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________________ प्रास्ताविक इस छोटे से प्रास्ताविक में दो-तीन मुद्दों पर लिखने का विचार है। (1) मुख्य व्याकरणों का संक्षिप्त परिचय और चान्द्रपाकरण के सम्पादन का वृत्तान्त / (2) प्रकाशित चान्द्रव्याकरण की सम्पादन-शैली का परिचय / (3) चान्द्रव्याकरण के कर्ता का परिचय / / महाभाष्यकार श्रीपतंजलिमुनि ने जिस भाषा को 'लौकिक-भाषा' का नाम दिया है, ऐसी संस्कृत-भाषा के अनेकानेक छोटे-मोटे व्याकरण हमारे देश में और विदेशों में भी पूर्व में बने हैं और नाज भी बनते जारहे हैं / इन सब में निम्न पाठ व्याकरण प्रधान गिने जाते हैं। "इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः॥ पाणिन्यमरजैनेन्द्रा जयन्त्यष्ट विशास्विकाः // " अर्थात् इन्द्र, चन्द्र, काशकृत्स्न, अपिशलि, शाकटायन, पाणिनि, अमर और जैनेन्द्र ये पाठ प्रादिशाब्दिक माने जाते हैं। ___ इस श्लोक में बताए हुए प्रादिशाब्दिकों के निर्देश में किसी प्रकार का कालक्रम या छोटे बड़े की कल्पना नहीं रखी गई है, परन्तु मात्र गणना करने का ही प्राशय रहा है। पादिशाब्दिक- सर्वप्रथम व्याकरण की रचना करने वाले पाद्ययाकरणों में प्रथम स्थान 'इन्द्र' का पाता है। इन्द्र-नाम के उस महापण्डित द्वारा बनाया गया व्याकरण 'ऐन्द्र' नाम से प्रसिद्ध हुआ / आज यह व्याकरण उपलब्ध नहीं है, पर प्राचीनतम पाणिनीय व्याकरण के महाभाष्य में इसका नाम-निर्देशमात्र पाया जाता है / 'ऐन्द्र' व्याकरण इतना प्राचीन है कि इसके सम्बन्ध में अनेक किंवदन्तियां चल पड़ी हैं / जैन-सम्प्रदाय के अनुयायी प्रचीन पण्डित कहते हैं कि जब भगवान् महावीर लेखशाला (पाठशाला) में प्रथम पढ़ने बैठे तब स्वर्ग में से 'इन्द्र' भगवान् के पास पाया और उनके साथ शब्दशास्त्र के सम्बन्ध में जो चर्चा भगवान् ने की उसका नाम ऐन्द्र व्याकरण हुआ / ऐसी दंतकथा श्वेताम्बर-जैनपरम्परा में बहुत समय से चली आती है। वास्तव में 'इन्द्र' नाम का कोई विद्वान् इस व्याकरण का कर्ता था। स्वर्ग
SR No.004292
Book TitleChandravyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1889
Total Pages270
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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