________________ 148] चान्द्रव्याकरणम् [जनि -- ज्वलादिभ्यो जनि-मनि-दसि-भुजेः क्युस् (उणादि) जायादयः (उणादि) 2 / 110 / . 1 / 34 / जायायाः निङ् 4 / 4 / 122 / जनि-वधोः 6 / 1 / 43 / __ जि-ग्लश्च क्स्नुः 1 / 2 / 64 / जनि-ईशि-ईड: स-ध्वे 5 / 4 / 174 / जित्या-विपूय-विनीया हलि-मुञ्ज-कल्केषु / जनः अरः ठश्च (उणादि) 3 / 31 / 1 / 1 / 128 / जनः उसिः (उणादि) 3 / 61. जिह्वामूल-अङ्गलेः छः 3 / 3 / 30 / .. जनेः घः (उणादि) 2 / 30 / - जीवात् ग्रहः णमुल स चानु 1 / 3 / 136 / जप-जभ-दह-दश-भञ्ज-पशाम् 6 / 2 / 135 / जीविका-उपनिषदौ औपम्ये 2 / 2 / 40 / जपि-वमः 5 / 4 / 143 / / जु-चङक्रम्य-दन्द्रम्य-सृ-गृधि-ज्वल-शुच- . ज-ब-ग-ड-दश् प्रत्याहारसूत्र (शिवसूत्र 6) लष-पत-पदः 1 / 2 / 66 / जभः अचि 5 / 4 / 14 / जुस्-पुकोः 6 / 2 / 3 / जम्ब्वादयः (उणादि) 1147 / ज-विशः अन्तच् (उणादि) 2 / 43 / जराया जरस् वा 5 / 4 / 67 / ज-वृञः ऊथन् (उणादि) 2 / 57 / जल्प-भिक्ष-कुट्ट-लुण्ट-वृङ: शाकन् ज-श्वि-स्तम्भु-मुचु-म्लुचु-ग्लुचः 1 / 175 / 1 / 2 / 103 / जषः त्वः 5 / 4 / 115 // जसः शी: 2 / 1 / / जषः अतृन् 1 / 2 / 72 / जसि 6 / 2 / 46 / जेः नुक् च (उणादि) 165 / जस्-शसोः शि: 2 / 1 / 16 / ज्ञपि-आप्-ऋधाम् ईत् 6 / 2 / 108 / / जागुः 1 / 3 / 83 / ज्ञा-क-प्री-इगुपान्तात् कः 1 / 1 / 141 / जागुः क्विन् (उणादि) 182 / ज्ञा-जनोः जाः 6 / 1 / 107 / जागुः अलिटि 6 / 26 / ज्ञान-यत्न-उपच्छन्दनेषु वदः 1 / 4 / 63 / जागुः ऊकः 1 / 2 / 111 / ज्यः 5 / 1 / 46 / जागृ-उषो वा 1 / 1154 / ज्यायान् 5 / 3 / 162 / जाण्ड-पाण्डाद् आरक् 2 / 4 / 60 / ज्या-वश्व-प्रछ-भ्रस्जाम् 5 / 1 / 17 / जातिः अष्फादौ च 5 / 2 / 38 / ज्योतिस्-आयुषश्च स्तोमः 6 / 4 / 70 / जातीयर् 4 / 3 / 26 / ज्योतिरादयः (उणादि) 360 / जाते प्रोष्ठ-भद्रात् पदस्य 6 / 1 / 28 / ज्योत्स्ना-तमिस्र-ऊर्जस्विन्-ऊर्जस्वलजातेः अनाच्छादात् वा 2 / 3 / 56 / ___ मलीमसाः 4 / 2 / 117 / जातेः अस्त्रीविषयात् अयोपान्तात् ज्योत्स्नादिभ्यः 4 / 2 / 107 / 2 / 3 / 71 / ज्वर-त्वर-अव-श्रिवु-मवां सोपान्तस्य जातौ डतमच् बहुभ्यः 4 / 3 / 76 / 5 / 3 / 16 / जानु-नीवीभ्याम् 3 / 3 / 37 / ज्वलादिभ्यो णो वा 111 / 146 /