________________ चन्द्रगोमि-नाम-आचार्यविरचितं चा न्द्र व्या क र ण म् नमो वागीश्वराय सिद्धं प्रणम्य सर्वशं सर्वीयं' जगतो गुरुम् / लघुविस्पष्टसंपूर्णमुच्यते शब्दलक्षणम् // [प्रथमः अध्यायः, प्रथमः पादः ] 1 अइउण् // शिवसूत्र 1 // 7 सप्तम्यां पूर्वस्य / पा०१।११६६। 2 ऋलुक् // 2 // 8 पञ्चम्यां परस्य / पा०।१।१।६७। 3 एओङ // 3 // 6 आदेः / पा०१।१॥५४॥ 4 ऐऔच // 4 // 10 षष्ठयाऽन्त्यस्य / पा०१॥१॥५२॥ 5 हयवरलण् // 5 // 11 डित् / पा० 1 // 1 // 53 // 6 बमङणनम् // 6 // 12 शिदनेकाल सर्वस्य / पा०१॥१॥५५॥ 7 झभञ् // 7 // 13 टकितावाद्यन्तौ / पा०१॥१॥४६॥ 8 घढधष् // 8 // 14 मिदचोऽन्त्यात् परः / पा० 111147 / 6 जबगडदश् // 6 // 15 ऋकोऽणो रलौ / पा०११११५१। 10 खफछठथचटतव // 10 // 16 विप्रतिषेधे / पा०१।४।२। 11 कपय् // 11 // 17 तिजः क्षान्तौ सन् / पा०३।१॥५॥ 12 शषसर् // 12 // 18 कितः संशय-चिकित्सयोः।पा०३।१।५। 13 हल् // 13 // 16 गुपो निन्दायाम् / पा०३।१॥५॥ 1 आदिरिता समध्यः / पा० 1 / 171 / 20 बध एः ई च / पा०३।१।६। 2 उता सवर्गः / पा०१।१।६६। 21 शान्-दान्-मानः / पा०३।१।६। 3 ता तत्कालः / पा०१।१७०। 22 तुमो लुक् च इच्छायाम् / पा०३।१७। 4 दोऽपः / पा०१।१।२०। 23 व्याप्यात काम्यच / पा०३।१।६,७। 5 अनंशचिह्नमित् / पा०१॥३॥२-६। 24 ससंख्यादमः क्यच वा। 6 विधिविशेषणान्तस्य / पा०१।१।७२।। पा०३।१।८+ वा०१॥ 1 सर्वेभ्यः प्राणिभ्यो हितः सर्वीय: " सर्वाण्णो वा”। 4-1-13 इति चान्द्रं सूत्रम् / 2 " नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नव-पञ्चवारम् / / उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद् विमर्श शिवसूत्रजालम् " // इति शिवसूत्रविषये किंवदन्ती। 3 'पा०' इत्यनेन पाणिनीयं व्याकरणम् / 4 वा० इति वार्तिकम् / 1