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________________ चतुर्विध व्याकृति (व्यदधात् यज्ञसंतत्यै वेदमेकं चतुर्विधम् ) तथा वायुपुराण में एक वेद का चतुर्धा विभाजन (वेद मे कं चतुष्पादं चतुर्धा व्यभजत् प्रभुः) इसी वेद-व्याकरण के अन्य संस्करण हैं जिसका रूपांतर वाक के चतुर्धा व्याकृत होकर परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी अथवा पराशक्ति, क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति और इच्छाशक्ति के रूप में ऊपर प्रस्तुत किया जा चुका है / जिस प्रकार त्रिया, ज्ञान और इच्छा का संयुक्तसूक्ष्मत्रयी रूप परा में है उसी प्रकार ऋक्, यजु और साम की त्रयी का संयुक्त रूप अथर्ववेद में माना जा सकता है। संभवतः इसीलिए अथर्ववेद का प्रतिनिधि ब्रह्मा अन्य तीनों वेदों के ऋत्विजों की अपेक्षा यज्ञ में अधिक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करता है / उक्त त्रयी के संयुक्त सूक्ष्मरूप का प्रतीक होने से, उसमें क्रिया (ऋक्) यजु (ज्ञान) तथा साम (इच्छा)रूप से हमारे अंगों की सारी सारभूत शक्तियां आ जाती हैं ; इसीलिये उसे 'पांगिरस' अर्थात् 'अंगों का रस' कहा जाता है और उसी संयुक्त सूक्ष्मरूप से समस्त निम्नगामिनी (अर्वाक) नानात्वमयी सृष्टि का प्रारंभ (अथ) होता है, इसलिए उसे 'अथर्वा'' (प्रथ+अर्वाक ) की संज्ञा भी दी जा सकती है / अतः त्रयी के संयुक्त रूप को अथर्वांगिरस भी कहा जाता है और चारों वेदों में त्रयी की ही स्थिति स्वीकार की जाती है, परन्तु यह स्थूलत्रयी तो 'अपरा विद्या' है जो ब्रह्म की प्राप्ति कराने वाली सूक्ष्म 'परा विद्या' से निष्कृष्ट मानी' गई है। प्रश्नोपनिषद्' का कथन है कि 'शांत, अजर, अमृत, अभय, पर' लोक की प्राप्ति तो ओंकार से होती है, ऋक्, यजु, तथा साम से नहीं। छान्दोग्य' उपनिषद् में कहा गया है कि जैसे कोई जल में देख ले, वैसे ही मृत्यु ने देवताओं को ऋक्, यजु तथा साम में देख लिया; देवतालोग यह जानकर ऋक्, यजु तथा साम से ऊपर उठकर 'स्वर' (मोंकार) में चले गये, तो वे मृत्यु की पहुंच के परे पहुंच गये। जो ऋक्, यजु साम अथवा. क्रिया, ज्ञान, इच्छा को ही साध्य मान लेता है वह केवल क्षणिक सुख का ही भागी होता है। अतः श्रीमद्भगवद् 1. देखिये-वैदिक एटिमॉलॉजी में 'अथर्वा' 2. तु० क० यस्मादृचः अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन्, सामानि यस्य लोमानि प्रथांगिरसो मुखम् / / 10, 7, 20 // 3. मु० उ० 1, 1,4 / त्रयीं विद्यामवेक्षेत वेदे सूक्तमथाङ्गतः। ऋक्सामवर्णाक्षरता यजुषोऽथर्वणस्तथा। (म० भा० शा० प० 235) 5. प्र. उ. 5,5 / 6. छो. उ० 1,4,2 /
SR No.004292
Book TitleChandravyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1889
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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