनाम् 6 / 4 / 135 / कुंशः तुनः तृच 5 / 4 / 48 / क्षेः क्षी: 5 / 3 / 72 / क्रोध-अश्रद्धयोः 1 / 3 / 111 / / क्षेः क्षी च 6 / 3 / 81 / क्रोश-योजनादेः शतात् अभिगमार्थे च क्षेत्रियच् परक्षेत्रे चिकित्स्यः 4 / 2 / 66 / 4 / 1 / 86 / क्षेप-अतिग्रह-अव्यथनेषु अकर्तरि क्रोड्यादीनाम् 2 / 3 / 84 / तृतीयायाः 4 / 3 / 3 / क्यादिभ्यः 1 / 1 / 101 / क्षेम-प्रिय-मद्रात् अण् च 1 / 2 / 28 /