________________ चान्द्रव्याकरणम् गुणवचन -- घास] [145 गुणवचन-ब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च गोः अलुकि अचार्थे 4 / 4 / 77 / 4 / 1 / 141 / गोः ओ वा 5 / 1 / 120 / गुणान् ईयसुन्-इष्ठनौ च 4 / 3 / 47 / गो: औ: स्वार्थे 5 / 4 / 43 / गुणे वा 2 / 1 / 70 / गोष्ठात् भूते 4 / 2 / 6 / गुधेः ऊमः ( उणादि) 2068 / गोसदादिभ्यः वुन् / 4 / 2 / 156 / गुपू-धूप-विछ-पण-पनः आयोचा 1 / 1 / 47 / गौरादिभ्यः 2 / 3 / 37 / गुपो निन्दायाम् 111 / 16 / ग्रन्थान्ताधिक्ये 5 / 2 / 101 गुरेः फक् (उणादि) 2 / 86 / ग्रसेः आच् च (उणादि) 2 / 101 / गुरोहलः 11385 / ग्रहः 111 / 152 / गुर्वेकैकमनृत् वा 6 / 3 / 118 / ग्रहणे वा 4 / 2 / 66 / गृधि-वञ्चेः प्रलम्भने 1 / 4 / 121 / ग्रह-वृ-दृ-निश्चि-गम-वश-रणः 1 / 3 / 48 / गृष्ट्यादिभ्यः 2 / 4 / 77 / ग्रहि-प्रछोः सनि 5 / 1 / 22 / गृहांशे प्रघाणः 1 / 3 / 66 / ग्रहि-व्यधोः 5 / 1 / 15 / गृ-गृभ्यां वः ( उणादि) 2060 / ग्रहोऽस्यालिटीत् 5 / 4 / 100 / गेहे कः 111153 / ग्राम-कोटात् तक्ष्णः 4 / 4 / 80 / गोत्रचरणात् श्लाघा-अधिक्षेप-अव- ग्राम-जन-गज-बन्धु-सहायात् तल्३।१।५६ / गतेषु 4 / 1 / 150 / ग्राम-जनपदांशात् अण् च 3 / 2 / 66 / गोत्रा 3 / 1 / 58 / ग्रामात् य-खो 3 / 2 / 4 / गोत्रात् अङ्कवत् 3 / 1 / 8 / ग्रीवातः अण् च 3 / 3 / 20 / गोत्रात् अङ्कवत् 3 / 1 / 54 / / ग्रीष्म-वसन्तात् वा 3 / 3 / 12 / गोत्रात् अदण्ड-माणव-अन्तेवासिषु ग्रीष्म-अवर-समात् वुञ 3 / 3 / 15 / 3 / 3 / 65 / ग्रो यङि 6 / 3 / 43 / / गोत्रात् बहुलं वुन 3 / 3 / 66 / / ग्रो वा मुट् च ( उणादि ) 375 / गोत्रान्तात् तद्वत् अजिह्वाकात्य ग्ला-नुदिभ्यां डौः (उणादि) 163 / हरितकात्यात् 3 / 2 / 27 / ग्ला-हा-ज्यः 1 / 3 / 65 / गोत्रात् लुक् 2 / 4 / 118 / / गोत्र-उक्ष-उष्ट्र-उरभ्र-राज-राजपुत्र-वत्स- घः 1 / 3 / 100 / - अज-वृद्धात् वुञ् 3 / 1145 / घनि भाव-करणयोः 5 / 3 / 31 / 3 / 1145 / घा गोधायाः 2 / 4 / 61 / घञ् कारके च 1 / 37 / गोमिन् पूज्ये 4 / 2 / 144 / घ-ढ-धश् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 8) गोः अचि यत् 2 / 4 / 15 / धर्म-ग्रीष्म-अधमाः ( उणादि ) 2 / 106 / गो: अप्रधानस्यान्त्यस्य 2 / 2 / 85 / घास-कर-विशिष्टे पुंवच्च 5 / 2 / 47 / * 16