________________ 164] चान्द्र व्याकरणम् [प्रयोजकव्यापारे-प्राद प्रयोजकव्यापारे 1 / 1 / 46 / / प्राणि-तूर्याङ्गानाम् 2 / 2 / 58 / प्रयोजकात् भी-स्मेः णेः 1 / 4 / 120 / प्राणिनि 4 / 1 / 104 / प्रयोजनम् 4 / 1 / 127 / प्राणिभ्यः अञ 3 / 3 / 105 / प्रयोज्य-नियोज्यौ शक्ये 6 / 1 / 66 / प्राण्यङ्गात् आतः लच् वा प्रशस्यस्य श्रः 4 / 3 / 46 / . . 4 / 2 / 16 / प्रश्न-आख्यानयोः इन च 1 / 3 / 12 / प्रात् पुराणे नश्च 4 / 4 / 30 / प्रष्ठः अग्रगामी 6 / 4 / 76 / प्रात् स्र-द्रु-स्तुवः 1 / 3 / 18 / प्र-संभ्याम् हर्षे 1 / 3 / 56 / प्रादौ एकस्मिन् 6 / 1 / 56 / प्रसूता-प्रजाता-गर्भिण्यः 5 / 2 / 30 // प्रादिभ्यः ऊहः हस्वः 6 // 275 / प्रस्त्यः मः 6 / 3 / 08 / प्रादिभ्यः 4 / 4 / 110 / . .. प्रस्त्रः अन्यत्र 113 / 24 / / प्रादिभ्यः खल-घत्रो: 5 / 4 / 21 / / प्रस्थ-वह-पुरान्त-योपान्त-धन्वार्थात् वुञ् प्रादिभ्यः स्तम्भु-सिव-सहाम् चङि 3 / 2 / 36 / 6 / 4 / 66 / प्रहरणम् 3 / 4 / 56 / प्रादिभ्यः अदः 1 / 3 / 46 / प्रहरणात् अस्यां क्रीडायां णः 3 / 1 / 35 // प्रादिभ्यः दा-धः किः 1 / 3 / 71 / प्राक् क्रीतात् छः 4 / 1 / 1 / प्रादिभ्यः अध्वनः 4 / 4 / 71 / प्राक् हितात् यत् 3 / 4 / 76 / प्रादिभ्यः रुवः 113 / 11 / प्राक् जितात् अण् 2 / 4 / 1 / प्रादिभ्यः असु-ऊहो वा 114 / 72 / प्राजितीये, अचि 2 / 4 / 117 / - प्रादीनां घञि बहुलम् 5 / 2 / 141 / प्राक् ढञः कः 4 / 3 / 55 / प्रादीनां सु-सू-सो-स्तुभ-स्था-सेनि-सेधप्राक् यतः ठक् 3 / 4 / 1 / सिच्-सञ्ज-स्वजाम् प्राग् युवोः अवुग्युग् असिद्धं समानाश्रये 6 / 4 / 50 / 5 / 3 / 21 / प्रादीनाम् अयतौ 6 / 3 / 42 / : अग्नि-कलिभ्यां ढक 2 / 4 / 12 / प्रादीनाम ऋति धातौ 5 / 1 / 63 / प्राग वतेः ठञ 4 / 1 / 23 / प्रादुः-प्रादिभ्यः यचि अस्तेः 6 / 4 / 74 / प्राचां ग्रामाणाम् 6 / 1 / 25 // प्राद् ऊढ-ऊढि-एष-एष्येषु 5 / 1 / 86 / प्राचां नगरस्य 6 / 1 / 34 / प्रादेः अचः तः 6 / 2 / 67 / प्राच्यात् छे 3 / 2 / 32 / प्राच्यात् इञः अतौल्वलिभ्यः प्रादेः अजाद्यन्तात् युजेः अयज्ञपात्रेषु 2 / 4 / 122 / 1 / 4 / 117 / प्राणिजाति-वयोऽर्थ-उद्गात्रादिभ्यः अञ प्रादि-अन्तरः अदुरः णः 6 / 4 / 114 / 4 / 1 / 145 / प्राद् वहः 1 / 4 / 133 /