________________ पृथग--प्रयोक्तुः] चान्द्रव्याकरणम् [163 पृथग्-नानाभ्याम् 2 / 1 / 86 / प्रज्ञा-श्रद्धा-अर्चा-वृत्तिभ्यो ण : 4 / 2 / 105 / पृथिवीमध्यस्य मध्यमश्च 3 / 2 / 56 / / प्रणाय्यः असम्मते 1 / 1 / 135 // पृथिवी-सर्वभूमेः अ -अणौ 4 / 1 / 55 / / प्रतिजनादिभ्यः खञ 3 / 4 / 101 / पृथिव्या ञः 2 / 4 / 6 / / प्रतिना पञ्चम्याः 4 / 3 / 5 / पृथ्वादिभ्यः इमनिन् 4 / 1 / 136 / प्रतिना प्रतिनिधि-प्रतिदानयोः 2 / 1183 / पृषि-रञ्जः कित् (उणादि) 2 / 46 / प्रतिना मात्रार्थे 2 / 2 / 5 / पृषि-वृषि-महेः शतः (उणादि) 377 / प्रतिपथम् एति ठंश्च 3 / 4 / 40 / पृषोदरादीनि 5 / 2 / 127 / प्रति-परिभ्यां भागे च 2 / 1 / 55 / पृष्ठय-अहीनो ऋतौ 3 / 1154 / / प्रतिस्यि 4 / 1 / 28 / पृ-पा-तले: पः (उणादि) 2 / 2 / प्रतिश्रुतौ 6 / 3 / 126 / पेषे पिषौ 5 / 2 / 68 / प्रते: 5 / 1 / 30 / पैङ्गाक्षिपुत्रादिभ्यः छः. 3 / 1 / 24 / प्रतेः सूत्रे 6 / 4 / 78 / पैलादिभ्यः 2 / 4 / 121 / प्रते: उरसः आधारात् 4 / 4 / 68 / पौत्रादेः स्त्रियाः कुत्सिते ण च प्रति-अति-अभीनां क्षिपः 1 / 4 / 132 / 2 / 4 / 76 प्रति-अनुभ्यां गृणो व्याप्ये 2 / 177 / पौत्रादेः अस्त्रियां गुर्वायत्ते 2 / 4 / 18 / प्रति-अनु-अवात् साम-लोम्नः 4 / 4 / 60 / पौरोडाश-पुरोडाशात् ष्ठन् 3 / 3 / 42 / प्रत्युक्तौ हिः 6 / 3 / 120 / / प्यायः पी: 5 / 1 / 34 / प्रथने वेः अशब्दे 1 / 3 / 25 / प्रकारे गुणस्य 6 / 3 / 7 / प्रथम-चरम-तय-अय-अल्प-अर्ध-नेम-कतिप्रकारे थाल् 4 / 3 / 16 / पयात् 2 / 1 / 14 / प्रकृतेः 5 / 3 / 1 // प्रथमयोः अचि 5 / 1 / 106 / प्रकृते मयट . . 4 / 4 / 6 / प्रथि-चरे: अमच् (उणादि) 266 / प्रकृष्टः 4 / 1 / 126 / प्र-दश-ऋण-वसन-कम्बल-वत्सरात् ऋणे प्रचेतसो राजनि वा 6 / 3 / 101 // 5 / 1 / 61 / प्रच्छि-वचोः तौ च (उणादि) 3 / 66 / प्र-निर्-अन्तर्-शर-इक्षु-प्लक्ष-आम्र-कार्ण्यप्रजन-रुचि-अपत्रप-वृतु-वृधु-सह-चर-भ्राजः पायूक्षा-खदिरात् 6 / 4 / 104 / 1 / 2 / 12 / प्रभूतादीन् आह 3 / 4 / 47 / प्रजने वियः 5 / 1157 / प्रभौ परिवृढः 5 / 4 / 146 / प्रजने सर्तेः 1 / 3 / 61 / प्रमाणे 1 / 3 / 143 / प्रजाया असिच् 4 / 4 / 107 / प्रमाण्याः 4 / 4 / 100 / प्रज्ञादिभ्यो वा 4 / 4 / 22 / प्रयोक्तुः भियः षुक् 6 / 1 / 52 /