________________ [147 चार्य - जन] चान्द्रव्याकरणम् चार्थ-रोग-गर्हितात् प्राणिस्थात् अस्वाङ्गात् छ-कारके अन्यस्य दुक् 5 / 2 / 116 / ' इनिः 4 / 2 / 125 / छगलिनो ढिनुक् 3 / 3 / 76 / चार्थसमास-मनोज्ञादिभ्यः 4 / 1 / 146 छश्च आयुधात् 3 / 4 / 12 / चार्थसमासे 2 / 1 / 12 / छत्रादिभ्यः णः 3 / 4 / 63 / चार्थात् छः 3 / 1 / 6 / छदिर्-बलिभ्यां ढञ् 4 / 1 / 16 / चार्थात् वैरे वुन् अदेवासुरादिभ्यः छदे: नुम् च (उणादि) 3 / 10 / 3 / 3 / 86 / छन्दसा निर्मिते 3 / 4 / 65 / चार्थान् अदेवासुरादीन् 3 / 3 / 57 / छन्दसो यत् 3 / 3 / 43 / चार्थे 2 / 2 / 48 / छन्दोग-औक्थिक-याज्ञिक-बहवृचात् धर्मचार्थे चु-द-ष-हः समाहारे 4 / 4 / 86 / आम्नाय-संघेषु 3 / 3 / 12 / चाल-शब्दार्थात् . अनाप्यात् युच् छन्दोनाम्नि 1 / 3 / 26 / 1 / 2 / 67 / छवि रः सः 6 / 4 / 28 / चिणः 1 / 185 / छविआदयः (उणादि) 1183 / चिण्-णमो: अप्रादे: वा 5 / 4 / 23 / / छादेर्पा 6 / 1 / 58 / चिण्-णमोः दीर्घश्च 6 / 1 / 57 / छाया 2 / 2 / 73 / चिण्णल्ङित्सु 6 / 2 / 10 / छे 3 / 3 / 111 // चिण ते पदः 11176 / छे 5 / 170 / चिति-राशि-वास-देहेषु चः कः 1 / 3 / 32 / छेदादिभ्यो. नित्यम् 4 / 1 / 75 / चितेः कपि 5 / 2 / 136 / / छो वा 6 / 2 / 63 / चिति उपमार्थे 6 / 3 / 128 / चित्रङ: आश्चर्ये 1 / 1 / 38 / जक्षादिभ्यः पञ्चभ्यः 1 / 4 / 5 / . चि-स्फुरोः णौ 5 / 1156 / जङ्गल-धेनु-बलजस्य वा 6 / 1 / 35 / चु-टु-तु-ल-शर्यवाये 6 / 4 / 132 / जटा-लोष्टम् (उणादि) 2 / 33 / चुरादिभ्यः णिच् 1 / 1 / 45 / जवादयः (उणादि) 1140 / चूडादिभ्यः अण् 4 / 1 / 130 / जनपदनाम्नः क्षत्रियात् राशि च चूर्णात् इनिः 3 / 4 / 23 / 2 / 4 / 66 / चेर्वा 6 / 186 / जनपदवत् सर्वं तत्सरूपात् बहुत्वे चोः कुः 6 / 3 / 56 / 3 / 3 / 68 / चौ 5 / 2 / 146 / जनपदात् 4 / 4 / 88 / च्वि-यङ-यक्-क्येषु 6 / 278 / जनपदेभ्यः 3 / 2 / 38 / व्यर्थे भृशादिभ्यः स्-तलोपश्च 1 / 1 / 30 / ज-नशः 5 / 3 / 55 / छः 2 / 4 / 65 / . जन-सन-खनाम् आत् 5 / 3 / 36 /